शुक्रवार, 23 मई 2014

नाइजीरिया के हालात

मिस्र, लीबिया, सीरिया आदि अरब देशों में पिछले कुछ वर्षों से निरंतर अस्थिरता, अनिश्चितता की स्थिति बनी हुई है। सत्ता की लड़ाई में आम जनता का वर्तमान बर्बाद हो चुका है और भविष्य अंधकारमय है। इन देशों की भावी पीढिय़ां किस माहौल में पलेंगी, बढ़ेंगी, कैसी शिक्षा प्राप्त करेंगी, उन्हें रोजगार के अवसर मिलेंगे या नहींऔर काम होने की दशा में क्या वे अपराध की दुनिया में ढकेली जाएंगी? अगर ऐसा हुआ तो इसका असर शेष विश्व पर किस तरह पड़ेगा? ऐसे कुछ सवाल चिंता उपजाते हैं। इस वक्त नाइजीरिया में जिस तरह बोको हराम नामक चरमपंथी संगठन ने आतंक कायम किया है, उसे लेकर भी यही चिंताएं उपजती हैं। नाइजीरिया की हौसा भाषा में बोको हराम का अर्थ है- पश्चिमी शिक्षा की मनाही। शिक्षा को पूर्वी-पश्चिमी या देशी-विदेशी के खांचे में बांटने की सोच निस्संदेह धर्म आधारित है। शिक्षा अच्छी बातों की सीख देने के लिए होती है। किंतु जब उस पर धर्म हावी होता है तो उसे विकृत रूप में पेश किया जाता है। बोको हराम संगठन यही कार्य कर रहा है। विगत 2009 से यह संगठन नाइजीरिया की सत्ता को निरंतर चुनौती देता आया है। गांवों-कस्बों पर हमला, चर्च पर हमला, हत्याएं करना, बैंक लूटना ऐसे तमाम अपराध उसके नाम हैं। 14 अप्रैल को बोर्नो प्रांत से इस संगठन के लोगों ने एक स्कूल से 200 लड़कियों को अगवा कर लिया। बोको हराम के नेता अबुबकर शेकू ने इन लड़कियों को बेचने की धमकी दी। उसका कहना है कि इन लड़कियों को स्कूल में नहीं होना चाहिए बल्कि शादी कर लेनी चाहिए। अपनी मासूम बच्चियों के अपहृत होने पर रोते-कलपते मां-बाप को देखकर किसी का भी कलेजा कांप जाए। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इस घटना का विरोध हुआ। अमरीका की प्रथम महिला मिशेल ओबामा भी - हमारी लड़कियों को वापस लाओकी तख्ती उठाए, उनकी रिहाई की अपील करती नजर आईं। पाकिस्तान में चरमपंथ की शिकार मलाला युसूफजेई ने दुनिया से अपील की कि इस मामले में चुप नहींरहना चाहिए। अमरीका, ब्रिटेन समेत कई देशों के विशेषज्ञ इन लड़कियों की तलाश में जुटे हैं, लेकिन अब तक उनका कोई पता नहींचल पाया है। बीच में इन लड़कियों का एक वीडियो जारी कर बोको हराम ने यह संदेश दिया कि वे सही-सलामत हैं और उनका धर्म परिवर्तन कर दिया गया है। लेकिन इस वीडियो की सत्यता संदिग्ध है। बोको हराम की मांग है कि नाइजीरिया की जेलों में बंद उनके सभी लड़ाकों को छोड़ा जाए। इस घटना के एक माह बाद ही अब नाइजीरिया के जोस शहर में दो बम धमाकों में 162 लोगों की मौत हो गई और हताहतों की संख्या बढऩे का अंदेशा है। ट्रक और मिनी बस में विस्फोटक छिपाए गए थे और अधिक से अधिक लोगों को निशाना बनाना इनका उद्देश्य था। नाइजीरिया के राष्ट्रपति गुडलक जोनाथन ने इसे क्रूर और मानवता पर हमला करार दिया है। वे अपनी तमाम कोशिश के बावजूद बोको हराम पर अंकुश लगाने में असफल दिख रहे हैं। एक साल पहले उन्होंने बोर्नो, अडामावा और योब प्रांतों में आपातकाल लगाया था, ताकि हिंसक घटनाओं पर रोक लग सके। लेकिन ऐसा नहींहुआ। इन राज्यों में 2 हजार से अधिक नागरिक हिंसक घटनाओं में मारे जा चुके हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि सरकार कोई प्रभावी कार्रवाई इसलिए नहींकर पा रही क्योंकि आम जनता का सेना से भरोसा उठ चुका है। उसकी कार्रवाइयों में कई निर्दोष मारे गए हैं और मानवाधिकार हनन की शिकायतें उसके खिलाफ हंै। इसके अलावा सेना के पास आधुनिक उपकरणों, हथियारों की कमी है। देश के राजनीतिक ढांचे और सरकार पर भी जनता का भरोसा नहींबन पा रहा है। तेल संपदा के धनी नाइजीरिया में हिंसा और आतंक की ये घटनाएं भारत समेत विश्व के तमाम देशों के लिए चिंताजनक है।


भारत नाइजीरिया के बीच आर्थिक संबंध मजबूत है। अपनी तेल की जरूरत का बड़ा हिस्सा भारत नाइजीरिया से पूरा करता है। भारत की कई नामी-गिरामी कंपनियां नाइजीरिया में व्यापार करती हैं। हाल ही में वहां विश्व आर्थिक मंच की बैठक भी संपन्न हुई। अर्थव्यवस्था और व्यापार तभी बढ़ सकते हैं, जब स्थायित्व और शांति हो। जानकारों का यह भी मानना है कि नाइजीरिया में धर्म के नाम पर विगत एक दशक से जो हिंसक गतिविधियां बढ़ी हैं, उसका असल मकसद जमीन और संसाधन पर कब्जा करना है।

गुरुवार, 22 मई 2014

संसाधनों का जुटाना नई सरकार के लिए बड़ी चुनौती

ऐसा बहुत कम देखने में आता है कि  मतदाता, राजनैतिक दलों के घोषणापत्रों का तुलनात्मक अध्ययन करके सर्वश्रेष्ठ घोषणापत्रवाले  राजनैतिक दल के पक्ष में मतदान करता है। इसके बावजूद हर एक लोकसभा विधानसभा  चुनाव के समय  राजनैतिक दल पांच साल के लिए अपना चुनावी वादों का घोषणापत्र जारी करता है चुनाव में विजयी होकर सत्तारूढ़ होने के बाद ही चुनावी घोषणापत्र को व्यवहारिक महत्व मिलता है  तथा मतदाता ही नहीं बल्कि विरोधी दल भी उनको पूरा करने की मांग करते हैं लोकसभा चुनाव में विजयी होने के बाद नरेन्द्र मोदी ने अपने आभार ज्ञापन उद्बोधन में सभी वादों को पूरा करने का भरोसा दिलाया है किन्तु सभी चुनावी वादों को पूरा करना इतना आसान नही है बल्कि हर एक वादे को पूरा करना बड़ी चुनौती है    

वर्तमान में भारतीय अर्थव्यवस्था अच्छी स्थिति में नहीं है पिछले एक दशक में सबसे नीची अर्थात 5.00 प्रतिशत से भी नीचे जीडीपी वृध्दि दर गई है। औद्योगिक विकास दर अपने निम्नतम स्तर पर है। अधोसंरचना विकास दर धीमी हो गई है। रोजगार के अवसर खत्म हो रहे है राजकोषीय घाटा कम होने का नाम नहीं ले रहा है मुद्रास्फ ीति दर उच्च होने से जनता महंगाई से परेशान है। सरकारी आंकड़ो के मुताबिक 21 प्रतिशत जनसंख्या गरीबी रेखा से नीचे जीवन बसर कर रही है।  सबसे बड़ी चुनौती अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने की है। भाजपा ने अपने घोषणापत्र में महंगाई कम करने से लेकर राम मन्दिर एवं राम सेतु के निर्माण तक का वादा किया है। 
     
भाजपा के घोषणापत्र में  मूल्य वृध्दि नियंत्रण को सर्वोच्च प्राथमिकता दी गई है।  इसके लिए कालाबाजारी और जमाखेारी के मामलों के लिए अलग अदालतें बनानेराष्ट्रीय स्तर का कृषि बाजार का निर्माण, विशेष फं निर्मित करके जनसहायतार्थ कार्य आदि उपायों के माध्यम से मूल्य वृध्दि कम करने की बात घोषणापत्र में कही गई है किन्तु  मेरा ऐसा मानना है कि उपरोक्त सभी उपायों के अपनाने के बावजूद मूल्य वृध्दि  रोकना कठिन है क्योंकि  मूल्य वृध्दि का एक बड़ा कारण उत्पादन लागत में निरन्तर वृध्दि होना है जब तक उत्पादन लागत नियंत्रित करने के ठोस उपाय अपनाए नहीं जाते उस पर नियंत्रण कठिन है इसलिए मूल्य वृध्दि को रोकना मोदी सरकार के लिए बड़ी चुनौती बनी रहने वाली है। 

बेरोजगारी की समस्या के निराकरण हेतु उच्च किस्म के लाभप्रद रोजगार के अवसरों के सृजन हेतु जो उपाय अपनाए जाएंगे उनमें  श्रम प्रधान उद्योगों तथा अधोसंरचना निर्माण में रोजगार के अवसरों का  सृजननेशनल मल्टी स्किल मिशन के तहत देश के लोगों के कौशल की पहचान कर उनके कौशल विकास द्वारा रोजगार के अवसर बढ़ानेउद्यमिता विकास प्रशिक्षण द्वारा उद्यम स्थापना एवं स्वरोजगार को बढ़ावा देकर रोजगार के अवसर बढ़ाना मुख्य हैं ध्यान में रखने योग्य बात है कि मनमोहन सिंह सरकार द्वारा भी रोजगार सृजन के लिए यह रणनीति अपनाई गई थी, किन्तु  पिछड़े राज्यों में से अपेक्षित सफ लता नहीं मिल सकी।   

योजना आयोग द्वारा अपनाया गया  गरीबी रेखा का मानदंडों की भाजपा नेताओं द्वारा उपहास उड़ाया जाता रहा है। अपेक्षा की जा रही थी कि भाजपा घोषणपत्र में गरीबी रेखा का उनका मानदंड प्रस्तुत किया जाएगा। किन्तु घोषणापत्र इस मामले में खामेाश है नई व्याख्या को विकसित कर गरीबी में कमी लाना भी एक बड़ी चुनौती है। विकास के साथ आर्थिक असमानता में वृध्दि हो रही है, इसमें  कमी लाना भी बहुत बड़ी चुनौती है। भाजपा अगले पांच साल में अमीर और गरीब के मध्य अंतर कम करना चाहती है। इसके लिए देश के सर्वाधिक 100 गरीब जिलों की पहचान कर वहां के लोगों के एकीकृत विकास के लिए कार्य करने की योजना है निर्धन क्षेत्रों में प्राकृतिक संसाधनों की पहचान कर स्थानीय लोगों को रोजगार के अवसर उपलब्ध कराए जाएंगे मेरा ऐसा मानना है कि आर्थिक असमानता के बीज तो सरकार द्वारा  स्कूली शिक्षा के समय ही बो दिए जाते  है जब कुछ बच्चे  उत्कृष्ट शिक्षा प्रदान करने वाले महंगे निजी स्कूलाों में शिक्षा गहण करने का सौभाग्य प्राप्त करते हैं, तो दूसरी ओर सुदूर ग्रामीण अंचल के लाखों गरीब  बच्चे शिक्षक विहीन सरकारी स्कूलों में पढ़ाई करते हैं, इससे उच्च शिक्षा एवं रोजगार के अवसर असमान हो जाते हैं इसलिए अमीर और गरीब के बीच की खाई को कम करना बहुत बड़ी चुनौती है।    

घोषणापत्र के अन्य बिन्दु हैं- भ्रष्टाचार की संभावनाओं को न्यूनतम करके ऐसी स्थिति पैदा करने का प्रयास करना  कि कालाधन पैदा ही हो पाएप्राथमिकता के आधार पर विदेशी बैकों और समुद्र पार के खातों में जमा काला धन पता लगा कर उसे भारत वापस लाना, पीपीपी मॉडल द्वारा सत्ता का विकेन्द्रीकरण करना, सुशासन हेतु -गवर्नेंस को बढ़ावा देना, न्याय व्यवस्था को मजबूत बनानाप्रधानमंत्री ग्राम सिंचाई योजना के माध्यम से हर खेत को पानी पहुंचाना, हितकर एवं उपयुक्त कर नीति अपनाना, बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध करवाना तथा राम मन्दिर एवं रामसेतु का निर्माण।   

भाजपा के घोषणापत्र में राम मन्दिर एवं राम सेतु निर्माण को छोड़कर कोई भी विवादित मुद्दा नहीं है महंगाई और आर्थिक असमानता में कमी को छोड़कर अन्य सभी आर्थिक एजेंडा उपयुक्त रणनीति बनाकर योजनाबध्द तरीके से पूरा किया जा सकता है। एफआरबीएम एक्ट के अनुसार सरकार का राजकोषीय घाटा जीडीपी का 3.0 प्रतिशत से अधिक नहीं होना चाहिए जबकि वर्तमान में यह जीडीपी का 4.8 प्रतिशत हो गया है। अच्छे दिन आने वाले हैं इस चुनावी अभियान गान की जनापेक्षा को पूरा करने के लिए सरकार को बहुत बड़ी धनराशि की आवश्यकता पड़ेगी, जबकि वर्तमान में संसाधनों के स्रोत सीमित हैं इसलिए चुनावी वादों को पूरा करने के लिए अपनी लोकप्रियता कायम रखते हुए पर्याप्त संसाधनों को जुटाना सरकार के लिए सबसे बड़ी चुनौती है

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