रविवार, 7 अक्टूबर 2012

women empowerment



  
सशक्तिकरण का अर्थ किसी कार्य को करने या रोकने की क्षमता से हैजिसमें महिलाओं को जागरूक करके उन्हें आर्थिक,सामाजिकराजनैतिकभौतिक,आर्थिक,मानसिक एवं स्वास्थ्य सम्बन्धी साधनों को उपलब्ध कराया   जाए ताकि उनके लिए सामाजिक न्याय और महिलापुरुष समानता का लक्ष्य निर्धारित हो सके।
 महिला सशक्तिकरण का अर्थ है महिला को आत्मसम्मान,आत्मनिर्भरता  आत्मविश्वास प्रदान करना। यदि कोई महिला अपने और आपने अधिकारों के बारे में सजग है, यदि उसका आत्मसम्मान बढ़ा हुआ है तो वह सशक्त है औरसमर्थ भी है।महिलाओं के अधिकारों से सम्बंधित कुछ अधिकार निम्नलिखत है।   

लैंगिक न्याय (Gender Justice) 
संविधानकानूनी प्राविधान और अंतरराष्ट्रीय दस्तावेज
हमारे संविधान का अनुच्छेद 15(i)लिंग के आधार पर भेदभाव करना प्रतिबन्धित करता है पर अनुच्छेद 15(ii)महिलाओं और बच्चों के लिये अलग नियम बनाने की अनुमति देता है। यहीं कारण है कि महिलाओं और   बच्चों को हमेशा वरीयता दी जा सकती है।
संविधान में 73वें और74वें संशोधन के द्वारा स्थानीय निकायों को स्वायत्तशासी मान्यता दी गयी। इसमें यह भी बताया गया कि इन निकायों का किसप्रकार से गठन किया जायेगा।संविधान के अनुच्छेद    243(d) और 243(t) अंतर्गतइन निकायों के सदस्यों एवं उनके प्रमुखों की एक तिहाई सीटें महिलाओं के लिए सुरक्षित की गयीं हैं। यह सच है कि इस समय इसमें चुनी महिलाओं का कामअक्सर उनके पति ही करते हैं पर शायद एक दशक बाद यह दृश्य बदल जाय।
उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम एक महत्वपूर्ण अधिनियम है। हमारे देश में इसका प्रयोग उस तरह से नही किया जा रहा है जिस तरह से किया जाना चाहिये। अभी उपभोक्ताओं में और जागरूकता चाहिये। इसके अन्दर हर  जिले में उपभोक्ता मंच  का गठन किया गया है। इसमें कम से कम एक महिला सदस्य होना अनिवार्य है।परिवार न्यायालय अधिनियम के अन्दर परिवार न्यायालय का गठन किया गया है। पारिवारिक विवाद के मुकदमें इसी न्यायालय के अन्दर चलते हैं। इस अधिनियम के अंतर्गतन्यायालय में न्यायगण की नियुक्ति करते समयमहिलाओं को वरीयता दी गयी है।
अंर्तरार्ष्टीय स्तर पर सबसे महत्वपूर्ण दस्तावेज Convention of Elimination of Discrimination Againstwomen(CEDAW)(सीडॉहै। सन1979 मेंसंयुक्त राष्ट्र ने इसकी पुष्टि की। हमने भी इसके  अनुच्छेद5(k),16(i),16(ii), और 29 को छोड़बाकी सारे अनुच्छेद को स्वीकार कर लिया है। संविधान के अनुच्छेद51के अंतर्गत न्यायालय अपना फैसला देते समय या विधायिका कानून बनाते समयअंतर्राष्ट्रीय संधि का सहारा ले   सकते हैं।


स्वीय विधी (Personal Law)     
लिंग के आधार पर सबसे ज्यादा भेद- भाव Personallaw में दिखाई देता है और इस भेदभाव को दूर करने का सबसे अच्छा तरीका है कि समान सिविल संहिता (Uniform Civil Code) बनाया जाय।
हमारे संविधान का भाग चार का शीर्षक है –‘राज्य की नीति के निदेशक तत्व’ (Directive Principles of theStatepolicy) इसके अंतर्गत रखे गये सिद्घान्त,न्यायालय द्वारा क्रियान्वित (Enforce) नहीं किये जा सकते हैं पर देश को चलाने में उन पर ध्यान रखना आवश्यक है।अनुच्छेद 44 इसी भाग में है। यह अनुच्छेद कहता है कि हमारे देश में समान सिविल संहिता बनायी जाय पर इस पर पूरी तरह से अमल नहीं हो रहा है।
हमारे संविधान के भाग तीन का शीर्षक है – मौलिक अधिकार (FundamentalRights) इनका क्रियान्वन (enforcement) न्यायालय द्वारा किया जा सकता है। इस समय न्यायपालिका के द्वारा मौलिक अधिकारों और राज्य की नीति के निदेशक तत्वों में संयोजन हो रहा है। न्यायपालिका मौलिक अधिकारों की व्याख्या करते हुये राज्य की नीति के निदेशक तत्वों की सहायता ले रहे हैं। बहुत सारे लोग न्यायालयों को प्रोत्साहित कर रहे हैं कि वह देश में समान सिविल संहिता के लिये बड़ा कदम उठाए। उनके मुताबिक:
संविधान के अनुच्छेद 13 के अंतर्गत स्वीय विधि (PersonalLaw) और किसी दूसरे कानून में कोई अन्तर नहीं है। यदि स्वीय विधि (Personallaw) में भेदभाव है तो न्यायालय उसे अनुच्छेद 13 शून्य घोषित कर सकता है।
स्वीय विधिसंविधान के अनुच्छेद 14 तथा 15 का उल्लंघन करते हैं और उन्हें निष्प्रभावी घोषित किया जाना चाहिये।
संसदराजनैतिक कारणों से इस बारे में कोई कानून नहीं बना पा रही है इसलिये न्यायालय को आगे आना चाहिये।
न्यायपालिका आगे क्या करेगी – यह तो भविष्य ही बतायेगा पर शायद पहल उन महिलाओं को करनी पड़ेगी जो इस तरह के भेदभाव वाले   स्वीय विधि से प्रभावित होती हैं।
यदि न्यायालयों के निर्णयों को आप देंखे तो पायेंगे कि न्यायपालिका किसी भी स्वीय विधि (Personal Law) को निष्प्रभावी घोषित करने में हिचकिचाती है लेकिन उस कानून की व्याख्या करते समय वह महिलाओं के पक्ष में रहता है। यही कारण है कि अपवाद को छोड़कर न्यायालयों ने कानून की व्याख्या करते समयउसे महिलाओं के पक्ष में परिभाषित किया। इसके लिये चाहे उन्हें कानून के स्वाभाविक अर्थ से हटना पड़े।
महिलाओं को भरण-पोषण भत्ता (maintenance)
अधिकतर धर्मों के लिये स्वीय कानून (PersonalLaw) अलग-अलग है। 
अलग-अलग धर्मों में महिलाओं के भरण-पोषण भत्ता की अधिकारों की सीमा भी अलग-अलग है पर यह अलगाव अब टूट रहा है।
IndianDivorceAct ईसाइयों पर लागू होता है। इसकी धारा 36 में यह कहा गया है कि मुकदमे के दौरान पत्नी कोपति की आय का 1/5 भाग भरणपोषण भत्ता दिया जाय। पहलेअक्सर न्यायालय  केवल  मुकदमा चलने के दौरानबल्कि समाप्त होने के बाद भी 1/5 भाग भरणपोषण के लिए पत्नी को दिया करते हैं।  यह सीमा  केवल ईसाईयों पर बल्कि सब धर्मों पर लगती थी। इस समय यह समीकरण बदल गया है और कम से कम पति की आय का 1/3 भाग पत्नी को भरण-पोषण भत्ता दिया जाता है। यदि पत्नी के साथ बच्चे भी रह रहे हों तो उसे और अधिक भरण-पोषण भत्ता दिया जाता है।
पत्नी को भरण-पोषण भत्ता प्राप्त करने के दफा फौजदारी की धारा 125 में भी प्रावधान है। इस धारा की सबसे अच्छी बात यह थी कि यह हर धर्म पर बराबर तरह से लागू होती थी। वर्ष 1975 में शाहबानो का केस आया। इसमें उसके वकील पति ने शाहबानो को तलाक दे दिया। उसे मेहर देकरकेवल इद्दत के दोरान ही भरण-पोषण भत्ता दिया पर आगे नहीं दिया। शाहबानो ने फौजदारी की धारा125 के अंतर्गत एक आवेदन पत्र दिया। 1975 में उच्चतम न्यायालय द्वारा Mohammad Ahmad Kher Vs. Shahbano Begum में यह फैसला दिया कि यदि मुसलमान पत्नीअपनी जीविकोपार्जन नहीं कर पा रही है तो मुसलमान पति को इद्दत के बाद भी भरण-पोषण भत्ता देना होगा।
शाहबानो के फैसले का मुसलमानों के विरोध किया। इस पर संसद ने एक नया अधिनियम मुस्लिम महिला विवाह विच्छेद संरक्षण अधिनियम Muslim Women (Protection of Rights on Divorce Divorce Act) 1986 बनाया। इसको पढ़ने से लगता है कि यदि मुसलमान पतिअपनी पत्नी को मेहर दे देता है तो इद्दत की अवधि के बाद भरण-पोषण भत्ता देने का दायित्व नहीं होगा। यह कानून मुसलमान महिलाओं के अधिकार को पीछे ले जाता था। इस अधिनियम की वैधता को एक लोकहित जन याचिका के द्वारा चुनौती दी गयी। वर्ष 2001 में Dannial Latif Vs. Union of India के मुकदमें में उच्चतम न्यायालय ने इस अधिनियम को अवैध घोषित करने से तो मना करा दिया पर इस अधिनियम के स्वाभाविक अर्थ को नहीं माना। सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि इस अधिनियम के आने के बावजूद भी यदि पत्नी अपनी जीविकोपार्जन नहीं कर पाती है तो मुसलमान पति को इद्दत की अवधि के बाद भी भरण-पोषण भत्ता देना पड़ेगा। अर्थात इस अधिनियम को शून्य तो नहीं कहा पर इसे निष्प्रभावी कर दिया। उच्चतम न्यायालय का यह फैसला महिलाओं के अधिकारों के सम्बन्ध में अच्छे फैसलों में से एक है।
घरेलू हिंसा अधिनियम
हमारे देश में दो एक ही लिंग के व्यक्ति साथ नहीं रह सकते हैं और  उन्हें कोई कानूनन मान्यता या भरण-पोषण भत्ता दिया जा सकता है। यह भी एक महत्वपूर्ण सवाल है कि क्या किसी महिला कोउस पुरुष सेभरण-पोषण भत्ता मिल सकता है जिसके साथ वह पत्नी की तरह रह रही हो जब,
उन्होने शादी  की होया
वे शादी नहीं कर सकते हों।
पत्नी का अर्थ केवल कानूनी पत्नी ही होता है। इसलिए न्यायालयों ने इस तरह की महिलाओं को भरण-पोषण भत्ता दिलवाने से मना कर दिया। अब यह सब बदल गया है।
संसद नेसीडॉ के प्रति हमारी बाध्यता को मद्देनजर रखते हुए, Protection of Women from Domestic violence Act 2005 (Domestic Violence Act) महिलाओं की घरेलू हिंसा सुरक्षा अधिनियम 2005 (घरेलू हिंसा अधिनियमपारित किया है। यह 17-10-2006 से लागू किया गया। यह अधिनियम आमूल-चूल परिवर्तन करता है। बहुत से लोग इस अधिनियम को अच्छा नहीं ठहराते हैउनका कथन है कि यह अधिनियम परिवार में और कलह पैदा करेगा। समान्यतः कानून अपने आप में खराब नहीं होता है पर खराबीउसके पालन करने वालों केगलत प्रयोग से होती है। यही बात इस अधिनियम के साथ भी है। यदि इसका प्रयोग ठीक प्रकार से किया जाय तो मैं नहीं समझता कि यह कोई कलह का कारण हो सकता है।
इसका सबसे पहला महत्वपूर्ण कदम यह है कि यह हर धर्म के लोगों में एक तरह से लागू होता हैयानि कि यह समान सिविल संहिता स्थापित करने में पहला बड़ा कदम है। इस अधिनियम में घरेलू हिंसा को परिभाषित किया गया है। यह परिभाषा बहुत व्यापक है। इसमें हर तरह की हिंसा आती हैः मानसिकया शारीरिकया दहेज सम्बन्धित प्रताड़नाया कामुकता सम्बन्धी आरोप। यदि कोई महिला जो कि घरेलू सम्बन्ध में किसी पुरूष के साथ रह रही हो और घरेलू हिंसा से प्रताड़ित की जा रही है तो वह इस अधिनियम के अन्दर उपचार पा सकती है पर घरेलू संबन्ध का क्या अर्थ है।
इस अधिनियम में घरेलू सम्बन्ध को भी परिभाषित किया गया है। इसके मुताबिक कोई महिला किसी पुरूष के साथ घरेलू सम्बन्ध में तब रह रही होती जब वे एक ही घर में साथ रह रहे हों या रह चुके हों और उनके बीच का रिश्ता:
खून का होया
शादी का होया
गोद लेने के कारण होया
वह पति-पत्नी की तरह होया
संयुक्त परिवार की तरह का हो।
इस अधिनियम में जिस तरह से घरेलू सम्बन्धों को परिभाषित किया गया हैउसके कारण यह उन महिलाओं को भी सुरक्षा प्रदान करता है जो,
किसी पुरूष के साथ बिना शादी किये पत्नी की तरह रह रही हैं अथवा थींया
ऐसे पुरुष के साथ पत्नी के तरह रह रही हैं अथवा थीं जिसके साथ उनकी शादी नहीं हो सकती है।
इस अधिनियम के अंतर्गत महिलायेंमजिस्ट्रेट के समक्षमकान में रहने के लिएअपने बच्चों की सुरक्षा के लिएगुजारे के लिए आवेदन पत्र दे सकती हैं और यदि इस अधिनियम के अंतर्गत यदि किसी भी न्यायालय में कोई भी पारिवारिक विवाद चल रहा है तो वह न्यायालय भी इस बारे में आज्ञा दे सकता है।
लैंगिक न्याय और अपराध
विवाह सम्बन्धी अपराधों के विषय में
लैंगिक न्याय से सम्बन्धितसबसे ज्यादा विवादास्पद विषय दण्ड न्याय का है। यहां पर  केवल लैंगिक न्याय को देखना है पर उसका अभियुक्त के अधिकारों के साथ तालमेल भी बैठाना है। इसके पहले कि हम इस विषय पर हम नजर डालेंभारतीय दण्ड संहिता (Indian Penal Code) में वैवाहिक सम्बन्धी अपराध से संबन्धित धाराओं को देखना ठीक रहेगा जिन्हें भारत सरकार के द्वारा राष्ट्रीय महिला आयोग ने यह कहते हुये हटाने की मांग की गयी थी कि वे 19 वीं शताब्दी की मान्यता को बनाये रखती हैं जिसमें पत्नी को पति की सम्पत्ति माना जाता था और जो पत्नियों को पति से न्याय दिलाने में मुश्किल पैदा करता है।
वैवाहिक सम्बन्धी अपराधभारतीय दण्ड संहिता के 20वें अध्याय में हैं। इस अध्याय में छः धारायें हैं पर हम बात करेंगे धारा 497 (Adultery) और 498 (Enticing or taking away or detaining with criminal intent a married woman) की।
आचरण कानूनी तौर पर गलत हो सकता है और अपराध भीपर इन पर इन दोनों में अंतर है। यदि कोई आचरणकानून के विरूद्घ है तो वह कानूनी तौर पर गलत आचरण है। सारे कानूनी तौर पर गलत आचरण के लिये सजा नहीं है और जिनके लिये है वे अपराध या फिर जुर्म कहलाते हैं। अर्थात हर अपराधकानूनी तौर पर गलत आचरण होता है पर हर गलत आचरण अपराध नहीं होता है। कानूनी तौर पर गलत आचरण के व्यावहारिक परिणाम (civil consequences) हो सकते हैं।
किसी विवाहित व्यक्ति के लिए अपने पती/पत्नी की अनुमति के बिनाकिसी अन्य व्यक्ति के साथ संभोग करना कानूनी तौर पर गलत आचरण है पर भारतीय दण्ड संहिता की धारा 497 केवल उस पुरूष को दण्डित करती है जो कि किसी विवाहित महिला के साथ उसके पति की अनुमति के बिना संभोग करता है। यहाँ यह आचरण विवाहित महिला के लिए अपराध नहीं है। यदि कोई विवाहित पुरूष किसी अविवाहित महिला के साथ अपनी पत्नी की अनुमति के बिना संभोग करता है तो यह अपराध नहीं है हालांकि कि यह कानूनी तौर पर गलत आचरण है।
उपर बताये गयेकानूनी तौर पर गलत आचरण (जो अपराध नहीं हैंउन पर भी तलाक हो सकता है।
इसी तरह से भारतीय दण्ड संहिता की धारा 498 मेंविवाहित महिला को गलत इरादे से संभोग करने के लिये भगा ले जाने को अपराध करार करती है।
दण्ड प्रक्रिया की धारा 198 (ii) के अंतर्गतइन दोनों अपराधों की संज्ञान भी खास परिस्थिति में ही लिया जा सकता है। अथार्त सब लोग इस बारे में शिकायत नहीं कर सकते हैं।
दुनिया के बहुत सारे देशों में इस तरह के आचरण को अपराधों की श्रेणी में नहीं रखा गया है पर तलाक लिया जा सकता है।
यह दोनों धाराओं में महिलाओं से पक्षपात परिलक्षित होता है। इन दोनों धाराओं की वैधता को चुनौती दी गयी थी पर उच्चतम न्यायालय ने सबसे इन दोनों धाराओं के लिए 1959 में Alamgir Vs. State of Biihar में वैध मान लिया। उच्चतम न्यायालय ने इसके बाद के निर्णयों में यही मत बहाल रखा। न्यायालय के अनुसारधारा 498, के प्राविधान धारा 497 की तरह पतियों के अधिकारों की सुरक्षा के लिये है  कि पत्नियों के अधिकारों के लिये। आज के समय में धारा 498 की नीतिमहिलाओं की सामाजिक स्थिति एवं शादी के आपसी अधिकारों  कर्तव्य से असंगत है। यह नीति के सवाल हैं और इनका न्यायालय से कोई सम्बन्ध नहीं है।
यौन अपराध (Sexual offence)
विधि आयोग ने 1980 में अपनी 84वीं रिपोर्ट दी। इस रिपोर्ट की कुछ संस्तुतियों की स्वीकृति के बाद, Criminal Law Amendment Act 1983 ( Act no. 43 of 1983) के द्वारा फौजदारी कानून में इस विषय पर आमूल-चूल परिवर्तन किया गया।
इस संशोधन अधिनियम से,
भारतीय दण्ड संहिता की धारा 375  376 के स्थान पर नई धारायें स्थापित की गयी और धारायें 376- से 376- जोड़ी गयी।
साक्ष्य अधिनियम में भी नयी धारा 114-A जोड़ी गयी। इस संशोधन के द्वाराकुछ परिस्थितियों में आरोपी को सिद्घ करना है कि बलात्कार नहीं हुआ है।
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 323 भी बदली गयी। अब न्यायालय बलात्कार के मुकदमे का विचारण बन्द कमरे में कर सकता हैया मीडिया में उसके प्रचार को मना कर सकता है।
बलात्कार परीक्षणसाक्ष्यप्रक्रिया Rape Trials: Evidence, Procedure
विधि आयोग ने अपनी 84वीं रिपोर्ट पर साक्ष्य अधिनियम को भी बदलने के लिए संस्तुति की थी। इस रिपोर्ट के द्वारा साक्ष्य अधिनियम की धारा 146की उपधारा 4 और नयी धारा 53-A जोड़ने की बात है। लेकिन सरकार ने रिपोर्ट की इन संतुतियों को स्वीकार नहीं किया। यह संशोधन साक्ष्य अधिनियम में नहीं किया गया है। इसके बावजूद न्यायालयों ने इसके सिद्घान्त को अपने निर्णयों के द्वारा स्वीकार कर लिया है।
न्यायालयों को बलात्कार के मामलों पर संवेदनशीलता से विचार करना चाहिए। न्यायालयों को मुकदमें की व्यापक संभावनाओं को देखना चाहिए और अभियोक्त्री के कथन में मामूली विसंगतियों या अमहत्वपूर्ण अंतर के कारण डांवाडोल नहीं होना चाहिए। यदि अभियोक्त्री का साक्ष्य विश्वास उत्पन्न करता है तो उस पर बिना किसी समर्थित गवाही के भरोसा किया जाना चाहिए।
कई अधिवक्ताअभियोक्त्री से बलात्कार के संबंध में निरंतर प्रश्न करते रहने की नीति अपनाते हैं। उससे बलात्कार संबंधित घटना के ब्यौरे को बार-बार दोहराने की अपेक्षा इसलिये नहीं की जाती हैताकि अभिलेख पर तथ्यों को लाया जा सके अथवा उसकी विश्वसनीयता का परीक्षण किया जा सके बल्कि इसलिये कि घटनाक्रम के निर्वचन को मोड़कर उसमें विसंगति लायी जा सके। न्यायालय को यह देखना चाहिए कि प्रतिपरीक्षाआहत व्यक्ति को परेशान करने या जलील करने का तरीका तो नहीं है। प्रतिपरीक्षा के समयन्यायालय को मूक दर्शक के रूप में नहीं बैठना चाहिये पर उस पर कारगर रूप से नियंत्रण करना चाहिये।
यह भी विचारणीय है कि क्या यह अधिक वांछनीय नहीं किजहां तक संभव हो लैंगिक आघात के मामलों का विचारण महिला न्यायाधीशों द्वाराकिया जाए। इस तरह आहत महिला आसानी से अपना बयान दे सकती है।
जहां तक संभव होन्यायालय आहत महिला का नाम निर्णयों में  लिखें जिससे उसे आगे जलील  होना पड़े।
हम यह आशा करते हैं कि विचारण न्यायालय दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 327(ii) और (iii) के अन्दर निहित अधिकारों का उपयोग उदारतापूर्वक करेंगे। सामान्यतबलात्कार के मुकदमे बन्द न्यायालय में होने चाहिये और खुला विचारण अपवाद होना चाहिए।
न्यायालयों ने इन छः सिद्धानतों को प्रतिपादित किया हैः
किसी महिला की गवाही केवल इसलिये नहीं नकारी जा सकती है कि वह आसान सतीत्व चरित्र की है;
यदि अभियोक्त्री का साक्ष्य विश्वास उत्पन्न करता है तो उस पर बिना किसी समर्थित गवाही के भरोसा किया जाना चाहिए;
प्रतिपरीक्षा के समयन्यायालय को मूक दर्शक के रूप में नहीं बैठना चाहिये पर उस पर कारगर रूप से नियंत्रण करना चाहिये;
जहां तक संभव हो लैंगिक आघात के मामलों का विचारण महिला न्यायाधीशों द्वाराकिया जाए;
न्यायालय आहत महिला का नाम निर्णयों में  लिखें;
सामान्यतबलात्कार के मुकदमे बन्द न्यायालय में होने चाहिये और खुला विचारण अपवाद होना चाहिए।
दहेज (Dowry) संबन्धित कानून
दहेज बुरी प्रथा है। इसको रोकने के लिये दहेज प्रतिषेध अधिनियम 1961बनाया गया है पर यह कारगर सिद्घ नहीं हुआ है। इसकी कमियों को दूर करने के लिये फौजदारी (दूसरा संशोधनअधिनियम 1976 के द्वारामुख्य तौर से निम्नलिखित संशोधन किये गये हैं:
भारतीय दण्ड संहिता में धारा 498-,
साक्ष्य अधिनियम में धारा 113-यह धारा कुछ परिस्थितियां दहेज मृत्यु के बारे में संभावनायें पैदा करती हैं;
दहेज प्रतिषेध अधिनियम को भी संशोधित कर मजबूत किया गया है।
पर क्या केवल कानून बदलने से दहेज की बुराई समाप्त हो सकती है,शायद नहीं यह तो तभी समाप्त होगी जब हम दहेज  मांगनेया देने या लेने से मना करें।
दहेज की बुराई केवल कानून से दूर नहीं की जा सकती है। इस बुराई पर जीत पाने के लिये सामाजिक आंदोलन की जरूरत है। खास तौर पर ग्रामीण क्षेत्र मेंजहां महिलायें अनपढ़ हैं और अपने अधिकारों को नहीं जानती हैं। वे आसानी से इसके शोषण की शिकार बन जाती हैं।
न्यायालयों को इस तरह के मुकदमे तय करते समय व्यावहारिक तरीका अपनाना चाहिये ताकि अपराधीप्रक्रिया संबन्धी कानूनी बारीकियों के कारण या फिर गवाही में छोटी -मोटीकमी के कारण  छूट पाये। जब अपराधी छूट जाते हैं तो वे प्रोत्साहित होते हैं और आहत महिलायें हतोत्साहित। महिलाओं के खिलाफ आपराधिक मुकदमे तय करते समय न्यायालयों को संवेदनशील होना चाहिये।
उच्चतम न्यायालय का कथन अपनी जगह सही है पर मेरे विचार से दहेज की बुराई तभी दूर हो सकती है जब,
महिलायें शिक्षित हों;
और आर्थिक रूप से स्वतंत्र हों।
इसके लियेसमाज में एक मूलभूत परिवर्तन की जरूरत है जिसमें महिलाओं को केवल यौन या मनोरंजन की वस्तु  समझा जाय ही बच्चा पैदा करने की वस्तु।
काम करने की जगह पर महिलाओं के साथ छेड़छाड़: Sexual harassment at working place
काम करने की जगह पर महिलाओं के साथ छेड़छाड़ उससे कहीं अधिक है जितना कि हम और आप समझते हैं। यह बातशायद काम करने वाली महिलाये या वे परिवार जहां कि महिलायें घर के बाहर काम करती हैं ज्यादा अच्छी तरह से समझ सकते हैं। इस बारे में संसद के द्वारा बनाया गया कोई कानून नहीं है।
समानता (equality), स्वतंत्रता (liberty) और एकान्तता (privacy)
किसी भी सफल न्याय प्रणाली के लिये समानता (equality), स्वतंत्रता (liberty) और एकान्तता, (privacy) का अधिकार महत्वपूर्ण है। यह लैंगिक न्याय के परिपेक्ष में भी सच है। यह बात न्यायालयों ने कई निर्णयों में कहा है।
समान कामसमान वेतन Equal pay for equal work
समानता का अधिकार संविधान के अनुच्छेद 14 से 18 में है पर यह लैंगिक न्याय के दायरे में ‘समान कामसमान वेतन’ के दायरे में महत्वपूर्ण है। ‘समान कामसमान वेतन’ की बात संविधान के अनुच्छेद 39 (में कही गयी है पर यह हमारे संविधान के भाग चार ‘राज्य की नीति के निदेशक तत्व’ (Directive Principles of the State policy) के अन्दर है। यह न्यायालय द्वारा क्रियान्वित (Enforce) नहीं किया जा सकते है पर देश को चलाने में इसका ध्यान रखना आवश्यक है।
महिलायें किसी भी तरह से पुरूषों से कम नहीं है। यदि वे वही काम करती है जो कि पुरूष करते हैं तो उन्हें पुरूषों के समान वेतन मिलना चाहिये। यह बात समान पारिश्रमिक अधिनियम (Equal Remuneration Act) में भी कही गयी है
स्वतंत्रता (liberty)
मौलिक अधिकारसंविधान के भाग तीन में हैं। यह सारेकुछ  कुछस्वतंत्रता के अलग अलग पहलूवों से संबन्ध रखते हैं पर इस बारे में संविधान के अनुच्छेद 19 तथा 21 महत्वपूर्ण हैं। अनुच्छेद 19 के द्वारा कुछ स्पष्ट अधिकार दिये गये हैं और जो अनुच्छेद 19 या किसी और मौलिक अधिकार में नहीं हैं वे सब अनुच्छेद 21 में समाहित हैं।
एकान्तता (privacy)
हमारे संविधान का कोई भी अनुच्छेदस्पष्ट रूप से एकान्तता की बात नहीं करता है। अनुच्छेद 21 स्वतंत्रता एवं जीवन के अधिकार की बात करता है पर एकान्तता की नहीं।
निष्कर्ष (Conclusion)
हम लोग इस समय 21वीं सदी में पहुंच रहे हैं। लैंगिक न्याय की दिशा में बहुत कुछ किया जा चुका है पर बहुत कुछ करना बाकी भी है। क्या भविष्य में महिलाओ को लैंगिक न्याय मिल सकेगा। इसका जवाब तो भविष्य ही दे सकेगा पर केवल कानून के बारे में बात कर लेने से महिला सशक्तिकरण नहीं हो सकता है। इसके लिये समाजिक सोच में परिवर्तन होना पड़ेगा। 



शुक्रवार, 5 अक्टूबर 2012

GAAR- General Anti Avoidance Rule



गार: गार से तात्पर्य एंटी अवोइडेंस रुल से  है । इसका प्रमुख  उदेश्य है  उन सोदो या आय को करो के दायरे में लाना जिसको केवल करो के भुगतान से बचने के लिए संरचित किया गया है । गार के पीछे सरकार  का एक ही लक्ष्य है जो भी विदेशी कंपनी भारत में निवेश करे , वह यहाँ के तय  नियमों के अनुसार टैक्स दे ।ये नियम मूल रूप से प्रत्यक्ष कर संहिता (डी टी सी ) 2010 में प्रस्तावित है जो करो से बचने के लेनदेन को लक्षित कर रहे हैं । वित्तमंत्री ने आम बजट 2012-13 को प्रस्तुत करते हुए उसमे गार के प्रावधानों का उल्लेख किया था । संसद द्वारा इसे स्थायी समिति को भेज दिया गया । स्थायी समिति की सिफारिशों पर गोर करने के पश्चात नियमो के प्रावधानों में निम्न संशोधन का प्रस्ताव किया गया है । 

1. गार के अंतर्गत कार्यवाही पहले प्रमाण पेश करने की जिम्मेदारी कर दाता  की जगह राजस्व विभाग की होगी । 
2.  निश्पक्षता और पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए गार की अनुमोदन समिति में एक स्वतंत्र सदस्य शमिल किया जायेगा। इस समिति में एक सदस्य कानून मंत्रालय में सयुक्त सचिव या उसके उच्च पद के अधिकारी होते है ।
3. कोई भी कर दाता अग्रिम निर्देश लेने के लिए जा सकेगा और पता कर सकेगा कि भार के प्रावधानों के अंतर्गत ऐऐआर द्वारा की जाने वाली व्यवस्था की अनुमति है या नहीं । केंद्रीय बजट 2012-13 में  प्रस्तावित गार का उदेश्य और भाषा भी बिलकुल वही है जो डी  टी सी बिल में है  । वित्त विधेयक 2012 में गार को उप -अनुभाग 2A से सेक्शन 90 प्रस्तूत किया गया है  । जिससे भारत  द्वारा हस्ताक्षरित संधियों के  प्रावधानों को अधिभूत किया जा सके । इसको आयकर अधिनियम की 1961 धारा के द्वारा लागु किया जायेगा।
आर्थिक विशेषज्ञों के अनुसार ज्यादातर कम्पनी मारीशस जैसे टैक्स हेवन देशो से अप्रत्यक्ष विदेशी निवेश के जरिये धन लाती हैं  । विदेशों से भारत आने वाले धन का एक भाग टैक्स हैवन देशो के सहयोग से भारत में कर अदा करने से बच जाता है क्योकि भारत ने कई देशों से दोहरा कराधान समझोता कर रखा है। गार के माध्यम से ऐसे निवेशकों को कर के दायरे में लाया जा सकता है। जिसके प्रभाव में आने से राजकोष को मजबूत बनाया जा सकेगा और ट्रिपिंग राउंड के माध्यम से काले धन के निवेश को  रोका जा सकेगा ।

गार पर कमेटी का गठन : गार पर आई सी आर आई के प्रमुख पार्थसारथी सोम की अघ्यक्षता वाली कमेटी का गठन किया गया ।इसमें इरडा के पूर्व  अघ्यक्ष एन रंगाचरी , नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ़ पब्लिक फाईनेंस एंड पोलिसी के प्रोफेसर अजय शाह और वित्त मंत्रालय के राजस्व विभाग में टैक्स पोलिसी एंड लेजिसलेशन विभाग में संयुक्त सचिव सुनील गुप्ता शामिल है

गार पर वित्त मंत्रालय की गाइड लाइंस : वित्त मंत्रालय ने गार यानि जनरल एंटी  अवोइडेंस रूल्स को लेकर नयी गाइड लाइन जारी कर दी है ।इसके अनुसार डबल टैक्सेशन का दुरपयोग करने वाली कम्पनीयों पर नियंत्रण लगाना चाह रही है।इसका निवेशको द्वारा कड़ा विरोध किया जा रहा है क्योकि गार के नियमो के मुताबिक अगर  कोई कम्पनी टैक्स चोरी के मामले में पकड़ी गयी तो जिम्मेदार अधिकारियो को जेल और जुर्माना भुगतना पड़ेगा ।

गार किसे प्रभावित करता है:  यह लगभग सभी लोगो को प्रभावित करता है।यदि कर अधिकारी यह निष्कर्ष निकलते है कि निगमों के कर्मचारियों का वेतन सिर्फ इसलिए कम रखा गया है की इन्हें करो से बचने के लिये सरंचित किया जा सके तो उन्हें वेतनों को फिर से नया रूप देकर तय करना होगा। विदेशी संस्थागत निवेशक जो मारीशस जेसे देशो के माध्यम से निवेश कर द्विपक्षीय संधि का फायदा उठाते है गार के प्रयोग में आने से वे प्रभावित होंगे।सरकार के मुताबिक भारत में सामान्य करो की दर का माहोल है इसलिए यह आवश्यक है की सही कर आधार के रूप में वे अति महत्वाकान्छी कर नियोजन की जगह कर के दायरे में आयें। भारत में हर किसी को अपनी आमदनी पर टैक्स देना पड़ता है । जब आम आदमी तय नियमो के अनुसार टैक्स देता है तो विदेशी कंपनी को छुट नहीं दी जा सकती वो भी तब जब ज्यादातर विदेशो से आने वाला धन उन भारतियों का है जिन्होंने अपना काला  धन विदेशो में छिपा रखा है ।  भारतीय  अधिकतर ये धन उन टैक्स हेवन देशों में रखे हुए हैं जिनसे भारत की दोहरी कराधान संधि है। यही कारण है की एंटी अवोइडेंस उपाय जरूरी है। जिससे ये करों के अधीन आ सके।

यद्यपि गार से कई लाभों  को परिलक्षित किया जा सकता है परन्तु वर्तमान समय में क़ुछ प्रावधानों के कारण गार का विरोध किया जा रहा है। इसके तहत कर अधिकारीयों को स्वविवेक से कार्य करने का अधिकार दिया गया है । जिसका दुरपयोग होने की सम्भावना होती है । इन प्रावधानों के तहत अधिकारी को किसी भी कर बचत ,लेन-देन से सम्बंधित प्रश्न पूछने का अधिकार है ।इसके अतरिक्त कार्यवाही के अन्तर्गत स्वयं को निर्दोष सिद्ध करने की जिम्मेदारी करदाता की होगी। 

        सामान्यतः कुछ तथ्य गार की कमियों को दर्शाते है ,परन्तु गार भारतीय राजकोष को मजबूती प्रदान करने तथा टैक्स के सम्बन्ध में समानता स्थापित करने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम है। अतः कुछ संशोधनों के साथ गार का क्रियान्वयन सुनिश्चित किया जाना चाहिए । भारत सरकार ने गार के क्रियान्वयन को कुछ समय के लिए बढ़ा  दिया गया है  तथा इसके प्रावधानों की प्रासंगिकता पर विचार करने के लिए तथा गार के क्रियान्वयन में पारदर्शिता लाने हेतु प्रधानमंत्री द्वारा एक कमेटी का गठन किया है तथा इस कमेटी से यह आशा की जाती है की यह गार मे निहित कमियों का संशोधन कर गार के क्रियान्वयन का मार्ग प्रशस्त करेंगी।   

- M. Kuldeep

गुरुवार, 4 अक्टूबर 2012

The mystery of Strange sounds Heard World wide- A Scientific Review



In the age of 21st century and the era of scientific revolution the life of a man has become so fast that there is no time to think for a while. Man is still unaware about the various threats that are forwarding towards us from the outer space. In the past, if we go through the pages of history we can see that many civilisations over the world have explained about the end of the world and the apoclaypse. One of such civilisation is “Maya” civilisation who were the residents of mesoamerica in the era of Yucatan around 2600 B.C. They have had the clear vision about the end date of the world and had the explanation in the pictographic form. According to their calender they calculated the end date as 2012 december. Many such strange events have already started to happen. We can see the example of Tsunami in japan, earthquake in Banda Ache(Indonesia), and Haiti, and cyclones over the west coasts of america.

One such strange thing that first came into limelight in 2011 was the strange “Humming” sounds that were heard all around the world in different parts. Till recently there was no scientific explanation for such sounds. These sounds disturbed the people round the globe which were heard from the sky. So from where the sounds originated? Why are they heard now? What is the scientific explanation for this type of strange event.



The information came up about such sounds from U.S, U.K, Australia, Pakistan, India, Canada, Finland, Sweden, Norway, etc. Due to the lack of proper explanation and scientific evidence, people were shocked and got scared.

When the records were analyzed by the scientists all over the world, it was found that, only the fraction of original sound is heard by the people. The sounds actually are the low frequency aucostic emissions which ranges between 20 to 100 Hz.In the geophysics it is termed as “Aucostic Gravity Waves”. Such waves are formed at the boundary of  Ionosphere. This phenomenon is related to sun and its activity. This phenomenon gives rise to what we know as “Northern and Southern Lights”. Scientific terminology for it is “Aurora”. At the southern pole it is “Aurora Australis” and at the northern end it is “Aurora Borealis”.


The strange sounds are the direct outcome of such kind of electromagnetic waves that are transferred through the atmospheric medium and are heard on the earth. The frequency of these sounds was very low because of less activity solar particles that are ejected by the sun and forwarded towards the earth. The sun is approaching towards its Maxima and so the flare activities on the surface of the sun have also maximised.

The Solar flares give out the huge burst outs that forward the waves in the form of electromagnetic particles. But these particles are unable to penetrate the envelope of the earth. This is because of the poles. The poles have the magnetic concentration that deviates these charged particles again in the outer space. But while it gets deflected, it goes through the magnetosphere which interacts with the magnetic field of earth. This reaction gives rise to the humming sound and the unique dance of lights at the polar ends of the earth.



But since the solar activities are at its peak and are still rising, these activities will still strengthen up over 2013 and 2014. Since the Mid 2011 the solar activities have risen at the unusual rate which was never recorded earlier in the history of mankind. So hereby we can assume that there is a high probability of the impact of substantial increase in solar activities and the strange humming sounds. In 2013- 14 it will be 1.4-1.5 times higher than now the sounds that are heard. In 2013 the sun will have its 23rd cycle which will have the generation of sounds at the maximum amplitude.

That is the reason why the typical strange humming sounds are being heard all around the world. Such sounds are the resultants of the combinations of Electromagnetic particles that are ejected towards the earth and the gradual rise of the solar activity on the surface of the sun.

For more Information you can mail at rajdeepvaibhav706@gmail.com

बुधवार, 3 अक्टूबर 2012

An Analysis of Gandhian Thought & Action: Celebrating the Gala Gandhi Jayanti

Mahatma Gandhi was not just a man of words, he used to execute whatever he spoke. The objective of his constructive action was to heighten the morale and self domain of such people whom he served throughout his life. The unprecedented rise of Bapu’s mind and soul always surprised the whole world.
                                Today we feel very proud that we have fully understood his way of living selfless life, but doing so we are making fool of ourselves as we are lagging far behind in following the footprints of such great personality. In Bapu’s words, God is nothing but the truth and nobody can dare to attain this divine truth without  non-violence. Both of them are the two unlike facets of a same coin. If one dares even to follow the suit the life of Bapu then he must abide by the rules of non violence, truth, refrain from theft, self control, possessing nothing, surmounting the taste, complete independence regarding the all religions equally and non practicing the untouchability. Simplifying these words, if we are willing to submit ourselves with rigidity and affection to Bapu then we have to assume ourselves to be just a part of whole world.
                                The ideal marriage aims at fusion of souls through the process of physical fusion. To love human is the first step towards divine and world affection. Bapu was always led against the use of foreign goods and articles but this does not reflect his intention of taking revenge. Bapu always used to preach his followers that the affection for handy foreign goods and objects initiate the genesis of a wide gap between a common man and educated one as well as the poor and the rich.
                                Although Gandhi ji considered the religion of Hinduism ample enough for him, he revered all the religions in an infinite manner. In his own words, ‘ This is my firm belief that to envisage the qualities of all the religions of world is an uphill task and I also believe to carve for that is good for nothing and precarious to. In my thought, each of them vows to uplift the human life and wish to be the ultimate spot of his life’.
                                Gandhi ji fought the lone battle to destroy the evil of practising untouchability and this does not need any mention. He punctured the cobweb of untouchability and caused the such class of humanity to come out from the reign of being oppressed and suppressed. The homemade cloth symbolise the human value and the cloth made by mill represent only physical value.The concept and value of Khadi teaches the citizen of world to inculcate the feeling of mutual brotherhood for the other man. Gandhi ji wished that the framework our nation must stand on the pillar of simplicity, the holiness of hardwork and the human values. Physical work enhances the creative qualities that furnish an agile nature to our brain and no other thing can carry out this activity. That is why Gandhi focussed at the basic education to be taught truly.
                               It is high time that we make amendment in ourselves. Gandhi ji had dreamed of having such an India worthy of rulling in every sphere of human values. He drove India to a political freedom through the peaceful roads but he was not just satisfied of that as today he must be calling everyone with his wounded hurt that do not allow the mutual infightings to takeover your daring attitude and boldness. Whatever the physical things burnt out, looted and nullify can all be had back again and the naked can be clothed, the hungry fellow can get food stuff and also the homeless can be homed. If we continue to be disintegrated by the feelings  of anger, hatred and taking revenge then who will be going to re-establish our soul again?
                                In nutshell if we celebrate the incarnation of Bapu, then we must do it heartily. If we desire to inch towards him then we must keep the sin of hate at bay that has overshadowed today otherwise we will be disliked by him. May God! We must be true and honest towards the great Gandhi ji as peace of India calls for peace of world.

-AMAR JYOTI 

मंगलवार, 2 अक्टूबर 2012

WTO: The Organisation's Working and its impact on India


The World Trade Organization came into being in 1995. One of the youngest of the international organizations, the WTO is the successor to the General Agreement on Tariffs and Trade (GATT) established in the wake of the Second World War.So while the WTO is still young, the multilateral trading system that was originally set up under GATT(founded in 1948) is well over 50 years old.The system was developed through a series of trade negotiations, or rounds, held under GATT. The  first rounds dealt mainly with tariff reductions but later negotiations included other areas such as anti-dumping and non-tariff measures. The last round — the 1986-94 Uruguay Round — led to the WTO’s creation.

THE ORGANIZATION
The WTO’s overriding objective is to help trade flow smoothly, freely, fairly and predictably. It does this by:
  • Administering trade agreements
  • Acting as a forum for trade negotiations
  • Settling trade disputes
  • Reviewing national trade policies
  • Assisting developing countries in trade policy issues, through technical assistance and training programmes
  • Cooperating with other international organizations


STRUCTURE
  • The WTO has about 157 members, accounting for about 95% of world trade. Around 30 others are negotiating membership.
  • Decisions are made by the entire membership. This is typically by consensus. A majority vote is also possible but it has never been used in the WTO, and was extremely rare under the WTO’s predecessor, GATT. The WTO’s agreements have been ratified in all members’ parliaments.
  • The WTO’s top level decision-making body is the Ministerial Conference which meets at least once every two years.
  • Below this is the General Council (normally ambassadors and heads of delegation in Geneva, but sometimes officials sent from members’ capitals) which meets several times a year in the Geneva headquarters. The General Council also meets as the Trade Policy Review Body and the Dispute Settlement Body.
  • At the next level, the Goods Council, Services Council and Intellectual Property (TRIPS) Council report to the General Council.
  • Numerous specialized committees, working groups and working parties deal with the individual agreements and other areas such as the environment, development, membership applications and regional trade agreements.


BENEFITS OF WTO
1. The system helps promote peace
2. Disputes are handled constructively
3. Rules make life easier for all
4. Freer trade cuts the costs of living
5. It provides more choice of products and qualities
6. Trade raises incomes
7. Trade stimulates economic growth
8. The basic principles make life more efficient
9. Governments are shielded from lobbying
10. The system encourages good government

MINISTERIAL CONFERENCES
  • The topmost decision-making body of the WTO is the Ministerial Conference, which usually meets every two years. It brings together all members of the WTO, all of which are countries or customs unions. The Ministerial Conference can take decisions on all matters under any of the multilateral trade agreements. 
  • The inaugural ministerial conference was held in Singapore in 1996. Disagreements between largely developed and developing economies emerged during this conference over four issues initiated by this conference, which led to them being collectively referred to as the "Singapore issues". 
  • The second ministerial conference was held in Geneva in Switzerland. 
  • The third conference in Seattle, Washington ended in failure, with massive demonstrations and police and National Guard crowd control efforts drawing worldwide attention. 
  • The fourth ministerial conference was held in Doha in the Persian Gulf nation of Qatar. The Doha Development Round was launched at the conference. The conference also approved the joining of China, which became the 143rd member to join. 
  • The fifth ministerial conference was held in Cancún, Mexico, aiming at forging agreement on the Doha round. An alliance of 22 southern states, the G20 developing nations (led by India, China, Brazil, ASEAN led by the Philippines), resisted demands from the North for agreements on the so-called "Singapore issues" and called for an end to agricultural subsidies within the EU and the US. The talks broke down without progress.
  • The sixth WTO ministerial conference was held in Hong Kong in December 2005. It was considered vital if the four-year-old Doha Development Round negotiations were to move forward sufficiently to conclude the round in 2006. In this meeting, countries agreed to phase out all their agricultural export subsidies by the end of 2013, and terminate any cotton export subsidies by the end of 2006. Further concessions to developing countries included an agreement to introduce duty free, tariff free access for goods from the Least Developed Countries.


DOHA DEVELOPMENT ROUND
  • The Doha Development Round started in 2001 and continues till today.
  • The WTO launched the current round of negotiations, the Doha Development Round, at the fourth ministerial conference in Doha, Qatar in November 2001. This was to be an ambitious effort to make globalization more inclusive and help the world's poor, particularly by slashing barriers and subsidies in farming. 
  • The initial agenda comprised both further trade liberalization and new rule-making, underpinned by commitments to strengthen substantial assistance to developing countries.
  • The negotiations have been highly contentious. Disagreements still continue over several key areas including agriculture subsidies, which emerged as critical in July 2006.
  • According to a European Union statement, "The 2008 Ministerial meeting broke down over a disagreement between exporters of agricultural bulk commodities and countries with large numbers of subsistence farmers on the precise terms of a 'special safeguard measure' to protect farmers from surges in imports." The position of the European Commission is that "The successful conclusion of the Doha negotiations would confirm the central role of multilateral liberalisation and rule-making. It would confirm the WTO as a powerful shield against protectionist backsliding."
  • An impasse remains and as of June 2012, agreement has not been reached, despite intense negotiations at several ministerial conferences and at other sessions.


WTO AND INDIA
  • WTO is receiving the deepest indulgence of everyone, as it is affecting the major sectors of Indian economy and agriculture in particular now, and more intensively in the coming years. 
  • A major concern growing with the increasing impact of WTO is, as to how the small and marginal farmers’ who dominate the Indian agriculture, depend heavily on agriculture for their livelihood, have small marketable surplus and operate under heavy constraints to be competitive in a subsidized agriculture production and trade regime, could benefit from WTO. The concern more often swings to the other side that the spreading tentacle of WTO with reduced tariff regime and increased access to Indian market for the products from subsidized agriculture could severally damage the agriculture based livelihood of majority of Indian farmers. 
  • The challenge to policy makers is how to protect Indian agriculture from the impending WTO threat, enhance the competitiveness of Indian farming and make farming a viable and self sustaining enterprise to improve and ensure livelihood security of the farmers. 
  • A strategy to address this challenge shall necessarily involve re-orientation and injection of market linked dynamism in Indian agricultural R&D, strengthening of supportive institutions to serve the resource poor farmers, and steering fast the change with appropriate policies and trained human ware. 

The deliberations of the workshop suggested the following policy initiatives and action points: 
  • India needs to devise appropriate domestic policies (extensive domestic market reforms, heavy investment in building and maintaining infrastructure, etc.) to improve efficiency and competitiveness of domestic produce.
  • It should continue to play leadership role in negotiating agreements with sound analytical basis and support of other developing countries with similar interest. A dedicated group of about 100 experts, on full time basis, should work on the WTO issues to provide analytical basis for negotiations and to help in planning appropriate strategies to strengthen Indian agriculture to face increasing trade liberalization and globalization.
  • Export of high value products, horticulture products, processed products, marine products and rice  should be promoted.
  • India has to counter the challenges in the export of traditional items from the developing countries. In this regard, prioritization, enhancing production and processing efficiency, marketing and transport infrastructure, maintaining quality, stable supply etc. need immediate attention.


The following words of Karl Marx are definitely an apt advice to developed countries in WTO who are following contravening policies w.r.t. Domestic and International markets, “The country that is more developed industrially only shows, to the less developed, the image of its own future.”

(Pradeep Kumar)



भारत और चीन


भारत और चीन दक्षिण एशिया खंड के दो महत्वपूर्ण देश हैं  जिन पर सारी दुनिया की  नजर टिकी हुई हैI आज के समय में इन दोनों देशो ने अपने जीडीपी से सारे विश्व को चौका दिया है और वैश्विक आर्थिक मंदी के सामने भी इन दोनों देशो ने अपनी आर्थिक प्रगति की  दर को बनाये रखा है और दोनों देश २१वी सदी की आर्थिक महाशक्ति बनने की और आगे बढ़ रहे हैI यह संतोषजनक बात है कि चीन के साथ चल रहे सीमा विवाद को सुलझाने की जिम्मेदारी वर्ष 2003 से दोनों देशों की सरकारों द्वारा एक संस्थागत तंत्र को सौंप दी गई है। नई दिल्ली और बीजिंग, दोनों ने ही आश्वासन दिया है कि आर्थिक व्यापार सीमा विवाद के कारण बाधित नहीं होंगे । दूसरे शब्दों में, बातचीत के जरिए सीमा-निर्धारण और सहयोग दोनों समानांतर मार्ग पर साथ-साथ चल रहे हैं और दोनों पक्षों ने वास्तविक नियंत्रण रेखा पर पूर्व स्थिति को बदलने के लिए बल-प्रयोग की संभावना को नकार दिया है। हालांकि इधर चीन  व भारत  के संबंधों में भारी सुधार हुआ है, तो भी दोनों के संबंधों में कुछ अनसुलझी समस्याएं रही हैं। चीन व भारत के बीच सबसे बड़ी समस्याएं सीमा विवाद और तिब्बत की हैं।

भारत और चीन के मध्य कुछ विवादित बिंदु -:

मैकमोहन लाइन -  550 मीटर की यह लाइन भूटान से हिमालय के सहारे ब्रह्मपुत्र नदी के मोड़ तक जाती है । इस लाइन को भारत अपनी स्थायी सीमा रेखा मानता है जबकि चीन इसे अस्थाई सीमा रेखा मानता है।

अरुणाचल प्रदेश - मैकमोहन लाइन के दक्षिण में स्थित इस विवादित क्षेत्र को 1937 में सर्वे ऑफ़ इंडिया ने प्रथम बार अपने नक़्शे में मैकमोहन लाइन की  अधिकारिक सीमा के रूप में दर्शाया था और इस विवादित क्षेत्र को भारतीय हिस्सा माना था। 1938 में ब्रिटेन द्वारा अधिकारक तोर पर शिमला समझोते के प्रकाशन के बाद इस पर भारतीय अधिकार सिद्ध हो गया था। लेकिन 1949 की चीनी क्रांति के पश्चात साम्यवादी सरकार ने इस क्षेत्र पर अपना अधिकार जताना आरम्भ कर दिया। तब से लेकर वर्तमान तक यह दोनों देशो के मध्य विवाद का बिंदु बना है।

अक्साई चिन - अक्साई चिन 19 वी शताब्दी तक लद्दाख साम्राज्य का हिस्सा था । जब कश्मीर का लद्दाख पर अधिकार हो गया तो अक्साई चिन भी कश्मीर का हिस्सा बन गया । सन 1950 में चीन ने अक्साई चिन पर अधिकार कर लिया । उसने इस क्षेत्र से होते हुए तिब्बत तक एक सड़क 'चीन राष्ट्रीय राज मार्ग-219 का निर्माण प्रारम्भ कर दिया जिसकी परिणति 1962 के भारत-चीन युद्ध में हुई

ब्रह्मपुत्र को मोड़ने की योजना - चीन पिछले काफी वर्षो से ब्रह्मपुत्र नदी से पानी लेने की योजना बना रहा है। यह चीन की विशाल 'साउथ नोर्थ वाटर लिंक' योजना का हिस्सा है। चीन शुमाटन पॉइंट पर प्रस्तावित बांध के लिए ब्रह्मपुत्र नदी से पानी लेना चाहता है। यदि चीन इस योजना में सफल हो जाता है तो भारत के लिए जल-विज्ञान और भू-विज्ञान सम्बन्धी खतरे पैदा हो जायेगे।

हिमालय पर चीन का खतरा - चीन सतलज तथा उसकी सहायक नदियों पर कई बिजली परियोजनाओ का निर्माण कर रहा है जिसके कारण यह नदिया हिमाचल प्रदेश में तबाही ला सकती हैं। वही दूसरी और गर्मियों में इसके कारण अकाल पड़ सकता है।


तिब्बत पर विवाद - चीन के कब्जे में आने से पूर्व तिब्बत उत्तर-पूर्वी एशियाई देशों के लिए एक बफर राज्य के रूप में था। सन 1892 से 1913 तक चीन ने तिब्बत पर कब्ज़ा करने के असफल प्रयास किये। सन 1913 में तिब्बत ने स्वतंत्रता की घोषणा कर दी और 1914 में इस पर मुद्दे पर शिमला में बैठक हुई। ब्रिटन,चीन तथा तिब्बत के मध्य हुई इस बैठक में तिब्बत ने अपनी संप्रभुता की मांग रखी जिसे चीन ने मानने से इंकार कर दिया। बाद में तिब्बत ने लोचन शत्रा शत्रा के तथा ब्रिटन ने सर हेनरी मैकमिलन की अगुवाई में शिमला समझोता किया और मैकमिलन लाइन अस्तित्व में आयी। इस समझोते में तिब्बत को एक स्वतंत्र राष्ट्र माना गया नाकि चीन का एक प्रान्त। तब से चीन मैकमोहन लाइन को नकारता आ रहा है। 23 मई 1951 को चीन ने दलाईलामा से 17 सूत्रीय समझोते पर जबरदस्ती स्ताक्षर करा लिए और तिब्बत पर चीन का अधिकारिक
कब्ज़ा हो गया। इसके पश्चात दलाईलामा ने बहुत से तिब्बतियों के साथ भारत में शरण ले रखी है।

इन सब विवादित बिन्दुओ का हल निकालने का शांतिपूर्वक प्रयास दोनों देशो को निकलना चाहिए इसके लिए दोनों देशो द्वारा समय-समय पर कदम उठाये जाते रहे हैं।

 दुनिया भारत और चीन  को एक दुसरे का प्रतिस्पर्धी मानती है, लेकिन सच में यह दोनों प्रतिस्पर्धी कम और सहयोगी ज्यादा है I दोनों देशो में राजनितिक माहोल भी अलग है चीन एक समाजवादी देश है जब की भारत लोकतान्त्रिक देश है I दोनों की औद्योगिक नीतियाँ भी अलग है I लेकिन फिर भी हकीकत यही है की अगर इन दोनों देशो को आर्थिक सुधार एवम प्रगति को  जारी रखना है, तो एक दुसरे के साथ आर्थिक एवम राजनीतिक संबधो को और मजबूत करना होगा जिसकी दिशा में सकारात्मक प्रयास दोनों देशो की तरफ से हो रहे है I अगर वाकई में भारत और चीन दोनों एक साथ हो जाये तो फिर अमेरिकी और यूरोपियन संगठन को काफी पीछे छोड़ देगे। हलाकि पिछले कुछ वर्षो में भारत और चीन के व्यापारी रिश्तो में जो सुधार आया है और जो व्यापर बढ़ा है वो इस बात का सबूत है की दोनों देशो को एक दुसरे की अहमियत का पता चल गया है और इसीलिए सभी चीजो को भुलाकर एक दुसरे के साथ आर्थिक रिश्तो को मजबूत करने की और बढ़ रहे है I वास्तव में  दोनों देश एक दुसरे के पूरक हैं, जहाँ चीन में ज्यादातर मेन्युफेकचरिंग उद्योग ज्यादा है और वह सुई से लेकर हवाईजहाज तक बनाता है वहीँ भारत की आर्थिक प्रगति  में सर्विस सेक्टर की ज्यादा भागीदारी है 

हम आशा कर सकते हैं कि दोनों देश मिल जुलकर न केवल एशिया की आर्थिक सूरत सुधारने में आधारभूत भूमिका निभाएंगे, बल्कि 21वीं शताब्दी के मानव इतिहास की दिशा तय करने के साथ-साथ विश्व आर्थिक परिदृश्य में संतुलन के संदर्भ में भी श्रेयस्कर भूमिका निभाएंगे।



            
                

  

रविवार, 30 सितंबर 2012

RECENT FDI REFORMS IN INDIA: Impact on Indian Market


India opened its supermarket sector to foreign chains recently after months of dithering, pushing ahead with the boldest reforms yet in Prime Minister Manmohan Singh's government as it tries to revive the country's tottering economic growth. The government has decided to allow foreign airlines to buy stakes of up to 49 per cent in local carriers, in a much-awaited policy move that provides a potential lifeline to the country's debt-laden airlines by opening up a fresh source of funding. Also, one of the significant and visionary decisions taken recently by the Indian Cabinet Committee on Economic Affairs (CCEA) regarding foreign direct investment is to permit FDI up to 49% in the power exchanges or power trading in India.
These key reforms have following implications on the Indian market:

EXPECTED IMPACT OF FDI IN RETAIL -
Foreign Direct Investment or FDI in Indian retail sector up to 51 % is the most emotive topic and has been in discussion everywhere in the country. The Union Cabinet has approved 51% FDI in multi-brand retail and raised the cap on FDI in single-brand retail from 51% to 100%.
Also significant recommendations of the latest FDI liberalization policy of India, in multi-brand retail sector, are the following:
  • The minimum level of FDI in multi-brand retail sector will be worth $ 100 million
  • Supermarkets are allowed in only those cities of India whose population is at least one million
  • At least 50% of the total investment will be made on the Back-end Infrastructure
  • And, at least 30% of their goods and products will be procured from the local companies and industries.
For FDI in Retail:

- FDI in India Retail should be welcomed as this will bring a lot of money in India. 
- Foreign Investment will help the government to build new infrastructure and improve rural infrastructure. 
- Farmers will be the biggest beneficiaries from this move, as they will be able to improve their productivity and get high prices by selling their crops directly in the market to the large organized players.
- Government will also gain by FDI through transparent and accountable monitoring of goods and supply change management systems.
- Products will be available to the consumers at reduced price.
- This will provide lots of job opportunities to unemployed people in India.
- It will provide more options to the farmers with less wastage of agriculture product.
- FDI in retail will increase the competition for Indian players pushing them to improve their products and services. The final beneficiary of this competition will be the consumers. 

Against FDI in Retail:

- FDI in Indian Retail should not be welcomed as they sell only their products throughout sourcing at cheap rates from foreign companies which reduces the value of Indian commodities and labour.
- Companies like Wall Mart, Tesco etc. will only engage well educated and smart workforce in small proportion. Thus it will not solve the problem of unemployment.
- It will create competitive markets for the Indian companies as they will be struggling with the foreign companies to increase the demand of their products.
- The market of our local shopkeepers will suffer.
- Farmers will become poorer as these big companies will slowly turn into monopoly buyers ruling the rates. 

EXPECTED IMPACT OF FDI IN AVIATION-
Foreign investors in the aviation sector of India will find extensive and ever-growing domestic and international market, for tremendous profits. Air travel for both domestic and international aviation will be cheaper and more lavish. There will be greater income to the aviation sector of India by domestic and international tourism, and other related sectors of Indian economy. Better will be chances for employment in the aviation sector of India.

However, there are certain inherent uncertainties and disadvantages in the FDI in the aviation sector of India, to both foreign companies and investors and the Indian aviation companies and investors in the short- and long- terms. The business competition in the Indian aviation market will be more and intense, and will favor the big players. The presence of greater number of aviation companies will reduce the overall profitability. Cost of employment for highly qualified and talented aviation professionals will rise regularly. Indian aviation companies will need to become more efficient, circumspect, and professional.

EXPECTED IMPACT OF FDI IN POWER TRADING-
FDI in the power sector of India has been permitted up to 100% (except the Atomic energy), but, there was no concrete and clear provision for FDI in the power trading in India. It is hoped that this decision of the Government of India will boost perfect and easy power exchanges, augment the availability of power, improve energy distribution, and introduce most efficient and best practices in power trading.Power Trading involves purchasing and selling of electricity, with the help and guidance of the Power Exchanges. The power exchanges serve as a well-organized, unbiased, and open platform to the generators, suppliers, traders, shareholders, and consumers in the power sector of a country. At present, there are two main power exchanges functioning full-fledged in India, the Indian Energy Exchange (IEX) and the Power Exchange India (PXI). Collectively, these two major power exchanges handle just 2% of the total 800 billion units of power generated in the whole country. Hence, there was desperate need for FDI in the power trading in India, to make this power sector of the country better and most efficient.

This permission to FDI up to 49% in the power trading exchanges comes under the categories of 26% Direct FDI and 23% Institutional Investment by any Foreign Institutional Investor (FII). These investments will be made in proper and strict compliance with the rules and regulations of SEBI and the Central Electricity Regulatory Commission (CERC). The FII investment will be made under the Automatic Route, and the Direct Investment will be performed under the Governmental Route.

FDI has its advantages as well as disadvantages. FDI in right areas is required for the development of the country. FDI in retail especially in multi-brand retail needs to be well regulated and invited through proper safeguards while we should invite FDI in technology and infrastructure with open hands. 

(Pardeep Kumar)

शनिवार, 29 सितंबर 2012

CAPITAL ACCOUNT CONVERTIBILITY

Economic reforms in India have accelerated growth, enhanced stability and strengthened both external and financial sectors. Our trade as well as financial sector is already considerably integrated with the global economy. India's cautious approach towards opening of the capital account and viewing capital account liberalization as a process contingent upon certain preconditions has stood India in good stead. It is interesting to note the difference between Current Account convertibility and Capital Account convertibility

Current Account convertibility means the freedom to convert one currency into other internationally accepted currencies wherein the exporters and importers where allowed a free conversion of rupee. But still none was allowed to purchase any assets abroad. Capital Account Convertibility means that rupee can now be freely convertible into any foreign currencies for acquisition of assets like shares, properties and assets abroad. Further, the banks can accept deposits in any currency.
Capital Account Convertibility (CAC) is the freedom to convert local financial assets into foreign financial assets at market determined exchange rates. Referred to as ‘Capital Asset Liberation’ in foreign countries, it implies free exchangeability of currency at lower rates and an unrestricted mobility of capital. India presently has current account convertibility, which means that foreign exchange is easily available for import and export for goods and services. India also has partial capital account convertibility; such that an Indian individual or an institution can invest in foreign assets up to $25000. Foreigners can also invest along the same lines. At present, there are limits on investment by foreign financial investors and also caps on FDI ceiling in most sectors, for example, 74% in banking and communication, 49% in insurance, 0% in retail, etc.
Given the changes that have taken place over the last two decades, however, there is merit in moving towards fuller capital account convertibility within a transparent framework. There is, thus, a need to revisit the subject and come out with a roadmap towards fuller Capital Account Convertibility based on current realities. In consultation with the Government of India, the Reserve Bank of India has appointed a committee to set out the framework for fuller Capital Account Convertibility.
The First Tarapore Committee was set up by the RBI in 1997 to study the implications of executing CAC in India. It recommended that the before CAC is implemented, the fiscal deficit needs to be reduced to 3.5% of the GDP, inflation rates need to be controlled between 3-5%, the non-performing assets (NPAs) need to be brought down to 5%, Cash Reserve Ratio (CRR) needs to be reduced to 3%, and a monetary exchange rate band of plus minus 5% should be instituted. However, most of the pre-conditions weren’t entirely fulfilled. Thus, CAC was abandoned for the moment.
However due to renewed optimism in the year 2006 as some of the targets suggested by the First Tarapore Committee were achieved along with consolidation of banks, a strong export front, large forex reserves amounting to $300 billion and high growth rates instilled  some hope making way for setting up of a Second Tarapore Committee to look into the PM’s proposal to reevaluate the earlier stand.
Second Tarapore Committee Recommendations:
1. The ceiling for External Commercial Borrowings (ECB) should be raised for automatic approval.
2. NRI should be allowed to invest in capital markets.
3. NRI deposits should be given tax benefits.
4. Improvement of the banking regulations
5. FII should be prohibited from investing fresh money through Participatory notes.
6. Existing PN holders should be given an exit route to phase out completely the PN notes.
At present the rupee is fully convertible on the current account, but only partially convertible on the capital account.
CAC can be beneficial for a country as the inflow of foreign investment increases and the transactions are much easier and occur at a faster pace. CAC also initiates risk spreading through diversification of portfolios. Moreover, countries gain access to newer technologies which translate into further development and higher growth rates.
Even though CAC seems to have many advantages, in reality, it can actually destabilize the economy through massive capital flight from a country. Not only are there dangerous consequences associated with capital outflow, excessive capital inflow can cause currency appreciation and worsening of the Balance of Trade. Furthermore, there are overseas credit risks and fears of speculation. In addition, it is believed that CAC increases short term FIIs more than long term FDIs, thus leading to volatility in the system.
Hence, India still needs to work on its fundamentals of providing universal quality education and health services and empowerment of marginalized groups, etc. The growth strategy needs to be more inclusive. There is no point trying to add on to the clump at the top of the pyramid if the base is too weak. The pyramid will soon collapse! Thus, before opening up to financial volatility through the implementation of FCAC, India needs to strengthen its fundamentals and develop a strong base.
Concluding it can be said that India should either wait for a while or implement CAC in a phased, gradual and cautious manner as enshrined in the present policy.
(Pardeep Kumar)

कुल पेज दृश्य