बुधवार, 28 अगस्त 2013

मानसिक स्‍वास्‍थ्‍य देख रेख विधेयक 2013

आत्‍महत्‍या के प्रयास को अपराध के दायरे से बाहर रखने के इरादे से सरकार ने संसद में अति महत्‍वपूर्ण 'मानसिक स्‍वास्‍थ्‍य देखरेख -2013 पेश किया है। सरकार ने भारतीय दंड संहिता में आत्‍महत्‍या के प्रयास के अपराध को इसके दायरे से बाहर करने के लिये पहली बार इस तरह का साहसी कदम उठाया है।

करीब डेढ़ सदी पुरानी भारतीय दंड संहिता से आत्‍महत्‍या के प्रयास के अपराध से संबंधित धारा 309 को हटाने के लिये प्रयास लंबे समय से हो रहे हैं। इस बारे में विधि आयोग ने 1971 से 2008 के दौरान अपनी कई रिपोर्ट में सरकार से सिफारिश भी की। एक अवसर पर तो इस धारा को खत्‍म करने के लिये 1978 में राज्‍यसभा में एक विधेयक पारित भी कर दिया था, लेकिन इसी दौरान लोकसभा भंग हो जाने के कारण दूसरे सदन से इसे पारित नहीं कराया जा सका। अब ऐसा लगता है कि निकट भविष्‍य में यह प्रावधान कानून की किताब से हट जायेगा।

मानसिक स्‍वास्‍थ्‍य देखरेख विधेयक 2013 कई मायनों में बेहद महत्‍वपूर्ण है। एक और विधेयक में आत्‍महत्‍या के कृत्‍य को अपराध के दायरे से अलग करके इसे आत्‍महत्‍या का प्रयास करने वाले वयक्ति के मानसिक स्‍वास्‍थ्‍य से जोड़ा गया है और दूसरी ओर इसमें ऐसी अवस्‍था से जूझ रहे व्‍यक्ति के उपचार के उपायों का प्रावधन किया गया है। यह पहला अवसर है कि जब केन्‍द्र सरकार ने मानसिक स्‍वास्‍थ्‍य कानून में निजता के अधिकार से लेकर गरिमा से जीने के मानसिक रूप से रुग्‍ण व्‍यक्तियों के अधिकार को रेखांकित किया है।

इस विधेयक की धारा 124 के अनुसार भारतीय दंड संहिता की धारा 309 के प्रावधान से इतर यदि कोई व्‍यक्ति आत्‍महत्‍या का प्रयास करता है तो यही माना जायेगा कि वह संबंधित समय में मानसिक रुग्‍णता से ग्रस्‍त था और उसका यह कृत्‍य धारा 309 के तहत दंडनीय नहीं होगा। इस विधेयक में स्‍पष्‍ट किया गया है कि आत्‍महत्‍या का प्रयास करने वाले व्‍यक्ति का यह कृत्‍य और  उसके मानसिक स्‍वास्‍थ्‍य की स्थिति को अलग नहीं किया जा सकता है और दोनों को अलग अलग देखने की बजाये इन पर एक साथ ही गौर करना होगा।

देश में आत्‍महत्‍या और आत्‍महत्‍या के प्रयासों की बढ़ती घटनाओं के मद्देनजर उच्‍चतम न्‍यायालय के फैसलों और विधि आयोग की सिफारिशों के आलोक में स्‍वास्‍थ्‍य एवं परिवार कल्‍याण मंत्रालय के मानसिक स्‍वास्‍थ्‍य देखरेख विधेयक में आत्‍महत्‍या के प्रयास को अपराध के दायरे से बाहर रखने का प्रावधान निश्चित ही सराहनीय है।

आत्‍महत्‍या के प्रयास से संबंधित भारतीय दंड संहिता की धारा 309 को लेकर लंबे समय से चर्चा चल रही है। इसी कडी में मार्च 2011 में उच्‍चतम न्‍यायाल्‍य ने भी आत्‍महत्‍या के प्रयास को अपराध के दायरे से हटाने और इसके लिये भारतीय दंड संहिता में प्रदत्‍त सज़ा का प्रावधान खत्‍म करने का सुझाव दिया था।

न्‍यायमूर्ति मार्कण्‍डेय काटजू की अध्‍यक्षता वाली खंडपीठ ने कहा था कि हालांकि 1996 की एक व्‍यवस्‍था में संविधान पीठ ने धारा 309 का सांविधानिक रूप से वैध ठहराया है लेकिन अब उनकी राय है कि इस पुरातन प्रावधान को संसद को कानून की किताब से निकाल देना चाहिए। न्‍यायालय ने ससंद से इस प्रावधान को खत्‍म करने की भी सिफारिश की थी।

न्‍यायालय का मत था कि अवसाद की स्थिति में ही कोई व्‍यक्ति आत्‍महत्‍या का प्रयास करता है, इसलिए ऐसे व्‍यक्ति को सज़ा देने की बजाये उसकी मदद की जरूरत है।

इस संबंध में यह भी महत्‍वपूर्ण है कि विधि आयोग ने भी 17 अक्‍तूबर 2008 को सरकार को सौंपी अपनी 210वीं रिपोर्ट में भारतीय दंड संहिता की धारा 309 को कानून में बनाये रखने के लिये आयोग द्वारा 1997 में पेश रिपोर्ट से असहमति व्‍यक्‍त करते हुए इस पुराने प्रावधान को खत्‍म करने के लिये उचित कदम उठाने की सिफारिश की थी।

आयोग ने धारा 309 के बारे में अपनी रिपोर्ट में कहा था कि आत्‍महत्‍या के प्रयास को मानसिक बीमारी के रूप में देखते हुये इसक लिये सज़ा देने की बजाये इसके उपचार पर ध्‍यान केन्द्रित करना चाहिए।

विश्‍व संगठन, आत्‍महत्‍या की रोकथाम के लिये अंतरराष्‍ट्रीय संगठन, यूरोप और उत्‍तरी अमरीका के देशों में इसे अपराध के दायरे से बाहर रखने जैसे तथ्‍यों के मद्देनजर ही विधि आयोग ने आत्‍महत्‍या के प्रयास से संबंधित धारा 309 खत्‍म करने के लिये कदम उठाने की सिफारिश की थी। आयोग के मुताबिक पाकिस्‍तान, बांग्‍लादेश्‍, मलेशिया, सिंगापुर और भारत ही ऐसे चुनिंदा देश हैं जहां एक अवांछित कानूनी प्रावधान अभी भी है।

आत्‍महत्‍या का प्रयास करने के अपराध में भारतीय दंड संहिता की धारा 309 में एक साल तक की कैद और जुर्माने का प्रावधान है जबकि आत्‍महत्‍या के लिये प्रेरित करने या मजबूर करने का सवाल है तो भारतीय दंड संहिता की धारा 306 में इस अपराध के लिये दस साल तक की कैद और जुर्माने की सज़ा का प्रावधान है।

आत्‍महत्‍या की घटनाओं पर अगर नजर डालें तो पता चलता है कि 2012 में 1,10,417 व्‍यक्तियों ने आत्‍महत्‍या की थी जबकि 2011 में 1,35,445 ने आत्‍महत्‍या की थी। राष्‍ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्‍यूरो के आंकड़ों के मुताबिक देश में 2002 से ही हर साल आत्‍महत्‍या करने वालों की संख्‍या एक लाख से अधिक रही है। रोजाना औसतन 371 व्‍यक्ति आत्‍महत्‍या करते हैं। निश्चित ही आत्‍महत्‍या का प्रयास करने वालों की संख्‍या भी कुछ कम नहीं होगी।

स्‍वास्‍थ्‍य एवं परिवार कल्‍याण मंत्रालय द्वारा राज्‍यसभा में पेश इस विधेयक में मानसिक रूगणता से ग्रस्‍त व्‍यक्तियो के लिये मानसिक स्‍वास्‍थ्‍य देखरेख और सेवाएं प्रदान करने के साथ ही इस दौरान ऐसे व्‍यक्तियों को संरक्षण और उनके अधिकारों की रक्षा करने का प्रावधान किया गया है।

चूंकि इस विधेयक के माध्‍यम से भारतीय दंड संहिता की धारा 309 में भी संशोधन होगा तेा इसके लिये कानून मंत्रालय दंड कानून में अलग से संशोधन पेश करेगा। यह विधेयक पारित होने के और राष्‍ट्रपति की संस्‍तुति मिलने के बाद मानसिक स्‍वास्‍थ्‍य कानून, 1987 का स्‍थान लेगा। विधेयक में मानसिक रूग्‍णता से ग्रस्‍त व्‍यक्तियों के उपचार, उनकी देखरेख और उनका उपचार करने वाले केन्‍द्रों के बारे में भी व्‍यापक प्रावधान किये गये हैं।

विधेयक में मानसिक रूग्‍णता के क्षेत्र में कार्यरत संस्‍थाओं के नियमन और उन पर नियंत्रण के लिए केन्‍द्रीय मानसिक स्‍वास्‍थ्‍य प्राधिकरण और राज्‍य मानसिक स्‍वास्‍थ्‍य प्राधिकरण के साथ ही मानसिक स्‍वास्‍थ्‍य समीक्षा आयोग के गठन का प्रावधान है। यह विधेयक अशक्‍त व्‍यक्तियों के अधिकारों से संबंधित संयुक्‍त राष्‍ट्र कंवेनशन की संपुष्टि करता है। इस कंवेनशन पर एक अक्‍तूबर, 2007 को हस्‍ताक्षर किये गये थे और यह 3 मई, 2008 से लागू है।


उम्‍मीद की जानी चाहिए कि यह विधेयक जब कानून का रूप ले लेगा  तो देश में आत्‍महत्‍या का प्रयास करने वालों की मानसिक स्थिति के उपचार के लिये बेहतर प्रयास होंगे और यह ऐसे व्‍यक्तियों को इस तरह का कदम उठाने के प्रति हतोत्‍साहित करने में मददगार होगा।



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भारत में वृद्धजन और उनकी स्थिति

देश में बदलते सामाजिक-आर्थिक और आबादी संतुलन के साथ वृद्धजनों के रहन-सहन की दशाएं भी चुनौतीपूर्ण होती जा रही हैं। चिकित्सा विज्ञान की तरक्की के साथ देश के आम नागरिक के जीवनकाल में महत्वपूर्ण वृद्धि हुई है। एक तरफ यह खुशी की बात है लेकिन दूसरी दुख की भी बात है। जैसे-जैसे व्यक्ति का जीवनकाल बढ़ रहा है वैसे-वैसे वृद्धजनों की समस्याएं भी बढ़ती जा रही हैं। 2011 की जनगणना के आंकड़ों के विश्लेषण से पता चलता है कि भारत में वृद्धजनों की आबादी 10 करोड़ से अधिक हो चुकी है।

वृद्धजनों को परिवार के सहारे और देखभाल की जरूरत होती है लेकिन संयुक्त परिवार प्रथा के बजाय अकेले परिवारों के चलन और निरंतर प्रवास के कारण खासतौर से शहरी क्षेत्रों में वृद्ध जनों को अकलेपन का सामना करना पड़ता है। भावनात्मक, सामाजिक, वित्तीय, चिकित्सीय और कानूनी ढांचा नाजुक होता जा रहा है और इसलिए वृद्धजनों को उनके मानवाधिकारों से निरंतर वंचित रखा जाता है।

मानवाधिकार लोगों का हक है क्योंकि वे मनुष्य हैं। वृद्धजनों (महिला और पुरुष) को भी किसी अन्य व्यक्ति की तरह समान अधिकार हासिल हैं। बुढ़ापे की ओर कदम बढ़ाने पर व्यक्ति के मानव अधिकार कम नहीं हो जाते। हालांकि व्यवहार में किसी भी अंतर्राष्ट्रीय कानून में आज वृद्धजनों के मानव अधिकारों को कोई उल्लेख नहीं मिलता।

परिवार के सहारे और देखभाल के अभाव में वृद्धजनों में सुरक्षा की भावना विलुप्त हो रही है। यह स्थिति उनके जीवन को दिन प्रति दिन दर्दनाक और असुरक्षित बना रही है। देश में अत्यधिक औद्योगिकीकरण और वाणिज्यिक क्षेत्रों के कारण अधिकांश वृद्धजन खुद को अलग-थलग पाते हैं। जीवन के हर स्तर पर आयु संबंधी जरूरतों से उन्हें वंचित रखा जाता है। आबादी में उनका हिस्सा बढ़ने के बावजूद समाज उन पर उचित ध्यान नहीं दे रहा है।

वृद्धजनों के मानव अधिकार

  • जीने का अधिकार को कानून की सुरक्षा दी जाए
  • अमानवीय बर्ताव से सुरक्षा का अधिकार दिया जाए
  • स्वतंत्रता और व्यक्तिगत सुरक्षा का अधिकार
  • प्रत्येक वृद्ध को निष्पक्ष एवं सार्वजनिक सुनवाई के अधिकार का हक
  • नागरिक अधिकार एवं दायित्व -
  • घर, परिवार और निजी जीवन में आदर का अधिकार
  • विचार और चेतना की आजादी का अधिकार
  • भेदभाव से सुरक्षा का अधिकार
  • संपत्ति का अधिकार


वृद्धजनों को ये अधिकार दिलाने के लिए एजवेल फाउंडेशन ने एक सर्वेक्षण और शोध अध्ययन किया। इस सर्वेक्षण में वृद्धजनों के मानव अधिकारों के बारे में आम सोच की जानकारी जुटाई गई। वृद्धजनों के मानवाधिकार बहुत व्यापक शब्द है जो बुढ़ापे से जुड़े अनेक कारकों से निर्धारित होते हैं। वृद्धजनों में सुरक्षा के स्तर का आकलन करना भी इस सर्वेक्षण का मकसद था। इसके लिए समर्पित, अनुभवी और काबिल स्वयंसेवकों का चयन किया गया। इसके लिए स्वयंसेवकों को पर्याप्त दिशानिर्देश, निर्देश और प्रशिक्षण भी उपलब्ध कराया गया। सर्वेक्षण में सभी आयुवर्गों के 32,100 लोगों से बातचीत की गई। इंटरनेट, फोन और व्यक्तिगत माध्यम के जरिए जुलाई और अगस्त, 2013 में यह सर्वेक्षण किया गया।

कुल 32,100 लोगों में से 52 प्रतिशत अर्थात 16,748 महिलाएं थी जबकि शेष 47.8 प्रतिशत पुरुष थे। इनमें 20.6 प्रतिशत दिल्ली और एनसीआर के तथा 79.4 प्रतिशत शेष भारत के थे। सर्वेक्षण में शामिल 49.4 प्रतिशत शहरी क्षेत्रों के और 50.6 प्रतिशत ग्रामीण क्षेत्रों के थे। 46.2 प्रतिशत निजी क्षेत्र में काम कर रहे थे जबकि 44 प्रतिशत विद्यार्थी थे। 4.1 प्रतिशत का अपना काम था और 2.9 प्रतिशत कारोबारी गतिविधियों से जुड़े थे जबकि 2.7 प्रतिशत सरकारी नौकरी कर रहे थे। इस तरह सर्वेक्षण में विभिन्न वर्ग और विविध रोजगार एवं सामाजिक परिस्थिति के लिहाज से विविध प्रकार के लोगों से सपंर्क किया गया।

सर्वेक्षण से बड़ी दिलचस्प मगर आंखे खोलने वाली जानकारी सामने आई। 2,720 यानी 8.5 प्रतिशत लोग रोजाना अपने बड़े-बूढ़ों से बात नहीं करते। 23.2 प्रतिशत सिर्फ 1 वृद्धजन से रोजाना बात करते हैं जबकि 32.2 प्रतिशत रोज 2 वृद्धजनों से बात करते हैं। 15.4 प्रतिशत रोज 3 वृद्धजनों से बात करते हैं जबकि 20.7 प्रतिशत ने कहा कि वे रोज 3 वृद्धजनों से बात करते हैं। लेकिन जब उनसे पूछा गया कि किस तरह की बात करते हैं तो 82.8 प्रतिशत ने बताया कि वे व्यक्तिगत रूप से वृद्धजनों से मिलने जाते हैं। हर छठा व्यक्ति अर्थात 17 प्रतिशत लोग फोन से ही वृद्धजनों से बात करते हैं। सिर्फ 48 प्रतिशत ने कबूल किया कि वे वृद्धजनों से ईमेल से संपर्क में रहते हैं जबकि 32,100 में से सिर्फ 12 लोगों ने बताया कि वे अपने परिवार में वृद्धजनों को पत्र लिखते हैं।

44.9 प्रतिशत लोगों ने बताया कि वे विभिन्न मुद्दों पर अपने वृद्धजनों से अकसर सलाह लेते हैं। इनमें उन्होंने रिश्तों, पारिवारिक मामलों, स्वास्थ्य, करियर, कानूनी मामलों इत्यादि के बारे में सलाह लेने की बात स्वीकार की। करीब आधे लोगों ने कहा कि वे अकसर अपने बड़ों से सलाह लेते हैं। सिर्फ 3.2 प्रतिशत ने कहा कि अब तक उन्होंने अपने जीवन में वृद्धजनों की सलाह कभी नहीं ली।

सर्वेक्षण में वृद्धजनों के बारे में आम धारणा का पता चला। 84.9 प्रतिशत लोगों ने स्वीकार किया कि वृद्धजन सेवानिवृत्त होने के बाद भी सार्थक साबित होते हैं। लेकिन इनमें से 43.8 प्रतिशत इस धारणा से पूरी तरह असहमत थे। वे मानते हैं कि सेवानिवृत्त होने के बाद व्यक्ति कुछ काम का नहीं रहता।

दरअसल 85 प्रतिशत लोग मानते हैं कि वृद्धजन सेवानिवृत्त होने के बाद भी कमा सकते हैं। इससे पता चलता है कि लोग सेवानिवृत्ति को फिजूल मानते हैं और वह सिर्फ आयु तक ही सीमित नहीं है। करीब तीन चौथाई लोग मानते हैं कि वृद्धजनों को नशे के आदि‍ लोगों की श्रेणी में नहीं रखना चाहिए। हर चौथे व्यक्ति ने माना कि घर में वृद्धजनों का आदर गायब होता जा रहा है। आधे से अधिक लोग मानते हैं कि काम के दौरान वृद्धजनों के साथ भेदभाव किया जाता है। लेकिन कुछ लोग इसे सिर्फ आयु से नहीं जोड़ते। उनका मानना है कि इसके और भी कारण हो सकते हैं। अधिसंख्य लोग मानते हैं कि सरकार और समाज वृद्धजनों की मदद नहीं करते ताकि वे अपने जीवनयापन के लिए कुछ कमा सकें। करीब 60 प्रतिशत मानते हैं कि वृद्धजनों के साथ वित्तीय धोखाधड़ी होने की आशंका होती है।

आम लोगों की सोच है कि वृद्धजनों के लिए सामाजिक सुरक्षा योजनाएं पर्याप्त नहीं हैं। अधिकांश लोग यह भी मानते हैं कि वृद्धजनों के लिए पर्याप्त कानून नहीं हैं।

सर्वेक्षण का निष्कर्ष यह है कि वृद्धजनों को हमारे देश में समाज का सर्वाधिक आदरणीय सदस्य माना जाता है लेकिन जब व्यक्तिगत बर्ताव की बात आती है तो उनके साथ इसके विपरीत बर्ताव किया जाता है। युवा पीढ़ी बुढ़ापे से जुड़े मुद्दों के प्रति संवेदनशील नजर आती है लेकिन विभिन्न कारणों से अपने वृद्धजनों के साथ बात नहीं करते। समाज में वृद्धजनों की विशेष जरूरतों और अधिकारों के बारे में जागरूकता तो बहुत अधिक है लेकिन वे व्यवहारिक रूप से इस जागरूकता का इस्तेमाल वृद्धजनों की वास्तविक सहायता करने में खुद को असमर्थ पाते हैं। व्यक्ति का जीवन काल लंबा होने के कारण सेवानिवृत्ति के बाद आय के साधनों के अवसर उपलब्ध कराना बहुत आवश्यक है।

वृद्धजनों के मानवाधिकारों का देश में आदर किया जा रहा है लेकिन हालात बड़ी तेजी से बदल रहे हैं और वृद्धजनों के मानवाधिकारों के उल्लंघन की घटनाएं अब सामने आने लगी हैं। वृद्धजनों के साथ लोग अकसर बात करते हैं लेकिन पुरानी और युवा पीढ़ी के बीच फासला बढ़ता जा रहा है क्यांकि परिवार में उनका रिश्ता मजबूत नहीं है। वृद्धजन सेवानिवृत्ति के बाद भी कमा सकते हैं लेकिन उनके लिए काम के अवसर नहीं हैं। लोग उन्हें बहुत अनुभवी, ज्ञानवान और बुद्धिमान मानते हैं लेकिन उनके प्रदर्शन पर संदेह करते हैं। बूढ़ा तो एक दिन सबको होना है इसलिए वृद्धजनों को आदरणीय श्रेणी में वर्गीकृत किया जाना चाहिए। विभिन्न कारणों से अधिकांश वृद्धजन खुद को असुरक्षित महसूस करते हैं। संयुक्त परिवार प्रणाली का टूटना इसका मुख्य कारण है।

वृद्धजनों के साथ भेदभाव होना आम बात है लेकिन वे शायद ही कभी इसकी शिकायत करते हैं और इसे सामाजिक परिपाटी मानते हैं। इस भेदभाव से सुरक्षा के बारे में वे बहुत कम जागरूक होते हैं। भारत में सरकार को वृद्धजनों की सामाजिक सुरक्षा योजनाओं पर ध्यान देना चाहिए और साथ ही समाज को भी इसकी कुछ व्यवस्था करनी चाहिए ताकि वृद्धजन परेशानीमुक्त जीवन जी सकें। लोगों में वृद्धजनों के लिए कानूनी प्रावधानों की जानकारी बढ़ रही है लेकिन अब भी कुछ लोगों को कानूनी प्रणाली पर संदेह है। बुढ़ापे में स्वास्थ्य देखभाल सबसे अधिक जरूरी है इसलिए इस बारे में सरकार और अन्य संबंधित हितधारकों को तुरंत कदम उठाने चाहिए। देश में वृद्धजनों के मानव अधिकारों का आदर किया जा रहा है लेकिन स्थिति बहुत तेजी से बदल रही है और वृद्धजनों के मानवाधिकारों के उल्लंघन एवं उनके साथ दुर्व्यवहार की घटनाएं बढ़ रही हैं।

आवश्‍यकता इस बात की है कि‍परि‍वार में आरंभ से ही बुजर्गों के प्रति‍अपनेपन का भाव वि‍कसि‍त कि‍या जाए। बच्‍चों में इस भाव को जगाने के साथ-साथ स्‍वयं भी इस बात को याद रखें कि‍आप वृद्धावस्‍था में अपने साथ कैसा व्‍यवहार चाहते हैं, वही अपने घर-परि‍वार के व समाज के वृद्धों के साथ करें। बच्‍चों को भी यही संस्‍कार दें। वि‍श्‍व में भारत ही ऐसा देश है जहां आयु को आशीर्वाद व शुभकामनाओं के साथ जोड़ा गया है। जुग-जुग जि‍या, शतायु हो.......जैसे आर्शीवचन आज भी सुनने को मि‍लते हैं। ऐसे में वृद्धजनों की स्‍थि‍ति‍पर नई सोच भावनात्‍मक सोच वि‍कसि‍त करने की जरूरत है ताकि‍हमारे ये बुजुर्ग परि‍वार व समाज में खोया सम्‍मान पा सकें और अपनापन महसूस कर सकें ।


शनिवार, 24 अगस्त 2013

Company School Of Painting

India of 18th and 19th century witnessed a new genre of painting popularly known as ‘Company School’. It was named so because it primarily emerged under the benefaction of the British East India Company. The officials of the Company were fascinated by paintings that could capture the exotic and scenic aspect of the land. They wanted paintings that were above and beyond recording the multiplicity in the Indian way of life they have encountered. Indian artists of that time fulfilled the budding demand for paintings of landscapes, flora and fauna, images of native rulers, court scenes, historical monuments, festivals, ceremonies, trades and occupations, dance, music as well as portraits. It was the time when they were having dilapidated traditional patronage. As a matter of fact, Company School of Painting was the forerunner of the westernization of painting launched by art schools in India by the British towards the end of the 19th century. The account below presents more info about this school of painting. Scroll down to know more.

History of Company School of Painting
During the late 1700s several employees of East India Company moved to India for shaping new lives for themselves. En-route, they relished the treat of eyes by remarkable flora and fauna and spectacular ancient monuments. They wished to capture these images. They hired Indian painters to fulfill the purpose. These paintings influenced with European style and palette, are collectively known as Company paintings.

‘Company Paintings’ were produced in Madras Presidency for the first time. Then it rapidly dispersed to other parts of India like Delhi, Murshidabad, Lucknow, Agra, Calcutta, Patna, Benares, Punjab and centres in Western India. When photography was introduced in 1840, a new dimension was brought to painting. Now, works that could capture objective reality were emphasized.

Style of Company School of Painting
The Company School paintings exhibit a blend of naturalistic illustration and the persistent longing for the closeness and stylization of medieval Indian miniatures. This intermingling makes the Company school so exclusive; however the paintings neither had the accurateness of the photograph nor enjoyed the freedom of the miniatures. The artists of this School tailored their technique to accommodate to the British taste for academic realism. This needed the amalgamation of Western academic principles of art like a close representation of visual reality, volume and shading and perspective. The artists changed their medium as well and started to paint with watercolor (as an alternative of gouache) and also used pencil or sepia wash on European paper.

Among the eminent artists of the genre were Sewak Ram and members of the Ghulam Ali Khan family of Delhi. According to Mildred Archer, the celebrated British authority on Indian art considers Company painting to be the last innovative contribution of Indian artists prior to the modern inundation.


The Company School of painting was certainly not a decline or variation of the classical art. It was just a new-fangled norm in a special style. It aimed at retaining the sophistication, poetic vision and responsiveness innate in traditional Indian painting.

राष्ट्रीय मीडिया केंद्र - कुछ तथ्य

            राष्ट्रीय मीडिया केंद्र की परिकल्पना शुरू में पत्र सूचना कार्यालय (पीआईबी)सूचना और प्रसारण मंत्रालयभारत सरकार ने 1989 में की थी ताकि अत्याधुनिक सुविधाओं से युक्त मीडिया केंद्र के जरिए सरकार और मीडिया के बीच परस्पर संपर्क सुविधा का विस्तार किया जा सके। राष्ट्रीय मीडिया केंद्र की योजना वाशिंगटन और तोक्यो जैसी विश्व की कुछ राजधानियों के मॉडल के आधार पर तैयार की गई है। इस केंद्र में पीआईबी के कार्यालय होंगे और मीडिया के लिए विशेष सुविधाएं प्रदान की जाएंगी ताकि मीडिया और सरकार के बीच घनिष्ठ संबंध कायम किया जा सके।
o       सरकारी गतिविधियों के समाचार केंद्र के रूप मेंराष्ट्रीय मीडिया केंद्रराष्ट्रपति भवन,सरकारी कार्यालयोंविज्ञान भवन और संसद भवन के निकट शहर के मध्य में 7-,रायसीना रोड पर स्थित है। इसकी अवस्थिति को देखते हुए गणमान्य व्यक्तियों और मीडिया कार्मिकों के लिए घटनाओं की जानकारी देने और प्राप्त करने में यात्रा की दूरी कम होगी और उनका समय बचेगा।
o       राष्ट्रीय मीडिया केंद्र में 283 मीडियाकर्मियों के लिए एक प्रेस सम्मेलन कक्ष हैकरीब 60व्यक्तियों को जानकारी देने के लिए एक कक्षमीडिया के लिए 24 वर्क स्टेशनएक पुस्तकालयमीडिया लॉंन्ज और एक कैफे हैं। प्रेस सम्मेलन कक्ष और मीडिया लॉन्ज में वाई-फाई की सुविधा है।
o       इस परियोजना का उद्देश्य सरकार की नीतियों और कार्यक्रमों के बारे में जानकारी के सम्प्रेषण में और सुधार लाना है। इससे अंतर्राष्ट्रीय और भारतीय मीडिया की व्यावसायिक और संचार संबंधी जरूरतें भारत सरकार के सूचना सम्प्रेषण फ्रेमवर्क के भीतर पूरी की जा सकेंगी। इसमें उपलब्ध सुविधाओं में दृश्य एवं प्रिंट मीडिया संबंधी परंपरागत और अत्याधुनिक प्रौद्योगिकी शामिल है।

o       प्रमुख विशेषताएं:
o       विश्वस्तरीय मीडिया सेंटर
o       भूतल के अलावा 4 तल और 2 बेसमेंट
o       283 व्यक्तियों के बैठने की क्षमता वाला प्रेस कांफ्रेंस हाल।
o       मीडिया लॉंन्ज - मीडिया कार्मिकों के लिए कार्य क्षेत्र सुविधाएं
o       वीडियो कांफ्रेंसिंग सुविधाओं के साथ मीडिया लॉंन्च
o       पुस्तकालय
o       कैफेटेरिया
नए मीडिया केंद्र में आईटी और एवी ढांचा
·        उपलब्ध सुविधाएं
·        बहुतायत में ऑप्टिक फाइबर इंटरनेट सुविधाएं
·        अनुप्रयोग विकास और होस्टिंग के लिए मिनी डाटा सेंटर
·        लाइव वेबकास्ट सहित वेबकास्ट
·        भवन के बाहर टीवी चैनलों को वीडियो फीड
·        बहुतायत में और 500 नोड्स तक विस्तार क्षमता वाला नेटवर्क
·        वर्क एरिया/लॉन्ज में मीडियाकर्मियों के लिए आईटी सुविधाएं
·        इंटरनेट टेलीफोनी
·        एवी वीडियो वॉल
नए मीडिया केंद्र का निर्माण करने में नेशनल बिल्डिंग कन्स्ट्रक्शन कार्पोरेशन (एनबीसीसी) को तीन वर्ष लगे हैं। इसका आच्छादित क्षेत्रफल 13867 वर्ग मीटर है। प्लॉट का आकार 7787.46 वर्गमीटर (1.95एकड़) है।


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शुक्रवार, 23 अगस्त 2013

ऑटोमेशन के जरिए आयकर रिटर्न की त्‍वरित प्रोसेसिंग

वित्‍त मंत्रालय के तहत गठित आयकर विभाग केंद्र सरकार के लिए प्रत्‍यक्ष और अप्रत्‍यक्ष करों के संग्रहण और उनके प्रबंधन की जिम्‍मेदारी निभाता है। ज्‍यादा से ज्‍यादा कर संग्रहण और गुणवत्‍ता युक्‍त ग्राहक सेवा उपलब्‍ध कराने के लिए आयकर विभाग ने केंद्रीय ऑटोमेशन प्रोसेसिंग सेवा की शुरूआत की है। आयकर भरने वालों की तेजी से बढती संख्‍या तथा आयकर रिटर्न के वैधानिक प्रोसेसिंग मॉडल के कारण आयकर विभाग को आयकर मामलों को समय पर निपटाने में काफी मुश्किलें आ रही थीं इसलिए ऑटोमेशन सेवा की शुरूआत की गई।
वित्‍त अधिनियम-2008 के जरिए केंद्रीय प्रत्‍यक्ष कर बोर्ड को आयकर रिटर्न के मामलों के त्‍वरित निपटारे के लिए केंद्रीयकृत प्रोसेसिंग योजना शुरू करने का अधिकार दिया गया है। तकनीकी सलाहकार समूह के सुझावों के आधार पर बैंगलौर में केंद्रीय ऑटोमेशन प्रोसेसिंग केंद्र (सीपीसी) खोले जाने का फैसला लिया गया। इसके तहत आयकर मामलों के निपटारे के लिए आयकरदाताओं से व्‍यक्तिगत स्‍तर पर संपर्क किए बिना ऑनलाइन आयकर रिटर्न प्राप्‍त करने तथा रिफंड देने की प्रक्रिया शुरू करने की पहल की गई।

परिचालन
केंद्रीय मंत्रिमंडल ने फरवरी 2009 में 255 करोड़ रूपये की लागत से सीपीसी स्‍थापित करने को मंजूरी दी। इसके बाद इस काम को पूरा करने का अनुबंध सूचना प्रोद्योगिकी कंपनी इन्‍फोसिस लिमिटेड को 23 फरवरी 2009 को दिया गया।
जुलाई 2009 तक आयकर विभाग का यह केंद्र नये परिसर में शुरू कर दिया गया। जनवरी 2010 से इसने पूरी क्षमता के साथ काम शुरू कर दिया।

उद्देश्‍य
सीपीसी परियोजना के मुख्‍य उद्देश्‍यों में आयकर भुगतान और रिफंड के मामलों की प्रोसेसिंग के लिए आयकर विभाग की दक्षता बढ़ाने के साथ उसके लिए एक वृहत प्रणाली विकसित करनाएकीकृत प्रोसेसिंग केंद्र की व्‍यवस्‍था करना, आउटसोर्स मॉडल के आधार पर बैक ऑफिस ऑटोमेशन व्‍यवस्‍था हासिल करना, एकीकृत स्‍तर पर कर प्रबंधन से जुड़े कार्यों जैसे रसीद, स्‍केनिंग, डाटा एंट्री, प्रोसेसिंग, रिफंड देना तथा आयकर रिटर्न से जुडे सभी आंकडों और दस्‍तावेजों का रखरखाव, किफायती खर्चों पर गुणवत्‍ता युक्‍त सेवाएं उपलब्‍ध कराना तथा आयकर से जुडे सभी रिकार्डों को वैज्ञानिक पद्धति से संरक्षित रखने तथा संदर्भ के लिए आवश्‍यकता पडने पर उनकी उपलब्‍धता सुनिश्चित कराना है।

लाभ
सीपीसी परियोजना में आम लोगों के साथ-साथ आयकर विभाग के लिए भी काफी फायदे समाहित हैं। आम नागरिकों को अब आयकर रिटर्न जमा करने के लिए लम्‍बी लाइनें नहीं लगानी पडती। आयकर भरने से जुडे खर्चे भी कम हो गये हैं। आयकर रिटर्न की प्रोसेसिंग के लिए अंतर्राष्‍ट्रीय स्‍तर की सेवा उपलब्‍ध कराई गई है। इसके जरिए आयकर रिफंड के साथ ही आयकर से जुडी शिकायतों का निपटारा भी पूरी दक्षता के साथ किया जा रहा है।
दूसरी ओर परियोजना से आयकर विभाग भी लाभान्वित हो रहा है। विभाग को आम लोगों को त्‍वरित सेवाएं उपलब्‍ध कराने में मदद मिल रही है। केंद्रीयकृत निगरानी प्रक्रिया शुरू हो जाने से कर संग्रहण का बेहतर लेखा-जोखा करना संभव हो गया है। कामकाज के बोझ को कम करने में मदद मिल रही है। रिफंड का भुगतान तेजी से किया जा रहा है और कर संग्रहण से जुडी सभी जानकारी एक ही स्‍थान से उपलब्‍ध हो रही है।

चुनौतिया

सीपीसी के सामने क्रियान्‍वयन स्‍तर पर भी कई चुनौतियां रही हैं। वृहत परियोजना के लिए परिचालन सुगम बनाये रखना जोखिमों से भरा हुआ था। तकनीकी स्‍तर पर सही प्रौद्योगिकी का चयन एक बडी चुनौती थी इसलिए शुरूआती स्‍तर पर जोखिम को कम से कम रखने के लिए  'ओरेकल इंजन रूल' का इस्‍तेमाल करके एक लाख से ज्‍यादा आयकर रिटर्न की प्रोसेसिंग की गई। चूंकि इस समय तक आयकर से जुडे रिकॉर्डों का वैज्ञानिक तरीके से प्रबंधन और रखरखाव के लिए आउटसोर्सिंग की कोई व्‍यवस्‍था नहीं थी इसलिए रिकॉर्ड प्रबंधन के लिए दिल्‍ली और बंगलौर में प्रूफ ऑफ कन्‍सेप्‍ट के तहत यह व्‍यवस्‍था की गई। इसमें रिकॉर्ड प्रबंधन क्षेत्र की 2 प्रमुख कंपनियों ने भी हिस्‍सा लिया। यह पूरी प्रक्रिया 6 महीने तक चली। इस दौरान एकत्रित किए गए आंकडों का इस्‍तेमाल आरएफपी तैयार करने और सेवा स्‍तर पर किए जाने वाले अनुबंधों के लिए मानक निर्धारित करने के लिए किया गया।
आयकर विभाग की कम्‍प्‍यूटर एप्‍लीकेशन प्रणाली के साथ नई प्रणाली को जोड़ने का काम भी  काफी चुनौती भरा था। इसमें कई तरह के बदलाव किए गए। इसके लिए कई नई तकनीक विकसित की गई।

वित्‍तीय अंकणन के लिए नई पद्धति विकसित की गई। इसके लिए डबल एंट्री एकाउंटिंग सिस्‍टम का विकास किया गया। अभी तक किसी भी सरकारी विभाग में इसका इस्‍तेमाल नहीं हुआ था इसलिए यह अपने आप में एक नई पहल थी। इसके तहत विभिन्‍न तरह के आंकडों को जोड़ने की प्रक्रिया काफी सरल बना दी गई है। जो आयकर विभाग के लिए काफी मददगार साबित हो सकती है। नई तकनीक के जरिए आयकर रिटर्न दाखिल करने के लिए कंप्‍यूटर में सहजता से इस्‍तेमाल किए जाने वाले फार्म तैयार किए गए हैं। लोग ऑनलाइन आयकर भरने के लिए इस फार्म का इस्‍तेमाल कर सकते हैं।

सीपीसी के लिए कारोबारी मॉडल का चयन भी एक बडी चुनौती थी। इसके लिए विकल्‍पों की तलाश के वास्‍ते व्‍यापक स्‍तर पर बाजार अध्‍ययन कराया गया। आखिर में प्रोक्‍योरमेंट मॉडल और एमएसपी मॉडल में से किसी एक को चुनने का फैसला किया गया। पिछले अनुभवो को ध्‍यान में रखते हुए एमएसपी मॉडल का चुनाव किया गया।
स्रोत पर आयकर कटौती-टीडीएस में गडबडियों का ऑटोमेशन पद्धति के जरिए निपटारा एक मुश्किल भरा काम था। इसके लिए कई तरह के उपाय किए गए। करदाताओं को उनके आयकर के ब्‍यौरे भेजे गए और साथ ही टीडीएस प्रकोष्‍ठ को ज्‍यादा उन्‍नत और मजबूत बनाया गया ताकि गडबडियों का सही तरीके से निपटारा किया जा सके। इसके साथ ही विभिन्‍न संचार माध्‍यमों के जरिए व्‍यापक स्‍तर पर जनजागरूकता अभियान चलाया गया ताकि लोगों को उनकी आय पर लगने वाले करों की सही जानकारी उपलब्‍ध कराई जा सके।
कर जमा करने की व्‍यवस्‍था को बेहतर बनाने के लिए ई-फाइलिंग, ई-मेल और एसएमएस सेवाएं शुरू करने का फैसला लिया गया। आयकरदाताओं की ओर से मांगी जाने वाली जानकारियों के संबंध में उन्‍हें सही और त्‍वरित सूचनाएं उपलब्‍ध कराने के लिए एक कॉल सेंटर स्‍थापित करने की व्‍यवस्‍था की गई। इसमें 60 एजेंटों की नियुक्ति की गई। सीपीसी परियोजना में प्रबंधन स्‍तर पर किए गए बदलाव किसी भी सरकारी विभाग में अब तक का सबसे बड़ा बदलाव रहा।

सीपीसी प्रोसेस
सीपीसी के तहत आयकर मामलों के निपटारे के लिए 14 नई सेवाएं शुरू की गई। इन सेवाओं में डॉटा स्‍केनिंग, डॉटा एंट्री, टैक्‍स प्रोसेसिंग, टैक्‍स एकाउंटिंग, डॉटाओं का चयन और उनकी वैधता का पता लगाना शामिल है।

नई पहल का असर
सीपीसी परियोजना से आयकर रिटर्न प्रोसेसिंग पर लगने वाला समय काफी घट गया है। सामान्‍य तौर पर पहले जहां इस पर औसतन एक साल से ज्‍यादा समय लग जाता था वहीं यह काम 65 दिनों में पूरा हो जाता है। पिछले तीन सालों के दौरान सीपीसी से आयकर रिटर्न से जुड़े 4.15 करोड़ से ज्‍यादा मामलो की प्रोसेसिंग कर चुका है। मौजूदा वर्ष इसके 1.8 करोड़ से ज्‍यादा आयकर रिटर्न प्रोसेस करने की संभावना है। आयकर विभाग के कुल काम के बोझ का यह करीब 70 प्रतिशत है।

रिफंड निपटारा
सीपीसी ने पिछले चार वर्षों के दौरान 1.3 करोड़ से ज्‍यादा रिफंड के मामले निपटाये हैं। सभी मामलों का निपटारा बिना किसी भेदभाव के किया गया है। मौजूदा वर्ष रिफंड से जुडे मामलों का निपटारा जनवरी 2014 तक कर दिया जायेगा।

रिफंड में देरी के मामले घटे
वित्‍त वर्ष 2009-10 के दौरान आयकर विभाग को रिफंड में देरी के कारण जहां औसतन 17 प्रतिशत से अधिक का ब्‍याज देना पडा था वहीं सीपीसी के कारण यह अब घटकर 4.77 प्रतिशत के स्‍तर पर आ गया है। इसके कारण सरकारी खजाने को काफी बचत हुई है।

शिकायतों का जल्‍द निपटारा
सीपीसी के कारण आयकर से जुडी शिकायतों का निपटारा भी जल्‍दी होने लगा है। 11.65 लाख ऐसी शिकायतों में से 11.41 लाख का निपटारा 90 दिनों के भीतर कर दिया है जबकि पहले इसमें 180 दिन लगते थे। सीपीसी के कॉल सेंटर के जरिए रोजाना ग्राहकों के 4 हजार 300 फोन कॉल का जवाब दिया जाता है। यह सेवा फिलहाल कन्‍नड, अंग्रेजी और हिन्‍दी भाषा में उपलब्‍ध कराई जा रही है।

प्रभावी प्रबंधन

सीपीसी की ऑटोमेशन सेवा के कारण आयकर दाखिल करने के लिए कागज पर होने वाला खर्च खत्‍म हो गया है। सीपीसी का दस्‍तावेज प्रबंधन मॉडल को अंतर्राष्‍ट्रीय मानक आईएसओ 15489 का दर्जा दिया गया है।  भारत में यह पहला विभाग है जिसे यह दर्जा मिला है। सीपीसी में रिकॉर्ड प्रबंधन के लिए स्‍वदेशी स्‍तर पर विकसित वैज्ञानिक पद्धति का इस्‍तेमाल किया गया है। इससे कागज वाले दस्‍तावेजों के रखरखाव पर होने वाले खर्चे काफी घट गये हैं।

ई-फाइलिंग को प्रोत्साहन

सीपीसी में आयकर रिटर्न की त्‍वरित प्रोसेसिंग के कारण ऑन लाइन आयकर रिटर्न भरने वालों की संख्‍या में भारी इजाफा हुआ है। वित्‍त वर्ष 2010-11 के दौरान ऑनलाइन आयकर रिटर्न भरने वालों की संख्‍या 164.34 लाख रही। जबकि वित्‍त वर्ष 2006-07 के दौरान यह आंकडा 21.70 लाख था। वार्षिक स्‍तर पर ऑनलाइन आयकर रिटर्न भरने के मामलों में 25 प्रतिशत की दर से बढोतरी हो रही है। पिछले वर्ष के रूझान को देखते हुए मौजूदा साल यह आंकडा 2.5 करोड़ को पार कर जाने की संभावना है।

मानव संसाधन का इस्‍तेमाल
सीपीसी में नये एमएस की मॉडल के तहत प्रबंधन स्‍तर पर आयकर विभाग के 35 शीर्ष अधिकारियों की टीम काम कर रही है। सिर्फ इतने अधिकारी मिलकर पूरे विभाग के एक-तिहाई कामकाज को निपटा रहे हैं। इससे विभाग के अन्‍य कर्मचारियों और अधिकारियों को विभाग के लिए राजस्‍व अर्जित करने के अन्‍य कामों जैसे सर्वे, आयकर जांच, सूचना और खुफिया जानकारी इक्‍ट्ठा करने जैसे काम में लगाया जा सका है।

बेहतर ग्राहक सेवा
सीपीसी ने कॉल सेंटर, ई-मेल और एसएमएस सेवाओं के जरिए ग्राहकों के साथ संपर्क का जरिया मजबूत बनाया है।

बेहतर साख
व्‍यापक स्‍तर पर प्रौद्योगिकी का इस्‍तेमाल करके सीपीसी ने एक और जहां आयकर विभाग के कामकाज में क्रांतिकारी बदलाव लाये हैं वहीं दूसरी ओर यह एक बड़ा प्रशासनिक सुधार साबित हुआ है।

सीपीसी की कार्यप्रणाली की वजह से देशभर के 510 शहरों में स्थित आयकर विभाग के 745 कार्यालयों में काम करने वाले कर्मचारियों को बेहतर तरीके से इस्‍तेमाल करने में मदद मिली है साथ ही आयकरदाताओं को गुणवत्‍तायुक्‍त सेवाएं मिल रही हैं। इस व्‍यवस्‍था से सरकार के लिए आगे आयकर संग्रहण संतोषजनक  रहने की संभावना है।

‘पहुंचने पर वीज़ा’ योजना

पहुंचने पर वीज़ाकी सरकार की योजना विदेशी पर्यटकों में बहुत लोकप्रिय होती जा रही है। चालू वर्ष में जुलाई 2013 तक ऐसे 10,482 वीज़़ा जारी किये जा चुके हैं। यह संख्‍या वर्ष 2012 में इसी अवधि में जारी किये गये वीज़ा की संख्‍या से 37 प्र‍तिशत अधिक है। 2012 में 16 हजार से अधिक ऐसे वीज़ा जारी किये गये थे, जो इससे पिछले वर्ष के मुकाबले 26 प्रतिशत अधिक हैं।

पहुंचने पर पर्यटक वीज़ा योजना की मुख्‍य बातें इस प्रकार हैं:-

  • पहुंचने पर पर्यटक वीज़ा अधिकतम 30 दिन के लिए जारी किया जाता है और इसके जरिए केवल एक बार प्रवेश की सुविधा होती है।
  • पहुंचने पर पर्यटक वीज़ा जापान, सिंगापुर, फिनलैंड, लक्‍समबर्ग, न्‍यूजीलैंड, कंबोडिया, लाओस, वियतनाम, फिलीपीन्‍स, म्‍यामां और इंडोनेशिया से दिल्‍ली, मुंबई, चेन्‍नई और कोलकाता हवाई अड्डों पर पहुंचने वाले विदेशी नागरिकों के लिए है। 15 अगस्‍त 2013 से पहुंचने पर पर्यटक वीज़ा योजना को कोच्चि, तिरूवनंतपुरम, हैदराबाद और बंगलौर हवाई अड्डों के लिए भी शुरू कर दिया गया है।
  • पहुंचने पर पर्यटक वीज़ा की फीस बच्‍चों सहित प्रति यात्री 60 अमरीकी डॉलर या भारतीय रूपयों में इसके बराबर की राशि जितनी है।
  • पहुंचने पर पर्यटक वीज़ा किसी विदेशी को एक कैलेंडर वर्ष में अधिकतम दो बार मिल सकता है। इसके लिए दो यात्राओं में कम से कम दो महीने का अंतर होना जरूरी है।
  • पहुंचने पर पर्यटक वीज़ा को न तो बदला जा सकता है और न ही इसकी अवधि को बढ़ाया जाएगा।
  • उपरोक्‍त देशों के पर्यटक चिकित्‍सा उपचार, आकस्मिक व्यापार या अपने मित्रों/संबंधियों से मिलने आदि के लिए भी 30 दिन का पहुंचने पर पर्यटक वीज़ा ले सकते हैं।
  • पहुंचने पर पर्यटक वीज़ा की सुविधा राजनयिक/सरकारी पासपोर्ट धारकों के लिए नहीं है। पहुंचने पर पर्यटक वीज़ा उन विदेशियों को भी नहीं मिलेगा, जिनका भारत में स्‍थाई निवास है या कारोबार है। ऐसे लोग उपयुक्‍त सामान्‍य वीज़ा पर भारत आ सकते हैं।

शुरू में सरकार ने पहुंचने पर पर्यटक वीज़ा की योजना जनवरी 2010 में पांच देशों-जापान, फिनलैंड, लक्‍समबर्ग, न्‍यूजीलैंड और सिंगापुर के नागरिकों के लिए शुरू की थी, जो पर्यटन के उद्देश्‍य से भारत आना चाहते थे। बाद में इस योजना को जनवरी 2011 में छह और देशों-कंबोडिया, इंडोनेशिया, वितयतनाम, फिलीपीन्‍स, लाओस और म्‍यामां के लिए भी शुरू किया गया। पहुंचने पर पर्यटक वीज़ा योजना का मुख्‍य उद्देश्‍य भारत के लिए और ज्‍यादा विदेशी पर्यटकों को आकर्षित करने के लिए सुविधा प्रदान करना था।
इस योजना के अंतर्गत पहुंचने पर सामूहिक वीज़ा की व्‍यवस्‍था भी की गई है। एक अप्रैल 2013 से सामूहिक रूप से पहुंचने पर वीज़ा जारी करने की सुविधा देने के लिए वीज़ा नियमावली में संशोधन किया गया है। चार या इससे अधिक के समूह में विमान या समुद्री रास्‍ते से पहुंचने वाले विदेशी पर्यटकों को, जिनका प्रायोजन पर्यटन मंत्रालय से अनुमोदित भारतीय ट्रेवल एजेंसियों द्वारा किया गया हो और जिनके पास पहले से निर्धारित यात्रा कार्यक्रम हो, उन्‍हें सामूहिक पर्यटन परमिट दिया जा सकता है, जिसकी अवधि 60 दिन से अधिक नहीं होगी। इसके अंतर्गत कई स्‍थानों से प्रवेश की सुविधा होगी। इस सुविधा का लाभ उठाने के लिए पर्यटकों या ट्रेवल एजेंसियों को अनिवार्य रूप से अपना आवेदन ऑनलाइन भेजना होगा।
सामूहिक आगमन परमिट की व्‍यवस्‍था कम समय के नोटिस पर भारत यात्रा की योजना बनाने वाले विदेशी पर्यटकों को प्रोत्‍साहित करने के लिए की गई है। इस व्‍यवस्‍था से अपनी यात्रा की देर से योजना बनाने वाले उन पर्यटकों को भारत आने में सुविधा होगी, जो अब से पहले अन्‍य देशों के पर्यटन स्‍थलों के लिए जाते रहे हैं। 

इस योजना की लगातार समीक्षा की जाती है। पहुंचने पर पर्यटक वीज़ा की योजना में अन्‍य देशों को और भारत के अन्‍य हवाई अड्डों को शामिल करना एक निरंतर चलने वाली प्रक्रिया है, जो बाजार प्रवृत्तियों, सुरक्षा चिंताओं आदि जैसे विभिन्‍न पहलुओं पर निर्भर है।

राजीव गांधी विद्यार्थी डिजिटल योजना

संचार क्रांति के माध्यम से नई पीढी़ का भविष्य संवारने के मकसद से राजस्थान सरकार की राजीव गांधी विद्यार्थी डिजिटल योजना मेधावी विद्यार्थियों के लिए दिली सुकून देने वाली सिद्ध हुई है।
हमें देश की युवा पीढ़ी को सोचने के लिए प्रेरित करना है। शिक्षा व्यवस्था ऎसी होनी चाहिए कि छोटे बालक-बालिकाएं सवाल करने के लिए प्रोत्साहित हों, सिर्फ याद करने के बजाय शिक्षकों से उन चीजों के बारे में पूछने को प्रेरित हों जो उन्हें समझ में नहीं आई हैं। यह न केवल विद्यार्थियों के लिए बल्कि शिक्षकों के लिए भी अच्छा होगा क्‍योंकि उन्हें जवाब देने होंगे। इससे न सिर्फ शिक्षा प्रणाली बल्कि पूरा तंत्र विकसित होगा और नए विचार पैदा होंगे।
पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय राजीव गांधी ने 29 अगस्त 1985 को नई दिल्ली में आयोजित शिक्षा मंत्रियों के सम्मेलन में जब ये उद्गार व्यक्त किए थे, तो निश्चय ही उनका सपना 21वीं सदी में एक ऎसा भारत देखने का रहा होगा, जहां मेधावी विद्यार्थी ज्ञान प्राप्ति के लिए पुस्तकों पर ही निर्भर नहीं होंगे, वे सूचना तकनीक के हुनर से सुसज्जित होकर शिक्षा के क्षेत्र में स्वावलंबी बन जाएंगे।
राजस्थान सरकार ने ऎसे दूरदर्शी व्यक्तित्व के विचारों से प्रेरणा पाकर ही विद्यार्थियों को ज्ञान की शक्ति से समृद्ध करने के उद्देश्य से राजीव गांधी विद्यार्थी डिजिटल योजना की शुरुआत की है। राज्य सरकार की फ्लैगशिप योजनाओं में शुमार  राजीव गांधी विद्यार्थी डिजिटल योजना के अन्तर्गत सत्र 2011-12 में माध्यमिक शिक्षा बोर्ड, राजस्थान की कक्षा 10 एवं 12वीं की मेरिट में प्रथम रहे 10-10 हजार विद्यार्थियों को और राज्य के सभी राजकीय विद्यालयों की कक्षा 8 में प्रथम स्थान प्राप्त करने वाले विद्यार्थियों को पुरस्कार के रूप में लैपटॉप दिए जा रहे हैं। इसके लिए में राज्यभर में 25 से 29 जुलाई 2013 तक जिला और लॉक स्तर पर लैपटॉप वितरण समारोह आयोजित किए गए। इस दौरान जिलों के प्रभारी मंत्रियों ने इन समारोहों में स्वयं उपस्थित होकर छात्र-छात्राओं का उत्साहवर्धन किया और उन्हें लैपटॉप प्रदान किए।  कुल 55 हजार 819 विद्यार्थियों को लैपटॉप दिए गए।
वर्ष 2013-14 के बजट में भी राज्य सरकार ने राजीव गांधी विद्यार्थी डिजिटल योजना जारी रखी है जिसके अंतर्गत 53 हजार 923 प्रतिभावान विद्यार्थियों को लैपटॉप वितरित किए जाने हैं। इस योजना के अंतर्गत ही वर्ष 2012-13 में राजकीय विद्यालयों की कक्षा 8 में दूसरे से 11वां स्थान प्राप्त करने वाले कुल 3.50 लाख विद्यार्थियों को टेबलेट पीसी खरीदने के लिए 6 हजार रुपए के चेक वितरित किए जा चुके हैं। उचित प्रशिक्षण के अभाव में विद्यार्थी लैपटॉप के उपयोग से वंचित न रह जाएं इसका ध्यान भी राज्य सरकार ने रखा है। विद्यार्थियों को लैपटॉप चलाने का प्रशिक्षण राजस्थान नॉलेज कॉरपोरेशन लिमिटेड द्वारा संचालित ज्ञान केन्द्रों पर निःशुल्क दिया जा रहा है।

लैपटॉप योजना में मेधावी विद्यार्थियों के हितों को ध्यान में रखते हुए यह भी प्रावधान रखा गया है कि यदि किसी विद्यार्थी को कक्षा 8 या 10 में लैपटॉप मिल जाता है और वह क्रमशः कक्षा 10 या 12 में भी लैपटॉप प्राप्त करने की पात्रता र्अजित कर लेता है तो उसे लैपटॉप के स्थान पर 5हजार रुपए तक का 3जी डाटा कार्ड उपलध करवाया जा सकता है। यदि कोई विद्यार्थी कक्षा 8 और 10 के बाद 12वीं कक्षा में भी लैपटॉप का पात्र है तो उसे 12वीं में दूसरा लैपटॉप दिया जा सकता है।

आधुनिकतम ई-कंटेंट जैसे डिजिटल लिटरेसी, एक्टिविटी बुस, शब्‍दकोश, ई-टेसटबुक, ऑडियो पाठ, टेस्ट सीरीज आदि से समृद्ध ये लैपटॉप व टेबलेट पीसी विद्यार्थियों की ज्ञान जिज्ञासा को शान्त करने में महती भूमिका निभाएंगे। भारी-भरकम पुस्तकों की तुलना में लैपटॉप कहीं अधिक पाठ्य सामग्री संधारित कर सकते हैं। विद्यार्थी इनमें ईबुस को ऑफलाइन व ऑनलाइन और दैनिक समाचार पत्रों को इंटरनेट के माध्यम से सरलता से पढ़ सकेंगे। अलग-अलग स्थानों पर बैठे हुए विद्यार्थी ऑनलाइन वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग करते हुए अपने विचारों का आदान-प्रदान कर सकते हैं। विद्यार्थी घर बैठे ही रोजगार के अवसरों की जानकारी ऑनलाइन प्राप्त कर सकेंगे, विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं के फॉर्म भर सकेंगे। इन परीक्षाओं  की तैयारी में भी लैपटॉप खासे मददगार साबित होंगे। अंग्रेजी समेत किसी अन्य भाषा के शब्‍दों का अर्थ जानना हो या सही-सही उच्चारण, वे इंटरनेट के माध्यम से सरलता से इसकी जानकारी पाकर अपने भाषा ज्ञान और कौशल में निखार ला सकते हैं।


युवा पीढ़ी तथा छात्र-छात्राओं में शैक्षणिक दृष्टि से गुणवत्ता बढ़ाने के लिए राज्य सरकार की तरफ से की गई यह पहल निस्संदेह उनके लिए विश्वभर में फैली ज्ञान और सूचनाओं की नई खिड़कियां खोलेगी जो अंततः उन्हें सम्भावनाओं के नए द्वार दिखाएगी।

प्रत्यक्ष लाभ अंतरण

1. प्रत्यक्ष लाभ अंतरण (डीबीटी) में केन्द्र सरकार की कई योजनाओं के अंतर्गत मिलने  वाले लाभ जैसे सब्सिडी, वजीफा, छात्रवृति या अन्य लाभ, लाभार्थी के बैंक खाते में सीधे पहुंच जाते हैं, जो अंततः आधार संख्या से जुड़ेंगे। यह योजना फिलहाल उन लाभार्थियों के लिए भी शुरू कर दी गई है, जिनके पास आधार संख्या नहीं है।
2. प्रत्यक्ष लाभ अंतरण का उद्देश्य सही लाभार्थी को लाभ पहुचाना और भ्रष्ट्राचार को कम करना है। सब्सिडी राशि के अंतरण में इससे कुछ बेकार नहीं जाएगा।
3. प्रत्यक्ष लाभ अंतरण की योजना इस समय 121 जिलों में चलाई जा रही है। यह योजना एक जनवरी 2013 को 16राज्यों और केन्द्र शासित प्रदेशों के 43 जिलों में शुरू की गयी थी। इसका दूसरा चरण एक जुलाई 2013 को शुरू हुआ था, जिसमें 78 और जिले जोड़ दिये गये थे। इस प्रकार इस योजना के अंतर्गत 121 जिले हो गये हैं। जल्दी ही इस योजना के अंतर्गत अन्य जिलों को भी शामिल किया जाएगा।
4.  प्रत्यक्ष लाभ अंतरण में 26 योजनाएं हैं, जिनमें 17 छात्रवृति योजनाएं हैं और इन्दिरा गांधी मातृत्व सहयोग योजना, धनलक्ष्मी योजना, जननी सुरक्षा योजना, बीड़ी कार्यकर्ताओं के लिए आवास सब्सिडी, कोचिंग के लिए अनुसूचित जाति/ अनुसूचित जनजाति को वजीफा, मार्ग दर्शन और व्यावसायिक प्रशिक्षण, नक्सलवाद से प्रभावित 34जिलों में कौशल विकास योजना के अंतर्गत प्रशिक्षण प्राप्त करने वाले को वजीफा जैसी योजनाएं शामिल हैं।
5. एक जुलाई 2013 से प्रत्यक्ष लाभ अंतरण में वृद्धावस्था, विकलांगता और विधवाओं के लिए तीन पैंशन योजनाओं को शामिल किया गया है। एक अक्तूबर 2013 से मनरेगा के लाभ भी सीधे लाभार्थियों के बैंक खातों में जमा होने लगेंगे।
6. एक अक्तूबर 2013 से प्रत्यक्ष लाभ अंतरण योजना का विस्तार करके इसमें डाकघरों और डाकघर खातों के जरिये चलने वाली योजनाओं को शामिल किया जाएगा। लाभार्थी अपने डाकघर खाते में प्रत्यक्ष लाभ अंतरण के लाभ प्राप्त कर सकेंगे।
7. उन क्षेत्रों में जहां बैंक नहीं है और डाकघर भी तैयार नहीं है, केन्द्र सरकार बैंकिंग कॉरेसपोंडेंट नियुक्त कर रही है, जो बैंक के प्रतिनिधि हैं और बैंक खाता खुलवाने में गांव वासियों की मदद करेंगे।     
8. बैंकिंग कॉरेसपोंडेंट के पास एक छोटी सी मशीन माइक्रो एटीएम होती है। गांव वासी महिला या पुरूष अपने अंगूठे की छाप देते हैं और जांच के बाद उनका खाता खुल जाता है और उसके बाद वे खाते से पैसा निकाल सकते हैं।
9. सरकार ने एक जून 2013 से एलपीजी के लिए भी प्रत्यक्ष लाभ अंतरण की योजना शुरू की है। इसका लाभ प्राप्त करने के लिए लाभार्थी के पास एलपीजी का खाता और बैंक खाता होना चाहिए, जो आधार संख्या से जुड़ा होना चाहिए।
10. आधार से जुड़े सभी घरेलू एलपीजी ईंधन गैस के उपभोक्ता जैसे ही सब्सिडी वाले पहले सिलेंडर की बुकिंग करेंगे या सिलेंडर की आपूर्ति से पहले उनके खाते में 435 रुपये की अग्रिम सब्सिडी राशि पहुंच जाएगी। जैसे ही उपभोक्ता को पहला सिलेंडर मिल जाएगा। आपूर्ति की तारीख पर मिलने वाली सब्सिडी फिर उसके बैंक खाते में पुहंच जाएगी, जो बाजार भाव पर अगले सिलेंडर की खरीद के लिए उपलब्ध होगी।
11. सार्वजनिक क्षेत्र की वितरण कंपनियां, जो सिलेंडर उपलब्ध कराती हैं, अपनी वेबसाइट पर जानकारी भी उपलब्ध कराती हैं, जिससे पता लग सकता है कि आधार संख्या को एलपीजी उपभोक्त संख्या/ बैंक खाते से जोड़ दिया गया है या नहीं। इसके लिए टॉल फ्री नम्बर 1800 23 33 555  भी उपलब्ध है।

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