भूमंडलीकरण
की अवधारणा कोई
नई नहीं है
और न ही
वह अकस्मात् आ
धमकी है। वह
कब आरंभ हुई,
इसको लेकर काफी
विवाद है। कुछ
लोग मानते हैं
कि भूमंडलीकरण की
प्रक्रिया मानव इतिहास
के आरंभ से
ही चल रही
है।
विद्वानों
के दूसरे समूह
का मानना है
कि भूमंडलीकरण पूंजीवाद
के साथ जुड़ा
रहा है। इस दृष्टि
से उसका अधुनिकीकरण
से गहरा रिश्ता
रहा है। इसके
विपरीत ऐसे भी
लोग हैं जो
मानते हैं कि
भूमंडलीकरण उत्तर औद्योगीकरण और
उत्तर-आधुनिकता का
ही एक हिस्सा
है और इस
प्रकार वह एक
नई घटना है।
गहराई
में जाकर देखें
तो इन तीनों
के बीच कोई
बुनियादी फर्क नहीं
है। वस्तुत: भूमंडलीकरण
की प्रक्रिया किसी
न किसी रूप
में हमेशा ही
रही है। वर्तमान
भूमंडलीकरण की प्रक्रिया
15वीं, 16वीं सदी
के दौरान अंकुरित
होने लगी थी।
तब से आरंभ
हुई प्रक्रिया आधुनिकीकरण
और पूंजीवाद से जुड़ी
रही है।
भूमंडलीकरण
के अर्थ में
भारी बदलाव आया
है। जेम्स एल.
वाटसन ने भूमंडलीकरण
को सांस्कृतिक दृष्टि
से परिभाषित किया
है। वह यह
प्रक्रिया है जिसके
अंतर्गत दैनिक जीवन के
अनुभव मॉलों और
विचारों को सांस्कृतिक
रूप में व्यक्त
करते हैं। विश्व
बैंक भूमंडलीकरण को
एक विशुद्ध आर्थिक
प्रक्रिया मानता है।
कई
लोग भूमंडलीकरण को
पूंजीवाद की विस्तारवादी
और शोषक प्रवृत्ति
की अभिव्यक्तिमानते हैं
जिसमें इंटरनेट, मोबाईल फोन,
टी.वी. आदि
की बड़ी भूमिका
है। यहां यह
बात स्पष्ट नहीं
है कि इनके
आने के पहले
भी भूमंडलीकरण की
क्या कोई प्रक्रिया
थी? ''फार ईस्टर्न
इकॉनामित रिव्यू के पूर्व
संपादक नयन चंदा
ने आज से
सात साल पहले
अपनी पुस्तक ''बाउंड
टू गेदर में
रेखांकित किया था
कि मानव जाति
की प्रवृति आरंभ
से ही सारी
दुनिया में फैलने
की रही है।
उनके अनुसार मानव
जाति का उद्भव
अफ्रीका में हुआ
और करीब 50 हजार
वर्ष पहले उसका
फैलाव बाकी दुनिया
में हुआ। अफ्रीका
में खाने-पीने
की चीजों के
अभाव के कारण
उन्हें अन्यत्र जाना पड़ा।
आरंभ में उनका
फैलाव धीमी गति
से हुआ मगर
कालक्रम में उसमें
अनेक कारणों से
तेजी आई।
इतिहास
बतलाता है कि
आरंभ में जिन्दगी
काफी कठिन थी।
कंद मूल बटोर
कर और खरगोश
वगैरह का शिकार
कर किसी तरह
जिन्दगी गुजारी जाती थी।
कालक्रम में जब
बस्ती के इर्द-गिर्द कंदमूल, फल
और खाए जाने
वाले जानवरों का
अभाव सूखा पडऩे
के कारण हुआ
तब लोगों ने
विभिन्न दिशाओं में प्रस्थान
किया और अन्यत्र
जाकर बसने लगे।
उनकी बोली, भाषा
और पहनावे में
काफी फर्क आया।
इन लोगों को
परस्पर जोडऩे में व्यापारियों,
धर्मप्रचारकों और दु:साहसी लोगों ने
भारी भूमिका निभाई।
हजारों-हजार साल
गुजरने के बाद
लोगों को अपने
उद्गम की याद
लगभग समाप्त हो
गई। लोगों के
बीच इतना फर्क
आ गया कि
हम अलग-अलग
नस्लों की बात
करने लगे। यहां
प्रश्न उठता है
कि हमें यह
कैसे पता है
कि हमारा उद्गम
स्थल अफ्रीका ही
है क्योंकि मनुष्यों
से काफी कुछ
समानता रखने वाले
गोरिल्ला और चिम्पैजी
वहीं पाए गए
हैं। अत: संभव
है कि उनसे
मिलते-जुलते लोग
वहीं पैदा हुए
थे।
डार्विन
के इस कथन
को जांच डी.एन.ए.
की बनावट के
आधार पर की
गई और डार्विन
का अनुमान सही
निकला। 1980 के दशक
में निर्विवाद रूप
से मान लिया
गया कि मानव
जाति का उद्गम
स्थल अफ्रीका ही
था। वहीं से
निकलकर लोग एशिया,
आस्ट्रेलिया और यूरोप
तथा बाद में
अमेरिका पहुंचे।
भूमंडलीकरण
की यह पहली
घटना थी जब
मानव जाति अफ्रीका
से निकलकर शेष
दुनिया में फैली।
दो हजार वर्ष
पूर्व सतही तौर
पर उनमें कोई
समानता नज़र नहीं
आई क्योंकि उनके
खान-पान पहनावे
बोली और रंग-रूप एक-दूसरे से सर्वथा
भिन्न थे। उनपर
पर्यावरण का गहरा
प्रभाव दिखा। कालक्रम में
राज्य के उदय
के साथ लड़ाई-झगड़े बढ़े। सशस्त्र
बल के जरिए
वे दूसरों को
मातहत में लाने
की कोशिश करने
लगे।आरंभ में कंदमूल,
फल, शिकार और
मछली मारकर लोग
अपना गुजर-बसर
करते रहे। पहली
बार गेंहू का
जिक्र तुर्की में
मिलता है। फिर
छ: से चार
हजार वर्ष ईसा
पूर्व वह तुर्की
से सिंधु घाटी
होते हुए चीन
पंहुचा। चीन में
11,500 वर्ष पहले चावल
की खेती आरंभ
हुई जो दक्षिण
एशिया होते हुए
अन्यत्र फैली। जमीन लड़ाई
का मुख्य मुद्दा
हो गई।
खेती-बाड़ी शुरू होने
पर लोग यायावरी
छोड़कर एक ही
स्थान पर रहने
लगे। ईसा से
4000 वर्ष पूर्व लोगों को
घोड़े की अहमियत
का ज्ञान हुआ।
उनकी पीठ पर
बैठ और गाडिय़ों
में जोतकर गति
को बढ़ाया गया।
घोड़े ने व्यापारियों
और सैनिकों की
रफ्तार बढ़ाई। व्यापारियों के
आने-जाने के
क्रम में इंडो-यूरोपियन भाषाओं का
जन्म हुआ। आज
से हजारों वर्ष
पूर्व बाहर से
आर्य आकर भारत
में बसे। इनके
बहुत बाद सिकंदर
ने भारत पर
कब्जा करने का
असफल प्रयास किया।
सिकंदर से लेकर
चंगेज खां और
नेपोलियन ने जाने-अनजाने भूमंडलीकरण की
प्रक्रिया को आगे
बढ़ाया। इनमें से हर
किसी की कोशिश
रही कि संपूर्ण
विश्व को एक
ही सर्वोच्च शासक
के अधीन लाया
जाए। याद रहे
कि सिकंदर से
चंगेज खां तक
किसी ने भी
विभिन्न क्षेत्र की उत्पादन-पद्धति को नहीं
बदला। नेपोलियन की
स्थिति-भिन्न रही। उसने
सामंती उत्पादन-पद्धति को
खत्म कर पूंजीवाद
के विकास का
रास्ता प्रशस्त करने की
कोशिश की।
पूंजीवाद
के पूर्व इन
पराजित क्षेत्रों की संपदा
को पूंजी में
रूपान्तरित करना संभव
न था। अत:
लूटी गई दौलत
को उपभोग पर
ही खर्च किया
जाता था। इमारतों
और स्मारकों का
निर्माण कर अपनी
शोहरत फैलाने की
कोशिश होती थी।
कृषि
जन्य सभ्यता के
विकास के साथ
राज्य की शक्ति
बढ़ी। राज्य ईश्वरत्व
के साथ जुड़ा
था। राज्य की
सफलता का श्रेय
स्थानीय देवी-देवताओं
को ही दिया
जाता था।
प्राचीनकाल
में खच्चरों, घोड़ों
तथा बैलगाडिय़ों के
जरिए एक जगह
से दूसरी जगह
सामान लाने ले
जाने के क्रम
में लुटेरों का
सामना करना पड़ता
था। ईसा पूर्व
3000 और 2000 वर्षों के आसपास
रेगिस्तान में ऊंटों
का इस्तेमाल आरंभ
हुआ। समुद्री रास्ते
से होकर पूर्वी
भूमध्य सागर और
भारत पहुंचने में
नाव सहायक बने।
भारत के मालाबार
तट पर बसे
क्षेत्रों के साथ
यूरोप और अरब
देशों ने व्यापारिक
संबंध बनाए। 1600 ई.
के आसपास इंग्लिश
और डच ईस्ट
इंडिया कंपनी की स्थापना
हुई। इस स्थिति
में बदलाव तब
आया जब रॉबर्ट
फुल्टन ने वाष्प
संचालित स्टीमर का आविष्कार
किया। नतीजतन सामान
लाने ले जाने
का खर्च काफी
कम हो गया।
वर्ष 1840 में कुल
मिलाकर दो करोड़
टन का व्यापार
विभिन्न देशों के बीच
होने लगा। 1870 के
दशक के आते-आते 8 करोड़ 80 लाख
टन का व्यापार
होने लगा। वर्ष
1840 और 1910 के बीच
माल भाड़े में
प्रति वर्ष 1.5 प्रतिशत
की कमी देखी
गई। वर्ष 1877 में
फर्डिनांद कैर्रे ने पहले
रेफ्रिजरेटेड जहाज का
ईजाद किया जिससे
ताजा भोजन, अर्जेंटीना
का गोमांस और
आस्ट्रेलिया की भेंड़
की टांग यूरोप
पहुंचने लगी। आस्टे्रलिया,
संयुक्त राज्य अमेरिका और
भारत से गेहूं
और सूती कपड़े
यूरोप पहुंचने लगे।
पनामा नहर और
स्वेज नहर के
निर्माण ने दूरियां
काफी कम कर
दीं।
पेंसिलवानिया
में पेट्रोल निकलने
के बाद उसे
साफ करने का
धंधा आरंभ हुआ।
कंटेनर जहाज अस्तित्व
में आया। साथ
ही हवाई भाड़े
में भी कमी
आई। वर्ष 1950 और
1998 के बीच विनिर्मित
वस्तुओं का भाड़ा
32 प्रतिशत से घटकर
9 प्रतिशत हो गया।
आरंभ में मुद्रा
और के्रडिट कार्ड
की भारी भूमिका
रही। भारतीय उपमहाद्वीप
और मध्यपूर्व में
हुंडी का प्रचलन
रहा। विश्व में
स्वर्ण भंडार में वृद्धि
ने व्यापार को
बढ़ावा दिया। डच और
अंग्रेज भारतीय व्यापारियों को
उनके मालों का
भुगतान सोने-चांदी
में करने लगे।
कालक्रम
में कागजी मुद्रा
का चलन आरंभ
हुआ जिन्हें सार्वभौम
सरकारों ने जारी
किया। यह सिलसिला
महामंदी तक जारी
रहा। तत्काल विश्व
व्यापार अमेरिकी डालर के
आधार पर होता
है। 1920 के दशक
में क्रेडिट कार्ड
का चलन आरंभ
हुआ। लोग अब
अपने भावी आय
के आधार पर
खरीदारी करने लगे।
वर्ष 1950 में फ्रैंक
एक्स. मैकेनामारा ने
अपना पहला विश्वव्यापी
कार्ड-द डाइनर्स
क्लब जारी किया।
इसके आठ वर्ष
बाद अमेरिकन एक्सप्रेस
ने अपना कार्ड
जारी किया।
वस्तुओं
की क्रय-विक्रय
के क्रम में
एक भारी समस्या
संचार की कठिनाइयों
से जुड़ी रही।
ईसा पूर्व 5000 वर्ष
के दौरान इराक
में रहने वाले
सुमेरी लोगों ने लेखन
का ईजाद कर
इस समस्या को
हल किया। चीन
और मध्य एशिया
पर मंगोलों का
दबदबा होने के
बाद सिल्क रोड
पर पोस्टल स्टेशन
बनाए गए जिनके
जरिए सूचना और
व्यावसायिक करारों के विषय
में बतलाया जाने
लगा। बारहवीं शताब्दी
के अंत तक
चंगेज खां ने
यूरोप से लेकर
मंगोलिया तक प्रशिक्षित
कबूतरों के जरिए
संदेश भेजना आरंभ
किया। फिर भारत
के मालावार तट
से डाक का
सिलसिला आरंभ हुआ।
यह सिलसिला 1844 में
टेलीग्राफ के उदय
के बाद समाप्त
हुआ। वर्ष 1872 में
वेस्टर्न यूनियन के बल
कंपनी ने टेलीग्राफ
के जरिए मनीआर्डर
भेजने का सिलसिला
आरंभ किया। उपभोक्ता
और व्यापारी एक
साथ जुड़ गए।
1866 में अंटलांटिक महासागर की
एक छोर से
दूसरी छोर तक
केबल लगाए जाने
के परिणामस्वरूप व्यावसाय
को बढ़ावा मिला
और कीमतें घटीं।
वर्ष 1870 में ब्रिटिश
इंडियन सबमेरिन टेलीग्राफ कंपनी
ने लंदन और
मुंबई के बीच
पहला टेलीग्राफिक लिंक
बनाया। कालक्रम में सारी
दुनिया टेलीफोन और टेलीग्राफ
के जरिए जुड़
गई। वर्ष 1966 में
अमेरिकियों ने ए.एस.सी.आई.आई.
विकसित किया। जिससे संवाद
को एक जगह
से दूसरी जगह
भेजना आसान हो
गया। 1960 के दशक
के मध्य में
येल विश्वविद्यालय के
छात्र फ्रेड स्मिथ
ने कम्प्यूटर की
शक्ति को व्यापार
के साथ जोडऩे
की बात की।
1970 में उसने फेडरल
एक्सप्रेस नाम की
कंपनी बनाई।
इलेक्ट्रॉनिक
क्रांति के फलस्वरूप
व्यक्तिगत कप्यूटर और वल्र्ड
वाइड वेब सामने
आया। इंटरनेट के
साथ ही फाइबर-ऑप्टिक कम्यूनिकेशंस आया।
इससे किसी भी
समय बेरोकटोक फोन
संभव हो गया।
शिकागो स्टॉक एक्सचेंज ने
1999 में अपने यहां
24 घंटे कारोबार का सिलसिला
आरंभ किया जिसे
दुनिया ने अपनाया।
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