शुक्रवार, 16 अगस्त 2013

भारतीय रेल

जहां तक यात्रियों की संख्या का संबंध है भारतीय रेल प्रति वर्ष पूरी दुनिया की जनसंख्या के बराबर यात्रियों को एक स्थान से दूसरे स्थारन तक ले जा कर विश्व  में सर्वश्रेष्ठ् रेल बन गई है। यह वर्ष 2012-13 में लगभग 1010 मिलियन टन सामान की ढुलाई कर के अमरीका, चीन, रूस के बाद चुनिन्दा बिलियन टन क्लब की चौथी सदस्य भी बन गई है। भारतीय रेल विश्व् में तीसरी सबसे बड़ी रेल प्रणाली है। इसके पास परिसंपत्ति आधार 65,187 रूट किलोमीटर, 9,000 लोकोमोटिव, 53,000 या‍त्री डिब्बे  और 2.3 लाख वैगन हैं। भारतीय रेल की आज प्रतिदिन 19,000 से अधिक रेल चलती हैं, जिनमें 12,000 यात्री ट्रेन और 7,000 मालगाडि़यां हैं, जो 1.4 मिलियन कर्मचारियों के समर्पित कार्यबल के प्रयासों से 8 बिलियन से अधिक यात्रियों और 1,000 मिलियन टन से अधिक माल की प्रति वर्ष ढुलाई करती हैं।
वर्ष 1950 के बाद से भारतीय रेल के नेटवर्क आकार (रूट किलोमीटर) में लगभग 20 प्रतिशत की वृद्धि हुई है, जबकि इसकी कुल ट्रैक किलोमीटर दूरी लगभग 50 प्रतिशत वृद्धि से 70,000 किलोमीटर बढ़कर 1,15,000 किलोमीटर हो गई है। ऐसा क्षमता विस्तार के लिए भारतीय रेल की यूनीगेज नीति के अधीन गेज रूपान्तरण और वर्तमान लाइनों का दोहरीकरण पर जोर दिये जाने के कारण हुआ। भारतीय रेल की 12वीं योजना में अधिक अभिवृद्धि अर्जित करने के लिए क्षमता विस्तार हेतु 4,000 किलोमीटर नयी लाइन जोड़ने, 5,500 किलोमीटर गेज रूपान्तरण, 7,653 किलोमीटर दोहरीकरण और 6,500 किलोमीटर विद्युतीकरण करने की योजना है।
इसके अलावा भारतीय रेल पूर्वी और पश्चिमी डेडिकेटेड फ्राइट कॉरिडोर (डीएफसी) के द्वारा क्षमता निर्माण के क्षेत्र में ऊंची छलांग लगाने जा रही है, जिससे 32.5 एक्सल लोड फ्राइट नेटवर्क की 3338 किलोमीटर लाइन और शामिल हो जाएगी। दोनों कॉरिडोर के निर्माण कार्य के लिए निविदाएं निकाली गई हैं और ठेके देने का कार्य प्रक्रिया के अधीन है। कॉरिडोर के निर्माण के लिए लगभग 76 प्रतिशत भूमि अधिग्रहण कार्य पूरा हो चुका है और यह उम्मीद है कि इन दो महत्व पूर्ण मार्गों पर डेडिकेटेड फ्राइट कॉरिडोर कार्य 2017 तक पूरा हो जाएगा। भारतीय रेल चार अन्य  डेडिकेटेड फ्राइट कॉरिडोर की भी योजना बना रही है, जिसके लिए प्रारंभिक यातायात सर्वेक्षण कार्य किये जा रहे हैं।
यातायात परिचालन के लिए की गई पहल में भारी संख्याह में यात्रियों की मांग को पूरा करने के लिए 24 कोच गाडि़यां प्रसार, रख-रखाव कार्यक्रमों और कोच परिचालनों के युक्तिकरण के माध्यम से या‍त्री गाडि़यों के चक्करों में सुधार, सुरक्षा और यात्रियों के लिए आराम में बढ़ोतरी के लिए एंटि लाइन विशिष्ट्ता वाले क्रैशवर्थी एलएचबी  डिब्बोंच की क्रमवार शुरूआत। अंतरशहरी यात्रा के लिए देश में ही डिजाइन की गई वातानुकूलित डबलडेकर कोच ट्रेन की शुरूआत और अतिरिक्तल कोचिंग टर्मिनलों का निर्माण और विकास शामिल है।

यात्रियों के अनुकूल की गई पहल में निम्निलिखित शामिल हैं -

  • यात्री डिब्बों की गहन यांत्रिक सफाई के लिए 115 कोच रख-रखाव डिपो की पहचान, 91 डिपो में यह पहले ही लागू की जा चुकी है।
  • राजधानी, शताब्दी और दुरन्तो सहित 538 रेलगाडि़यों में ऑन बोर्ड हाउस कीपिंग सेवाओं (ओबीएचएस) की शुरूआत यह योजना 336 रेलगाडि़यों में लागू की जा चुकी है।
  • चुनिन्दा पहचान की गई रेलगाडि़यों के लिए शौचालयों, डूरवेज़, गलियारों के विसंक्रमण के लिए यांत्रिक सफाई पर ध्यान देने के लिए क्लीदन ट्रेन स्टे़शनों को नामांकित करना।
  • यात्रियों के लिए साफ और स्वच्छ‍ बेडरोल्सं की आपूर्ति सु‍निश्चित करने के लिए 55 स्थानों (19 पहले से ही कार्यरत) पर यंत्रीकृत लॉन्ड्रियों की स्थापना।
  • 9 रैक की 504 यूनिटों में पायलट परियोजना के रूप में जैव शौचालयों को शुरू करना।

अन्य या‍त्री सुविधा के उपायों में निम्नेलिखित शामिल हैं -

  • आरनक्षित सीट के लिए ई-टिकट प्रणाली की प्रगामी व्यवस्था, जिसके लिए ''नेक्ट्या  जनरेशन ई-टिक्टिंग सिस्टम'' लागू किया जा रहा है, जिसकी क्षमता 7,200 टिकट प्रति मिनट और एक ही समय 1.2 लाख उपयोगकर्ताओं की सहायता करने की है, जबकि वर्तमान में यह क्षमता क्रमश: 2,000 टिकट प्रति मिनट और एक ही समय 40,000 उपयोगकर्ताओं की सहायता करने की है।
  • रियल टाइम सूचना प्रणाली (आरटीआईएस) के अधीन अधिक से अधिक ट्रेनों को शामिल किया जाना, जिससे पूछताछ/ मोबाइल फोन के माध्य म से या‍त्री गाडि़यों की गतिविधि की ठीक-ठीक स्थि‍ति की जानकारी दी जा सकेगी।
  • अनेक रेलगाडि़यों में नि:शुल्कन वाई-फाई सुविधाओं का प्रावधान।
  • ए वन श्रेणी के और अन्यि प्रमुख स्टेरशनों पर 179 स्केलेटर और 400 लिफ्ट लगाए जाने का प्रावधान है।
  • तत्काशल योजनाओं सहित टिकट रिजर्व कराने में गडबड़ी को रोकने के लिए क्रियात्मक कदम, जिसमें बुकिंग समय को तर्कसंगत बनाने और सभी आरक्षित श्रेणियों के लिए पहचान का सबूत दिखाना के प्रावधान शामिल है।

क्षमता विस्तार तथा आधुनिकीकरण संबंधी पहल सुरक्षा की चिंता के साथ होनी चाहिए। इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए भारतीय रेल ने 2003-13 के लिए कारपोरेट सुरक्षा योजना तैयार की थी। इसके तहत भारतीय रेल ने बड़े पैमाने पर ट्रैक नवीकरण, पुलों को फिर से बनाने, ट्रैक की देखभाल के मशीनीकरण, वैगन/कोच में उन्नपत टेक्नोनलॉजी लगाने तथा सिग्नल प्रणाली को उन्नलत बनाने की योजना थी। 9166 किलोमीटर से ऊपर ट्रैक नवीकरण हुआ तथा 6218 पुलों को ठीक किया गया। कुल ट्रैक के 55 प्रतिशत हिस्सेर को मैकेनीक मेन्टथनन्सर व्यवस्था  के अंतर्गत लाया गया, जबकि 2003-4 में यह काम 35 प्रतिशत हुआ था। सिग्न ल प्रणाली को तेजी के साथ उन्नीत बनाने से सुरक्षा  व्यजवस्था  में योगदान हुआ है। इन पहलों से पिछले वर्षों में दुर्घटना की संख्या में कमी आई है।
हालांकि भारतीय रेल का प्रस्तानव शून्या दुर्घटना व्य्वस्था की ओर बढ़ना है। यह संतोष की बात है कि माल ढुलाई दर और यात्री भाड़ा शुल्क  में बढ़ोतरी हुई है। अंतर्राष्ट्री्य मानकों के अनुसार पर मिलियन ट्रेन किलोमीटर की दर से रेल दुर्घटना 2003-4 के 0.44 से घटकर 2012-13 के अंत में 0.13 हो गई। इस तरह 2003-4 की कारर्पोरेट सुरक्षा योजना में निर्धारित 0.17 के लक्ष्य  की दर पार कर गई।
राज्यों में रेल अवसंरचना बनाने की जिम्मेदारी के मामले में राज्यो सरकारों/केन्द्री य सार्वजनिक प्रतिष्ठा7नों का रूख सकारात्माक रहा है। अभी दस राज्यक 35 नई लाइनें बिछाने, 33 हजार करोड़ रूपए की कुल लागत से 4761 किलोमीटर लाइनों के दोहरीकरण और परिवर्तन में लागत साझा कर रहे हैं। अबग तक 5000 करोड़ रूपए खर्च किए जा चुके हैं। इसी तरह सार्वजनिक प्रतिष्ठान भी आगे आ रहे हैं। एनएमडीसी ने 150 किलोमीटर लम्बीर जगदलपुर-किरनदुल रेल संपर्क परियोजना में निवेश किया है। इसकी लागत 827 करोड़ रूपए आएगी। इस एसईसीएल तथा इरकॉन छत्तीसगढ़ में राज्य सरकार के साथ मिलकर 4000 करोड़ रूपए की दो परियोजनाओं पर काम कर रहे हैं। ओडि़शा तथा झारखंड के खदान क्षेत्रों में रेल संपर्क सुधारने के लिए कोल इंडिया 2000 करोड़ रूपए की परियोजना में धन लगा रहा है।
लगभग डेढ़ दशक से रेल की वित्तीय हालत दबाव में है। 1997-98 से लेकर 2011-12 के बीच 2005-6 से 2007-8 की तीन वर्ष की अवधि को छोड़कर भारतीय रेल का संचालन अनुपात 90 प्रतिशत से ऊपर रहा है। 2009-10 के पहले के तीन सालों में स्थिति गंभीर रही है, क्योंकि लागत का दबाव बढ़ा है, खासकर मानव शक्ति को लेकर तथा छठे वेतन आयोग की सिफारिशों के कारण पेंशन संबंधी वचनबद्धता लागू करने को लेकर। परिणामस्वररूप कामकाजी खर्च बढ़ा है और उस खर्च के अनुपात में आवश्येक कदमों को लेकर राजस्वम की भरपाई नहीं हुई है। इनमें माल भाड़ा तथा यात्री भाड़ा को तर्कसंगत बनाना, ईंधन की बढ़ी कीमत को थामने के लिए ईंधन समायोजन उपाय लागू करने, नया ऋण सेवा कोष बनाने, आवश्यकक जरूरी परियोजनाओं को प्राथमिकता देने, अवसंरचना निर्माण के लिए वैकल्पिक धनपोषण व्यमवस्था करने तथा मजबूत वित्तीेय अनुशासन शामिल हैं। इन उपायों से 31.03.2014 तक 12 हजार करोड़ रूपए तक बचत होने का अनुमान है तथा इससे 12वीं पंचवर्षीय योजना के अंत तक 30 हजार करोड़ रूपए के लक्ष्या को हासिल करने का मार्ग प्रशस्ती होगा।
भारतीय रेल के पिछले 160 वर्षों के इतिहास में इसका प्रदर्शन सफलतापूर्वक रहा है और आगे भी जारी रहेगा।
(पसूका फीचर)


जापानी उद्योगों का केंद्र बनता नीमराना

दिल्ली-जयपुर राष्ट्रीय राजमार्ग-आठ पर पर्यटकों को बरबस ही अपनी ओर आकर्षित करने वाले नीमराना फोर्ट और आभानेरी जैसी कलात्मक बावड़ी के लिए देश-दुनिया में प्रसिद्ध ऐतिहासिक नीमरानाकस्बे में इन दिनों जापानी उद्यमियों की चहल पहल देखते ही बनती है। जापान के उद्यमियों द्वारा यहां लगाए जा रहे उद्योगों के कारण यह क्षेत्र कमोवेश जापानी उद्योगों का केंद्र बनता जा रहा है। राजस्थान का प्रवेश द्वार माना जाने वाला अलवर जिला मुख्यालय भी निकट भविष्य में दिल्ली से बुलेट ट्रेन समान 160 कि.मी. की रफ्तार वाली हाईस्पीड ट्रेन सुविधा से जुड़ने जा रहा है।

नीमराना राष्ट्रीय राजमार्ग-आठ पर दिल्ली-जयपुर के बीचोंबीच बसा हुआ है। यह दिल्ली से मात्रा 122 किलोमीटर दूर है और दिल्ली के इंदिरा गांधी अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे से इसकी दूरी मात्रा सौ कि.मी. ही है। राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एन.सी.आर.) के साथ ही दिल्ली-मुम्बई औद्योगिक गलियारे (डी.एम.आई.सी.) और दिल्ली-मुम्बई फ्रंट रेल गलियारा का हिस्सा होने के कारण नीमराणा का भविष्य बहुत ही उज्जवल है। चूंकि यह क्षेत्र निकट भविष्य में देश का सबसे बड़ा ऑटो केंद्रबनने के साथ ही देश के सबसे बड़े ऑटोमोबाईल्स बाजार दिल्ली का निकटतम केन्द्र स्थल भी होगा।

राजस्थान सरकार द्वारा राजस्थान औद्योगिक विनियोजन निगम (रीको) के माध्यम से राज्य के सिंह द्वार माने जाने वाले अलवर जिले के नीमराना में पिछले कुछ वर्षो से विभिन्न चरणों में औद्योगिक क्षेत्रों को विकसित किया गया है। जिसमें सामान्य औद्योगिक क्षेत्र के साथ ही निर्यात संवर्द्धन औद्योगिक पार्क (ई.पी.आई.पी.) और मजराकाढ़ में जेट्रो (जापान एक्सट्रनल ट्रेड ऑगनाइजेशन) और राजस्थान सरकार की पहल से स्थापित जापानी जोनविशेष उल्लेखनीय है। इन औद्योगिक क्षेत्रों में देश-विदेश की कई जानी मानी कंपनियों ने अपनी औद्योगिक इकाईयां लगाई हैं और कई नए उद्योगों का आगमन हो रहा है जिससे एक ओर जहां राजस्थान की औद्योगिक प्रगति में नए आयाम जुड़ रहे हैं, वहीं प्रदेश में रोजगार के नए मार्ग भी खुल रहे हैं।

करीब बारह सौ एकड़ में फैले इस जापानी-जोन के लगभग 70 प्रतिशत क्षेत्र में जापानी उद्यमियों द्वारा अपनी औद्योगिक इकाईयां लगाई जा चुकी हैं। शेष 30 प्रतिशत हिस्से के भी शीघ्र भर जाने की आशा है। जापानी उद्यमियों द्वारा यहां 28 औद्योगिक इकाईयां स्थापित की जा चुकी हैं जिनमें एयरकंडीशनर के क्षेत्र में, दुनियां की नम्बर वन कंपनी मानी जानी वाली डेकन एयर कंडीशन की यूनिट विशेष उल्लेखनीय है जिसने भारत में अपनी पहली यूनिट नीमराना में लगाई है और इस पर करीब 600 करोड़ रूपये का निवेश किया जा रहा है।

इसी प्रकार निसान इंडिया प्राइवेट लिमिटेडने यहां 240 करोड़ रूपये का निवेश कर अपनी इकाई लगाई है। इनके अलावा 400 करोड़ रूपये के निवेश से मित्सुई केमिकल प्राईवेट लिमिटेड, 160 करोड़ रूपये की लागत से यूनीयार्च हाईजेनिक प्राईवेट लिमिटेड, 120 करोड़ रूपये के निवेश से ए.सी.आई. मित्सुई प्राईम एडवांस कंपोजिट प्राईवेट लिमिटेड, 155 करोड़ के निवेश से ऑटोपार्टस की कंपनी मिकुनी इंडिया प्राईवेट लिमिटेड एवं 100 करोड़ रूपये के निवेश से लगाई गई एन.वाय.के. लॉजिस्टिक इंडिया लिमिटेड के साथ ही डिस्किंग, मित्सुबिशी, डिकीकलर, टीकुकी, हॉवेल्स आदि उद्योगों के नाम प्रमुखता से गिनाए जा सकते हैं, जो नीमराना को जापानी उद्योगों का केंद्र बना रहे हैं। इस केंद्र के विकसित होने से नीमराना में 21.5 अरब के निवेश की साथ ही 3 हजार से अधिक लोगों को रोजगार उपलब्ध हो सकेगा। साथ ही यहां आवास एवं अन्य योजनाओं का तेजी से विकास होगा।

नीमराना में दुनिया की सबसे बड़ी स्टील कंपनी मानी जाने वाली नियोन स्टीलकी एक यूनिट का कार्य भी निर्माणाधीन है जिस पर 300 करोड़ रूपये से भी अधिक का निवेश होने का अनुमान है। इस स्टील कंपनी की दुनिया भर में 150 यूनिट्स हैं। निकट भविष्य में और भी बड़ी कंपनियां जिसमें हीरोहोंडा जैसी कंपनियां भी शामिल है, यहां अपनी यूनिट्स लगाने जा रही है।

नीमराना में रीको के वरिष्ठ क्षेत्रीय प्रबंधक श्री आर.सी.जैन बताते हैं कि नीमराना  फेज-1 और फेज-2 के बाद अब ‘‘गिलोट’’ में फेज-3 में भी कई बड़े उद्योग आ रहे है। वे बताते हैं कि दिल्ली-हरियाणा और राजस्थान का संगम स्थल और प्रदेश का प्रमुख औद्योगिक क्षेत्र भिवाड़ीको दिल्ली-मुम्बई फ्रेंट कोरीडोर के अंतर्गत रेल से जोड़ा जा रहा है। यह रेल मार्ग दिल्ली से रेवाड़ी, भिवाड़ी, जयपुर होते हुए मुम्बई तक जाएगा। इसका सबसे अधिक लाभ नीमराना को मिलेगा।

राष्ट्रीय राजमार्ग-8 के अंतर्गत दिल्ली जयपुर मार्ग को छह लेन में बदला जा रहा है और यहां इस मार्ग पर कई फ्लाई ऑवर बन रहे है जिससे नीमराना की दिल्ली और जयपुर से दूरी और कम हो जायेगी। छह लेन के इस मार्ग के समानांतर एक सुपर एक्सप्रेस हाईवे के निर्माण की भी योजना है, जो नीमराना से होकर ही गुजरेगा।

जापानी उद्यमियों की तरह ही नीमराना में अन्य देश के उद्यमी भी बड़े पैमाने पर निवेश करने को आतुर दिखाई दे रहे है। हाल ही ये 15 अफ्रीकी देशों के 25 सदस्य दल ने नीमराना का दौरा किया है। इसी प्रकार ताईवान की 3700 कम्पनियों के संगठन ‘‘टीमा’’ के प्रतिनिधि भी नीमराना में ‘‘ताईवानी जोन’’ की स्थापना की संभावनाओं को तलाशने का उपक्रम कर चुके हैं।

कार्गो हवाई अड्डे की योजना

वर्तमान में निकटतम कार्गो पोर्ट दिल्ली और ड्राई-पोर्ट रेवाड़ी (हरियाणा) में होने से उद्यमियों को हो रही असुविधा को दूर करने के लिए नीमराना के निकट एक कार्गो एयरपोर्ट बनाने की योजना पर भी विचार किया जा रहा है। यह हवाई अड्डा अजरका और कोटकासिम के मध्य बनाना प्रस्तावित है। इससे नीमराना- शाहजहांपुर-भिवाड़ी और बहरोड़ में स्थापित उद्योगों के उत्पादों को कार्गो परिवहन की सुविधा मिलेगी और उन्हें बहुत ही कम समय में देश-विदेश के गंतव्य स्थानों एवं बाजारों तक पहुंचाया जा सकेगा। इस कार्गो हवाई अड्डे को नीमराना से जोड़ने के लिए नीमराना-टपूकड़ा के मध्य छह लेन का एक समर्पित रोड बनाया जाना भी प्रस्तावित है जिसकी लंबाई मात्रा 50 कि.मी. होगी।

राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के अंतर्गत बनने वाले तीन उप महानगरों में भी नीमराना-शाहजहांपुर और बहरोड़ को शामिल किया जाना प्रस्तावित है। डी.एम.आर.सी. के निवेश क्षेत्र के अंतर्गत नीमराना और खुशखेड़ा को पहले चरण में शामिल कर यहां नोएडा-गुड़गांव-फरीदाबाद जैसी औद्योगिक टाऊनशीप विकसित करने की योजना है जिससें भविष्य में पूरे क्षेत्र का संर्वागीण विकास होगा।

नीमराना को आने वाले कल का भविष्य मानने वाले राजस्थान के उद्य़ोग मंत्री श्री राजेन्द्र पारीक बताते हैं कि जापानी उद्यमियों के अदम्य साहस की जितनी प्रशंसा की जाए कम होगी चूंकि जापान में पिछले वर्षो में आए जर्बदस्त झंझावतों के बावजूद वे नीमराना में निवेश के प्रति जबर्दस्त रूझान बनाए हुए हैं। वे बताते है कि प्रदेश में उद्योग लगाने वाले उद्यमी प्रदेश में आधारभूत सुविधाओं और विदेशी निवेशकों के प्रति राज्य सरकार के उदार दृष्टिकोण से प्रभावित होकर प्रदेश में निवेश कर रहे हैं। इसी के फलस्वरूप हीरोहोंडा, अशोक लिलेंड, मारूति, आईसर, सेन-गॉबिनजैसी कंपनियां प्रदेश में अपने उद्योगों की स्थापना कर रही है।

रीको के अध्यक्ष एवं राज्य के प्रमुख उद्योग सचिव श्री सुनील अरोड़ा भिवाड़ी से शाहजहांपुर नीमराना और बहरोड़ तक के क्षेत्र को देश के एक बड़े औद्योगिक केंद्र के रूप में विकसित होने की उम्मीद रखते हैं। साथ ही इस क्षेत्र में प्रस्तावित दिल्ली-मुम्बई फ्रेट कोरीडोर, बड़े आवासीय परिसरों के निर्माण, राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली के उपमहानगरों के बसावट आदि योजनाओं और यहां बड़े उद्योगों के सहायक कुटीर उद्योगों के पनपने और शैक्षणिक संस्थाओं होटल्स, वाणिज्यिक संस्थाओं आदि के आगमन के साथ ही अलवर, सरिस्का वन अभ्यारण्य, नीमराणा दुर्ग सहित मौजूदा पर्यटन केन्द्रों के पर्यटन की दृष्टि से और अधिक विकास की संभावनाओं को प्रदेश के चहुंमुखी विकास में मील का एक और पत्थर लगने के समान मानते हैं।

इसी प्रकार नीमराना और तीजारा फोर्ट, तीजारा का जैन मंदिर तथा सरिस्का टाईगर डेन और अलवर के सुरम्य पर्यटन स्थलों से नजदीक होने से नीमराना में औद्योगिक विकास के साथ-साथ पर्यटन विकास की संभावनाओं को भी बल मिलने की उम्मीद है।



महिला सशक्तिकरण, बच्‍चों का पोषण

महिला एवं बाल विकास मंत्रालय महिलाओं एवं बच्‍चों से संबंधित सभी मामलों का नोडल मंत्रालय है। मंत्रालय सामाजिक क्षेत्र के मामलों से जुडे अपने दृष्टिकोण में महत्‍वपूर्ण बदलाव की दिशा में बढ रहा है जिसमें पहले कल्‍याण पर ध्‍यान  केंद्रित किया जाता था, लेकिन अब विशेषकर हाशिए पर रहने वालों के संपूर्ण सशक्तिकरण पर ध्‍यान दिया जा रहा है1 मंत्रालय की ओर से महिलाओं, किशोरियों और समाज के सभी वर्गों के बच्‍चों के सशक्तिकरण पर ध्‍यान दिया जाता रहेगा। मंत्रालय ने पिछले चार वर्षों में कई महत्‍वपूर्ण उपलब्धियां प्राप्‍त की हैं।

महत्‍वपूर्ण कानून

मंत्रालय ने कार्यस्‍थल पर महिलाओं के साथ यौन प्रताडना (रोकथाम, प्रतिषेध एवं निवारण) अधिनियम 2013 को मूर्त रूप प्रदान किया है। यह ऐतिहासिक कानून है क्‍योंकि देश में इससे पहले कार्यस्‍थल पर होने वाले यौन उत्‍पीडन से निपटने के लिए कोई ऐसा कानून नहीं था। इस कानून के दायरे में सभी महिलाएं आती हैं चाहे वह किसी भी उम्र की हों और किसी भी निजी या सार्वजनिक कार्यस्‍थल में कार्यरत हों तथा घरेलू सहायक और असंगठित एवं अनौपचारिक सहित किसी भी कार्य में संलग्‍न हों। इस कानून के दायरे में ग्राहक एवं उपभोक्‍ता भी आते हैं। नये कानून के दायरे में सार्वजनिक और निजी क्षेत्र, संगठित और असंगठित क्षेत्र के विभाग, कार्यालय, शाखा, ईकाई, तथा अस्‍पतालों, नर्सिंग होम्‍स, शैक्षिक संस्‍थाओं, खेल संस्‍थानों, स्‍टेडियम्‍स, खेल परिसरों, सहित ऐसे सभी स्‍थलों को शामिल किया गया है, जहां अपने काम के सिलसिले में कर्मचा‍री को जाना पड़ता है। इसमें परिवहन के साधन भी शामिल हैं। इस कानून को लागू करने के लिए नियमों का निर्धारण किया जा रहा है।

बच्‍चों से दुर्व्‍यवहार की बढती घटनाओं के मद्देनजर मंत्रालय ने एक विशेष  कानून- यौन उत्‍पीडन से बच्‍चों का संरक्षण अधिनियम, 2012 बनाया है। यह कानून 14 नवम्‍बर 2012 से लागू हो गया। यह कानून कडे दंड के माध्‍यम से बच्‍चों को यौन शोषण, यौन उत्‍पीडन और पोर्नोग्राफी सहित कई तरह के अपराधों से संरक्षण मुहैया कराता है। यह कानून विशेष न्‍यायालयों को ऐसे मामलों की त्‍वरित सुनवाई, न्‍यायालयों में बच्‍चों के अनुरूप प्रक्रियाएं और ऐसे मामलों की पुलिस या उचित प्राधिकरण को सूचना न देने तथा उकसाने और झूठी शिकायत झूठी सूचना देने वालों के लिए दंड का अधिदेश देता है।

इसके अलावा, मंत्रालय ने कुष्‍ठ रोग, तपेदिक, हेपेटाइटस-बी आदि जैसी बीमारियों से पीडित बच्‍चों के साथ होने वाले भेदभाव को मिटाने के लिए वर्ष 2011 में किशोर न्‍याय (देखभाल एवं बाल संरक्षण) अधिनियम 2000 का संशोधन किया। इस बारे में 08 सितम्‍बर 2011 को अधिसूचना जारी की गई। महिलाओं का अशोभनीय चित्रण (प्रतिषेध) संशोधन विधेयक 2012 राज्‍य सभा में पेश किया गया है। राज्‍य सभा ने इस विधेयक को विचार के लिए विभाग से संबंधित संसदीय स्‍थाई समिति के पास भेज दिया है। इसके अलावा दहेज प्रतिषेध अधिनियम, 1961 के लिए कैबिनेट का नोट टिप्‍पणियों के लिए संबंधित मंत्रालयों को भेजा गया है।

महिलाओं के लिए योजनाएं

मंत्रालय ने नवम्‍बर 2010 में राजीव गांधी किशोरी सशक्तिकरण योजना (आरजीएसईएजी)-सबलायोजना शुरू की। योजना का उद्देश्‍य 11 से 18 वर्ष तक की लड़कियों के पोषण तथा स्‍वास्‍थ्‍य में सुधार लाना तथा स्‍वास्‍थ्‍य, शिक्षा, आंगनवाडी केंद्रों में व्‍यवसायिक प्रशिक्षण, परामर्श और मार्गदर्शन उपलब्‍ध कराते हुए शिक्षण और सार्वजनिक सेवाओं तक उनकी पहुंच सुगम बनाकर उन्‍हें आत्‍मनिर्भर बनाना है । सबलाइस समय देशभर के दो सौ पांच जिलों में चलाई जा रही है। वर्ष 2012-13 के दौरान (31-12-2012 तक) इस योजना से  88.76 लाख किशोरियों को फायदा पहुंचा है।

सरकार ने उज्जवलानामक व्‍यापक योजना शुरू की है जो एक ओर तस्‍करी की रोकथाम करती है वहीं दूसरी ओर ऐसी महिलाओं के पुनर्वास और उन्हें समाज से दोबारा जोड़ती है। इस योजना के पांच विशिष्‍ट भाग हैं- इनमें रोकथामपीड़िताओं को शोषण के अड्डों से मुक्त कराना, उनका पुनर्वास, समाज की मुख्‍यधारा से दोबारा जोडना तथा तस्‍करी की शिकार महिलाओं को उनके घर वापस भेजना शामिल हैं। यह योजना मुख्‍य रूप से गैर सरकारी संगठनों की ओर से लागू की जा रही है। वर्ष 2012-13 में इसके लिए 73 परियोजनाओं को मंजूरी दी गई और 7.39 करोड रूपये जारी किए गए।

नियमबद्ध नकदी हस्‍तांतरण योजना 'इंदिरा गांधी मातृत्व सहयोग योजना' के तहत वर्ष 2012-13 के दौरान 4.69 लाख गर्भवती महिलाओं तथा बच्चों को दूध पिलाने वाली माताओं को लाभ पहुंचाया गया। यह योजना प्रायोगिक आधार पर 53 चुनिंदा जिलों में आईसीडीएस मंच का इस्‍तेमाल करते हुए लागू की गई थी।  इस योजना के तहत गर्भावस्‍था तथा बच्‍चों को दूध पिलाने की अवस्‍था के दौरान गर्भवती महिलाओं तथा बच्चों को दूध पिलाने वाली माताओं को कुछ विशिष्‍ट शर्ते पूरी करने पर नकदी सहायता मुहैया कराने की परिकल्‍पना की गई है। यह योजना दीर्घकालिक व्‍यवहार एवं सोच में बदलाव लाने के उद्देश्‍य के साथ लघु अवधि आमदनी सहायता उपलब्‍ध कराती है। इस योजना को सरकार की प्रत्‍यक्ष लाभ अंतरण योजना में शामिल किया गया है।

स्‍वाधार योजना के तहत, मुश्किल हालात में फंसी असहाय  महिलाओं को गृह आधारित संपूर्ण एवं एकीकृत दृष्टिकोण के माध्‍यम से सहायता पहुंचाई जाती है। इस योजना के तहत मुश्किल परिस्थितियों में फंसी महिलाओं का पुनर्वास करने के लिए उन्‍हें आसरा, भोजनकपड़े, परामर्श, प्रशिक्षण, चिकित्‍सीय एवं कानूनी सहायता दी जाती है। वर्ष 2009-13 में इस योजना के लिए 2363.15 लाख रूपये जारी किए गए हैं। मंत्रालय ने महिलाओं को प्रशिक्षित करने और उनके कौशल में सुधार लाने के लिए तथा चिह्नित क्षेत्रों में परियोजना के आधार पर रोजगार मुहैया कराने के लिए उन्‍हें प्रशिक्षण एवं रोजगार कार्यक्रम सहायता (एसटीईपी) योजना शुरू की है। वर्ष 2009-13 के दौरान इस योजना से 30,481 महिलाएं लाभान्वित हुई।

मंत्रालय ने चालू वित्‍त वर्ष के दौरान ‘’वन स्‍टॉप क्राइसिस सेंटर फॉर वुमन’’ (ओएससीसी) नामक नई योजना शुरू करने का प्रस्‍ताव पेश किया है। यह योजना संकट से घिरी महिलाओं को फौरन राहत पहुंचाने के लिए सकारात्‍मक कदम उठाने की जरूरत पूरी करेगी। इस योजना को प्रायोगिक आधार पर शुरूआत में 100 जिलों में लागू करने का प्रस्‍ताव रखा गया है। इसके अलावा महिलाओं से जुड़े कार्यक्रमों और योजनाओं के समन्‍वयन  के लिए प्रायोगिक परियोजनाएं पाली (राजस्‍थान) और कामरूप (असम) में शुरू की गई हैं। महिला संसाधन केंद्र या पूर्ण शक्ति केंद्र (पीएसके) महिलाओं को सेवाएं प्रदान करने वाला वन स्‍टॉप सेंटर है। ऐसे केंद्र 150 ग्राम पंचायतों में खोले गये हैं।  प्रत्‍येक पीएसके में मिशन की ओर से दो महिला ग्राम समन्‍वयक नियुक्‍त किए गए हैं। ये महिला ग्राम समन्‍वयक ग्राम पंचायत में महिलाओं को प्रेरित करते हैं और विभिन्‍न प्रकार के प्रशिक्षण देने के लिए उत्‍तरदायी होते हैं।

बच्‍चों के लिए योजनाएं

भारत सरकार के प्रमुख कार्यक्रमों में से एक समेकित बाल विकास सेवा (आईसीडीएस) योजना को सशक्‍त बनाया गया है तथा इसका पुनर्गठन किया गया है। यह योजना बच्‍चों की शुरूआती देखभाल और विकास से जुडे दुनिया के सबसे बड़े और अनोखे कार्यक्रम का प्रतिनिधित्‍व करती है। सरकार ने 12वीं पंचवर्षीय योजना के दौरान 1,23,580 करोड़ रूपयों के बजट का आवंटन किया।  पुनर्गठित और सशक्‍त आईसीडीएस तीन चरणों में लागू की जायेगी। इसके पहले साल में (वर्ष 2012-13) में अत्‍यधिक बोझ वाले 200 जिलों को शामिल किया जायेगा। इनमें उत्‍तर प्रदेश के 41 जिले शामिल होंगे। दूसरे साल (वर्ष 2013-14)  में 200 अतिरिक्‍त जिले जोड़े जायेंगे जिनमें विशेष श्रेणी वाले राज्‍यों और पूर्वोत्‍तर क्षेत्र के जिले शामिल होंगे। तीसरे साल (वर्ष 2014-15) के दौरान बचे हुए जिलों को जोडा जायेगा।

पुनर्गठित आईसीडीएस योजना के अधीन आंगनवाडी अब स्‍वास्‍थ्‍य, पोषण और महिलाओं एवं बच्‍चों के शुरूआती शिक्षण के लिए प्रथम ग्राम आउटपोस्‍ट होगी, 2 लाख आंगनवाडियों को पक्‍की इमारतें मिलेंगी। इन्‍हें बनवाने के लिए इनमें से प्रत्‍येक आंगनवाडी को साढे चार लाख रूपये दिए जायेंगे और 70 हजार आंगनवाडियों या पांच प्रतिशत मौजूदा आंगनवाडियो में ग्रामीण और शहरी क्षेत्र दोनों जगह कामकाजी माताओं के लाभ के लिए क्रेच की सुविधा उपलब्‍ध कराई जायेगी। पूरक आहार के लिए भी अब बच्‍चों के लिए (6-72 महीने) चार रूपये की जगह छह रूपये दिए जायेंगे, बेहद कम वज़न वाले बच्‍चों को 6 रूपये की जगह 9 रूपये तथा गर्भवती और दूध पिलाने वाली माताओं को 5 रूपये की जगह 7 रूपये दिए जायेंगे।

समेकित बाल संरक्षण योजना (आईसीपीएस) के तहत मंत्रालय मुश्किल परिस्थितियो से घिरे तथा अन्‍य असहाय बच्‍चों को सरकार-सामाजिक संगठनों की भागीदारी के माध्‍यम से सुरक्षित वातावरण उपलब्‍ध कराता है।  इस योजना के तहत बच्‍चों की सुरक्षा के लिए पहले से मौजूद मंत्रालय की योजनाओं को एक व्‍यापक योजना के दायरे में लाया गया है और इसमें बच्‍चों की हिफाजत करने और उन्‍हें नुकसान पहुंचने से बचाने के लिए कई अन्‍य कदम उठाये गए हैं। बाल कल्‍याण समिति (सीडब्‍ल्‍यूसी) और किशारे न्‍याय बोर्ड (जेजेबी) जैसी वैधानिक संस्‍थायें क्रमश: 619 और 608 जिलों में काम कर रही हैं और विविध प्रकार के 1195 गृह वित्‍तीय सहायता उपलब्‍ध करा रहे हैं। आपात स्थिति में बच्‍चों की देखभाल और संरक्षण के लिए चाइल्‍ड लाइनसेवा चलाई जा रही है। यह सेवा चौबीस घंटे की फोन हेल्‍पलाइन (1098) के माध्‍यम से चलाई जा रही है। इसका दायरा बढाते हुए इसमें देश के 274 शहरों/जिलों  को शामिल किया गया है। आईसीपीएस के कार्यान्‍वयन से पहले इसके दायरे में 83 शहर आते थे।

इस कार्यक्रमों और योजनाओं के अलावा महिला एवं बाल विकास मंत्रालय देश के बहुत से हिस्‍सों में घटते बाल लिंगानुपात से निपटने के लिए एक राष्‍ट्रीय कार्य योजना का निरूपण कर रहा है। इसके लिए विभिन्‍न हितधारकों के ज्ञान और विचार शामिल करने के साथ-साथ व्‍यापक विचार-विमर्श किया गया है। बेहतर सुविधाएं प्रदान करने के लिए राजीव गांधी राष्‍ट्रीय क्रेच योजना का भी पुनर्गठन किया जा रहा है।


(पीआईबी फीचर)

गुरुवार, 15 अगस्त 2013

राजीव गांधी पंचायत सशक्तिकरण अभियान

ग्रामीण शासन और सामाजिक आर्थिक विकास में पंचायतों की भूमिका के महत्व को 1950 के दशक से ही स्वीकार किया जाने लगा था। वर्तमान संदर्भ में समाज कल्याण और समावेशन कार्यक्रमों पर खर्च में वृद्धि को देखते हुए पंचायतों को सुदृढ़ करने की आवश्यकता अधिक महसूस की जा रही है, क्योंकि कार्यक्रमों का लाभ लोगों तक पहुंचना सुनिश्चित करने, स्थानीय संस्थानों के प्रबंधन में सुधार लाने और जवाबदेही बढ़ाने में पंचायतों की अहम भूमिका है। पंचायतों को समुचित तकनीकी और प्रशासनिक सहायता मुहैया कराने, उनके बुनियादी ढांचे को मजबूत करने और उन्हें इलेक्ट्रॉनिक दृष्टि से सक्षम बनाने की आवश्यकता है। इतना ही नहीं, सत्ता के हस्तांतरण को प्रोत्साहित करने, पंचायतों की कार्यप्रणाली में सुधार लाने अर्थात् पंचायतों की लोकतांत्रिक बैठकें नियमित रूप से आयोजित किए जाने, उनसे संबंधित स्थानीय समितियों की समुचित कार्यप्रणाली, ग्राम सभा के स्वैच्छिक प्रकटीकरण और जवाबदेही, उसके खातों का समुचित रख रखाव आदि उपाय अनिवार्य है। इन्हीं सब बातों को ध्यान में रखते हुए राजीव गांधी पंचायत सशक्तिकरण अभियान (आरजीपीएसए) नाम का केंद्र प्रायोजित कार्यक्रम शुरू किया गया है। यह कार्यक्रम 7 मार्च, 2013 को मंजूर किया गया था।

आरजीपीएसए के लक्ष्यों में निम्नांकित शामिल हैं: पंचायतों और ग्राम सभाओं की क्षमता और प्रभावकारिता में बढ़ोतरी लाना; पंचायतों को लोकतांत्रिक निर्णय प्रक्रिया और जवाबदेही की दृष्टि से सक्षम बनाना और उनमें लोगों की भागीदारी को प्रोत्साहित करना; पंचायतों केे ज्ञान का आधार मजबूत करने और उनकी क्षमता बढ़ाने के लिए संस्थागत ढांचा खड़ा करना; सत्ता के हस्तांतरण और संविधान और पीईएसए कानून की भावना के अनुरूप पंचायतों की जिम्मेदारियों को प्रोत्साहित करना; ग्राम सभाओं को सुदृढ़ करना ताकि वे लोगों की भागीदारी के बुनियादी मंच के रूप मंे कारगर ढंग से काम कर सकें, पंचायत प्रणाली के भीतर पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करना; जिन क्षेत्रों में पंचायतें नहीं हैं वहां लोकतांत्रिक स्थानीय स्व-शासन का निर्माण और उसे सुदृढ़ करना; और उस संविधानसम्मत फ्रेमवर्क को मजबूत बनाना जिस पर पंचायतों की बुनियाद रखी गई है। 

इस कार्यक्रम में यह ध्यान रखा गया है कि राज्यों की जरूरतें और प्राथमिकताएं अलग-अलग हैं इसलिए राज्य विषयक आयोजना की अनुमति दी जानी चाहिए, जिसमें राज्य स्वीकार्य गतिविधियों के समूह में से अपनी आवश्यकताओं के अनुरूप चयन कर सकें। इस कार्यक्रम में 20 प्रतिशत से अधिक निधि अधिकार हस्तांतरण और जवाबदेही के मामले में राज्यों के कार्यनिष्पादन से संबंधित है। इस कार्यक्रम के अंतर्गत धन प्राप्त करने के लिए राज्य संदर्श और वार्षिक योजनाएं तैयार करते हैं। केंद्रीय पंचायत राज मंत्री की अध्यक्षता में एक केंद्रीय संचालन समिति नीति स्तरीय मार्गदर्शन प्रदान करती है जबकि केंद्र सरकार के पंचायती राज सचिव की अध्यक्षता में एक केंद्रीय कार्यकारी समिति कार्यक्रम के कार्यान्वयन पर निगरानी रखती है।

यह योजना सभी राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों पर लागू है। इसमें वे राज्य भी शामिल हैं जो वर्तमान में संविधान के भाग-9 के अंतर्गत कवर नहीं हैं।

राज्यों को आरजीपीएसए से धन प्राप्त करने के लिए कुछ अनिवार्य शर्तें पूरी करनी होती हैं, जिनमें पंचायतों और भाग-9 में न आने वाले क्षेत्रों में स्थानीय निकायों के लिए राज्य निर्वाचन आयोग के नियंत्रण और देख-रेख में नियमित चुनाव कराना; पंचायतों और अन्य स्थानीय निकायों में कम से कम एक तिहाई सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित करना; हर पांच साल में राज्य निर्वाचन आयोग का गठन करना और राज्य विधानमंडल में एसएफसी की सिफारिशों के बारे में कार्य योजना रिपोर्ट पेश करना; और सभी जिलों में जिला आयोजना समितियों का गठन करना, तथा इन समितियों को व्यवहार्य बनाने के लिए दिशा निर्देश/नियम जारी करना शामिल हैं।

उपरोक्त अनिवार्य शर्तें पूरी न करने वाले राज्य आरजीपीएसए के अंतर्गत धन प्राप्त करने के हकदार नहीं हैं।

कार्यक्रम का 20 प्रतिशत धन राज्यों द्वारा भारतीय संविधान में 73वंे संशोधन के प्रावधानों को लागू करने के लिए किए जाने वाले उपायों से सम्बद्ध है। ये उपाय इस प्रकार हैं:- पंचायतों के लिए प्रशासनिक और तकनीकी सहायता प्रदान करने हेतु एक समुचित नीतिगत फ्रेमवर्क तैयार करना; उचित कर/शुल्क आदि सौंपते हुए पंचायतों का वित्तीय आधार मजबूत करना; पंचायतों के लिए मुक्त निधि का प्रावधान और राज्य वित्त आयोग एवं केंद्रीय वित्त आयोग के अनुदान समय पर जारी करना; धन, दायित्वों और पदाधिकारियों का हस्तांतरण सुनिश्चित करना; निचले स्तर पर आयोजना के लिए एक फ्रेमवर्क तैयार करना और उसे संचालित करना तथा जिला आयोजना समितियों के जरिए उसका कन्वर्जेंस यानी अभिसरण करना; स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव सुनिश्चित करना और राज्य निर्वाचन आयोगों को स्वायत्त बनाना; पंचायतों के क्षमता निर्माण के लिए संस्थागत ढांचा खड़ा करना, क्षमता निर्माण के लिए उपयुक्त भागीदारों का चयन और क्षमता निर्माण की पहुंच और गुणवत्ता में सुधार; पंचायतों के कार्य मूल्यांकन की एक प्रणाली स्थापित करना; ग्रामसभाओं को सुदृढ़ करना, महिला सभाओं/वार्ड सभाओं को बढ़ावा देना; उत्तरदायित्व प्रक्रियाओं को संस्थागत रूप देना जैसे सूचना का स्वैच्छिक प्रकटीकरण और इलेक्ट्रॉनिक दृष्टि से सक्षम प्रक्रियाओं को बढ़ावा देने सहित सामाजिक लेखा परीक्षा; बजटिंग, लेखा और लेखा परीक्षा प्रणाली को सुदृ़ढ़ करना।

आरजीपीएसए के अंतर्गत राज्य योजनाओं में निम्नांकित गतिविधियों को शामिल किया जा सकता है:  ग्राम पंचायत स्तर पर प्रशासनिक और तकनीकी सहायता; ग्राम पंचायत भवनों का निर्माण; क्षमता निर्माण और निर्वाचित प्रतिनिधियों एवं पदाधिकारियों का प्रशिक्षण; राज्य, जिला और ब्लॉक स्तर पर प्रशिक्षण के लिए संस्थागत ढांचा खड़ा करना; पंचायतों को इलेक्ट्रॉनिक दृष्टि से सक्षम बनाना, समुचित राजस्व आधार के साथ पंचातयों में प्रक्रियाओं और कार्यविधियों को मजबूत बनाना; पीईएसए और पूर्वोत्तर क्षेत्रों में ग्राम सभाओं के लिए विशेष सहायता; कार्यक्रम प्रबंधन; सूचना, शिक्षा, संचार (आईईसी); राज्य निर्वाचन आयोगों को सुदृढ़ बनाना और राज्यों में नवाचार गतिविधियां। इसके अतिरिक्त आरजीपीएसए पंचायती राज को सुदृढ़ बनाने वाली नई परियोजनाओं के लिए सहायता प्रदान करता है तथा पंचायतों को उनके कार्यनिष्पादन के लिए प्रोत्साहन देता है।

पंचायती राज को सुदृढ़ करते हुए राजीव गांधी पंचायत सशक्तिकरण अभियान के जरिए देश में निचले स्तर पर स्व-शासन को मजबूत बनाने, जवाबदेही बढ़ाने और जन भागीदारी में वृद्धि करने जैसे लक्ष्य हासिल करने में मदद मिलती है।


(पीआईबी फीचर)

बुधवार, 14 अगस्त 2013

स्वदेशी तकनीक से आगे बढ़ती नौसेना

भारतीय नौसेना ने एक बड़ी कामयाबी हासिल करते हुए अपनी पनडुब्बी आईएनएस अरिहंत के परमाणु रिएक्टर को सक्रिय कर दिया है। यह भारत में ही बनाई और डिजाइन की गई देश की पहली परमाणु पनडुब्बी है। ज़मीन और आकाश के बाद अब पानी के भीतर से परमाणु युद्ध करने की भारत की क्षमता को पूरा करने की दिशा में यह एक बड़ा कदम है। असल में पानी के अंदर परमाणु हमला करने की क्षमता किसी भी परमाणु देश के सामरिक हितों के लिए बहुत ज़रूरी है क्योंकि परमाणु हमला होने की स्थिति में पलटवार करने के लिए पानी के भीतर के हथियार सुरक्षित रहते हैं। पानी के भीतर होने के कारण दुश्मन पर किसी भी अनजान जगह से परमाणु हमला किया जा सकता है।

नौसेना और रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन के संयुक्त प्रयासों से आईएनएस अरिहंत का 83 मेगावाट रिएक्टर सैकड़ों परीक्षणों के दौर से गुजरने के बाद सफलतापूर्वक चालू हो गया है। समुद्र में उतारे जाने के बाद आईएनएस अरिहंत के संचालन संबंधी परीक्षण होंगे। ये परीक्षण 18 महीने तक चलेंगे। नौसेना की सेवा में शामिल होने के बाद यह भारत की दूसरी परमाणु पनडुब्बी बन जाएगी। पिछले साल ही रूस निर्मित परमाणु क्षमता युक्त पनडुब्बी आईएएनएस चक्र-2 को नौसेना में शामिल कर लिया गया था। मूल रूप से के-152 नेरपा नाम से निर्मित अकुला-2 श्रेणी की इस पनडुब्बी को रूस से एक अरब डॉलर के सौदे पर 10 साल के लिए लिया गया है। आईएनएस अरिहंत और आईएनएस चक्र की मौजूदगी से हिन्द महासागर में सामरिक स्थिरता के साथ-साथ भारतीय सामरिक और आर्थिक हितों की सुरक्षा सुनिश्चित होगी।

भारतीय रक्षा अनुसंधान संगठन ने अरिहंत पर तैनात करने के लिए मध्यम दूरी का परमाणु प्रक्षेपास्त्र बीओ-5 भी तैयार किया है, जो 700 कि.मी. तक हमला कर सकता है। इसकी 3500 कि.मी. तक मारक क्षमता विकसित करने पर काम चल रहा है। इसका आखिरी परीक्षण 27 जनवरी को विशाखापत्तनम के तट पर किया गया था। दुनिया के गिने-चुने देश ही अभी तक परमाणु पनडुब्बी बना सके हैं। इनमें अमेरिका, चीन, फ्रांस, रूस और ब्रिटेन शामिल हैं। इस तरह भारत दुनिया का छठा देश होगा। भारत पिछले छह दशक के दौरान अपनी अधिकांश सुरक्षा जरूरतों की पूर्ति दूसरे देशों से हथियारों को खरीदकर कर रहा है। वर्तमान में हम अपनी सैन्य जरूरतों का 70 फीसदी हार्डवेयर और सॉफ्टवेयर आयात कर रहे हैं। जहाजों और पनडुब्बियों के वर्तमान और भावी ऑर्डरों को देखते हुए ऐसा लगता है कि इस प्रवृत्ति पर रोक लगाने के लिए मजबूत कदम नहीं उठाये गए तो भविष्य में भी हमारी आयात पर निर्भरता बनी रहेगी।

चीन के पास इस समय 3 परमाणु पनडुब्बियों समेत करीब 50 से 60 पनडुब्बियां हैं जबकि भारत के पास 12 पनडुब्बियां हैं। देश की पहली स्वदेशी परमाणु पनडुब्बी अरिहंत का परिचालन कुछ समय बाद शुरू हो पायेगा। इसी तरह फ्रांस के सहयोग से बन रही 6 परंपरागत स्कॉर्पियन पनडुब्बियां वर्ष 2020 तक ही मिल पाएंगी। देश में नौसैनिक ताकत को मजबूत करने के लिए सरकारी रक्षा ढांचा ठीक करने के साथ-साथ पश्चिमी देशों के साथ समन्वय कर नवीनतम तकनीकों का हस्तांतरण तथा रक्षा उपकरणों को खरीदने में व्याप्त लालफीताशाही को खत्म किया जाना चाहिए। आईएएनएस चक्र के मामले में भी काफी देर हुई क्योंकि भारत ने यह पनडुब्बी किराए पर लेने के लिए वर्ष 2004 में रूस के साथ 90 करोड़ डॉलर का करार किया था। इसे कुछ साल पहले नौसेना में शामिल किए जाने की उम्मीद थी, लेकिन व्यवस्थागत कमियों के कारण इसकी आपूर्ति का समय बदल गया।

निश्चित ही भारतीय नौ सेना के हौसले बुलंद हैं और उसकी गिनती दुनिया की श्रेष्ठ नौसेनाओं में की जा सकती है। फिर भी पिछले सालों के दौरान नौसेना की ताकत बढ़ाने के लिए क्या पर्याप्त संसाधन उपलब्ध कराए गए हैं? रक्षा सौदों में घोटालों और भ्रष्टाचार के मामले आने के बाद सेना के लिए हथियारों तथा अन्य साधनों की खरीद, उत्पादन और उपलब्धता में कमी आई है। सैन्य मामलों की धीमी गति के कारण सेनाओं के पास संसाधनों की कमी बढ़ती जा रही है। रक्षा बजट में हर साल बढ़ोतरी हुई, लेकिन नौसेना को पूरा लाभ नहीं मिल पाया क्योंकि नौसेना के बजट का अधिकांश हिस्सा संसाधनों के इंतजाम पर लग जाता है।

वास्तव में भारत ने समुद्र में दुश्मन को रोकने में बेहद कारगर समझी जाने वाली पनडुब्बियों के विकास और आधुनिकीकरण पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया है। देश की वर्तमान पनडुब्बियां बहुत पुरानी हैं और उन्हें आधुनिक बनाए जाने की सख्त जरूरत है। 1980 के दशक में जर्मनी के साथ शुरू की गई एचडीडब्ल्यू पनडुब्बी निर्माण योजना को भारत सरकार ने रद्द करके बहुत बड़ी गलती की थी, जबकि उस परियोजना पर करीब 15 करोड़ डॉलर खर्च किए जा चुके थे। पनडुब्बी एक ऐसा हथियार है, जो दुश्मन की नौसेना की निगाह में आए बिना ही उनके जंगी जहाजों, विमानवाहक पोतों और ज़मीनी ठिकानों को तबाह कर सकता है। मिसाइल और विमान दोनों ही हमला होने की सूरत में पकड़े जा सकते हैं, लेकिन समुद्र के अंदर रहने वाली पनडुब्बी जवाबी हमला करने में बेहद कारगर होती है। भारत की नौसेना अपनी समुद्री सीमा की रक्षा करने में पूरी तरह सक्षम है लेकिन समुद्री क्षेत्र के बढ़ते हुए महत्व के मद्देनजर इसे और सशक्त बनाए जाने की जरूरत है।

सुरक्षा मामलों में देश को आत्मनिर्भर बनाने में सरकार और एकेडमिक जगत की भी बराबर की साझेदारी होनी चाहिए। स्वदेशीकरण के साथ-साथ हमें तकनीक हस्तांतरण पर भी जोर देना चाहिए। इसके लिए मध्यम और लघु उद्योगों की नौसेना के आधुनिकीकरण व स्वदेशीकरण में अहम भूमिका हो सकती है। पिछले साल करीब 50 हज़ार करोड़ रुपये का खर्च हथियारों के आयात और रखरखाव पर किया गया। इसमें ज्यादातर विदेशी हथियार कंपनियों को गया। अब तक भारत के रक्षा खर्च से विदेशों को ही फायदा होता रहा है लेकिन अब यह फायदा भारतीय उद्योग को मिले इसलिए इस पर स्पष्ट और दूरगामी रणनीति बहुत आवश्यक है।


2008 में मुंबई हमलों से सबक लेते हुए भारतीय नौसेना को देश के तटीय और समुद्री सुरक्षा ढांचे में व्यापक फेरबदल के लिए अत्याधुनिक उपकरणों की जरूरत है। पिछले दिनों इस पर रामराव समिति ने सिफारिश की थी कि डीआरडीओ को केवल 10 से 12 सामरिक महत्व की प्रौद्योगिकी पर ध्यान देना चाहिए और दूसरे छोटे कामों से बचना चाहिए। देश की रक्षा जरूरतों पर विदेशी निर्भरता खत्म करने के लिए हमें खुद की औद्योगिक सैन्य संस्कृति विकसित करनी होगी।

कौशल विकास स्की म 12वीं योजना अवधि में रहेगी जारी

मंत्रिमंडल ने 12वीं योजना अवधि के दौरान कौशल विकास स्‍कीम जारी रखने को अपना अनुमोदन प्रदान कर दिया है। इसमें कुछ परिवर्तन किये गए हैं, जो निम्‍नलिखित है :-

1. इस स्‍कीम के अंतर्गत प्रति प्रशिक्षणार्थी खर्च बढ़ाकर 15 रुपए से 20 रुपए और 25 रुपए प्रति घंटे कर दिया गया है।

2. पूर्वोत्‍तर राज्‍यों, वामपंथ प्रेरित उग्रवाद प्रभावित जि़लों, विशेष वर्ग वाले राज्‍यों और अंडमान एवं निकोबार द्वीपसमूह तथा लक्ष्‍यद्वीप में प्रशिक्षणार्थियों को उक्‍त से 10 प्रतिशत अधिक खर्च प्रदान किया जाएगा।

3. निवास और खाने-पीने के लिए प्रति उम्‍मीदवार 300 रुपए प्रति दिन कर दिया गया है। हर उम्‍मीदवार के ऊपर अनुछेद-2 में बताए गए क्षेत्र में रहने वालों को 5,000 रुपए परिवहन (आने-जाने) के लिए मिलेंगे। यह खर्च उन लोगों को दिया जाएगा, जो प्रशिक्षण के लिए अपने क्षेत्र से बाहर जाते हैं।

4. व्‍यावसायिक प्रशिक्षण देने वालों को 3,000 रुपए की दर से प्रोत्‍साहन राशि दी जाएगी। यह राशि यह सुनिश्चित करने के लिए होगी कि हर बैच के कम से कम 70 प्रतिशत लोगों को न्‍यूनतम 6,000 रुपए प्रति माह के वेतन पर प्‍लेसमेंट मिले।

5. राज्‍यों को कुल के 4 प्रतिशत की बराबर राशि प्रशासनिक व्‍यय के रूप में खर्च करने की अनुमति होगी।


12वीं योजना अवधि में उम्‍मीद की जाती है कि लगभग 25 लाख युवाओं को इस स्‍कीम के अंतर्गत प्रशिक्षण पाना संभव होगा। इससे उद्योगों को प्रशिक्षित जनशक्ति मिल सकेगी।

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