शुक्रवार, 5 जुलाई 2013

राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अध्यादेश के मुख्य बिंदु

राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अध्‍यादेश एक ऐतिहासिक पहल है जिसके जरिए जनता को पोषण खाद्य और पोषण सुरक्षा सुनिश्चित की जा रही है। इसके जरिए लोगों को काफी मात्रा में अनाज वाजिब दरों पर पाने का अधिकार मिलेगा। खाद्य सुरक्षा विधेयक का खास जोर गरीब से गरीब व्‍यक्ति, महिलाओं और बच्‍चों की जरूरतें पूरी करने पर होगा। अगर लोगों को अनाज नहीं मिल पाया तो उन्‍हें खाद्य सुरक्षा भत्‍ता दिया जायेगा। इस विधेयक में शिकायत निवारण तंत्र की भी व्‍यवस्‍था है। अगर कोई जन सेवक या अधिकृत व्‍यक्ति इसका अनुपालन नहीं करेगा तो उसके खिलाफ शिकायत की सुनवाई हो सकेगी। इस विधेयक की अन्‍य खास बातें निम्‍नलिखित हैं-

दो तिहाई आबादी को मिलेगा ऊंची सब्सिडी वाला अनाज

देश की 70 प्रतिशत ग्रामीण आबादी और 50 प्रतिशत शहरी जनसंख्‍या को हर महीने बहुत ऊंची सब्सिडी वाली दरों पर यानी तीन रूपये, दो रूपये, एक रूपये प्रति किलो चावल, गेहूं और मोटा अनाज पाने का अधिकार होगा। इससे हमारी 1.2 अरब आबादी के दो तिहाई भाग को लक्षित सार्वजनिक वितरण व्‍यवस्‍था (टीपीडीएस) के अंतर्गत सब्सिडी वाला अनाज पाने का हक मिलेगा।

अति गरीब को 35 किलो प्रति परिवार मिलता रहेगा अनाज

समाज के अति गरीब वर्ग के हर परिवार को हर महीने अंत्‍योदय अन्‍न योजना के अंतर्गत तीन रूपये, दो रूपये, एक रूपये की दरों पर सब्सिडी वाले अनाज की आपूर्ति जारी रहेगी। यह भी प्रस्‍ताव है कि राज्‍यों/केंद्र शासित प्रदेशों को मौजूदा दर पर अनाज की आपूर्ति होती रहेगी और इसे तभी कम किया जायेगा, जब पिछले तीन वर्षों तक उनकी औसत उठान इससे कम हो।

पात्र परिवारों की पहचान करेंगी राज्‍य सरकारें

अखिल भारतीय स्‍तर की शहरी आबादी के 50 प्रतिशत और ग्रामीण जनसंख्‍या के 75 प्रतिशत को इस योजना के अंतर्गत लाभान्वित करने का फैसला केंद्र सरकार द्वारा किया जायेगा। इस मामले में पात्र परिवारों की पहचान की जिम्‍मेदारी राज्‍यों/केंद्र शासित प्रदशों पर छोड़ दी गई है जो इसके लिए अगर चाहें तो सामाजिक आर्थिक और जाति जनगणना के आँकड़ों के आधार पर मापदंड बना सकते हैं।

महिलाओं और बच्‍चों को विशेष रूप से पोषण संबंधी सहायता

इस विधेयक में महिलाओं और बच्‍चों के पोषण संबंधी समर्थन  पर खासतौर पर जोर दिया जा रहा है। गर्भवती महिलाओं और दूध पिलाने वाली माताएं निर्धारित पोषण संबंधी मापदंडों के अनुरूप पोषक भेाजन पाने की हकदार होंगी। उन्‍हें कम से कम 6 हजार रुपये मातृत्‍व लाभ‍ भी मिलेगा। 6 महीने से 14 वर्ष तक की आयु वर्ग तक के बच्‍चे घर पर राशन पाने अथवा पोषण संबंधी मापदंडों के आधार पर गर्म पका भोजन पाने के हकदार होंगे।

अनाज की आपूर्ति न होने पर खाद्य सुरक्षा भत्‍ता

केंद्र सरकार राज्‍यों/संघ शासित प्रदेशों को निधियां प्रदान करेंगी जिसे वे अनाज की आपूर्ति कम होने पर इस्‍तेमाल कर सकेंगे। अगर अनाज की आपूर्ति बिल्‍कुल नहीं की जाती तो ये व्‍यक्ति भोजन पाने के हकदार होंगे और संबंधित राज्‍य/संघ शासित सरकार को उन्‍हें ऐसा खाद्य सुरक्षा भत्‍ता देना होगा जैसा कि केंद्र सरकार लाभार्थियों के लिए निर्धारित करे।  

खाद्यान्‍नों की राज्‍य से बाहर ढुलाई और रख-रखाव के लिए राज्‍यों को सहायता

अतिरिक्‍त वित्‍तीय बोझ के संबंध में राज्‍यों की चिंता को दूर करने के लिए केंद्र सरकार खाद्यान्‍नों की राज्‍य से बाहर ढुलाई और रख-रखाव तथा उचित दर दुकानदारों के  मुनाफे के बारे में राज्‍यों को सहायता उपलब्‍ध कराएगी। जिसके लिए मानक विकसित किये जाएंगे। इससे खाद्यान्‍नों की समय पर ढुलाई और प्रभावी रख-रखाव सुनिश्चित हो जाएगा।

खाद्यान्‍नों की घर-घर तक आपूर्ति के लिए सुधार

इस विधेयक में खाद्यान्‍नों की घर-घर तक आपूर्ति, कंप्‍यूटरीकरण सहित सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी (आईसीटी) का अनुप्रयोग, लाभार्थियों की विशिष्‍ट पहचान के लिए 'आधार' का लाभ खाद्य सुरक्षा अधिनियम के प्रभावी कार्यान्‍वयन के लिए टीपीडीएस आदि के अधीन उपभोक्‍ता वस्‍तुओं की विविधता को सार्वजनिक वित्‍तरण प्रणाली में सुधार लाने के प्रावधान शामिल हैं।

महिला सशक्तिकरण-सबसे बुजर्ग महिला घर की मुखिया होगी

18 साल या अधिक की महिला राशन कार्ड जारी करने के लिए घर की मुखिया होगी। अगर ऐसा नहीं है तो सबसे बड़ा पुरूष सदस्‍य घर का मुखिया होगा।

जिला स्‍तर पर शिकायत निवारण तंत्र

राज्‍य और जिला स्‍तर पर शिकायत निवारण तंत्र स्थापित होगा जिसमें नियत अधिकारी तैनात किए जाएंगे। राज्‍यों को नए निवारण तंत्र की स्‍थापना पर होने वाले व्‍यय को बचाने के लिए अगर वे चाहें तो जिला शिकायत निवारण अधिकारी (डीजीआरओ), राज्‍य खाद्य आयोग के लिए वर्तमान तंत्र को प्रयोग करने की अनुमति होगी। निवारण तंत्र में कॉल सेंटर, हेल्‍प- लाइन आदि भी शामिल किये जा सकते हैं।

पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिए सामाजिक लेखा परीक्षा और सतर्कता समितियां

पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिए सार्वजनिक वितरण प्रणाली से संबंधित रिकॉर्ड सार्वजनिक करने के लिए सामाजिक लेखा परीक्षा और सतर्कता समितियां स्‍थापित करने के प्रावधान भी किये गये हैं।

अनुपालन न करने पर जुर्माना

जिला शिकायत निवारण अधिकारी द्वारा सिफारिश की गई राहत का अनुपालन करने में असफल रहने के दोषी पाये जाने पर जनसेवक या नियत अधिकारी पर जुर्माना लगाने का भी इस विधेयक में प्रावधान है।

व्‍यय


प्रस्‍तावित पात्रता के अनुसार 2013-14 के लिए कुल अनुमानित वार्षिक खाद्यान्‍न आवश्‍यकता 612.3 लाख टन है और इसकी लागत लगभग 1,24,724 करोड़ रूपये होगी।

नौवहन को समर्पित भारत का उपग्रह आईआरएनएसएस-1ए

अपना उपग्रह आईआरएनएसएस-1ए प्रक्षेपित करने के बाद भारत उन देशों के चुनिंदा समूह में शामिल हो गया है, जिनके पास अपनी विकसित नौवहन व्‍यवस्‍था है। पहले नौवहन को समर्पित भारत के उपग्रह आईआरएनएसएस-1ए को भारत के अंतरिक्ष  संगठन इसरो ने विकसित किया है। इसे 1 जुलाई, 2013 को कक्षा में स्‍थापित कर दिया गया है। इस श्रृंखला के सात उपग्रह छोड़ें जाने है जिनमें से यह पहला है।

भारतीय क्षेत्रीय नौवहन उपग्रह व्‍यवस्‍था (आईआरएनएसएस) पर एक विहंगम दृष्टि
भारतीय क्षेत्रीय नौवहन उपग्रह व्‍यवस्‍था एक स्‍वतंत्र क्षेत्रीय नौवहन व्‍यवस्‍था है जिसका विकास भारत कर रहा है। इसका डिजाइन इस प्रकार से बनाया गया है कि वह भारत में इसे इस्‍तेमाल करने वालों को सही सूचना और एकदम सटीक पोजीशन की जानकारी देता है। इसका क्षेत्र सीमा से 1500 किलोमीटर तक है जिसे प्राइमरी सर्विस एरिया कहा जाता है। विस्‍तारित सर्विस एरिया, प्राइमरी सर्विस एरिया तथा 30 डिग्री अक्षांश दक्षिण से, 50 डिग्री उत्‍तर तक और 30 डिग्री देशांतर पूर्व से 130 डिग्री पूर्व तक के चर्तुभुज से घिरे क्षेत्र के मध्‍य पड़ेगा।

आईआरएनएसएस से दो तरह की सेवाएं मिल सकेंगी। पहली है स्‍टैंडर्ड पोजीशनिंग सर्वि‍स (एसपीएस) जो सभी को उपलब्‍ध होगी। दूसरी सेवा रेस्टिक्‍टिेड सर्विस (आरएस) होगी जो सिर्फ प्राधिकृत
उपभोक्‍ताओं को मिल सकेगी। उम्‍मीद की जाती  है कि आईआरएनएसएस प्राइमरी सर्विस एरिया में 20 मीटर के अंदर बेहतर पोजिशनिंग एक्‍यूरेसी दे सकेगा।

आईआरएनएसएस में दो खंड होंगे। पहला है अंतरिक्ष और दूसरा भू-खंड। आईआरएनएसएस के अंतरिक्ष खंड में सात उपग्रह होंगे इनमें से 3 भू-स्‍थानिक कक्षा में तथा चार जियोसिंक्रोनस कक्षा में झुके होंगे। इस तरह से आईआरएनएसएस के उपग्रह धरती की सतह से 36,000 किलोमीटर ऊँचाई पर पृ‍थ्‍वी का चक्‍कर लगायेंगे।
आईआरएनएसएस का भू-खंड नौवहन  पैरामीटर जनरेंशन और ट्रांसमिशन, सेटलाइट कंट्रोल के लिए जिम्‍मेदार होगा। यह कंट्रोल इंटेग्रिटी मॉनीटरिंग से लेकर टाइम कीपिंग तक होगा।

आईआरएनएसएस का इस्‍तेमाल जमीन, समुद्र और अंतरिक्ष में नौवहन तथा आपदा प्रबंधन और वाहन की ट्रेकिंग (पता लगाने) मोबाइल फोनों के एकीकरण, सही वक्‍त बताने, नक्‍शा बनाने, यात्रियों द्वारा नौवहन में मदद लेने और ड्राइवरों द्वारा विजुअल तथा वॉइस नेविगेशन के लिए किया जा सकेगा। इसके जरिए किसी वाहन पर जा रहे लोगों पर नजर रखी जा सकती है जो उत्‍तराखंड जैसी आपदा की स्थिति में बहुत उपयोगी हो सकता है। यहां तक कि रेलवे इसके जरिए अपने माल डिब्‍बों का पता सकता है। भारत के अलावा यह आसपास के 1500 किलोमीटर तक के इलाके में उपयोगी हो सकता है।

आईआरएनएसएस-1
यह उपग्रह इसरो के 11के सेटेलाइट बस पर आधारित है और इसमें दो सौर पैनल लगे होते हैं। इसमें लगे अल्‍ट्रा ट्रिपल जंक्‍शन सोलर सेल कुल मिलाकर 1660 वॉट बिजली तैयार करते हैं। इसमें 90 एम्‍पीयर प्रति घंटे की क्षमता वाली एक लीथियमन बैटरी लगी होती है जो फिर से चार्ज की जा सकती है। रास्‍ता बताने के लिए सूरज सितारे और जीरोस्‍कोप लगे होते हैं। इस उपग्रह में लगी ऐटमिक घडि़यों को चलाने के लिए जरूरी कई तरह की थर्मल कंट्रोल स्‍कीमें लगाई गई हैं।

आईआरएनएसएस-1ए में कई प्रकार की नियंत्रण प्रणालियां लगाई गई हैं जिनमें लिक्‍विड अपोगी मोटर और 12 थ्रस्‍टर्स प्रमुख है। ये ऊँचाई और संचालन नियंत्रित करते हैं। वृत्‍ताकार जियोसिंक्रोनस कक्षा में स्‍थापित कर दिये जाने के बाद यह उपग्रह विषुवत रेखा से 29 डिग्री पूर्व अक्षांश के झुकाव पर स्‍थापित रहता है। इस उपग्रह की मिशन लाइफ 10 वर्ष बताई गई है।

आईआरएनएसएस-1ए का निर्माण इसरो सेटेलाइट सेंटर बंगलौर में‍ किया गया। इसके निर्माण में  वीएसएससी, एलपीएसयू, आईआईएसयू और इलेक्‍ट्रो-ऑप्टिक सिस्‍टमस की प्रयोगशाला ने योगदान किया। इस उपग्रह का पेलोड स्‍पेस एप्‍लीकेशंस सेंटर, अहमदाबाद ने विकसित किया।

पेलोड
आईआरएनएसएस-1ए में दो प्रकार का पेलोड होता है। नेविगेशन पेलोड और रेंजिंग पेलोड। नेविगेशनल पेलोड से इस्‍तेमाल करने वालों को नेविगेशन सर्विस सिगनल भेजे जाते है। यह पेलोड  1.5 बैंड (1176.45 मेगाहर्ट्ज) और एस बैंड (2492.028 मेगाहर्ट्ज) पर काम कर रहा है। इस उपग्रह पर एक रूबिडियम ऐटमिक घड़ी रखी गई है जो इस उपग्रह के नेवीगेशन पेलोड का हिस्‍सा है।

इस उपग्रह के रेंजिंग पेलोड में एक सी बैंड ट्रांसपोंडर है जो उपग्रह की दूरी बताता है। इसका काम लेजर रेंजिंग के लिए कॉर्नर क्‍यूब रेट्रो रिफलेक्‍टर्स ले जाना भी है।

     

गुरुवार, 4 जुलाई 2013

संयुक्त राष्ट्र की वैश्विक नवाचार सूची 2013 रिपोर्ट

संयुक्त राष्ट्र महासचिव श्री बान की मून ने जिनेवा में पहली जुलाई को संयुक्त राष्ट्र की वैश्विक नवाचार सूची 2013 रिपोर्ट को प्रस्तुत किया । इस वर्ष की रिपोर्ट में नवाचार में स्थानीय परिस्थितियों के महत्व पर जोर दिया गया है, जिन्हें विश्व स्तर पर इतने दिनों तक नजरअंदाज किया गया ।
इस रिपोर्ट से यह बात स्पष्ट हुई है कि स्थानीय परिस्थितियों का नवाचार में बहुत महत्व है और एक स्थान के सफल प्रयोगों को स्थानीय परिस्थितियों का ध्यान रखे बिना, दूसरी जगहों पर दोहराया नहीं जा सकता ।

इस रिपोर्ट में एक अध्याय राष्ट्रीय नवाचार परिषद के नवाचार समूहों के ऊपर है । इन समूहों के प्रयासों की अध्यक्षता प्रधानमंत्री के सलाहकार श्री सैम पित्रोदा द्वारा की गई । नवाचार समूहों का यह प्रयास राष्ट्रीय नवाचार परिषद ने वर्ष 2011 में इस उद्देश्य से शुरू किया था कि सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम (एमएसएमई) वैश्विक प्रतिस्पर्धा का मुकाबला करने के साथ-साथ भारत में उद्यम को सशक्त करेगा । इस प्रयास के बारे में श्री सैम पित्रोदा का कहना था कि प्रौद्योगिकी,प्रतिभा, संसाधन, योग्यता इत्यादि की कमी के कारण हमारे सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पिछड़ जाते हैं ।

इन चुनौतियों का सामना करने के लिए राष्ट्रीय नवाचार परिषद ने एक विशिष्ट योजना आरंभ की । स्थानीय उद्योग के संघ से जुड़कर नवाचार समूहों के केंद्र गठित किए जिससे कि स्थानीय स्तर पर नवाचार का माहौल बना । सभी साझेदारों से मिलकर नवाचार समूहों की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए राष्ट्रीय नवाचार परिषद से तालमेल बैठाया गया ।

राष्ट्रीय नवाचार परिषद ने प्रायोगिक स्तर पर 7 सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम समूहों की शुरुआत की है । इनमें वाहनों के कलपुर्जों के लिए फरीदाबाद, हरियाणा; आयुर्वेद के लिए त्रिशूर, केरल; बांस समूह के लिए अगरतला, त्रिपुरा; जैव प्रौद्योगिकी और औषधि समूह के लिए अहमदाबाद, गुजरात;पीतल की वस्तुओं के लिए मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश; खाद्य प्रसंस्करण समूह के लिए कृष्णागिरी,तमिलनाडु और फर्नीचर समूह के लिए एर्णाकुलम, केरल शामिल हैं । राष्ट्रीय नवाचार परिषद ने39 विभिन्न संस्थानों के साथ मिलकर नवाचार की क्षमताओं को सुदृढ़ बनाया । इससे कुल मिलाकर 10 नए उत्पादों को विकसित किया गया, 12 प्रक्रियाओं को बेहतर बनाया गया और उद्यमियों की मदद के लिए 2 केंद्रों की स्थापना की गई ।

वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद इस प्रयास में एक प्रमुख भागीदार है और अपनी प्रयोगशालाओं में चल रहे शोध के आधार पर सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम समूहों की सहायता करता है । सीएसआईआर-800 कार्यक्रम के माध्यम से अब तक अपनी प्रयोगशालाओं में विकसित प्रौद्योगिकियों को एमएसएमई समूहों को उपलब्ध कराने के लिए तत्पर है । इन प्रयासों की सफलता को देखते हुए राष्ट्रीय नवाचार परिषद सार्वजनिक तथा निजी संस्थानों से नए साझीदारों की तलाश में है ताकि देशभर में इस मॉडल को दोहराया जा सके ।


PSLV-C22 Successfully Launches IRNSS-1A, India’s First Navigation Satellite

 ISRO’s Polar Satellite Launch Vehicle, PSLV-C22, successfully launched IRNSS-1A, the first satellite in the Indian Regional Navigation Satellite System (IRNSS), in the early morning hours of today (July 2, 2013) from Satish Dhawan Space Centre, Sriharikota. This is the twenty third consecutively successful mission of PSLV. The ‘XL’ configuration of PSLV was used for the mission. Previously, the same configuration of the vehicle was used thrice to launch Chandrayaan-1, GSAT-12 and RISAT-1 satellites.
At the completion of the countdown, PSLV-C22 lifted off from the First Launch Pad at 23:41 hrs IST yesterday (July 1, 2013) with the ignition of the first stage and four strap-on motors of the launch vehicle. The important flight events, namely, stage and strap-on ignitions, heat-shield separation, stage and strap-on separations and satellite injection took place exactly as planned. After a flight of 20 minutes 17 seconds, the IRNSS-1A Satellite, weighing 1425 kg, was injected to the intended elliptical orbit of 282.46 km X 20,625.37 km.
After injection, the solar panels of IRNSS-1A were deployed automatically. ISRO’s Master Control Facility (at Hassan, Karnataka) assumed the control of the satellite. In the coming days, five orbit maneuvers will be conducted from Master Control Facility to position the satellite in its Geosynchronous Circular Orbit at 55 deg East longitude.
IRNSS-1A is the first of the seven satellites constituting the space segment of the Indian Regional Navigation Satellite System. IRNSS is an independent regional navigation satellite system designed to provide position information in the Indian region and 1500 km around the Indian mainland. IRNSS would provide two types of services, namely, Standard Positioning Services (SPS) – provided to all users – and Restricted Services (RS) provided only to authorised users.
A number of ground stations responsible for the generation and transmission of navigation parameters, satellite control, satellite ranging and monitoring, etc., have been established in as many as 15 locations across the country.
The entire IRNSS constellation of seven satellites is planned to be completed by 2015-16.



बुधवार, 3 जुलाई 2013

Classification of Plant Tissue Culture Technique


I) Embryo Culture:

For embryo culture, embryos are excised from immature seeds, usually under a ‘hood’, which provides a clean aseptic and sterile area. Sometimes, the immature seeds are surface sterilized and soaked in water for few hours, before the embryos are excised. The excised embryos are directly transferred to a culture dish or culture tube containing synthetic nutrient medium.

Entire operation is carried out in the ‘laminar flow cabinet’ and the culture plates or culture tubes with excised embryos are transferred to a culture room maintained at a suitable temperature, photoperiod and humidity. The frequency of excised embryos that gives rise to seedlings generally varies greatly and medium may even have to be modified made for making Interspecific and Intergeneric crosses within the tribe Triticeae of the grass family. The hybrids raised through culture have been utilized for i) Phylogenetic studies and genome analysis. ii) Transfer of useful agronomic traits from wild genera to the cultivated crops and iii) to raise synthetic crops like triticale by producing amphiploids from the hybrids.

Embryo culture has also been used for haploid production through distant hybridization followed by elimination of chromosomes of one of the parent in the hybrid embryos cultured as above. A popular example includes hybridization of barley and wheat with Hordeum bulbosum leading to the production of haploid barley and haploid wheat respectively. Haploid wheat plants have also been successfully obtained through culture of hybrid embryos from wheat X maize crosses.

Application of Embryo Culture:

i) Recovery of distant hybrids.
ii) Recovery of haploid plants from Interspecific crosses.
iii) Propagation of orchids.
iv) Shortening the breeding cycle
v) Overcoming dormancy.

In addition ovule and ovary can also be cultured.

II) Meristem Culture:

In attempts to recovery pathogen free plants through tissue culture techniques, horticulturists and pathologists have designated the explants used for initiating cultures as ‘shoot –tip’, tip, meristem and meristem tip. The portion of the shoot lying distal to the youngest leaf primerdium and measuring up about 100 µm in diameter and 250 µm length is called the apical meristem. The apical meristem together with one to three young leaf primordia measuring 100-500 µm constitute the shoot apex. In most published works explants of larger size (100-1000 µm long) have been cultured to raise virus- free –plant. The explants of such a size should be infact referred to as shoot-tips. However, for purpose of virus or disease elimination the chances are better if cultures are initiated with shoot tip of smaller size comprising mostly meristematic cells. Therefore, the term ‘meristem’ or meristem-tip’ culture is preferred for in vitro culture of small shoot tips.

The in vitro techniques used for culturing meristem tips are essentially the same as those used for aseptic culture of plant tissues. Meristem tips can be isolated from apices of the stems, tuber sprouts , leaf axils , sprouted bunds o cuttings or germinated seeds.

Application of Meristem Culture:

i) Vegetative propagation
ii) Recovery of virus free stock.
iii) Germplasm exchange
iv) Germplasm conservation

III) Anther or Pollen Culture:

Angiosperms are diploid the only haploid stage in their life cycle being represented by pollen grains. From immature pollen grains we can sometimes raise cultures that are haploid. These haploid plants have single completes set of chromosomes. Their phenotype remains unmasked by gene dominance effects. In china, several improved varieties of plants have been grown from pollen cultures.

When pollen grains of angiosperm are cultured, they undergo repeated divisions. In Datura innoxia the pollen grains from cultured anther can form callus when grown on a media supplemented with yeast extract or casein hydrolysate. Similarly, when isolated anthers are grown on media containing coconut milk or kinetin, they form torpedo- shaped embryoids which in due course grow into small haploid plantlets. The usual approach in anther culture is that anthers of appropriate development stage are excised and cultured so that embryogenesis occurs. Alternatively pollen grains may be removed form the anther, and the isolated pollen is then cultured in liquid medium. Cultured anthers may take upto two months to develop into plantlets.

Application:

Pollen culture or anther culture is useful for production of haploid plants. Similarly, haploid plants are useful in plant breeding in variety of ways as follows:

i) Releasing new varieties through F1 double haploid system.
ii) Selection of mutants resistant to diseases.
iii) Developing asexual lines of trees or perennial species.
iv) Transfer of desired alien gene.
v) Establishment of haploid and diploid cell lines of pollen plant.

IV) Tissue and Cell Culture:

Single cells can be isolated either from cultured tissues or from intact plant organs, the former being more convenient than the latter. When isolated from culture tissues, the latter is obtained by culturing an organised tissue into callus. The callus may be separated from explant and transferred to fresh medium to get more tissue. Pieces of undifferentiated calli are transferred to liquid medium, which is continuously agitated to obtain a suspension culture. Agitation of pieces break them into smaller clumps and single cells, and also maintains uniform distribution of cells clumps in the medium. It also allows gases exchange.

Suspension cultures with single cells can also be obtained from impact plant organs either mechanically or enzymatically. Suspension cultures can be maintained in either of the following two forms i) Batch culture: are initiated as single cells in 100-250 ml flasks and are propagated by transferring regularly small aliquots of suspension to a fresh medium. ii) Continuous culture: are maintained in steady state for long periods by draining out the used medium and adding fresh medium, in this process either the cells separated from the drained medium are added back to suspension culture or addition of medium is accompanied by the harvest of an equal volume of suspension culture.

Application of Cell Culture:

i) Mutant selection
ii) Production of secondary metabolites or biochemical production.
iii) Biotransformation
iv) Clonal propagation
v) Somaclonal variations


CHIEF GLOBAL ENVIRONMENTAL ORGANISATIONS & THEIR ROLE IN CONSERVING ENVIRONMENT

United Nations Environment Programme (UNEP)
It is an international institution that coordinates United Nationsenvironmental activities, assisting developing countries in implementing environmentally sound policies and practices. It was founded as a result of the United Nations Conference on the Human Environment in June 1972 and has its headquarters in the Gigiri neighborhood of Nairobi, Kenya. UNEP also has six regional offices and various country offices.
 It has played a significant role in developing international environmental conventions, promoting environmental science and information and illustrating the way those can be implemented in conjunction with policy, working on the development and implementation of policy with national governments, regional institutions in conjunction with environmental Non-Governmental Organizations (NGOs). UNEP has also been active in funding and implementing environment related development projects. The World Meteorological Organization and UNEP established the Intergovernmental Panel on Climate Change (IPCC) in 1988. UNEP is also one of several Implementing Agencies for the Global Environment Facility (GEF) and the Multilateral Fund for the Implementation of the Montreal Protocol, and it is also a member of the United Nations Development Group. The International Cyanide Management Code, a program of best practice for the chemical’s use at gold mining operations, was developed under UNEP’s aegis.International Union for Conservation of Nature (IUCN)
It is an international organization dedicated to finding "pragmatic solutions to our most pressing environment and development challenges".The organization publishes the IUCN Red List of Threatened Species, which assesses the conservation status of species.
Founded in October 1948 at Fontainebleau ,France .
Headquartered at Rue Mauverney 28, 1196 Gland, Switzerland.
IUCN supports scientific research, manages field projects globally and brings governments, non-government organizations, United Nations agencies, companies and local communities together to develop and implement policy. IUCN is the world’s oldest and largest global environmental network—a democratic membership union with more than 1,000 government and NGO member organizations, and almost 11,000 volunteer scientists in more than 160 countries. IUCN’s work is supported by more than 1,000 professional staff in 60 offices and hundreds of partners in public, NGO and private sectors around the world.

Food and Agriculture Organization of the United Nations (FAO)
 FAO is a specialized agency of the United Nations that leads international efforts to defeat hunger. Serving both developed and developing countries, FAO acts as a neutral forum where all nations meet as equals to negotiate agreements and debate policy. FAO is also a source of knowledge and information, and helps developing countries and countries in transition modernize and improve agriculture, forestry and fisheries practices, ensuring good nutritionand food security for all.
Established- 16 October 1945, in Quebec City, Canada
Headquarter- Rome, Italy
FAO's Regular Programme budget is funded by its members, through contributions set at the FAO Conference. This budget covers core technical work, cooperation and partnerships including the Technical Cooperation Programme, knowledge exchange, policy and advocacy, direction and administration, governance and security. The FAO regular budget for 2012 - 2013 biennium is US$1,005.6 million.
Its Latin motto, fiat panis, translates into English as "let there be bread". As of 8 August 2008, FAO has 191 member states along with the European Union,Faroe Islands and Tokelau which are associate members. It is also a member of theUnited Nations Development Group

Global Environment Facility (GEF)
GEF is the union of 182 countries in partnership with international institutions, civil society organizations (CSOs), and the private sector to address global environmental issues while supporting national sustainable development initiatives.
 Today the GEF is the largest public funder of projects to improve the global environment. An independently operating financial organization, the GEF provides grants for projects related to biodiversity, climate change, international waters, land degradation, the ozone layer, and persistent organic pollutants. Since 1991, the GEF has achieved a strong track record with developing countries and countries with economies in transition, providing $11.5 billion in grants and leveraging $57 billion in co-financing for over 3,215 projects in over 165 countries.
The GEF also serves as financial mechanism for the following conventions:
•             Convention on Biological Diversity (CBD)
•             United Nations Framework Convention on Climate Change (UNFCCC)
•             UN Convention to Combat Desertification (UNCCD)
•             Stockholm Convention on Persistent Organic Pollutants (POPs)

Founded in October 1991.
Headquarter  at  Washington, District of Columbia, United States of America

World Meteorological Organization (WMO)
It is an intergovernmental organization with a membership of 191 Member States and Territories. It originated from the International Meteorological Organization (IMO), which was founded in 1873. Established in 1950, WMO became the specialized agency of the United Nations for meteorology (weather and climate), operational hydrology and related geophysical sciences.
It has its headquarters in Geneva, Switzerland, and is a member of the United Nations Development Group. The current Secretary-General is Michel Jarraud. The current president is David Grimes.
The World Meteorological Organization (WMO) is a specialized agency of the United Nations. It is the UN system's authoritative voice on the state and behavior of the Earth's atmosphere, its interaction with the oceans, the climate it produces and the resulting distribution of water resources. WMO has a membership of 191 member states and territories (as of 1 January 2013).

United Nations Framework Convention on Climate Change (UNFCCC)
UNFCCC is an international environmental treaty negotiated at the United Nations Conference on Environment and Development (UNCED), informally known as the Earth Summit, held inRio de Janeiro from 3 to 14 June 1992.
The objective of the treaty is to "stabilize greenhouse gas concentrations in the atmosphere at a level that would prevent dangerous anthropogenic interference with the climate system".
The UNFCCC was opened for signature on 9 May 1992, after an Intergovernmental Negotiating Committee produced the text of the Framework Convention as a report following its meeting in New York from 30 April to 9 May 1992. It entered into force on 21 March 1994. As of May 2011, UNFCCC has 195 parties. The treaty itself set no binding limits on greenhouse gas emissions for individual countries and contains no enforcement mechanisms. In that sense, the treaty is considered legally non-binding. Instead, the treaty provides a framework for negotiating specific international treaties (called "protocols") that may set binding limits on greenhouse gases.
Since may 1992 total 50 states ratified the treaty and it is signed by total 165 nations.
On the basis of there industrial status and commitments towards environment, all the member states (parties) are divided into following categories.
Parties to the UNFCCC are classified as:
• Annex I: There are 41 Parties to the UNFCCC listed in Annex I of the Convention. These Parties are classified as industrialized (developed) countries and "economies in transition" (EITs). EITs are the former centrally-planned (Soviet) economies of Russia and Eastern Europe. The European Union-15 (EU-15) is an Annex I Party.
• Annex II: There are 24 Parties to the UNFCCC listed in Annex II of the Convention. These Parties are made up of members of the Organization for Economic Cooperation and Development (OECD). Annex II Parties are required to provide financial and technical support to the EITs and developing countries to assist them in reducing their greenhouse gas emissions (climate change mitigation) and manage the impacts of climate change (climate change adaptation).
• Annex B: Parties listed in Annex B of the Kyoto Protocol are Annex I Parties with first- or second-round Kyoto greenhouse gas emissions targets (see Kyoto Protocol for details). The first-round targets apply over the years 2008–2012. As part of the 2012 Doha climate change talks, an amendment to Annex B was agreed upon containing with a list of Annex I Parties who have second-round Kyoto targets, which apply from 2013–2020. The amendments have not entered into force.
• Non-Annex I: Parties to the UNFCCC not listed in Annex I of the Convention are mostly low-income developing countries. Developing countries may volunteer to become Annex I countries when they are sufficiently developed.
• Least-developed countries (LDCs): 49 Parties are LDCs, and are given special status under the treaty in view of their limited capacity to adapt to the effects of climate change.

 Intergovernmental Panel on Climate Change (IPCC)
 IPCC is a scientific intergovernmental body, set up at the request of member governments. It was first established in 1988 by two United Nations organizations, the World Meteorological Organization (WMO) and the United Nations Environment Programme (UNEP), and later endorsed by the United Nations General Assembly through Resolution 43/53.
Its mission is to provide comprehensive scientific assessments of current scientific, technical and socio-economic information worldwide about the risk of climate change caused by human activity, its potential environmental and socio-economic consequences, and possible options for adapting to these consequences or mitigating the effects. It is chaired byRajendra K. Pachauri.
Thousands of scientists and other experts contribute (on a voluntary basis, without payment from the IPCC) to writing and reviewing reports, which are reviewed by representatives from all the governments, with a Summary for Policymakers being subject to line-by-line approval by all participating governments. Typically this involves the governments of more than 120 countries.
The aims of the IPCC are to assess scientific information relevant to:
1.            Human-induced climate change,
2.            The impacts of human-induced climate change,
3.            Options for adaptation and mitigation.


World Nature Organization (WNO)
WNO is the interim body for an intergovernmental organization which promotes global environmental protection.
The organization is focused on promoting activities, technologies, economies, and renewable energies which are regarded to be environment friendly; and rThe foundation of the World Nature Organization is one of the key outcomes of multilateral environmental protection negotiations.The role of the Organization is to turn declarations into implementable actions and to support the protection of the environment and climate at an international level.educing the impact of climate change.
The WNO will be established as an intergovernmental organization by the entry into force of the WNO-Treaty. In accordance with Article XVIII of the WNO-Treaty, the Treaty shall be registered in the United Nations Treaty Collection (UNTC) in accordance with Article 102 of the Charter of the United Nations.


North Atlantic Marine Mammal Commission (NAMMCO)
It is an "international body for co-operation on conservation, management and study of marine mammals in the North Atlantic."
The body was founded in 1992 by its current members Norway, Iceland, Greenland, and the Faroe Islands. The organisation came about because the nations were (and continue to be) unhappy with the international management of cetaceans and other marine mammals by the International Whaling Commission. NAMMCO believes that whaling should be more extensive than that currently allowed under the IWC moratorium which prohibits all (large species) whaling with a few specific exceptions.
NAMMCO was founded in Nuuk, Greenland on 9 April 1992 by the signatories to Agreement on Cooperation in Research, Conservation and Management of Marine Mammals in the North Atlantic. The Agreement came into force on 7 July 1992 and was itself the product of a Memorandum of Understanding signed in Tromso in 1990 between the Norwegian and Icelandic governments and the Greenland and Faroese home rule governments.
Intergovernmental science-policy Platform on Biodiversity and Ecosystem Services (IPBES)
IPBES is an independent intergovernmental body to strengthen the science-policy interface for biodiversity and ecosystem services for the conservation and sustainable use of biodiversity, long-term human well-being and sustainable development. It was established in Panama City, on 21 April 2012 by 94 governments.
All the Member Countries of the United Nations can join the platform and its Members are committed to building IPBES as the leading intergovernmental body for assessing the state of the planet’s biodiversity, its ecosystems and the essential services they provide to society. IPBES provides a mechanism recognized by both the scientific and policy communities to synthesize, review, assess and critically evaluate relevant information and knowledge generated worldwide by governments, academia, scientific organizations, non-governmental organizations as well as indigenous peoples and local communities.
Author: SHAILESH KR SHUKLA
Email ID:167shailesh.bot@gmail.com


मंगलवार, 2 जुलाई 2013

Plant Tissue Culture


The term “Plant tissue culture” broadly refers to the in vitro cultivation of plant parts under aseptic conditions. Such parts as meristems, apices, axillary buds. Young inflorescence, leaves, stems, and roots have been cultured. A controlled aseptic environment and suitable nutrient medium are the two chief requirements for successful tissue culture. These essential nutrients include inorganic salts, a carbon and energy source, vitamins and growth regulators.

The basic technology can be divided into five classes, depending on the material being used: Callus, organ, meristem, and protoplast and cell culture. The technique of embryo, ovule, ovary, anther and microspore culture are used and can yield genotypes that cannot easily be produced by conventional methodology.

Brief History of Plant Tissue Culture

It was Gottlieb Haberland (1902) who in the first decade of this century pioneered the field of plant tissue culture. His idea was to achieve continued cell division in explanted tissue grown on nutrient medium. Following the discovery and use of auxins, the work of Gautherel, Nobecourt and White ushered in the second phase of plant tissue culture over 30 years ago. These and other workers determined the nutritional and hormonal requirements of the cultured plant tissues. It was observed that the whole plant could be successfully regenerated from undifferentiated tissues or even single cells in culture.

Papid advances in diverse aspect of plant culture have been made during the last few years and plant tissue culture techniques have been extensively applied to agriculture and industry. Condensed Cronology of Important Development in the Plant Tissue Culture:


Year
Worker
Contribution
1902
C.Haberlant
First attempt to culture isolated plant cells in vitro on artificial medium
1922
WJ Robbins and W. Kotte
Culture of isolated roots ( for short periods) ( organ culture)
1934
P R White
Demonstration of indefinite culture of tomato roots ( long period)
1939
R J Gautheret and P Nobecourt
First long term plant tissue culture of callus, involving explants of cambail tissues isolated from carrot.
1939
P R White
Callus culture of tobacco tumor tissues from intersepcific hybird of Nicotina glaucum X N.longsdorffi
1941
J Van Overbeek
Discovery of nutritional value of liquid endosperm of coconut for culture of isolated carrot embryo.
1942
P R White and A C Braun
Experiments on crownn-gall and tumor formation in plants, growth of bacteria free crown-gall tissues.
1948
A Caplan and F C Stewart
Use of coconut milk plus 2, 4-D fro proliferation of cultured carrot and potato tissues
1950
G Morel
Culture of monocot tissues using coconut milk.
1953
W H Muir
Inoculation of callus pieces in liquid medium can give a suspension of single cells amenable tosubculture. Development of technique for culture of single isolated cells.
1953
W Tulecke
Haploid culture from pollen of gymnosperm ( Ginkgo)
1955
C O Miller, F Skeog and others
Discovery of cytokinins. E.g. Kinetin, or potent cell division factor.
1955
E ball
Culture of gymnosperm tissues ( Sequoia)
1957
F Skoog and C O Miller
Hypotheses that shoot and root initiation in cultured callus is regulated by the proportion of auxins and cytokinins in the culture medium.
1960
E C Cocking
Enzymatic isolation and culture of protoplast.
1960
G Morel
Development of shoot apex culture technique.
1964
G Morel
Use of modified shoot apex technique for orchid proportion.
1966
S G Guha and S C Maheshwari
Cultured anthers and pollen and produce haploid embryos.
1974
J P Nitsch
Culture of microspores of Datura and Nicotina, to double the chromosome number and to harvest seed from homozygous diploid plants just within five months.
1978
G Melchers
Production of somatic hybrids from attached to plasmid vectors into naked plant protoplast.
1983
K A Barton , W J Brill and J H Dodds Bengochea
Insertion of foreign genes attached to plasmid vectors into naked plant protoplast.
1983
M D Chilton
Production of transformed tobacco plants following single cell transformation or gene insertion.

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