शनिवार, 3 अगस्त 2013

लोकतंत्र से खतरनाक खिलवाड़

करीब सौ साल पहले कार्ल मा‌र्क्स ने दुनिया के मजदूरों का आह्वान किया था सभी एकजुट हो जाओतुम्हें खोने के लिए कुछ नहीं हैसिवाय तुम्हारी जंजीरों के। आज ऐसा प्रतीत होता है कि हमारे नेता आह्वान कर रहे हैं कि अपराधियों एकजुट हो जाओवरना तुम्हारा सब कुछ चला जाएगाविधानसभा और संसद के दरवाजे बंद हो जाएंगे।

भारत का लोकतंत्र आज ऐसे दौर से गुजर रहा है जब लोगों का इस तंत्र में विश्वास ही उठता जा रहा है। विद्यार्थियों को पढ़ाया जाता है कि लोकतंत्र का अर्थ है-गवर्नमेंट ऑफ द पीपुलबाइ द पीपुल एंड फॉर द पीपुल अर्थात जनता की सरकारजनता के द्वारा और जनता के लिए। आज हम इसका जो विकृत स्वरूप देख रहे हैंवह है-अपराधियों की सरकारअपराधियों के लिए और अपराधियों के द्वारा। 1हमारे नेता सुधार की बराबर दुहाई देते हैं। उनकी सुधार की परिभाषा में केवल एक ही बात आती है और वह है प्रत्यक्ष विदेशी निवेश। सुधार में चुनाव सुधारप्रशासनिक सुधारपुलिस सुधारजेल सुधार इत्यादि की कोई चर्चा नहीं होतीजबकि इनकी आवश्यकता सर्वाधिक है। सच्चाई तो यह है कि हमारे लोकतंत्र में जो विष फैल गया है उसकी जड़ों में हमारी चुनाव व्यवस्था की विकृतियां हैं-ऐसी विकृतियां जो गंभीर मामलों से घिरे लोगों को संसद और विधानसभा में घुसने की छूट देती हैं। 1चुनाव सुधार की बात बराबर होती आ रही हैचुनाव आयोग भी दबी जुबान से इनका उल्लेख करता है। परंतु सुधार संबंधित सभी संस्तुतियों को अंत में नकार दिया जाता है। और नकारा भी क्यों न जाएआपराधिक पृष्ठभूमि के व्यक्तियों की संख्या हमारी संसद और विधानसभाओं में बराबर बढ़ती जा रही है। यह लोग अपने पैर पर कुल्हाड़ी क्यों मारेंगे?एसोसिएशन फार डेमोक्त्रेटिक रिफार्म्स ने हाल में कुछ आंकड़े प्रसारित किए हैं। इनके अनुसार लोकसभा के 162 यानी 30 फीसद सदस्यों पर आपराधिक मुकदमे दर्ज हैं और इनमें से 14 फीसद पर गंभीर मुकदमे हैं। राच्यसभा में 232 में से 40 यानी 17 फीसद की पृष्ठभूमि आपराधिक है और इनमें से 16 यानी 7 प्रतिशत गंभीर मामले हैं। राच्य विधानमंडलों में 4032 में 1258 यानी31 फीसद पर मुकदमे दर्ज हैंजिनमें 15 फीसद पर गंभीर मामले हैं। जिस दिन यह आंकड़े 50फीसद के पास पहुंच जाएंगे उस दिन भारत को अंतरराष्ट्रीय समुदाय एक आपराधिक राच्य का दर्जा देगा और हमारी गिनती नाइजीरिया जैसे देशों के साथ होगी। उस स्थिति की कल्पना करके किसी भी संवेदनशील व्यक्ति का सिर शर्म से झुक जाएगापरंतु सच्चाई यह है कि हम उसी दिशा में बढ़ते जा रहे हैं। 1भला हो देश की न्यायपालिका काभला हो देश के केंद्रीय सूचना आयोग का कि उन्होंने राजनीतिक कचरा साफ करने का कुछ प्रयास किया। सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में एक फैसला दिया कि संसद और विधानसभा के जो भी सदस्य अदालत द्वारा दोषी करार दिए जाते हैं उन्हें अपनी सीट से हाथ धोना पड़ेगा। इसी तरह जो सदस्य जेल में किसी मामले में सजा काट रहे हैंवह चुनाव प्रक्त्रिया में नहीं शामिल हो सकेंगे। केंद्रीय सूचना आयोग ने भी यह फैसला दिया कि राजनीतिक दल सार्वजनिक संस्थाएं हैंइसलिए वे सूचना कानून की परिधि में आते हैं। इस फैसले से हमारे नेता वर्ग में खलबली मच गई। बड़े अफसोस की बात यह है कि सभी राजनीतिक दल एकजुट होकर इन फैसलों का विरोध कर रहे हैं। सिंदबाद की कहानी की तरह अच्छी छवि के नेताओं की गर्दन पर आपराधिक पृष्ठभूमि के नेता सवार हैं। सिंदबाद ने तो अपने गर्दन पर सवार आदमी को जैसे-तैसे गिरा दिया था। क्या स्वच्छ छवि के नेता ऐसा कुछ कर पाएंगेफिलहाल तो ऐसा कुछ संकेत नहीं दिख रहा है। 1कांग्रेससमाजवादी पार्टीबहुजन समाज पार्टीभारतीय जनता पार्टी सहित देश के तमाम राजनीतिक दल अपने दागी नेताओं को बचाने के लिए एकजुट हो गए हैं। केंद्र सरकार भी सुप्रीम कोर्ट के उस आदेश को निष्प्रभावी बनाने के लिए तैयार हो गई है जिसके अंतर्गत जेल जाने या सजा होने पर नेताओं के चुनाव लड़ने पर रोक लगाई गई थी। इतना ही नहीं,राजनीतिक दलों को सूचना के अधिकार यानी आरटीआइ कानून के दायरे से बाहर रखने के लिए भी सरकार राजी हो गई है। संशोधित विधेयक संसद के मानसून सत्र में ही पेश किए जाएंगे। देश की जनता हतप्रभ है। लोकपाल बिल नौ बार लोकसभा में पेश हुआपरंतु आज तक पारित नहीं हुआ, 42 साल बीत गए। महिला आरक्षण का बिल बार-बार संसद में आता हैपर पास नहीं हो पाता। काले धन पर रोक की चर्चा होती हैपर रोकने के लिए कोई प्रभावी कदम नहीं उठाया जाता। राष्ट्रीय सुरक्षा के मुद्दे पर तो बहस भी नाममात्र को होती है। कहने का मतलब यह है कि महत्वपूर्ण विषयों से संबंधित विधेयक पर तो सहमति नहीं बन पातीपरंतु संसद और विधानसभा में आपराधिक पृष्ठभूमि के व्यक्तियों को बचाने के मुद्दे पर सारे राजनीतिक दलों में अभूतपूर्व एकता दिख रही है। यह कैसी संसद हैयह कैसे जनप्रतिनिधि हैंआज देश में ध्रुवीकरण की बात सुनने में आती है। एक नया ध्रुवीकरण भी हो रहा है जिसे हमारे नेताओं को समझना होगाइसमें एक तरफ तो देश के नेता हैं और उनके समर्थन में भ्रष्ट प्रशासनिक व्यवस्था है। दूसरी तरफ न्यायपालिका और देश का जनमानस है। न्यायपालिका की तारीफ करनी पड़ेगी कि वह जनता की तकलीफों को समझ रही है और तदनुसार आदेश पारित करती हैपरंतु हमारे सत्ताधारी नेताओं ने अपनी आंखों में स्वार्थ की पट्टी बांध ली है। ऐसे में देश के भविष्य के बारे में चिंता और निराशा,दोनों होती है। उपरोक्त ध्रुवीकरण का एक नजारा उत्तार प्रदेश में देखने को आ रहा हैजहां एक ईमानदार आइएएस अधिकारी को इसलिए निलंबित कर दिया गया कि उसने माफिया गिरोहों से मोर्चा लिया। 1प्रदेश सरकार तरह-तरह की दलील दे रही है कि सांप्रदायिक स्थिति न बिगड़े इसलिए ऐसा किया गयापरंतु जमीन से जुड़े सभी लोग जानते हैं कि यह एक लचर दलील है जिसका सच्चाई से कोई लेना-देना नहीं। स्थानीय अधिकारियों की रिपोर्ट से यह भी स्पष्ट हो गया है कि दीवार स्थानीय लोगों ने ही गिराई थी और क्षेत्र में कोई सांप्रदायिक तनाव था ही नहीं। इस प्रकार की लड़ाई अब बढ़ती ही जाएगी। एक तरफ अपराधी और उनके समर्थकों की कौरवी सेना होगी और दूसरी तरफ बचे-खुचे ईमानदार व्यक्तिजिन्हें न्यायपालिका और समाज में शुचिता के आकांक्षी लोगों का समर्थन हासिल है। यह स्थिति किसी के लिए अच्छी नहीं होगी। अच्छा होता यदि हमारे राजनेता अपने स्वार्थ से ऊपर उठकर समाज की प्रगतिसमुदायों में सद्भाव और देश की उन्नति के प्रति अपनी प्रतिबद्धता दिखाते। 1112स्त्रल्ल2ीन्ॠ1ंल्ल.ङ्घेकरीब सौ साल पहले कार्ल मार्क्?स ने दुनिया के मजदूरों का आह्वान किया था सभी एकजुट हो जाओतुम्हें खोने के लिए कुछ नहीं हैसिवाय तुम्हारी जंजीरों के। आज ऐसा प्रतीत होता है कि हमारे नेता आह्वान कर रहे हैं कि अपराधियों एकजुट हो जाओवरना तुम्हारा सब कुछ चला जाएगाविधानसभा और संसद के दरवाजे बंद हो जाएंगे। भारत का लोकतंत्र आज ऐसे दौर से गुजर रहा है जब लोगों का इस तंत्र में विश्वास ही उठता जा रहा है। विद्यार्थियों को पढ़ाया जाता है कि लोकतंत्र का अर्थ है-गवर्नमेंट ऑफ द पीपुलबाइ द पीपुल एंड फॉर द पीपुल अर्थात जनता की सरकारजनता के द्वारा और जनता के लिए। आज हम इसका जो विकृत स्वरूप देख रहे हैंवह है-अपराधियों की सरकारअपराधियों के लिए और अपराधियों के द्वारा। 1हमारे नेता सुधार की बराबर दुहाई देते हैं। उनकी सुधार की परिभाषा में केवल एक ही बात आती है और वह है प्रत्यक्ष विदेशी निवेश। सुधार में चुनाव सुधार,प्रशासनिक सुधारपुलिस सुधारजेल सुधार इत्यादि की कोई चर्चा नहीं होतीजबकि इनकी आवश्यकता सर्वाधिक है। सच्चाई तो यह है कि हमारे लोकतंत्र में जो विष फैल गया है उसकी जड़ों में हमारी चुनाव व्यवस्था की विकृतियां हैं-ऐसी विकृतियां जो गंभीर मामलों से घिरे लोगों को संसद और विधानसभा में घुसने की छूट देती हैं। 1चुनाव सुधार की बात बराबर होती आ रही हैचुनाव आयोग भी दबी जुबान से इनका उल्लेख करता है। परंतु सुधार संबंधित सभी संस्तुतियों को अंत में नकार दिया जाता है। और नकारा भी क्यों न जाएआपराधिक पृष्ठभूमि के व्यक्तियों की संख्या हमारी संसद और विधानसभाओं में बराबर बढ़ती जा रही है। यह लोग अपने पैर पर कुल्हाड़ी क्यों मारेंगेएसोसिएशन फार डेमोक्त्रेटिक रिफार्म्स ने हाल में कुछ आंकड़े प्रसारित किए हैं। इनके अनुसार लोकसभा के 162 यानी 30 फीसद सदस्यों पर आपराधिक मुकदमे दर्ज हैं और इनमें से14 फीसद पर गंभीर मुकदमे हैं। राच्यसभा में 232 में से 40 यानी 17 फीसद की पृष्ठभूमि आपराधिक है और इनमें से 16 यानी 7 प्रतिशत गंभीर मामले हैं। राच्य विधानमंडलों में 4032 में1258 यानी 31 फीसद पर मुकदमे दर्ज हैंजिनमें 15 फीसद पर गंभीर मामले हैं। जिस दिन यह आंकड़े 50 फीसद के पास पहुंच जाएंगे उस दिन भारत को अंतरराष्ट्रीय समुदाय एक आपराधिक राच्य का दर्जा देगा और हमारी गिनती नाइजीरिया जैसे देशों के साथ होगी। उस स्थिति की कल्पना करके किसी भी संवेदनशील व्यक्ति का सिर शर्म से झुक जाएगापरंतु सच्चाई यह है कि हम उसी दिशा में बढ़ते जा रहे हैं। 1भला हो देश की न्यायपालिका काभला हो देश के केंद्रीय सूचना आयोग का कि उन्होंने राजनीतिक कचरा साफ करने का कुछ प्रयास किया। सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में एक फैसला दिया कि संसद और विधानसभा के जो भी सदस्य अदालत द्वारा दोषी करार दिए जाते हैं उन्हें अपनी सीट से हाथ धोना पड़ेगा। इसी तरह जो सदस्य जेल में किसी मामले में सजा काट रहे हैंवह चुनाव प्रक्त्रिया में नहीं शामिल हो सकेंगे। केंद्रीय सूचना आयोग ने भी यह फैसला दिया कि राजनीतिक दल सार्वजनिक संस्थाएं हैंइसलिए वे सूचना कानून की परिधि में आते हैं। इस फैसले से हमारे नेता वर्ग में खलबली मच गई। बड़े अफसोस की बात यह है कि सभी राजनीतिक दल एकजुट होकर इन फैसलों का विरोध कर रहे हैं। सिंदबाद की कहानी की तरह अच्छी छवि के नेताओं की गर्दन पर आपराधिक पृष्ठभूमि के नेता सवार हैं। सिंदबाद ने तो अपने गर्दन पर सवार आदमी को जैसे-तैसे गिरा दिया था। क्या स्वच्छ छवि के नेता ऐसा कुछ कर पाएंगेफिलहाल तो ऐसा कुछ संकेत नहीं दिख रहा है। 1कांग्रेससमाजवादी पार्टीबहुजन समाज पार्टीभारतीय जनता पार्टी सहित देश के तमाम राजनीतिक दल अपने दागी नेताओं को बचाने के लिए एकजुट हो गए हैं। केंद्र सरकार भी सुप्रीम कोर्ट के उस आदेश को निष्प्रभावी बनाने के लिए तैयार हो गई है जिसके अंतर्गत जेल जाने या सजा होने पर नेताओं के चुनाव लड़ने पर रोक लगाई गई थी। इतना ही नहीं,राजनीतिक दलों को सूचना के अधिकार यानी आरटीआइ कानून के दायरे से बाहर रखने के लिए भी सरकार राजी हो गई है। संशोधित विधेयक संसद के मानसून सत्र में ही पेश किए जाएंगे। देश की जनता हतप्रभ है। लोकपाल बिल नौ बार लोकसभा में पेश हुआपरंतु आज तक पारित नहीं हुआ, 42 साल बीत गए। महिला आरक्षण का बिल बार-बार संसद में आता हैपर पास नहीं हो पाता। काले धन पर रोक की चर्चा होती हैपर रोकने के लिए कोई प्रभावी कदम नहीं उठाया जाता। राष्ट्रीय सुरक्षा के मुद्दे पर तो बहस भी नाममात्र को होती है। कहने का मतलब यह है कि महत्वपूर्ण विषयों से संबंधित विधेयक पर तो सहमति नहीं बन पातीपरंतु संसद और विधानसभा में आपराधिक पृष्ठभूमि के व्यक्तियों को बचाने के मुद्दे पर सारे राजनीतिक दलों में अभूतपूर्व एकता दिख रही है। यह कैसी संसद हैयह कैसे जनप्रतिनिधि हैंआज देश में ध्रुवीकरण की बात सुनने में आती है। एक नया ध्रुवीकरण भी हो रहा है जिसे हमारे नेताओं को समझना होगाइसमें एक तरफ तो देश के नेता हैं और उनके समर्थन में भ्रष्ट प्रशासनिक व्यवस्था है। दूसरी तरफ न्यायपालिका और देश का जनमानस है। न्यायपालिका की तारीफ करनी पड़ेगी कि वह जनता की तकलीफों को समझ रही है और तदनुसार आदेश पारित करती हैपरंतु हमारे सत्ताधारी नेताओं ने अपनी आंखों में स्वार्थ की पट्टी बांध ली है। ऐसे में देश के भविष्य के बारे में चिंता और निराशा,दोनों होती है। उपरोक्त ध्रुवीकरण का एक नजारा उत्तार प्रदेश में देखने को आ रहा हैजहां एक ईमानदार आइएएस अधिकारी को इसलिए निलंबित कर दिया गया कि उसने माफिया गिरोहों से मोर्चा लिया। 1प्रदेश सरकार तरह-तरह की दलील दे रही है कि सांप्रदायिक स्थिति न बिगड़े इसलिए ऐसा किया गयापरंतु जमीन से जुड़े सभी लोग जानते हैं कि यह एक लचर दलील है जिसका सच्चाई से कोई लेना-देना नहीं। स्थानीय अधिकारियों की रिपोर्ट से यह भी स्पष्ट हो गया है कि दीवार स्थानीय लोगों ने ही गिराई थी और क्षेत्र में कोई सांप्रदायिक तनाव था ही नहीं। इस प्रकार की लड़ाई अब बढ़ती ही जाएगी। एक तरफ अपराधी और उनके समर्थकों की कौरवी सेना होगी और दूसरी तरफ बचे-खुचे ईमानदार व्यक्तिजिन्हें न्यायपालिका और समाज में शुचिता के आकांक्षी लोगों का समर्थन हासिल है। यह स्थिति किसी के लिए अच्छी नहीं होगी। अच्छा होता यदि हमारे राजनेता अपने स्वार्थ से ऊपर उठकर समाज की प्रगतिसमुदायों में सद्भाव और देश की उन्नति के प्रति अपनी प्रतिबद्धता दिखाते।

भारत के निर्वाचक कानून

भारत प्रभुसत्तासंपन्न, समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष लोकतांत्रिक गणराज्य है। लोकतंत्र भारत के संविधान की कभी दूर न होने वाली बुनियादी विशेषताओं में से एक है तथा यह इसकी बुनियादी संरचना का अंग है (केसवानंद भारती बनाम केरल राज्य और अन्य एआइआर 1973 एससी 1461)। लोकतंत्र की परिकल्पना (जैसे कि संविधान में परिकल्पित की गई है)चुनाव की विध से संसद और राज्य विधायिकाओं में जनप्रतिनिधित्व की पूर्व कल्पना करती है (एन पी पुन्नूस्वामी बनाम रिटर्निंग अधिकारी एआइआर 1952 एससी 64)। लोेकतंत्र के बने रहने के लिए कानून के शासन को बने रहना चाहिए तथा यह आवश्यक है कि बेहतरीन उपलब्ध व्यक्ति देश के समुचित शासन के लिए जनप्रतिनिधि के रूप में चुने जाने चाहिए (गदख यशवंतराव कंकाराव बनाम बालासाहेब विखेपाटील एआइआर 1994 एससी 678)। और जन प्रतिनिधि के रूप में बेहतरीन उपलब्ध व्यक्तियों के चुने जाने के लिए चुनाव ऐसे वातावरण में स्वतंत्र और निष्पक्ष कराए जाने चाहिए जहां निर्वाचक अपनी स्वतंत्र इच्छा के अनुसार अपने वोट का इस्तेमाल करने में समर्थ हों। इस प्रकार स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव लोकतंत्र की रीढ़ का निर्माण करते हैं।

भारत ने सरकार बनाने के लिए ब्रिटिश संसदीय प्रणाली अपनाई है। हमारे यहां निर्वाचित राष्ट्रपति, निर्वाचित उपराष्ट्रपति, निर्वाचित संसद और हर राज्य के लिए निर्वाचित राज्य विधायिकाएं हैं। अब हमारे यहां निर्वाचित नगरपालिकाएं, पंचायतें और अन्य स्थानीय निकाय भी हैं। इन कार्यालयों और निकायों के लिए स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव सुनिश्चित करने के लिए तीन पूर्वापेक्षाएं हैं - 1. इन चुनावों को कराने के लिए एक प्राधिकरण जो राजनीतिक एवं कार्यकारी हस्तक्षेप से अलग होना चाहिए, 2. कानून जो चुनाव कराने को शासित करें और उस प्राधिकरण के अनुरूप हों जिसे इन चुनावों को कराने के जिम्मेदारी दी गई हो तथा 3. एक व्यवस्था जहां इन चुनावों के संबंध में उत्पन्न सभी संदेह और विवाद निपटाए जाने चाहिएं।

भारत के संवधिान में इन सभी अनिवार्यताओं पर उचित ध्यान दिया गया है तथा सभी तीनों मामलों के लिए उचित रूप से उपाय उपलब्ध कराए गए हैं।

संविधान ने भारत का स्वतंत्र निर्वाचन आयोग बनाया है जिसमें मतदाता सूची तैयार करने और राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति संसद और हर राज्य के लिए राज्य विधायिकाओं के चुनाव कराने के पर्यवेक्षण, निर्देश और नियंत्रण निहित है (अनुच्छेद 324)। ऐसे ही स्वतंत्र संवैधानिक प्राधिकरण की रचना नगर पालिकाओं, पंचायतों और अन्य स्थानीय निकायों के लिए की गई है। (अनुच्छेद 243 के और 243 जेडए)।

भारत के संविधान में राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति , संसद और हर राज्य के लिए राज्य विधायिकाओं के चुनाव के लिए कानून बनाने के लिए प्राधिकार संसद को दिया है (अनुच्छेद 71 और 327)। नगर पालिकाओं, पंचायतों और अन्य स्थानीय निकायों के लिए चुनाव कराने संबंधी कानून बनाने का दायित्व राज्य विधायिकाओं को दिया गया है (अनुच्छेद 243 के और 243 जेडए)। राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के चुनाव संबंधी सभी संदेह और विवाद उच्चतम न्यायालय देखता है (अनुच्छेद 71) जबकि संसद और हर राज्य के लिए राज्य विधायिकाओं के चुनाव संबंधी सभी संदेहों और विवादों के निपटारे का प्रारंभिक न्यायाधिकार संबंधित राज्य के उच्च न्यायालय और उसके साथ उच्चतम न्यायालय का है (अनुच्छेद 329) । नगरपालिकाओं इत्यादि के चुनाव संबंधी विवादित मामलों का निर्णय संबंधित राज्य सरकारों के बनाए गए कानूनों के अनुरूप निचली अदालतें करती हैं।

राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के चुनाव संबंधी कानून राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति निर्वाचन अधिनियम 1952 के रूप में संसद ने बनाया है। इस कानून के पूरक के रूप में राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति निर्वाचन नियम 1974 तथा उसके बाद सभी पहलुओं में निर्वाचन आयोग के निर्देशों और अनुदेशों द्वारा पूरित किए गए हैं।

संसद और राज्य विधायिकाओं के चुनाव कराना दो कानूनों के प्रावधानों से शासित होता है - जनप्रतिनिधित्व कानून 1950 और जनप्रतिनिधित्व कानून 1951

जनप्रतिनिधित्व कानून 1950 मुख्य रूप से निर्वाचक सूचियों की तैयारी और संशोधन संबंधी मामलों से संबंधित है। इस कानून के प्रावधानों के पूरक के रूप में इस कानून की धारा 28 के तहत निर्वाचन आयोग के परामर्श से केंद्र सरकार ने निर्वाचक पंजीकरण नियम 1960  बनाए हैं तथा ये नियम निर्वाचक सूचियों की तैयारी, उनके आवधिक संशोधन और अद्यतन, पात्र नाम शामिल करने, कुपात्र नाम हटाने, विवरण इत्यादि ठीक करने संबंधी सभी पहलुओं को देखते हैं। ये नियम राज्य की लागत पर फोटो सहित पंजीकृत मतदाताओं के पहचान कार्ड के मुद्दे भी देखते हैं। ये नियम अन्य विवरण के अलावा निर्वाचक के फोटो सहित फोटो निर्वाचक सूचियां तैयार करने के लिए निर्वाचन आयोग को सशक्त भी बनाते हैं।

चुनावों का वास्तविक आयोजन कराने संबंधी सभी मामले जनप्रतिनिधित्व कानून 1951 के प्रावधानों से शासित हैं जो इस कानून की धारा 169 के तहत निर्वाचन आयोग के परामर्श से केंद्र सरकार ने निर्वाचक पंजीकरण नियम 1961 से पूरित किए गए हैं। इस कानून और नियमों में चुनाव आयोजित कराने के सभी चरणों ( चुनाव कराने की अधिसूचना के मुद्दे, नामांकन पत्र दाखिल करने, नामांकन पत्रों की जांच, उम्मीदवार का नाम वापस लेना, चुनाव कराना, मतों की गिनती और इस तरह घोषित परिणाम के आधार पर सदनों के गठन ) के लिए विस्तृत प्रावधान किए गए हैं।

संविधान द्वारा निर्वाचन आयोग में निहित चुनावों के पर्यवेक्षण, निर्देश और नियंत्रण आयोग को ऐसे हालात से निपटने के लिए विशेष आदेश और निर्देश देने के लिए भी सशक्त बनाते हैं जिनके लिए संसद द्वारा बनाए गए कानूनों में कोई प्रावधान नहीं किए गए हैं या अपर्याप्त प्रावधान है। ऐसी रिक्ति को भरने का आदर्श उदाहरण निर्वाचन प्रतीक (आरक्षण और आवंटन) आदेश 1968 का प्रवर्तन है जो राष्ट्रीय और राज्य स्तर पर राजनीतिक दलों की मान्यता, उनके लिए चुनाव प्रतीक का आरक्षण, ऐसे मान्यताप्राप्त दलों के अलग समूहों के बीच विवादों के समाधान और चुनाव पर सभी उम्मदवारों को प्रतीक आवंटन संबंधित सभी मामले शासित करता है।

ऐसा ही एक रिक्त क्षेत्र वह है जहां निर्वाचन आयोग राजनीतिक दलों और उम्मीदवारों के मार्गदर्शन के लिए आदर्श आचार संहिता के प्रवर्तन में संविधान के अनुच्छेद 324 के तहत अधिकारों का इस्तेमाल करता है। आदर्श आचार संहिता अनोखा दस्तावेज है जो राजनीतिक दलों ने चुनावों के दौरान अपने आचरण को शासित करने के लिए खुद ही तैयार किया है ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि चुनावों के दौरान सभी राजनीतिक दलों को समान अवसर उपलब्ध हों तथा खासतौर से सत्तारुढ़ दल (दलों) को अपने उम्मीदवार के निर्वाचन संभावनाओं को बढ़ाने के लिए आधिकारिक ताकत और आधिकारिक मशीनरी का दुरुपयोग करने से रोका जा सके।

चुनाव के संबंध में या उससे उत्पन्न सभी संदेह और विवाद से जुड़े चुनाव बाद के सभी मामलों का निपटारा भी जनप्रतिनिधित्व कानून 1951 के प्रावधानों के अनुरूप किया जाता है। इस कानून के तहत ऐसे सभी संदेह और विवाद संबंधित राज्य के उच्च न्यायालय के समक्ष उठाए जा सकते हैं लेकिन सिर्फ चुनाव होने के बाद ही ऐसा किया जा सकता है तथा चुनाव प्रक्रिया के दौरान ऐसा नहीं किया जा सकता।

उक्त उल्लेखित जनप्रतिनिधित्व कानून 1950 और 1951 तथा निर्वाचकों के पंजीकरण्र नियम 1960 तथा चुनाव आयोजन नियम 1961 पूर्ण संहिता का निर्माण करते है जो संसद के दोनों सदनों और राज्य विधायिकाओं के चुनाव संबंधी सभी मामले देखता है। निर्वाचन आयोग या उसके तहत काम करने वाले किसी प्राधिकार के किसी निर्णय से असंतुष्ट कोई व्यक्ति इन कानूनों और नियमों के अनुरूप राहत पा सकता है।

ये कानून और नियम निर्वाचन आयोग को निर्वाचक सूचियों की तैयारी/संशोधन और चुनाव कराने के विविध पहलुओं तथा आयोग के समक्ष आने वाले ऐसे सभी मामलों से निपटने के लिए निर्देश और विनिर्देश जारी करने में समर्थ बनाते हैं। उनके अनुपालन में आयोग ने अनेक निर्देश और विनिर्देश जारी किए हैं जो आयोग ने निर्वाचक पंजीकरण अधिकारियों, निर्वाचन अधिकारियों, पीठासीन अधिकारियों, उत्तीदवारों, पोलिंग एजेंट और मतगणना एजेंटों के लिए विविध पुस्तकों में शामिल किए हैं।



शुक्रवार, 2 अगस्त 2013

Patachitra Painting In India

The Patachitra is the folk painting of Orissa. It has a history of grand antiquity. Patta exactly means cloth and Chitra means image in Sanskrit. Patachitra paintings in India demonstrate the use of strong line and shining colors. These are religious paintings that swathe events and themes from Indian mythology and Puranas. They are made chiefly on silk or on old cotton glued with paper. Patachitra paintings are created in regular series like Dashavatar and activities of Lord Krishna and Rama. Patachitra paintings basically resemble to the old murals of Kalinga region as old as 5th century B C. The paramount Patachitra paintings are in and around Puri, especially Raghurajpur. More about Patachitra painting in India is painted in the account below.

History of Patachitra Painting
Traditionally, these paintings were done by males. Though, some women have now taken up this art form. The origin of Patachitra paintings is associated to the renowned Jagannath temple of Puri, built by the Choda-GangaDeva. Demands of numerous pilgrims coming to the Jagannath shrine, kept this painting style alive for centuries. Usually, patachitras are located as the initial aboriginal paintings in the state of Orissa, spaced out from bitty evidence of cave paintings in Udaygiri, Khandagiri,and Sitabhinji.

The history of patachitra painting is inextricably connected to the history of the Jagannath cult. The patachitra painters are temple functionaries, living in and around Puri. Now, this painter community has spread beyond Puri district. Also they have begun using an assortment of non-religious themes in their paintings. But, this has not negatively affected the formation of patachitras based on Jagannath icons and long-established religious themes. At the same time, these are still the center of the pictographic content of patachitra paintings.

Materials Required for Patachitra Painting
The palette of Patachitra artist consists of a diversity of colors such as red, white, blue, yellow, green, and black. All these colors are derived from natural sources. For black color lamp soot is used, yellow comes from ‘Hartala’ stone, white is made from conch shells, red comes from ‘Hingulal’ stone, blue comes from indigo and green is made from plants. Then, these extracts are cooked with gum from ‘kaintha’ (elephant apple) fruit tree, and then colors become effortless to work with. The paintbrushes to prepare these paintings are classically made of the keya root. The improved ones have wooden handles and mouse hair is used to make them. The center of the brush has approximately a dozen long mouse hair. When these hairs are dipped in paint, they have a needle-point edge.

Themes and Symbolism of Patachitra Paintings
Patachitra painting in India is a very much admired folk art of Orissa. Here detail and definition is paid close consideration. Hindu mythological themes and particularly images of Lord Jagannath, Balabhadra and Subhadra are significantly found in this art form. Illustrations of fables, folk-tales and myths, scenes from the epics, court ladies, royal processions, birds and animals are also portrayed in these paintings.

Symbolism used in Patachitras for gods is very reasonable in terms of shape, form and accessories. Observing the continuity and resemblance in the images illustrated in the various patachitras is very easy. Borders in this painting differ from broad lines to geometrical patterns and flower-patterned depictions with elaborate detailing.

Patachitra painting in India is highly praised by art critics for the extraordinary and unbelievable pictorial conceptions they posses. Also, the idiosyncratic and pictorial conventions, the summing up and strange system of line formulation and the intentionally wayward color schemes add to the glory of Patachitra paintings.


सूचना अधिकार अधिनियम, 2005 में संशोधन


केन्‍द्रीय मंत्रिमंडल ने सूचना अधिकार अधिनियम के उद्देश्‍य से राजनीतिक दलों को जन प्राधिकरण की परिभाषा से बाहर रखने के लिए सूचना अधिकार अधिनियम, 2005 में संसद के आगामी सत्र में संशोधन करने के लिए एक विधेयक लाने की मंजूरी दी है।

केन्‍द्रीय सूचना आयोग ने अपने 03.06.2013 के निर्णय में कांग्रेस, भाजपा, माकपा, भाकपा, बसपा और राकांपा जैसे राजनीतिक दलों को सूचना अधिकार अधिनियम की धारा 2(एच) के अ‍धीन जन प्राधिकरण माना है। आयोग ने मुख्‍य रूप से इन तथ्‍यों पर विश्‍वास व्‍यक्‍त किया है कि इन राजनीतिक दलों को केन्‍द्र सरकार से काफी (अप्रत्‍यक्ष) वित्‍तीय मदद मिलती है और वे सार्वजनिक कर्तव्‍य निभाते हैं। राजनीतिक दल योजना आयोग के साथ जन प्रतिनिधित्‍व अधिनियम, 1951 की धारा 29ए के प्रावधानों के अधीन पंजीकृत हैं। राजनीतिक दलों के संदर्भ में विस्‍तृत प्रावधान जन प्रतिनिधित्‍व अधिनियम में विस्‍तार से दिये गये हैं, जिनमें राजनीतिक दलों, प्रत्‍याशियों और दान से संबंधित जानकारी देने का प्रावधान है। कथित अधिनियम में परस्‍पर निम्‍नलिखित प्रावधान हैं :-

•             निर्वाचन आयोग के संघों और निकायों के साथ राजनीतिक दलों के रूप में पंजीकरण (धारा 29ए)

•             राजनीतिक दल अंशदान स्‍वीकार करने के हकदार (धारा 29बी)

•             राजनीतिक दलों द्वारा प्राप्‍त दान की घोषणा (धारा 29सी)

•             परिसम्‍पत्ति और देयताओं की घोषणा (धारा (75ए)

•             चुनाव खर्च और अधिकतम राशि का खाता (धारा (77)

•             जिला निर्वाचन अधिकारी के पास खाता प्रस्‍तुत करना (धारा 78)

•             झूठा शपथ पत्र प्रस्‍तुत करने पर जुर्माना (धारा 125ए)

जन प्रतिनिधित्‍व अधिनियम के उपरोक्‍त प्रावधान ये दर्शाते हैं कि इस अधिनियम में वित्‍त पोषण, इसकी घोषणा और झूठा शपथ पत्र प्रस्‍तुत करने पर जुर्माने के पर्याप्‍त प्रावधान हैं। आयकर अधिनियम 1961 की धारा 13ए के अधिनियम राजनीतिक दलों के लिए कर से छूट का दावा करने के लिए लेखा परीक्षा किये गये खातों के साथ टैक्‍स अधिकारियों के समक्ष निर्धारित तिथि से पूर्व आयकर विवरण भरना अपेक्षित है। आयकर अधिनियम की धारा 138 के अनुसार आयकर विभाग के समक्ष दी गई जानकारी साधारण रूप से गोपनीय होगी, लेकिन इसे तभी सार्वजनिक किया जा सकेगा, अगर आयकर आयुक्‍त की फैसले में यह जनहित में हो।

जन प्रतिनिधित्‍व अधिनियम 1951 की धारा 10ए के अधीन कानून की अपेक्षाओं के अनुसार चुनाव व्‍यय का लेखा प्रस्‍तुत करने में असफल रहने पर ऐसा करने वाले प्रत्‍याशी को अयोग्‍य ठहराये जाने की तिथि से 3 साल के लिए चुनाव आयोग द्वारा अयोग्‍य ठहराया जा सकता है।


सूचना अधिकार अधिनियम को संविधान के अनुच्‍छेद 19 के अधीन सूचना के अधिकार के कार्यान्‍वयन के लिए प्रभावी ढांचा उपलब्‍ध कराने के लिए बनाया गया था। जन प्राधिकरण की परिभाषा सूचना अधिकार अधिनियम की धारा 2 के खंड (एच) में दी गई है। राजनीतिक दल सूचना अधिकार अधिनियम में दी गई जन प्राधिकरण की परिभाषा के दायरे में नहीं आते हैं, क्‍योंकि वे आरपी एक्‍ट, 1951 के अधीन केवल पंजीकृत और मान्‍यता प्राप्‍त हैं।  

गुरुवार, 1 अगस्त 2013

पर्यावरण के विभिन्न घटक

हम पर्यावरणशब्द से परिचित हैं। इस शब्द का प्रयोग टेलीविजन पर, समाचार पत्रों में तथा हमारे आस-पास लोगों द्वारा प्राय: किया जाता है। हमारे बुजुर्ग हमसे कहते हैं कि अब वह पर्यावरण / वातावरण नहीं रहा जैसा कि पहले था, दूसरे कहते हैं हमें स्वस्थ पर्यावरण में काम करना चाहए। पर्यावरणीयसमस्याओं पर चर्चा के लिए विकसित एवं विकासशील देशों के वैश्विक सम्मेलन भी नियमित रूप से होते रहते हैं। इस आलेख में हम चर्चा करेंगे कि विभिन्न कारक पर्यावरण में किस प्रकार अन्योन्यक्रिया करते हैं तथा पर्यावरण पर क्या प्रभाव डालते हैं। हम जानते है  कि विभिन्न पदार्थों का चक्रण पर्यावरण में अलग-अलग जैव-भौगोलिक रासायनिक चक्रों में होता है। इन चक्रों में अनिवार्य पोषक जैसे नाइट्रोंजन, कार्बन, ऑक्सीजन एवं जल एक रूप से दूसरे रूप में बदलते हैं। अब हम जानेंगे कि मनुष्य की गतिविधियाँ इन चक्रों को किस प्रकार प्रभावित करती हैं।

क्या होता है जब हम अपने अपशिष्ट पर्यावरण में डालते हैं?
अपनी दैनिक गतिविधियों में हम बहुत से ऐसे पदार्थ उत्पादित करते हैं जिन्हें फेंकना पड़ता है। इनमें से अपशिष्ट पदार्थ क्या हैं? जब हम उन्हें फेंक देते हैं तो उनका क्या होता है?

हम  जैव प्रक्रमके विषय में जानते है कि हमारे द्वारा खाए गए भोजन का पाचन विभिन्न एंजाइमों द्वारा किया जाता है। विचार कीजिये कि एक ही एंजाइम भोजन के सभी पदार्थों का पाचन क्यों नहीं करता? एंजाइम अपनी क्रिया में विशिष्ट होते हैं। किसी विशेष प्रकार के पदार्थ के पाचन/अपघटन के लिए विशिष्ट एंजाइम की आवश्यकता होती है। इसीलिए कोयला खाने से हमें ऊर्जा प्राप्त नहीं हो सकती। इसी कारण, बहुत से मानव-निर्मित पदार्थ जैसे कि प्लास्टिक का अपघटन जीवाणु अथवा दूसरे मृतजीवियों द्वारा नहीं हो सकता। इन पदार्थों पर भौतिक प्रक्रम जैसे कि ऊ…ष्मा तथा दाब का प्रभाव होता है, परंतु सामान्य अवस्था में लंबे समय तक पर्यावरण में बने रहते हैं। वे पदार्थ जो जैविक प्रक्रम द्वारा अपघटित हो जाते हैं, ‘जैव निम्नीकरणीयकहलाते हैं। वे पदार्थ जो इस प्रक्रम में अपघटित नहीं होते अजैव निम्नीकरणीयकहलाते हैं। यह पदार्थ सामान्यत: अक्रिय हैं तथा लंबे समय तक पर्यावरण में बने रहते हैं अथवा पर्यावरण के अन्य सदस्यों को हानि पहुँचाते हैं।

पारितंत्र और इसके संघटक
सभी जीव जैसे कि पौधो, जंतु, सूक्ष्मजीव एवं मानव तथा भौतिक कारकों में परस्पर अन्योन्यक्रिया होती है तथा प्रकृति में संतुलन बनाए रखते हैं। किसी क्षेत्र के सभी जीव तथा वातावरण के अजैव कारक संयुक्त रूप से पारितंत्र बनाते हैं। अत: एक पारितंत्र में सभी जीवों के जैव घटक तथा अजैव घटक होते हैं। भौतिक कारक जैसे- ताप, वर्षा, वायु, मृदा एवं खनिज इत्यादि अजैव घटक हैं। उदाहरण के लिए, यदि आप बगीचे में जाएँ तो आपको विभिन्न पौधो जैसे- घास, वृक्ष, गुलाब, चमेली, सूर्यमुखी जैसे फूल वाले सजावटी पौधो तथा मेंढ़क, कीट एवं पक्षी जैसे जंतु दिखाई देंगे। यह सभी सजीव परस्पर अन्योन्यक्रिया करते हैं तथा इनकी वृद्धि, जनन एवं अन्य क्रियाकलाप पारितंत्र के अजैव घटकों द्वारा प्रभावित होते हैं। अत: एक बगीचा एक पारितंत्र है। वन, तालाब तथा झील पारितंत्र के अन्य प्रकार हैं। ये प्राकृतिक पारितंत्र हैं, जबकि बगीचा तथा खेत मानव निर्मित ; कृत्रिम पारितंत्र हैं।
हम जानते हैं कि जीवन निर्वाह के आधार जीवों को उत्पादक, उपभोक्ता एवं अपघटक वर्गों में बाँटा गया है।  कौन-से जीव सूर्य के प्रकाश एवं क्लोरोफ़िल की उपस्थिति में अकार्बनिक पदार्थों से कार्बनिक पदार्थ जैसे कि, शर्करा ;चीनी एवं मंड का निर्माण कर सकते हैं? सभी हरे पौधो एवं नील-हरित शैवाल जिनमें प्रकाश संश्लेषण की क्षमता होती है, इसी वर्ग में आते हैं तथा उत्पादक कहलाते हैं। सभी जीव प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष रूप से अपने निर्वाह हेतु उत्पादकों पर निर्भर करते हैं? ये जीव जो उत्पादक द्वारा उत्पादित भोजन पर प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष रूप से निर्भर करते हैं, उपभोक्ता कहलाते हैं। उपभोक्ता को मुख्यत: शाकाहारी, मांसाहारी तथा सर्वाहारी एवं परजीवी में बाँटा गया है।
ऐसी स्थिति की कल्पना कीजिए जब आप जल जीवशाला को साफ करना छोड़ दें तथा कुछ मछलियाँ एवं पौधो इसमें मर भी गए हैं। क्या आपने कभी सोचा है कि क्या होता है जब एक जीव मरता है? जीवाणु और कवक जैसे सूक्ष्मजीव मृतजैव अवशेषों का अपमार्जन करते हैं। ये सूक्ष्मजीव अपमार्जक हैं क्योंकि य जटिल कार्बनिक पदार्थों को सरल अकार्बनिक पदार्थों में बदल देते हैं जो मिट्‌टी ;भूमि में चले जाते हैं तथा पौधों द्वारा पुन: उपयोग में लाए जाते हैं। इनकी अनुपस्थिति में मृत जंतुओं एवं पौधों पर क्या प्रभाव पड़ेगा? क्या अपमार्जकों के न रहने पर भी मृदा की प्राकृतिक पुन:पूर्ति होती रहती हैं?

आहार श्रॄंखला एवं जाल
जीवों की एक श्रॄंखला जो एक-दूसरे का आहार करते हैं। विभिन्न जैविक स्तरों पर भाग लेने वाले जीवों की यह श्रॄंखला  आहार श्रॄंखला का निर्माण करती हैं। आहार श्रॄंखला का प्रत्येक चरण अथवा कड़ी एक पोषी स्तर बनाते हैं। स्वपोषी अथवा उत्पादक प्रथम पोषी स्तर हैं तथा सौर ऊर्जा का स्थिरीकरण करके उसे विषमपोषियों अथवा उपभोक्ताओं के लिए उपलब्ध कराते हैं। शाकाहारी अथवा प्राथमिक उपभोक्ता द्वितीय पोषी स्तर छोटे मांसाहारी अथवा द्वितीय उपभोक्ता तीसरे पोषी स्तर तथा बड़े मांसाहारी अथवा तृतीय उपभोक्ता चौथे पोषी स्तर का निर्माण करते हैं।

हम जानते हैं कि जो भोजन हम खाते हैं, हमारे लिए ऊर्जा स्रोत का कार्य करता है तथा विभिन्न कार्यों के लिए ऊर्जा प्रदान करता है। अत: पर्यावरण के विभिन्न घटकों की परस्पर अन्योन्यक्रिया में निकाय के एक घटक से दूसरे में ऊर्जा का प्रवाह होता है। जैसा कि हम पढ़ चुके हैं, स्वपोषी सौर प्रकाश में निहित ऊर्जा को ग्रहण करके रासायनिक ऊर्जा में बदल देते हैं। यह ऊर्जा संसार के संपूर्ण जैवसमुदाय की सभी क्रियाओं के संपादन में सहायक है। स्वपोषी से ऊर्जा विषमपोषी एवं अपघटकों तक जाती है जैसा कि ऊर्जा के स्रोतनामक पिछले आलेख में हमने जाना था कि जब ऊर्जा का एक रूप से दूसरे रूप में परिवर्तन होता है, तो पर्यावरण में ऊर्जा की कुछ मात्रा का अनुपयोगी ऊर्जा के रूप में ह्रास हो जाता है। पर्यावरण के विभिन्न घटकों के बीच ऊर्जा के प्रवाह का विस्तृत अध्ययन किया गया तथा यह पाया गया कि: एक स्थलीय पारितंत्र में हरे पौधो की पत्तयों द्वारा प्राप्त होने वाली सौर ऊर्जा का लगभग 1% भाग खाद्य ऊर्जा में परिवर्तित करते हैं। जब हरे पौधो प्राथमिक उपभोक्ता द्वारा खाए जाते हैं, ऊर्जा की बड़ी मात्रा का पर्यावरण में ई…ष्मा के रूप में ह्रास होता है, कुछ मात्रा का उपयोग पाचन, विभिन्न जैव कार्यों में, वृद्धि एवं जनन में होता है। खाए हुए भोजन की मात्रा का लगभग 10% ही जैव मात्रा में बदल पाता है तथा अगले स्तर के उपभोक्ता को उपलब्ध हो पाता है।  अत: हम कह सकते हैं प्रत्येक स्तर पर उपलब्ध कार्बनिक पदार्थों की मात्रा का औसतन 10% ही उपभोक्ता के अगले स्तर तक पहुँचता है।  क्योंकि उपभोक्ता के अगले स्तर के लिए ऊर्जा की बहुत कम मात्रा उपलब्ध हो पाती है, अत: आहार श्रॄंखला सामान्यत: तीन अथवा चार चरण की होती है। प्रत्येक चरण पर ऊर्जा का ह्रास इतना अधिक होता है कि चौथे पोषी स्तर के बाद उपयोगी ऊर्जा की मात्रा बहुत कम हो जाती है।

 सामान्यत: निचले पोषी स्तर पर जीवों की संख्या अधिक होती है, अत: उत्पादक स्तर पर यह संख्या सर्वाधिक होती है।  विभिन्न आहार श्रॄंखलाओं की लंबाई एवं जटिलता में काफी अंतर होता है। आमतौर पर प्रत्येक जीव दो अथवा अधिक प्रकार के जीवों द्वारा खाया जाता है, जो स्वयं अनेक प्रकार के जीवों का आहार बनते हैं। अत: एक सीधी आहार श्रॄंखला के बजाय जीवों के मध्य आहार संबंध शाखान्वित होते हैं तथा शाखान्वित श्रॄंखलाओं का एक जाल बनाते हैं जिससे आहार जालकहते हैं।

ऊर्जा प्रवाह के चित्र से दो बातें स्पष्ट होती हैं। पहली, ऊर्जा का प्रवाह एकदिशिक अथवा एक ही दिशा में होता है। स्वपोषी जीवों द्वारा ग्रहण की गई ऊर्जा पुन: सौर ऊर्जा में परिवर्तित नहीं होती तथा शाकाहारियों को स्थानांतरित की गई ऊर्जा पुन: स्वपोषी जीवों को उपलब्ध नहीं होती है। जैसे यह विभिन्न पोषी स्तरों पर क्रमिक स्थानांतरित होती है अपने से पहले स्तर के लिए उपलब्ध नहीं होती। आहार श्रॄंखला का एक दूसरा आयाम यह भी है कि हमारी जानकारी के बिना ही कुछ हानिकारक रासायनिक पदार्थ आहार श्रॄंखला से होते हुए हमारे शरीर में प्रविष्ट हो जाते हैं। आप कक्षा 9 में पढ़ चुके हैं कि जल प्रदूषण किस प्रकार होता है। इसका एक कारण है कि विभिन्न फसलों को रोग, एवं पीड़कों से बचाने के लिए पीड़कनाशक एवं रसायनों का अत्यधिक प्रयोग करना है ये रसायन बह कर मिट्‌टी में अथवा जल स्रोत में चले जाते हैं। मिट्‌टी से इन पदार्थों का पौधो द्वारा जल एवं खनिजों के साथ-साथ अवशोषण हो जाता है तथा जलाशयों से यह जलीय पौधो एवं जंतुओं में प्रवेश कर जाते हैं। यह केवल एक तरीका है जिससे वे आहार श्रॄंखला में प्रवेश करते हैं। क्योंकि ये पदार्थ अजैव निम्नीकृत हैं, यह प्रत्येक पोषी स्तर पर उतरोत्तर संग्रहित होते जाते हैं। क्योंकि किसी भी आहार श्रॄंखला में मनुष्य शीर्षस्थ है, अत: हमारे शरीर में यह रसायन सर्वाधिक मात्रा में संचित हो जाते हैं। इसे जैव-आवधर्न कहते हैं। यही कारण है कि हमारे खाद्यान्न-गेहूँ तथा चावल, सब्जियाँ, फल तथा मांस में पीड़ क रसायन के अवशिष्ट विभिन्न मात्रा में उपस्थित होते हैं। उन्हें पानी से धोकर अथवा अन्य प्रकार से अलग नहीं किया जा सकता।

हमारे क्रियाकलाप और पर्यावरण
हम सब पर्यावरण का समेकित भाग हैं। पर्यावरण में परिवर्तन हमें प्रभावित करते हैं तथा हमारे क्रियाकलाप/गतिविधियाँ हमारे चारों ओर के पर्यावरण को प्रभावित करते हैं। हम जानते हैं कि हमारे क्रियाकलाप पर्यावरण को किस प्रकार प्रभावित करते हैं। इस भाग में हम पर्यावरण संबंधी दो समस्याओं के विषय में विस्तार से चर्चा करेंगे, वे हैं- ओजोन परत का अपक्षय तथा अपशिष्ट निपटान।

ओजोन परत तथा अपक्षय
ओजोन के अणु ऑक्सीजन के तीन परमाणुओं से बनते हैं जबकि सामान्य ऑक्सीजन जिसके विषय में हम प्राय: चर्चा करते हैं, के अणु में दो परमाणु होते हैं। जहाँ ऑक्सीजन सभी प्रकार के वायविक जीवों के लिए आवश्यक है, वहीं ओजोन एक घातक विष है। परंतु वायुमंडल के ऊ…परी स्तर में ओजोन एक आवश्यक प्रकार्य संपादित करती है। यह सूर्य से आने वाले पराबैंगनी विकिरण से पृथ्वी को सुरक्षा प्रदान करती है। यह पराबैंगनी विकिरण जीवों के लिए अत्यंत हानिकारक है।
उदाहरणत:, यह गैस मानव में त्वचा का केंसर उत्पन्न करती हैं। वायुमंडल के उच्चतर स्तर पर पराबैंगनी विकिरण के प्रभाव से ऑक्सीजन अणुओं से ओजोन बनती है। उच्च ऊर्जा वाले पराबैंगनी विकिरण ऑक्सीजन अणुओं को विघटित कर स्वतंत्र ऑक्सीजन परमाणु बनाते हैं। ऑक्सीजन के ये स्वतंत्र परमाणु संयुक्त होकर ओजोन बनाते हैं जैसा कि समीकरण में दर्शाया गया है।

ओजोन
1980 से वायुमंडल में ओजोन की मात्रा में तीव्रता से गिरावट आने लगी। क्लोरो-फ़्लुओरो-कार्बन सीएफ़सी जैसे मानव संश्लेषित रसायनों को इसका मुख्य कारक माना गया। इनका उपयोग रेफ़्रिजेरेटर शीतलन एवं अग्निशमन के लिए किया जाता है। 1987 में संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम यूएनईपी में सर्वानुमति बनी कि सीएफ़सी के उत्पादन को 1986 के स्तर पर ही सीमित रखा जाए।

कचरा प्रबंधन
किसी भी नगर एवं कस्बे में जाने पर चारों ओर कचरे के ढेर दिखाई देते हैं। किसी पर्यटन स्थल पर जाइए, हमें विश्वास है कि वहाँ पर बड़ी मात्रा में खाद्य पदार्थों की खाली थैलियाँ इधर-उधर पैफली हुई दिख जाएँगी। पिछली कक्षाओं में हमने स्वयं द्वारा उत्पादित इस कचरे से निपटान के उपायों पर चर्चा की है। आइए, इस समस्या पर अधिक गंभीरता से ध्यान दें। हमारी जीवन शैली में सुधार के साथ उत्पादित कचरे की मात्रा भी बहुत अधिक बढ़ गई है। हमारी अभिवृत्त में परिवर्तन भी एक महत्वपूर्ण भूमिका निर्वाह करता है। हम प्रयोज्य निवर्तनीय वस्तुओं का प्रयोग करने लगे हैं। पैकेजिंग के तरीकों में बदलाव से अजैव निम्नीकरणीय वस्तु के कचरे में पर्याप्त वृद्धि हुई है। आपके विचार में इन सबका हमारे पर्यावरण पर क्या प्रभाव पड़ सकता है?
  

राजनीति के अपराधीकरण का अभिशाप

राजनीति को स्वच्छ बनाने का अभियान तभी सफल हो सकेगा, जब हमारे राजनीतिक दल दागदार लोगों को चुनाव में प्रत्याशी न बनाएं। देश की सर्वोच्च अदालत से आए संदेश को लागू करने के लिए चुनाव आयोग को अधिकार-संपन्न बनाना होगा।


आपराधिक  रिकॉर्ड वाले संसद सदस्यों, विधायकों और चुनाव लडऩे वाले उम्मीदवारों के बारे में सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के दूरगामी नतीजे होंगे। इसने देश की लोकतांत्रिक संस्थाओं को सख्त संदेश दिया है। केन्द्र सरकार और प्रमुख राजनीतिक दलों को इन निर्णयों पर अत्यंत परिपक्व और संतुलित प्रतिक्रिया देनी होगी। हालांकि सुप्रीम कोर्ट की व्यवस्था की वैधता को तकनीकी आधार पर नजरअंदाज करने पर राजनीतिक पार्टियों में लगभग आम राय बन चुकी है। राजनीतिक प्रतिष्ठान अपराधियों और राजनेताओं के बीच बढ़ती मिलीभगत और काले धन के प्रभाव की समस्या को सुलझाने से इनकार कर रहा है।


सुप्रीम कोर्ट ने 10 जुलाई, 2013 को ऐतिहासिक फैसला देते हुए जनप्रतिनिधित्व कानून, 1951 की धारा 8(4) को रद्द करते हुए कानून की धारा 8(3) के प्रावधानों को बहाल किया है। इसके तहत किसी भी अपराध के लिए दो साल की कैद से दंडित व्यक्ति के चुनाव लडऩे पर रोक लगा दी गई है और अपात्रता की अवधि छह वर्ष होगी। कानून की धारा 8(4) पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला सजा के बाद अपात्रता से संबंधित है। अदालतों में बड़ी संख्या में मुकदमों के पेंडिंग होने और आरोपी द्वारा जानबूझकर न्याय-प्रक्रिया में देर करने से अधिकतर मुकदमों में सजा ही नहीं हो पाती है। इस कारण जस्टिस वर्मा कमेटी ने जनप्रतिनिधित्व कानून की धारा 8(1)(ए) में संशोधन का प्रस्ताव किया है। इसके तहत भारतीय दंड संहिता, 1860 के तहत आने वाले अपराधों को शामिल करने का प्रस्ताव है।

ऐसे गंभीर अपराधों जिनमें पांच वर्ष या उससे भी अधिक की सजा का प्रावधान है, को परिभाषित करने के लिए इस प्रस्ताव को स्वीकार किया जाना चाहिए। इसके लिए जनप्रतिनिधित्व कानून में संशोधन करना पड़ेगा। गंभीर और नृशंस अपराधों के आरोपी उम्मीदवारों के मामलों को निश्चित समय में निपटाने के लिए विशेष फास्ट ट्रैक अदालतों की स्थापना जरूरी है। इससे उन लोगों के चुनाव लडऩे पर रोक लगेगी, जिनके खिलाफ अदालतों में मुकदमे चल रहे हैं। संसद और विधानसभाओं में राजनीतिक अनिश्चितता को कम करने के लिए इन फास्ट-ट्रैक अदालतों को निर्वाचित प्रतिनिधियों के मामले भी हाथ में लेने चाहिए।


जेल में बंद लोगों के चुनाव लडऩे पर सुप्रीम कोर्ट की रोक का आदेश कानूनी तौर पर सही है, लेकिन शासन में व्याप्त अनैतिकता के संदर्भ में इसका जबरदस्त दुरुपयोग हो सकता है। सत्ता की अनंत भूख, सरकारी मशीनरी का भारी दुरुपयोग, पुलिस का राजनीतिकरण और आपराधिक न्याय-प्रणाली के एकदम दुरुस्त न होने की पृष्ठभूमि में यह फैसला कठोर प्रतीत होता है। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट का निर्णय भारतीय लोकतांत्रिक व्यवस्था की संवैधानिक नैतिकता से मेल खाता है, लेकिन राजनीति के बढ़ते अपराधीकरण को देखते हुए इसकी न्यायिक समीक्षा होनी चाहिए।

यह निष्कर्ष निकाला गया है कि जनप्रतिनिधित्व कानून पर गौर करते हुए अदालत से राजनीतिक दलों द्वारा चुनावों के दौरान फैसले की भाषा का दुरुपयोग किए जाने की अनजाने में अनदेखी हो गई है। 2012 में भ्रष्टाचार विरोधी कार्टून बनाने के लिए कार्टूनिस्ट असीम त्रिवेदी की गिरफ्तारी कानून के दुरुपयोग का एक उदाहरण है। मौजूदा संसदीय व्यवस्था की अस्थिर स्थिति को देखते हुए कानून के उपयोग और उसकी भाषा के संबंध में अतिरिक्त सावधानी बरतने की जरूरत है। इस विषय पर स्थिति स्पष्ट करने के लिए किसी संभावित संशोधन के वास्ते सुप्रीम कोर्ट के फैसले की समीक्षा होनी चाहिए।


सुप्रीम कोर्ट ने 5 जुलाई 2013 के अपने फैसले में चुनाव आयोग को राजनीतिक दलों के चुनाव घोषणा-पत्रों पर दिशा-निर्देश तय करने के लिए कहा है। कोर्ट ने टिप्पणी की है कि अगर घोषणा-पत्र चुनाव की तारीखों की अधिसूचना जारी होने के पहले घोषित किए जाते हैं तो उन्हें अपवाद के बतौर आचार-संहिता के दायरे में लिया जाना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट का आदेश संविधान की धारा 324 के अनुरूप है। इस धारा के तहत चुनाव आयोग को स्वतंत्र एवं निष्पक्ष चुनाव कराने की जिम्मेदारी सौंपी गई है। सभी राजनीतिक दलों को चुनाव में समान अवसर देने, पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिए यह एक महत्वपूर्ण फैसला है।

कई विकसित देशों में चुनावों के दौरान वित्तीय लाभ पहुंचाने से संबंधित सभी वायदों की मीडिया, थिंक टैंक के स्तर पर और टेलीविजन की बहस में समीक्षा की जाती है, जबकि भारत में ऐसा नहीं होता है। भारत में राजनीतिक दल मुफ्त की चुनावी रेवडिय़ां बांटने के लिए होड़ करते हैं। अगर ईमानदारी से संबंधित प्रावधानों को लागू किया जाए तो वोट बैंक को आकर्षित करने के लिए राजनीतिक दल रेवडिय़ां नहीं बांटेंगे और विघटनकारी राजनीति नहीं करेंगे। गड़बड़ी करने वाले राजनीतिक दलों को दंडित करने का विशेष प्रावधान न होने की वजह से चुनाव आयोग को दिए गए अधिकार प्रभावी नहीं हैं। सुप्रीम कोर्ट ने 10 मई 2002 के फैसले में कहा है कि मौजूदा नियम-कानूनों में चुनाव आयोग को किसी राजनीतिक दल की मान्यता खत्म करने का अधिकार नहीं है। राजनीतिक दलों पर नियंत्रण की व्यवस्था के अभाव में देश के सामने जनता के प्रति जवाबदेही से परे निर्मम राजनीति का खतरा मंडरा रहा है। इसलिए कानून मंत्रालय को गैर विवादास्पद मसलों पर चुनाव आयुक्त के प्रस्तावों पर आधारित कानूनी सुधारों को फौरन लागू करना चाहिए।


महत्वपूर्ण बात यह है कि राजनीति को साफ-सुथरा बनाने का अभियान उस स्थिति में ही संभव हो सकेगा, जब हमारे राजनीतिक दल आपराधिक रूप से दागदार लोगों को चुनाव में प्रत्याशी न बनाएं। देश की सर्वोच्च अदालत से आए संदेश को लागू करने के लिए चुनाव आयोग को अधिकार-संपन्न बनाना जरूरी है। ऐसा करने पर ही हमारा राजनीतिक तंत्र भ्रष्टाचार और अपराधीकरण से निजात पा सकेगा। हमारे लोकतंत्र के 66वें वर्ष में क्या ऐसी आशा करना बहुत अधिक होगा?


  

कुल पेज दृश्य