गुरुवार, 21 अगस्त 2014

योजना आयोग की समस्या

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने राष्ट्र के नाम दिये सम्बोधन में योजना आयोग का आकार बदलने की बात कही है। आपने कहा कि योजना आयोग के वर्तमान रूप को समाप्त करके इसे थिंक टैंक में बदला जायेगा। पिछली सरकार ने योजना आयोग के मूल्यांकन को कमेटी बनाई थी। कमेटी ने सुझाव दिया था कि आयोग को समाप्त कर दिया जाए और इसके स्थान पर थिंक टैंक की स्थापना की जाए। विचार अच्छा है। परन्तु उपचार करने के पहले रोग के कारणों को समझना अच्छा जरूरी है।

आयोग का मुख्य उद्देश्य देश के विकास का रोड मैप बनाना था। विभिन्न मंत्रालयों की नीतियों में सामंजस्य बैठाना कमीशन की जिम्मेदारी थी। जैसे ऊर्जा मंत्रालय जंगल काटना चाहता है जबकि पर्यावरण मंत्रालय उनकी रक्षा करना चाहता है। ऐसे में योजना आयोग का काम है कि दोनों पहलुओं के बीच रास्ता निकाले जैसा कि कमीशन द्वारा बनाई गई इंटेग्रेटेड इनर्जी पालिसी में प्रयास किया गया है। इस रपट में दिये गये सुझावों से में सहमत नहीं हूं परन्तु इससे इन्कार नहीं किया जा सकता है कि योजना आयोग ने सामंजस्य बनाने का प्रयास किया है। अत: यह कहना अनुचित है कि योजना आयोग पूर्णतया फेल है।

योजना आयोग सहित पूरी सरकार की समस्या दूसरे स्तर पर है। 1750 के पहले इंग्लैण्ड और नीदरलैण्ड को छोड़ शेष विश्व पर राजाओं का एकाधिकार था। उस समय इंग्लैण्ड में औद्योगिक क्रान्ति शुरू हुई थी। जनता के जीवन स्तर में सुधार आया। शिक्षा का प्रसार हुआ और जनता ने शासन में अपनी भागीदारी की मांग की। सत्रहवीं शताब्दी में विचारक जान लाक ने यह क्रान्तिकारी विचार दिया था कि शासक को जनता द्वारा ही अधिकार दिया जाता है और वह जनता की सहमति से ही शासन करता है। इन बदलाव का परिणाम लोकतंत्र के रूप में प्रस्फुटित हुआ।

वर्तमान समय एक और सीढ़ी चढऩे का है। सूचना क्रान्ति ने हर व्यक्ति के लिए सरकारी नीतियों की जानकारी प्राप्त करना आसान बना दिया है। लोगों के पास शिक्षा और समय है। चाय की दुकान पर लोग तमाम विषयों पर चर्चा करते हैं। केवल 5 साल में वोट देकर और सत्ता परिवर्तन करके अब जनता संतुष्ट नहीं है। वे चाहते हैं कि सरकार उनकी सुने और उन्हें बताए कि उनके द्वारा दिए जाने वाले सुझावों को लागू करने में समस्या क्या है। जनता के मन में बैठ गया है कि सरकार वास्तव में नेताओं और नौकरशाहों का हित साधने का काम कर रही है। यही कारण है कि जनता के द्वारा जनता के हित में दिए गए सुझावों की अनदेखी कर दी जाती है।

आज तमाम देशों में सरकार द्वारा इस दिशा में पहल की जा रही है। चीन में राष्ट्रपति जी जिंग ने चीनी ढंग की थिंक टैंक बनाने को प्रोत्साहन दिया है। चीन के कम्युनिस्ट पार्टी के नवम्बर 2013 के सम्मेलन में अधिकारियों द्वारा जनता से वार्ता करने की नई व्यवस्था स्थापित करने का निर्णय लिया गया। दक्षिण अफ्रीका की योजना आयोग ने राष्ट्र के विकास के प्लान को अपनी वेबसाइट पर डालने के बाद जनता से अपना सुझाव देने का आमंत्रण दिया। कमीशन ने 72 घंटे तक केवल जनता से इंटरनेट के माध्यम से वार्ता की। कमीशन के अध्यक्ष स्वयं लैपटाप पर लोगों के प्रश्नों के जवाब दे रहे थे। इसी प्रकार के सुधार न्यूजीलैण्ड, कनाडा और इंग्लैण्ड में लागू किए गए हैं।

योजना आयोग की मूल कमी है कि वह जनता से कट चुकी है। पूर्व प्रमुख मोंटेक अहलूवालिया प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के नजदीकी माने जाते थे। इनके दरवाजे पीएमओ के लिए खुले और जनता के लिए बन्द थे। योजना आयोग अदृश्य शक्तियों और तथा कार्पोरेट घरानों द्वारा चलाया जा रहा था। मेरा अनुभव इस बात को प्रमाणित करता है। मंैने पुस्तक लिखी थी जिसमें हाइड्रोपावर प्रोजेक्ट के लाभ हानि का आकलन किया था। मैंने पाया कि हाइड्रोपावर के नकारात्मक पर्यावरणीय प्रभावों का आर्थिक मूल्य ज्यादा था और बिजली से मिलने वाला लाभ कम। मैं योजना आयोग के सदस्य किरीट पारीख से मिला। उन्होंने आश्वासन दिया कि वे हाइड्रोपावर का समग्र अध्ययन करायेंगे। दुर्भाग्यवश उन्होंने ही अध्ययन कराया ही मुझे दुबारा मिलने का समय दिया। इसके बाद मैं नये सदस्य बीके चतुर्वेदी से मिला। आपके साथ भी वही कहानी घटी। तात्पर्य यह कि योजना आयोग अपने आकाओं के इशारे पर और आकाओं के स्वार्थ साधने के लिए कार्य कर रहा था कि जनता के लिए। ऐसे में योजना आयोग को समाप्त करके थिंक टैंक बनाने से कोई अंतर नहीं पड़ेगा। थिंक टैंक भी आकाओं की मनमर्जी का सुझाव देगा। जनविरोधी योजना आयोग के बदले जनविरोधी थिंक टैंक स्थापित करने में क्या लाभ है?

जरूरत है कि योजना आयोग का जुड़ाव जनता से स्थापित किया जाए विशेषकर सरकार के आलोचकों से। कबीर ने कहा है कि ''निन्दक नियरे राखिये, आंगन कुटी छवाय। बिन पानी साबुन बिना, निर्मल करे सुभाय।“ यह बात योजना आयोग पर भी लागू होती है। यदि योजना आयोग देश को दिशा देने में असफल रहा है तो इसका कारण आलोचकों से दूरी रखना है। योजना आयोग में नये विचारों का प्रवेश नहीं है। इस रोग का उपचार योजना आयोग को नया नाम देने से नहीं निकलेगा। कमीशन में कार्यरत कर्मचारी अदृश्य शक्तियों एवं कार्पोरेट घरानों द्वारा चलाये जाने के आदी हो चुके हैं। थिंक टैंक की भूमिका में भी ये इन्हीं शक्तियों द्वारा चलाये जायेंगे।  प्रधानमंत्री को चाहिए कि योजना आयोग अथवा थिंक टैंक में उस विषय से जुड़े सरकार के आलोचकों को स्थान दें। ऐसा करने से सरकार का जनता से जुड़ाव होगा और वास्तव में थिंक टैंक की स्थापना होगी।

इसके अतिरिक्त सरकार के वर्तमान चरित्र में बदलाव हासिल करने को प्रधानमंत्री को मेरे दो और सुझाव हैं। पहला कि सीएजी की तर्ज पर सरकार के हर विभाग का सामाजिक आडिट कराने की स्वतंत्र संस्था स्थापित की जाए। देखा जाए कि विभाग ने अपनी जिम्मेदारी का कितना निर्वाह किया है जैसे बिजली विभाग के एक्जीक्यूटिव इंजीनियर से पूछा जाए कि लाइन के फाल्ट को रोकने के लिए उन्होंने क्या कदम उठाये हैं। लेकिन सीएजी की तरह यह संस्था स्वयं आडिट करे। संस्था द्वारा आडिट कमेटी बनाई जाए जिसमें जनप्रतिनिधि, शिक्षक, एनजीओ, वकील, पत्रकार और उस विभाग के उपभोक्ताओं को रखा जाए।  बिजली विभाग की सामाजिक आडिट की कमेटी में उद्यमी और किसानों को रखा जाये। इस कमेटी के लिए जनसुनवाई करना अनिवार्य होना चाहिये। इस प्रकार के आडिट से अधिकारियों में जनता के प्रति नरमी आयेगी।


दूसरा सुझाव है कि सूचना के अधिकार की तर्ज पर ''जवाब का अधिकार'' कानून बनाया जाए। आज यदि एक उपभोक्ता बिजली विभाग को ट्रान्सफार्मर बड़ा करने को लिखता है तो कोई जवाब नहीं मिलता है। अधिकारी के लिए अनिवार्य बना देना चाहिये कि वह जनता को बताए कि बड़ा ट्रान्सफार्मर क्यों नहीं लगाया जा सकता है। ऐसी अनिवार्यता के चलते अधिकारी बाध्यतावश स्वयं ही जनता की बात सुनने लगेंगे। विषय मात्र योजना आयोग का नहीं, बल्कि सरकार के हर विभाग का है। जनभागीदारी सुनिश्चित करनी चाहिए तब ही राष्ट्र में एकमत बनेगा और देश आगे बढ़ेगा।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

कुल पेज दृश्य