शनिवार, 25 मई 2013

Why Indian Judiciary system is so slow and lethargic?


Indian judiciary system, which encompasses laws and rules governing the social and fundamental scenario of the country, is largely influenced by the English common legislature owing to the prolonged influence of British colonial culture. Although the judiciary system is based on the core values, morale and cultural traditions of Indian society; it has a number of loopholes which often triggers various crime and illegal endeavors.

The Indian judicial system is supposed to protect the common men from lawbreakers and offenders. But in reality it serves the

political authorities and provides protection to gruesome criminals who are subtly backed by the politicians. The role of Indian judiciary in securing law and order across the country should be impartial and free from all sorts of external or unauthorized influences.

Most negative aspect of Indian judiciary system is its lethargic and slogging approach. There are countless instances wherein cases run for decades and the defendants pass away without being awarded with the proper judgment. Indeed this is shameful for any civilized country that boasts about its advancing prosperity.  According to the records till January 2005, more than 30,000 cases pending at the Supreme Court,   33.79 lakh in high courts and more than 2.35 crore in lower courts. With respect to the population on India, the ration of judges to people is 10.5: 10, 00000 which is no doubt the poorest in the world.

Often people wait 5 to 20 years to get their cases settled through normal legal course. Another eminent instance of Indian judicial failure is the Bhopal Gas Disaster Judgment. After more than 20 years past the fatal incident, finally Indian judiciary was able to find a decision. But the cornerstone of this case which is the ‘principle of absolute liability’ has been diluted in the decision. It shows nothing but the indifferent approach of the judiciary towards the plight of the victims and any other accidents that may take place in the future.

The Jessica Lal murder case is considered another of major delay of the Judiciary system. The young model was shot dead at a Delhi bar by Manu Sharma whose father was a politically influential person. Though the police chalked the case against him, he went underground for several days and later on when the preceding started, most of the eye witnesses denied to identify him as the murdered. This is a classic instance of ‘Justice Delayed Is Justice Denied’. In some other cases popular celebrities and political leaders have twisted laws and facts to escape penalty, eg case of Sanjay Dutt’s involvement in Bombay blast or Salman khan’s road rage case. These people are free mainly due to lengthy timings of case hearings and loose laws.

Apart from the major cases, there are countless cases of rape, murder and other crimes which remain unresolved for years and the victims suffer pain of dissuasion. The Indian legal system requires a major boost and a complete reformation in order to meet the expectations of the citizens on India. First of all, inflecting the legal judgments, which is considered a crime according to laws, must be punished with immediate effect. In case the existing count of courts is less compared to the population, new court setups should be opened.
There should be an even arrangement for the pending cases and new cases. The court remains closed for days just like school holidays which are nothing but an unnecessary luxury. With so much work pending, Government should trim down the number of holidays and day offs. Legal system should not be a purchasable commodity any more. Politicians should be strictly restricted from directly or indirectly interfering in judgments. Moreover the corrupt political leaders must be treated with utmost stringency.

Finally it is the responsibility of every Indian to look after its legal system. If all of us do out bit to stay within the legal limits, indeed it will make the task easier for Indian judiciary.

शुक्रवार, 24 मई 2013

जननी शिशु सुरक्षा कार्यक्रम


राष्‍ट्रीय ग्रामीण स्‍वास्‍थ्‍य मिशन के अंतर्गत प्रजनन एवं शिशु स्‍वास्‍थ्‍य कार्यक्रम के तहत माता एवं शिशु की मृत्‍यु दर को घटाना प्रमुख लक्ष्‍य रहा है। इस मिशन के अंतर्गत स्‍वास्‍थ्‍य और परिवार कल्‍याण मंत्रालय ने कई नए कदम उठाये हैं जिनमें जननी सुरक्षा योजना भी शामिल है। इसकी वजह से संस्‍थागत प्रजनन में काफी वृद्धि हुई है और इसके तहत हर साल एक करोड़ से अधिक महिलाएं लाभ उठा रही हैं। जननी सुरक्षा योजना की शुरूआत संस्‍थागत प्रजनन को बढ़ावा देने के लिए की गई थी जिससे शिशु जन्‍म प्रशिक्षित दाई/नर्स/डाक्‍टरों द्वारा कराया जा सके तथा माता एवं नवजात शिशुओं को गर्भ से संबंधित जटिलताओं एवं मृत्‍यु से बचाया जा सके।

यद्पि, संस्‍थागत शिशु जन्‍म में उल्‍लेखनीय वृद्धि हुई है। फिर भी गर्भवती महिलाओं तथा उनके परिवार को काफी खर्चा करना पड़ता है। इसके कारण गर्भवती महिलाएं संस्‍थागत प्रजनन को बाधा के रूप में लेती है। वे घर में प्रजनन कराने को वरियता देती है। इस कारण से, अधिकतर रूग्‍ण नवजात शिशुओं को स्‍वास्‍थ्‍य की सुविधाएं न मिलने के कारण मृत्‍यु हो जाती हैं।

इस समस्‍या का निवारण करने के लिए स्‍वास्‍थ्‍य एवं परिवार कल्‍याण मंत्रालय ने (जननी शिशु सुरक्षा कार्यक्रम) एक जून 2011 को गर्भवती महिलाओं तथा रूग्‍ण नवजात शिशुओं को बेहतर स्‍वास्‍थ्‍य सुविधाएं प्रदान करने के लिए शुरू किया था। इस योजना के अंतर्गत मुफ्त सेवा प्रदान करने पर बल दिया गया है। इसमें गर्भवती महिलाओं तथा रूग्‍ण नवजात शिशुओं को खर्चों से मुक्‍त रखा गया है।

इस योजना के तहत, गर्भवती महिलाएं को मुफ्त दवाएं एवं खाद्य, मुफ्त इलाज, जरूरत पड़ने पर मुफ्त खून दिया जाना, सामान्‍य प्रजनन के मामले में तीन दिनों एवं सी-सेक्‍शन के मामले में सात दिनों तक मुफ्त पोषाहार दिया जाता है। इसमें घर से केंद्र जाने एवं वापसी के लिए मुफ्त यातायात सुविधा प्रदान की जाती है। इसी प्रकार की सुविधा सभी बीमार नवजात शिशुओं के लिए दी जाती है। इस कार्यक्रम के तहत ग्रामीण एवं शहरी क्षेत्रों में हर साल लगभग एक करोड़ से अधिक गर्भवती महिलाओं एवं नवजात शिशुओं को योजना का लाभ मिला है।

भारत में मातृ मृत्‍यु दर (एमएमआर) एवं शिशु मृत्‍यु दर को कम करने में अत्‍यधिक प्रगति की गई है, जिसमें और सुधार किए जाने की आवश्‍यकता है। वर्ष 2005 में शुरू की गई जननी सुरक्षा योजना (जेएसवाई) के बाद संस्‍थागत शिशु जन्‍म में उल्‍लेखनीय वृद्धि हुई है। कई संस्‍थागत प्रजनन के मामलों में माताएं 48 घंटों से अधिक केंद्रों में रूकने के लिए इच्‍छुक नहीं थी जबकि जन्‍म के बाद पहले 48 घंटे अत्‍यंत नाजुक होते हैं तथा हैमरेज, इन्‍फेक्‍शन, उच्‍च रक्‍त दबाव आदि जैसी प‍रेशानियां पैदा होने की संभावनाएं रहती हैं। असुरक्षित प्रजनन में माता एवं बच्‍चों के रोगी होने या मृत्‍यु की संभावनाएं बढ़ जाती हैं।

माता एवं बच्‍चों के स्‍वास्‍थ्‍य की देखभाल का खर्चा, दवाओं का खर्चा, जांच आदि से भी उक्‍त सेवाएं प्रभावित होती हैं। कुछ मामलों में जैसे कि खून की कमी या हैमरेज होने पर खून दिए जाने से भी खर्चा बढ़ जाता है। सीजेरियन डिलीवरी के मामले में तो खर्चा और बढ़ जाता है।

जननी सुरक्षा कार्यक्रम की शुरूआत यह सुनिश्चित करने के लिए की गई है कि प्रत्‍येक गर्भवती महिला तथा एक माह तक रूग्‍ण नवजात शिशुओं को बिना किसी लागत तथा खर्चे के स्‍वास्‍थ्‍य सेवाएं प्रदान की जाएं।

जननी शिशु सुरक्षा कार्यक्रम के अंतर्गत सरकारी स्‍वास्‍थ्‍य केंद्रों में मुफ्त प्रजनन सुविधाएं (सीजेरियन ऑपरेशन समेत) मुहैया की जाती हैं। गर्भवती महिलाओं को मुफ्त में दवाएं दी जाती हैं इनमें आयरन फॉलिक अम्‍ल जैसे सप्‍लीमेंट भी शामिल हैं। इसके साथ ही गर्भवती महिलाओं को खून, पेशाब की जांच, अल्‍ट्रा-सोनोग्राफी आदि अनिवार्य और वांछित जांच भी मुफ्त कराई जाती है। सेवा केंद्रों में सामान्‍य डिलीवरी होने पर तीन दिन तथा सीजेरियन डिलीवरी के मामले में सात दिनों तक मुफ्त पोषाहार दिया जाता है। आवश्‍यकता पड़ने पर मुफ्त खून भी दिया जाता है। गर्भवती महिलाओं को समय पर रैफरेल-यातायात सुविधा दिए जाने से माता एवं नवजात शिशुओं का बचाव किया जा सकता है। जननी शिशु सुरक्षा कार्यक्रम के अंतर्गत ओपीडी फीस एवं प्रवेश प्रभारों के अलावा अन्‍य प्रकार के खर्चे करने से मुक्‍त रखा गया है।

जन्‍म से 30 दिनों तक रूग्‍ण नवजात शिशु हेतु सभी दवाएं और अपेक्षित खाद्य मुफ्त में मुहैया कराई जाती है। माता के साथ-साथ नवजात शिशु की भी मुफ्त जांच की जाती है और आवश्‍यकता पड़ने पर मुफ्त में खून भी दिया जाता है। घर से केंद्र जाने और आने के लिए भी मुफ्त में वाहन सुविधा दी जाती है।

संक्षेप में, केंद्र में प्रजनन कराने से माता के साथ-साथ शिशु की भी सुरक्षा रहती है। जननी सुरक्षा योजना के अंतर्गत जहां गर्भवती महिला को नकद सहायता दी जाती है, वहीं पर जननी सुरक्षा कार्यक्रम के अंतर्गत गर्भवती महिलाओं तथा रूग्‍ण नवजात शिशुओं पर खर्चा कम करना पड़ता है। इससे सार्वजनिक स्‍वास्‍थ्‍य केंद्रों में जाना बढ़ा है तथा इससे माताओं एवं शिशुओं की मृत्‍यु दर में कमी आई है।

जननी शिशु सुरक्षा कार्यक्रम की शुरूआत करने से सभी गर्भवती महिलाओं को सार्वजनिक स्‍वास्‍थ्‍य केंद्रों में प्रजनन कराने में प्रोत्‍साहन मिलेगा। इससे केंद्रों पर अच्‍छी जन्‍म संबंधी सेवाएं मिलेगी। रूग्‍ण नवजात शिशुओं का मुफ्त इलाज किए जाने से नवजात शिशुओं की मृत्‍यु दर घटाने में सहायता मिलेगी। इस कार्यक्रम से माता एवं नवजात शिशुओं की रूग्‍णता और मृत्‍यु दर में कमी आएगी।

PIB

UPSC MODEL PAPER I

Please go through this link its a model paper I for civil services preliminary exam 2013. Before the exam you can check your self. Thanks



https://docs.google.com/file/d/0B_JN905OlXA7MzNFQ2FvNndkSWM/edit?usp=sharing

गुरुवार, 23 मई 2013

What next vis-a-vis China and Pakistan


The elections are over in Pakistan, and the political scenario in terms of the next government is clear. Nawaz Sharif is the new Prime Minister, and he has adequate support in the Parliament and is not heading an unstable coalition. The Prime Minister of the other big neighbour - China, with whom there was a tension along the borders during the last two months, also visited New Delhi few days earlier.

For India, China and Pakistan are extremely important neighbours. No doubt, every neighbour in the region is important for India, however, China and Pakistan are special neighbours. Both countries are not only nuclear weapon powers, with whom India has fought wars and has unresolved border disputes, but also important from a domestic perspective. No other countries in the region is so much debated within India; equally important, the Indian polity and multiple ministries are not so deeply divided with other countries, as they are vis-a-vis China and Pakistan.

The Chinese Prime Minister came to New Delhi, fully prepared to face the questions on what happened in Ladakh in terms of the Chinese troops intruding deep into the Indian territory. Though he deliberately underplayed the incident, he did not attempt to scuttle the issue. More importantly, he did not try to be jingoistic over the issue. It appears, he was well briefed for the questions, and certainly came well prepared. Not only on the border question, but he came well prepared and briefed on the question of water sharing between the two countries.

It clearly appears, China is more keen to expand the economic ties with India, and down play the border conflict. It also appears the Indian polity is also equally divided in terms of what should be the primary focus during the Chinese Prime Minister visit. While a section within India, especially led by the Defence ministry and Home ministry, along with most of the strategic community in India expected the Prime Minster to act tough on the border question. Clearly, there is a pro-China group within the strategic community, which wants India to underplay the border tension and expand the economic ties with China. In fact, the Prime Minister himself seems to be in this section, trying to focus more on the economic ties.

Interaction with China should not be either - or strategy in terms of whether India should work with China, or pursue a conflicting relationship. As the political status, economy and strategic interests grow, both India and China are likely to compete with each other in many spheres. But, this competition need not necessarily be a conflicting one. On the other hand, given India’s growing relationship with the US, and expanding interests in the Asia-Pacific, both countries are likely to pursue a conflicting path.

The global strategic interests of China and India, and their regional aspirations in the Asia-Pacific is likely to impact on India-China border conflict, and also increase tension in the China-Pakistan-India triangle. While India cannot afford to be totally pacifist and avoid any strong response, especially on its vital interests within in its border, or elsewhere, India cannot also afford to be jingoistic. India’s response has to be strong, but not war mongering.

Vis-a-vis Pakistan, it is also time that New Delhi decides what it wants to do with Pakistan, in terms of bilateral relationship. However, the unfortunate truth is “New Delhi” is not monolithic in terms of what it wants to do. The Prime Minister’s Office, Ministry of Foreign Affairs, Ministry of Defence and Ministry of Home Affairs are deeply divided over a policy towards Pakistan. While the policymakers in these ministries try to hide behind “public opinion” or “lack of consensus” in the Parliament, the hard truth is our political elite in Delhi is deeply divided over how we see Pakistan, and what we want to develop, in terms of a long term relationship.

Undoubtedly, Pakistan is not a monolith. There is a huge divide between the political parties and the military; irrespective of whichever party comes to power, led by the PML-N or the PPP, the general belief is – the real power lies with the military. There is enough statistical evidence to prove such a belief that in terms of Pakistan’s India policy, the real power lies with the military and not the elected Prime Minister.

So what should India do vis-a-vis Nawaz Sharif? Should India attempt to pursue a cautious policy and do nothing vis-a-vis building a long term relationship with Nawaz Sharif? Or, should India go beyond the question over “trust” and the ability of a Pakistani Prime Minister to deliver on India-Pakistan relationship.

On this question, there is a need to relook India’s expectation towards Pakistan, and in particular the new Prime Minister. He will not “deliver” Kashmir to India; nor he will eliminate the Laskar-e-Toiba completely from Pakistan. Nor he will become a “super” Prime Minister of Pakistan and bring its powerful military under his total control. He will not even be able to exert a reasonable pressure on the ISI, forget the rest of military. He may neither give a complete go ahead to India to do what it wants in Afghanistan.

If the above a reasonable assumption of what Nawaz Sharif is unlikely to deliver, should India keep away from him and not engage Pakistan? While there will always be a trust factor in how India sees Pakistan and its elected leadership, the same will also be true vis-a-vis how Pakistani Prime Minister sees India. In a sense, his situation is worse than the Indian Prime Minister, for he has to constantly look over his shoulder to find out what the opposition, especially the religious political parties, military and the militants are likely to do vis-a-vis his India policy.

So, what should be a strategy vis-a-vis the new Prime Minister in Pakistan? While jumping readily into a peace process is also a sign of weakness, refusing to engage a country because of what had happened in the past, is also equally a sign of weakness. Irrespective of whether Sharif will be able to “deliver” on the above questions, India will have to engage Nawaz Sharif, especially on Kashmir, and other CBMs covering a wide spectrum.

J&K may be a good place to start this process, especially over cross-LoC CBMs. India should move ahead and expand the CBMs, make the cross-LoC trade fruitful and a “Kashmiri” CBM. Even if India has to make certain unilateral gestures on cross-LoC trade, New Delhi should move ahead. Indian economy is too strong and New Delhi should not be petty. India should also propose larger cross-LoC CBMs, especially in the movement of people and move beyond just divided families. These are small measures, but have a huge impact not only along the LoC, but also across the international border.

While talking peace always may be a sign of weakness, shying away from it will also become a weakness, and only strengthen the hardliners.

D Suba Chandran
Director, IPCS
E-mail: subachandran@ipcs.org

राष्‍ट्रीय बाल स्‍वास्‍थ्‍य कार्यक्रम (आरबीएसके)


 भारत जैसे विशाल देश में एक बड़ी आबादी के लिए स्‍वस्‍थ और गतिशील भविष्य तथा एक ऐसे विकसित समाज का सृजन बेहद महत्‍वपूर्ण है जो समूचे विश्‍व के साथ तालमेल स्थापित कर सके। ऐसे स्‍वस्‍थ और विकासशील समाज के स्‍वपन को सभी स्‍तरों पर सिलसिलेवार प्रयासों और पहलों के जरिए प्राप्‍त किया जा सकता है। बाल स्‍वास्‍थ्‍य देखभाल की शुरूआती पहचान और उपचार इसके लिए सबसे अधिक व्‍यावहारिक पहल अथवा समाधान हो सकते है।
स्‍वास्‍थ्‍य और परिवार कल्‍याण मंत्रालय द्वारा शुरू किए गए राष्‍ट्रीय ग्रामीण स्‍वास्‍थ्‍य मिशन के तहत बाल स्‍वास्‍थ्‍य जांच और जल्‍द उपचार सेवाओं का उद्देश्‍य बच्‍चों में चार तरह की परेशानियों की जल्‍द पहचान और प्रबंधन है। इन परेशानियों में जन्‍म के समय किसी प्रकार का विकार, बच्‍चों में बीमारियां, कमियों की विभिन्‍न परिस्थितियां और विकलांगता सहित विकास में देरी शामिल है।

विद्यालय स्‍वास्‍थ्‍य कार्यक्रम के तहत बच्‍चों की जांच एक महत्‍वपूर्ण पहल है। इसके दायरे में अब जन्‍म से लेकर 18 वर्ष की आयु तक के बच्‍चों को शामिल किया गया है। राष्‍ट्रीय ग्रामीण स्‍वास्‍थ्‍य मिशन के तहत शुरू किये गये इस कार्यक्रम ने महत्‍वपूर्ण प्रग‍ती की है और बाल मृत्‍यु दर में कमी आई है। हालांकि सभी आयु वर्गों में रोग की जल्‍द पहचान और परिस्थितियों के प्रबंधन द्वारा और भी सकारात्‍मक परिणाम प्राप्‍त किये  जा सकते है।

वार्षिक तौर पर देश में जन्‍म लेने वाले 100 बच्‍चों में से 6-7 जन्म संबंधी विकार से ग्रस्त होते हैं। भारतीय संदर्भ में यह वार्षिक तौर पर 1.7 मिलियन जन्म संबंधी विकारों का परिचायक है यानि सभी नवजातों में से 9.6 प्रतिशत की मृत्यु इसके कारण होती है। पोषण संबंधी विभिन्न कमियों की वजह से विद्यालय जाने से पूर्व अवस्था के 4 से 70 प्रतिशत बच्चे विभिन्न प्रकार के विकारों से ग्रस्त होते हैं। शुरूआती बालपन में विकासात्मक अवरोध भी बच्चों में पाया जाता है। यदि इन पर समय रहते काबू नहीं पाया गया तो यह स्थायी विकलांगता का रूप धारण कर सकती है।

 बच्‍चों में कुछ प्रकार के रोग समूह बेहद आम है जैसे दाँत, हृदय संबंधी अथवा श्‍वसन संबंधी रोग। यदि इनकी शुरूआती पहचान कर ली जायें तो उपचार संभव है। इन परेशानियों की शुरूआती जांच और उपचार से रोग को आगे बढ़ने से रोका जा सकता है। जिससे अस्‍पताल में भर्ती कराने की नौबत नहीं आती और बच्‍चों के विद्यालय जाने में सुधार होता है।

बाल स्‍वास्‍थ्‍य जांच और शुरूआती उपचार सेवाओं से दीर्घकालीन रूप से आर्थिक लाभ भी सामने आते है। समय रहते उपचार से मरीज की स्थिति और अधिक नहीं बिगड़ती और साथ ही गरीबों और हाशिए पर खड़े वर्ग को इलाज की जांच में अधिक व्‍यय नहीं करना पड़ता।

लक्ष्‍य समूह

सरकारी और सरकारी सहायता प्राप्‍त विद्यालयों में कक्षा एक से 12वीं तक में पढ़ने वाले 18 वर्ष तक की आयु वाले बच्‍चों के अलावा ग्रामीण क्षेत्रों और शहरी झुग्‍गी बस्तियों में रहने वाले 0-6 वर्ष के आयु समूह तक के सभी बच्‍चों को इसमें शामिल किया गया है। ये संभावना है कि चरणबद्ध तरीके से लगभग 27 करोड़ बच्‍चों को इन सेवाओं का लाभ प्राप्‍त होगा।


जन्‍म संबंधी विकारों, कमियों, रोगों, विकास संबंधी देरी और बच्‍चों में विकलांगता का स्‍तर

जन्‍म संबंधी विकार

प्रति वर्ष लगभग 26 मिलियन की वृद्धिरत विशाल जनसंख्‍या में से विश्‍वभर में भारत में जन्‍म संबंधी विकारों से ग्रस्त बच्चों की संख्‍या सर्वाधिक है। वर्षभर में अनुमानत: 1.7 मिलियन बच्‍चों में जन्‍म संबंधी विसंग‍ति प्राप्‍त होती है। नेशनल नियोनेटोलॉजी फोरम के अध्‍ययन के अनुसार मृत जन्में बच्चों में मृत्‍युदर (9.9 प्रतिशत) का दूसरा सबसे सामान्‍य कारण है और नवजात मृत्‍युदर का चौथा सबसे सामान्‍य कारण है।

कमियां

साक्ष्‍यों द्वारा यह बात सामने आई है कि पांच वर्ष तक की आयु के लगभग आधे (48 प्रतिशत) बच्‍चे अनुवांशिक तौर पर कुपोषण का शिकार है। संख्‍या के लिहाज से पांच वर्ष तक के लगभग 47 मिलियन बच्‍चे कमजोर हैं, 43 प्रतिशत का वज़न अपनी आयु से कम है। पांच वर्ष की आयु के कम के 6 प्रतिशत से भी ज्‍यादा बच्‍चे कुपोषण से भारी मात्रा में प्रभावित है। लौह तत्‍व की कमी के कारण 5 वर्ष की आयु तक के लगभग 70 प्रतिशत बच्‍चे अनीमिया के शिकार है। पिछले एक दशक से इसमें कुछ अधिक परिवर्तन नहीं आया है।

बीमारियां

विभिन्‍न सर्वेंक्षणों से प्राप्‍त रिपोर्ट के अनुसार स्‍कूल जाने वाले भारतीय विद्यार्थियों में 50-60 प्रतिशत बच्‍चों में दांतों से संबंधित बीमारियां है। 5-9 वर्ष के विद्यार्थियों में से प्रत्‍येक हजार में 1.5 और 10-14 आयु वर्ग में प्रति हजार 0.13 से 1.1 बच्‍चे हृदय रोग से पीडि़त है। इसके अलावा 4.75 प्रतिशत बच्‍चे दमा सहित श्‍वसन संबंधी विभिन्‍न बीमारियों से पीडि़त है।

विकास संबंधी देरी और विकलांगता

गरीबी, कमजोर स्‍वास्‍थ्‍य और पोषण तथा सम्‍पूर्ण् आहार में कमी की वजह से वैश्विक स्‍तर पर लगभग 200 मिलियन बच्‍चे पहले 5 वर्षों में समग्र विकास नहीं कर पाते। 5 वर्ष के कम आयु के बच्‍चों में विकास संबंधी यह अवरोध उनके कमजोर विकास का संकेतक है।

जांच के लिए पहचान की गई स्‍वास्‍थ्‍य परिस्थितियां

एनआरएचएम के तहत बाल स्‍वास्‍थ्‍य जांच और शुरूआती उपचार सेवाओं के अंतर्गत जल्‍द जांच और नि:शुल्‍क उपचार के लिए 30 स्‍वास्‍थ्‍य परिस्थितियों की पहचान की गई है। इसके लिए कुछ राज्‍यों/संघ शासित प्रदेशों की भौगोलिक स्थितियों में हाइपो-थाइरोडिज्‍म, सिकल सेल एनीमिया और वीटा थैलेसिमिया के अत्‍याधिक प्रसार को आधार बनाया गया है तथा परीक्षण और विशेषीकृत सहयोग सुविधाओं को उपलब्‍ध कराया गया है। ऐसे राज्‍य और संघ शासित प्रदेश इसे अपनी योजनाओं के तहत शामिल कर सकते है।

क्रियान्‍वयन प्रणाली

स्‍वास्‍थ्‍य जांच के लिए बच्‍चों के सभी लक्ष्‍य समूह तक पहुंच के लिए निम्‍नलिखित दिशा-निर्देश रेखांकित किये गए है:-

नवजातों के लिए- सार्वजनिक स्‍वास्‍थ्‍य केंद्रों में नवजातों की जांच के लिए सुविधा। जन्‍म से लेकर 6 सप्‍ताह तक जांच के लिए आशाओं द्वारा घर जाकर जांच करना।

 6 सप्‍ताह से 6 वर्ष तक के बच्‍चों के लिए-समर्पित मोबाइल स्वास्थ्य टीमों द्वारा आंगनवाड़ी केंद्र आधारित जांच। 

6 वर्ष से 18 वर्ष तक के बच्‍चों के लिए समर्पित मोबाइल स्‍वास्‍थ्‍य टीमों द्वारा सरकारी और सरकारी सहायता प्राप्त स्‍कूल आधारित जांच।

स्‍वास्‍थ्‍य केंद्रों पर नवजातों की जांच-इसके तहत सार्वजनिक स्‍वास्‍थ्‍य केंद्रों में खासतौर पर एएनएम चिकित्‍सा अधिकारियों द्वारा संस्‍थागत प्रसव में जन्‍म संबंधी विकारों की पहचान शामिल है। प्रसव के निर्धारित सभी स्‍थानों पर मौजूदा स्‍वास्‍थ्‍य सेवा प्रदाताओं को विकारों की पहचान, रिपोर्ट दर्ज करने और जिला अस्पतालों में जिला प्रारंभिक उपचार केन्द्रों में जन्म संबंधी विकारों की जांच के लिए रेफर करने के लिए प्रशिक्षित किया जायेगा।

जन्‍म दोष के लिए समुदाय आधारित नवजात शिशुओं की जांच (आयु 0-6 हफ्ते)

प्रत्‍यायित सामाजिक स्‍वास्‍थ्‍य कार्यकर्ताएं (आशा) घरों में जाकर नवजात शिशुओं  के देखरेख के दौरान घरों और अस्‍पतालों में जन्‍मे 6 हफ्ते तक के शिशुओं की जांच कर सकेंगी। आशा कार्यकताओं को जन्‍म दोष की कुल जांच के लिए सामान्‍य उपकरणों के साथ प्रशिक्षण दिया जाएगा। इसके अतिरिक्‍त आशा कार्यकर्ताएं बच्‍चों की देखरेख करने वालों को स्‍वास्‍थ्‍य दल से उनकी जांच के लिए स्‍थानीय आंगनवाड़ी आने के लिए तैयार करेंगी।

मोबाइल स्‍वास्‍थ्‍य दल द्वारा जांच कार्यक्रम के बेहतर परिणाम सुनिश्चि करने के लिए आशा कार्यकर्ता विशेष रूप से जन्‍म के दौरान कम वज़न वाले, सामान्‍य से कम वज़न वाले बच्‍चों और तबेदिक, एचआईवी जैसे चिरकालिक बीमारियों का सामना करे रहे बच्‍चों का आकलन करेंगी।

6 हफ्ते से लेकर 6 साल तक के बच्‍चों की आंगनवाड़ी में जांच

6 हफ्ते से लेकर 6 साल की उम्र तक के बच्‍चों की जांच समर्पित मोबाइल स्‍वास्‍थ्‍य दल द्वारा आंगनवाड़ी केंद्र में की जाएगी।

6 से 18 साल की उम्र तक के बच्‍चों की जांच की जाएगी। इसके तहत हर ब्‍लॉक में  कम से कम 3 समर्पित मोबाइल स्‍वास्‍थ्‍य दल बच्‍चों की जांच करेंगे। ब्‍लॉक के क्षेत्राधिकार के तहत गांवों कों  मोबाइल स्‍वास्‍थ्‍य दलों के समक्ष बांटाजाएगा।  आंगनवाड़ी केंद्रों की संख्याइलाकों तक पहुंचने की परेशानियों और स्कूलों में पंजीकृत बच्चों के आधार पर टीमों कीसंख्‍या भिन्‍न हो सकती है। आंगनवाड़ी में बच्‍चों की जांच साल में दो बार होगी और स्‍कूल जाने वाले बच्‍चों की कम से कम एक बार।

पूरी स्‍वास्‍थ्‍य जांच प्रक्रिया की निगरानी सहयता के लिए ब्‍लॉक कार्यक्रम प्रबंधक नियुक्‍त करने का भी प्रावधान है। ब्‍लॉक कार्यक्रम प्रबंधक के रेफरल सहयता और आंकड़ों का संकलन भी कर सकता है। ब्‍लॉक दल सीएचसी चिकित्‍सा अधिकारी के संपूर्ण माग्रदर्शन और निरीक्षण के तहत काम करेंगे।

जिला शुरूआती जांच केंद्र (डीईआईसी)

जिला अस्‍पताल में एक शुरूआती जांच केंद्र (अर्ली इंटरवेंशन सेंटर) खोला जाएगा। इस केंद्र का उद्देश्‍य स्‍वास्‍थ्‍य जांच के दौरान स्‍वास्‍थ्‍य संबंधी समस्‍या वाले बच्‍चों को रेफरल सहायता उपलब्‍ध कराना है। इसकी सेवाएं उपलब्‍ध कराने के लिए शिशु चिकित्‍सक, चिकित्‍सा अधिकारी, स्‍टाफ नर्सो, पराचिकित्‍सक वाले एक दल की नियुक्ति की जाएगी। इसके तहत एक प्रबंधक की नियुक्ति का भी प्रावधान है जो पयार्प्‍त रेफरल सहायता सुनिश्चित करने के लिए सरकारी संस्‍थानों में स्‍वास्‍थ्‍य सेवाओं के बारे में पता लगाएगा। स्‍वास्‍थ्‍य और परिवार कल्‍याण मंत्रालय के साथ विचार-विमर्श के बाद राज्‍य सरकार द्वारा तय की गई दरों पर तृतीय स्‍तर के प्रबंध के लिए निधि, एनआरएसएम के तहत उपलब्‍ध कराई जाएगी।


जिन संभावित बच्‍चों और विद्यार्थियों में किसी रोग/कमी/अक्षमता/दोष के बारे में पता चला है और जिनके लिए प्रमाणित करने वाले परीक्षण या अतिरिक्‍त परीक्षण की आवश्‍यकता है, उन्‍हें शुरूआती जांच केंद्रो (डीईआईसी)के जरिए तृतीय स्‍तर के नामित सार्वजनिक क्षेत्र के स्‍वास्‍थ्‍य सुविधाओं के लिए रेफर किया जाएगा।

डीईआईसी विकास संबंधी देरी, सुनने संबंधी त्रुटि, दृष्टि विकलांगता, न्‍यूरो-मोटर विकार, बोलने  और भाषा संबंधी देरी, ऑटिज़म से संबंधित सभी मुद्दों के प्रबंध के लिए तत्‍काल रूप से कार्य करेगा। इसके अतिरिक्‍त डीईआईसी में दल, जिला स्‍तर पर नवजात शिशओं की जांच में भी शमिल होगा। इस केंद्र में श्रुवण, दृष्टि, तंत्रिका संबंधी परीक्षण और व्‍यवहार संबंधी आकलन के लिए मूल सुविधाएं होंगी।


राज्‍य/केंद्र शासित प्रदेश विशिष्‍ट परीक्षण और सेवाओं के प्रावधान के लिए सहयोगात्‍मक भागीदारों के जरिए सार्वजनिक स्‍वास्‍थ्‍य संस्‍थानों को चिन्हित करेंगे।
सार्वजनिक स्‍वास्‍थ्‍य संस्‍थानों में तृतीय स्‍तर की देखरेख सेवाएं उपलब्‍ध न होने पर विशिष्‍ट सेवाएं उपलब्‍ध करने वाले निजी क्षेत्र भागीदारो/स्‍वयं सेवा संस्‍थानो से भी सेवाएं ली जा सकती हैं। परीक्षण या इलाज के पैकज पर स्‍वीकृत खर्च के अनुसार विशिष्‍ट सेवा उपलब्‍ध कराने के लिए प्रत्‍यायित स्‍वास्‍थ्‍य संस्‍थानों को इसकी प्रतिपूर्ति की जाएगी।


प्रशिक्षण और संस्‍थागत सहकार्य

शिशु स्‍वास्‍थ्‍य जांच और प्रारंभिक स्‍तर की सेवाओं में शामिल कर्मचारियों का प्रशिक्षण इस कार्यक्रम का अनिवार्य घटक है। यह आवश्‍यक और शिशु स्‍वास्‍थ्‍य जांच के लिए कौशल की अपेक्षित जानकारी देने तथा विभिन्‍न स्‍तरों पर स्‍वास्‍थ्‍य जांच प्रकिया में शामिल सभी कर्मचारियों के  कार्य-प्रर्दशन मे सुधार लाने में मुख्‍य भूमिका निभाएगा।


सभी स्‍तरों पर कौशल और ज्ञान के मुक्‍त प्रवाह को सुनिश्चित करने और कौशल वितरण को और बढ़ाने के लिए 'मुक्‍त प्रवाह प्रशिक्षण दृष्टिकोण' को अपनाया जाएगा। तकनीकी सहायता एजेंसियों और सहयोगात्‍मक केंद्रों के साथ भागीदारी में मानकीकृत प्रशिक्षण मापदंडों का विकास किया जाएगा।

प्रतिवेदन और निगरानी

कार्यक्रम की निगरानी के लिए राज्‍य, जिला और ब्‍लॉक स्‍तर पर नोडल कार्यालय को चिन्हित किया जाएगा। शिशु स्‍वास्‍थ्‍य जांच संबंधी सभी गतिविधियों और सेवाओं के लिए ब्‍लॉक, एक केंद्र के रूप में कार्य करेगा।


दौरे के दौरान जांच किए गए हर बच्‍चे के लिए ब्‍लॉक स्‍वास्‍थ्‍य दल  'शिशु स्‍वास्‍थ्‍य जांच कार्ड' भरेंगे। सभी स्‍तरों पर स्‍वास्‍थ्‍य देखरेख उपलब्‍ध कराने वाले नवजात शिशुओं की जांच करेंगे और रेफरल की ज़रूरत होने पर इसी कार्ड को भरेंगे। इन शिशुओं को माता और शिशु पहचान प्रणाली (एमसीटीएस) से विशिष्‍ट पहचान संख्‍या जारी की जानी चाहिए। आशा कार्यकर्ताओं के घरों में दौरे करने पर शिशुओं के जन्‍म दोष का पता लगने पर उन्‍हें आगे के इलाज के लिए डीएस /डीईआईसी में रेफर किया जाना चाहिए।

शिशु स्‍वास्‍थ्‍य जांच और प्रारंभिक स्‍तर की सेवाओं के कार्यान्‍यन के लिए कदम
·     शिशु स्‍वास्‍थ्‍य जांच और प्रारंभिक स्‍तर की सेवाओं के लिए राज्‍य नोडल व्‍यक्तियों को चिन्हित करना।
·          सभी जिलों को संचालन संबंधी दिशा-निर्देश के बारे में बताना।
·         उपलब्‍ध राष्‍ट्रीय अनुमानों के अनुसार विभिन्‍न रोगों, त्रुटियों, कमियों, अक्षमता का राज्‍य/जिला परिमाण का अनुमान।
·         राज्‍य स्‍तरीय बैठकें।
·          जिला नोडल व्‍यक्तियों की भर्ती।
·         समर्पित मोबाइल स्‍वास्‍थ्‍य दल की कुल आवश्‍यकता का अनुमान और स्‍वास्‍थ्‍य दलों की भर्ती।
·         सुविधाओं/संस्‍थानों (विशेष स्‍वास्‍थ्‍य स्थितियों के इलाज के लिए सार्वजनिक और निजी) का पता लगाना।
·         जिला अस्‍पतालों में शुरूआती जांच केंद्रों  (डीईआईसी) की स्‍थापना।
·         ब्‍लॉक मोबाइल स्‍वास्‍थ्‍य दल और जिला अस्‍पतालों के लिए उपकरणों की खरीद (संचालन दिशा-निर्देशों में दी गई सूची के अनुसार)।
·         मास्‍टर प्रशिक्षकों का प्रशिक्षण।
·         स्‍कूल, आगंनवाड़ी केंद्रों, आशा कार्यकर्ताओं, उपयुक्‍त प्राधिकारियों, विद्यार्थियों, माता-पिता और स्‍थानीय सरकार को पहले ही ब्‍लॉक मोबाइल दलों के दौरों के कार्यक्रम के बारे में सूचित करना चाहिए ताकि आवश्‍यक तैयारी की जा सके।

बुधवार, 22 मई 2013

युवाओं के लिए रोजगार अवसरों का सृजन


भारत एक विशाल देश है। इसकी आबादी लगभग 1.21 अरब है और लगभग 475 मिलियिन की श्रम शक्ति यहां मौजूद है। वर्ष 2009-10 के लिए उपलब्‍ध अनुमानों के अनुसार यहां लगभग 9.5 मिलियन लोग बेरोजगार थे। रोजगार जीविका और आत्‍मतुष्टि का प्रमुख साधन होता है। लगभग छह प्रतिशत भारतीय श्रम शक्ति संगठित क्षेत्रों में लगी हुई है, जबकि बाकी 94 प्रतिशत लोग असंगठित क्षेत्र में काम करते हैं। यहां पर संगठित क्षेत्र में अतिरिक्‍त लोगों के लिए रोजगार सृजन के अवसर कम हैं।

भारत की अधिकांश जनसंख्‍या अन्‍य अर्थव्‍यवस्‍थाओं के मुकाबले कम आयु वाली है। बड़े विकसित देशों के मुकाबले भी ऐसा ही कहा जाएगा। अगले 20 वर्षों में भारत की श्रम शक्ति में 32 प्रतिशत वृद्धि होने की संभावना है जबकि अन्‍य औद्योगिक देशों में इसमें 4 प्रतिशत की गिरावट आ सकती है। चीन में तो लगभग पांच प्रतिशत गिरावट रहेगी। इसीलिए हमारी कोशिश यह है कि हम अधिक जनसंख्‍या से फायदा उठाये और अपने लोगों को अच्‍छे स्‍तर के स्‍वास्‍थ्‍य, शिक्षा और कौशल विकास के अवसर दें। इससे ऐसा माहौल बनेगा कि अर्थव्‍यवस्‍था में तेजी से‍विकास होगा और देश के युवा वर्ग की आकांक्षाएं और जरूरतें पूरी करने के लिए बेहतर रोजगार और जीविका के अवसर मिलेंगे।

सरकार बेरोजगारी में कमी लाने की लगातार कोशिशें करती रहीं हैं। इसके लिए उसने अनेक रोजगार सृजन कार्यक्रम शुरू किये हैं। इनमें स्‍वर्ण जयंती सहकारी रोजगार योजना (एसजेएसआरवाई), प्रधानमंत्री रोजगार सृजन कार्यक्रम (पीएमईजीपी) और राष्‍ट्रीय ग्रामीण जीविका मिशन। इसके अलावा कई उद्यमिता विकास कार्यक्रम भी चलाए जाते हैं, जिसका संचालन सूक्ष्‍म, लघु एवं औसत उद्योग मंत्रालय करता है।

महात्‍मा गांधी राष्‍ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम 2005 (एमजीएनआरईजीए) भी लोगों को साल भर में कम-से-कम एक सौ दिन शारीरिक परिश्रम वाला काम देने की गारंटी देता है।

जवाहरलाल नेहरू राष्‍ट्रीय शहरी पुनर्निर्माण मिशन (जेएनएनयूआरएम) इस मिशन का उद्देश्‍य चुनिंदा शहरों का तेजी से विकास प्रोत्‍साहित करना है। इस कार्यक्रम के अंतर्गत शहरी बुनियादी सुविधाओं की कुशलता बढ़ाने और सेवा सुपुर्दगी तंत्र और सामुदायिक भागीदारी बढ़ाने के लिए काम किया जाता है।

भारत निर्माण
ग्रामीण बुनियादी सुविधाओं के महत्‍वपूर्ण क्षेत्र-इस कार्यक्रम के अंतर्गत सिंचाई, सड़कें पानी की सप्‍लाई, आवास, बिजली और टेलीफोन कनेक्‍शन बढ़ाने का काम किया जाता है। इससे ग्रामीण लोगों का रहन-सहन बेहतर हुआ और आखिरकार आर्थिक गतिविधियां बढ़ी हैं, जिससे बुनियादी तंत्र मजबूत हुआ है। इस कार्यक्रम के कारण ग्रामीण और शहरी इलाकों में लोगों के लिए रोजगार के अवसर भी बढ़े हैं।

मूल सुविधाओं का विकास
12वीं योजना अवधि में मूल सुविधाओं के विकास पर रूपये 45 लाख करोड़ खर्च करने का प्रावधान किया गया है। इसमें से लगभग आधी राशि प्राइवेट सेक्‍टर से आएगी।

कौशल विकास
·         कौशल और ज्ञान आर्थिक और सामाजिक विकास की चालक शक्तियां होती हैं। जिन देशों में कौशल का स्‍तर  बेहतर होता है वे दुनिया भर में चुनौतियों और सुअवसरों से बेहतर ढंग से समायोजन करते हैं।

·         सरकार प्रशिक्षण मूल सुविधा के सृजन के प्रति गंभीर है और युवा वर्ग को बेहतर प्रशिक्षण रोजगार दे रही है। क्‍वालिटी काउंसिल ऑफ इंडिया द्वारा कराये गये एक अध्‍ययन के अनुसार आधुनिकीकृत आईटीआई में मूल सुविधाओं में सुधार के बाद प्‍लेसमेंट की दर 80 से 99 प्रतिशत तक बढ़ गई। 11वीं योजना अवधि में कौशल विकास इनीशिएटिव स्‍कीम शुरू की गई थी। इसका आधार था। मोड्युलर इमप्‍लायेबल स्किल्‍स यह स्‍कीम उन लोगों के लिए थी जो समय से पहले ही स्‍कूली शिक्षा छोड़ देते हैं और जो श्रमिक का काम करते हैं। इनकी असंगठित क्षेत्र में रोजगार की योग्‍यता में सुधार लाने के लिए यह स्‍कीम चलाई गई। इस स्‍कीम के अंतर्गत अब तक लगभग 16 लाख लोग प्रशिक्षित किये जा चुके हैं।

·         विभिन्‍न कौशल विकास कार्यक्रमों के अंतर्गत बड़ी संख्‍या में लोगों के कौशल विकास का काम चल रहा है। प्रधानमंत्री ने वर्ष 2022 तक पांच सौ मिलियिन लोगों के कौशल विकास का लक्ष्‍य तय किया है। इसके लिए श्रम और रोजगार मंत्रालय को एक सौ मिलियन लोगों को प्रशिक्षित करने की जरूरत है। सरकार इस लक्ष्‍य को पूरा करने के लिए बराबर कोशिश कर रही है और प्रशिक्षण क्षमता बढ़ा दी गई है। वर्ष 2006-07 में जहां नौ लाख लोगों को ट्रेनिंग दी जा सकती थी वहीं 2011-12 में यह क्षमता बढ़ाकर 26 लाख लोगों को प्रशिक्षित करने की कर दी गई। इसके लिए सभी सरकारी आईटीआई को आधुनिक बनाया जा रहा है और वे दो तीन शिफ्टों में काम कर रहे हैं। पिछले पांच वर्षों के दौरान सरकारी और प्राइवेट क्षेत्र के आईटीआई में प्रशिक्षित लोगों की संख्‍या बढ़ गई है। वर्ष 2006-07 में जहां 5114 लोग आईटीआई से प्रशिक्षित होकर निकले थे, वहीं इस मामले में ताजा आंकड़ा 10,334 लोगों का है, जो पहले के मुकाबले लगभग दुगना है। सरकार पीपीपी मोड में 1500 और आईटीआई खोलने जा रही है। साथ ही, पांच हजार कौशल विकास केंद्र भी पीपीपी मोड में शुरू होंगे। इससे प्रशिक्षण क्षमता और बढ़ जाएगी। सरकार ने काफी संख्‍या में प्रशिक्षक तैयार करने के लिए उन्‍नत स्‍तर के 27 और प्रशिक्षण संस्‍थान खोलने की योजना बनाई है। इससे प्रशिक्षण क्षमता बढ़ेगी।

12वीं योजना के महत्‍वपूर्ण क्षेत्र
12वीं योजना अवधि में सरकार एक ऐसी सर्वसमावेशी नीति लाने वाली है, जिसके अंतर्गत देश के कम आयु के युवा को रोजगार पाने के बेहतर अवसर प्रदान किये जाएंगे।
मुख्‍य रूप से जिन क्षेत्रों पर जोर दिया जाएगा वे निम्‍नलिखित होंगे:-

(क) उत्‍पादन क्षेत्र पर जोर- इसको आर्थिक विकास की चालक शक्ति बनाया जाएगा और इसमें वर्ष 2025 तक एक सौ मिलियिन अतिरिक्‍त नौकरियां सृजित की जाएंगी।

(ख) ऐसी नीतियां शुरू की जाएंगी जिनसे श्रम सघन उत्‍पादन क्षेत्र को बढ़ावा मिले और लोगों को ज्‍यादा रोजगार अवसर मिल सकें। इनमें वस्‍त्र एवं परिधान, चमड़ा और फुटवेयर, फूड प्रोसेसिंग, रत्‍न और जवाहरात जैसे क्षेत्र शामिल हैं।

(ग) सूचना टैक्‍नोलॉजी, वित्‍त एवं बैंकिंग, पर्यटन, व्‍यापार एवं परिवहन जैसे सेवा क्षेत्रों में रोजगार के अवसर बढ़ाए जाएंगे।
(घ) अनौपचारिक क्षेत्र के लिए प्रशिक्षण कौशल की प्राथमिकता तय करना-इसके लिए गांवों से आकर शहरों में बसने वाले लोगों को विभिन्‍न कौशलों का प्रशिक्षण दिया जाएगा ताकि विकास सर्व समावेशी हो सके।

(च) बाजार की मांग के अनुरूप कौशल के मोड्यूलों को तैयार करना और इस काम में स्किल्‍स काउंसिलों की मदद लेना ताकि प्रशिक्षण प्राप्‍त लोगों को उचित रोजगार दिलाया जा सके।

(छ) रोजगार सुनिश्चित करने के लिए मोड्यूलों को रोजगार परक बनाना, ताकि उसके अनुरूप मोड्यूलर इम्‍प्‍लायेबल स्किल कार्यक्रम तैयार किये जा सकें।
 (ज) अंसगठित क्षेत्र के श्रमिकों को सामाजिक सुरक्षा के लाभ दिलाना।
(झ) साधनहीन छात्रों को शिक्षा ऋण लेने में सक्षम बनाना (क्रेडिट गारंटी फंड)
(ट) कौशल विकास के लिए आर्थिक सहायता सुनिश्चित करने के लिए वंचित वर्गों को कौशल विकास कार्यक्रमों से लाभ पहुंचाना।
 (ठ) राष्‍ट्रीय स्‍तर पर कौशल का रजिस्‍टर बनाना और उसे मंत्रालयों/राज्‍यों से संबद्ध करना ताकि लोगों को रोजगार का एक मंच मिल सके।

हाल के वर्षों में राज्‍य और केंद्र सरकार के क्षेत्र में बढ़ोतरी हुई है, जिससे पता चलता है कि उनकी प्राथमिकताएं और सामाजिक सेवाएं बढ़ गई हैं। अब सामाजिक सेवाओं पर अधिक खर्च होता है। सामाजिक सेवाओं में शिक्षा, खेलकूद, कला एवं संस्‍कृति, स्‍वास्‍थ्‍यचर्या एवं सार्वजनिक स्‍वास्‍थ्‍य, परिवार कल्‍याण, पानी की सप्‍लाई और साफ-सफाई, आवास शहरी विकास, अनुसूचित जातियों एवं अनुसूचित जन-जातियों का कल्‍याण, अन्‍य पिछड़े वर्गों का कल्‍याण, श्रम और श्रम कल्‍याण, सामाजिक सुरक्षा और कल्‍याण तथा पोषण और प्राकृतिक आपदाओं से रक्षा आदि शामिल हैं।

राष्‍ट्रीय ई-गवर्नेंस
 राष्‍ट्रीय ई-गवर्नेंस योजना में रोजगार केंद्रों को मिशन मोड प्रोजेक्‍ट्स का उच्‍चीकरण और आधुनिकीकरण माना गया है। मिशन मोड प्रोजेक्‍ट्स का उद्देश्‍य है देश के सभी रोजगार केंद्रों की सहायता करना और उन्‍हें रोजगार प्रदान करने का कारगर साधन बनाना। इसके लिए एक राष्‍ट्रीय स्‍तर का वेब पोर्टल भी विकसित किया जाएगा जिसमें एकल खिड़की आधार पर रोजगार से संबंधित सभी सेवाएं उपलब्‍ध कराई जाएंगी और वह एक तरह से कम्‍प्‍यूटर पर जॉब मार्केट की तरह काम करेगा। इससे रोजगार केंद्र व्‍यापक आधार पर और तेजी से बेहतर क्‍वालिटी की सेवाएं दे सकेंगे।


PIB

सामान्य विज्ञान बहुविकल्पीय प्रश्न for civil services pre 2013........


Q. पेसमेकर किस काम आता हैं
1. हृदय स्पन्दन को कम करना
2. हृदय स्पन्दन को समंजित करना
3. हृदय स्पन्दन बढाना
4. हृदय में रुधिर प्रवाह तेज कराना

Ans. 2

Q. आमाशय की सबसे भीतरी पर्त कहलाती हैं-
1. पेशी स्तर
2. सिरोसा
3. श्लेश्मिका
4. अधः श्लेश्मिका

Ans. 3

Q. रक्त में लाल रंग किसके कारण होता हैं -
1. हीमोग्लोबीन
2. आर बी सी
3. डब्ल्यु बी सी
4. प्लाज्मा

Ans. 1

Q. स्तनियों की आहार नाल में बु्रनर ग्रन्थिया पायी जाती हैं -
1. ग्रहणी में
2. आमाशय में
3. ग्रसिका में
4. ग्रसनी में

Ans. 1

Q. ऐसे पदार्थ जो सुक्ष्म जीवों से प्राप्त होते हैं तथा सुक्ष्म जीवों को नष्ट करने के काम आते हैं उन्हे कहते हैं -
1. प्रतिजन
2. प्रतिरक्षी
3. प्रतिजैविक
4. प्रतिरोधी

Ans. 3

Q. निम्नलिखित में से डी.पी.डी का अर्थ है-
1. डिफ्यूजन प्रैशर डिमाण्ड
2. डेली प्रैशर डिमाण्ड
3.डेली फास्फोरस डिमाण्ड
4. डिफ्यूजन प्रैशर डेफिसिएन्सी

Ans. 4

Q. सर्व दाता का रुधिर वर्ग कौनसा होता हैं -
1.
2. बी
3. ए बी
4.

Ans. 4

Q. पोलियो के टीके की खोज किसने की -
1. रेबिल
2. फ्लेमिंग
3. जैन्नर
4. साल्क

Ans. 4

Q. मनुष्य का औसत रक्त चाप कितना होता हैं-
1. 80-120
2. 70-140
3. 60-130
4. 50-100

Ans. 1

Q. पित्त की वसा पर क्रिया कहलाती हैं-
1.जलीय अपघटन
2. ऐस्टरीफिकेशन
3.पाचन
4. इमल्सीफिकेशन (पायसीकरण )

  Ans. 4

Q. वायु में सबसे अधिक मात्रा में पायी जाने वाली गैस कौनसी है-
1. कार्बन डाई आक्साइड
2. आर्गन
3. नाइट्रोजन
4. आक्सीजन

Ans. 3


Q. निम्नलिखित में से परितन्त्र में उर्जा का प्राथमिक स्त्रोत कौनसा हैं -
1.हरे पौधे
2.सूर्य का प्रकाश
3.ए.टी.पी
4.पर्ण हरित
 
Ans. 2

Q. निम्नलिखित में से किस वर्ग में एक पुश्प रहित लेकिन बीजधारी पौध वर्गीकत किया जायेगा-
1. ब्रायोफाइटा
2. कवक
3. टेरिडोपफाइटा
4. जिम्नोस्पर्म

Ans. 1

Q. स्तनियों की दुग्ध ग्रन्थियाँ रुपान्तरण हैं -
1. सिबेशियस ग्रन्थियों की
2. स्वेद ग्रन्थियों की
3. माइबोमिथन ग्रन्थियों की
4. मूलाधार ग्रन्थियों की

Ans. 1

Q. पादपों के नामकरण की द्धिनाम पद्वति किसने चलाई-
1. गर्विन
2. ह्मुगो डी ब्रीज
3. मेण्डल
4. केरोल सलिनियस

Ans. 4

Q. हीमोफीलिया एक आनुवंशिक विकार हैं जो उत्पन्न करता हैं-
1. हीमोग्लोबीन स्तर में कमी
2. डब्ल्यू बी सी में कमी
3. रक्त का स्पन्दन न होना
4. रुमेटी हृदय रोग

Ans. 3

Q. निम्नलिखित में से कौन मधुमेह से संबंधित हैं, जो प्रोढो का एक सामान्य रोग हैं-
1. रक्त में शर्करा का उच्च स्तर
2. रक्त में शर्करा का निम्न स्तर
3. रक्त में इन्सुलिन की निम्न मात्रा
4. रक्त में शर्करा का उच्च स्तर, रक्त में इन्सुलिन की निम्न मात्रा

Ans. 4

Q. पोलियो का वाइरस शरीर में किस प्रकार प्रवेश करता हैं -
1. दुषित रक्त चढाने से
2. मच्छर के काटने से
3. दुषित भोजन तथा जल से
4. वंशानुगत

Ans. 3

Q. ब्रेन की बीमारी को किस प्रकार से पहचाना जाता हैं -
1. ई.ई.जी
2. ई.ई.सी
3. ई.एम.जी
4. ई.के.जी

Ans. 1

Q. किस बीमारी के लिए बी.सी.जी का टीका लगाया जाता हैं -
1. काली खासी
2. टी.बी
3. निमोनिया
4. टिटनेस
  
Ans. 2

Q. एसिटाबूलम का निर्माण होता हैं -
1. इलियम
2. इस्चियम
3. प्यूबिस
4. उपरोक्त सभी से

Ans. 4

Q. अपोहन का प्रयोग किस अंग के लिए होता हैं-
1. फेफड़े
2. हृदय
3. यकृत
4. वृक्क

Ans. 4

Q. वंशानुक्रम के नियम का प्रतिपादन किसने किया-
1. वेन्टिग
2. रमन
3. मेण्डल
4. डार्विन

Ans. 3

Q. मछलियों के यकृत तेल मे किसकी प्रचुरता होती हैं -
1. विटामिन ए
2. विटामिन बी
3. विटामिन सी
4. विटामिन डी

Ans. 4

Q. निर्जीव पदार्थो का अध्ययन कौनसी शाखा में किया जाता हैं -
  1. भौतिकी
2. जीव विज्ञान
3. वनस्पति विज्ञान
4. भू विज्ञान

Ans. 1

Q. हृदय को रक्त की पूर्ति करने वाली धमनिया कहलाती हैं -
1. ग्रीवा धमनिया
2. यकृत धमनिया
3. फुफ्फुस धमनिया
4. हृदय धमनिया

Ans. 3

Q. दूध की शुद्वता मापने के लिए कौनसा यन्त्र काम आता हैं-
1. मैनोमीटर
2. लेक्टोमीटर
3. हाइड्रोमीटर
4. सीस्मोग्राफ

Ans. 2

Q. किडनी स्टोन में पाया जाने वाला प्रमुख रासायनिक यौगिक हैं-
1. युरिक अम्ल
2. केल्सियम सल्फेट
3. केल्सियम कार्बोनेट
4. केल्सियम फास्फेट

Ans. 3

Q. प्राकृतिक वरण का सिद्वान्त किसने प्रतिपादित किया -
1. वेन्टिग
2. लेमार्क
3. मेण्डल
4. डार्विन

Ans. 4

Q. एक पिता का रक्त वर्ग ‘‘‘‘ तथा माता का रक्त वर्ग ‘‘‘‘ हो तो उनके सन्तानों में कौनसा रक्त वर्ग हो सकता हैं -
1. ए व बी
2. बी
3. ए बी
4.

Ans. 4

Q. ऐसे यौगिक जिनके अणुसूत्र समान होते हैं, किन्तु भौतिक गुण भिन्न होते कहलाते हैं -
1. समस्थानिक
2. समभारिक
3. समावयवी
4. उपरोक्त सभी

Ans. 3

Q. ‘टेफलानका बहुलक हैं-
1. ऐथिलीन
2. टेट्राफ्लोरो एथीन
3. टेट्राफ्लोरोमेथीन
  4.स्टाइरीन

Ans. 2

Q. सौर सेलों में प्रयुक्त होता हैं -
1. सिलीकान
2. सिजीयम
3. सिल्वर
4. टाइटेनियम

Ans. 2

Q. अक्रिय गैसों की खोज किसने की -
1.प्रिस्टले ने
2. रेमजे ने
3. लेवासिये ने
4. शीले ने

Ans. 2

Q.‘स्थिर ताप पर किसी गैस की द्रव में विलयता गैस के दाब के अनुक्रमानुपाती होती हैंयह नियम किसने दिया ?
1. हेनरी
2. चाल्र्स
3. ग्राहम
4. केवेविडंस

Ans. 1

Q. ‘‘नेप्थलीन‘‘ ऊनी कपड़े का भण्डारण करने में उपयोग होता हैं क्योंकि -
1. यह एक कीटाणु रोधी हैं
2. यह प्रतिजैविक हैं
3. यह रोगाणुनाशी हैं.
4. यह पूतीरोधी हैं

Ans. 3

Q. मानसिक रोगों के उपचार में उपयोग आने वाले पदार्थ क्या कहलाते हैं ?
1. पूतीरोधी
2. प्रशान्तक
3. प्रतिजैविक
4. प्रतिहिस्टामीन

Ans. 2

Q. अम्लीय रंजक का उदाहरण हैं -
1. इण्डिगो
  2. फिनोफ्थेलीन
3. मेथील ओरेंज
4. मेलेकाइट

Ans. 2

Q. सबसे पुराना प्रतिजैविक हैं -
1. स्ट्रेप्टोमासीन
2. क्लोरोमाइसीन
3. पेनीसीलीन
4. ओरियोमाइसीन

Ans. 3

Q. क्रोमियम धातु का विद्युत लेपन इसिलिए किया जाता हैं, क्योंकि -
1. क्रोमियम का विद्युत अपघटन आसान होता हैं
2.क्रोमियम दूसरी धातु के साथ मिश्र धातु बन सकती हैं
3. क्रोमियम की मूल धातु पर सुरक्षात्मक एवं श्रृंगारात्मक पर्त चढ़ जाती हैं
4. क्रोमियम धातु की सक्रियता उच्च होती हैं

Ans. 3

Q. निन्नलिखित में से कौनसा हरमोन ‘‘लडो या भागो‘‘ हारमोन कहलाता हैं -
1. इन्सुलीन
2. प्राजेस्ट्रोन
3. ऐस्ट्रोजन
4. एड्रीनलीन

Ans. 4

Q. मानव शरीर की सबसे बडी ग्रन्थि कौनसी हैं -
1. थाइराइड
2. पीयुष
3. यकृत
4. आमाशय

Ans. 3
Q. निम्नांकित में से सबसे छोटी ग्रन्थि कौनसी हैं-
1. थाइराइड
2. पीयुष
3. यकृत
4. आमाशय

Ans. 2

Q. गाय और भैसं से दूध उतारने के लिए किस हारमोन का इन्जेक्शन लगाया जाता हैं -
1. एस्ट्रोजन
2. आक्सीटोसीन
3. इन्सुलीन
4. सोमेटोट्रोपीन

Ans. 2

Q. ‘‘कमाण्डर आफ मास्टर ग्लैण्ड‘‘ कौनसी ग्रन्थि को कहते हैं-
1. थाइराइड
2. हाइपोथेलेमस
3. यकृत
4. आमाशय

Ans. 2

Q. खुजलाने से खाज मिटती हैं -
1. त्वचा की धूल हट जाने से
2. रोगाणु मर जाने से
3. खुजली उत्पन्न करने वाले एन्जाइमों के दमन से
4. तन्त्रिकाओं के उद्वीप्त होने से जो मस्तिष्क को प्रतिहिस्टामिनी रसायन स्त्रावित करने का निर्देश देती हैं

Ans. 4

Q. मानव भू्रण का हृदय कब स्पन्दन करने लगता हैं-
1. प्रथम सप्ताह में
2. चतुर्थ सप्ताह में
3. छटे सप्ताह मे
4. तृतीय सप्ताह में

Ans. 2

Q. मनुष्य की आख में प्रकाश तरंगे किस स्थान पर स्नायु उद्वेगों में परिवर्तित होती हैं -
1. कार्निया
2. आइरिस
3. रेटिना
4. लैन्स

Ans. 3

Q. फुफ्फुस की सबसे सुक्ष्म नलिकाए होती हैं-
1. श्वसनी
2. श्वसनिका
3. वायु कोष
4. अन्तिम श्वसनिका

Ans. 3

Q. हमारे शरीर मे त्वचा के नीचे विद्यमान वसा की परत किसके विरुद्ध अवरोधक  का कार्य करती हैं-
1. शरीर की उष्मा का क्षय
2. शरीर के लवणों का क्षय
3. आवश्यक शरीर द्रवों का क्षय
4. वातावरण से हानिकारक सुक्ष्म जीवों का प्रवेश
Ans. 1

Q. मानव शरीर में सबसे लम्बी हड्डी हैं -
1. ह्मयूमरस
2. फीमर
3. मेरुदण्ड
4. रिबकेज

Ans. 2

Q. अस्थियों का अध्ययन विज्ञान की किस शाखा से किया जाता हैं -
1. आस्टियोलोजी
2. जीआलोजी
3. ओरोलोजी
4. सेरेमोलोजी

Ans. 1

Q. मनुष्य के शरीर में फसलियों के कितने जोड़ होते हैं-
1. 12
2. 10
3. 11
4. 13

Ans. 1

Q. टायलीन एन्जाइम का स्त्रवण होता हैं -
1. लार ग्रन्थियों में
2. आमाशय
3. अग्नाशय
4. यकृत

Ans. 1

Q. बरसात के दिनों में लकडी के दरवाजे फूल जाने का कारण हैं-
1. वाष्पोत्सर्जन
2. परासरण
3. अन्तः शोषण
4. जीवद्रव्य कुंचन

Ans. 3

Q. ग्लुकोज व गेलेक्टोज के संयोजन से बनता हैं -
1. लैक्टोज
2. शुक्रोज
3. फ्रक्टोज
4. ग्लाइकोजन

Ans. 1

Q. निम्नलिखित में से कौनसा सही हैं-
1. टीटनेस - बी.सी.जी
2. टी.बी - ए टी एस
3. मलेरिया – क्लोरोक्वीन
4. स्कर्वी - थाइमीन
Ans. 3
Q. टेस्ट ट्यूब बेबी का अर्थ है-
1. परखनली में विकसित शिशु
2. गर्भाशय में निषेचित व परखनली में विकसित भू्रण
3. गर्भाशय में निषेचित और विकसित भू्रण
4. परखनली में निषेचित और गर्भाशय में विकसित भू्रण

Ans. 4

Q. एल्युमिनियम धातु को निम्नलिखित में से किस प्रक्रम द्वारा परिष्कृत करते हैं ?
1. सरपेक प्रक्रम
2. हाल प्रक्रम
3. बेयर प्रक्रम
4. हूप प्रक्रम

Ans. 4

Q. हीरे को कांच काटने के काम मे लिया जाता हैं क्योंकि -
1. गलनांक उच्च हैं
2. अपवर्तनांक निम्न हैं
3. विद्युत कुचालक हैं
4. क्रिस्टल अतिकठोर हैं

Ans. 4





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