रविवार, 15 सितंबर 2013

सब्सिडी का सही तरीका

केंद्र सरकार द्वारा खाद्य सुरक्षा कानून को लोकसभा और राज्यसभा में पारित करा लेने के साथ अर्थव्यवस्था में कोहराम मचा है। यह ठीक ही है। सरकार के पास वर्तमान खर्च को पोषित करने के लिए राजस्व नहीं हैं। ऋण के बोझ से सरकार दबी जा रही है। वर्तमान में केंद्र सरकार का कुल खर्च लगभग 12 लाख करोड़ रुपये है, जबकि आय मात्र सात लाख करोड़ रुपये। लगभग आधे खर्चे को ऋण लेकर पोषित किया जा रहा है। ऐसे में खाद्य सुरक्षा कानून का लगभग 1.3 लाख करोड़ रुपये प्रतिवर्ष का बोझ अपने सिर पर लेना अनुचित दिखता है। फिर भी गरीबों को राहत देने के इस प्रयास का समर्थन करना चाहिए। ईसा मसीह ने गरीबों की हिमायत की और अमीरों को स्वर्ग के लिए अयोग्य घोषित किया था। ईसाई धर्म की इस सोच के कारण ही इस कानून को लाने का प्रयास किया गया है, जो स्वागत योग्य है।

समस्या है कि नेक काम को हाथ में लेने से पहले उसे निर्वाह करने की सामर्थ्य जुटानी चाहिए। घाटे में चल रही दुकान का मालिक लंगर लगाने चले तो वह एक बार शायद सफल हो भी जाए, परंतु उसकी दुकान खाली हो जाएगी और आगे वह न तो दुकान चला पाएगा और न ही लंगर लगा पाएगा। ऐसी ही हालत हमारी सरकार की है। सरकार के पास खाद्य सुरक्षा कानून को लागू करने की सामर्थ्य नहीं है। इस योजना पर लगभग 1.3 लाख करोड़ रुपये प्रति वर्ष के व्यय होने का अनुमान है। यह वर्तमान खर्च 12 लाख करोड़ का लगभग 10 प्रतिशत बैठता है। सरकार को वर्तमान खर्चो को पोषित करने के लिए पांच लाख करोड़ के ऋण पहले ही लेने पड़ रहे हैं। अब यह ऋण बढ़कर 6.3 लाख करोड़ हो जाएगा। अंतरराष्ट्रीय रेटिंग एजेंसियां भारत के प्रति पहले ही नकारात्मक हैं। भारत की रेटिंग जंक के ऊपर है। यदि रेटिंग में गिरावट आई तो भारत जंक श्रेणी में आ जाएगा। ऐसे में भारत से विदेशी पूंजी का और तेजी से पलायन होगा। इस भय के चलते शेयर बाजार और रुपया, दोनों लुढ़क रहे हैं। हमारे सामने विकट समस्या है। गरीब को सुकून पहुंचाना है, परंतु इसके लिए हमारी सामर्थ्य नहीं है। उपाय है कि वर्तमान खर्चो में फेरबदल करके उनकी गुणवत्ता में सुधार किया जाए। वर्तमान में गरीबों को राहत देने के लिए केंद्र सरकार के द्वारा चार बड़े कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं-कृषि समर्थन मूल्य, स्वास्थ्य और शिक्षा, मनरेगा और फर्टिलाइजर सब्सिडी। फसलों को समर्थन मूल्य इस आशय से दिया जाता है कि किसान घाटा न खाएं। स्वास्थ्य एवं शिक्षा कार्यक्रमों का उद्देश्य ग्रामीण इलाकों में इन सुविधाओं को मुहैया कराना है। मनरेगा का उद्देश्य गरीब को वर्ष में 100 दिन का रोजगार दिया जाना है। खाद सब्सिडी का उद्देश्य है कि किसान की लागत कम आए और वह घाटा न खाए। 2011-12 में इन कार्यक्रमों पर केंद्र सरकार द्वारा कुल 292 हजार करोड़ रुपये खर्च किए गए। 2013-14 में इन कार्यक्रमों पर 362 करोड़ खर्च होने का मेरा अनुमान है।

इन कार्यक्रमों का उद्देश्य गरीब को राहत पहुंचाना है, परंतु इनमें गरीब का हिस्सा कम ही है। फूड कार्पोरेशन को दी जा रही सब्सिडी मुख्यत: कार्पोरेशन के कर्मियों और बड़े किसानों को ही पहुंचती है। स्वास्थ्य और शिक्षा पर किया जा रहा खर्च सरकारी टीचरों और डॉक्टरों को पोषित करता है। मनरेगा में सरपंच और विभाग का हिस्सा 25 से 75 प्रतिशत तक बताया जा रहा है। खाद सब्सिडी अकुशल उत्पादकों तथा बड़े किसानों को जा रही है। हमें ऐसा उपाय करना चाहिए कि गरीब के नाम पर किया जा रहा खर्च वास्तव में गरीब को पहुंचे। सुझाव है कि इन चारों कार्यक्रमों को पूरी तरह बंद कर दिया जाए। इससे केंद्र सरकार को 3.62 लाख करोड़ रुपये प्रतिवर्ष की बचत होगी। इस रकम को बीपीएल कार्डधारकों को सीधे दे दिया जाए। 80 करोड़ गरीबों में प्रत्येक को 4,500 रुपये प्रतिवर्ष मिल जाएंगे। पांच व्यक्तियों का परिवार मानें तो 22,500 प्रतिवर्ष या लगभग 2,000 रुपये प्रति माह मिल जाएंगे। विशेष यह कि मनरेगा के दिखावटी कार्यो को करने में उसके जो 100 दिन व्यर्थ हो जाते हैं वे बच जाएंगे। इन 100 दिनों में 125 रुपये की दिहाड़ी से उसे 12,500 रुपये अतिरिक्त मिल जाएंगे। इसे जोड़ लें तो तो प्रत्येक परिवार को 3,000 रुपये प्रति माह मिल सकते हैं। इसके लिए केंद्र सरकार को एक रुपया भी अतिरिक्त खर्च नहीं करना पड़ेगा। इसके अतिरिक्त राज्य सरकारों द्वारा लगभग 3.6 लाख करोड़ रुपये इन मदों पर खर्च किए जा रहे हैं। इस रकम को जोड़ लें तो प्रत्येक बीपीएल परिवार को 5,000 रुपये प्रति माह दिए जा सकते हैं। यह विशाल राशि वर्तमान में गरीब के नाम पर सरकारी कर्मियों, अकुशल उत्पादकों, बड़े किसानों और अमीरों को दी जा रही है। इसे गरीब तक पहुंचा दें तो समस्या हल हो जाएगी। इस रकम से परिवार अपने भोजन, स्वास्थ्य और शिक्षा की व्यवस्था कर सकता है।

विपक्ष को चाहिए कि आम आदमी को राहत पहुंचाने का नया कार्यक्रम पेश करे। खाद्य सुरक्षा कानून में छुटपुट संशोधनों को पेश करने के स्थान पर फूड कार्पोरेशन, स्वास्थ्य एवं शिक्षा, मनरेगा तथा खाद सब्सिडी कार्यक्रमों को बंद करके इस रकम को सीधे गरीब को देने की मांग करनी चाहिए। ऐसा करने से बाजार को सरकार के बढ़ते खर्च का भय जाता रहेगा। सरकार को खर्च पोषित करने के लिए भारी मात्र में अतिरिक्त ऋण नहीं लेने पड़ेंगे। सरकार का वित्तीय घाटा नियंत्रण में आएगा। सरकार को देश के उद्यमियों पर अतिरिक्त टैक्स नहीं लगाना पड़ेगा। उद्यमियों को राहत मिलेगी। उत्पादन बढ़ेगा। सरकार को टैक्स ज्यादा मिलेगा और रुपया संभल जाएगा।


  डॉ. भरत झुनझुनवाला 

शनिवार, 14 सितंबर 2013

Ajanta Cave Sculptures In India

Ajanta Caves showcase some of the best instances of ancient sculptures and murals. These caves, 29 in number are 24 monasteries and five temples. About 200 monks and artisans occupy them. These caves are hailed for their grandiose beauty and enjoy being a UNESCO World Heritage Site. They were the greatest Buddhist monastery from 2nd to 7th century BC. Caves here are carved from the horse-shoe twisted stone cliffs. Buddhist monks chiseled out these beautiful caves between 200 BC and 650 AD as chaityas (prayer halls) and viharas (monasteries). They have superb frescoes and excellent sculptures. Ajanta caves are categorized in two phases: the Hinayana phase and the Mahayana phase. Some of the important Ajanta cave sculptures in India are elaborated below.

Cave 1- It houses some best specimens, specifically the two bodhisattvas of Vajrapani and Padmapani and a seated Buddha sculpture. The Wheel of Life is placed beneath his statue.

Cave 2- It is a wonderfully painted ceiling which looks like tent. Its remarkable feature is animated sculptures. Intricate patterns adorn its walls that show scenes of Gautam Buddha’s birth.

Cave 4- This is a squarish monastery housing a sanctum sanctorum, hall, pillared verandah and is the largest monastery at Ajanta. The door frame is elegantly sculpted. Bodhisattva as reliever of Eight Great Perils is carved flanking to the right. The hall’s ceiling preserves an exceptional geological characteristic of a lava flow.

Cave 5- This is an unfinished monastery. Its significant features are lavishly carved door frame and female figures on makaras.

Cave 6-This is a monastery which is double storeyed. Its lower storey consists of sanctum sanctorum, hall and a pillared hall. A hall with cells, subsidiary cells and sanctum sanctorum are housed in the upper storey. In both the shrines, Lord Buddha is placed in the attitude of preaching. The representation of Temptation of Mara and Miracle of Sravasti are the significant paintings. Sculptural portrayal of Buddha in a variety of postures and attitudes can also be noticed in this cave.

Cave 9- It is flaunted not only with sculptures but also with wonderful frescoes.

Cave 11- The sculpture of Lord Buddha is connected to a stupa. It is an intermingling of image and stupa worship.

Cave 12 and Cave 13- Gorgeous paintings that radiate in the dark and life-size and miniature sculptures are here.

Cave 15 and Cave 16- Thee caves elucidate the illustrative marvel and point out some more astonishing aspects of sculptures and paintings that make over the rocky cave walls.

Cave 17 - Its discriminating murals portray devotees with offerings in the Royal Procession.

Cave 20- It is a pillar less monastery having a hall, sanctum sanctorum, cells and a pillared verandah. A Brahmi message in the verandah is also there. Another significant sculptural panel of this cave is the sculpture of seven Buddhas along with attendants.

Cave 21- It is a monastery having a hall having twelve pillars and twelve cells on three sides, pillared verandah and sanctum sanctorum. Four are with pillared porches out of 12 cells. Seated Buddha in preaching attitude is there in the sanctum. Trace of paintings are noticed which consist of a panel depicting Buddha preaching a congregation.

Cave 22- This monastery houses an astylar hall, sanctum sanctorum, four unfinished cells and a tapered verandah. On the back wall of the shrine, Buddha seated in pralamba-padasana is carved. Painted figures of Manushi-Buddhas with Maitreya and the sculptural depiction of Buddha in different forms can be seen here.

Cave 23- This is again incomplete monastery housing sanctum sanctorum, a pillared verandah, an astylar hall, antechamber and side cells. The cave is specially celebrated for luxurious pillar décor along with pilasters and the naga doorkeepers.

Cave 24- This is an incomplete monastery and also the second greatest excavation following cave 4 of Ajanta. It houses sanctum sanctorum and a pillared verandah. Outside the verandah, a chapel with pillared porch is unearthed. The sanctum consists of a seated Buddha in pralamba-padasana.

Cave 25- This monastery consists of a pillared verandah, an astylar hall and a courtyard which is enclosed and excavated at an elevated level. Two cells are present on the left end of the verandah and there are no cells in the hall. The hall is devoid of holy place.

Cave 26- This cave has imposing carvings from the life of Lord Buddha. Rest of the caves consist of a lot of additional frescoes and murals. A number of them shed light on stories from the Jataka tales and also episodes from the Buddha’s life are depicted here. Superb sculptures are eye-catching and their excellent detailing adds to the artistic beauty of the Caves.

Cave 26- This cave could have been component of Cave 26 and it houses two storeys, put of the two, the upper one is to some extent collapsed. This is a monastery which consists of a hall with antechamber, four cells and sanctum sanctorum. Inside the sanctum, Buddha is housed in teaching attitude.

Cave 28-This cave is amongst the monasteries that are unfinished. Only the pillared verandah of this monastery was excavated.

Cave 29- This is a fragmentary chaityagriha. It is just in the initial stage of excavation. This cave is situated at the highest level, positioned between Caves 20 and 21.


At Ajanta caves, you can enjoy your day gripped by a single colossal image or get engaged with a million illustrative delights. Each and every cave has its own story to narrate. So visit Ajanta cave sculptures in India and find out them for your exquisite pleasure. Don’t forget to go to the ‘viewpoint’ on the flat-topped hill opposite the caves before you leave. You will certainly catch an astonishing visualization of the entire cluster and the gorge.

रीयल एस्‍टेट (विनियमन और विकास) विधेयक, 2013

Q. रीयल एस्‍टेट क्षेत्र के विनियमन की ज़रूरत क्‍यों है ?

Ans.रीयल एस्‍टेट क्षेत्र देश में आवासीय और अवसंरचना की ज़रूरत और मांग को पूरा करने में महत्‍वपूर्ण भूमिका अदा करता है। हाल के वर्षों में इस क्षेत्र में उल्‍लेखनीय वृद्धि हुई है लेकिन व्‍यावसायिकता और मानकीकरण नहीं होने तथा उपभोक्‍ता को पर्याप्‍त संरक्षण देने में कमी  के कारण यह मुख्‍य रूप से अनियंत्रित क्षेत्र रहा है जिसने इस उद्योग की स्‍वस्‍थ्‍ा और व्‍यवस्थित वृ‍द्धि को अवरूद्ध किया है।
 साथ ही इस क्षेत्र के विनियमन पर विभिन्‍न मंचों, फोरम तथा मीडियों रिपोर्टों में ज़ोर दिया गया है। हाल के समय में उपभोक्‍ता कार्य मंत्रालय, प्रतिस्‍पर्धा आयोग तथा टैरिफ आयोग ने भी इसके विनियमन के लिए बार-बार कहा है।

Q.  इस विधेयक के सबसे महत्‍वपूर्ण प्रावधान क्‍या हैं?

Ans. प्रस्‍तावित विधेयक रिहायशी रीयल एस्‍टेट यानी आवास तथा कोई अन्‍य आनुषांगिक आवासीय के स्‍वतंत्र उपयोग पर लागू होता है। हालांकि यह समझना जरूरी है कि इस विधेयक के तहत केवल लेन-देनयानी रिहायशी रीयल एस्‍टेट को खरीदने तथा बेचने के कार्य को ही विनियमित करना है न कि निर्माण कार्यको जो कि राज्‍यों/यूएलबी का अधिकार है।
इस विधेयक का उद्देश्‍य इस क्षेत्र में पारदर्शिता लाना है। इसमें प्रमोटर के उल्लिखित कामकाज तथा कार्यों के साथ परियोजना की सभी जानकारी को अनिवार्य रूप से सार्वजनिक करने का प्रावधान है।
 इस विधेयक में त्‍वरित विवाद निवारण व्‍यवस्‍था के लिए रीयल एस्‍टेट प्राधिकरण और अपीलीय न्‍यायाधिकरण की स्‍थापना का प्रावधान है।
इसके प्रावधानों में से एक स्‍पष्‍ट उत्‍तरदायित्‍वों और कामकाजों के साथ रीयल एस्‍टेट एजेंटों का रजिस्‍ट्रेशन करना है जिन पर अभी तक नियंत्रण नहीं था। इससे दो पक्षों के बीच लेन-देन का प्रमाण मिलेगा तथा मनी लांड्रिंग पर काबू पाया जा सकेगा।
 सभी विनियामक विधेयकों के जैसे विधेयक के प्रावधानों का अनुपालन नहीं करना तथा उसे लागू न करने पर दंडात्‍मक प्रावधान भी हैं। दंडात्‍मक प्रावधानों के तहत परियोजना का रजिस्‍ट्रेशन रद्द करना तथा प्राधिकरण या न्‍यायाधिकरण के आदेशों या विधेयक के प्रावधानों का उल्‍लंघन करने पर जुर्माना लगना भी शामिल है।

Q. कुछ लोग इसे लोकवादी कदम बता रहे हैं, रीयल एस्‍टेट के संगठन क्रेडाई (सीआरईडीएआई) ने कहा है कि प्रस्‍तावित कानून के ज़रिए केवल डेव्‍लपर्ज़ को ही नहीं बल्कि उद्योग के सभी हितधारकों को शासित किया जाना चाहिए ?

Ans. टेलीकॉम, प्रतिभूमि, बीमा, बिजली आदि की तर्ज पर रीयल एस्‍टेट के क्षेत्र में भी विनियामक की काफी ज़रूरत है। इस क्षेत्र में विनियामक सूचकांक में भारत का स्‍थान काफी नीचे है। इसमें घरेलू और विदेशी निवेश होने पर गतिविधियां बढ़ाने के साथ सकल घरेलू उत्‍पाद में वृद्धि की जा सकती थी।
 प्रस्‍तावित विधेयक में इस क्षेत्र में लेन-देनको विनियमित किया गया है तथा लेन-देनमें शामिल सभी हितधारकों यानी प्रोमोटरों/विक्रेता, आवंटी/खरीदार तथा रीयल एस्‍टेट एजेंट को उल्लिखित कामकाज और कार्य के साथ विनियमित किया गया है।
 इस विधेयक में निर्माण कार्यपर विनियमन नहीं है। यह राज्‍यों/यूएलबी का अधिकार है। डेव्लपर्ज़ की मुख्‍य चिंता परियोजना संबंधी मंज़ूरी के मामले में एक ही जगह सुविधा की ज़रूरत है। इसके लिए मेरे मंत्रालय ने एक विशेषज्ञ समिति गठित की है जिसमें उद्योग संगठनों के प्रतिनिधि भी होंगे जो राज्‍यों को ऐसी व्‍यवस्‍था लागू करने की सिफारिश करेंगे।
 ज‍हां तक रीयल एस्‍टेट विधेयक का सवाल है इसका दायरा केवल लेन-देन को देखना हैा अत: यह इसमें शामिल सभी पक्षों को विनियमित करता है।

 Q. रीयल एस्‍टेट नियामक विधेयक के तहत इस क्षेत्र में पारदर्शिता और जवाबदेही लाना है, लेकिन ऐसा दावा किया जा रहा है कि संसद में इस विधेयक के पारित हो जाने से कीमतें 30 प्रतिशत तक बढ़ेंगी ?

Ans. यह सच नहीं है और ऐसे अनुमान न जाने कहां से लगाए गए हैं। विधेयक का उद्देश्‍य सूचना के आदान-प्रदान के लिए ऑनलाइन व्‍यवस्‍था बनाकर उपभोक्‍ता का संरक्षण करना है ताकि डेव्‍लवर्ज़ और खरीदारों के बीच आपसी विश्‍वास हो और परियोजनाओं को समय पर लागू किया जा सके।
 इस विधेयक के लागू होने से इस क्षेत्र में गतिविधि बढ़ेगी जिससे बाज़ार में और अधिक आवासीय इकाइयां आएंगी। इससे निवेश के लिए ज़रूरी विश्‍वास पैदा होगा तथा बेचे जा रहे घरों की कीमतों में स्थिरता आएगी।
इस विधेयक का उद्देश्‍य उपभोक्‍ताओं और प्रोमोटरों को फायदा पहुंचाने के साथ समग्र रूप से इस क्षेत्र को लाभ पहुंचाना है। 

Q. सरकारी एजेंसियों से मंज़ूरी मिलने के कारण देरी। केवल रिहायशी परियोजनाओं का ही नियमन क्‍यों तथा व्‍यावसायिक रीयल एस्‍टेट को इसके तहत क्‍यों नहीं लाया गया?

Ans. सरकारी एजेंसियों से मंज़ूरी मिलने के कारण देरी होने के मुद्दे पर आवास और शहरी गरीबी उन्‍मूलन मंत्रालय सभी राज्‍यों को परियोजनाओं की मंज़ूरी के लिए एक ही जगह सुविधा उपलब्‍ध कराने की व्‍यवस्‍था अपनाने की सलाह दे रहा है जो विधेयक के प्रावधानों में शामिल नहीं है और यह एक अलग कार्य है।
 एक बिंदू जिसे अक्‍सर छोड दिया जाता है कि प्रस्‍तावित विधेयक के तहत केवल रिहायशी रीयल एस्‍टेट की बिक्री का नियमन होगा और न कि उसे विकसित करने का। प्रमोटर विकास कार्य करने के लिए स्‍वतंत्र हैं लेकिन इस विधेयक के तहत जो प्रावधान है कि वह उसे तभी बेच सकता है जब उसके पास हर तरह से मंज़ूरी हो और उसने इस विधेयक के तहत विनियामक के पास परियोजना का पंजीकरण कराया हो।
विधेयक का दायरा रिहायशी संपत्तियों तक सीमित रखने से विनियामक का इस पर पूरा ध्‍यान रहेगा तथा इसमें उपभोक्‍ताओं की ज़रूरत पर भी गौर किया जाएगा।

Q. जो परियोजनाएं पूरी हो चुकी हैं या उसमें निर्माण कार्य चल रहा है, 4000 वर्ग मीटर से कम की परियोजनाओं के लिए विनियामक के पास पंजीकरण कराना अनिवार्य नहीं है। तो अनेक छोटे डेव्‍लपर्ज पंजीकरण तथा नियमन के नियंत्रण में नहीं आएंगे?

 Ans. प्रारंभिक मसौदे में 4000 वर्ग मीटर का प्रावधान था जिसे राज्‍यों और अन्‍य हितधारकों के साथ विचार-विमर्श के बाद घटाकर 1000 वर्ग मीटर या 12 अपार्टमेंट कर दिया गया है (जो भी लागू हो)। साथ ही यह विधेयक विशेष रूप से प्रत्‍याशित विनियमन होगा।

Q. वास्‍तविक कार्पेट एरिया का उल्‍लेख करना अनिवार्य हो गया है, डेव्‍लर्ज सुपर बिल्‍ट एरियों के आधार पर फ्लैट बेच रहे हैं जिसमें आने-जाने के लिए सामान्‍य रस्‍ता, सीढियां तथा अन्‍य क्षेत्र शामिल है यानी वास्‍तविक फ्लैट एरिया से 20-30 प्रतिशत अधिक?


Ans. विधेयक के अनुसार प्रमोटरों को, बिक्री के लिए अपार्टमेंट की संख्‍या कार्पेट एरिया के आधार पर बतानी होगी। कार्पेट एरिया को परिभाषित किया गया है। खरीदार को मालूम होना चाहिए कि वो वास्‍तव में किसके लिए भुगतान कर रहा है और उसे क्‍या मिल रहा है। सुपर बिल्‍ट आदि जैसे विषय भ्रमित करने वाले है और विधेयक का उद्देश्‍य आवश्‍यकताओं का मानकीकरण करना है।  इससे रीयल एस्‍टेट में लेन-देन में व्‍याप्‍त विषमताओं में कमी आएगी।  

शुक्रवार, 13 सितंबर 2013

भारत में अल्‍पसंख्‍यकों का विकास

भारत एक लोकतांत्रिक देश है, जहां सभी समुदायों के लोग शांति एवं सद्भाव से रहते हैं। विश्‍व के सभी बड़े धर्मों के अनुयायी भारत में भी हैं। यहां हिन्‍दू बहुसंख्‍यक हैं और राष्‍ट्रीय अल्‍पसंख्‍यक आयोग, अधिनियम, 1992 के तहत मुस्लिमों, सिखों, ईसाइयों, बौद्ध एवं पारसियों को अल्‍पसंख्‍यक का दर्जा प्राप्‍त है।
देश के सामाजिक एवं आर्थिक विकास में अल्‍पसंख्‍यक समुदाय महत्‍वपूर्ण भूमिका अदा कर रहे हैं। सरकार ने इन समुदायों के सामाजिक-आर्थिक उत्‍थान के लिए समय-समय पर विभिन्‍न कार्यक्रम एवं योजनाएं संचालित की है।

इसी के मद्देनजर भारत सरकार ने अल्‍पसंख्‍यक समुदायों के सशक्‍तीकरण और उनकी संस्‍कृति, भाषा एवं धार्मिक स्‍वरूप को बनाए रखने के लिए अल्‍पसंख्‍यक मामलों के मंत्रालय का गठन किया है। इस मंत्रालय का लक्ष्‍य सकारात्‍मक कार्यों तथा समावेशी विकास के जरिए अल्‍पसंख्‍यक समुदायों की सामाजिक-आर्थिक स्थितियों में सुधार लाना है ताकि एक प्रगतिशील देश के निर्माण में हर नागरिक को बराबर के अवसर मिल सकें।

अल्‍पसंख्‍यक समुदायों की शिक्षा, रोजगार, आर्थिक गतिविधियों में बराबर की हिस्‍सेदारी तथा उनका उत्‍थान सुनिश्चित करने के लिए जून 2006 में अल्‍पसंख्‍यकों के कल्‍याण के लिए प्रधानमंत्री के नए 15 सूत्री कार्यक्रम की घोष्‍णा की गई थी। इसके तहत विभिन्‍न लक्ष्‍यों को निश्चित समयावधि में हासिल किए जाने पर जोर दिया गया है।
इस कार्यक्रम के मुख्‍य उद्देश्‍य इस प्रकार हैं :
  1. शिक्षा के क्षेत्र में अवसरों को बढ़ावा देना।
  2. मौजूदा एवं नयी योजनाओं के जरिए आर्थिक गतिविधियों एवं रोजगार में अल्‍पसंख्‍यकों की समान हिस्‍सेदारी सुनिश्चित करना, स्‍वरोजगार के लिए ऋण सहायता को बढ़ावा देना तथा राज्‍य एवं केन्‍द्र सरकार की नौकरियों में उनका प्रतिनिधित्‍व बढ़ाना।
  3. बुनियादी सुविधाओं के विकास से जुड़ी योजनाओं में उनकी पर्याप्‍त हिस्‍सेदारी सुनिश्चित करते हुए उनके जीवन स्‍तर में सुधार लाना।
  4. सांप्रदायिक हिंसा एवं वैमनस्‍यता की रोकथाम तथा नियंत्रण।


इस कार्यक्रम का मुख्‍य उद्देश्‍य इस बात को सुनिश्चित करना है कि वंचित तबकों के लिए शुरू की गई विभिन्‍न सरकारी योजनाओं का लाभ अल्‍पसंख्‍यक समुदाय के वंचित वर्गों तक अवश्‍य पहुंचे। इन योजनाओं का लाभ समान रूप से अल्‍पसंख्‍यकों तक पहुंचाने के लिए इस कार्यक्रम में इस बात पर विशेष ध्‍यान दिया गया है कि अल्‍पसंख्‍यक बहुल क्षेत्रों में विकासात्‍मक परियोजनाओं की निश्चित हिस्‍सेदारी हो।

नए 15 सूत्री कार्यक्रम में शामिल की गईं विभिन्‍न योजनाएं इस प्रकार हैं :
  • महिला एवं बाल विकास मंत्रालय की समन्वित बाल विकास सेवाएं योजना, इसमें आंगनवाड़ी केन्‍द्रों के जरिए सेवाएं दी जा रही हैं।
  • मानव संसाधन विकास मंत्रालय की सर्व शिक्षा अभियान (एसएसए) एवं कस्‍तूरबा गांधी बालिका विद्यालय योजना (केजीबीवी)।
  • ग्रामीण विकास मंत्रालय की आजीविका योजना।
  • आवासीय एवं शहरी गरीबी उन्‍मूलन मंत्रालय की स्‍वर्ण जयंती शहरी रोजगार योजना।
  • श्रम एवं रोजगार मंत्रालय की तरफ से औद्योगिक प्रशिक्षण संस्‍थाओं का आधुनिकीकरण।
  • वित्‍तीय सेवाओं के विभाग की वरीयता सेक्‍टर ऋण योजना के तहत बैंक ऋण की उपलब्‍धता।
  • ग्रामीण विकास मंत्रालय की इंदिरा आवास योजना।


केन्‍द्र सरकार ने सच्‍चर समिति की रिपोर्ट पर कार्रवाई करते हुए कुछ सीमित उपाय भी किए हैं। ये इस प्रकार हैं
  • माध्‍यमिक स्‍तर तक गुणवत्‍तायुक्‍त शिक्षा की पहुंच, राष्‍ट्रीय माध्‍यमिक शिक्षा अभियान।
  • देश के शैक्षिक रूप से पिछड़े 374 जिलों में प्रत्‍येक में एक मॉडल कॉलेज की स्‍थापना की जाएगी। इन 374 जिलों में से 61 जिलों की पहचान अल्‍पसंख्‍यक बहुल जिलों के रूप में की गई है।
  • जिन क्षेत्रों में अल्‍पसंख्‍यक खासकर मुस्लिम अधिक रहते हैं, वहां के विश्‍वविद्यालयों एवं कॉलेजों में महिला छात्रावास की स्‍थापना व्‍यवस्‍था में विश्‍वविद्यालय अनुदान आयोग से वरीयता का प्रावधान।
  • क्षेत्र विशेष एवं मदरसा आधुनिकीकरण कार्यक्रम को संशोधित किया गया है और इसे दो भागों में बांटा गया है।

1.      मदरसों में गुणवत्‍तायुक्‍त शिक्षा प्रदान करने की योजना। इसमें बेहतर शिक्षकों की भर्ती करने, वेतन एवं अन्‍य भत्‍ते बढ़ाने, पुस्‍तकों, कम्‍प्‍यूटरों एवं शिक्षण सहायक उपकरणों की खरीद के लिए सहायता में बढ़ावा देना।
2.      निजी सहायता/गैर सहायता प्राप्‍त शैक्षिक संस्‍थानों के बुनियादी ढांचे के विकास के लिए वित्‍तीय सहायता।
  • अलीगढ़ मुस्लिम विश्‍वविद्यालय, जामिया मिलिया इस्‍लामिया विश्‍वविद्यालय, नई दिल्‍ली तथा मौलाना आजाद राष्‍ट्रीय उर्दू विश्‍वविद्यालय, हैदराबाद में उर्दू माध्‍यम के शिक्षकों के लिए पेशेवर अकादमियों की स्‍थापना।


इसके अलावा केन्‍द्र सरकार ने 2008-09 में बहु-आयामी विकास कार्यक्रम भी शुरू किया है। इस कार्यक्रम का मुख्‍य उद्देश्‍य अल्‍पसंख्‍यक बहुल जिलों में लोगों के जीवन की गुणवत्‍ता में सुधार लाना, विभिन्‍न प्रकार के असन्‍तुलनों को कम करना तथा सामाजिक-आर्थिक स्थितियों में सुधार लाना है।

विकास के नजरिए से जो जिले मूलभूत सुविधाओं से वंचित हैं, उनके लिए विशेष योजना बनाई गई है, जिसमें स्‍कूली एवं माध्‍यमिक शिक्षा की बेहतर व्‍यवस्‍था, साफ सफाई पर ध्‍यान देना, पक्‍के घरों का निर्माण, स्‍वच्‍छ पेयजल एवं बिजली की उपलब्‍धता तथा आय बढ़ाने वाली लाभार्थी आधारित योजनाएं शामिल हैं। इसमें इस बात पर ध्‍यान दिया गया है कि जीवन स्‍तर में सुधार लाने के लिए बुनियादी सुविधाओं जैसे बेहतर सड़क संपर्क, मूलभूत स्‍वास्‍थ्‍य सुविधाएं, कौशल विकास एवं विपणन सुविधाओं का होना जरूरी है।

इसके अलावा अल्‍पसंख्‍यक मामलों का मंत्रालय अल्‍पसंख्‍यक समुदाय के छात्रों को आर्थिक एवं सामाजिक रूप से सशक्‍त बनाने की दिशा में उन्‍हें विभिन्‍न छात्रवृत्तियां उपलब्‍ध करा रहा है।

इसमें शामिलि छात्रवृत्तियां इस प्रकार हैं
  • प्री मैट्रिक स्‍कॉलरशिप स्‍कीम
  • पोस्‍ट मैट्रिक स्‍कॉलरशिप स्‍कीम
  • मैरिट-मींस स्‍कॉलरशिप स्‍कीम
  • मौलाना आजाद नेशनल फैलोशिप
  • मुक्‍त कोचिंग एवं अन्‍य योजनाएं
  • अल्‍पसंख्‍यक वर्ग की महिलाओं के लिए नेतृत्‍व विकास योजना
  • राज्‍यों में राष्‍ट्रीय अल्‍पसंख्‍यक विकास एवं वित्‍तीय निगमों से जुड़ी एजेंसियों को अनुदान योजना।



इस प्रकार केन्‍द्र सरकार अल्‍पसंख्‍यक वर्गों के उत्‍थान के लिए हर संभव प्रयास कर रही है ताकि जीवन के हर क्षेत्र में वे दूसरों के साथ सम्‍मान से खड़े होकर गौरवपूर्ण जीवन जी सकें।

साक्षर भारत

यह माना जाता है कि‍ साक्षरता वि‍कास की कूंजी है। वि‍शेषज्ञ मानते हैं कि‍ इसके ही कारण गरीब जनता अलग-थलग है और कल्‍याणकारी कार्यक्रमों से वंचि‍त है। राष्‍ट्रीय साक्षरता मि‍शन का नया स्‍वरूप ‘’साक्षर भारत’’ प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह द्वारा सि‍तंबर 2009 में शुरू कि‍या गया था। शुरू में यह योजना 31 मार्च, 2012 तक लागू थी, किंतु अब साक्षर भारत कार्यक्रम को 12वीं पंचवर्षीय योजना (2012-17) में शामि‍ल कर लि‍या गया है।

सुनि‍योजि‍त देख-रेख और अथक प्रयासों के कारण इस दि‍शा में काफी प्रगति‍ हुई है। 2001 में साक्षरता दर 64.83 प्रति‍शत थी, जो 2011 में बढ़कर 74.04 प्रति‍शत हो गई है। रोचक तथ्‍य यह है कि‍ महि‍लाओं की साक्षरता दर तेजी से अर्थात् 53.67 प्रति‍शत से बढ़कर 65.46 प्रति‍शत हो गई है और यह बढोत्‍तरी 11.8 प्रति‍शत है, जबकि‍ पुरूषों की साक्षरता दर 75.26 प्रति‍शत से बढ़कर 82.14 प्रति‍शत हो गई है अर्थात् 6.9 प्रति‍शत की ही वृद्धि‍ हुई है। साक्षरता का स्‍तर वि‍भि‍न्‍न राज्‍यों, जि‍लों, सामाजि‍क समूहों और अल्‍पसंख्‍यकों के बीच एक जैसा नहीं रहता है। हालांकि‍ कुछेक राज्‍यों ने वि‍शेष साक्षरता अभि‍यान चलाकर और सामुदायि‍क समर्थन से बेहतर साक्षरता स्‍तर को हासि‍ल कि‍या है। फि‍र भी, कुछ राज्‍य अब भी पीछे हैं।

साक्षर भारत मि‍शन का उद्देश्‍य अच्‍छी एवं स्‍तरीय व्‍यस्‍क शि‍क्षा व साक्षरता के जरि‍ए पूर्णत: साक्षर समाज की स्‍थापना करना है। इस मि‍शन के मुख्‍य उद्देश्‍य इस प्रकार हैं, जि‍न्‍हें वर्ष 2017 तक हासि‍ल कि‍या जाना है:-

  • साक्षरता स्‍तर का आधार वर्ष 2011 के 73 प्रति‍शत से 80 प्रति‍शत तक बढ़ाना।
  • महि‍लाओं और पुरूषों के बीच साक्षरता के अंतर को कम करके वर्ष 2011 के 16 प्रति‍शत  से 10 प्रति‍शत तक लाना।
  • साक्षरता स्‍तर पर शहरी ग्रामीण असमानता को पाटना।


यह देखते हुए कि‍ सामाजि‍क वि‍कास संबंधी सभी गति‍वि‍धि‍यों के लि‍ए महि‍ला साक्षरता एक जबर्दस्‍त ताकत है, ‘साक्षर भारतको 8 सि‍तंबर, 2009 को भारत के राष्‍ट्रीय व्‍यस्‍क शि‍क्षा कार्यक्रम के रूप में शुरू कि‍या गया था।

इस कार्यक्रत के जरिए सरकार ने ग्रामीण भारत में 15 वर्ष की आयु और इससे अधिक आयु के सभी लोगों, विशेषत: महिलाओं को शामि‍ल किया है। यह विश्‍व का सबसे बड़ा साक्षरता कार्यक्रम है, जिसका उद्देश्‍य वर्ष 2017 तक 6 करोड़ निरक्षर महिलाओं और 1 करोड़ निरक्षर पुरुषों को साक्षर बनाना है।

इस योजना के चार महत्‍वपूर्ण घटक है जिनका दृष्टिकोण लक्ष्‍य परक है।



1.      कार्यात्‍मक साक्षरता
2.      बुनियादी शिक्षा
3.      व्‍यावसायिक कौशल विकास
4.      सतत् शिक्षा कार्यक्रम

1. कार्यात्‍मक साक्षरता

कार्यात्‍मक साक्षरता का आशय पढ़ने, लिखने और गणित में लोगों को आत्‍म-निर्भर बनाना है। यह 300 घंटे की पढ़ाई-लिखाई का कार्यक्रम है, जिसे इंसट्रक्‍टर के माध्‍यम से चलाया जाएगा। यह कार्यक्रम तीन महीने या इससे अधि‍क का होगा जि‍से लोगों की मातृभाषा में चलाया जाएगा।

2. बुनि‍यादी शिक्षा कार्यक्रम

इससे निरक्षर वयस्‍क बुनियादी शि‍क्षा के बाद भी अपनी पढाई जारी रख सकेंगे और वे 10 वर्ष की औपचारिक शिक्षा के बराबर बुनियादी शिक्षा हासि‍ल कर सकेंगे।

3. व्‍यावसायिक कौशल विकास कार्यक्रम

इस कार्यक्रम के जरिए वयस्‍कों को व्‍यावसायिक कौशल सिखाया जाएगा ताकि वे अपना जीवन-स्‍तर और आजीविका की स्थिति में सुधार ला सकें। उचित व्‍यावसायिक कौशल का प्रशिक्षण 271 जन शिक्षण संस्‍थानों के माध्‍यम से दिया जाएगा।  ये संस्‍थान इस कार्यक्रम के तहत पूर्णत: वित्‍त पोषि‍त गैर-सरकारी संगठन हैं।
4. सतत शिक्षा कार्यक्रम

इस कार्यक्रम के जरिए आजीवन अध्‍ययन करने हेतु अवसर प्रदान करके एक अध्‍ययनरत समाज की स्‍थापना करना हैं। इस कार्यक्रम का उद्देश्‍य गांवों में सतत् अध्‍ययन का वातावरण तैयार करना है ताकि लोगों को पढ़ने के लिए प्रोत्‍साहित किया जा सके।

यह योजना वर्ष 2009 में अंतर्राष्‍ट्रीय साक्षरता दिवस को शुरु की गई थी। तब से इसे 25 राज्‍यों के 372 अल्‍प महिला साक्षरता जिलों के ग्रामीण क्षेत्रों में लागू किया गया है। पिछले चार वर्षों में इस योजना की उपलब्धियां इस प्रकार हैं:-

  •  दो करोड़ से अधिक वयस्‍कों को बतौर साक्षर प्रमाणित किया गया है। 
  • लगभग डेढ़ लाख लोक शिक्षा केन्‍द्रों को स्‍थापित किया जा चुका है। 
  • 15.5 लाख स्‍वैच्छिक अध्‍यापकों को जुटाया गया है और 18.5 लाख वयस्‍कों को विभिन्‍न व्‍यवसायों में दक्ष बनाया गया है।


यह प्रसन्‍नता और गौरव की बात है कि राष्‍ट्रीय साक्षरता मिशन प्राधिकरण ने इस वर्ष का यू.एन.ई.सी.ओ. किंग सेजोंग साक्षरता पुरस्‍कार प्राप्‍त किया है। यह पुरस्‍कार एक पूर्णत: साक्षर समाज स्‍थापित करने के लिए प्रतिबद्ध कार्यक्रम के रूप में दिया गया है।


हालांकि, ऐसे लांगों की संख्‍या काफी है, जिन्‍होंने बुनियादी शिक्षा का अवसर पहले ही खो दिया है। ऐसे 20 राज्‍य हैं जिनकी साक्षरता दर 80 प्रतिशत से कम है। 19 राज्‍यों में महि‍ला से कम पुरूष साक्षरता दर में अंतर दस प्रतिशत से अधिक है। 482 जिलों की साक्षरता दर 80  प्रतिशत है। ग्रामीण क्षेत्रों में औसत महिला साक्षरता दर दयनीय अवति 58 प्रतिशत की अस्‍वीकार्य स्‍थ्‍ि‍ति‍ में है। हमें साक्षरता स्‍तर को ऊंचा उठाने के लिए दोगुनी ताकत से प्रयास करने की जरूरत है। विशेषत: महिलाओं, अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों, अल्‍पसंख्‍यकों और समाज के अन्‍य अलग-अलग लोगों के संदर्भ में। राष्‍ट्रपति‍ जी ने इस वर्ष अंतरराष्‍ट्रीय साक्षरता दि‍वस के मौके पर देशवासि‍यों से कहा है कि‍ हमारा उद्देश्‍य न केवल औसत वि‍श्‍व दर के बराबर अपने देश की साक्षरता दर को लाना है, बल्‍कि‍ इसे अग्रणी देशों द्वारा हासि‍ल साक्षरता दर के स्‍तर तक पहुंचाना है। उन्‍होंने यह भी बताया कि‍ इस लक्ष्‍य को कैसे हासि‍ल कि‍या जाए। उन्‍होंने कहा कि‍ हमें बालि‍काओं और महि‍लाओं पर वि‍शेष ध्‍यान देते हुए, महि‍लाओं और पुरूषों के बीच साक्षरता के अंतर को पाटना होगा। हमारा प्रयास यह होना चाहि‍ए कि‍ साक्षरता समस्‍त देश में फैले जि‍ससे गरीबी दूर हो और समाज के सभी वर्गों में पुरूषों व महि‍लाओं के बीच समान एवं उचि‍त साक्षरता दर हो तथा प्रत्‍येक बच्‍चे को स्‍कूल जाने का अवसर प्राप्‍त हो। हमें इस दि‍शा में सभी स्‍तरों अर्थात् राष्‍ट्रीय, राज्‍य, जि‍ला, ब्‍लाक और ग्राम पंचायत के स्‍तर पर अपने तंत्र को मजबूत व गति‍शील बनाना होगा। सरकारी एजेंसि‍यों और गैर-सरकारी एवं नि‍जी क्षेत्र के प्रति‍ष्‍ठि‍त संगठनों को शामि‍ल करके कार्यान्‍वयन ढांचे को भी सुदृढ़ बनाना होगा।

गुरुवार, 12 सितंबर 2013

राष्‍ट्रीय कौशल विकास योजना

केन्‍द्रीय वित्‍त मंत्री ने अपने बजट भाषण-2013 में राष्‍ट्रीय कौशल विकास योजना की घोषणा की थी। राष्‍ट्रीय कौशल प्रमाणन एवं नकद पुरस्‍कार योजना के तहत स्‍वीकृत प्रशिक्षण कार्यक्रमों को सफलतापूर्वक पूरा करने पर युवाओं को नकद पुरस्‍कार उपलब्‍ध कराए जाते हैं। इस योजना का उद्देश्‍य युवाओं के लिए कौशल विकास को बढ़ावा देना है। इस योजना का क्रियान्‍वयन राष्‍ट्रीय कौशल विकास निगम (एनएसडीसी) द्वारा सार्वजनिक-निजी और सार्वजनिक- सार्वजनिक भागीदारी द्वारा किया जाना है।

उद्देश्‍य

हाल ही में, नई दिल्‍ली के विज्ञान भवन में आयोजित एक कार्यक्रम के दौरान वित्‍त मंत्री श्री पी. चिदम्‍बरम ने इस योजना के उद्देश्‍यों के बारे में जानकारी दी। उन्‍होंने कहा कि बड़ी संख्‍या में युवाओं को स्‍वेच्छा से कौशल विकास कार्यक्रमों में भाग लेने के लिए प्रेरित करना चाहिए। मेरा प्रस्‍ताव है कि राष्‍ट्रीय कौशल विकास निगम प्रशिक्षण पाठ्यक्रमों के लिए अध्‍ययन सूची और मानक तय करे। प्रशिक्षण के अंत में प्राधिकृत प्रमाणन निकाय द्वारा विद्यार्थी की परीक्षा ली जाएगी। परीक्षा उत्‍तीर्ण करने के पश्‍चात परीक्षार्थियों को प्रमाण-पत्र प्रदान किया जाएगा और प्रति परीक्षार्थी दस हजार रुपये नकद पुरस्‍कार के रूप में दिए जाएंगे। कौशल प्रशिक्षण प्राप्‍त युवा बड़े पैमाने पर रोजगार और उत्‍पादकता को बढ़ावा देंगे। ऐसा लगता है कि दस लाख युवाओं को प्रोत्‍साहित किया जा सकता है। मैं इस महत्‍वाकांक्षी योजना के लिए एक करोड़ रुपये की राशि का प्रस्‍ताव करता हूं। मैं आशा करता हूं कि यह योजना देश के सभी युवाओं में कौशल विकास बढ़ाने की शुरुआत करेगी ।
विशेष रूप से इस योजना के उद्देश्य हैं
·         प्रमाणन प्रक्रिया में मानकीकरण को प्रोत्साहित करना और कौशल के पंजीकरण की प्रक्रिया की पहल करना ।
·         वर्तमान श्रमशक्ति की उत्पादकता को बढ़ाना और देश की आवश्यकता के लिए प्रशिक्षण और प्रमाणन का संरेखण करना ।
·         रोजगार और युवाओं की उत्पादन क्षमता को बढ़ाने के लिए कौशल प्रमाणन के लिए नकद पुरस्कार प्रदान करना और कौशल प्रशिक्षण के लिए प्रलोभन देना ।

योजना की मुख्य विशेषताएं
योजना लागू किए जाने की तारीख के बाद एक वर्ष की अवधि में लगभग 10 लाख युवाओं को बाजार की आवश्यकता के अनुरूप कौशल प्रशिक्षण प्राप्त करने के बाद इस योजना में सफलतापूर्वक प्रशिक्षण प्राप्त युवाओं को नकद पुरस्कार दिया जाएगा । सभी प्रशिक्षण कार्यक्रम खास वृद्धि क्षेत्रों के लिए विशेष रूप से कौशल विकसित करने के अनुरूप होंगे । योजना के सभी उद्देश्यों के लिए आकलन और प्रशिक्षण संबंधी सभी निकाय अलग-अलग होंगे । योजना के उद्देश्यों की प्राप्ति और पारदर्शिता बनाए रखने के लिए एक दूसरे निकाय का हस्तक्षेप स्वीकार्य नहीं होगा । नकद पुरस्कारों के लिए धन वित्त मंत्रालय द्वारा मुहैया कराया जाएगा । आर्थिक रूप से पिछड़े वर्ग के हितों के लिए उचित ध्यान दिया जाएगा ।

क्षेत्र और नौकरी में उनकी भूमिका
हालांकि यह योजना सभी क्षेत्रों की सभी नौकरियों के लिए होगी लेकिन शुरुआत में यह योजना केवल खास आर्थिक क्षेत्र की उच्च बाजार मांग वाली एक से चार स्तर के अंतर्गत आने वाली नौकरियों के लिए होगी । संदर्भ क्षेत्रों में इस प्रकार की भूमिकाओं के लिए क्षेत्र कौशल परिषद (एसएससीएस) द्वारा राष्ट्रीय व्यवसायिक मानक (एनओएस) और गुणवत्ता पैक (क्यूपी) तैयार किए जाएंगे । जो प्राथमिकता वाले क्षेत्रों के लिए शुरुआती स्तर पर 80 प्रतिशत श्रम शक्ति तैयार करेंगे ।

प्रशिक्षण विषय वस्तु और योग्य प्रबंधक
एनओएसएस और क्यूपी से जुड़े पाठ्यक्रम कर रहे प्रशिक्षुओं तक ही इसका लाभ सुनिश्चित करने के लिए यह पाठ्यक्रम करवाने वाले संस्थानों की एक सूची को योजना के लिए मंजूरी दी जाएगी ।
सरकारी और निजी सभी संस्थान, जिन्हें पिछले दो साल के दौरान किसी भी राज्य सरकार या भारत सरकार के किसी भी मंत्रालय द्वारा किसी सरकारी द्वारा प्रायोजित योजना के लिए चयन किया गया हो या एनएसडीसी के सहयोगियों को इस योजना के तहत प्रशिक्षण दिलाने के लिए मंजूरी सूची में शामिल किया जाएगा ।

वे प्रशिक्षणदाता जिनको पहले से किसी सरकारी संस्थान या एनएसडीसी से मान्यता प्राप्त नहीं है उन्हें एनएसडीसी/एसएससी द्वारा तैयार मान्यता प्रदान करने वाले विभाग में पूर्व जांच प्रक्रिया से गुजरना होगा ।
एनएसडीसी के सहयोगियों और कौशल विकास जगत में सभी प्रशिक्षण प्रबंधकों की सूची एनएसडीसी की वेबसाइट www.nsdcindia.org पर उपलब्ध होंगी ।
प्रशिक्षण कार्यक्रमों की न्यूनतम अवधि 30 दिन होगी । यह सुनिश्चित किया जाएगा कि प्रशिक्षण समाप्त होने के पश्चात ही एसएससी ने मूल्यांकन की योजना बनाई है । अगर आवश्यकता हुई तो प्रशिक्षण की अवधि नौकरी प्रशिक्षण और इंटर्नशिप आदि में शामिल हो सकती है ।
भारत में एनएसडीसी निम्नलिखित क्षेत्रों के लिए सेवाएं उपलब्ध कराती है:

·         ऑटोमोबाइल/स्वालित पुर्जे

·         इलेक्ट्रॉनिक्स हार्डवेयर

·         कपड़ा और पोशाक

·         चमड़ा और चमड़े का सामान

·         रसायन और फार्मेसी

·         रत्न और आभूषण

·         निर्माण क्षेत्र

·         खाद्य प्रसंस्करण

·         हथकरघा और हस्तशिल्प

·         हार्डवेयर निर्माण और गृह सज्जा

·         आईटी और सॉफ्टवेयर

·         आईटीईएस और बीपीओ

·         पर्यटन, अतिथि सत्कार और यात्रा

·         परिवहन/कर्मचारियों और माल की व्यवस्था/गोदाम और पैकेजिंग

·         नियोजित खुदरा

·         रियल एस्टेट

·         मीडिया, मनोरंजन, प्रसारण, विषय-वस्तु रचना और एनिमेशन

·         स्वास्थ्य सेवाएं

·         बैंकिंग/बीमा और वित्त

·         शिक्षा/कौशल विकास

·         असंगठित क्षेत्र

मूल्यांकन और प्रमाणन

इस योजना के अंतर्गत प्रशिक्षण देने वाली कोई भी इकाई मूल्यांकन और प्रमाणन एजेंसी बनने के लिए स्वीकृत नहीं होगी ।

सभी मूल्यांकन एजेंसियों की पूर्व जांच होगी और उन्हें एसएससीएस द्वारा प्रमाणित किया जाएगा और उसके विवरण की ताजा जानकारी कौशल विकास प्रबंधन तंत्र के पास होगी । मूल्यांकन एजेंसियों द्वारा प्रत्येक मूल्यांकन के लिए उम्मीदवार से लिया जाने वाला शुल्क इस प्रकार होगा-
1. उत्पाद तैयार करने से संबंधित कार्यक्रमों के लिए अधिकतम 1500 रुपये
2. सभी दूसरे कार्यक्रमों के लिए अधिकतम 1000 रुपये

नकद पुरस्कार
बैंक तंत्र द्वारा उम्मीदवार/प्रशिक्षणदाता तक पूंजी का सीधा हस्तांतरण किया जाएगा। भारतीय बैंक समिति की सलाह से यह पुरस्कार राशि प्रत्येक जिले के केंद्रीय बैंक में भेजी जाएगी ।
प्रमाणन के लिए नकद पुरस्कार राशि इस प्रकार होगी

क्षेत्र
एनएसक्यूएफ स्तर 1 और 2
एनएसक्यूएफ स्तर 3 और 4
उत्पाद तैयार करने का कार्यक्रम
रुपये 10,000
रुपये 15,000
सेवा और दूसरे क्षेत्र
रुपये 7,500
रुपये 10,000

पुरस्कार राशि को प्रशिक्षण लागत में इस्तेमाल करने की सुविधा के लिए प्रशिक्षण दाता उम्मीदवार को कुल कार्यक्रम फीस की न्यूनतम 25 प्रतिशत राशि जमा कराने की सहमति देगा और शेष राशि प्रशिक्षण दाता को पुरस्कार राशि की रसीद मिलने के बाद उम्मीदवार प्रशिक्षण दाता को भुगतान करेगा ।

मूल्यांकन और अनुश्रवण

कौशल विकास प्रबंधन तंत्र डाटा केंद्रीय संग्रह अपने पास रखेगा जिसका सदुपयोग इस योजना पर निगरानी रख रहे भागीदार कर सकेंगे । प्रशिक्षण डाटा के केंद्रीय संग्रहण के रख रखाव के लिए सभी एजेंसियां जैसे एसएससीएस, प्रशिक्षण संस्थान और मूल्यांकन एजेंसियों की पहुंच इस तक होगी । एनएसडीसी के सहमतिपूर्ण मापदंड पर आधारित एनएसडीए द्वारा इस योजना का स्वतंत्र मूल्यांकन किया जाएगा ।

योजना का लाभ उठाने के लिए प्रक्रिया

उच्च मांग क्षेत्र के लिए पंजीकृत किसी भी कार्यक्रम में उम्मीदवार अपना नामांकन करा सकता है और किसी भी स्वीकृत प्रशिक्षण दाता के पास उम्मीदवार प्रशिक्षण कार्यक्रम पूरा कर सकता है ।
उम्मीदवार को प्रशिक्षण दाता को सूचित करना होगा कि वो इस योजना में भाग लेना चाहता है ।

शिकायत निवारण


इस योजना के लिए शिकायत प्रकोष्ठ बनाया गया है जिसमें एसएससीएस, एसएसडीसी और एनएसडीए के प्रतिनिधि शामिल किए जाएंगे । प्रथम स्तर पर निवारण संबंधी संचालन एसएससी की संचालन परिषद के पास जबकि दूसरे स्तर पर एनएसडीए के पास होगा ।

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