मंगलवार, 4 मार्च 2014

वर्चुअल कलस्‍टर्स

वर्चुअल कलस्टरों से तात्‍पर्य है समर्पित वेब पॉर्टल जिसका संचालन सूक्ष्‍म लघु और मध्‍यम उद्यम (एमएसएमई) मंत्रालय द्धारा किया जाएगा।
यह निम्नलिखित हितधारकों को भाग लेने तथा अपना पंजीकरण कराने की सुविधा उपलब्‍ध कराता है।
·       एमएसएमई तथा इसकी व्‍यवसायिक इकाइयां।
·       शैक्षणिक संस्थान (इंजीनियरिंग कालेज, पॉलीटैक्‍निक, आईटीआई, एमबीए म‍हाविद्यालय तथा डिजाइन संस्‍थान)।
·       विभिन्‍न विशेषज्ञ, परामर्शदाता तथा प्रशिक्षक जो एमएसएमई को क्षेत्र विशिष्‍ट सहायता मुहैया कर सकते हैं।
·       बैंक और अन्‍य वि‍त्‍तीय संस्‍थान जो एमएसएमई को वित्‍त प्रदान करने में रूचि रखते हैं।
·       विभिन्‍न सरकारी संगठन, गैर-सरकारी संगठन, तथा स्‍वयंसेवी कार्यपालक जिनकी एमएसएमई क्षेत्र में विशेष अभिरूचि है।
·       इस पहल में मुख्‍य हितधारक लघु व्‍यवसायिक इकाइयां हैं। अन्‍य हितधारकों की भूमिका व्‍यवसायिक इकाईयों की बिक्री तथा लाभप्रदता को तेजी से बढ़ाने की होगी।
·       वर्चुअल कलस्‍टरों की संकल्पना इस विचार से की जा रही है कि विभिन्‍न क्षेत्रों से सम्‍‍बन्धित लघु व्‍यवसाय वेब पोर्टल पर अपनी तरह के उद्यमों के साथ-साथ रह सकें तथा केन्द्रित और लक्षित नेटवर्किंग का लाभ उठाएं। विभिन्‍न क्षेत्रों के लिए बेब आधारित कलस्‍टरों का सृजन हितधारकों की आवश्‍यकताओं की पूर्ति शीघ्र कर किया जा सकता है।

चालू भौतिक कलस्‍टरों तथा वर्चुअल कलस्‍टरों में  अन्‍तर
चालू ''भौतिक कलस्‍टर्स'' योजना के तहत एमएसएमई इकाई योजना के तहत एमएसएम इकाई भौतिक तौर पर एक भौगोलिक क्षेत्र में स्थित होनी चाहिए। भौतिक ढांचे के निर्माण तथा रख-रखाव के लिए समय तथा उल्‍लेखनीय, संसाधन होने चाहिए। वर्चुअल कलस्‍टरों के मामले में इन क्षेत्रों में भौतिक उपस्थिति आवश्‍यक नहीं है। छोटे व्‍यवसाय /उद्यम भारत में कहीं भी हो सकते हैं और वे भौतिक कलस्‍टरों को मिलने वाले लाभ प्राप्‍त कर सकते हैं।
विभि‍न्‍न हित धारकों को इसके क्‍या लाभ हैं।
व्‍यवसाय उद्यम
·       सरकारी टेन्‍डरों तथा निर्यात के जिससे अवसर जैसे विभिन्‍न अवसरों के बारे में जागरूकता।
·       नई प्रौद्योगिकी के बारे में प्रशिक्षण जिससे उनके परिचालन में सुधार होगा तथा लागत कम आएगी।
·       आसपास के शैक्षणिक संस्‍थानों के विद्यार्थियों तथा उनके शिक्षकों से सहायता प्राप्‍त की जा सकती है। इसके लिए भुगतान करना जरूरी नहीं। ऐसी सहायता गुणवत्ता में सुधार, लागत में कमी लाने तथा नए उत्‍पाद का डिजाइन करने तैयार आदि के लिए की जा सकती है।
·       विशेष व्‍यवसाय के लिए परामर्शदाताओं तथा विशिष्‍ट विशेषज्ञों से लक्षित सहायता लेना।
विद्यार्थी
अध्‍ययनों से यह पता चलता है कि अधिकतर विद्यार्थियों को अपना अध्‍ययन पूरा कर लेने के बाद भी उपयुक्‍त नौकरी नहीं मिल पाती क्‍योंकि उन्‍हें वास्‍तविक जीवन की समस्‍याओं का निदान करने का अनुभव नहीं होता। वर्चुअल कलस्‍टर वेब साइट और अन्‍य सम्‍बन्धित गतिविधियों के माध्‍यम से इस प्रकार की समस्‍याओं का निदान विभिन्‍न शैक्षणिक संस्‍थानों को व्‍यवसाय से जोड़कर किया जाता है। विद्यार्थियो के अपने इंटर्नशिप कार्यक्रम के दौरान व्‍यवसाय इकाइयों में कई प्रणालियां लागू कर सकते हैं। ऐसी सेवाओं के लिए व्‍यवसायी को बाहरी विशेषज्ञों की जरूरत नहीं पड़ती और उसका कार्य भी हो जाता है।
परामर्शदाता  तथा  पेशेवर
ऐसे पेशेवर जिनकी विशिष्‍ट व्‍यवसायिक क्षेत्र में विशेषज्ञता है वर्चुअल कलस्‍टर वेब पोर्टल के अन्‍तर्गत रजिस्‍टर्ड व्‍यवसाय से तुरन्‍त सम्‍पर्क कर सकते हैं। यह दोनों पार्टियों की कार्यकुशलता में सुधार लाएगा।
बैंक तथा अन्‍य वित्तीय संस्‍थान
कई बैंक तथा अन्‍य वित्तीय संस्‍थान लघु व्‍यवसाय के लिए विशेष वित्तीय पैकेज देते हैं। वर्चुअल कलस्‍टरों के माध्‍यम से वे क्षेत्र विशेष के लिए वित्तीय पैकेज दे सकते हैं और उन्‍हें लघु व्‍यवसायों को मानक ऑफर देने की आवश्‍यकता नहीं रहती। इससे बैंक क्षेत्र विशेष को वित्त प्रदान करने में विशेषज्ञता हांसिल कर लेंगे तथा किसी भी क्षेत्र में कई कम्‍पनियों के बीच अपने जोखिम का फैलाव कर पायेंगे। इससे व्‍यवसायों के समय की बचत होगी तथा वित्त प्रदान करने के विकल्‍प तुरन्‍त मिल जायेंगे।
केन्‍द्रीय और राज्‍य सरकारों के संगठन
केन्‍द्र सरकार और राज्‍य सरकार के स्‍तर पर कई संगठन लघु व्‍यवसाय समुदाय को लक्षित कर कई कार्यक्रम संचालित करते रहते हैं। वर्चुअल कलस्‍टर पोर्टल के माध्‍यम से नीति निर्माता तथा अन्‍य लागू करने वाले अभिकरण आसानी से तथा तुरंत इन व्‍यवसायों तक पहुंच बढ़ा सकते हैं। इससे उनकी कार्यकुशलता भी बढ़ेगी।
गैर सरकारी संगठन तथा स्‍वयंसेवी सलाहकार
सरकारी संगठनों की भांति कई क्षेत्रीय गैर-सरकारी संगठन एवं स्‍वयंसेवी सलाहकार वर्चुअल कलस्‍टर में रजिस्‍टर्ड एमएसएमई से प्रभावशाली ढंग से संपर्क कर सकते हैं।
प्रायोगिक परियोजना
वर्चुअल कलस्‍टर मॉडल की पहले खाद्य प्रसंस्‍करण उद्योग से जुड़े व्‍यवसायों में प्रयोग के तौर पर जांच की जा रही है। इनमें ऐसी कंपनियां शामिल हैं जो खाद्य उत्‍पादों का निर्माण करती हैं तथा जो खाद्य प्रसंस्‍करण में काम आने वाले उपकरणों का निर्माण करते हैं। इस संकल्‍पना का बाद में अन्‍य क्षेत्रों में भी तेजी से उपयोग किया जाएगा।
खाद्य उत्‍पादों के उदाहरण
·       पैकेज किए गए शहद और शहद पर आधारित विभिन्‍न उत्‍पाद।
·       सूखे मेवे।
·       केसर मसाले।
·       विभिन्‍न प्रकार के मेवे: काजू, मूंगफली, अखरोट, आदि।
·       जूस
·       जड़ी-बूटियां
·       बिस्‍कुट और बेकरी के अन्‍य उत्‍पाद आदि।
खाद्य प्रसंस्‍करण सम्‍बन्‍धी मशीनों के उदाहरण
·       पाश्‍चरीकृत मशीनरी
·       बेकिंग ओवन
·       मसाला पीसने वाली मशीनरी
·       पैकेजिंग मशीनरी
·       जूस तैयार करने वाली मशीनरी आदि।
कुछ माह प्रायोगिक परियोजना के तहत अनुभव प्राप्‍त करने के बाद वर्चुअल कलस्‍टर वेबसाइट अन्‍य क्षेत्रों के लिए भी शुरू की जाएगी।
वर्चुअल कलस्‍टर वेबसाइट तथा इसकी पहल को किस प्रकार संचालित किया जाएगा?
एमएसएमई मंत्रालय का प्रशिक्षण भाग एनआईईएसबीयूडी वर्चुअल कलस्‍टर वेबसाइट का संचालन करेगा तथा निम्‍नलिखित गतिविधियों को अंजाम देगा।
एमएसएमई के सर्वोच्‍च हित में सरकार के भीतर विभिन्‍न हितधारकों तथा बैंकरों के साथ कार्य करेगा।
·       खाद्य प्रसंस्‍करण क्षेत्र की आवश्‍यकताओं का सर्वेक्षण करेगा तथा अपेक्षित प्रौद्योगिकी उपलब्‍ध करायेगा
·       ऐसी प्रौद्योगिकी को अपनाने के लिए विशेष प्रशिक्षण की व्‍यवस्‍था करेगा।
·       विभिन्‍न सरकारी विभागों तथा सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों के खरीद विभागों करने वालों के साथ कार्य करेगा तथा एमएसएमई से खरीद के लिए आरक्षित मदों की उनकी आवश्‍यकताओं का आकलन करेगा।
·       शैक्षणिक संस्‍थानों के साथ कार्य करते हुए उनके अनुभवों की समीक्षा करेगा तथा प्रक्रिया को आवश्‍यकतानुसार उत्‍तम बनाने के लिए सहायता करेगा।
·       वेबसाइट के उपयोग की निगरानी रखेगा तथा इसके उपयोगकर्ताओं के अनुभवों को व्‍यापक बनाने के लिए आवश्‍यक परिवर्तन के बारे में सुझाव देगा।
·       इस पहल को सफल बनाने के लिए अन्‍य कुछ भी किए जाने की आवश्‍यकता हो तो उसकी शीघ्र पूर्ति करेगा।
·       एमएसएमई के हित में सॉफ्टवेयर एप्‍लीकेशन पैकेज तैयार करेगा।
·       ऐसे सॉफ्टवेयर एप्‍लीकेशन के उपयोग के बारे में एमएसएमई तथा शैक्षणिक संस्‍थानों को प्रशिक्षित करेगा।


सोमवार, 3 मार्च 2014

नवाचार और प्रगति के लिए वैज्ञानिक सोच को बढ़ावा देना आवश्‍यक

भारत में राष्ट्रीय विज्ञान दिवसरामन प्रभावखोज के सम्मान में प्रतिवर्ष 28 फरवरी को मनाया जाता है। प्रख्यात भारतीय भौतिकविद सर सी. वी. रामन ने 28 फरवरी, 1928 को रामन प्रभाव की खोज की थी। सी. वी. रामन ने भौतिकी के विभिन् विषयों पर 1907-1933 के दौरान कोलकाता के इंडियन एसोसिएयशन फॉर कल्टिवेशन ऑफ साइंस में काम किया। इसी दौरान 1928 में उन्होंने रामन प्रभाव की खोज की। प्रकाश प्रकीर्णन(स्कैटरिंग ऑफ लाइट) संबंधी इस खोज से उन्हें अपार ख्याति मिली और बाद में 1930 में नोबेल पुरस्कार भी प्रदान किया गया।

राष्ट्रीय विज्ञान और प्रौद्योगिकी संचार परिषद(एनसीएसटीसी) ने 1986 में भारत सरकार को  28 फरवरी को राष्ट्रीय विज्ञान दिवस घोषित करने की सलाह दी। अब यह आयोजन स्कूल, कॉलेजों, विश्वविद्यालयों और अन् शैक्षणिक निकायों, वैज्ञानिक, तकनीकी, चिकित्सा और अनुसंधान संस्थानों समेत संपूर्ण भारत में मनाया जाता है। वर्ष 2014 के लिए इस आयोजन का विषयवैज्ञानिक सोच को बढ़ावाहै।ऊर्जा संरक्षणभी वर्ष 2014 के विज्ञान दिवस का विषय होगा।

वैज्ञानिक सोच चिंतन और उसके क्रियान्वयन का एक तरीका है। इसके लिए भौतिक वास्तविकताओं का आकलन, पूछताछ, परीक्षण, परिकल्पना और विश्लेषण जैसी विशेष पद्धतियों का सहारा लिया जाता है। भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरुवैज्ञानिक सोचशब् का इस्तेमाल करने वाले पहले व्यक्तियों में से एक थे। उन्होंने वैज्ञानिक सोच को बढ़ावा दिए जाने की जोरदार वकालत की। पं. नेहरु ने अपनी किताबभारत की खोजमें लिखा है- ‘‘आज जरूरत वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाए जाने की है। विज्ञान के साहसिक और आलोचनात्मक सोच, सत् और नए ज्ञान की खोज, बिना परीक्षण और प्रयोग के किसी भी चीज को स्वीकारने से इंकार, नए साक्ष्यों की रोशनी में पूर्व निष्कर्षों को परिवर्तित करने की क्षमता, आकलित तथ्यों पर निर्भरता और पूर्व नियोजित सिद्धांतों से दूर रहना, मन का कठोर अनुशासन, यह सभी केवल वैज्ञानिक अनुप्रयोग के लिए आवश्यक हैं बल्कि कई समस्याओं के हल के लिए और स्वयं जीवन के लिए भी आवश्यक है।’’

वैज्ञानिक चिंतन के विचार की उत्पत्ति और विकास डार्विन के व्यक् विचारों से संबंधित है। उन्होंने कहा है ‘‘विचारों की स्वतंत्रता को बेतर ढंग से तब मजबूती मिलेगी जब उसमें विज्ञान की समझ होगी।’’ वैज्ञानिक सोच एक रवैये को व्यक् करता है जिसमें तर्क का अनुप्रयोग भी शामिल है। चर्चा, तर्क और विश्लेषण वैज्ञानिक सोच का महत्वपूर्ण हिस्सा है। निष्पक्षता, समानता और लोकतंत्र के अवयव भी इसमें निर्मित होते हैं।

भारत बुनियादी अनुसंधान के क्षेत्र में शीर्ष देशों में शुमार है। विशेषकर उभरते परिदृश् और प्रतिस्पर्द्धा के दौर में इंडियन साइंस, वृद्धि और विकास के सबसे महत्वपूर्ण उपकरणों में गिना जाने लगा है। हाल के घटनाक्रम और नई मांगों के बीच कुछ प्रमुख विज्ञान परियोजनाएं शुरू किया जाना आवश्यक है। ये परियोजनाएं राष्ट्र की जरूरतों के लिए प्रासंगिक और भविष् की प्रौद्योगिकी के अनुरूप होनी चाहिए। विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग ने देश में विज्ञान और प्रौद्योगिकी को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह किया है। यह विभाग उच् शोध को बढ़ावा देने से लेकर आधुनिक प्रौद्योगिकी के विकास तक विभिन् व्यापक गतिविधियों में संलग् है। उपयुक् कौशल और प्रौद्योगिकी के विकास के जरिए यह विभाग आम आदमी की तकनीकी जरूरतों को पूरा कर रहा है।

विज्ञान, प्रौद्योगिकी और नवाचार (एसटीआई) विकास के नए प्रमुख संवाहक बनकर उभरे है। भारत की तेज, स्थाई और समावेशी विकास में भारतीय एसटीआई व्यवस्था प्रतिभा के विशाल भंडार के साथ राष्ट्रीय लक्ष्यों को हासिल करने में एक निर्णायक भूमिका निभा सकता है। भारतीय संविधान के अनुसार वैज्ञानिक सोच को बढ़ावा देना भारतीय नागरिक के मूल कर्तव्यों में से एक है।

वर्ष 1958 के भारत के विज्ञान नीति प्रस्ताव(एसपीआर) का उद्देश् विज्ञान और वैज्ञानिक अनुसंधानों को बढ़ावा देना है। 2003 की विज्ञान और प्रौद्योगिकी नीति(एसटीपी) में राष्ट्रीय नवाचार प्रणाली के सृजन के लिए और राष्ट्रीय समस्याओं के समाधान के लिए राष्ट्रीय अनुसंधान और विकास व्यवस्था के जरिए सामाजिक आर्थिक क्षेत्र को बढ़ावा देने की बात कही गई है। वैज्ञानिक अनुसंधान धन का इस्तेमाल कर ज्ञान का सृजन करता है और इससे प्राप् नवाचार, ज्ञान को धन में बदल देता है। इस तरह यह राष्ट्र के विकास लक्ष्यों में अहम स्थान हासिल कर चुका है।

भारत ने 2010-20 के दशक कोनवाचार का दशकघोषित किया है। सरकार ने विज्ञान, प्रौद्योगिकी और नवाचार के बीच तालमेल कायम करने की आवश्यकता पर बल दिया है। साथ ही राष्ट्रीय नवाचार परिषद भी स्थापित किया है। इन घोषणाओं को आगे बढ़ाने में एसटीआई नीति 2013 भारतीय संदर्भ में नवाचार को नया आयाम प्रदान करती है। भारत की वैश्विक प्रतिस्पर्धा उस स्तर पर तय होगी जहां तक एसटीआई सामाजिक और आर्थिक आयामों में योगदान करेगी। ऊर्जा और पर्यावरण, खाद्य और पोषण, जल और स्वच्छता, आवास, किफायती स्वास्थ् प्रणाली, कौशल निर्माण और बेरोजगारी की चुनौतियों का सामना करने के लिए नए संरचनात्मक तंत्र और सिद्धांतों की आवश्यकता है।
समावेशी विकास में नवाचार आबादी के एक बड़े हिस्से तक पहुंच और उपलब्धता सुनिश्चित करता है। एसटीआई नीति सामाजिक, आर्थिक महत् के चुनिंदा क्षेत्रों में विज्ञान प्रौद्योगिकी और नवाचार में निवेश को बढ़ावा देगा। साथ ही आर्थिक और अन् नीतियों के बीच सामंजस् कायम करके सामाजिक-आर्थिक क्षेत्रों और एसटीआई प्रणाली के बीच की कमी को दूर किया जा सकेगा।
एसटीआई नीति के मुख् अवयव इस प्रकार हैं:

·         समाज के सभी समुदायों के बीच वैज्ञानिक सेाच के प्रसार को बढ़ावा देना।
·         समाज के सभी स्तर पर युवाओं के बीच विज्ञान के अनुप्रयोग, कौशल को बढ़ावा देना।
·         प्रतिभावान लोगों के लिए विज्ञान, शोध और नवाचार में करियर के लिहाज से पर्याप् आकर्षण।
·   विज्ञान के कुछ अहम क्षेत्रों में वैश्विक नेतृत् हासिल करने के लिए शोध और अनुसंधान के क्षेत्र में विश्वस्तरीय आधारभूत संरचना की स्थापना।
·         शोध और अनुसंधान के क्षेत्र में निजी भागीदारी को बढ़ाने के लिए एक अनुकूल वातावरण का निर्माण।
·         एक ठोस राष्ट्रीय नवाचार प्रणाली का सृजन आदि।


समाज के सभी समुदायों के बीच वैज्ञानिक सोच को बढ़ावा देने के साथ शोध और नवाचार को बढ़ावा देने के लिए उपयुक् वातावरण के निर्माण की आवश्यकता है। भारत में अनुसंधान और विकास में निवेश सकल घरेलू उत्पाद का एक प्रतिशत से भी कम है। इस क्षेत्र में निवेश को सकल घरेलू उत्पाद का 2 प्रतिशत किया जाना राष्ट्रीय लक्ष् रहा है। अगले पांच वर्षों में इस लक्ष् को हासिल करने के लिए निजी क्षेत्र का सहयोग जरूरी है। विज्ञान और प्रौद्योगिकी क्षेत्र के लिए सकल बजटीय सहायता पिछले दशक के दौरान पर्याप् रूप से बढ़ा है।

कुल पेज दृश्य