बुधवार, 30 अक्टूबर 2013

मुद्दा: समस्या और उसका समाधान

बेंगलूर स्थित इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल एवं इकोनॉमिक चेंज द्वारा 2012 में कांपेटेटिव असेसमेंट ऑफ ओनियन मार्केट्स इन इंडिया नामक शोध किया गया था। इसके प्रमुख निष्कर्ष इस प्रकार हैं:

कृषि विपणन

निजी खिलाड़ियों का वर्चस्व है। कृषि बाजारों की हालत खस्ताहाल है। उनके आस-पास के आधारभूत ढांचे का स्तरीय विकास नहीं हुआ है। निगमित बाजार के असमान विकास, व्यवसायियों के निजी हितों के खिलाफ लड़ाई में अक्षमता और निगमित बाजारों में व्यापारियों की आपसी साठगांठ की वजहों से उपभोक्ताओं के लिए निर्धारित कीमत में वास्तविक हक किसान को नहीं मिलता। कृषि विपणन पर प्रमुख रूप से बिचौलियों का कब्जा है।

सुझाव

1. नए कमीशन एजेंट और व्यापारियों की फ्री एंट्री को प्रोत्साहन मिले।

2. नियमों को कठोर कर और नियमन तंत्र को मजबूत कर जानबूझकर जमाखोरी करने वाले बिचौलियों पर अंकुश लगे।

3. कृषि उत्पाद मार्केट कमेटी में सुधार की जरूरत है:

·         ऐसी व्यवस्था की जानी चाहिए ताकि एपीएमसी और अन्य थोक बाजार गुप्त निविदाओं की अनुमति नहीं दे क्योंकि यह निगमित बाजार एक्ट के खिलाफ है ।

·         व्यापारियों के बीच साठगांठ रोकने के लिए एपीएमसी अधिकारियों को नीलामी में शामिल होने की अनिवार्यता सुनिश्चित करनी चाहिए।

·         एपीएमसी एक्ट में बाजार को एकाएक बंद करने से रोकने के लिए प्रावधान किया जाना चाहिए।

·         एपीएमसी द्वारा एकत्र किए जाने वाले चार्जेज का प्रभावी इस्तेमाल होना चाहिए ताकि किसानों समेत सभी को बेहतर सुविधाएं मिल सकें।

4. प्याज के निर्यात पर पाबंदी और एकपक्षीय एमईपी के निर्धारण को हतोत्साहित किया जाए।

5. नैफेड को बाजार से प्याज के प्रसंस्करण और किसानों से सीधे खरीदने का अधिकार मिले।

6. किसानों द्वारा थोक व्यापारियों तक सीधे बिक्री को प्रोत्साहित करना चाहिए।

7. प्याज उत्पादन वाले इलाकों में आर्थिक और मौसम गतिविधियों के मद्देनजर कुल उत्पादन का पूर्वानुमान व्यक्त करने का तंत्र विकसित हो।

·         अंतरराष्ट्रीय बाजार में भारतीय प्याज की बढ़ती मांग के बीच कीमतों में होने वाले उतार-चढ़ाव को रोकने के लिए प्याज के निर्यात पर विचार किया जाना चाहिए।

·         प्रमुख बाजारों में प्याज कीमतों के डाटा की रिकॉर्डिग के लिए ई-टेंडरिंग अथवा नेशनल मार्केट इंफार्मेशन सिस्टम को विकसित किया जाना चाहिए।

·         ग्राम और तालुका स्तर पर मार्केटिंग की समस्याओं के समाधान के लिए पंचायतों को शामिल करने के लिए 73वें संविधान संशोधन में प्रावधान किए गए हैं। प्रभावी क्त्रियान्वयन के लिए सरकार को जरूरी कदम उठाने चाहिए।

·         महाराष्ट्र और कर्नाटक में सप्लाई चेन में व्याप्त अक्षमता से निपटने की व्यवस्था हो

·         2002 के प्रतिस्पर्धा एक्ट में जिस तरह बदलाव किए गए उसी तरह एपीएमसी एक्ट में भी बदलाव की जरूरत है।

कीमतों का खेल

देश में प्याज के कुल उत्पादन का करीब 40 फीसद अकेले महाराष्ट्र करता है। यहां से प्याज की आपूर्ति देश के बाकी हिस्सों में की जाती है।

1. महाराष्ट्र का कोई व्यापारी वहां के किसान से औसतन 4000-4500 रुपये प्रति क्विंटल के हिसाब से प्याज की खरीदारी करता है।

2. किसानों से प्याज खरीदने के क्रम में व्यापारी द्वारा अलग-अलग कीमतें अदा की जाती हैं। मान लीजिए इस तरह से 20 क्विंटल माल व्यापारी के पास जमा हो जाता है। इसमें से 19 क्विंटल का खरीद दाम 4000-4500 के बीच था जबकि एक क्विंटल को 5600-5800 रुपये की दर से खरीदा गया।

3. जब यह व्यापारी दूसरे बाजार के किसी और व्यापारी को अपना माल बेचता है तो यह पूरे माल यानी 20 क्विंटल के लिए ऊंचे दाम (5600-5800) से अधिक वसूल करता है।

4. कीमतें तब और ऊंची हो जाती हैं जब इसे खुदरा बाजार में बेचने की बजाय छोटे थोक बाजारों में अधिक कीमतों में बेचते हैं।

5. यहां से प्याज एक बार फिर छोटे कारोबारी और थोक विक्रेताओं से होते हुए खुदरा विक्रेताओं तक पहुंचती है।


6. इस तरह से एक किग्रा प्याज जिसे 40-50 रुपये में उपभोक्ताओं को मिलनी चाहिए, 70-80 यानी दोगुनी कीमत पर मिलती है।

खाद्य सुरक्षा पर डब्लूटीओ का साया

देश के नागरिकों को खाद्यान्न उपलब्ध कराने का यूपीए ने संकल्प लिया है। देश की कुल आबादी लगभग 120 करोड़ है। इसमें लगभग 70 करोड़ खाद्य सुरक्षा कानून के तहत सस्ते खाद्यान्न को पाने के हकदार होंगे। देश के कुल खाद्यान्न उत्पादन में लगभग आधा सरकार द्वारा किसानों से खरीद कर गरीबों को वितरित किया जायेगा। डब्लूटीओ के वर्तमान नियमों के अनुसार कोई भी देश अपने घरेलू उत्पादन का अधिकतम 10 प्रतिशत वितरित कर सकता है। सरकार द्वारा 50 प्रतिशत उत्पादन को सस्ते दाम पर उपलब्ध कराना इस नियम का उलंघन होगा।

सरकार ने इस समस्या का रुचिकर हल निकाला है। अमीर देशों की मांग थी कि सदस्य देशों द्वारा माल का आवागमन सुलभ बनाना चाहिये। ज्ञात हो कि भारत द्वारा माल के निर्यात कम और आयात यादा किये जाते हैं। भारत द्वारा भारी मात्रा में साफ्टवेयर जैसी सेवाओं का निर्यात किया जाता है। इनका लेनदेन मुख्यत: इंटरनेट के माध्यम से हो जाता है। साफ्टवेयर को बंदरगाह से नहीं गुजरना होता है। इसके अतिरिक्त भारत द्वारा अप्रवासियों द्वारा रेमिटेन्स भेजी जाती है। इसका उपयोग माल के आयात के लिए किया जाता है। इन कारणों से भारत के बंदरगाहों परआयात जादा और निर्यात कम होते हैं। अमीर देशों की मांग है कि भारत के बंदरगाहों पर माल का आवागमन यानि आयातों का प्रवेश सरल बनाया जाए।

खाद्य सुरक्षा के संदर्भ में भारत ने हल निकाला है कि बंदरगाहों के सम्बन्ध में वार्ता तब ही की जाएगी जब अमीर देश खाद्यान्न वितरण को डब्लूटीओ से बाहर करेगें। दिसम्बर में इंडोनेशिया में डब्लूटीओ की मंत्रीस्तरीय वार्ता सम्पन्न होने को है। संकेत मिल रहे हैं कि अमीर देश कुछ वर्षों के लिये खाद्यान्न वितरण को छूट दे देंगे। इसके बदले में भारत द्वारा बंदरगाहों पर आयातों को सरल बनाया जायेगा। अमीर देशों ने इस छूट को तीन वर्षों तक देने की पेशकश की है जबकि भारत नौ वर्षों की छूट के लिये मांग कर रहा है।

मुद्दा है कि खाद्य सुरक्षा कानून ईद का चान्द है। इसे शीघ्र ही बन्द करना पड़ेगा चूंकि अमीर देश कुछ वर्षों के लिये ही छूट देने को तैयार हैं। अत: इस कार्यम के पीछे भागने के स्थान पर दूसरे विकल्प खोजने चाहिये। यूं भी खाद्य सुरक्षा कानून में कई समस्यायें हैं। पहली समस्या है कि जनता का स्वास्थ स्वच्छ पेयजल के कारण यादा प्रभावित होता है। प्लानिंग कमीशन के पूर्व सदस्य अरविन्द विरमानी के अनुसार रायों के बीच कुपोषण का अन्तर मुख्यत: सेनीटेशन के अभाव एवं शुध्द पेयजल की अनुपलब्धता के कारण है। बच्चे के पेट में कीड़े हों तो शरीर की पौष्टिक भोजन को पचाने की ताकत नहीं रह जाती है और वह कमजोर बना रहता है। पेचिश से ग्रस्त व्यक्ति को हलवा खिलाने से स्वास्थ लाभ नहीं होता है। अत: सरकार को चाहिये था कि गरीब को सर्व प्रथम सफाई की व्यवस्था और स्वच्छ पेय जल मुहैया कराती। इसके बाद खाद्यान्न उपलब्ध कराने थे।

दूसरी समस्या प्रशासनिक तंत्र की है। खाद्य सुरक्षा कानून को वर्तमान सार्वजनिक वितरण प्रणाली द्वारा ही लागू की जायेगा। वर्तमान सार्वजनिक वितरण प्रणाली में अधिकतर सब्सीडी फू ड कार्पोरेशन की अकुशलता और भ्रष्टाचार में खप जाती है। मनरेगा का हाल सर्वविदित है। आज सरपंच से मंत्री तक का हिस्सा निर्धारित हो चुका है। यही स्थिति कुछ समय में खाद्य सुरक्षा की हो जायेगी। तुलना में छत्तीसगढ़ की व्यवस्था उत्तम है। वाल स्ट्रीट जर्नल को दिये गये साक्षात्कार में मुख्य मंत्री रमन सिंह ने बताया कि उन्होंने प्राइवेट दुकानों के स्थान पर वितरण का काम ग्राम पंचायतों, सहायता समूहों एवं सहकारी समीतियों को दिया है। इससे रिसाव में कमी आयी है। खाद्य सुरक्षा कानून में ऐसी सोच का अभाव है।

तीसरी समस्या संतुलित आहार की है। स्वस्थ शरीर के लिये कार्बोहाइड्रेट के साथ-साथ दूसरे पोषक तत्व जरूरी होते हैं विशेषकर प्रोटीन। वर्तमान कानून के तहत केवल खाद्यान्न उपलब्ध कराये जायेंगे। फ लस्वरूप घर में सस्ते अनाज के लालच में भोजन में कार्बोहाइड्रेट अधिक और दूसरे पोषक तत्वों का कम उपयोग किया जायेगा। इससे आहार असंतुलित हो जायेगा और जनता के स्वास्थ की हानि होगी। कुछ समय पूर्व देश में नात्रजन फ र्टिलाइजर मात्र पर सब्सीडी दी जा रही थी। पाया गया कि किसानों के द्वारा नात्रजन अधिक एवं पोटाश तथा फ ास्फ ोरस का उपयोग कम किया जाने लगा। इससे भूमि की उत्पादक क्षमता का ह्रास होने लगा। अन्तत: सरकार को तीनों फ र्टीलाइजर पर सब्सीडी देनी पड़ी। इसी प्रकार सस्ते खाद्यान्न की पालिसी से स्वास्थ में गिरावट आयेगी। केवल सस्ता अन्न उपलब्ध कराने के स्थान पर दाल एवं अन्य दूसरे तत्वों को भी उपलब्ध कराना था। सरकार को छत्तीसगढ़ और पंजाब से सबक लेना था। इन रायों द्वारा लागू खाद्यान्न योजना में दाल भी उपलब्ध कराई जाती है। छत्तीसगढ़ में आयोडीन युक्त नमक भी उपलब्ध कराया जाता है। निश्चित ही इससे केन्द्र सरकार पर वित्तीय बोझ बढ़ता। ज्ञात हो कि पंजाब सरकार के लिये बजट की कमी के कारण दाल उपलब्ध कराना कठिन हो रहा है। केन्द्र सरकार ने चतुराई से महंगी और जरूरी दालों को योजना से बाहर रखा है जिससे बजट पर मार भी न पड़े और मतदाता को सरकार द्वारा सस्ते भोजन दिलाये जाने का आभास भी हो।

चौथी एवं प्रमुख समस्या गरीबी की है। सच यह है कि नागरिकों के पास आय हो तो वे स्वच्छ पेयजल एवं संतुलित आहार की व्यवस्था स्वयं कर लेते हैं। वित्त मंत्रालय द्वारा राय की प्रति व्यक्ति आय के आंकड़े प्रकाशित किये जाते हैं। स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा पांच वर्ष से कम आयु में मरने वाले बच्चों के आंकड़े दिये जाते हैं। इसे कुपोषण का सूचकांक माना जाता है। 11 रायों के दोनों के आंकड़े उपलब्ध हैं। इनमें उंची आय वाले छह राय हैं कर्नाटक, आन्ध्र, पंजाब, केरल, तमिलनाडु और हरियाणा। इन रायों की औसत बाल मृत्यु दर 45.7 प्रति हजार है। कम आय वाले पांच राय हैं बिहार, उत्तर प्रदेश, आसाम, उड़ीसा एवं पश्चिम बंगाल। इनकी औसत बाल मृत्यु दर 83.4 है। इससे प्रमाणित होता है कि गरीबी दूर हो जाये तो लोग स्वच्छ पेयजल और संतुलित भोजन की व्यवस्था कर लेते हैं।

खाद्य सुरक्षा कानून में कुपोषण की मूल समस्याओं - स्वच्छ पानी, संतुलित आहार एवं आय की समुचित व्यवस्था नहीं है। उपर से इसमें डब्लूटीओ के नियमों का उलंघन होगा। अत: खाद्य वितरण के स्थान पर नगद वितरण के लिये विचार करना चाहिये।

वर्तमान में सार्वजनिक वितरण प्रणाली, फ र्टीलाइजर, स्वास्थ्य एवं शिक्षा तथा मनरेगा पर केन्द्र सरकार द्वारा लगभग 360 हजार करोड़ रुपये प्रति वर्ष खर्च किये जा रहे हैं। इन तमाम कार्यमों को समाप्त करके उपलब्ध रकम से प्रत्येक बीपीएल परिवार को 2000 रुपए प्रति माह नगद दिये जा सकते हैं। 100 दिन मनरेगा में कार्य करने की अनिवार्यता समाप्त करने से इन दिनों में भी आय अर्जित की जा सकती है। डीजल एवं एलपीजी सब्सीडी भी जोड़ दें तो प्रत्येक परिवार को 5,000 रुपए प्रति माह नगद दिये जा सकते हैं। नगद वितरण से हम डबलूटीओ के उलंघन से बच जायेंगे और कुपोषण आदि की समस्याओं से भी।

देशबन्धु

मंगलवार, 29 अक्टूबर 2013

Factors of Production – Organization (Enterprise)

Organization (Enterprise):
Organization of Enterprises means to plan a business, to start it and run it. It means to bring the factors i.e. land, labour and capital together to undertake a business or production process.
Organization implies not only running the business but also shouldering the loss, if any. The man who undertakes all this work is called as organizer or Entrepreneur.

Importance of Organization (Enterprise):
 Now a day, organization is very important as Production process has become too much complicated one. A small happening in the country or abroad influences the business. The organization if done properly the production process will not hamper. Hence proper planning and execution of business is necessary. In view of this the job of organizer becomes very important. Therefore whole time devotion of organizer is required for successful business. The other factors land is possessed by land owner, capital is possessed by capitalist and labourer is only ready to offer. They lay scattered hence these three needs to be combined and It is the job of organizer. Thus, organization would absent perhaps there would not be any production.

Functions of organizer (Entrepreneur):
 The following are the function of organizer.

1) Initiation:
 Taking the review of situation and availability of resources organizer initiates a business or production. Here planning of business is undertaken.

2) Organization:
 Organizer now combines the land, labour and capital resources and starts the business or production.

3) Direction and supervision:
 During the course of production proper direction and timely supervision is required. Thus, organize executes the business in a proper way.

4) Control:
 Organizer is keeping watch on changing situation. Because of changes in situation in respect of marketing, Govt. decision, etc. will hamper the business. Therefore control is also important.

5) Risk taking:
 Risk means uncertainty. It may be physical or market risk. The business can not be always in profit. Sometimes losses are required to accept. Risk taking is therefore becomes an important function of an organizer.

6) Innovation:
 A successful organizer is always innovative. He can introduce new method or commodity in the production process or in business.

Types of Business Organization:

1) Individual Enterprise: Business owned and run by single person.

2) Partnership: Business is owned and run by more than one but few persons. The number are too less and it is possible to know each other and combined action can be taken easily.

3) Joint-stock companies:  The owner members are large size and numerous. They do not know each other and hence the management of the business is done by few people i.e. Board of Directors e.g. Reliance company. It is always profit motive.

4) Co-operative Enterprise: The business is run on co-operative principles. Members may be numerous but Board of Director is elected body which runs the business e.g. co-operative sugar factory.

5) Public Enterprise: The business is owned by Govt. Therefore Govt. decisions determine the success of business. Largely they are run, keeping in view the service motive e.g. Railway, HP and Bharat Gas etc.


'तीव्र गति से रेल यात्रा और कम खर्च' पर अंतर्राष्‍ट्रीय तकनीकी सम्‍मेलन

भारतीय रेलवे, लंदन के 'इंस्‍टीटयूट ऑफ मैकेनिकल इंजीनियर्स' के साथ मिलकर यहां विज्ञान भवन में 'तीव्र गति से रेल यात्रा और कम लागत के उपाय' विषय पर 29 और 30 अक्‍टूबर को दो दिन का अंतर्राष्‍ट्रीय तकनीकी सम्‍मेलन कर रहा है। इसमें 11 देशों- जर्मनी, स्‍पेन, आस्‍ट्रेलिया, अमरीका, ब्रिटेन, जापान, फ्रांस, दक्षिण अफ्रीका, स्विटजरलैंड, इटली और चीन के प्रतिनिधि और रेलवे में तीव्र गति की प्रौद्योगिकी से जुड़े उनके तकनीकी संस्‍थानों के अधिकारी भाग लेंगे।

भारतीय रेलवे 1853 में अपनी शुरूआत से ही भारत के विकास में महत्‍वपूर्ण योगदान कर रहा है। यात्री परिवहन के क्षेत्र में भारतीय रेलवे विश्‍व में सबसे बड़ा तंत्र है जिसकी रेलों में प्रतिदिन दो करोड़ 20 लाख यात्री यात्रा करते हैं। इसकी सबसे तीव्र गति वाली रेलगाड़ी भोपाल शताब्‍दी एक्‍सप्रेस है जिसकी अधिकतम गति 140 कि0मी0 प्रति घंटा है। हालांकि अन्‍य सभी राजधानी/शताब्‍दी रेलगाड़ियों की अधिकतम गति 130/120 कि0मी0 प्रति घंटा है।

इस समय भारतीय रेलवे कई मार्गों पर उच्‍च गति की रेलगाड़ियाँ चलाने संबंधी सम्‍भाव्यता अध्‍ययन कर रहा है जिसमें मुंबई-अहमदाबाद कॉरीडोर शामिल है। इसके लिए रेल मंत्रालय फ्रांसीसी रेलवे द्वारा अध्‍ययन को स्‍वीकृति दे चुका है। मुम्‍बई-अहमदाबाद मार्ग पर उच्‍च गति की रेलगाड़ियाँ चलाने संबंधी संयुक्‍त सम्‍भाव्यता अध्‍ययन के‍ लिए भारत ने जापान के साथ भी एक समझौते पर हस्‍ताक्षर किए हुए हैं। इस अध्‍ययन का ध्‍येय इस मार्ग पर 300-350 कि0मी0 प्रति घंटा की रफ्तार से रेलगाड़ियाँ चलाए जाने की सम्‍भाव्‍यता रिपोर्ट तैयार करना है।

भारत अपनी वित्‍तीय बाधाओं और भूमि अधिग्रहण तथा रेल पटरियों की बाड़ाबंदी संबंधी मुद्दों को देखते हुए रेलवे के वर्तमान आधारभूत ढांचे में ही कुछ निवेश करके अधिकतम 160 से 200 कि0मी0 प्रति घंटा की गति से ही रेलगाड़ियाँ चलाना चाहता है। बाद में उनकी ग‍ति 300 कि0मी0 प्रति घंटा तक ले जाई जा सकती है। इसी सिलसिले में 'इं‍स्‍‍टीटयूट ऑफ रोलिंग स्‍टॉक' (आईआरएसई) भारतीय रेलवे और रेल इंडिया टैक्‍‍नीकल एंड इकोनॉमिकल सर्विसेज़ (आरआईटीईएस) के सहयोग से यह दो दिन का सम्‍मेलन आयोजित कर रहा है। इसका उद्घाटन रेल मंत्री श्री मल्लिकार्जुन खड़गे करेंगे। इस सम्‍मेलन में नीति निर्माता, वरिष्‍ठ प्रशासनिक अधिकारी, रोलिंग स्‍टॉक निर्माता, अनुसंधान संस्‍थान, कलाकार और उद्योग जगत के देश-विदेश के प्रतिनिधि भाग लेंगे। इस अवसर पर उच्‍च गति की रेलों से जुड़ी प्रौद्योगिकी पर एक प्रदर्शनी भी लगाई जा रही है।

सम्‍मेलन में विदेशी प्रतिनिधियों, भारतीय रेलवे और 'रिसर्च डिजाइन एंड स्‍टैंडर्डस् ऑर्गेनाइजेशन (आरडीएसओ) के अधिकारियों द्वारा कुल 49 पर्चे प्रस्‍तुत किए जाएंगे तथा आस्‍ट्रेलिया और स्‍पेन के अधिकारी रेलवे के उच्‍च गति तंत्र पर अपने अध्‍ययन पेश करेंगे। 'इंस्‍टीटयूट ऑफ मैकेनिकल इंजीनियर्स' लंदन की सह-अध्‍यक्षता में इस सम्‍मेलन के मुख्‍य विचारणीय विषय होंगे:-

•             विश्‍व व्‍यापी तीव्र गति प्रौद्योगिकी की समीक्षा
•             तीव्र गति वाले डिब्‍बों की प्रौद्योगिकी
•             रेलों के तीव्र गति से संचालन के फायदे
•             तीव्र गति से चलने वाले पहिए
•             रेल पटरियां और आधारभूत संरचना
•             सिगनलों से जुड़ी प्रौद्योगिकी
•             संचालनात्‍मक सुरक्षा
•             निर्माण और रख-रखाव आदि।


भारतीय रेलवे को उम्‍मीद है कि इस अंतर्राष्‍ट्रीय सम्‍मेलन से विकासशील देशों के लिए कम लागत में रेलवे-तंत्र विकसित करने के उपाय सामने आएंगे।  

सोमवार, 28 अक्टूबर 2013

विषमता का विकास

हमारे देश में विकास प्रक्रिया में निहित असंतुलन कई तरह का है। जहां राज्यों और क्षेत्रों के बीच विषमता बढ़ती गई है, वहीं विभिन्न तबकों के बीच भी। स्त्रियां शायद और भी वंचित हैं। इसलिए हैरत की बात नहीं कि विकास के लिहाज से स्त्री-पुरुष के बीच अंतर की वैश्विक सूची में भारत को एक सौ छत्तीस देशों में एक सौ एकवें स्थान पर जगह मिली है। स्विट्जरलैंड के ठिकाने से काम करने वाले गैर-सरकारी विश्व आर्थिक मंच ने अर्थव्यवस्था, राजनीति, शिक्षा और स्वास्थ्य के पैमानों से पुरुषों के मुकाबले स्त्रियों की स्थिति का आकलन कर यह सूचकांक तैयार किया है। मंच के पिछले आकलन की तुलना में इस बार कुछ सुधार के बावजूद भारत अब भी फिसड्डी नजर आता है। अलबत्ता स्त्रियों के राजनीतिक सशक्तीकरण की कसौटी पर हमारा देश नौवें स्थान पर है, जिसे काफी हद तक संतोषजनक माना जा सकता है। लेकिन महिलाओं के स्वास्थ्य और जन्म के बाद उनके जीवित बचे रहने के मामले में भारत सबसे नीचे से दूसरे, यानी एक सौ पैंतीसवें स्थान पर है। राजनीतिक सशक्तीकरण को भी टुकड़ों में बांट कर नहीं देखा जाना चाहिए। गौरतलब है कि संसद में महिलाओं की भागीदारी और मंत्री पदों पर उनके आसीन होने जैसी श्रेणियों में भारत अब भी बहुत सारे देशों से काफी पीछे है। यही नहीं, विकास के तमाम दावों के बीच आर्थिक भागीदारी में महिलाओं की स्थिति पहले के मुकाबले और खराब हुई है और इस कसौटी पर भारत एक सौ चौबीसवें स्थान पर है। इसी तरह स्त्रियों की शैक्षणिक उपलब्धियों के लिहाज से उसे एक बीसवें पायदान पर जगह मिली है।

जाहिर है, इस वैश्विक आकलन में भारत की यह तस्वीर निराशाजनक है। लेकिन संसद में महज ग्यारह फीसद प्रतिनिधित्व, माध्यमिक या उच्च शिक्षा तक केवल साढ़े छब्बीस फीसद महिलाओं की पहुंच, श्रम बाजार में उनकी बेहद कम भागीदारी और असमान पारिश्रमिक, कन्याभ्रूण हत्या, प्रसव के बाद बच्चियों की मृत्यु-दर के आंकड़ों को देखते हुए यह अप्रत्याशित भी नहीं लगता। आज भी दुनिया भर में कुपोषण के चलते मरने वाले बच्चों की तादाद भारत में सबसे ज्यादा है, जिसमें अधिकतर बच्चियां होती हैं। आबादी में स्त्री अनुपात भी आज सबसे चिंताजनक स्तर तक है। दरअसल, शासन और नीतियों के स्तर पर प्रगतिशीलता के तत्त्व भले देखने को मिल जाते हैं, व्यवहार में आज भी स्त्रियों को पग-पग पर बाधाओं का सामना करना पड़ता है। संसद और विधानसभाओं में उनके लिए एक तिहाई स्थान आरक्षित करने का विधेयक लंबे समय से राजनीतिक दलों के बीच सहमति न बन पाने के कारण लटका हुआ है। हालांकि स्त्री अधिकारों को लेकर कई साहस भरे फैसले किए गए और उन्हें कानून में भी तब्दील किया गया। लेकिन दूसरी ओर, आज भी समाज में स्त्री की राह रोकने वाली रूढ़िवादी सोच और पूर्वग्रह हावी हैं। बहुत कम होंगी जिन्हें विवाह से लेकर करियर तक अपने चुनाव की आजादी मिल पाती है। फिर, उच्चशिक्षित मध्यवर्ग के छोटे-से दायरे से आगे जाकर देखें तो स्त्री अधिकारों के नाम पर व्यापक सूखा ही दिखाई देगा। लिहाजा, विश्व आर्थिक मंच के इस निष्कर्ष में कुछ भी गलत नहीं है कि स्त्री-पुरुष समानता की दृष्टि से ठोस प्रगति का प्रदर्शन करने के लिए भारत अब भी संघर्ष कर रहा है। सवाल है कि क्या कोई देश या समाज अमूमन सभी क्षेत्रों में स्त्री को हाशिये पर रख कर सही मायने में विकास का दावा कर सकता है!

  

जनसत्ता 

भारत-रूस भरोसे की साझेदारी

सोवियत संघ के पतन के बाद से भारत-रूस रिश्तों में कुछ समय के लिए संक्रमण की स्थिति रही और उसी दौरान कुछ समय के लिए यह आरोप भी लगे कि भारत अपने परम्परागत मित्र रूस को छोड़कर अमेरिकी खेमें की ओर सरक गया है। यद्यपि कुछ समय के लिए ऐसा महसूस जरूर किया गया, लेकिन अब पुन: यह महसूस किया जा सकता है कि भारत-रूस सम्बंध पुन: खु्रश्चेवव और ब्रेझनेव युग के निकट पहुंच रहे हैं।

प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह अपनी पांच दिवसीय यात्रा पर पहले रूस पहुंचे जहां उन्हें 20 से 22 अक्टूबर परमाणु सहयोग, व्यापार और रक्षा जैसे महत्वपूर्ण मामलों पर वार्ता करनी थी। मास्को में संपन्न हुई भारत-रूस अंतरसरकारी आयोग की बैठक के बाद यह संकेत मिल रहा था कि दोनों देशों ने परमाणु दायित्व मामले के सम्बंध में प्रगति की है जो कुडनकुलम परमाणु बिजली परियोजना (केएनपीपी) की तीसरी और चौथी इकाई के लिए रूसी रियेक्टर की आपूर्ति अनुबंध के लिए महत्वपूर्ण है। प्रधानमंत्री के क्रेमलिन पहुंचकर रूसी राष्ट्रपति पुतिन से मुलाकात करने के पश्चात दोनों नेताओं ने अपने अधिकारियों को निर्देश दिया कि कुडनकुलम परियोजना के उत्तरदायित्व से जुड़े उन मुद्दों को जल्द से जल्द सुलझाया जाए जिसके कारण संयंत्र की तीसरी और चौथी इकाई पर काम रुका हुआ है। विभिन्न मुद्दों पर चर्चा करने के बाद दोनों नेताओं की तरफ निष्कर्ष निकाला गया कि रणनीतिक साझेदारी में रक्षा सहयोग महत्वपूर्ण तत्व है।  इस दृष्टि से उन्होंने रॉकेट, मिसाइल, नौसैन्य तकनीकों और हथियार प्रणाली के क्षेत्रों में सहयोग बढ़ाने का फैसला किया। अपनी 14वीं वार्षिक शिखर वार्ता में मनमोहन और पुतिन ने आतंकवाद के क्षेत्र में सहयोग और कारोबार तथा निवेश के तरीकों सहित कई विषयों पर चर्चा की। भारत के विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग तथा रूस के शिक्षा एवं विज्ञान मंत्रालय के बीच 2014-17 के लिए विज्ञान, प्रौद्योगिकी तथा नवीकरण के क्षेत्रों में सहयोग के कार्यम से जुड़े समझौते पर भी हस्ताक्षर हुए, जो रक्षा की दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं।
 
स्टेट इंस्टीटयूट ऑफ इंटरनेशनल रिलेशंस द्वारा डॉक्टरेट की उपाधि हासिल करने के दौरान अपने भाषण में प्रधानमंत्री ने कहा कि जब भारत के सामने गंभीर अंतरराष्ट्रीय चुनौतियां थीं, संसाधन व दोस्त सीमित थे, वैसे समय में रूस ने भारत की भरपूर मदद की। भारतीय इसे कभी भूल नहीं सकते।  उनका कहना था कि पिछले छह दशकों में भारत का रूस के मुकाबले किसी अन्य देश से नजदीकी संबंध नहीं बने और न ही किसी देश ने भारत के लोगों में भरोसा और आत्मविश्वास पैदा किया। दरअसल दोनों देशों ने 1990 के दशक में थोड़ी दूरी बनाई या रिश्तों में उदासीनता आई। लेकिन वर्ष 2000 से सक्रियता का दौर आरम्भ हुआ। वास्तव में शीत युध्द की समाप्ति और साम्यवादी सोवियत की इमारत के ढहने के बाद अधिकांश दुनिया पूंजीवादी नेतृत्व के अधीन आ गई। भारत इन वैश्विक परिवर्तनों से परे नहीं था इसलिए वह रूस की बाजारवादी अमेरिकी खेमें की ओर बढ़ा। लेकिन अब स्थितियां बदलती दिख रही हैं।

अक्टूबर 2000 में 'डिक्लरेशन ऑफ स्ट्रेटजिक पार्टनरशिप' के साथ दोनों देशों के मध्य फिर से भरोसे की साझेदारी का युग शुरू हुआ। रूस ने भारत को परमाणु ऊर्जा, तकनीक, सैन्य सहयोग और रणनीति सहयोग के मोर्चे पर बढ़-चढ़कर सहयोग दिया। विज्ञान और तकनीक के क्षेत्र में 16 मार्च, 2006 को रूसी प्रधानमंत्री मिखाइल फ्रादकोव की भारत यात्रा के साथ ही एक नये युग की शुरूआत हुई। दोनों देशों के बीच सात समझौतों पर हस्ताक्षर हुए जिनके तहत रूस ने भारत को यह आश्वासन दिया कि वह भारत के तारापुर परमाणु संयंत्र को तुरंत आवश्यक 60 मीट्रिक टन यूरेनियम की आपूर्ति करेगा। उस समय तारापुर परमाणु बिजलीघर ईंधन की कमी के कारण बंद होने के कगार पर पहुंच गया था। इसके साथ ही भारत ने रूस से निर्माणाधीन कुडनकुलम परमाणु परियोजना के लिए सामग्री एवं उपकरणों की आपूर्ति तेज करने की बात भी की थी।  2007 में 58वें गणतंत्र दिवस पर जब पुतिन भारत आए तो रक्षा क्षेत्र में नये आयाम जुड़े जिन्हें दिमित्री मेदनेदेव ने अपने काल में और विस्तार दिया। उस समय कुछ अन्य समझौतों सहित बहुउद्देश्यीय परिवहन विमानों के विकास और निर्माण के सम्बंध में प्रोटोकॉल पर हस्ताक्षर हुए। उस समय रूस ने भारत को आरडी 33 सीरीज के एयरो इंजन के उत्पादन का लाइसेंस देने के साथ-साथ आरडी 33 इंजन और एसोसिएट प्रोडक्ट के निर्माण को मंजूरी दी गई। साथ ही मिग-35 युध्दक विमान भारत को देने की संभावनाओं पर भी विचार-विमर्श हुआ जबकि भारत ने ऐसे 126 युध्दक विमान वायुसेना के लिए खरीदने की इच्छा जाहिर की थी। मेदनेदेव के राष्ट्रपतित्व में भारत को 42 सुपर सुखोई-30 एमकेआई लड़ाकू विमान मुहैया करवाने के लिए रूस ने प्रतिबध्दता जाहिर की। उल्लेखनीय है कि इससे सम्बंधित करार का यिान्वयन सन् 2014 में प्रारम्भ होगा और इसी वर्ष भारत को पहला सुपर सुखोई विमान प्राप्त होगा। उस समय हुए समझौते के मुताबिक सभी 42 विमान 2018 तक प्राप्त हो जाएंगे। नया सुपर सुखोई विमान शत्रु सेना के राडारों की आंख से बच निकलने में माहिर होगा। उल्लेखनीय है कि सुपर सुखोई को भारत-रूस द्वारा संयुक्त रूप से विकसित की गई सुपर सोनिक क्रूज मिसाइल ब्रह्मोस के हवाई संस्करण से भी सुसजित किया जाएगा। समझौते के मुताबिक भारत में मौजूद 120 सुखोई विमानों को निकट भविष्य में इन्हीं क्षमताओं से लैस करने के लिए उन्नत किया जाएगा। भारत व रूस द्वारा संयुक्त रूप से विकसित किया जा रहा पांचवीं पीढ़ी का युध्दक विमान भी 2018 में बाहर आने की उम्मीद जताई गई।  भारत इस परियोजना के तकरीबन 300 विमान खरीदेगा। ये विमान स्टील्थ तकनीक से लैस और राडारों की पहुंच से बाहर होंगे। अनेक प्रकार की खूबियों वाले इन विमानों में नेटवर्क केन्द्रित युध्द-कलाएं मौजूद होंगी। पांचवीं पीढ़ी के ये आधुनिक विमान टी-50 विमानों के नये प्रारूप में होंगे। ये विमान अमेरिका के एफ-22 रैप्टर व एफ-35 का बेहतर जवाब होंगे।

भारत की उभरती हुई अर्थव्यवस्था के लिए ऊर्जा जरूरतों का पूरा होना जरूरी है और रूस प्राकृतिक गैस के लिहाज से दुनिया का सबसे समृध्द देश है। कच्चे तेल के निर्यात में भी सऊदी अरब के बाद उसी का स्थान है जो भारत की बढ़ती तेल और गैस जरूरतों को पूरा कर सकता है। रूस के तेल व गैस क्षेत्र में पश्चिमी कम्पनियों के साथ भारत की ओएनजीसी विदेश सेवा लिमिटेड (ओवीएल)ने भी निवेश किया है। यही नहीं, रूस में भारत के लिए एक विशाल उपभोक्ता बाजार है जिस पर भारत के व्यापारियों की निगाहें हैं। जिसे 'इंडो-रूस फोरम ऑन ट्रेड एण्ड इनवेस्टमेंट' प्रोत्साहित कर रहा है। फिलहाल विदेश मंत्रालय द्वारा उपलब्ध कराए गये आंकड़ों के हिसाब से भारत-रूस द्विपक्षीय व्यापार इस समय लगभग 11 बिलियन डॉलर के आसपास है जिसके 2015 तक 20 बिलियन डॉलर होने की सम्भावना है।


बहरहाल, भारत-रूस साझेदारी केवल कुछ आर्थिक या तकनीकी मुद्दों तक ही सीमित नहीं है बल्कि रणनीतिक होने के साथ-साथ बेहद उद्देश्यपूर्ण हैं। सम्भव है कि इस नई साझेदारी से भारत एशिया में अपनी नई भूमिका का निर्वहन कर सके। अहम् बात तो यह है कि पाकिस्तान पर इसका दबाव अपेक्षाकृत अधिक पड़ेगा और चीनी ताकत को भी काउंटर करने का अवसर प्राप्त होगा। चूंकि रूस भी आतंकवाद से पीड़ित है इसलिए वह भारत को आतंकवाद से लड़ने की लिए सैनिक हथियारों की आपूर्ति करता है। चूंकि अमेरिका के मुकाबले रूस भौगोलिक दृष्टि से भारत के यादा निकट है इसलिए भू-सामरिक दृष्टि से भारत के लिए अमेरिका की अपेक्षा रूस अधिक लाभ हो सकता है। आज रूस को भारत की जरूरत है और भारत को रूस की, हमें इस तथ्य को बेहद गम्भीरता के साथ समझने की जरूरत है। यदि ऐसा हुआ तो दोनों देश मिलकर दुनिया को एक नई दिशा देने में कामयाब होंगे। 

देशबन्धु

रविवार, 27 अक्टूबर 2013

Factors of Production – Capital

Capital:
 Capital has been as that part of person’s wealth, other than land, which yields an income or which aids in the production of further wealth.

1) Capital and Wealth:
The capital is required in production. In modern economy the production depends not only on land and labour but capital is also equally important. It is also important to note that if wealth is not used in production process it is not said to be a capital. For example, basically tractor is capital asset as it can be used in cultivation (production) of farm, but due to some reason the same is kept unused (idle) for one or two year it can not termed as capital for that particular year. It is only wealth. Thus, the unused wealth can not be considered as capital. Hence all capital is wealth but all wealth is not capital.

2) Money and capital:
 In the ordinary language, capital is used in the sense of money. No doubt money is wealth and part of wealth used in production is called capital. But here in production process money is not used as such and hence it can not be termed as capital. Only by using money we are purchasing capital assets and hence money itself is not capital.

3) Capital is produced means of production:
 It is man made instrument of production. Just like land and labour, capital as factor of production is not original. Since it is man-made it is not freely available.

Characteristics of capital:

1) Capital is manmade factor of production.
2) It involves time element.
3) Capital may be fixed: i.e. it is durable use pre use producer goods e.g. machinery, well in agriculture.

It may be working: i.e. it is single use producer’s goods e.g. seed, fertilizer in agriculture.

Function of capital:

1) Supply of raw material: The working capital required in production process represents raw material.

2) Supply of appliances and equipment: The fixed capital goods.

3) Provision of subsistence: If capital is available to the poor person, he can utilize it and run his family very well. Supposes only 5 to 6 goats maintain by a poor person it will give him sizeable income to survive his family.

4) It also employment means of transport:

5)  Supply of employment: If ample supply of capital is made, it will enhance production which will in turn give employment.

Importance of capital:

1.       In modern economy capital is very important factor of production which is essential to undertake production.

2.       Without capital other factors of production (like land, labour) will become handicap.

3.       On the contrary, if apple supply-capital is made the production and productivity can be increased substantially.

4.       The economic development of any country does not solely depend upon the available land and labour but how much capital is made available is also equally important.

5.       The under-developed countries remained, under-developed due to lack of capital.

6.       The ample supply of capital gives boost to production.

7.       When more production is there, more economic activities can he initiated and as a result, more employment opportunities can be created.

8.       More employment further helpful for minimizing the poverty or improving standard of living of the people.


  

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