बुधवार, 14 अगस्त 2013

चंद्रयान-दो

चंद्रयान-दो मिशन भारत का एकमात्र अकेला मिशन होगा जिसमें रूस की मदद नहीं ली गई है ।

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) और रूसी संघीय अंतरिक्ष एजेंसी (रोसकोसमोस) संयुक्त रूप से चंद्रयान-दो मिशन पर संयुक्त रूप से काम कर रहे हैं । जिसमें रोसकोस्मोस की जिम्मेदारी चंद्रमा पर उतरने तथा इसरो का काम रोवर मॉड्यूल, ओरबिटर और जीएसएलवी के जरिए प्रक्षेपण को अंजाम देना है ।

भारत सरकार ने सितंबर 2008 में 425 करोड़ रुपये की लागत वाली चंद्रयान-दो परियोजना को मंजूरी दी थी । इसमें जीएसएलवी तथा लैंडर की लागत शामिल नहीं है । अंतरिक्ष में ग्रहों की खोज तथा उनसे जुड़े पहलुओं के बारे में जानकारी हासिल करने की दिशा में यह भारत का एक महत्वपूर्ण कदम है ।

इसरो ने (चंद्रयान-एक) मून ओरबिटर के लिए अपनी योग्यता का परिचय दे दिया है । रोवर मॉड्यूल के विकास और ओरबिटर तथा रोवर में उड़ान के दौरान लगाए जाने वाले उपकरणों को बनाने की दिशा में प्रगति हुई है । इसरो में मून लैंडर के लिए कुछ प्रायोगिक अध्ययन भी किए जा चुके हैं ।

रूस की अगुवाई वाले अंतर्राष्ट्रीय मिशन पोबोस-ग्रंट की असफलता के बाद रोसकोसमोस ने ऐसे अभियानों में अपनी विश्वसनीयता बढ़ाने के लिए कई निर्णय लिए हैं । इससे मून लैंडर के द्रव्यमान में बढ़ोतरी होगी ।

रोसकोसमोस ने सुझाव दिया था कि वर्ष 2015 अथवा 2017 में निर्धारित प्रक्षेपण के लिए इसरो इंडियन रोवर उपलब्ध करा सकता है ।

चंद्रयान-दो के बारे में रूसी पक्ष की तरफ से "री-अलायनमेंट" तथा समन्वित कार्यात्मक समीक्षा के संकेतों के बाद प्रोफेसर यू. आर. राव की अध्यक्षता में यह गंभीर मंथन किया गया कि क्या हम इतने कम समय में एक 'लैंडिंग क्राफ्ट' के डिजाइन तथा उसकी तैनाती में सक्षम हैं । चंद्रयान-दो की समन्वित समीक्षा में यह सिफारिश की गई कि भारत अगले कुछ वर्षों में लैंडर मॉड्यूल को अंजाम दे सकता है । इस समय इस यान को प्रस्तावित इंडियन रोवर तथा लैंडर मॉड्यूल्स के लिए परिवर्तित किया जा रहा है । इन बदलावों का विस्तृत विवरण तथा मिशन की जानकारी अभी अंतिम रूप नहीं ले पाई है ।

इस समय संभावित पे लोड्स की सूची में सीसमोमीटर के अलावा लैंडर भी है । लैंडर के वजन, आयतन एवं अन्य ऊर्जा अवरोधों को ध्यान में रखकर लैंडर के पेलोड्स को अंतिम रूप दिया जाएगा ।


प्रयोगशाला/इंजीनियरिंग मॉडल्स को पूरा किए जाने के बाद फ्लाइट मॉडल्स पर "सेंसस कैलिब्रेशन" किया जाएगा ।

वर्ल्ड पुलिस एवं फायर गेम्स, बेलफास्ट-2013

बेलफास्ट में 01 से 10 अगस्त 2013 तक "वर्ल्ड पुलिस एवं फायर गेम्स" में हिस्सा लेने वाला भारतीय पुलिस का 39 सदस्यीय दल स्वदेश लौट आया है । इस टीम ने कुल 83 पदक जीते हैं जिनमें 48 स्वर्ण, 22 रजत एवं 13 कांस्य पदक हैं । इससे पहले कनाडा के क्यूबेक में इन्हीं खेलों में हिस्सा लेने वाली भारतीय पुलिस टीम ने 39 स्वर्ण पदक समेत कुल 82 पदक जीते थे ।

एथलेटिक्स में 14 सदस्यीय भारतीय टीम ने मैरी पीटर्स एथलेटिक्स ट्रैक में हुए 22 स्वर्ण, नौ रजत, छह कांस्य पदक जीते । इस टीम में सात महिला और सात पुरुष एथलीट थे । पुरुष एथलीटों ने सात स्वर्ण सहित 15 पदक जीते जबकि महिला एथलीटों ने बेहतरीन प्रदर्शन करते हुए 15 स्वर्ण सहित 22 रजत पदक जीते । केरल पुलिस की एस. सीनी ने 100 मीटर एवं 200 मीटर की स्प्रिंट में स्वर्ण पदक जीते, जबकि केरल पुलिस को अंजू थॉमस तथा चिंचू जोस ने 400 तथा 800 मीटर दौड़ में स्वर्ण पदक जीते ।

सीआईएसएफ की अनुराधा सिंह ने पांच हजार एवं दस हजार मीटर तथा इसी संगठन की नेहा सिंह ने लंबी कूद तथा तिहरी कूद में स्वर्ण पदक जीते । एसएसबी की एम प्रियादेवी ने लंबी कूद तथा तिहरी कूद में स्वर्ण पदक जीते ।

भारतीय महिला एथलीटों को चार गुना 100 तथा चार गुना 400 मीटर की रिले दौड़ में स्वर्ण पदक के लिए मैक्सिको तथा अमेरिकी धाविकाओं से लोहा लेना पड़ा और भारतीय महिला एथलेटिक्स की एस. सीनी, अंजू थॉमस, चिंचू जोस (केरल पुलिस) तथा बीएसएफ की मनप्रीक कौर ने स्वर्ण पदक जीत लिए ।

भारतीय पुलिस खिलाड़ियों का जूडो तथा बॉक्सिंग में सराहनीय प्रदर्शन रहा । जूडो में आईटीबीपी की टी. एच. कल्पना देवी 52 किलोग्राम, सीआरपीएफ की एल निरुपमा देवी 63 किलोग्राम और एसएसबी की सी. एच. जीना देवी ने 78 किलोग्राम वर्ग की व्यक्तिगत श्रेणियों में स्वर्ण पदक जीते ।

भारतीय महिला बॉक्सरों के. मंदाकिनी चानू (एसएसबी) 57 किलोग्राम वर्ग, प्रीति बेनीवाल हरियाणा पुलिस 60 किलोग्राम, पूनम (एसएसबी) 75 किलोग्राम और कविता हरियाणा पुलिस ने 81 किलोग्राम वर्ग में चार स्वर्ण पदक जीते ।

तैराकी में भी भारतीय पुलिस खिलाड़ियों का प्रदर्शन सराहनीय रहा और चार सदस्यीय दल ने नौ स्वर्ण, पांच रजत एवं दो कांस्य समेत 16 पदक जीते । बीएसएफ के मनहर आनंद दिवासे ने चार व्यक्तिगत स्वर्ण पदक, सीआरपीएफ के रोहित कुमार ने दो एवं आंध्र प्रदेश पुलिस के एम. तुलसी चैतन्या ने एक स्वर्ण पदक जीता ।

पंजाब पुलिस के राजबीर सिंह तथा तीन अन्य तैराकों ने चार गुना 50 मीटर मेडले एवं चार गुना 50 मीटर फ्रीस्टाइल तैराकी वर्ग में स्वर्ण पदक जीते ।

तीरंदाजी प्रतियोगिता में तीन सदस्यीय टीम ने चार स्वर्ण एवं तीन रजत पदक जीते । सीआरपीएफ के दीपुल बोरो ने पारंपरिक तीरंदाजी वर्ग में लक्ष्य तीरंदाजी, मैदानी तीरंदाजी एवं थ्री डी तीरंदाजी में तीन स्वर्ण पदक जीते । आईटीबीपी के प्रियक ने "रीकर्व बो आर्चरी" में लक्ष्य तीरंदाजी में एक स्वर्ण पदक जीता ।

कुश्ती प्रतियोगिता में सात सदस्यीय दल ने पांच स्वर्ण, चार रजत तथा तीन कांस्य पदक जीते ।


हरियाणा पुलिस के नवीन मोर ने प्रीस्टाइल एवं ग्रीको रोमन वर्ग (120 किलोग्राम) में दो स्वर्ण पदक जीते । सीआरपीएफ के मनोज कुमार ने एक स्वर्ण तथा एक रजत पदक जीता जबकि हरियाणा पुलिस के अमित कुमार ने 69 किलोग्राम वर्ग में एक स्वर्ण पदक जीता । 

Warli Painting In India

Warli painting is a folk art tradition of painting which existed in India since times immemorial. These paintings are an exemplar of multiplicity which resides in Indian paintings. Warli paintings of India bring information to us regarding life and communication which existed in the days of old. Warli Paintings in India are very unusual and stand apart from other folk and tribal paintings of India. The Warli paintings and their art form is analogous to the pre-historic cave paintings in its finishing. Their themes aren’t mythological; colors are subtle and sensuality is not mirrored in any of these paintings. They are rather simple and soft. The account below, harmonize about Warli paintings in India.

Origin of Warli Paintings
The largest tribe found on the northern outskirts of Mumbai is Warli. Warli Art was first discovered in early part of seventh decade in past century. As no records of the accurate origins of this art are found, it may belong to the 10th century A.D. Warli Paintings in India vividly express every day and societal events of the Warli tribe of Maharashtra. These paintings represent the embellishment of the walls of village homes. It was only through these paintings that the legends were conveyed to the laypeople that were not familiar with the word in print.

Themes of Warli Paintings
These themes are very cyclical and emblematic. A majority of the Warli paintings that stand for Palghat, the marriage god, over and over again consist of a horse used by the bride and groom. This painting is considered to be holy and the marriage can’t take place without it. These paintings also provide to communal and spiritual desires of the indigenous people. It is assumed that Warli paintings bring powers of the Gods into play.

Apart from marriage god, themes of Warli paintings in India revolve around several celebrations, trees, birds, men and women boogying in circles, sowing, harvesting etc. Musicians, flora and fauna, etc are various other paintings that are common in Warli paintings.

Style of Warli Paintings
Warli paintings are prepared on a sober mud base with just one color, i.e. white; occasional yellow and red dots accompany. White color is made of ground rice into white powder. This decency compensates the buoyancy of their substance.

Rarely, a straight line is ever seen in Warli paintings in India. Dashes and dots make a line. Recently, artists have begun drawing straight lines.

Geometric designs are the dominant patterns in Warli paintings. Warli art is known for its monochromatic depictions that express the folk life of socio-religious customs, imaginations and beliefs.

Colors and Materials Used in Warli Paintings
Warli paintings use some ordinary colors and components such as indigo, henna, black, ochre, brick red and basic mud. Today, Warli paintings are also created on paper and have turned a fashionable medium of art. It is now available all over India. The minute paintings are fashioned on paper and cloth pieces but they appear paramount as wall frames; for instance, the Murals. Warli paintings are undoubtedly amongst the most aesthetically alluring forms of painting in India.

Contemporary Warli Paintings in India
Contemporary Warli paintings have stemmed out of the common colors. These paintings have begun with employing vivacious as well as pastoral colors in them. Warli paintings of the present day and age; comprise of abstract and more standard representation of objects for instance, transistors, bicycles and the like in corners of paintings.


Earlier, only women were engaged in creating Warli paintings in India but today, men have also taken to this painting. Often these paintings are designed on paper including traditional ornamental Warli motifs with up to date elements. Warli paintings on paper have turned very trendy and are demanded today all over the country. Nowadays, small paintings are done on cloth and paper in the form of huge murals they adorn the walls. These murals bring out the cosmic and miraculous world of the Warlis. Since the time, these paintings have journeyed across borders of the country and have a colossal global market.

मंगलवार, 13 अगस्त 2013

इच्‍छा मृत्‍यु पर दिशा निर्देश

विधि आयोग ने असाध्‍य रोगों से पीड़ित मरीजों की चिकित्‍सा(मरीज तथा डॉक्‍टर संरक्षण) शीर्षक से अपनी 196वीं रिपोर्ट इस संबंध में भेजी थी। मंत्रालय की राय विधि तथा न्‍याय मंत्रालय को दी गई जिसमें कहा गया कि स्‍वास्‍थ्‍य और परिवार कल्‍याण मंत्रालय निम्‍न कारणों से विधेयक लाने के पक्ष में नहीं है-

1. चिकित्‍सक की शपथ मरीज की एैच्‍छिक तथा स्‍वैच्‍छिक मृत्‍यु के विरूद्ध है।

2. पीड़ा से मुक्‍ति दिलाने, पुनर्वास तथा असाध्‍य रोगों के इलाज में चिकित्‍सा विज्ञान की प्रगति में रूकावट पैदा होगी।

3. किसी व्‍यक्‍ति की किसी समय मृत्‍यु चाहने की इच्‍छा लगातार नहीं होगी और इच्‍छा होगी तो अवसाद की वजह से।

4. पीड़ा की प्रवृत्‍ति मानसिक होती है जो हर व्‍यक्‍ति में अलग-अलग होती है और यह बहुत कुछ पर्यावरण तथा सामाजिक कारणों पर निर्भर करती हैं।

5. चिकित्‍सा विज्ञान में लगातार हो रही प्रगति ने कैंसर तथा अन्‍य असाध्‍य रोगों में होने वाली पीड़ा के प्रबंधन को संभव किया है। इसी तरह, रीढ की हड्डी की चोट से पीड़ित मरीज पुनर्वास के जरिए सामान्‍य जीवन व्‍यतीत कर सकता है और जीवन समर्थन प्रणाली की वापसी की आवश्‍यकता उसे नहीं होगी।

6. मानसिक रूप से बीमार मरीज द्वारा जीवन समर्थन प्रणाली हटाने की इच्‍छा को मानसिक इलाज और देखभाल से ठीक किया जा सकता है।

7. पीड़ा की मात्रा को तय करना कठिन है क्‍योंकि यह सामाजिक दबाव और अन्‍य तौर-तरीकों पर निर्भर करता है।

8. क्‍या चिकित्‍सक इस बात के ज्ञान और अनुभव का दावा कर सकते हैं कि बीमारी लाइलाज है और मरीज हमेशा के लिए इलाज के अयोग्‍य है?

9. बिस्‍तर पर पड़े रहने की परिभाषा और नियमित सहायता की जरूरत चिकित्‍सा की दृष्‍टि से हमेशा संभव नहीं है।

10. जीवन समर्थन प्रणाली को हटाने में चिकित्‍सक को मनोवैज्ञानिक दबाव हो सकता है।

07.03.2011 को उच्‍चतम न्‍यायालय ने अपने फैसले में मुंबई की एक नर्स अरूणा रामचंद्र शानबाग की इच्‍छा मृत्‍यु की अपील को खारिज कर दिया था और विस्‍तृत दिशा निर्देश दिए थे।


इसके बाद, विधि और कानून मंत्रालय के साथ विचार-विमर्श कर इच्‍छा मृत्‍यु से जुड़े विभिन्‍न पक्षों पर विचार हुआ और यह माना गया कि उच्‍चतम न्‍यायालय ने अपने आदेश में व्‍यापक दिशा निर्देश तय किए हैं। इन दिशा निर्देशों का पालन अरूणा रामचंद्र शानबाग जैसे मामलों में कानून की तरह करना चाहिए। अभी इच्‍छा मृत्‍यु पर कोई कानून बनाने का प्रस्‍ताव नहीं है। यह जानकारी आज राज्‍यसभा में एक प्रश्‍न के लिखित उत्‍तर में स्‍वास्‍थ्‍य और परिवार कल्‍याण मंत्री श्री गुलाब नबी आजाद ने दी।

प्रतिबंधित दवाओं की सूची

किसी देश में प्रतिबंधित औषधियों का अन्य देशों में विपणन जारी रह सकता है क्योंकि संबंधित सरकारें ऐसी दवाओं के इस्तेमाल, खुराक, अनुमत्य संकेतों तथा सम्यक जोखिम-लाभ अनुपात आदि की जांच करती है। और इन देशों में ऐसी दवाओं के विपणन को जारी रखने के संबंध में फैसले करती है।

औषधि निर्माण के में सुरक्षा उपायों, जब कभी इनकी रिपोर्ट मिले, का विशेषज्ञ समिति/औषधि तकनीकी सलाहकार बोर्ड (डीटीएबी) के साथ परामर्श से मूल्यांकन किया जाता है। विशेषज्ञ समिति/औषधि तकनीकी सलाहकार बोर्ड (डीटीएबी) की सिफारिशों के आधार पर केंद्र सरकार देश में ऐसी औषधियों के निर्माण, ब्रिक्री तथा वितरण को राजपत्र अधिसूचना के माध्यम से प्रतिबंधित करती है।

केंद्र सरकार ने भारत के राजपत्र में प्रकाशित अधिसूचना के माध्यम से पिछले तीन वर्षों के दौरान तथा चालू वर्ष में निम्नलिखित औषधियों के निर्माण, बिक्री एवं वितरण को प्रतिबंधित/निलंबित कर दिया है।

1. रोसिग्लिटाजोन।

2. 12 साल से कम उम्र के बच्चों में निमोसुलोइड फोर्मुलेशन्स।

3. मानव उपयोग के लिए सिसाप्राइड एवं इसके फोर्मुलेशन्स

4. मानव उपयोग के लिए फिनाइलप्रोपानोमाइन एवं इसके फोर्मुलेशन्स

5. मानव उपयोग के लिए ह्यूमन प्लेसंटल एक्सट्रेक्ट एवं इसके फोर्मुलेशन्स, सिवाए इसके

1) घाव भरने के लिए टॉपिकल एप्लीकेशन

2) पेल्विक इन्फ्लेमेटरी रोग के लिए इंजेक्शन

6. मानव उपयोग के लिए सिबुट्रामाइन और इसके फॉर्मुलेशन्स

7. मानव उपयोग के लिए आर। सिबुट्रामाइन और इसके फॉर्मुलेशन्स

8. मौखिक और इंजेक्शन सहित किसी भी माध्यम से मानव उपयोग के लिए गेटिफ्लोक्सिन फॉर्मुलेशन्स का प्रणालीगत इस्तेमाल

9. टेगासिरोड एवं इसके फॉर्मुलेशन्स

10. एनॉवुलोटेरी इनफर्टिलिटी में ऑवुलेशन की अविस्थापना हेतु लेट्रोजोल

11. तपेदिक की जांच के लिए सेरोडायग्नोस्टिक टेस्ट किट्स

12. मानव उपयोग के लिए डेक्स्ट्रॉप्रोपोक्सिफीन युक्त डेक्स्ट्रॉप्रोपोक्सिफीन फॉर्मुलेशन्स

13. मानव उपयोग के लिए फ्लूपेंथिक्सोल+मेलिट्रासेन का फिक्स्ड डोज कॉम्बिनेशन

14. मानव उपयोग के लिए एनलगिन और एनलगिन युक्त सभी फॉर्मुलेशन्स


सोमवार, 12 अगस्त 2013

50 सालों में गायब हुईं 220 भाषाएं

पिछले पांच दशकों में देश की करीब 20 फीसदी भाषाएं विलुप्त हो गई हैं। वड़ोदरा के भाषा रिसर्च ऐंड पब्लिकेशन सेंटर द्वारा कराए गए एक सर्वे से यह निष्कर्ष सामने आया है। 1961 में देश में 1100 भाषाएं थीं, जिनमें से करीब 220 खत्म हो गई हैं। गायब होने वाली भाषाएं देश में फैले घुमंतू समुदायों की हैं। बंजारे, आदिवासी या अन्य पिछड़े समाजों की भाषा पूरे विश्व में लगातार नष्ट होती गई है। यह आधुनिकता की सबसे बड़ी विडंबना है।

ताकतवर देशों ने जहां-जहां अपने उपनिवेश बनाए, वहां अपनी भाषा-संस्कृति थोपी। आज पूरे लैटिन अमेरिका की भाषा स्पैनिश हो गई है। उसके मूल निवासी अपनी मातृभाषा भूल चुके हैं। लेकिन यह कोशिश दूसरे स्तरों पर भी हुई है। एक ही देश में सामाजिक-राजनीतिक रूप से मजबूत वर्ग एक कॉमन कल्चर को प्रचारित करता है और उसे एक तरह से अनिवार्य बना डालता है। इसके जरिए वह अपना दबदबा बनाए रखने की कोशिश करता है। उसकी भाषा के जरिए ही रोजी-रोजगार और सम्मान प्राप्त होता है, इसलिए अपने सर्वाइवल के लिए संघर्ष कर रहा समुदाय मुख्यधारा में अपनी थोड़ी सी जगह बनाने के लिए अपनी मूल भाषा छोड़कर उस भाषा को अपना लेता है। फिर धीरे-धीरे उसकी भाषा ही खत्म हो जाती है।


वर्चस्ववाद की यह प्रवृत्ति आज भूमंडलीकरण में दिखाई दे रही है। इसका मकसद पूरे विश्व में एक तरह की संस्कृति स्थापित करना है, ताकि दुनिया भर में एक जैसा उपभोक्ता वर्ग तैयार किया जा सके। अंग्रेजी के जरिए यह कार्य हो रहा है। इसलिए आज हिंदी समेत अन्य भारतीय भाषाओं पर भी खतरा पैदा हो गया है। याद रखना चाहिए कि एक भाषा के साथ एक संस्कृति, एक खास तरह का अनुभव संसार और विचार भी मर जाता है। एक भाषा के साथ दुनिया बहुत कुछ खो देती है, जिसका अहसास तत्काल नहीं हो पाता। शायद इसलिए प्रख्यात बुद्धिजीवी बेनेडिक्ट एंडरसन का कहना है कि एक सच्चे कॉस्मोपॉलिटन समाज को बहुभाषी होना चाहिए, यानी उसमें एक साथ कई भाषाओं का चलन हो। अगर हम चाहते हैं कि दुनिया सबके जीने लायक बने तो इसकी विविधता का सम्मान करना होगा और हर तरह की भाषाओं को बचाने का प्रयास करना होगा।

Mysore Painting In India

The Mysore paintings of India hold sophistication, sprinkling of color, royalty and artistic designs. The paintings emphasize on detailing. Extraordinary expertise, tremendous industriousness, patience, and knack are required to fashion a piece of Mysore painting. The Mysore paintings came into existence in Mysore during the reign of the Wodeyars. Mysore painting in India is a noteworthy institution of the classical paintings of South India. Mysore art is been famous all over the India for its elegance, royalty, sprinkling of color used and the aesthetic designs that draw people. These paintings almost resemble the paintings done in Tanjore. The account below throws good light on Mysore paintings. Check it out.

History of Mysore Paintings
Mysore School of painting reached great heights during the reign of Raja Krishna Raja Wodeyar. Conversely, after the death of Raja in the year 1868, the painters started dispersing and the Mysore painting in India reached the verge of entire annihilation. Jagan Mohan Palace and Chitrakala School came up in the year 1875 and it was the time when the Mysore Painting of India revived.

Themes of Mysore Paintings
Usually, the images of Hindu Gods and Goddesses are illustrated in Mysore paintings. Illustration of the Lord Shrinath (he is believed to be the incarnation of Lord Vishnu) is most commonly found among the Mysore paintings. This painting is very flamboyant one with elaborate designs where the Lord is portrayed against a black background. Painting of Lord Ganesha is another celebrated and notable one among the Mysore paintings.

Characteristics of Mysore Paintings
Elaborate brush strokes, glossy gold leaf, stylish demarcation of figures, delicate lines and intense vegetable colors characterize Mysore paintings of India. These paintings are not just decorative pieces; they aim at invoking feelings of modesty and devotion in the heart of spectator. Individual dexterity of the painter brings out the expressions for several emotions, thus, it adds supreme magnitude to this approach of painting.

Gesso Work in Mysore Paintings
Gesso work was the characteristic of all Karnataka traditional paintings. The paste blend of gambose, white lead powder, and glue make Gesso. Gesso is used as an embellishment material and is covered with gold foil. The gesso work of Mysore paintings is low in relief and complex when matched with the thick gold relief work of the Tanjore School. Gesso was used in Mysore painting for illustrating obscure designs of jewelry, clothes and architectural specifications on arches and pillars that frequently framed the gods and goddesses.

Materials Used in Mysore Paintings
Mysore painting employs materials such as natural colors that are fabricated from colors of trees and leaves. Natural materials would also consist of paints, brush, gold and board. Brushes to paint were generally made up of hair of horse, camel and goat. As canvasses to paint, cloth, wall, paper and wood were required to create a painting. However, in the modern day and age, this painting is executed with the use of up-to-the-minute techniques.


At the present time these Mysore painting in India shape a much preferred memento especially during the celebrations in South India. Indian Mysore paintings are present in Mysore, Narasipura, Sravanabelagola, Bangalore, Nanjangud and Tumkur. Today, with introduction of media and marketable projects, the charge of painting is being done with the use of water colors and several other color types. Indian Mysore Paintings are sure to make leave the viewers mesmerized.

केंद्रीय समुद्री मत्स्य अनुसंधान संस्थान के लिए नया अनुसंधान पोत -सिल्वर पोमपानो

केंद्रीय समुद्री मत्स्य अनुसंधान संस्थान (सीएमएफआरआई), कोच्चि ने हाल ही में 19.5 मीटर लंबा मत्स्य अनुसंधान पोत एफ.वी. सिल्वर पोमपानो खरीदा है। यह खरीद भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान परिषद की परियोजना राष्ट्रीय जलवायु अनुकूल कृषि पहल के अंग के रूप में की गई है। यह पोत भारतीय जलक्षेत्र में मत्स्य संबंधी अनुसंधान कार्य के लिए इस्तेमाल किया जाता है। पोत का निर्माण गोवा शिपयार्ड लि. ने किया है और इस पर कीब 4.75 करोड़ रुपये की लागत आई है।
इस पोत पर 4 स्ट्रॉक वोल्वो पेन्टा मेक 500 एचपी / 1800 अरपीएम मरीन इंजन लगा है। जहाज की मुख्य डेक में वैज्ञानिकों और चालक दल के लिए केबिन, वेट लेबोरेट्री, मौसम केंद्र, गैली, मेस रूम और शौचालय बना है। हाइड्रोलिक रूप से संचालित ट्रॉल में 1000 मीटर लंबा, 12 मिमी व्यास का इस्पात का तार प्रत्येक ड्रम में लगा है। यह 0 से 40 मीटर प्रति मिनट की गति से चलता है जो मुख्य इंजन से हाइड्रॉलिक पॉवर खींचता है।

यह पोत प्रायोगिक ट्रॉल फिशिंग के लिए इस्तेमाल किया जाएगा जिसमें सागर की तली और पानी के बीच में ट्रॉलिंग शामिल होगी। इसमें इसाक-किड मिल्ड-वाटर ट्रॉल सिस्टम का इस्तेमाल किया जाएगा। मछली का संग्रह और नमूने लेने का कार्य समुद्र वैज्ञानिक मानदंडों के अनुरूप किया जाएगा। इस जहाज में अंडरवे सीटीडी सैम्पलर, डॉप्लर करंट मीटर, क्लोरोफिल मापने के लिए उपकरण, जूप्लांकटन, टीएसएस और सेडीमेंट सैम्पलिंग के लिए उपकरण लगे हैं। प्रारंभिक विश्लेषण और अन्य विश्लेषण के लिए नमूने नियत करने के लिए जहाज पर ही प्रयोगशाला है। वर्षा, आर्द्रता जैसे वायुमण्डलीय मानदंड जुटाने के लिए ऑटोमैटिक मौसम केंद्र है।

जहाज पर जीवन रक्षक सभी उपकरण (एलएसए) लगाए गए हैं। आग बुझाने के लिए अग्निरोधी उपकरण और होज भी उपलब्ध कराए गए हैं। जहाजरानी महानिदेशक ने जहाज पर लगे नॉटिकल, रेडियो और मछलियों की तलाश करने के उपकरणों का अनुमोदन किया है।


दुनिया भर के समुद्र फिलहाल जलवायु परिवर्तन से प्रभावित हैं और समुद्र पर सागरीय धाराओं, हवाओं और वर्षा पर असर पड़ने की आशंका है। पिछले 45 वर्ष में भारतीय सागर तट पर समुद्र की सतह का तापमान 0.2 से 0.3 डिग्री सेलशियस बढ़ गया है। पृथ्वी का तापमान बढ़ने और उसके कारण जलवायु के प्रारूप में परिवर्तन के मछलियों पर गंभीर असर पड़ेंगे। इससे आबादी की भोजन एवं आजीविका सुरक्षा भी प्रभावित होगी। जलवायु परिवर्तन के समुद्री और ताजे पानी की मछलियों के वितरण, प्रचुरता और फेनोलाजी में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने की संभावना है। जलवायु परिवर्तन के असर को कम करने की रणनीतियां विकसित करने के लिए इस असर का आकलन करना महत्वपूर्ण है।

राष्ट्रीय जलवायु अनुकूल कृषि पहल परियोजना भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद ने शुरू की है। यह फसलों, पशुधन एवं मत्स्य सहित भारतीय कृषि को जलवायु में अंतर और जलवायु परिवर्तन के अनुकूल बनाने के लिए प्रमुख कार्यक्रम के रूप में चलाया जा रहा है। 350 करोड़ रुपये के आवंटन के साथ 11वीं पंच वर्षीय योजना में यह परियोजना शुरू की गई थी तथा 12वीं योजना में भी जारी है। केंद्रीय मत्स्य अनुसंधान संस्थान इस परियोजना के रणनीतिक अनुसंधान घटक का मुख्य संस्थान है। भारतीय मत्स्य पर जलवायु संबंधी अध्ययन के लिए यह नोडल एजेंसी भी है। पानी के गरम होने और समुद्र का जलस्तर बढ़ने से मछली और मछुआरों पर बहुत असर पड़ने की आशंका है। इसलिए इस क्षेत्र में व्यापक आकलन और विश्लेषण अनिवार्य है। भारतीय समुद्र क्षेत्र में मछलियों के वितरण और भोजन की उपलब्धता पर जलवायु एवं समुद्रीजलवायु के बीच संबंध का अध्ययन करने के लिए सीएमएफआरआई कोच्चि ने इस जहाज की खरीद की है।

इस परियोजना के नेतृत्व मुख्य वैज्ञानिक और डेमरसल फिशरीज डिविजन के प्रमुख डॉ. पी. यू. ज़ैचरिया कर रहे हैं। इसमें सीएमएफआरआई के विभिन्न केंद्रों पर 44 वैज्ञानिक काम कर रहे हैं। इसके अतिरिक्त परियोजना में 23 शोधार्थी भी शामिल हैं। इस कार्य में पेलेजिक, डेमरसल, क्रस्टेसियन्स और मॉल्युस्कन प्रजातियों का प्रतिनिधित्व करने वाली 10 चुनिंदा नस्लों के वितरण, प्रचुरता और स्पॉनिंग व्यवहार पर जलवायु परिवर्तन के असर का पता लगाना शामिल है।
(पीआईबी फीचर)


रविवार, 11 अगस्त 2013

खाद्य सुरक्षा व भंडारण की समस्या

भारत में सरकारी क्षेत्र में खाद्य भंडारण क्षमता सदैव ही जरूरत से कम रही है।  भारतीय खाद्य निगम के पास केवल 340 लाख खाद्याान्न की भंडारण क्षमता है, जिसमें केन्द्र व राय वेयर हाउसिंग निगमों तथा  निजी क्षेत्र से किराए पर लिए गए गोदामों की भंडारण क्षमता भी शामिल है । भारतीय खाद्य निगम के भंडारण क्षमता में इसके परिसरों में खुले  में  रखे जाने वाले 35 लाख टन खाद्यान्नों की भंडारण क्षमता भी सम्मिलित है। भारतीय खाद्य निगम के पास सेन्ट्रल पूल में 1 मई 2013 को गेहूं, चावल तथा अन्य खाद्यान्नों का कुल मिलाकर को 628 लाख टन स्टॉक था। इस साल अच्छी फसल तथा खरीद की सम्भावनाओं को देखते हुए 800 लाख टन स्टॉक के पहुंच जाने की सम्भावना है। भारतीय खाद्य निगम के नए गोदामों के निर्माण कार्य पूरा होने पर 47 लाख टन तथा पेग योजना के तहत निजी क्षेत्र के गोदामों में 20 लाख टन भंडारण क्षमता जुड़ने के बावजूद भंडारण क्षमता में कमी बने रहने वाली  है । 
जुलाई महीने में ही खुले परिसरों में  रखे गेहूं के भारी बरसात में भीग कर खराब होने के समाचार हैं । यह कोई नयी घटना नहीं है। हर साल लाखों टन अनाज उचित रख रखाव के अभाव में सड़ने के समाचार पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रहते हैं ।  खाद्यान्न सड़ने की जानकारी सर्वोच्च न्यायालय को मिलने के बाद  सरकार को सर्वाच्च न्यायालय की फटकार मिल चुकी है । न्यायालय का कहना था कि सरकार को अनाज सड़ाने की बजाय जरूरतमन्द लोगों में बांट देना चाहिए । पिछले साल ही किए गए एक  अंतर्राष्ट्रीय अध्ययन के अनुसार उचित सुरक्षित भंडारण के अभावपरिवहन में देरी तथा मानवीय  लापरवाही के कारण विश्व के खाद्यान्न एवं फल व सब्जी उत्पादन का 50 फ ीसदी  बेकार चला जाता है। इस अध्ययन के अनुसार भारत में हर साल 210 लाख टन गेहूं  भंडारण एवं अधोसंरचना सुविधाओं के अभाव में बेकार चला जाता है  जो आस्टे्रलिया के कुल गेहूं उत्पादन के बराबर है । यह दुख की बात है एक ओर तो गरीबों को पर्याप्त मात्रा में भोजन नहीं मिल पा रहा है तो दूसरी ओर लाखों टन अनाज सड़ जाता है या चूहों की भेंट चढ़  जाता है।              
ऐसी बात नहीं है कि सरकार इस स्थिति से चिंतित नहीं है । केन्द्र सरकार 150 लाख टन भंडारण क्षमता बढ़ाने का इरादा रखती है ।  सेन्ट्रल वेयरहाउसिंग कार्पोरेशन तथा रायों के स्टेट वेयरहाउसिंग कार्पोरेशन अपनी-अपनी भंडारण क्षमता बढ़ाने को प्रयासरत हैं। सरकार ने पेग के नाम से निजी उद्यमी गारंटी स्कीम के गोदाम बनाने की योजना प्रारम्भ की है। केन्द्र सरकार किराना व्यापार में विदेशी निवेश के अंतर्गत निवेशकों को ग्रामों में गोदाम बनाने सहित अधोसंरचना निर्माण की अनिवार्य शर्त रखी है। खाद्य सुरक्षा कानून लागू करने को ध्यान करने में रखते हुए अगले 10 वर्षों में अनाज भंडारण क्षमता बढ़ाने हेतु एक योजना तैयार करने के लिए प्रधानमंत्री कार्यालय द्वारा  एक उच्च अधिकार समिति का गठन किया गया था। उक्त समिति का अभिमत था कि नए गोदामों के निर्माण पर भारी भरकम खर्च करने की बजाय मौजूदा भंडारण क्षमता का  नई तकनीक द्वारा बेहतर उपयोग से प्रयोजन पूरा किया जा सकता है ।
5 अगस्त से प्रारम्भ होने वाले संसद के वर्तमान सत्र में केन्द्र सरकार खाद्य सुरक्षा बिल जहां तक हो सके मौजूदा स्वरूप में पास करवाना चाहती है। वैसे तो इस बिल में संशोधन व एक से बढ़कर  एक नायाब सुझाव देने वालों की कमी नहीं है ।  राजनीतिक दलों में सीपीएम  90 प्रतिशत नागरिकों को  खाद्य सुरक्षा के दायरे में लाना चाहती  है । वहीं कुछ बुध्दिजीवी देश की मांसाहारी जनता की खाद्य सुरक्षा हेतु रियायती कीमतों पर पेकबन्द  मांस तथा मछली कीे भी सार्वजनिक वितरण प्रणाली की दुकानों से पूर्ति की व्यवस्था चाहते हैं ।  यदि वर्तमान खाद्य सुरक्षा बिल के दायरे को बढ़ाने की मांग को स्वीकार करके मौजूदा स्वरूप में परिवर्तन किया गया तो  पीडीएस के लिए तीन गुना अधिक राशि की  जरूरत पड़ेगी। पहले से ही बढ़े बजटीय घाटा की चिन्ताओं से घिरे वित्तमंत्री इस स्थिति से बचना चाहेंगे क्योंकि अनुपूरित बजट घाटा बढ़ने का मतलब मुद्रा स्फ ीति की रफ्तार बढ़ने से  महंगाई  बेकाबू हो जाएगी ।  
मेरा ऐसा मानना है कि देश के  निम्न आय व निम्न मध्यम आय वर्ग के समस्त परिवार  खाद्य सुरक्षा बिल के मौजूदा स्वरूप में सार्वजनिक वितरण प्रणाली के दायरे में आ जाएंगें ।  उच्च आय वर्ग के 10 प्रतिशत परिवारों व 20 प्रतिशत उच्च-मध्यम वर्ग के परिवारों को सार्वजनिक प्रणाली के अंतर्गत सब्सिडी द्वारा रियायती कीमतों पर खाद्यान्न उपलब्ध करवाने की जरूरत नहीं है। उच्च किस्म के खाद्य पदार्थों के अभ्यस्त इन परिवारों को पीडीएस का खाद्यान्न पसन्द ही नही आएगा । भूतकाल में इन वर्गों की रुचि पीडीएस की दुकानों से चीनी खरीदने की रही है । खाद्यान्न भंडारण की समस्या को कम करने के लिए  उच्च-मध्यम वर्ग  को खरीफ व रबी की फ सलों के बाजार में आने पर उनके  परिवार की 6 माह की आवश्यकता के अनुसार  खाद्यान्न खरीद करके  आवास पर ही भंडारण हेतु प्रेरित करना होगा।  इस वर्ग के नौकरी पेशा लोगों को उनके नियोक्ताओं से  ग्रेन एडवांस का प्रावधान करवाया जा सकता है। खाद्य निगम के गोदाम में भंडारण की तुलना में आवास पर भंडारण अधिक सुरक्षित रहेगा।

संसद में प्रस्तुत किए जाने वाले खाद्य सुरक्षा बिल के वर्तमान दायरे को बढ़ाने की बजाय  सार्वजनिक वितरण प्रणाली को चुस्त बनाने एवं क्रियान्वयन को मजबूत करने की जरूरत है । उसी प्रकार सरकार को भंडारण हेतु नए गोदामों के निर्माण पर भारी भरकम खर्च करने की बजाय भंडारण व्यवस्था को छिद्ररहित बनाने का प्रयास करना चाहिए। ंएक बड़ी मात्रा में अनाज भारतीय खाद्य निगम की खरीदी के पहले ही अनायास वर्षा या प्राकृतिक आपदा से खराब हो जाता है, इसके लिए किसान के खेत में फसल कटाई के समय से लेकर से मंडी के प्रांगण तक भी फसल उत्पादन की सुरक्षा भी जरूरी है।  कम कीमत पर हवारोधी  बड़े आकार के 200 टन क्षमता तक के पॉलीथीन बोरे किसानों को उपलब्ध करवा कर किसानों को नुकसान से बचाया जा सकता है तथा खाद्यान्न की राष्ट्रीय क्षति को रोका जा सकता है ।

Hydro Power Generation Capacity In India

As per the re-assessment studies carried out by Central Electricity Authority (CEA) during 1978-1987, the hydro power potential in terms of Installed Capacity (I.C.) is estimated at 148701 MW out of which 145320 MW of the potential consists of hydro electric schemes having I.C. above 25 MW.

As per the extant policy, Foreign Direct Investment (FDI) up to 100% is permitted in power sector, under the automatic route for generation, transmission, distribution and trading (excluding atomic energy) which includes hydro power generation also.

Forty five (45) hydro projects having installed capacity of 10897 MW (25 MW & above) have been targeted for hydro power capacity addition during the 12thPlan, out of which 534 MW has already been commissioned till date.

The fund requirement for setting up of these projects is about Rs.87,176 crores which is to be met by the hydro developers themselves. However, a few hydro projects of national importance under Central Sector are provided partial gross budgetary support (GBS) by the Government for which a provision of Rs.2979.29 crores has been allocated in the 12th Five Year Plan. These funds are released through Central Public Sector Enterprises (CPSEs) on a year to year basis depending upon the progress and requirement of the projects. During the first year of the 12th Plan i.e. 2012-13, GBS of Rs.469.50 crores has been released whereas a provision of Rs.1576.55 crores has been kept for 2013-14.

The Government has taken the following steps to ensure achievement of the 12th  Plan target including for hydro development in the country:-

• Each project is monitored by the Central Electricity Authority (CEA) continuously through frequent site visits, interaction with the developers, critical study of monthly progress reports, etc. Chairperson, CEA holds review meetings with the developers and other stakeholders to sort out the critical issues/bottlenecks.

• A Power Project Monitoring Panel (PPMP) has been set up by the Ministry of Power to independently follow up and monitor the progress of the hydro projects.

• Review meetings are taken by Ministry of Power regularly with the concerned officers of CEA, equipment manufacturers, State Utilities/ Central Public Sector Undertakings / Project developers, etc. to sort out the critical issues.

• Proper Project planning is ensured to take care of difficult weather and work conditions including transportation of critical manpower and material in the available working season.

• A Task Force on Hydro Power Development was constituted on 03.09.2007 under the Chairmanship of Minister of Power to examine & resolve all issues relating to Hydro Project Development. So far five meetings have been held.  The 5thmeeting was held on 27.02.2013.


• An Advisory Group under the Chairmanship of Minister of Power has been set up in January, 2013 to discuss and deliberate periodically issues pertaining to the Power Sector and suggest reforms in different areas related to the sector.

Bureaucracy And Corruption In India

Bureaucracy and corruption in India are closely connected.  A non-government organization with the name of Transparency International conducted a survey and studied various aspects of behavior of bureaucracy, the common citizens, politicians etc. and concluded that more than half of the Indian population had actually given or taken bribes and had required pressure tactics that were applied by means of bribery, to see that a legitimate or illegitimate work in a public department was done.

The connection between Bureaucracy and corruption in India is so strong that the same NGO  surveyed several countries of Asia such as Singapore, Hong Kong, Vietnam, Japan, Malaysia, China, Taiwan, Philippines, Indonesia  and India  and found that India was at the bottom of the list and also that it was  very difficult to work  with the Indian Bureaucracy.

Land And Property
The nexus between the Bureaucracy and corruption in India is evident in villages, towns and cities of India where several scams come to light and several others happen but are not known to the public, about public land being stolen for personal use or illegally sold or occupied by officers from all strata of the bureaucracy.

Tendering Processes And Awarding Contracts
The Indian Government needs many things for its smooth operation which are acquired from private entrepreneurs through a system of tendering. Public Tendering processes are supposed to be fair and transparent so that the products bought are of the best quality for the best price. The Bureaucracy is in charge of initiating and going through the whole process of tendering, negotiating and awarding contracts to enterprises who bid in the tenders. The discretion to choose one vendor over another lies with the officers of the concerned Government department  and more often than naught, unfair and illegal preference is shown to some bidders for a consideration without giving weightage to  quality and delivery time etc.
The nexus between corrupt officers of the bureaucracy and politicians and big infrastructure developers, contractors and suppliers has resulted in poor and sub-standard construction of roads and highways that are damaged within no time.

Medicine
Even in essential services such as health care and supply of medicines etc. the bad connection between the Indian bureaucracy and corruption in India is seen.  Government-run Hospitals and clinics that are supposed to give free or highly subsidized health care services to the under-privileged are found without medicines or doctors and getting treatment in these Government run hospitals is sometimes impossible without bribing the medical staff through touts.

Income Tax Department
The Income tax Department is most susceptible to corruption because evasion of income tax is rampant among the tax-payers of India who would rather bribe the income-tax officials than pay the taxes due. This department is well known for corruption as the class of people that are offering the bribes for favors is the tax-paying elite. No wonder large sums of money are given as bribes at the cost of the Exchequer.  

Preferential Award Of Public Resources
The connection between Bureaucracy and corruption in India is strong wherever the government officials have the authority to grant or apportion public land or some such resources of the country. When granting large contracts for mining or drilling oil or licenses of 2G spectrum, corruption of a very high degree is common because the private enterprises would benefit greatly from getting these public contracts and the bribes are proportionate to the projected earnings. The beneficiaries of these contracts get favorable working conditions and other benefits in return of bribes given.

Driver Licensing

Agents and touts and intermediaries abound in the proximity of the offices of  Licensing Authority that grants driving licenses.  The process of getting a driver’s license which should be based on the driver’s ability to drive a vehicle safely and know all the traffic rules is completely subjugated and for a paltry sum paid as bribes through touts, incapable drivers are granted driving licenses. The result is clearly seen on Indian roads which have a very high rate of accidents and fatalities.

Oil Painting In India

Oil Painting in India expressively portrays imagination, thoughts and consciousness in oil colors and lines through the brush strokes of Indian artists. European colonizers hold the credit to bring this painting form to India. Indian artists adopted this skill.

Raja Ravi Verma was the pioneer to popularize this fresh medium in India through his rational paintings and portraits. It can’t be denied that the charm of Indian oil paintings is noteworthy. Modest pigments mixed with linseed oil craft poetry on canvas. Oil paintings are the outcome of the labor and ludicrous perseverance of the painter. The magic of oil paintings of India is casted is the account that follows.

Themes of Oil Painting in India
There is a vast variety of themes and executions in these paintings as they differ according to the style and sensibilities of the painters. They vary from inspirational or spiritual to abstract and secular. The themes and metaphors of Indian oil paintings exhibit a great variety.

History of Oil Painting in India
Sometime between the 5th and 9th Centuries, oil paintings emerged in western Afghanistan. During 15th century these paintings became famous. In middle ages, they moved westwards. The main medium for creating art works, turned oil in due course. Customary oil painting techniques instigate with the artist drawing the figure on the canvas with charcoal or a clean, which is thinned paint. Merits of these paintings became widely acclaimed.

Artists of Oil Painting in India
India has witnessed a good number of oil painters starting from Raja Ravi Verma in the 19th century to M F Hussainin 20th century. Raja Ravi Verma cultured this newly introduced modus operandi of that time with a complicated struggle. He was therefore proficient to adopt this style in such a style that the viewers of his paintings became mesmerized by the sensible effect of this medium. With its own beauty and delicacy and beauty the oil painting nearly recreates life itself.

The family of Indian Oil painters has been effectively carried forward by numerous all through the country. Geeta Vadhera and George Oommen are amongst the contemporary Indian oil painters.

Employing Oil in Paintings
The art of oil painting is pure magic. The combination of linseed oil or drying oil and pigments create magic on canvases. Poppy seed oil, safflower oil and walnut oil are among other oils that were occasionally used in Indian oil paintings. Various oils are frequently used by oil painters in a specific painting depending on pigments and the preferred effects. Some differences are noticed in the sheen of the paints according to the type of oil used. Also, oil paints develop a detailed feel with the medium. Lately, other painting media were used in Indian oil paintings like varnishes, resins and cold wax. They can help a painter for altering the flawlessness or density of the paint’s capacity to grasp or the brushstroke.


Oil paintings of India showcase the beat of Indian existence. Everyday chores take on a ritualistic characteristic when they are skillfully captured in oil paints. When the uncomplicated themes are blended with the natural elegance and poise of the subjects and the unrivaled Indian palette, the results are eye-catching. Oil painting in India has added to the grace of the varied art forms of the country.

Mahatma Gandhi Pravasi Suraksha Yojana (MGPSY)

An estimated 5 million Indian Nationals with ECR (Emigration Check Required) passports are working on temporary employment/contract visas in the Gulf Countries.

It is observed that a majority of the earnings periodically remitted by overseas Indian workers to their families in India are rarely accumulated as savings and often cause only a temporary improvement in the consumption expenditure of their families. As a result majority of overseas Indian workers face the risk of poverty when they return to India and when they are too old to work. Overseas Indian workers are largely excluded from formal social security benefits available to residents of ECR countries.

Overseas Indian workers are largely excluded from formal social security benefits available to residents of ECR countries.

Thus, to provide them social security, the Ministry has launched Mahatma Gandhi Pravasi Suraksha Yojana(MGPSY) in May 2012. The objective of MGPSY is to encourage and enable overseas Indian workers having Emigration Check Required (ECR) passports going to ECR countries, to (a) save for their return and resettlement and (b) save for their pension. They are also provided Life Insurance cover against natural death, during the period of coverage, without any additional payment by them.

Overseas Indian workers with ECR passports and aged between 18 and 50 years on an employment/contract visa are eligible to join the scheme.

The Ministry also contributes, for a period of five years, or till the return of workers to India, whichever is earlier, as under:

a) Rs.1,000 per subscriber who saves between Rs.1,000 and Rs.12,000 per annum in their National Pension Scheme(NPS) -Lite account;
b) An additional contribution of Rs.1,000 per annum for overseas Indian women workers who save between Rs.1,000 and Rs.12,000 per annum in National Pension Scheme(NPS)-Lite account;
c) An annual contribution of Rs. 900 per annum per subscriber who saves at least Rs. 4000 per annum towards Return and Resettlement fund;
d) Rs.100/- for life insurance cover of Rs.30,000 per year against natural death and Rs.75,000 against death by accident through the Janshree Bima Yojana of Life Insurance Corporation of India (LIC).

There is an integrated enrollment process for the subscribers who will be issued a unique MGPSY account number upon enrolment. On their return to India, the subscriber can withdraw the Return and Resettlement savings as a lump sum.


However, the subscriber would be able to continue savings for their old age in the NPS-Lite in line with the Swavalamban Scheme. Alternatively subscriber can withdraw pension corpus as per the guidelines prescribed by the Pension Fund Regulatory Development Authority (PFRDA).

गुरुवार, 8 अगस्त 2013

Silk Painting In India

silk painting in India is an exclusive way to fashion a delightful sense of charisma. Indian style of silk painting highlights grace, pliability, as well as suppleness. Here silk is dexterously used as a canvas for paintings and portraits. Silk paintings enjoy an eternal appeal with distinctive textures, motifs that are ethnic to elaborate. A collection of stimulating colors is used in this painting. The colors are amalgamated with soft and smooth brush strokes to fashion an essential part of the silk fabric. The elegance and beauty of Silk paintings of India is painted in the account that follows.

History of Silk Painting in India
Silk painting traces back to the 2nd century AD when wax resist method for decorating silk was used. Silk painting in India touched great heights during Mughal rule in 17th – 19th centuries. It was by and large practiced in Rajasthan. Paintings and portraits on silk for articles of decoration became trendy.

Themes of Silk Painting in India
Themes of silk painting vary from simple birds, animals, flowers to delicate flower-patterned motifs, designs, landscapes, culture paintings and mythological figures. Beauty of the effect depends upon the quality of the silk used and the type of painting method used in particular paintings. Therefore they range from ethnic and course to complex and sophisticated. Most frequently these paintings depict beautiful women. A superior effect is produced with use of gemstone and gold powder. Brilliant and glowing colors further enhance its richness.

Silk Painting Fabrics
The ethereal elegance and beauty of the silk fabric articulate volumes about this tasteful art. A great variety of silk fabrics can be used for silk painting. Some of the silk fabrics that can be painted upon are Silk Habotai, Silk gauze, Silk dupion, Silk twill, Raw silk, Flat crepe, Crepe back suit satin, Silk organza, Silk chiffon, Crepe de chine, Decore satin and Silk velvet.

Special Effects in Silk Painting in India
There are definite special effects that can be produced in silk painting with use of certain techniques. Water-like effects can be attained by applying paints or dyes using eye dropper, mist sprayer or other tools that generate abstract effect. By sprinkling salt on damp silk and brushing it off when it is dry gives appealing textural effects. Various sizes of salt yielding different effects are there.

By applying alcohol to the dye painted silk, beautiful effects on the paint are created. It helps to produce contrasting lighter and darker spots.

Silk Painting Paints and Dyes
There are special-purpose dyes and paints used in silk painting. Apparent dyes and transparent flow capable silk are best on white silk fabrics. Black silk demands opaque paints that leave the silk firm.

Silk paints are light fast, colorfast, non-toxic. They can be used for all sorts of traditional silk painting methods. Silk paints are colored by pigments. While dyes need steaming, paints just need heat set and iron. Silk painting exemplifies flexibility of painting techniques and expertise. A range of painting options can be used to augment the beauty of the silk painting. Dyes give flamboyancy and wash-fast results. These dyes don’t leave any feel on the silk.


Silk painting in India as an art form bloomed beautifully. These paintings can be classified as Indian epic, Mughal, religious, animal, bird, and village paintings. Silk painting can be done on a whole host of silk products and fabrics. Silk painting is more and more done on sarongs, scarves, and bandanas, in clothing, and sleep wear. Wall hangings, portraits, tapestries, sheets, curtains and home decor furnishings on silk canvas are gaining popularity. These paintings are a glorious addition to the paintings of India.

‘खिदमत’ हेल्‍पलाइन

केंद्रीय अल्‍पसंख्‍यक कार्यमंत्री श्री के. रहमान खान ने आज यहां खिदमतनाम की एक समर्पित निशुल्‍क हेल्‍पलाइन-1XXX-XX-2001 शुरू की। खिदमतहेल्‍पलाइन भारत के अल्‍पसंख्‍यकों को समर्पित करते हुए उन्‍होंने आशा व्‍यक्‍त की कि यह समाज के सभी वर्गों विशेषकर वंचित वर्गों के समावेशी विकास का राष्ट्रपिता महात्‍मा गांधी का सपना साकार करेगी। इस अवसर पर अपने संबोधन में श्री के. रहमान खान ने कहा कि यह सेवा ताजा सूचना के माध्‍यम से अल्‍पसंख्‍यकों को सशक्‍त बनाएगी। यह हेल्‍पलाइन अब चालू हो चुकी है। शुरूआत में यह हेल्‍पलाइन सभी कार्यदिवसों के दौरान सुबह नौ बजे से शाम छह बजे तक खुली रहेगी। श्री खान ने कहा कि इसकी सफलता और मांग को देखते हुए इसे नई सुविधाओं से युक्‍त करके 24×7 भी बनाया जा सकता है। उन्‍होंने कहा कि बदलते भारत में जब फोन सेवाएं और मोबाइल देश के कोने-कोने तक पहुंच चुके हैं। ऐसे में यह समर्पित हेल्‍पलाइन संभवत: विकास और कल्‍याणकारी कार्यक्रमों के बारे में सूचना देने का बेहतर विचार साबित हो सकती हैं।

उन्‍होंने कहा कि समय पर मिली सही जानकारी ताकत होती है। श्री खाने ने कहा कि खिदमतहेल्‍पलाइन के माध्‍यम से मंत्रालय ने सभी स्‍तरों के अल्‍पसंख्‍यकों को समान रूप से शक्ति सम्‍पन्‍न बनाने का प्रयास किया है।

अल्‍पसंख्‍यक कार्य मंत्रालय ने अल्‍पसंख्‍यकों के बुनियादी विकास, शैक्षिक सशक्तिकरण, आर्थिक सशक्तिकरण, महिला सशक्तिकरण और वक्‍फ विकास के लिए अनेक विकास और कल्‍याणकारी योजनाओं का प्रतिपादन और कार्यान्‍वयन किया है।

विभिन्‍न कार्यक्रमों और योजनाओं को कार्यान्वित करते समय व्यवहारिक दिक्‍कतों के अलावा मंत्रालय को महसूस हुआ कि कार्यक्रमों/योजनाओं के बारे में लक्षित आबादी में जानकारी का अभाव सबसे बड़ी रूकावट है। पिछले कुछ वर्षों से मंत्रालय ने हालांकि नियमित रूप से प्रिंट, इलेक्‍ट्रॉनिक और नये मीडिया माध्‍यमों के जरिए मल्‍टी मीडिया प्रचार शुरू किया है। इसके बावजूद कार्यक्रमों की पहुंच व्‍यापक बनाए जाने की जरूरत है।

मंत्रालय ने यह समर्पित निशुल्‍क हेल्‍पलाइन इसलिए शुरू की है, क्‍योंकि उसका मानना है कि लक्षित आबादी को एक मंच की जरूरत है। यहाँ से वे आसान भाषा में बातचीत के माध्‍यम से नई जानकारी प्राप्‍त कर सके और उनकी अधिकांश जिज्ञासाएं शांत हो सके।


इस हेल्‍पलाइन की शुरूआत के साथ ही किसी गांव या दूरदराज के इलाके में बैठा कोई छात्र छात्रवृत्ति योजनाओं के बारे में तत्‍काल सूचना प्राप्‍त कर सकता है। किसी बेरोजगार अल्‍पसंख्‍यक नौजवान को मंत्रालय की ओर से चलाए जाने वाले कौशल विकास प्रशिक्षण कार्यक्रमों तथा रोजगार के अवसरों के बारे में तत्‍काल जानकारी प्राप्‍त हो सकती है।

राष्‍ट्रीय मॉबि‍लि‍टी योजना

भारी उद्योग और लोक उद्यम मंत्री श्री प्रफुल पटेल ने आज लोक सभा में एक प्रश्‍न के लि‍खि‍त उत्‍तर में बताया कि‍ सरकार ने इलेक्‍ट्रि‍क वाहनों (हाइब्रि‍ड वाहनों सहि‍त) के संवर्द्धन के लि‍ए राष्‍ट्रीय इलेक्‍ट्रि‍क मोबि‍लि‍टी मि‍शन प्‍लान (एनईएमएमपी-2020) नामक एक मि‍शन प्‍लान तैयार कि‍या है। एनईएमएमपी-2020 बैटरी प्रौद्योगि‍की समेत प्रौद्योगि‍की में अनुसंधान एवं वि‍कास में सहायता के लि‍ए ऐसे वाहनों की मांग सृजि‍त करने और वर्ष 2020 तक ऐसे वाहनों के वि‍नि‍र्माण में महत्‍वपूर्ण वृद्धि‍ करने के लि‍ए इलेक्‍ट्रि‍क और हाइब्रि‍ड वाहनों के वि‍नि‍र्माण और उपयोग को सुकर बनाने के लि‍ए हस्‍तक्षेपों की कड़ी के माध्‍यम से रोडमैप उपलब्‍ध कराता है। एनईएमएमपी- 2020 का परम उद्देश्‍य यही है कि‍ इलेक्‍ट्रि‍क और हाइब्रि‍ड वाहनों का उत्‍तरोत्‍तर समावेशन करते हुए देश की ऊर्जा सुरक्षा में बढ़ोतरी की जाए और पर्यावरण पर परि‍वहन के असर को कम कि‍या जाए। 

उन्‍होंने कहा कि‍ सरकार हरि‍त ओर स्‍वच्‍छ वाहनों के लि‍ए अनुसंधान ओर वि‍कास सहि‍त ऑटोमोटि‍व अनुसंधान और वि‍कास संबंधी कार्यकलापों को सहायता प्रदान कर रही है। भारी उद्योग वि‍भाग ने ऑटोमोटि‍व उपकर जो कि‍ वाहनों की बि‍क्री पर लगाया जाता है, के माध्‍यम से बहुत सारी अनुसंधान और वि‍कास परि‍योजनाओं को वत्‍तपोषि‍त कि‍या है। इसमें आईसीएटी, नेट्रि‍प द्वारा वि‍कसि‍त कि‍या जा रहा रेट्रोफि‍ट हाइब्रि‍ड कि‍ट सि‍म्‍युलेटर, एआरएआई आदि‍ वि‍कसि‍त कि‍या जा रहा हाइब्रि‍ड सि‍म्‍युलेटर का वि‍कास शामि‍ल है। इसके अति‍रि‍कत, वि‍ज्ञान और प्रौद्योगि‍की वि‍भाग भी इस प्रयास का समर्थन करता जा रहा है। 

उन्‍होंने कहा कि‍ एनईएमएमपी-2020 रोडमैप में इलेक्‍ट्रि‍क और हाइब्रि‍ड वाहनों और अधि‍क अपनाए जाने के लि‍ए अधि‍क सहायता देने के लि‍ए व्‍यापक मांग सृजन स्‍कीम तथा अनुसंधान और वि‍कास तथा बुनि‍यादी सुवि‍धाओं के सृजन को प्रोत्‍साहि‍त करने की परि‍कल्‍पना की गई है। इन हस्‍तक्षेपों की वि‍शि‍ष्‍ट स्‍कीम को अंति‍म रूप राष्‍ट्रीय बोर्ड फॉर इलेक्‍ट्रि‍क मोबि‍लि‍टी (एनबीईएम) के वि‍चार के लि‍ए कि‍या जा रहा है। 

बुधवार, 7 अगस्त 2013

वैज्ञानिकों -किसानों -नीति निर्धारकों के बीच समन्‍वय के 25 वर्ष

एम. एस. स्‍वामीनाथन अनुसंधान फाउंडेशन (एमएसएसआरएफ) एक गैर-लाभकारी अनुसंधान संगठन है, जिसकी स्‍थापना 1988 में की गई थी। फाउंडेशन इस वर्ष अपने 25 वर्ष पूरे कर रहा है।
एमएसएसआरएफ की शुरूआत एक छोटे से संगठन के रूप में हुई। चेन्‍नई, ओडिशा में कोरापुट, केरल में कालपेट्टा, तमिलनाडु में कावेरीपूमपट्टीनम और पुडुचेरी में अनुसंधान और प्रशिक्षण सुविधाओं के कारण आज इसने राष्‍ट्रीय और अंतर्राष्‍ट्रीय स्‍तर पर अपनी पहचान बना ली है। तटवर्ती अनुसंधान कार्यक्रम के लिए जल्‍दी ही चिदम्‍बरम में एक प्रयोगशाला और प्रशिक्षण केन्‍द्र शुरू होने वाला है। कोरापुट और कालपेट्टा में सुविकसित क्षेत्रीय केन्‍द्रों के अलावा, कृषि संबंधी गंभीर परेशानियों का सामना कर रहे विदर्भ क्षेत्र में तीसरा प्रमुख अनुसंधान और प्रशिक्षण केन्‍द्र स्‍थापित किया जा रहा है।
वैज्ञानिक खोजों को जमीनी प्रयोग में बदलने के लिए प्रक्रिया अनुसंधान केन्‍द्र के रूप में एमएसएसआरएफ की शुरूआत की गई थी। इसमें दो तरह से अनुसंधान किया जाता है: खेती में लगे परिवारों के साथ सहभागी अनुसंधान और दूसरी तरफ  जमीन से जुड़े अनुभवों और सार्वजनिक नीति के बीच परस्‍पर मिलकर काम करने के लिए नीतिगत अनुसंधान। एमएसएसआरएफ पर्यावरण प्रोद्योगिकी और जानकारी के साथ प्रकृति के अनुरूप, ग़रीबों, महिलाओं और खेती और गैर-कृषि आजीविका के लिए निरंतर कार्य कर रहा है।
यह निम्‍नलिखित छह प्रमुख क्षेत्रों में अनुसंधान और विकास कार्य करता है:
तटीय प्रणालियां अनुसंधान - इसमें मैनग्रोव वनों को बहाल करने, मछली पालन से जुड़े समुदाय के लिए वैकल्पिक आजीविका की व्‍यवस्‍था आदि शामिल है।
जैव विविधता - इसमें लुप्तप्राय और औषधीय वनस्‍पतियों के बारे में विस्‍तार से रिपोर्ट तैयार करना, जैव विविधता रजिस्‍टर बनाने के लिए गांव में रहने वाले समुदायों को आवश्‍यक प्रशिक्षण प्रदान करना, जैव विविधता से जुड़ी विलुप्‍त प्राय प्रजातियों की रक्षा करना और अनुवांशिक संसाधनों की रक्षा के जरिए जीन और बीजों का संरक्षण।     जैव टेक्‍नोलॉजी - इसमें नमक तैयार करना और सूखे को झेल सकने वाली ट्रांसजेनिक चावल की किस्‍में, विभिन्‍न जैव ईंधन/ फसलों / पौधों, शैवाल विविधता में तेलों की मात्रा की उपलब्‍धता का परीक्षण।
पर्यावरण टेक्‍नोलॉजी - इसमें जैव -ग्रामों की स्‍थापना शामिल है। जैव-ग्राम प्रतिमान में प्राकृतिक संसाधनों का धारणीय प्रबंधन और कृषि और गैर-कृषि आजीविकाओं का धारणीय विकास शामिल है। खाद्यसुरक्षा - एमएसएसआरएफ पोषण संबंधी कृषि को बढ़ावा देने के तरीके विकसित करने के काम में लगा हुआ है। यह मुख्‍य रूप से लघु कृषि उत्‍पादन में सुधार पर अपना ध्‍यान लगा रहा है, जो देश की आबादी के एक बड़े हिस्‍से की आजीविका सुरक्षा प्रणाली की रीढ़ है। कृषि में पोषण को बनाए रखने के लिए एक कार्यक्रम कोरापुट, कोल्‍ली पहाडि़यों, वायंद और विदर्भ शुरू किया गया है, जहां कुपोषण की समस्‍या काफी विकट है। इस कार्यक्रम को फार्मिंग सिस्‍टम फॉर न्‍यूट्री‍शन (एफएसएम) नाम दिया गया है। खाद्य सुरक्षा पर एमएसएसआरएफ कार्यक्रम के दो प्रमुख तत्‍व हैं : समुदाय के आधार पर बीच बचाव और अनुसंधान। इसमें से पहले ने कई तरह से बीच बचाव करके समाज के सामाजिक और आर्थिक रूप से वंचित वर्गों के लिए खाद्य सुरक्षा को बढ़ावा देने पर अपना ध्‍यान केन्द्रित किया है। दूसरे ने अनुसंधान रिपोर्टों को तैयार करने पर अपना ध्‍यान लगाया है, जो देश की खाद्य सुरक्षा से जुड़े मुद्दों के लिए बृहद दृष्टिकोण प्रदान करती है।
सूचना, शिक्षा और संचार - इसमें धारणीय विकास से जुड़े मुद्दों का समाधान करने के लिए विभिन्‍न सूचना संचार प्रौद्येगिकी उपकरणों का इस्‍तेमाल शामिल है, ताकि संसाधनों से वंचित, निरक्षर और अकुशल ग्रामीण महिलाओं और पुरूषों को सशक्‍त बनाया जा सके।

एमएसएसआरएफ का ग़रीबी उन्‍मूलन के प्रति दृष्टिकोण कार्य कुशलता और ज्ञान तथा सामुदायिक संगठनों को बढ़ावा देने की दिशा में एक महत्‍वपूर्ण कदम है। ग्रामीण और आदिवासी परिवारों को इससे जो भी मदद मिली है, वह जैव प्रोद्योगिकी जैसे विज्ञान के अग्रणी क्षेत्रों से प्राप्‍त जानकारी, जमीनी स्‍तर के प्रबंध ढांचे जैसे जैव -ग्राम परिषद और स्‍व-सहायता समूह के कारण संभव हुई है।

(पसूका)

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