शुक्रवार, 2 अगस्त 2013

Patachitra Painting In India

The Patachitra is the folk painting of Orissa. It has a history of grand antiquity. Patta exactly means cloth and Chitra means image in Sanskrit. Patachitra paintings in India demonstrate the use of strong line and shining colors. These are religious paintings that swathe events and themes from Indian mythology and Puranas. They are made chiefly on silk or on old cotton glued with paper. Patachitra paintings are created in regular series like Dashavatar and activities of Lord Krishna and Rama. Patachitra paintings basically resemble to the old murals of Kalinga region as old as 5th century B C. The paramount Patachitra paintings are in and around Puri, especially Raghurajpur. More about Patachitra painting in India is painted in the account below.

History of Patachitra Painting
Traditionally, these paintings were done by males. Though, some women have now taken up this art form. The origin of Patachitra paintings is associated to the renowned Jagannath temple of Puri, built by the Choda-GangaDeva. Demands of numerous pilgrims coming to the Jagannath shrine, kept this painting style alive for centuries. Usually, patachitras are located as the initial aboriginal paintings in the state of Orissa, spaced out from bitty evidence of cave paintings in Udaygiri, Khandagiri,and Sitabhinji.

The history of patachitra painting is inextricably connected to the history of the Jagannath cult. The patachitra painters are temple functionaries, living in and around Puri. Now, this painter community has spread beyond Puri district. Also they have begun using an assortment of non-religious themes in their paintings. But, this has not negatively affected the formation of patachitras based on Jagannath icons and long-established religious themes. At the same time, these are still the center of the pictographic content of patachitra paintings.

Materials Required for Patachitra Painting
The palette of Patachitra artist consists of a diversity of colors such as red, white, blue, yellow, green, and black. All these colors are derived from natural sources. For black color lamp soot is used, yellow comes from ‘Hartala’ stone, white is made from conch shells, red comes from ‘Hingulal’ stone, blue comes from indigo and green is made from plants. Then, these extracts are cooked with gum from ‘kaintha’ (elephant apple) fruit tree, and then colors become effortless to work with. The paintbrushes to prepare these paintings are classically made of the keya root. The improved ones have wooden handles and mouse hair is used to make them. The center of the brush has approximately a dozen long mouse hair. When these hairs are dipped in paint, they have a needle-point edge.

Themes and Symbolism of Patachitra Paintings
Patachitra painting in India is a very much admired folk art of Orissa. Here detail and definition is paid close consideration. Hindu mythological themes and particularly images of Lord Jagannath, Balabhadra and Subhadra are significantly found in this art form. Illustrations of fables, folk-tales and myths, scenes from the epics, court ladies, royal processions, birds and animals are also portrayed in these paintings.

Symbolism used in Patachitras for gods is very reasonable in terms of shape, form and accessories. Observing the continuity and resemblance in the images illustrated in the various patachitras is very easy. Borders in this painting differ from broad lines to geometrical patterns and flower-patterned depictions with elaborate detailing.

Patachitra painting in India is highly praised by art critics for the extraordinary and unbelievable pictorial conceptions they posses. Also, the idiosyncratic and pictorial conventions, the summing up and strange system of line formulation and the intentionally wayward color schemes add to the glory of Patachitra paintings.


सूचना अधिकार अधिनियम, 2005 में संशोधन


केन्‍द्रीय मंत्रिमंडल ने सूचना अधिकार अधिनियम के उद्देश्‍य से राजनीतिक दलों को जन प्राधिकरण की परिभाषा से बाहर रखने के लिए सूचना अधिकार अधिनियम, 2005 में संसद के आगामी सत्र में संशोधन करने के लिए एक विधेयक लाने की मंजूरी दी है।

केन्‍द्रीय सूचना आयोग ने अपने 03.06.2013 के निर्णय में कांग्रेस, भाजपा, माकपा, भाकपा, बसपा और राकांपा जैसे राजनीतिक दलों को सूचना अधिकार अधिनियम की धारा 2(एच) के अ‍धीन जन प्राधिकरण माना है। आयोग ने मुख्‍य रूप से इन तथ्‍यों पर विश्‍वास व्‍यक्‍त किया है कि इन राजनीतिक दलों को केन्‍द्र सरकार से काफी (अप्रत्‍यक्ष) वित्‍तीय मदद मिलती है और वे सार्वजनिक कर्तव्‍य निभाते हैं। राजनीतिक दल योजना आयोग के साथ जन प्रतिनिधित्‍व अधिनियम, 1951 की धारा 29ए के प्रावधानों के अधीन पंजीकृत हैं। राजनीतिक दलों के संदर्भ में विस्‍तृत प्रावधान जन प्रतिनिधित्‍व अधिनियम में विस्‍तार से दिये गये हैं, जिनमें राजनीतिक दलों, प्रत्‍याशियों और दान से संबंधित जानकारी देने का प्रावधान है। कथित अधिनियम में परस्‍पर निम्‍नलिखित प्रावधान हैं :-

•             निर्वाचन आयोग के संघों और निकायों के साथ राजनीतिक दलों के रूप में पंजीकरण (धारा 29ए)

•             राजनीतिक दल अंशदान स्‍वीकार करने के हकदार (धारा 29बी)

•             राजनीतिक दलों द्वारा प्राप्‍त दान की घोषणा (धारा 29सी)

•             परिसम्‍पत्ति और देयताओं की घोषणा (धारा (75ए)

•             चुनाव खर्च और अधिकतम राशि का खाता (धारा (77)

•             जिला निर्वाचन अधिकारी के पास खाता प्रस्‍तुत करना (धारा 78)

•             झूठा शपथ पत्र प्रस्‍तुत करने पर जुर्माना (धारा 125ए)

जन प्रतिनिधित्‍व अधिनियम के उपरोक्‍त प्रावधान ये दर्शाते हैं कि इस अधिनियम में वित्‍त पोषण, इसकी घोषणा और झूठा शपथ पत्र प्रस्‍तुत करने पर जुर्माने के पर्याप्‍त प्रावधान हैं। आयकर अधिनियम 1961 की धारा 13ए के अधिनियम राजनीतिक दलों के लिए कर से छूट का दावा करने के लिए लेखा परीक्षा किये गये खातों के साथ टैक्‍स अधिकारियों के समक्ष निर्धारित तिथि से पूर्व आयकर विवरण भरना अपेक्षित है। आयकर अधिनियम की धारा 138 के अनुसार आयकर विभाग के समक्ष दी गई जानकारी साधारण रूप से गोपनीय होगी, लेकिन इसे तभी सार्वजनिक किया जा सकेगा, अगर आयकर आयुक्‍त की फैसले में यह जनहित में हो।

जन प्रतिनिधित्‍व अधिनियम 1951 की धारा 10ए के अधीन कानून की अपेक्षाओं के अनुसार चुनाव व्‍यय का लेखा प्रस्‍तुत करने में असफल रहने पर ऐसा करने वाले प्रत्‍याशी को अयोग्‍य ठहराये जाने की तिथि से 3 साल के लिए चुनाव आयोग द्वारा अयोग्‍य ठहराया जा सकता है।


सूचना अधिकार अधिनियम को संविधान के अनुच्‍छेद 19 के अधीन सूचना के अधिकार के कार्यान्‍वयन के लिए प्रभावी ढांचा उपलब्‍ध कराने के लिए बनाया गया था। जन प्राधिकरण की परिभाषा सूचना अधिकार अधिनियम की धारा 2 के खंड (एच) में दी गई है। राजनीतिक दल सूचना अधिकार अधिनियम में दी गई जन प्राधिकरण की परिभाषा के दायरे में नहीं आते हैं, क्‍योंकि वे आरपी एक्‍ट, 1951 के अधीन केवल पंजीकृत और मान्‍यता प्राप्‍त हैं।  

गुरुवार, 1 अगस्त 2013

पर्यावरण के विभिन्न घटक

हम पर्यावरणशब्द से परिचित हैं। इस शब्द का प्रयोग टेलीविजन पर, समाचार पत्रों में तथा हमारे आस-पास लोगों द्वारा प्राय: किया जाता है। हमारे बुजुर्ग हमसे कहते हैं कि अब वह पर्यावरण / वातावरण नहीं रहा जैसा कि पहले था, दूसरे कहते हैं हमें स्वस्थ पर्यावरण में काम करना चाहए। पर्यावरणीयसमस्याओं पर चर्चा के लिए विकसित एवं विकासशील देशों के वैश्विक सम्मेलन भी नियमित रूप से होते रहते हैं। इस आलेख में हम चर्चा करेंगे कि विभिन्न कारक पर्यावरण में किस प्रकार अन्योन्यक्रिया करते हैं तथा पर्यावरण पर क्या प्रभाव डालते हैं। हम जानते है  कि विभिन्न पदार्थों का चक्रण पर्यावरण में अलग-अलग जैव-भौगोलिक रासायनिक चक्रों में होता है। इन चक्रों में अनिवार्य पोषक जैसे नाइट्रोंजन, कार्बन, ऑक्सीजन एवं जल एक रूप से दूसरे रूप में बदलते हैं। अब हम जानेंगे कि मनुष्य की गतिविधियाँ इन चक्रों को किस प्रकार प्रभावित करती हैं।

क्या होता है जब हम अपने अपशिष्ट पर्यावरण में डालते हैं?
अपनी दैनिक गतिविधियों में हम बहुत से ऐसे पदार्थ उत्पादित करते हैं जिन्हें फेंकना पड़ता है। इनमें से अपशिष्ट पदार्थ क्या हैं? जब हम उन्हें फेंक देते हैं तो उनका क्या होता है?

हम  जैव प्रक्रमके विषय में जानते है कि हमारे द्वारा खाए गए भोजन का पाचन विभिन्न एंजाइमों द्वारा किया जाता है। विचार कीजिये कि एक ही एंजाइम भोजन के सभी पदार्थों का पाचन क्यों नहीं करता? एंजाइम अपनी क्रिया में विशिष्ट होते हैं। किसी विशेष प्रकार के पदार्थ के पाचन/अपघटन के लिए विशिष्ट एंजाइम की आवश्यकता होती है। इसीलिए कोयला खाने से हमें ऊर्जा प्राप्त नहीं हो सकती। इसी कारण, बहुत से मानव-निर्मित पदार्थ जैसे कि प्लास्टिक का अपघटन जीवाणु अथवा दूसरे मृतजीवियों द्वारा नहीं हो सकता। इन पदार्थों पर भौतिक प्रक्रम जैसे कि ऊ…ष्मा तथा दाब का प्रभाव होता है, परंतु सामान्य अवस्था में लंबे समय तक पर्यावरण में बने रहते हैं। वे पदार्थ जो जैविक प्रक्रम द्वारा अपघटित हो जाते हैं, ‘जैव निम्नीकरणीयकहलाते हैं। वे पदार्थ जो इस प्रक्रम में अपघटित नहीं होते अजैव निम्नीकरणीयकहलाते हैं। यह पदार्थ सामान्यत: अक्रिय हैं तथा लंबे समय तक पर्यावरण में बने रहते हैं अथवा पर्यावरण के अन्य सदस्यों को हानि पहुँचाते हैं।

पारितंत्र और इसके संघटक
सभी जीव जैसे कि पौधो, जंतु, सूक्ष्मजीव एवं मानव तथा भौतिक कारकों में परस्पर अन्योन्यक्रिया होती है तथा प्रकृति में संतुलन बनाए रखते हैं। किसी क्षेत्र के सभी जीव तथा वातावरण के अजैव कारक संयुक्त रूप से पारितंत्र बनाते हैं। अत: एक पारितंत्र में सभी जीवों के जैव घटक तथा अजैव घटक होते हैं। भौतिक कारक जैसे- ताप, वर्षा, वायु, मृदा एवं खनिज इत्यादि अजैव घटक हैं। उदाहरण के लिए, यदि आप बगीचे में जाएँ तो आपको विभिन्न पौधो जैसे- घास, वृक्ष, गुलाब, चमेली, सूर्यमुखी जैसे फूल वाले सजावटी पौधो तथा मेंढ़क, कीट एवं पक्षी जैसे जंतु दिखाई देंगे। यह सभी सजीव परस्पर अन्योन्यक्रिया करते हैं तथा इनकी वृद्धि, जनन एवं अन्य क्रियाकलाप पारितंत्र के अजैव घटकों द्वारा प्रभावित होते हैं। अत: एक बगीचा एक पारितंत्र है। वन, तालाब तथा झील पारितंत्र के अन्य प्रकार हैं। ये प्राकृतिक पारितंत्र हैं, जबकि बगीचा तथा खेत मानव निर्मित ; कृत्रिम पारितंत्र हैं।
हम जानते हैं कि जीवन निर्वाह के आधार जीवों को उत्पादक, उपभोक्ता एवं अपघटक वर्गों में बाँटा गया है।  कौन-से जीव सूर्य के प्रकाश एवं क्लोरोफ़िल की उपस्थिति में अकार्बनिक पदार्थों से कार्बनिक पदार्थ जैसे कि, शर्करा ;चीनी एवं मंड का निर्माण कर सकते हैं? सभी हरे पौधो एवं नील-हरित शैवाल जिनमें प्रकाश संश्लेषण की क्षमता होती है, इसी वर्ग में आते हैं तथा उत्पादक कहलाते हैं। सभी जीव प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष रूप से अपने निर्वाह हेतु उत्पादकों पर निर्भर करते हैं? ये जीव जो उत्पादक द्वारा उत्पादित भोजन पर प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष रूप से निर्भर करते हैं, उपभोक्ता कहलाते हैं। उपभोक्ता को मुख्यत: शाकाहारी, मांसाहारी तथा सर्वाहारी एवं परजीवी में बाँटा गया है।
ऐसी स्थिति की कल्पना कीजिए जब आप जल जीवशाला को साफ करना छोड़ दें तथा कुछ मछलियाँ एवं पौधो इसमें मर भी गए हैं। क्या आपने कभी सोचा है कि क्या होता है जब एक जीव मरता है? जीवाणु और कवक जैसे सूक्ष्मजीव मृतजैव अवशेषों का अपमार्जन करते हैं। ये सूक्ष्मजीव अपमार्जक हैं क्योंकि य जटिल कार्बनिक पदार्थों को सरल अकार्बनिक पदार्थों में बदल देते हैं जो मिट्‌टी ;भूमि में चले जाते हैं तथा पौधों द्वारा पुन: उपयोग में लाए जाते हैं। इनकी अनुपस्थिति में मृत जंतुओं एवं पौधों पर क्या प्रभाव पड़ेगा? क्या अपमार्जकों के न रहने पर भी मृदा की प्राकृतिक पुन:पूर्ति होती रहती हैं?

आहार श्रॄंखला एवं जाल
जीवों की एक श्रॄंखला जो एक-दूसरे का आहार करते हैं। विभिन्न जैविक स्तरों पर भाग लेने वाले जीवों की यह श्रॄंखला  आहार श्रॄंखला का निर्माण करती हैं। आहार श्रॄंखला का प्रत्येक चरण अथवा कड़ी एक पोषी स्तर बनाते हैं। स्वपोषी अथवा उत्पादक प्रथम पोषी स्तर हैं तथा सौर ऊर्जा का स्थिरीकरण करके उसे विषमपोषियों अथवा उपभोक्ताओं के लिए उपलब्ध कराते हैं। शाकाहारी अथवा प्राथमिक उपभोक्ता द्वितीय पोषी स्तर छोटे मांसाहारी अथवा द्वितीय उपभोक्ता तीसरे पोषी स्तर तथा बड़े मांसाहारी अथवा तृतीय उपभोक्ता चौथे पोषी स्तर का निर्माण करते हैं।

हम जानते हैं कि जो भोजन हम खाते हैं, हमारे लिए ऊर्जा स्रोत का कार्य करता है तथा विभिन्न कार्यों के लिए ऊर्जा प्रदान करता है। अत: पर्यावरण के विभिन्न घटकों की परस्पर अन्योन्यक्रिया में निकाय के एक घटक से दूसरे में ऊर्जा का प्रवाह होता है। जैसा कि हम पढ़ चुके हैं, स्वपोषी सौर प्रकाश में निहित ऊर्जा को ग्रहण करके रासायनिक ऊर्जा में बदल देते हैं। यह ऊर्जा संसार के संपूर्ण जैवसमुदाय की सभी क्रियाओं के संपादन में सहायक है। स्वपोषी से ऊर्जा विषमपोषी एवं अपघटकों तक जाती है जैसा कि ऊर्जा के स्रोतनामक पिछले आलेख में हमने जाना था कि जब ऊर्जा का एक रूप से दूसरे रूप में परिवर्तन होता है, तो पर्यावरण में ऊर्जा की कुछ मात्रा का अनुपयोगी ऊर्जा के रूप में ह्रास हो जाता है। पर्यावरण के विभिन्न घटकों के बीच ऊर्जा के प्रवाह का विस्तृत अध्ययन किया गया तथा यह पाया गया कि: एक स्थलीय पारितंत्र में हरे पौधो की पत्तयों द्वारा प्राप्त होने वाली सौर ऊर्जा का लगभग 1% भाग खाद्य ऊर्जा में परिवर्तित करते हैं। जब हरे पौधो प्राथमिक उपभोक्ता द्वारा खाए जाते हैं, ऊर्जा की बड़ी मात्रा का पर्यावरण में ई…ष्मा के रूप में ह्रास होता है, कुछ मात्रा का उपयोग पाचन, विभिन्न जैव कार्यों में, वृद्धि एवं जनन में होता है। खाए हुए भोजन की मात्रा का लगभग 10% ही जैव मात्रा में बदल पाता है तथा अगले स्तर के उपभोक्ता को उपलब्ध हो पाता है।  अत: हम कह सकते हैं प्रत्येक स्तर पर उपलब्ध कार्बनिक पदार्थों की मात्रा का औसतन 10% ही उपभोक्ता के अगले स्तर तक पहुँचता है।  क्योंकि उपभोक्ता के अगले स्तर के लिए ऊर्जा की बहुत कम मात्रा उपलब्ध हो पाती है, अत: आहार श्रॄंखला सामान्यत: तीन अथवा चार चरण की होती है। प्रत्येक चरण पर ऊर्जा का ह्रास इतना अधिक होता है कि चौथे पोषी स्तर के बाद उपयोगी ऊर्जा की मात्रा बहुत कम हो जाती है।

 सामान्यत: निचले पोषी स्तर पर जीवों की संख्या अधिक होती है, अत: उत्पादक स्तर पर यह संख्या सर्वाधिक होती है।  विभिन्न आहार श्रॄंखलाओं की लंबाई एवं जटिलता में काफी अंतर होता है। आमतौर पर प्रत्येक जीव दो अथवा अधिक प्रकार के जीवों द्वारा खाया जाता है, जो स्वयं अनेक प्रकार के जीवों का आहार बनते हैं। अत: एक सीधी आहार श्रॄंखला के बजाय जीवों के मध्य आहार संबंध शाखान्वित होते हैं तथा शाखान्वित श्रॄंखलाओं का एक जाल बनाते हैं जिससे आहार जालकहते हैं।

ऊर्जा प्रवाह के चित्र से दो बातें स्पष्ट होती हैं। पहली, ऊर्जा का प्रवाह एकदिशिक अथवा एक ही दिशा में होता है। स्वपोषी जीवों द्वारा ग्रहण की गई ऊर्जा पुन: सौर ऊर्जा में परिवर्तित नहीं होती तथा शाकाहारियों को स्थानांतरित की गई ऊर्जा पुन: स्वपोषी जीवों को उपलब्ध नहीं होती है। जैसे यह विभिन्न पोषी स्तरों पर क्रमिक स्थानांतरित होती है अपने से पहले स्तर के लिए उपलब्ध नहीं होती। आहार श्रॄंखला का एक दूसरा आयाम यह भी है कि हमारी जानकारी के बिना ही कुछ हानिकारक रासायनिक पदार्थ आहार श्रॄंखला से होते हुए हमारे शरीर में प्रविष्ट हो जाते हैं। आप कक्षा 9 में पढ़ चुके हैं कि जल प्रदूषण किस प्रकार होता है। इसका एक कारण है कि विभिन्न फसलों को रोग, एवं पीड़कों से बचाने के लिए पीड़कनाशक एवं रसायनों का अत्यधिक प्रयोग करना है ये रसायन बह कर मिट्‌टी में अथवा जल स्रोत में चले जाते हैं। मिट्‌टी से इन पदार्थों का पौधो द्वारा जल एवं खनिजों के साथ-साथ अवशोषण हो जाता है तथा जलाशयों से यह जलीय पौधो एवं जंतुओं में प्रवेश कर जाते हैं। यह केवल एक तरीका है जिससे वे आहार श्रॄंखला में प्रवेश करते हैं। क्योंकि ये पदार्थ अजैव निम्नीकृत हैं, यह प्रत्येक पोषी स्तर पर उतरोत्तर संग्रहित होते जाते हैं। क्योंकि किसी भी आहार श्रॄंखला में मनुष्य शीर्षस्थ है, अत: हमारे शरीर में यह रसायन सर्वाधिक मात्रा में संचित हो जाते हैं। इसे जैव-आवधर्न कहते हैं। यही कारण है कि हमारे खाद्यान्न-गेहूँ तथा चावल, सब्जियाँ, फल तथा मांस में पीड़ क रसायन के अवशिष्ट विभिन्न मात्रा में उपस्थित होते हैं। उन्हें पानी से धोकर अथवा अन्य प्रकार से अलग नहीं किया जा सकता।

हमारे क्रियाकलाप और पर्यावरण
हम सब पर्यावरण का समेकित भाग हैं। पर्यावरण में परिवर्तन हमें प्रभावित करते हैं तथा हमारे क्रियाकलाप/गतिविधियाँ हमारे चारों ओर के पर्यावरण को प्रभावित करते हैं। हम जानते हैं कि हमारे क्रियाकलाप पर्यावरण को किस प्रकार प्रभावित करते हैं। इस भाग में हम पर्यावरण संबंधी दो समस्याओं के विषय में विस्तार से चर्चा करेंगे, वे हैं- ओजोन परत का अपक्षय तथा अपशिष्ट निपटान।

ओजोन परत तथा अपक्षय
ओजोन के अणु ऑक्सीजन के तीन परमाणुओं से बनते हैं जबकि सामान्य ऑक्सीजन जिसके विषय में हम प्राय: चर्चा करते हैं, के अणु में दो परमाणु होते हैं। जहाँ ऑक्सीजन सभी प्रकार के वायविक जीवों के लिए आवश्यक है, वहीं ओजोन एक घातक विष है। परंतु वायुमंडल के ऊ…परी स्तर में ओजोन एक आवश्यक प्रकार्य संपादित करती है। यह सूर्य से आने वाले पराबैंगनी विकिरण से पृथ्वी को सुरक्षा प्रदान करती है। यह पराबैंगनी विकिरण जीवों के लिए अत्यंत हानिकारक है।
उदाहरणत:, यह गैस मानव में त्वचा का केंसर उत्पन्न करती हैं। वायुमंडल के उच्चतर स्तर पर पराबैंगनी विकिरण के प्रभाव से ऑक्सीजन अणुओं से ओजोन बनती है। उच्च ऊर्जा वाले पराबैंगनी विकिरण ऑक्सीजन अणुओं को विघटित कर स्वतंत्र ऑक्सीजन परमाणु बनाते हैं। ऑक्सीजन के ये स्वतंत्र परमाणु संयुक्त होकर ओजोन बनाते हैं जैसा कि समीकरण में दर्शाया गया है।

ओजोन
1980 से वायुमंडल में ओजोन की मात्रा में तीव्रता से गिरावट आने लगी। क्लोरो-फ़्लुओरो-कार्बन सीएफ़सी जैसे मानव संश्लेषित रसायनों को इसका मुख्य कारक माना गया। इनका उपयोग रेफ़्रिजेरेटर शीतलन एवं अग्निशमन के लिए किया जाता है। 1987 में संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम यूएनईपी में सर्वानुमति बनी कि सीएफ़सी के उत्पादन को 1986 के स्तर पर ही सीमित रखा जाए।

कचरा प्रबंधन
किसी भी नगर एवं कस्बे में जाने पर चारों ओर कचरे के ढेर दिखाई देते हैं। किसी पर्यटन स्थल पर जाइए, हमें विश्वास है कि वहाँ पर बड़ी मात्रा में खाद्य पदार्थों की खाली थैलियाँ इधर-उधर पैफली हुई दिख जाएँगी। पिछली कक्षाओं में हमने स्वयं द्वारा उत्पादित इस कचरे से निपटान के उपायों पर चर्चा की है। आइए, इस समस्या पर अधिक गंभीरता से ध्यान दें। हमारी जीवन शैली में सुधार के साथ उत्पादित कचरे की मात्रा भी बहुत अधिक बढ़ गई है। हमारी अभिवृत्त में परिवर्तन भी एक महत्वपूर्ण भूमिका निर्वाह करता है। हम प्रयोज्य निवर्तनीय वस्तुओं का प्रयोग करने लगे हैं। पैकेजिंग के तरीकों में बदलाव से अजैव निम्नीकरणीय वस्तु के कचरे में पर्याप्त वृद्धि हुई है। आपके विचार में इन सबका हमारे पर्यावरण पर क्या प्रभाव पड़ सकता है?
  

राजनीति के अपराधीकरण का अभिशाप

राजनीति को स्वच्छ बनाने का अभियान तभी सफल हो सकेगा, जब हमारे राजनीतिक दल दागदार लोगों को चुनाव में प्रत्याशी न बनाएं। देश की सर्वोच्च अदालत से आए संदेश को लागू करने के लिए चुनाव आयोग को अधिकार-संपन्न बनाना होगा।


आपराधिक  रिकॉर्ड वाले संसद सदस्यों, विधायकों और चुनाव लडऩे वाले उम्मीदवारों के बारे में सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के दूरगामी नतीजे होंगे। इसने देश की लोकतांत्रिक संस्थाओं को सख्त संदेश दिया है। केन्द्र सरकार और प्रमुख राजनीतिक दलों को इन निर्णयों पर अत्यंत परिपक्व और संतुलित प्रतिक्रिया देनी होगी। हालांकि सुप्रीम कोर्ट की व्यवस्था की वैधता को तकनीकी आधार पर नजरअंदाज करने पर राजनीतिक पार्टियों में लगभग आम राय बन चुकी है। राजनीतिक प्रतिष्ठान अपराधियों और राजनेताओं के बीच बढ़ती मिलीभगत और काले धन के प्रभाव की समस्या को सुलझाने से इनकार कर रहा है।


सुप्रीम कोर्ट ने 10 जुलाई, 2013 को ऐतिहासिक फैसला देते हुए जनप्रतिनिधित्व कानून, 1951 की धारा 8(4) को रद्द करते हुए कानून की धारा 8(3) के प्रावधानों को बहाल किया है। इसके तहत किसी भी अपराध के लिए दो साल की कैद से दंडित व्यक्ति के चुनाव लडऩे पर रोक लगा दी गई है और अपात्रता की अवधि छह वर्ष होगी। कानून की धारा 8(4) पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला सजा के बाद अपात्रता से संबंधित है। अदालतों में बड़ी संख्या में मुकदमों के पेंडिंग होने और आरोपी द्वारा जानबूझकर न्याय-प्रक्रिया में देर करने से अधिकतर मुकदमों में सजा ही नहीं हो पाती है। इस कारण जस्टिस वर्मा कमेटी ने जनप्रतिनिधित्व कानून की धारा 8(1)(ए) में संशोधन का प्रस्ताव किया है। इसके तहत भारतीय दंड संहिता, 1860 के तहत आने वाले अपराधों को शामिल करने का प्रस्ताव है।

ऐसे गंभीर अपराधों जिनमें पांच वर्ष या उससे भी अधिक की सजा का प्रावधान है, को परिभाषित करने के लिए इस प्रस्ताव को स्वीकार किया जाना चाहिए। इसके लिए जनप्रतिनिधित्व कानून में संशोधन करना पड़ेगा। गंभीर और नृशंस अपराधों के आरोपी उम्मीदवारों के मामलों को निश्चित समय में निपटाने के लिए विशेष फास्ट ट्रैक अदालतों की स्थापना जरूरी है। इससे उन लोगों के चुनाव लडऩे पर रोक लगेगी, जिनके खिलाफ अदालतों में मुकदमे चल रहे हैं। संसद और विधानसभाओं में राजनीतिक अनिश्चितता को कम करने के लिए इन फास्ट-ट्रैक अदालतों को निर्वाचित प्रतिनिधियों के मामले भी हाथ में लेने चाहिए।


जेल में बंद लोगों के चुनाव लडऩे पर सुप्रीम कोर्ट की रोक का आदेश कानूनी तौर पर सही है, लेकिन शासन में व्याप्त अनैतिकता के संदर्भ में इसका जबरदस्त दुरुपयोग हो सकता है। सत्ता की अनंत भूख, सरकारी मशीनरी का भारी दुरुपयोग, पुलिस का राजनीतिकरण और आपराधिक न्याय-प्रणाली के एकदम दुरुस्त न होने की पृष्ठभूमि में यह फैसला कठोर प्रतीत होता है। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट का निर्णय भारतीय लोकतांत्रिक व्यवस्था की संवैधानिक नैतिकता से मेल खाता है, लेकिन राजनीति के बढ़ते अपराधीकरण को देखते हुए इसकी न्यायिक समीक्षा होनी चाहिए।

यह निष्कर्ष निकाला गया है कि जनप्रतिनिधित्व कानून पर गौर करते हुए अदालत से राजनीतिक दलों द्वारा चुनावों के दौरान फैसले की भाषा का दुरुपयोग किए जाने की अनजाने में अनदेखी हो गई है। 2012 में भ्रष्टाचार विरोधी कार्टून बनाने के लिए कार्टूनिस्ट असीम त्रिवेदी की गिरफ्तारी कानून के दुरुपयोग का एक उदाहरण है। मौजूदा संसदीय व्यवस्था की अस्थिर स्थिति को देखते हुए कानून के उपयोग और उसकी भाषा के संबंध में अतिरिक्त सावधानी बरतने की जरूरत है। इस विषय पर स्थिति स्पष्ट करने के लिए किसी संभावित संशोधन के वास्ते सुप्रीम कोर्ट के फैसले की समीक्षा होनी चाहिए।


सुप्रीम कोर्ट ने 5 जुलाई 2013 के अपने फैसले में चुनाव आयोग को राजनीतिक दलों के चुनाव घोषणा-पत्रों पर दिशा-निर्देश तय करने के लिए कहा है। कोर्ट ने टिप्पणी की है कि अगर घोषणा-पत्र चुनाव की तारीखों की अधिसूचना जारी होने के पहले घोषित किए जाते हैं तो उन्हें अपवाद के बतौर आचार-संहिता के दायरे में लिया जाना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट का आदेश संविधान की धारा 324 के अनुरूप है। इस धारा के तहत चुनाव आयोग को स्वतंत्र एवं निष्पक्ष चुनाव कराने की जिम्मेदारी सौंपी गई है। सभी राजनीतिक दलों को चुनाव में समान अवसर देने, पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिए यह एक महत्वपूर्ण फैसला है।

कई विकसित देशों में चुनावों के दौरान वित्तीय लाभ पहुंचाने से संबंधित सभी वायदों की मीडिया, थिंक टैंक के स्तर पर और टेलीविजन की बहस में समीक्षा की जाती है, जबकि भारत में ऐसा नहीं होता है। भारत में राजनीतिक दल मुफ्त की चुनावी रेवडिय़ां बांटने के लिए होड़ करते हैं। अगर ईमानदारी से संबंधित प्रावधानों को लागू किया जाए तो वोट बैंक को आकर्षित करने के लिए राजनीतिक दल रेवडिय़ां नहीं बांटेंगे और विघटनकारी राजनीति नहीं करेंगे। गड़बड़ी करने वाले राजनीतिक दलों को दंडित करने का विशेष प्रावधान न होने की वजह से चुनाव आयोग को दिए गए अधिकार प्रभावी नहीं हैं। सुप्रीम कोर्ट ने 10 मई 2002 के फैसले में कहा है कि मौजूदा नियम-कानूनों में चुनाव आयोग को किसी राजनीतिक दल की मान्यता खत्म करने का अधिकार नहीं है। राजनीतिक दलों पर नियंत्रण की व्यवस्था के अभाव में देश के सामने जनता के प्रति जवाबदेही से परे निर्मम राजनीति का खतरा मंडरा रहा है। इसलिए कानून मंत्रालय को गैर विवादास्पद मसलों पर चुनाव आयुक्त के प्रस्तावों पर आधारित कानूनी सुधारों को फौरन लागू करना चाहिए।


महत्वपूर्ण बात यह है कि राजनीति को साफ-सुथरा बनाने का अभियान उस स्थिति में ही संभव हो सकेगा, जब हमारे राजनीतिक दल आपराधिक रूप से दागदार लोगों को चुनाव में प्रत्याशी न बनाएं। देश की सर्वोच्च अदालत से आए संदेश को लागू करने के लिए चुनाव आयोग को अधिकार-संपन्न बनाना जरूरी है। ऐसा करने पर ही हमारा राजनीतिक तंत्र भ्रष्टाचार और अपराधीकरण से निजात पा सकेगा। हमारे लोकतंत्र के 66वें वर्ष में क्या ऐसी आशा करना बहुत अधिक होगा?


  

बुधवार, 31 जुलाई 2013

भारत को एक फिल्‍म हब और स्‍थल बनाने को प्रोत्साहन देने के लिए एकल खिड़की को स्‍वीकृति

सूचना और प्रसारण मंत्रालय भारत और विदेशी फिल्‍म निर्माताओं के लिए भारत में फिल्‍मों की शूटिंग की स्‍वीकृति प्राप्‍त करने हेतु एक संकलित 'मानक संचालन प्रक्रिया' (एसओपी) को बनाने की दिशा में काम करेगा। इस प्रक्रिया में प्रत्‍येक महत्‍वपूर्ण हितधारक को शामिल करने के लिए संस्‍थागत और मानक मानदंडों का पालन किया जाएगा। एसओपी में चिह्नित मानदंडों में स्‍पष्‍ट रूप से फिल्‍म शूटिंग के लिए आवश्‍यक स्‍वीकृति, समय सीमा, अनुमति के संदर्भ में महत्‍वपूर्ण हितधारकों के उत्‍तरदायित्‍व की पहचान की जाएगी। सूचना और प्रसारण सचिव श्री बिमल जुल्‍का ने आज 'भारत में फिल्‍म शूटिंग के लिए एकल खिड़की स्‍वीकृति' पर राष्‍ट्रीय कार्यशाला के उद्घाटन समारोह को सम्‍बोधित कर रहे थे।

मंत्रालय की पहल के संदर्भ में सचिव महोदय ने उल्‍लेख किया कि एकल खिड़की स्‍वीकृति प्रणाली को संचालित करने के लिए मंत्रालय एक समर्पित ऑनलाइन पोर्टल बनाने की प्रक्रिया में है। इस वेबसाइट में शूटिंग के लिए विभिन्‍न आवश्‍यकताओं जैसे सीमा शुल्‍क स्‍वीकृति, वीजा, सांस्‍कृतिक संवेदनशीलता आदि विषयों पर आंकड़े भी उपलब्‍ध होंगे। वेबसाइट में आवेदकों के लिए राज्‍यवार सुविधाएं जैसे परिवहन, आतिथ्‍य, चिकित्‍सा और स्‍थानीय जानकारी भी उपलब्‍ध होंगी।

बदले हुए संचार परिप्रेक्ष्‍य में सामाजिक मीडिया की महत्‍ता का उल्‍लेख करते हुए श्री जुल्‍का ने कहा कि एकल खिड़की स्‍वीकृति तंत्र पर प्रमुख हितधारकों के साथ सक्रिय जुड़ाव और बातचीत की सही सूचना और सुविधा उपलब्‍ध कराने के लिए मीडिया के नए मंचों का सक्रिय रूप से उपयोग भी किया जाएगा। इससे ऑनलाइन आवेदन प्रक्रिया बिना किसी रुकावट के संचालित किया जा सकेगा।

इस अवसर पर संयुक्‍त सचिव (फिल्‍म) श्री राघवेन्‍द्र सिंह ने भारतीय फिल्‍म उद्योग के विकास का उल्‍लेख करते हुए भारत में फिल्‍म निर्माण की सुविधाओं पर एक प्रस्‍तुति भी दी। उन्‍होंने बताया कि घरेलू थियेटर राजस्‍व में 24 प्रतिशत की वृद्धि हुई है और इसने 124 बिलियन रुपये अर्थात 76 प्रतिशत तक का योगदान दिया है।


दिनभर चलने वाली कार्यशाला के दौरान केन्‍द्र, राज्‍य सरकार के प्रतिनिधियों, वरिष्‍ठ अधिकारियों, फिल्‍म निर्माताओं, फिक्‍की जैसे संगठनों के प्रतिनिधियों और इस क्षेत्र से जुड़े प्रमुख विभागों एवं संगठनों के विभिन्‍न हितधारकों के बीच महत्‍वपूर्ण विषयों पर विचार-विमर्श किया गया। अपनी तरह की इस पहली कार्यशाला के आयोजन से फिल्‍म निर्माण के क्षेत्र में आने वाली बाधाओं और इसके लिए दी जाने वाली सुविधाओं के साथ-साथ अनुभवों की भी समीक्षा की गई।  

एलटीयू- बड़े करदाताओं को एक ही जगह कर भुगतान की व्‍यवस्‍था

केंद्रीय वित्‍त मंत्री ने 2005-06 में अपने बजट भाषण के दौरान देश में बड़े करदाताओं के लिए इकाइयां (एलटीयू) स्‍थापित करने के प्रस्‍ताव की घोषणा की थी। इसका उद्देश्‍य सभी बड़ी कंपनियों को उत्‍पाद शुल्‍क, कॉरपोरेट कर, आयकर और सेवा कर भुगतान के लिए  एक ही जगह व्‍यवस्‍था उपलब्‍ध कराना है।
पहली एलटीयू की स्‍थापना बंगलौर में की गई थी जिसने 3 अक्टूबर, 2006 को कामकाज शुरू किया था। उसके बाद 1 दिसंबर, 2007 को चेन्‍नई , 27 मार्च, 2008 को मुम्‍बई और 2 जून, 2008 को दिल्‍ली में एलटीयू का संचालन शुरू हुआ था।
एलटीयू क्‍या है?
एलटीयू  राजस्‍व विभाग के अंतर्गत स्‍वत: पूर्ण  कर प्रशासन कार्यालय है जो केंद्रीय उत्‍पाद शुल्‍क्‍, आयकर/कॉरपोरेट कर और सेवा कर से संबंधित सभी मामलों के लिए एक ही जगह स्‍वीकृति संबंधी व्‍यवस्‍था उपलब्‍ध कराना है। कंपनियां ऐसे एलटीयू में उत्‍पाद रिटर्न, प्रत्‍यक्ष कर रिटर्न और सेवा कर रिटर्न  दाखिल कर सकती है। इन इकाइयों में प्रत्‍यक्ष और अप्रत्‍यक्ष कर/ शुल्‍क भुगतान, दस्‍तावेज और रिटर्न दाखिल करने, रिबेट/ रिफंड का क्‍लेम करने, विवादों का निपटारा आदि से संबंधित सभी मामलों में कर दाताओं को सहयोग के लिए आधुनिक सुविधाएं तथा प्रशिक्षित लोग उपलब्‍ध हैं।इस योजना का उद्देश्‍य कर अनुपालन लागत तथा कर/शुल्‍क निर्धारण के मामलों में समानता लाना है। एक पात्र करदाता एलटीयू योजना की सुविधा प्राप्‍त कर सकता है।
एलटीयू की स्‍थापना और प्रशासन  
लार्ज ट्रांसफर यूनिट की अध्‍यक्षता मुख्‍य आयुक्‍त करते हैं। एलटीयू में आयुक्‍तों को तैनात किया जाता है जिनके पास कार्यकारी और अपीलीय प्रभार होते हैं। इनके अधिकार और कार्य अन्‍य फील्‍ड कमीशनरों के जैसे होते हैं।मुख्‍य आयुक्‍त, एलटीयू में तैनात अपर/संयुक्‍त/उप/सहायक आयुक्‍त में से किसी को प्रत्‍येक कर दाता के लिए क्‍लाइंट एक्‍जिक्‍यूटिव के रूप में नियुक्‍त करता है।
एलटीयू में तैनात अधिकारियों के पास बड़े करदाता के सभी पंजीकृत संपत्ति के संबंध में  अखिल भारतीय अधिकार क्षेत्र है। पूर्व केंद्रीय उत्‍पाद और सेवा कर आयुक्‍तालय अधिकाररियों के पास समवर्ती अधिकार-क्षेत्र है।
एलटीयू आयकर अधिनियम, 1961, धन कर अधिनियम और कानून (प्रत्‍यक्ष कर के संदर्भ में), केंद्रीय उत्‍पाद अधिनियम, 1944 और नियम (केंद्रीय उत्‍पाद मामलों के संदर्भ में), सीमा अधिनियम/नियम (उत्‍पाद अधिकारियों द्वारा किए जाने वाले कामकाज के संदर्भ में), वित्‍त अधिनियम, 1994 तथा सेवा कर अधिनियम (सेवा कर मामलों के संदर्भ) के तहत वर्तमान में अनिवार्य सभी कानूनी कामकाज करता है। एलटीयू के प्रशासन में एलटीयू के मुख्‍य आयुक्‍त और आयुक्‍त सक्रिय भूमिका अदा कर सकते हैं।
एलटीयू के तहत पंजीकरण की पात्रता बड़े कारदाता जो 30.09.2006 की अधिसूचना में उल्लिखित थ्रेशहोल्‍ड लिमिट से अधिक प्रत्‍यक्ष और अप्रत्‍यक्ष कर का भुगतान करते हैं वे निम्‍नलिखित नियमों के अनुसार एलटीयू कि तहत पंजीकरण के पात्र हैं:
कोई व्‍यक्ति जो विनिर्माण या वस्‍तुओं का उत्‍पादन करता है या कर योग्‍य सेवा देता है जिसने वित्‍तीय वर्ष 2004-05 या एलटीयू के तहत पंजीकरण के लिए आवेदन दाखिल करने वाले वर्ष के पूर्ववर्ती वित्‍तीय वर्ष के दौरान भुगतान किया है।

·         नकद या चालू खाते के जरिए पांच करोड़ रूपए से अधिक‍का उत्‍पाद शुल्‍क; या
·         नकद या चालू खाते के जरिए पांच करोड़ रूपए से अधिक का सेवा कर या
·         आयकर अधिनियम, 1961 के तहत 10 करोड रूपए से अधिक का अग्रिम कर।
एलटीयू के तहत पंजीकरण की पद्धति
एलटीयू के तहत पंजीकरण के लिए बड़े करदाता को एलटीयू प्रमुख के पास सहमति पत्र दाखिल करना होता है, उसके बाद उनकी फॉर्म संबंधी स्‍वीकृति की प्रक्रिया और अधिकार-क्षेत्र का स्‍थानांतरण होता है।
बड़े करदाता कम से कम 30 दिन पहले सूचित करके निम्‍नलिखित वित्‍तीय वर्ष के पहले दिन से बड़े करदाता में शामिल हो सकता है।
बड़े करदाता के लिए लागू विभिन्‍न प्रावधान  
जब बड़े करदाता एलटीयू के तहत पंजीकरण कराता है तो  सेवा कर, उत्‍पाद और सीईएनवीएटी क्रेडिट यथोचित परिवर्तन सहित इस पर लागू होंगे जैसे वह निम्‍नलिखित के विषयाधीन अन्‍य कर निर्धारिती पर लागू होते हैं :
1. केंद्रीय उत्‍पाद नियम, 2002 के नियम 12बीबी के तहत भुगतान किए गए अतिरिक्‍त शुल्‍क के सेल्‍फ-एडजस्‍टमेंट के संबंध में प्रावधान लागू होते हैं जिसमें बड़े करदाता की विनिर्माण उत्‍पाद शुल्‍क योग्‍य वस्‍तुओं को अनुवर्ती अवधि में उसके द्वारा भुगतान की जाने वाले अतिरिक्‍त शुल्‍क में जोड़ने की अनुमति होती है।
2. सीईएनवीएटी के नियम 12 ए (4)  के तहत क्रेडिट के स्‍थानांतरण के संबंध में प्रावधान उसके किसी भी अन्‍य विनिर्माण और सेवा देने वाली इकायों पर लागू होते हैं।
3. सेवा कर रिटर्न दाखिल करने के संबंध में प्रावधान
4. केंद्रीय उत्‍पाद नियम, 2002 के नियम 12 बीबी और सीईएनवीएटी क्रेडिट नियम, 2004 के नियम 12 ए के तहत मध्‍यवर्ती वस्‍तुओं/ पूंजी वस्‍तुओं के स्‍थानांतरण के संबंध में प्रावधान लागू होते हैं। यह छूट कुछ शर्तों के साथ लागू होती हैं।      
5. निर्यात किए जाने वाले माल को सील बंद करने संबंधी प्रक्रिया : सभी बड़े करदाताओं के लिए निर्यात किए जाने वाले माल को स्‍वयं सील बंद करने की सुविधा उपलब्‍ध है। निर्यात के सबूत को स्‍वीकार करने की प्रक्रिया केवल बड़े करदाता इकाइयों (एलटीयू) के कार्यालय में ही पूरी की जाएगी। तथापि, प्रक्रिया में किसी प्रकार की कमी के कारण निर्यात किए जाने वाले माल को किसी भी हालत में रोका नहीं जाएगा। सीमा शुल्‍क अथवा केंद्रीय उत्‍पाद शुल्‍क संबंधी क्षेत्रीय अधिकारी द्वारा सील बंद करने की सुविधा पहले की तरह जारी रहेगी।
लेखा-परीक्षा प्रक्रिया :  किसी बड़े करदाता की जिसे हर वर्ष लेखा-परीक्षा करानी होती है, सामान्‍यता हर वर्ष लेखा-परीक्षा नहीं की जाएगी। मुख्‍य कार्यालय और सभी इकाइयों की लेखा-परीक्षा यथासंभव साथ-साथ की जाएगी। जहां तक वित्‍तीय रिकॉर्ड के उत्‍पादन का संबंध है बड़े करदाता को मांगने पर वित्‍तीय भंडारों और सेनवेट ऋण रिकॉर्ड इलेक्‍ट्रॉनिक रूप में जैसे कम्‍पैक्‍ट डिस्‍क अथवा टेप के रूप में उपलब्‍ध कराई जा सकती है, ताकि आवश्‍यकतानुसार जांच की जा सके।

योजना की स्‍वीकार्यता : बड़े करदाता इकाई (एलटीयू) योजना अखिल भारतीय स्‍तर पर 28 बड़े करदाताओं के साथ आरंभ की गई थी। इस समय 4 एलटीयू में 174 इकाइयां पंजीकृत हैं, इनमें बहु-स्‍थानीय ग्राहक, केंद्रीय उत्‍पाद शुल्‍क पंजीयक और सेवा कर पंजीयक शामिल हैं। एलटीयू ने बंगलुरू में वर्ष 2012-13 के दौरान मात्र 12029 करोड़ रूपये का वार्षिक राजस्‍व एकत्र किया। इस योजना को शुरू किए जाने वाले वर्ष 2006-07 में 2369 करोड़ रूपये एकत्र हुए थे।

एलटीयू के अंतर्गत पंजीकरण के लाभ : एलटीयू के अधीन पंजीकृत करदाता को कई सुविधाएं प्राप्‍त होती है।

(क)  बड़े करदाता को (पेन आधारित इकाई) एक स्‍थान पर दस्‍तावेज जमा करने की सुविधा: वह अपने सभी प्रत्‍यक्ष कर, उत्‍पाद और सेवा शुल्‍क रिटर्न के साथ-साथ सभी दस्‍तावेज, पत्र-व्‍यवहार, सूचनाएं जैसे निर्यात/आयात संबंधी केंद्रीय उत्‍पाद शुल्‍क दस्‍तावेज, बॉन्‍ड, निर्यात के प्रमाण आदि से संबंधित सभी दस्‍तावेज एलटीयू के पास जमा कराएं जा सकते है।

(ख)  एलटीयू में शामिल होने पर एक स्‍थान पर वरिष्‍ठ स्‍तरीय वार्तालाप: सहायक/उप/संयुक्‍त/अपर आयुक्‍त के स्‍तर का एक अधिकारी किसी/सभी कर संबंधी मामलों में सहायता के लिए ग्राहक कार्यकारी के रूप में नियुक्‍त किया जाएगा। इस कारण करदाता को एलटीयू के विभिन्‍न विभाग/अधिकारियों के साथ बातचीत करने की आवश्‍यकता नहीं है।

(ग)   एक बार कोई करदाता एलटीयू योजना का चुनाव कर लेता है तो पहले का सीमा क्षेत्र अधिकारी अपनी ओर से उस इकाई का दौरा नहीं करेगा और न ही उससे उत्‍पन्‍न किसी मामले पर बातचीत करेगा। तथापि, केन्‍द्रीय उत्‍पाद शुल्‍क नि‍यमों के अधीन इकाई के कार्यालय अथवा दस्तावेजों के व्‍यावहारि‍क नि‍यंत्रण और सत्‍यापन का कार्य एलटीयू के स्‍पष्‍ट नि‍र्देशों के तहत कमिश्‍नर के स्‍थानीय कार्यालय द्वारा कि‍या जाएगा।

(घ)    करदाता को इस बात की छूट होगी कि वह एक विनिर्माण इकाई अथवा सेवा में जमा केनवेट की आवश्‍यकता से अधिक राशि (केंद्रीय उत्‍पाद शुल्‍क अथवा सेवा कर की) अधिक राशि को एक सरल तरीके से अपनी पसंद की किसी दूसरी पात्र इकाई को स्‍थानंतरित कर सके।

(ङ)   पूंजीगत माल का बिना कर-उलटाव के लदान : एलटीयू करदाता को इस बात की सुविधा होगी की वह पूंजीगत माल को एक इकाई से अपनी पसंद की दूसरी इकाई में एक साधारण तरीके के जरिए कर-उलटाव की अदायगी के बिना ले जा सकता है। इसी प्रकार, एक इकाई का तैयार माल बिना शुल्‍क अदा किए दूसरी इकाई में हस्तांतरित कर सकता है। पर उसमें शर्त यह होगी कि दूसरी इकाई उस वस्‍तु को उत्‍पाद के तौर पर प्रयोग में लाएगी और उससे तैयार माल पर उत्‍पाद शुल्‍क अदा करेगी।

(च)   करदाताओं को अनिवार्य रूप से लेखा-परीक्षा के लिए नहीं कहा जा सकता। लेखा- परीक्षा के लिए करदाता का चयन खतरे के आकलन पर आधारित होगा। विभाग यह सुनिश्चित करेगा कि लेखा-परीक्षा करने वालों का चयन करदाताओं की सलाह से किया जाए ताकि करदाता को कम से कम असुविधा हो।

(छ)  यह सुनिश्चित किया जाएगा कि करदाता की विभिन्‍न इकाइयों के लिए वर्गीकरण, मूल्‍यांकन, ऋण की उपलब्‍धता और इससे मिलते-जुलते अन्‍य मामलों के साथ व्‍यवहार में एकरूपता अपनाई जाएगी। एलटीयू द्वारा व्‍यापार नोटिस एक स्‍थान से जारी किए जाएंगे।

(ज)  छूट/रिफंड के दावे यदि सही है तो उनका समयबद्ध तौर पर 30 दिन के भीतर निपटान किया जाएगा।

(झ)  स्‍वचालन का प्रयोग : रिफंड इलेक्‍ट्रॉनिक तरीके से जमा किए जा सकते है और करों की अदायगी भी इलेक्‍ट्रॉनिक तरीके की जा सकती है। संचार या पत्र व्‍यवहार के लिए ई-मेल के अधिकाधिक प्रयोग को प्रोत्‍साहित किया जा रहा है।

(ञ)   विवादों के निपटान के लिए संवादमूलक दृष्टिकोण अपनाया जाता है। कारण बताओं का कोई नोटिस जारी करने से पहले यथासंभव विवाद को बातचीत के जरिए हल किया जाता है।

एलटीयू संबंधी संयुक्‍त समिति
एलटीयू के प्रशासनिक मुद्दों की जांच के लिए अगस्‍त, 2012 में एक संयुक्‍त समिति गठित की गई थी ताकि उन्‍हें अधिक कारगर और कुशल बनाया जा सके। समिति की प्रमुख सिफ़ारिशें इस प्रकार है:-
आईसीएआई, आईआईएमएस/एमडीआई जैसी सुप्रसिद्ध संस्‍थाओं के उच्‍च-अधिकारियों (अधीक्षक/निरीक्षक) को वित्‍तीय लेखांकन में प्रशिक्षण
आसूचना एंजेसियों में समन्‍वय स्‍थापित करने और गुप्‍त जानकारी एकत्र करने के लिये प्रत्‍येक एलटीयू में अनुसंधान और कारोबार आसूचना इकाइयां बनाई जाएंगी

50 बड़े करदाताओं के प्रशासन का काम देखने के लिए प्रत्‍येक एलटीयू में 12 लेखा-परीक्षा समूहों का गठन। बड़े शहरों में एलटीयू इकाइयों की लेखा-परीक्षा करने के लिए एलटीयू लेखा-परीक्षा समूह बनाएं जा सकते है। ये सीधे एलटीयू आयुक्‍त के निरीक्षण में काम करेगे। साथ ही कोलकाता, हैदराबाद, पुणे और अहमदाबाद में अतिरिक्‍त एलटीयू भी गठित किए जा सकते है क्‍योंकि इन क्षेत्रों में बड़े करदाताओं की संख्‍या अधिक है।      

मंगलवार, 30 जुलाई 2013

Pichwai Painting In India

Pichwai literally means ‘at the back’. These paintings are lyrical creations on cloth which hangs in form of a background to Srinathji’s idol in the sanctum sanctorum at Nathdwara as well as in other temples of Krishna. Pichwai paintings are forms of traditional artworks, having roots in Rajasthan. As compared to Phads that are another form of paintings of Rajasthan, Pichwais are known to have more detail and are refined more. As you scroll down, the account will present you with more information about these religiously beautiful paintings.

Origin and Development
Pichwai paintings came into light when the sect Vallabhaichari fashioned 24 iconographic for Krishna’s image backdrop at Nathdwara. Every image of this work has connection to a specific celebration or festival. Initially, the Pichwai art consisted of cloth which was starched and handspun. It was dipped in colors made from minerals and vegetables like indigo, orpiment, cochineal and lapis. The colors underwent changes with the course of time as the art received a dash of contemporary taste. Today, fabric colors are also used for these paintings.

Subjects
Chiefly, Shrinathji along with his exploits form the subject of the paintings. Rooted deeply in religion, these artworks are carried out with the greatest dedication of artists. Subjects or themes such as Holi, Govardhan Puja or Annakut and Raas Leela are also visible on relevant occasions. Themes or subjects vary as per the season and its dispositions. For instance, paintings of summers have pink lotuses; Sharad Purnima illustrates a night scene having a shining full moon.

Style
The painting style springs from the Nathdwara School. Big eyes, wide nose and heavy body characterize the works. The Pichwai format is static. Even the natural components seem frozen here. Elements such as moon, lighting, stars and sun also get prominent place in painting. Deceptive simplicity of these paintings, veils sheets of symbolism and significance.

Colors, Tools and Techniques
Pichwai works are printed, painted using hand blocks, embroidered or adorned, woven in appliqué. Created in rich dark colors, they are done on rough cloth which is hand spun. They employ flamboyant embroidery and silhouettes are usually dark colored. Stitching incorporates colors such as green, cream, yellow and black while red is the most used color for backdrop. Gold thread is also used by a number of painters when they design their creativity. Pure gold makes the paintings shine with enhanced charm and value. White color is employed for highlighting the outline.

The painter roughly sketches on a starched piece of cloth and fills it with colors then. A painting may take a few weeks to few months to be prepared. Conventionally, colors from natural sources and brushes made of goat, squirrel or horse hair were employed. But, today less pricey and quick materials are used. Scores of paintings are dipped in natural colors today even. The traditional fashion has not vanished.

Artists
A few artists among the prominent ones of Pichwai paintings include Shyam Sunderji Sharma, Shivji Ram Mali and Yug Deepak Soni.

Artworks
Out of many captivating Pichwais, some include artworks illustrating pageant of the life of Krishna. Several of them are purely poetry in paints whereas some are flamboyant Ras Leela vignettes. A small number of Pichwai artworks showcase moments of philosophy in story of Krishna like Vishvaroopam.


Rajasthan has great pride for its grand history and rich culture. Through its artworks, its esteem towards its heritage is easily reflected. Such legacy pride and delight can be seen in Pichwai paintings. They are now available in smaller versions also, so that you can take them home as souvenirs. 

आंतरिक सुरक्षा के बढ़ते खतरे

आज देश की आंतरिक सुरक्षा व्यवस्था चरमराई और बाहरी सुरक्षा पर भी खतरे के बादल मंडरा रहे हैं। इन हालात के लिए मुख्य रूप से राष्ट्र में अंदरुनी बढ़ती हिंसा, जेहादी उग्रवाद, माओवाद, बेरोजगारी, भ्रष्टाचार, आर्थिक असमानता, नेताओं की वोट की राजनीति उत्तरदायी है। पड़ोसी देशों से हो रही घुसपैठ, चीनी अतिक्रमण से भी राष्ट्र की सीमा को खतरा पैदा हो गया है।
बंगाल के एक गांव से शुरू हुआ नक्सलवाद का तांडव आज राष्ट्र के 22 राज्यों में फैल चुका है। किसी भी समस्या का निदान कभी बंदूक की नाल से नहीं निकलता। निदान के लिए जरूरी है कि समस्या की जड़ तक जाया जाए। भटके नवयुवा को राहे रास्ते लाने के लिए उसे रोजगार के अवसर, न्याय, विकास की सीढ़ी उपलब्ध करवाकर मानवता का रास्ता दिखाया जाए। लेकिन हमारे राजनैतिक दल स्वार्थवश ऐसा नहीं होने देते।
हाल ही में छत्तीसगढ़ में घटी घटना जिसमें प्रदेश के दरभा क्षेत्र में 26 कांग्रेस नेताओं की जघन्य हत्या हुई, इसका एक ज्वलंत उदाहरण है। यह हमला इस तथ्य को रेखांकित करता है कि आज राष्ट्रीय आतंक विरोधी केंद्र बेहद जरूरी है।
राष्ट्र में हो रही जातीय व सांप्रदायिक हिंसा में भी आंतरिक सुरक्षा व्यवस्था प्रभावित हो रही है, जिसको पाकिस्तानी कट्टरपंथियों व दलगत राजनीति का पूर्ण सहयोग प्राप्त है। राजनीतिक हस्तक्षेप सुरक्षा बलों को अक्षम बना रहा है। वर्ष 1994 तक अकेले जम्मू-कश्मीर में सुरक्षा बलों के खिलाफ 988 शिकायतें दर्ज करवाई गईं, जिसमें से 965 शिकायतों की जांच के बाद 940 आरोप गलत साबित हुए। नेताओं द्वारा अपने स्वार्थ के लिए इस प्रकार की सुरक्षा बलों की कार्रवाई पर की जाने वाली बयानबाजी आंतरिक सुरक्षा के लिए खतरा उत्पन्न कर रही है।
राष्ट्र में निरंतर बढ़ रही बेरोजगारी युवा वर्ग में भविष्य के प्रति असुरक्षा व निराशा की भावना उत्पन्न कर रही है। नक्सलवाद से प्रभावित बिहार, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़ आदि राज्यों में बढ़ती हुई बेरोजगारी के साथ-साथ आर्थिक विकास का अभाव व भुखमरी भी माओवाद का मुख्य कारण है। आज भी इन क्षेत्रों में 70 प्रतिशत जवान अनपढ़ व बेरोजगार हैं। इनकी दयनीय आर्थिक स्थिति व अशिक्षा का लाभ उठाकर माओवादी इन्हें अपने गिरोह में शामिल कर रहे हैं। एक अनुमान के अनुसार आज अधिकतर राज्यों में माओवादी संगठनों ने लगभग 40 हजार स्थायी सदस्य व 1 लाख अतिरिक्त सदस्य बना रखे हैं। अब महिलाएं भी आंतकवादी सगंठनों में शामिल हो रही हैं।
आंतरिक सुरक्षा के अन्य पहलू आर्थिक अव्यवस्था व आर्थिक असमानता में भी सुधार किया जाना बहुत जरूरी है। देश में बढ़ता हुआ भ्रष्टाचार भी राष्ट्रीय सुरक्षा, अमन व स्वतंत्रता के लिए खतरे का संदेश है। भारतीय सैन्य व सुरक्षा बलों में आज युवा वर्ग का लगाव काफी कम हो गया है। देश की सुरक्षा में लगे सात केंद्रीय सुरक्षा बलों में तकरीबन 1 लाख सैनिकों तथा सैन्य सेवाओं में करीब 12 हजार अफसरों की कमी है। युवाओं का घटता रुझान भी आंतरिक सुरक्षा के लिए बेहद चिंता का विषय है।
राष्ट्र के खुफिया तंत्र के अनुसार नक्सलियों के लश्करे-तोएबा तथा अन्य इस्लामी आतंकवादी संगठनों से संबंध बढ़ते जा रहे हैं और इसे चीन का पूर्ण संरक्षण प्राप्त है। पशुपति से तिरुपति तक रैड-कारीडोर स्थापित करने की चीन की मंशा है। पाकिस्तान की आईएसआई इन्हें पूरा सहयोग दे रही है। गत 5 वर्षों में सुरक्षा बलों सहित 3836 निर्दोष व्यक्ति नक्सली हिंसा का शिकार हो चुके हैं। इससे पता चलता है कि इसमें हमारे खुफिया तंत्र की नाकामी और केंद्र व राज्यों के बीच तालमेल की कमी है।
नक्सलियों की आंतकी कार्रवाई के दौरान गत पांच वर्षों में 260 स्कूल ध्वस्त किए गये। माओवादियों द्वारा वर्ष 2011 में ही 124 सुरक्षा बलों के जवानों सहित 500 से अधिक आमजनों की हत्या की गई। इसी प्रकार वर्ष 2010 में 626 लोगों की हत्या माओवादियों ने की। इस खूनी संघर्ष में 277 जवान व 277 ही नक्सली भी मारे गए। सुरक्षा बलों की जवाबी कार्रवाई पर राजनैतिक छींटाकशी के अलावा मानवाधिकार जैसी संस्थाएं भी सक्रिय हो जाती हैं।
आज राष्ट्र की बाहरी सीमाओं को सबसे अधिक खतरा चीन की तरफ से लगातार हो रही घुसपैठ से है। आज़ाद कश्मीर में भी चीन की गतिविधियां लगातार बढ़ रही हैं। चीन अब भारत के अटूट हिस्से अरुणाचल प्रदेश पर भी हक जताने लगा है। पाकिस्तान और बंगलादेश से भी भारतीय सीमा में अवैध घुसपैठ जारी है। वर्ष 2001 की जनगणना के एक अनुमान के अनुसार केवल बंगलादेश से ही 30 लाख व्यक्ति गैर कानूनी ढंग से देश में प्रवेश कर चुके हैं, जिसमें से 20 लाख से अधिक देश के महानगरों में पूर्णतया स्थायी तौर से निर्वाह कर रहे हैं।
वर्ष 2005 में सर्वोच्च न्यायालय ने गैर कानूनी माइग्रेट अधिनियमको असंवैधानिक करार देते हुए कहा कि अवैध ढंग से प्रवेश करने वाले बंगलादेशियों ने असम व उत्तरी-पूर्वी राज्यों के नागरिकों में असुरक्षा व भय का माहौल उत्पन्न कर दिया है। इससे भारत की आंतरिक सुरक्षा को खतरा पैदा हो गया है। महिला व बाल अध्ययन केंद्र के एक अनुमान के अनुसार वर्ष 1998 में 27 हजार बंगलादेशी औरतों को देश के विभिन्न भागों में देह व्यापार के लिए धकेल दिया गया।
पाकिस्तान के प्रमुख जेहादी संगठन जम्मू-कश्मीर व राष्ट्र के अन्य हिस्सों में अपनी विध्वंसक कार्रवाइयों को अंजाम दे रहे हैं। आईएसआई राष्ट्र की आंतरिक व्यवस्था को नुकसान पहुंचाने के लिए तस्करी, नकली करंसी व ड्रग्स आदि भी पहुंचा रही है। वर्तमान नवाज शरीफ सरकार द्वारा वर्ष 2008 के नरसंहार के लिए उत्तरदायी जमात-उद-दावा को 6.1 करोड़ की राशि इनाम के तौर पर दी गई और इस आतंकी सगठन को आतंकवादियों की यादगार में नालेज पार्कबनाने तथा अन्य लाभ प्रदान करने हेतु 35 करोड़ रुपये दिए गए। आज भी जमात-उद-दावा पर कोई प्रतिबंध नहीं है और इसके मुख्य तथा 26/11 हमलों के मुख्य आतंकी हाफिज सैयद आज़ादी से घूम रहे हैं।

आज आर्थिक दृष्टि से पिछड़े आदिवासियों को मुख्यधारा से जोडऩे की जरूरत है। इसके साथ ही राष्ट्र की आंतरिक सुरक्षा, अखंडता व आन-बान को बनाए रखने के लिए संघर्षरत सुरक्षा बलों व सैन्य कर्मियों के कल्याण व विकास हेतु राष्ट्रीय नीति बनाई जानी चाहिए।

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