बुधवार, 12 फ़रवरी 2014

रेल बजट 2014

लोकसभा में रेलमंत्री मल्लिकार्जुन खड़गे द्वारा प्रस्तुत अंतरिम रेल बजट 2014-15 के प्रमुख बिंदु इस प्रकार हैं : -

उपलब्धियां

-कश्‍मीर की राष्‍ट्रीय परियोजना में हासिल की गई बड़ी उपलब्धि
-इस वित्‍त वर्ष में मेघालय राज्‍य और अरूणाचल प्रदेश की राजधानी रेलवे मानचित्र में शामिल करना
-असम में सामरिक महत्‍व की 510 कि.मी. लंबी रंगिया-मुरकोंगसेलेक लाइन का आसान परिवर्तन इस वित्‍त वर्ष में पूरा करना
-नई लाइन (2,207 कि.मी.), दोहरीकरण (2,758 कि.मी.) और विद्युतीकरण (4,556 कि.मी.), डीजल (64,875) के लिए ग्‍यारहवीं पंचवर्षीय योजना में रखे गए लक्ष्‍यों को पार कर लिया है।
-पूर्व और पश्चिम मार्गों पर डेडीकेटेड फ्रेट कोरीडोर सामरिक दृष्टि से महत्‍वपूर्ण लाइनों की क्षमता बढ़ाना
-छठे वेतन आयोग की सिफारिशें लागू किए जाने के कारण एक लाख करोड़ रूपये के अतिरिक्‍त भार को रेलवे ने अपने संसाधनों से पूरा किया
-2013-14 के दौरान, नई लाइनों, आसान परिवर्तन और दोहरीकरण के 1,532 कि.मी. पर यातायात चालू किया गया
-नए कारखानों, रेल पहिया कारखाना, छपरा, रेल कोच फैक्‍टरी, राय बरेली और डीजल कलपुर्जा कारखाना, दानकुनी में उत्‍पादन शुरू करना
-कश्‍मीर के प्रतिकूल मौसम के दौरान यात्रा के लिए विशेष रूप से डिजाइन किए गए सवारी डिब्‍बे
-अधिक भार उठाने वाले जंगरोधी हल्‍के 100 कि.मी. प्रति घंटे की रफ्तार वाले मालडिब्‍बों का सफलतापूर्वक निर्माण करना
-राष्‍ट्रीय खेलकूद आयोजनों में रेलवे खिलाडियों ने 23 स्‍पर्धाओं में खिताब जीते और 9 स्‍पर्धाओं में उप-विजेता रहे। विभिन्‍न अंतरराष्‍ट्रीय चैम्पियनशिपों में 2 स्‍वर्ण, 4 रजत और 3 कास्‍य पदक जीते।
-1992 में शुरू की गई एक आसान नीति के अंतर्गत 19,214 कि.मी. लाइनों को बड़ी लाइन में आसान परिवर्तन किया जिससे गुजरात, राजस्‍थान, मध्‍य प्रदेश, महाराष्‍ट्र, कर्नाटक उत्‍तर प्रदेश, असम और तमिलनाडु सहित विभिन्‍न राज्‍यों को लाभ हुआ।

संरक्षा और सुरक्षा में सुधार के लिए उपाय

-मानव रहित कोई समपार मौजूद नहीं। कुल 5,400 मानव रहित समपार समाप्‍त किए गए ऊपरी या निचले सडक पुलों का निर्माण करके 2,310 समपारों पर चौकीदार तैनात किए गए और 3,090 समपारों को बंद/ विलय किया गया।
-गाड़ी के आगमन के बारे में सड़क उपयोगकर्ताओं को अग्रिम में बेहतर श्रव्‍य दृष्‍य चेतावनी।
-देश में विकसित गाड़ी टक्‍कर रोधी प्रणाली की शुरूआत
-क्रैशवर्दीसवारी डिब्‍बों का विकास
-गत पांच वर्ष में, ग्रुप सी कोटियों में एक लाख से अधिक और पूर्ववर्ती ग्रुप डी कोटियों में 1.6 लाख व्‍यक्तियों को रोजगार प्रदान करना
-सभी रेलइंजनों में सतर्कता नियंत्रण उपकरण की व्‍यवस्‍था
-गाडि़यों में आग लगने की घटनाओं को रोकने के लिए विभिन्न उपाय
-अग्नि रोधी सामग्रियों का उपयोग
-इलैक्ट्रिक सर्किट के लिए मल्‍टी टियर सुरक्षा
-सभी डिब्‍बों में पोर्टेबली अग्निशामक
-पेन्‍ट्री कारों में एलपीजी के स्‍थान पर इन्‍डक्‍शन आधारित कुकिंग
-अति ज्‍वलनशील तथा विस्‍फोटक सामग्रियों की गहन रूप से जांच


वित्‍तीय स्थिति

-विभिन्‍न परियोजनाओं के लिए कर्नाटक, झारखंड, महाराष्‍ट्र, आंध्र प्रदेश तथा हरियाणा राज्‍यों के साथ लागत में भागीदारी की व्‍यवस्‍था द्वारा रेलवे अवसंरचना पर सहमति
-कई सार्वजनिक निजी भागीदारी (पीपीपी) परियोजनाएं विचाराधीन हैं
-विश्‍वस्‍तरीय रेल अवसंरचना के निर्माण का वित्‍तपोषण करने के लिए एफडीआई का सहारा लिया जा रहा है
-रेल भूमि विकास प्राधिकरण द्वारा अभी तक 937 करोड़ रूपए जुटाए गए हैं

आधुनिकीकरण एवं प्रौद्योगिकी की शुरूआत

-उच्‍च गति वाली गाड़ियां
-मुंबई- अहमदाबाद कोरीडोर के लिए भारत तथा जापान द्वारा संयुक्‍त रूप से व्‍यवहार्यता अध्‍ययन जिसका वित्‍तपोषण जापान इंटरनेशनल कॉर्पोंरेशन एजेंसी के सहयोग से किया जाना है
-मुंबई-अहमदाबाद कोरीडोर के लिए एसएनसीएफ द्वारा बिजनेस डवलेपमेंट स्‍टडी
-सेमी हाई स्‍पीड परियोजनाएं
-चुनिंदा मार्गों पर 160-200 कि.मी. प्रति घंटा की रफ्तार के लिए कम लागत वाले विकल्‍प की खोज

हरित पहल

-रेलवे ऊर्जा प्रबंधन कंपनी ने कार्य करना शुरू कर दिया है। पनचक्‍की तथा सौर उर्जा संयंत्रों की स्‍थापना की जानी है जिनके लिए नवीन एवं नवीकरण उर्जा मंत्रालय द्वारा 40 प्रतिशत की आर्थिक सहायता प्रदान की जाएगी।
-200 स्‍टेशन, 26 इमारतों की छतों तथा 2000 समपार फाटक शामिल किए जाने हैं।
-सरकार द्वारा दिए गए 112 पुरस्‍कारों में से रेलवे ने 22 पुरस्‍कार जीते।
-प्रमुख स्‍टेशनों के नजदीक रेलपथों के साथ-साथ ग्रीन कर्टेन ; आगरा और जयपुर में पायलट कार्य
-2500 सवारी डिब्‍बों में बायो-टॉयलेट की व्‍यवस्‍था, जिसे उत्‍तरोतर बढ़ाया जाएगा।

यात्री अनुकूलन पहल

-टिकटों की ई-बुकिंग के प्रति जनता की उत्‍साहवर्धक प्रतिक्रिया
-गाडियों की सही स्थिति तथा उनके चालन का पता लगाने के लिए ऑन-लाइन ट्रैंकिंग
-जनता भोजन के लिए 51 जन-आहार आऊटलेट ; स्‍टेशनों पर यात्रियों के लिए 48 एस्‍केलेटर शुरू कर दिए गए हैं तथा 61 और एस्‍केलेटर की स्‍थापना की जा रही है ; जुलाई 2014 से मुंबई में वातानुकूलित ईएमयू सेवाओं की शुरूआत ; महत्‍वपूर्ण गाडियों में आने वाले स्‍टेशन तथा पहुंचने का समय दर्शाने के लिए सूचना प्रदर्शन प्रणाली
-एसी चेयर कार तथा एक्‍जीक्‍यूटिव चेयर कार के यात्रियों के लिए अपग्रेडेशनयोजना का विस्‍तार किया गया परिवर्तनशील कीमत निर्धारण के जरिए मांग प्रबंधन
-दिल्‍ली मुंबई खंड पर अपेक्षाकृत कम अग्रिम आरक्षण अवधि और तत्‍काल के किराए की तुलना में तीव्रता से बढ़ने वाले प्रीमियम वाली प्रीमियम एसी स्‍पेशल गाड़ी की शुरूआत।

बाजार भागीदारी में वृद्धि

-वहन क्षमता + 8 टन मार्गों में मिसिंग लिंक को क्लियर करना, मालगाड़ी की गति बढ़ाना ; चल स्‍टॉक का अपग्रेडेशन ; गाडियों की लंबाई बढ़ाना, रेलवे की ओर यातायात आकर्षित करने और गाडियों का खाली चालन न्‍यूनतम करने के लिए दर-सूची और प्रोत्‍साहन योजनाएं।

रेल दर प्राधिकरण

-सभी सटैक होल्‍डरों को शामिल करने के लिए किरायों और मालभाड़े के निर्धारण के संबंध में सलाह देने के लिए स्‍वतंत्र रेल दर प्राधिकरण की स्‍थापना।

सूचना प्रौद्योगिकी

-पहल के रूप में शामिल हैं नकद स्‍वीकार करने वाली स्‍वचालित टिकट वेंडिंग मशीनों की संख्‍या में वृद्धि ; अनारक्षित खंडों में मोबाइल फोन पर टिकट बुकिंग, पीएनआर स्थिति को सिस्‍टम में अद्यतन करना, महत्‍वपूर्ण स्‍टेशनों पर विश्राम कक्षों की ऑनलाइन बुकिंग, चुनिंदा मार्गवर्ती स्‍टेशनों के लिए भोजन की ऑन लाइन बुकिंग, माल यातायात ग्राहकों के लिए ई-फॉरवर्डिंग नोट और रेलवे रसीदोंका इलैक्‍ट्रॉनिक माध्‍यक से प्रेषण।

राजस्‍व माल यातायात

-2013-14 के लिए 1047 मिलियन टन का लदान लक्ष्‍य से अधिक रहेगा।
-एम्‍पटी फ्लो डिस्‍काउंट स्‍कीम लागू की जानी है।
-वहन क्षमता + 9 टन + 1 टन मार्गों की योजना।
-आयातित पण्‍यों की कंटेनरों के माध्‍यम से ढुलाई पर कुछ प्रतिबंधों को हटाना।
-20 फुट कंटेनरों की वहन क्षमता में 4 टन की वृद्धि।
-पार्सल टर्मिनल और निर्धारित समय-क्रय वाली स्‍पेशल पार्सल गाडियां।
-दूध की ढुलाई बढाने के लिए पार्सल संबंधी नई नीति।
-पार्सल बिज़नेस के लिए हब एंड स्‍पोककी नई अवधारणा।
-स्‍पेशल पार्सल टर्मिनलों में तीसरी पार्टी के गोदाम पर विचार।

वित्‍तीय निष्‍पादन 2012-13

-लदान में संशोधित अनुमान के 1,007 मिलियन टन के लक्ष्‍य से अधिक 1,008 मिलियन टन का लदान।
-सामान्‍य राजकोष को 5,389 करोड़ रूपये के पूर्ण लाभांश का भुगतान।
-2012-13 में 90.2 प्रशित परिचालन अनुपात।
-सरकार के ऋण का 3,000 करोड़ रूपए के ब्‍याज सहित पूर्ण रूप से लौटाना।
-2,391 करोड़ रूपए के रेल वित्‍त शेष।

रेल सेवाओं को यात्रियों के अनुकूल बनाने के प्रयास

भारतीय रेल ने अपनी सेवाओं को हमेशा यात्रियों के अनुकूल बनाने के लिए उनमें सुधार लाने का प्रयास किया है। इसके परिणामस्‍वरूप रेल सेवाओं में उतरोत्‍तर सुधार हुआ है। टिकटों की ई-बुकिंग में आशातीत सफलता हासिल हुई है और यात्रियों को अपने घरों और कार्यालयों के आरामदायक माहौल से रेलवे से संपर्क करने का एक सुविधाजनक माध्‍यम मुहैया कराया है।

गाडि़यों के चालन की सही स्थिति का पता ऑनलाइन भी लगाया जा सकता है। इसके अलावा, जनता भोजन की बिक्री के लिए रेलवे स्‍टेशनों पर 51 जन-आहार आउटलेट स्‍थापित किए गए हैं, यात्रियों के लिए 48 एस्‍केलेटर चालू किए गए हैं और 61 स्‍थानों पर लगाए जा रहे हैं, मुंबई क्षेत्र में जुलाई, 2014 तक वातानुकूलित ईएमयू सेवा आरंभ की जा रही है, अगले स्‍टेशन और प्रत्‍याशित आगमन समय का संकेत देने के लिए महत्‍वपूर्ण गाडि़यों में पैसेंजर इन्‍फॉर्मेशन डिस्‍पले सिस्‍टम मुहैया कराया जा रहा है।

वर्ष 2006 में चालू की गई यात्रियों के अपग्रेडेशन की योजना को द्वितीय श्रेणी सिटिंग, एसी चेयर कार और एक्‍ज़ीक्‍यूटिव चेयर कार के यात्रियों तक विस्‍तार करने का प्रस्‍ताव है। इससे उच्‍चतर श्रेणी के खाली स्‍थानों का उपयोग किया जा सकेगा और निम्‍न श्रेणियों की मांग को भी अधिकाधिक पूरा किया जा सकेगा। वैष्‍णो देवी तक तीर्थयात्रियों को ले जाने के लिए उधमपुरकटरा खंड पर शीघ्र ही रेल सेवा प्रारंभ होगी देशभर के लाखों तीर्थयात्रियों को वैष्‍णो देवी दरबार सीधे पहुंचाने के लिए उधमपुर-कटरा खंड पर निर्माण का कार्य पूर्ण किया जा सकता है और इस खंड पर ट्रायल सेवा भी शुरू कर दी गई है। तीर्थ यात्रियों के लिए जल्‍द ही इस खंड पर सेवा प्रारंभ होने की संभावना है। कश्‍मीर की राष्‍ट्रीय परियोजना के अंतर्गत एक प्रमुख उपलब्धि के तौर पर पिछले वर्ष जून में बनिहाल से काजीगुंड के बीच सुरंग के माध्‍य से 11.2 किलोमीटर लंबी घाटी को जोड़ने वाली रेल लाईन संचालित की गई। इस सुरंग के माध्‍यम से अभियांत्रिकी के क्षेत्र में उत्‍कृष्‍ट कार्य का प्रदर्शन करते हुए 35 किलोमीटर लंबे मार्ग को घटाकर 17.5 किलोमीटर कर दिया गया। स्‍थानीय लोगों के लिए यह सुविधा हर मौसम में उपलब्‍ध है और घाटी के निवासियों के लिए वरदान साबित हो रही है।

रेल टैरिफ प्राधिकरण की स्‍थापना

लीक से हटकर किए गए निर्णय के अनुसार सरकार को किराया और मालभाड़ा निर्धारित करने के संबंध में सलाहदेने के लिए एक स्‍वतंत्र रेल टैरिफ प्राधिकरण की स्‍थापना की जा रही है। अब दरों का निर्धारण करना पर्दे के पीछे का कार्य नहीं होगा जहां उपयोगकर्ता गुप्‍त रूप से ही पता लगा सकते थे कि दूसरी ओर क्‍या हो रहा है। रेल टैरिफ प्राधिकरण रेलवे की आवश्‍यकताओं पर ही विचार नहीं करेगा, बल्कि एक पारदर्शी प्रक्रिया के माध्‍यम से सभी हितधारकों को भी शामिल करके एक नई कीमत निर्धारण व्‍यवस्‍था आरंभ करेगा। इससे किराया और मालभाड़ा अनुपात को बेहतर बनाने के लिए किराए और माल संरचनाओं को युक्तिसंगत बनाने का दौर आरंभ होगा और धीरेधीरे विभिन्‍न क्षेत्रों के बीच क्रॉस सब्सिडाइजेशन को कम किया जा सकेगा। उम्‍मीद है कि इससे रेलवे की वित्‍तीय स्‍थिति सुधारने में मदद मिलेगी और राजस्‍व प्रवाह की अस्‍थिरता कम करके स्‍थिरता लाई जा सकेगी।

19 नई रेल लाइनों का सर्वेक्षण प्रस्‍तावित

वर्ष 2014-15 के दौरान नई रेल लाइनों का सर्वेक्षण किया जायेगा। इस वर्ष के दौरान पांच मौजूदा लाइनों के
दोहरीकरण का भी सर्वेक्षण करने का प्रस्‍ताव है।

नई लाइनें

1. तिपतुर-डुड्डा
2. नीमच-सिंगोली-कोटा
3. दाहोद-मोडासा
4. कराड-कडेगांव-लेनारे-ख्‍यारसुंडी-अट्टापाडी-डिगांची-महूद-पंढरपुर
5. एटा-अलीगढ़
6. करनाल-यमुना नगर बरास्ता असांडीह
7. पुडुचेरी तक टिंडीवनम-नागरी नई लाइन का विस्‍तार
8. चल्‍लीकेरे-हिरीयूर-हुलीयूर-चिक्‍कानायकनहल्‍ली-केबी क्रॉस-तुरूवेकेरे-चन्‍ननारायणपटना
9. बेतूल-चांदुरबाजार-अमरावती
10. चकिया-केसरिया (कैठवालिया)
11. मिरज-कावठेमनखल-जठ बीजापुर
12. पुणे-बारामती बरास्‍ता सास्‍वद, जेजूरी, मोरेगांव
13. इटावा-ओरैया-भोगनीपुर-घाटमपुर-जहानाबाद-बाकेवर-बिंदकी रोड
14. हलदौर-धामपुर
15. बेलगाम-हुबली बरास्‍ता किटटुरू
16. पुणे-अहमदनगर बरास्‍ता केगडाउन कस्‍ती
17. बेल्‍लारी-लिंगासुगुर बरास्‍ता श्रीगुप्‍प, सिंधनौर
18. घाटनंदौर-श्रीगोंडा रोड/दौड बरास्‍ता कैज, मंजरसुम्‍भा, पटोदाऔर जामखेड
19. बिरारी-महातोनी-मारवाडा-मंदनपुर-ध्‍णामोनी-सागर

दोहरीकरण

1. लातूर रोड-कुर्डुवाडी
2. पुणे-कोल्‍हापुर
3. इलाहाबाद-प्रतापगढ़
4. सेलम-ओमालूर
5. परभनी-पर्ली


सुरक्षा उपाय

रेलवे की ओर से सुरक्षा को और सशक्‍त बनाने के लिए कई कदम उठाए गए हैं और कई अन्‍य कदम उठाए जा रहे हैं। इसके तहत पिछले पांच वर्षों के दौरान कुल 5400 मानव रहित समपार समाप्‍त किए गए, 2,310 समपारों पर चौकीदार की तैनाती और 3,090 समपारों को बंद/विलय/ऊपरी/ निचले सड़क पुलों के निर्माण किए गए। कुछ अन्‍य सुरक्षा उपाय भी किए गए हैं, जो निम्‍नलिखित हैं:

1.फील्‍ड परीक्षण सफलतापूर्वक पूरा होने के बाद भारतीय रेलवे पर स्‍वदेश निर्मित गाड़ी टक्‍कर रोधी प्रणाली (टीसीएएस) को शामिल करने की योजना।

2.गाड़ी के पहुंचने से पूर्व सड़क उपयोगकर्ताओं को चेतावनी देने के लिए दृश्य-श्रव्य माध्‍यम से उन्‍नत सुरक्षा प्रणाली की व्‍यवस्‍था करना।

3.टक्‍कर/दुर्घटना के दुर्भाग्यपूर्ण मामले में उच्च प्रभाव भार वहन करने वाले सक्षम क्रैशवर्दीसंरचनात्‍मक डिजाइन का विकास करना।

4.पिछले पाचं वर्षों के दौरान समूह ग श्रेणी में 1 लाख से ऊपर और पूर्व समूह घ श्रेणी में 1.6 लाख कर्मियों को
रोजगार देना।

5.सभी बिजली एवं डीज़ल चालित गाडि़यों में गाड़ी चालक की चौकसी एवं निगरानी करने एवं गाड़ी की सुरक्षा को सुनिश्चित करने के लिए सतर्कता नियंत्रक उपकरण (वीसीडी) का प्रावधान।

6.कॉम्प्रिहेंसिव फायर और स्‍मोक डिटेक्‍शन सिस्‍टम दो राजधानी एक्‍सप्रेस गाडि़यों में परीक्षण के आधार पर लगाया गया है। इनकी सफलता के आधार पर इस प्रणाली को अन्‍य महत्‍वपूर्ण यात्री गाडि़यों में भी लगाया जाएगा।

7.इसके अतिरिक्‍त, गाडि़यों में आग की घटनाओं को रोकने के लिए विभिन्‍न उपाए किए गए हैं जो निम्‍नानुसार हैं:-
(ए) यात्री डिब्‍बों में आग रोधी सामग्रियों का उपयोग।
(बी) बिजली सर्किट के लिए मल्‍टी टियर सुरक्षा।
(सी) वातानुकूलित डिब्‍बे, गार्ड-सह-लगेज ब्रेकवेन, पेंट्री कार और इंजनों में पोर्टेबल अग्निशामक का प्रावधान करना।
(डी) पेंट्री कारों में एलपीजी के स्‍थान पर बिजली इंडक्‍शन आधारित कुकिंग उपकरणों का प्रावधान करना।
(इ) पार्सल यान और गार्ड-सह-लगेज ब्रेक यानों में विस्‍फोटक एवं ज्‍वलन‍शील सामग्री के प्रति गहन जांच।

राज्‍य सरकारों के साथ रेल परियोजना में लागत भागीदारी

देशभर में रेल बुनियादी ढांचे के समग्र विकास के लिए कर्नाटक, झारखंड, महाराष्‍ट्र, आंध्रप्रदेश और हरियाणा की राज्‍य सरकारों ने अपने-अपने राज्‍यों में विभिन्‍न रेल परियोजनाओं की लागत में भागीदारी पर सहमति जताई है।

भारतीय रेलवे के विकास के लिए महत्‍वपूर्ण वित्‍त सहायता प्रदान करने के सरकारी प्रयास जारी रहने के अलावा रेलवे के बुनियादी ढांचे की आवश्‍यकताओं को पूरा करने के लिए निवेश किये जायेंगे, क्‍योंकि सकल बजटीय सहायता, आतंरिक रेलवे विकास और बाजार ऋण के माध्‍यम से इन आवश्‍यकताओं को पूरा नहीं किया जा सकता इसलिए रेलवे इस अंतर को दूर करने के लिए रेल बुनियादी ढांचे में निजी निवेश के लक्ष्‍य को प्राप्‍त करने की दिशा में कदम उठा चुकी है।


माल आमदनी का निर्धारित लक्ष्‍य बढ़ाकर 94,000 करोड़ रुपए किया गया

लदान संबंधी आशाजनक झुकाव को देखते हुए, लक्ष्‍य को 1047 मिलियन टन बजटीय लक्ष्‍य से बढ़ाकर लगभग 1052 मिलियन टन कर दिया गया है। हालांकि माल यातायात की औसत गमन दूरी कम होती जा रही है और इसके निर्धारित 644.5 किलोमीटर की तुलना में 622 किलोमीटर होने की संभावना है। रेलवे को विश्‍वास है कि माल आमदनी के निर्धारित लक्ष्‍य से अधिक लदान होगा जिसे बजट अनुमान में 93,554 करोड़ रूपए से बढ़ाकर 94,000 करोड़ रुपए कर दिया गया है। यात्री आम‍दनियों के रूझान पर विचार करते हुए 37,500 करोड़ रुपए का संशोधित लक्ष्‍य रखा गया है।

इनपुट लागत पर, विशेषकर एचएसडी तेल और विद्युत ऊर्जा दोनों इंधनों की लागत पर मुद्रास्‍फीति का दबाव निरंतर बना हुआ है। अनेक सुरक्षा श्रेणियों में बड़ी संख्‍या में नई भर्ती, रेल कर्मचारियों के लिए अतिरिक्‍त महंगाई भत्‍ता और रेलवे पेंशनधारियों के लिए महंगाई राहत के कारण रेलवे पर अनुमान से अधिक बोझ पड़ा है। इसके बावजूद, कठोर एवं गहन निगरानी के परिणामस्‍वरूप साधारण संचालन व्‍यय के अंतर्गत वृद्धि 560 करोड़ रुपए तक ही सीमित रखी गई है। बहरहाल, पेंशन आवंटन संबं‍धी आवश्‍यकताओं में 2,000 करोड़ रुपए की भारी वृद्धि हुई है। सामान्‍य राजस्‍व का लाभांश भुगतान 4% से 5% की दर से बढ़कर 1,591 करोड़ रुपए हो गया है।

आमदनी और व्‍यय के रूझान पर विचार करते हुए संशोधित योजना परिव्‍यय 59,359 करोड़ रुपए रखा गया है। रेलवे का परिचालन अनुपात 87.8% के बजट लक्ष्‍य की तुलना में 90.8% रहने की संभावना है। 2012-13 का खुशनुमा माहौल जारी है और पिछले दो वर्षों में उल्‍लेखनीय सुधार होने से चालू वर्ष में रेलवे के पास अधिशेष होगा और शेष निधियां चालू वित्‍तीय वर्ष के प्रारंभ में 2,391 करोड़ रुपए से बढ़कर मार्च 2014 के अंत तक 8,018 करोड़ रुपए हो जाएंगी. यह मुख्‍यत: संगठन द्वारा लागू किए गए कड़े वित्‍तीय अनुशासन के कारण ही संभव हुआ है।

माल यातायात वृद्धि के लिए उठाए गए कदम

2013-14 के दौरान भारतीय रेल के लिए 1,047 मिलियन टन लदान का लक्ष्‍य निर्धारित किया गया था। रेल यातायात की भागीदारी को बढ़ाने के लिए एक अभिनव ‘’एम्‍प्‍टी फ्लो डिस्‍काउंट स्‍कीम’’ तैयार की जा रही है और उसे शीघ्र ही लागू किया जायेगा। मौजूदा नेटवर्क में और वृद्धि करने के लिए अतिरिक्‍त यातायात की संचालन और माल आमदनी को प्रोत्‍साहित करने के लिए भारतीय रेल के सभी मार्गों पर सीसी+9+1’ (कैरिंग कैपेसिटी + 9 टन + 1 टन) के रूप में समानता लाने की योजना तैयार की जा रही है।

पिछले कुछ वर्षों में कंटेनर यातायात में तेजी से वृद्धि हुई है। आयातित मांग के निर्बाध परिवहन की सुविधा के लिए कंटेनरों के माध्‍यम से आयातित सामग्रियों के संचलन पर कुछ प्रतिबंधों में छूट दी गई है।

पार्सल यातायात के क्षेत्र में भी व्‍यापक संभावनाएं है जिनका लाभ उठाया जा सकता है। ऐसे लाभों को रेलवे की ओर आकर्षित करने के लिए एक सक्रिय नीति तैयार की गई है। पार्सल से संबंधित एक नई नीति तैयार की जायेगी जिससे देशभर में दूध के परिवहन को प्रोत्‍साहन मिलेगा। पार्सल व्‍यवसाय के लिए हब और स्‍पोक की एक नई संकल्‍पना आरंभ की जायेगी और विशेष पार्सल टर्मिनलों में तीसरी पार्टी गोदाम पर भी विचार किया जा रहा है।

पर्यावरण संरक्षण में रेलवे की पहल

पर्यावरण संरक्षण में भारतीय रेल की भूमिका की व्यापक रूप से सराहना की गई है। रेल परिवहन में ऊर्जा की किफायत के अलावा नवीकरण योग्य ऊर्जा का इस्तेमाल और स्‍वच्‍छ ऊर्जा परियोजनाओं को बढ़ावा देना रेलवे की प्राथमिकता है। रेलवे ऊर्जा प्रबंधन कंपनी ने कार्य शुरू कर दिया है और वह पन-चक्की, सौर ऊर्जा संयंत्रों की स्थापना की दिशा में कार्य कर रही है, जिसमें नवीन और नवीकरणीय उर्जा मंत्रालय से लगभग 40% सब्सिडी प्राप्त हुई है। शुरुआत में 200 रेलवे स्टेशनों, 26 इमारतों की छतों और 2,000 समपार फाटकों को इसमें शामिल किया जाएगा।

ऊर्जा संरक्षण के क्षेत्र में सरकार द्वारा वर्ष 2013 में दिए गए 112 पुरस्कारों में से 22 पुरस्कार रेलवे ने प्राप्त किए हैं। स्‍टेशनों के पहुंच मार्ग के निकट रेल-पथ के आस-पास सौंदर्यपूर्ण परिवेश बनाने के उद्देश्य से आगरा और जयपुर स्टेशनों पर पायलट आधार पर `ग्रीन कर्टेन` का निर्माण किया जा रहा है इसमें एक उपयुक्त दूरी तक रेलवे बाउंडरी के साथ-साथ समुचित ऊंचाई की आरसीसी बाउंडरी वाल का निर्माण, रेलपथ से चारदीवारी और स्टेशन के परिचलन क्षेत्र में लैंडस्केपिंग; और खुले में मलत्याग और कूड़ा-करकट फैलाने पर नियंत्रण रखने के लिए समुचित निगरानी की व्यवस्था शामिल है। इस पायलट परियोजना के सफल होने पर रेलवे नगरपालिकाओं और स्थानीय निकायों का समर्थन प्राप्त करने के अलावा कॉरपोरेट सामाजिक जिम्मेदारी संबंधी उपायों के जरिए कंपनियों को इस कार्यक्रम में भाग लेने के लिए आमंत्रित करने का इच्‍छुक हैं। सवारी डिब्बों के भीतर और रेलवे लाइनों पर साफ-सफाई की ओर विशेष ध्यान देने के लिए रेलवे द्वारा बायो-टॉयलेट डिजाइन अपनाया गया है और यह टेक्नोलॉजी लगभग 2,500 सवारी डिब्बों में शुरू की गई है। इस टेक्नोलॉजी का उतरोत्तर विस्तार करने का प्रस्ताव है।


2014-15 में कुल यातायात पावतियों का लक्ष्‍य 1.6 लाख करोड़ रूपये रखा गया

अर्थव्‍यवस्‍था में अनुकूल संकेतों के चलते माल यातायात के लक्ष्‍य में 49.7 मिलियन टन की वृद्धि करते हुए इसे 1,052 मिलियन टन से बढ़ाकर 1,101 मिलियन टन कर दिया गया है। 2014-15 में, माल, यात्री, अन्‍य कोचिंग और संड्री आदि से हुई आय के लिए बजटीय अनुमानों को क्रमश: 1,05,770 करोड़ रूपये, 45,255 करोड़ रूपये, 4,200 करोड़ रूपये और 5,500 करोड़ रूपये रखा गया है।

सामान्‍य कार्य व्‍ययों के लिए 1,10,649 करोड़ रूपये का प्रस्‍ताव किया गया है जो वर्तमान वर्ष के संशोधित अनुमानों से 13,589 रूपये ज्‍यादा है। 2013-14 के 24 हजार करोड़ के संशोधित अनुमानों की तुलना में पेंशन के लिए 27 हजार करोड़ का बजट रखा गया है। संशोधित अनुमान 2013-14 के 1,27,260 करोड़ रूपये की तुलना में 1,44,199 करोड़ रूपये के कुल संचलन व्‍यय का बजट रखा गया है।

वार्षिक योजना 2014-15

बजट अनुमान 2013-14 में 63,363 करोड़ रूपए और संशोधित अनुमान 2013-14 में 59,359 करोड़ रूपये की तुलना में वार्षिक योजना 2014-15 में 64,305 करोड़ रूपए के निवेश का उल्‍लेख किया गया है। सामान्‍य राजस्‍व से 30,223 करोड़ रूपए की बजटीय सहायता का प्रस्‍ताव है।

पूर्वोत्‍तर राज्‍यों के लिए रेल सम्‍पर्क सुविधा का विस्‍तार

पूर्वोत्‍तर राज्‍यों में रेल सम्‍पर्क सुविधा का विस्‍तार करते हुए इस वित वर्ष में सामरिक दृष्टि से महत्‍वपूर्ण 510 कि.मी. लंबी रंगिया-मुरकोंगसेलेक मीटर लाइन को बड़ी लाइन में बदलने का कार्य जारी है। इस वित्‍त वर्ष में हरमुटी-नाहरलागुन नई लाइन के शीघ्र ही शुरू होने के साथ ही आंध्र प्रदेश की राजधानी भी जल्‍द ही रेलवे के मानचित्र पर आ जाएगी। मेघालय भी इस वित्‍त वर्ष में रेलवे के मानचित्र पर होगा, क्‍योंकि दुधनोई-महंदीपठार पर नई रेलवे लाइन का कार्य मार्च 2014 तक पूरा कर लिया जायेगा।


नई फैक्ट्रियां और विशेष डिजाइन वाले कोच

वर्ष 2013-14 के दौरान तीन नई फैक्ट्रिया यथा छपरा में रेल व्‍हील प्‍लांट, रायबरैली में रेल कोच फैक्‍ट्री तथा दानपुनी में डीजल कम्‍पोनेट फैक्‍ट्री शुरू हो गई है और इनमें उत्‍पादन भी प्रारंभ हो गया है। कश्‍मीर घाटी में रेल यात्रा के लिए विपरीत मौसमी परिस्थितियों के लिए विशेष रूप से डिजाइन किये गये सवारी डिब्‍बों को शामिल किया गया है। इसके अलायवा पे लोड की वहन क्षमता वाले जंगरोधी और हल्‍के भार वाले तथा 100 किलोमीटर प्रति घंटा की रफ्तार की क्षमता वाले डिब्‍बे विकसित किये गये हैं।


रेलवे में सूचना प्रोद्योगिकी का उपयोग

सूचना प्रोद्योगिकी ने पिछले कुछ वर्षों में रेलवे ग्राहक सम्‍पर्क सूत्र में क्रांति ला दी है और यह प्रक्रिया जारी रहेगी। कुछ की गई पहल इस प्रकार होंगी

-नगदी स्‍वीकार करने वाले ऑटोमेटिक टिकट वेंडिंग मशीनें
-आरक्षण की सुविधा से रहित क्षेत्रों में मोबाइल फोन पर टिकट उपलब्‍ध कराना
-सिस्‍टम से एसएमएस के माध्‍यम से यात्रियों को पीएनआर की अद्यतन स्थिति देना
-गा‍ड़ी की चलने की अद्यतन स्थिति देना
-सभी प्रमुख स्‍टेशनों पर विश्रामालयों की ऑन-लाइन बुकिंग
-चुनिंदा मार्गवर्ती स्‍टेशनों के लिए गाडि़यों में भोजन की ऑन-लाइन बुकिंग
-माल ग्राहकों के लिए ई-फॉरवर्डिंग नोट और रेलवे रसीदों का इलेक्‍ट्रॉनिक हस्‍तांतरण जिससे उपयोगकर्त्‍ता अपने घरों एवं कार्यालयों से रेलवे के साथ अपना माल यातायात व्‍यवसाय कर सकेंगे
-भारतीय रेल में दावा निपटान प्रक्रिया का कंप्‍यूटरीकरण

रेलवे में आधुनिकीकरण और प्रौद्योगिकी की शुरूआत

भारतीय रेल का सदैव प्रयास रहा है कि उपलब्ध संसाधनों के भीतर आधुनिकीकरण और रेल उपयोगकर्ताओं को बेहतर सेवाएं मुहैया कराने के लिए नई प्रौद्योगिकी की शुरुआत की जाए। इस दिशा में हाल ही में भारी ढुलाई वाली माल गाड़ियों के चालन के लिए डेडीकेटेड फ्रेट कॉरिडोर, हाई स्‍पीड रेल परियोजना और सेमी हाई स्‍पीड परियोजना शुरू की गई है।

पूर्वी और पश्चिमी डेडीकेटेड फ्रेट कॉरिडोर परियोजना के कार्यान्वयन में अच्छी प्रगति हो रही है और अभी तक लगभग 1,100 किमी. के लिए सिविल निर्माण ठेके प्रदान कर दिए गए हैं। 2014-15 के दौरान 1,000 किमी. के लिए सिस्टम ठेकों के साथ-साथ सिविल निर्माण ठेके दिए जाने के लक्ष्य है।


मई 2013 में भारत और जापान के माननीय प्रधानमंत्रियों के बीच सहमति हुई है और मुंबई-अहमदाबाद हाई स्‍पीड गलियारे के लिए एक संयुक्त व्यवहारिकता अध्ययन किया गया, जिसे भारतीय रेल और जापान इंटरनेशनल कॉरपोरेशन एजेंसी (जेआईसीए) द्वारा वित्तपोषित किया गया है। इसे दिसंबर 2013 में शुरू किया गया है और यह 18 महीनों में पूरा हो जाएगा। इसी गलियारे के लिए फ्रेंच रेलवे (एसएनसीएफ) द्वारा किया जा रहा व्‍यापार विकास अध्ययन अप्रैल, 2014 में पूरा कर लिया जाएगा। इन अध्ययनों के बाद भारतीय रेल इस परियोजना को लागू करने से संबंधित आगे की कार्रवाई और रूप-रेखा निर्धारित करेगी। हाई स्‍पीड परियोजना के अलावा दिल्ली-आगरा और दिल्ली-चंडीगढ़ जैसे मौजूदा चुनिंदा मार्गों पर रफ्तार 160-200 किमी. प्रति घंटा करने के लिए भारतीय रेल कम लागत वाले विकल्प भी खोजना चाहती है।  

नडेला के बहाने शिक्षा पर विचार

माइक्रोसॉफ्ट के नए चीफ एग्जीक्यूटिव के पद पर सत्या नडेला की नियुक्ति से टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में भी भारतीय नेतृत्व और आंत्रप्रेनरशिप की क्षमता सिद्ध होती है। इसके साथ ही यह भारत की शिक्षा और आर्थिक व्यवस्था पर विचार करने पर बाध्य करती है।

नडेला शीर्ष पर मौजूद अकेले भारतीय नहीं हैं। बैंकिंग व फाइनेंस से लेकर कम्प्यूटर व आईटी और हार्ड तथा सॉफ्ट ड्रिंक्स बनाने के क्षेत्र तक दुनिया की बड़ी कंपनियों के शीर्ष पर भारतीय काम कर रहे हैं। शीर्ष 10 भारतीय सीईओ ऐसी कंपनियां चला रहे हैं जिनकी सालाना बिक्री 400 अरब डॉलर के आसपास है, जो भारत के कुल निर्यात से ज्यादा है।
इनमें 66 अरब डॉलर की सालाना आमदनी वाली पेप्सीको की इंदिरा नूयी शामिल हैं, जो 78 अरब डॉलर की माइक्रोसॉफ्ट से बहुत ज्यादा पीछे नहीं है। फिर पुणे में जन्मे इवान मेनएजिस पिछले ही साल दुनिया की सबसे बड़ी शराब निर्माता कंपनी डाजियो के सीईओ बने। बैकिंग और फाइनेंस तो हमेशा ऐसे क्षेत्र रहे हैं जहां भारतीय मूल के लोगों ने अपनी श्रेष्ठता साबित की है।

विक्टर मेनएजिस ने शीर्ष पर पहुंचने में विफल रहने के पूर्व सिटी बैंक में शानदार कॅरिअर बनाया। विक्रम पंडित सिटी बैंक में शीर्ष पर तो पहुंचे, लेकिन वे वहां कभी सहज नहीं हो पाए। विश्व बैंक, आईएमएफ और संयुक्त राष्ट्र तो हमेशा प्रतिभाशाली भारतीयों के लिए अच्छी जगह साबित हुए हैं। आज अंशु जैन डॉयचै बैंक के को-सीईओ, अजय बंगा मास्टर कार्ड के हैड हैं और पीयूष गुप्ता डीबीएस ग्रुप होल्डिंग्स को चला रहे हैं। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर शीर्ष पर मौजूद लोगों में रेकीट बेनकीजर के राकेश कपूर, ग्लोबल फाउंड्रिज के संजय झा और एडोब के शांतनू नारायण भी शामिल हैं।


रजत गुप्ता बहुत ही शानदार ढंग से मैकिंजी के एमडी बने और दो बार फिर चुने गए। वे और अनिल कुमार (आईआईटी मुंबई, इम्पीरियल कॉलेज लंदन और व्हार्टन स्कूल) मैकिंजी की शक्तिशाली जोड़ी थी। गुप्ता गोल्डमैन सैक, प्रॉक्टर एंड गैम्बल और अमेरिकन एयरलाइंस के बोर्ड सदस्य थे। उन्हें ऐसे पहले भारतीय के रूप में देखा गया, जिसने बहुराष्ट्रीय कंपनियों के सीईओ के रूप में नई जमीन तोड़ी।

इस तरह क्रिकेटप्रेमी नडेला बड़ी बहुराष्ट्रीय कंपनी के शीर्ष पर पहुंचने वाले न तो पहले और न अंतिम भारतीय हैं। उनकी नियुक्ति से कोई विवाद तो खड़ा नहीं हुआ, लेकिन हाई टेक्नोलॉजी की दुनिया में एक बहस जरूर छिड़ गई। यह कहा गया कि माइक्रोसॉफ्ट रास्ता भटक गई है। पर्सनल कम्प्यूटर के क्षेत्र में तो इसका दबदबा है पर स्मार्ट डिवाइस में इसका 15 फीसदी हिस्सा ही है, जबकि भविष्य इसी का है।

बड़ा सवाल यह है कि क्या 'टाइम' का यह दावा सही है कि 'ग्लोबल बॉसेस के लिए भारतीय उपमहाद्वीप आदर्श ट्रेनिंग ग्राउंड हो सकता है।' इस पर विचार करना होगा। बहुराष्ट्रीय कंपनियों के शीर्ष पर पहुंचने वाले ज्यादातर भारतीयों ने प्रारंभिक शिक्षा तो भारत में हासिल की, लेकिन उसके बाद आगे की शिक्षा के लिए विदेश चले गए, आमतौर पर अमेरिका।

रजत गुप्ता पहले आईआईटी दिल्ली गए और फिर उन्होंने हार्वर्ड से एमबीए किया। नूयी मद्रास क्रिश्चियन कॉलेज से आईआईएम कोलकाता गईं और फिर येल स्कूल ऑफ मैनेजमेंट पहुंचीं। यह जरूर है कि येल पहुंचने के पहले वे भारत में काम कर चुकी थीं। डॉयचै बैंक के जैन दिल्ली के श्रीराम स्कूल ऑफ कॉमर्स से  फाइनेंस में एमबीए करने मैसाचुसेट्स यूनिवर्सिटी, एमहस्र्ट पहुंचे। बेंगलुरू के स्कूल से नडेला मणिपाल इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी पहुंचे। फिर विस्कॉन्सिन-मिलवॉकी यूनिवर्सिटी में कम्प्यूटर विज्ञान का अध्ययन किया और  बाद में शिकागो के स्कूल ऑफ बिजनेस से एमबीए किया।

बेशक, भारत को यह श्रेय देना ही होगा कि उसने स्कूलों में ऐसे छात्र तैयार किए, जो होनहार हैं जिनमें दुनिया का सामना करने का माद्दा है। यह बात कम से कम अच्छे इंग्लिश स्कूलों में तालीम हासिल करने वाले बच्चों के बारे में तो कही ही जा सकती है। यदि आप अच्छे पढ़े-लिखे भारतीय किशोरों को देखें तो उस छात्र या छात्रा में एक आत्मविश्वास देखेंगे। उनमें सामने वाले की प्रतिष्ठा को लेकर ज्यादा चिंता किए बिना सवाल पूछने की तैयारी निश्चित ही नजर आती है। सवाल पूछने वाली यह युवा पीढ़ी कोई भी बात मानकर नहीं चलती। इसकी तुलना में इसी उम्र के जापानी छात्रों को लें तो वे अपने आपमें सिमटे नजर आएंगे और सवाल नहीं पूछेंगे।

ऐसे में कुछ लोग सवाल करते हैं कि यदि भारतीय इतना अच्छा काम कर रहे हैं तो स्वदेश लौटकर भारतीय कॉर्पोरेट जगत का रूपांतरण क्यों नहीं कर देते? एक सतही जवाब तो यह है कि कई पुरानी भारतीय कंपनियां परिवार चलाते हैं और वे विदेश में एमबीए करने वालों को घुसपैठ नहीं करने देते, किंतु यदि आपको अमेरिका जाने का मौका मिल जाए और एमबीए के जरिये (पीएचडी के नहीं, जो एक रोचक फर्क है) किसी बहुराष्ट्रीय कंपनी के शीर्ष पर जाने को मिल जाए तो क्या आप भारत लौटना चाहेंगे? यही बात होनहार ब्रिटिश ग्रेजुएट्स के बारे में भी सही है।

सवाल का जवाब यह है कि भारतीय अर्थव्यवस्था पर्याप्त रूप से खुली नहीं है और उसे ताजगी देने वाले सुधारों की जरूरत है। मैं सिर्फ खुदरा व्यापार को खुला करके बड़े विदेशी सुपर बाजारों को अनुमति देने की बात नहीं कर रहा हूं। यदि बाजार खोल दिए जाएं और उन्हें उचित तरीके से रेग्यूलेट किया जाए तो भारतीय कंपनियां विदेशी घुसपैठियों को पीछे छोड़ देंगी, जैसा थाईलैंड और जापान में हुआ, जहां स्थानीय लोगों ने विदेशी कंपनियों से सीखकर उन्हें पीछे छोड़ दिया।


किंतु भारत के सामाजिक व आर्थिक ढांचे की सबसे बड़ी खामी यह है कि सारे बच्चों के लिए अच्छी शिक्षा मुहैया नहीं है। मैं पिछले 30 सालों से उत्तरप्रदेश के एक गांव जाता रहा हूं। वहां अब जाकर स्कूल खुला है। जहां वे सारे बच्चे पढऩे आते हैं, जो फीस चुका सकते हैं। वहां छह साल से किशोर उम्र तक सारे आयु वर्ग के बच्चे पढ़ते हैं। मैं जब इन बच्चों के चमकते चेहरे देखता हूं तो लगता है कि उन्हें क्यों सीईओ या इससे भी ऊंचे पहुंचने का लक्ष नहीं रखना चाहिए। अन्य देशों के उदाहरणों से सबक मिलता है कि जब सारे लोगों को ऊंची तालीम हासिल होती है तो अर्थव्यवस्था फलती-फूलती है। भारत को चाहिए कि वह अपने बच्चों को अशिक्षा से निकालने के लिए और भी कुछ करे, ताकि जब कोई सत्या नडेला विदेशी जमीन पर अपना हुनर दिखाए तो हमें कोई आश्चर्य न हो।

प्रायोजित परिवर्तनों का नया उपकरण समाज सेवा का कारोबार

भ्रष्टाचार पर लड़ाई की राजनीति के कई पहलू और रंग पिछले दिनों से देश में दिखाई दे रहे हैं। यूं तो भ्रष्टाचार का देश दुनिया में एक लम्बा इतिहास है परन्तु भारतीय संदर्भ में भ्रष्टाचार की वर्तमान स्थिति में विकास के नव उदारवादी विचार के आगमन के साथ एक अनोखा और तेज उछाल दिखाई देना एक उल्लेखनीय घटना है। संयुक्त राष्ट्र संघ के भ्रष्टाचार विरोधी कंवेंशन में भारत में 2000 और 2008 के बीच भ्रष्टाचार में तेजी से हुई बढ़ोतरी को रेखांकित करना भी कमोबेश इसी विकास की उदारवादी और भूमंडलीय अवधारण से जोड़ता है। देश में भ्रष्टाचार के खिलाफ इस मुहिम का निशाना प्रमुखतया राजनीतिक और नौकरशाही का भ्रष्टाचार ही बन रहा है। परन्तु भ्रष्टाचार पर रोक की इस मुहिम में गैर सरकारी संगठनों की अनियमितताएं और भ्रष्टाचार लगातार नजरअंदाज किया जा रहा है। समाजसेवा का ऐसा कारोबार है जो आज के हालात में सेवा अथवा परमार्थ से अधिक आय की आसान राह के रूप में प्रचलित हो रहा है। गत वर्षों में विकलांग महिलाओं को  वस्त्रहीन घुमाने, उड़ीसा के गंजाम जिले में बच्चों की तस्करी का खुलासा, अपना घर और संपूर्णा के आंगन के घृणित कृत्य, संपूर्णा के कारोबार या बाबाओं के उजागर हुए सेक्स स्कैंडल कुछ ऐसे उदाहरण हैं जो समाज में व्याप्त सेवा कारोबार के कारनामों को अनियमितताओं और भ्रष्टाचार से भी कहीं आगे जघन्य अपराध की सीमाओं तक ले जाते हैं। बावजूद इन सब घटनाओं के गैरसरकारी संगठनों की गतिविधियों और कारनामों को सार्वजनिक करने या निगरानी करने के सवाल पर चारों ओर एक गहरी खामोशी व्याप्त है।

भारत संभवतया दुनिया में सबसे अधिक गैर सरकारी संगठनों वाला देश है जिसके प्रत्येक गांव के हिस्से में पांच पंजीकृत गैर सरकारी संगठन आते हैं और प्रत्येक 400 व्यक्तियों पर एक गैर सरकारी संगठन है और यह आंकड़ा पंजीकृत गैर सरकारी संगठनों का है गैर पंजीकृत सामाजिक, राजनीतिक और परंपरागत धार्मिक संगठन इससे अलग हैं। इसके अलावा यह आंकडे 2010 तक के पंजीकृत गैर सरकारी संगठनों के हैं जिनकी संख्या 2010 में 33 लाख थी और जिस तेजी से 2000 के बाद इनकी संख्या में उछाल आया है, यदि उससे वर्तमान संख्या का अनुमान किया जाए तो निश्चित ही यह संख्या 40 लाख या उससे भी अधिक होगी। अब इतनी बड़ी संख्या के बावजूद गैर सरकारी संगठनों की निगरानी की कोई व्यवस्था नहीं होना और समाज सेवा के इस काम से संबंधित जानकारी रखने के लिए किसी केन्द्रीकृत विभाग का नहीं होना शर्तिया अराजकता की ही स्थिति है और इसके राजनीतिक निहितार्थ भी हैं। यदि हम इन गैर सरकारी संगठनों की कार्यप्रणाली और उद्देश्यों का विश्लेषण करने के लिए केवल उत्तराखण्ड को ही एक उदाहरण मानें तो परिवर्तन के लुभावने नारे चुराने वाले गैर सरकारी संगठनों की प्रतिबध्दताओं का खुलासा हो जाएगा। उत्तराखण्ड में गांवों की संख्या लगभग सत्रह हजार के आसपास है और उसमें सीमा से सटे ढेरों ऐसे गांव हैं जिनमें रहने वाले लोगों की संख्या मात्र 50 से लेकर 250 तक ही रह गई है। इस सत्रह हजार गांवों वाले राय में गैर सरकारी संगठनों की संख्या 50 हजार से भी अधिक है अर्थात प्रत्येक गांव के हिस्से में लगभग तीन गैर सरकारी संगठन। देवभूमि कहलाने वाले इस पहाड़ी राय में गैर पंजीकृत धार्मिक और सामाजिक संगठनों की संख्या भी काफी बड़ी है और पंजीकृत गैर सरकारी संगठनों में अधिकतर पर्यावरण संरक्षण के लिए काम करने वाले हैं। परन्तु विडम्बना यह है कि जितनी संख्या में यह कुकरमुत्ते की तरह उगते तथाकथित पर्यावरण रक्षक गैर सरकारी संगठन अस्तित्व में आते जाते हैं, पहाड़ी राय उत्तराखण्ड में पर्यावरण तबाही की दास्तान उतनी ही भयावह और लम्बी होती जाती है। भयंकर पर्यावरण तबाही की मार झेल रहा उत्तराखण्ड आज लगातार होते भूस्खलन, बादल के फटने, पिघलते ग्लेशियरों के कारण भूख, गरीबी और पेयजल जैसी समस्याओं से त्रस्त है तो दूसरी तरफ समाज सेवा और पर्यावरण संरक्षण के नाम पर गैर संरकारी संगठनों की लूट का कारोबार तेजी से तरक्की पर है।

दरअसल गैर सरकारी संगठनों और कार्पोरेट के बीच संबंध के वर्तमान परिदृश्य की पटकथा 80 के दशक में विकास की नवउदारवादी अवधारणा के उदय के साथ ही लिखी जा चुकी थी। शीतयुध्द के दौरान अपना प्रभुत्च बनाये रखने का जो काम कभी साम्रायवादी शक्तियां जन संहारक हथियारों, अपनी सैन्य शक्ति और सीआईए के माध्यम से करती रही थीं वही काम 90 के दशक के बाद साम्रायवादी शक्तियों ने तथाकथित सामाजिक सेवा के इस कारोबार के माध्यम से किया है। दुनिया में अस्थिरता पैदा करने की मुहिम को हवा देने के लिए किये गए काम को अंजाम देने के लिए 1983 में अमेरिका ने नेशनल एंडोवमेंट फॉर डेमोक्रेसी (एनईडी) नाम का संगठन की स्थापना की। इस संगठन का काम दुनिया भर में चल रहे जनवादी आंदोलनों को आर्थिक मदद मुहैय्या करना था, जिसके लिए अमेरिकी कांग्रेस एनईडी को सालाना 100 मिलियन डालर की वित्तीय सहायता देती रही है। इस मदद के परिणामों की सार्थकता को एनईडी के पहले मुखिया एलेन विंस्टिन के बयान से समझा जा सकता है। 1991 में दिए गए एक साक्षात्कार में एलेन ने कहा था कि एनईडी का वही काम है जो आज से 20-25 वर्ष पहले सीआईए का हुआ करता था। दुनिया में तथाकथित जनवादी आंदोलनों को हवा देकर अस्थिरता पैदा करने के इस काम में अमेरिका के फ्रीडम हाउस ने भी महत्वपूर्ण भूमिका अदा की है। 2012 में शुरू हुए अरब बसंत की बुनियाद में इसी एनईडी और फ्रीडम हाउस की महत्ती भूमिका थी। अरब बसंत के नायकों को अमेरिका के इसी फ्रीडम हाउस में विभिन्न प्रकार से प्रशिक्षित किया गया था और यह प्रशिक्षण नवउदारवाद के अगुवा अमेरिका के लिए कितना महत्वपूर्ण था इस तथ्य को इससे ही समझा जा सकता है कि जब अरब बसंत के मिश्र के नायकों का एक प्रतिनिधिमंडल 2009 में जनवाद के प्रसार का यह प्रशिक्षण लेने अमेरिका गया तो उनके स्वागत के लिए स्वयं हिलेरी क्लिंटन फ्रीडम हाउस में उपस्थित थीं। पूरी दुनिया को आजादी और जनवाद की सीख देने वाले फ्रीडम हाउस को संचालित करने के लिए अमेरिकी स्टेट डिपार्टमेंट धन मुहैय्या कराता है। इसके अतिरिक्त एएफपी की अप्रैल 2011 में प्रकाशित रिपोर्ट भी इस तथ्य की पुष्टि करती है कि अमेरिकी सरकार इस तथाकथित जनवाद के प्रसार के लिए धन मुहैय्या कराती रही है। रिपोर्ट के अनुसार अमेरिकी सरकार ने अमेरिका द्वारा प्रशिक्षित इन तथाकथित सामाजिक कार्यकर्ताओं को मिश्र और टयूनिशिया की सरकारों से बचाने के लिए 50 मिलियन डालर खर्च किए थे। रिपोर्ट यह भी बताती है कि इसी प्रकार के कथित क्रान्तिकारी बदलावों के लिए अमेरिका ने दुनिया भर के 5000 लोगों को प्रशिक्षित किया और उसमें से सबसे बड़ी संख्या मध्यपूर्व के कार्यकर्ताओं की थी। केवल मध्यपूर्व ही नहीं दुनिया के कईं देशों में इस प्रकार की गतिविधियों को अमेरिकी प्रशासन ने न केवल प्रायोजित किया वरन् उसकी तैयारी और संचालन की पूरी पटकथा भी तैयार की है। सर्बिया के सत्ता पलटने और उसके बाद की अस्थिरता में ओटपोर नामक एनजीओ की भूमिका सर्वविदित है। इसके अतिरिक्त एक्शन ऐड और क्रिश्चियन ऐड जैसे प्रतिष्ठित गैर सरकारी संगठन की भूमिका पर भी दुनिया के कई देशों में सवाल उठते रहे हैं।


अब राजनीतिक भ्रष्टाचार को निशाना बनाने वाली गैर सरकारी संगठनों से गर्भनाल से जुड़ी स्वयंभू सिविल सोसायटी, अनियमितताओं की नींव पर खडे रहने वाले इस समाजसेवा क्षेत्र और कार्पोरेट सेक्टर को छोड़कर भ्रष्टाचार के खिलाफ  लड़ाई की बात करेगी तो शर्तिया इस संघर्र्ष की नीयत पर उंगलियां उठती ही रहेगी। वास्तव में नवउदारीकरण के साथ इस सामाजिक सेवा क्षेत्र का एक अटूट संबंध हैं। नई आर्थिक नीतियों से बनती और फैलती विषमताओं एवं असंतोष के बावजूद पिछले तीन दशक से भी अधिक समय से किसी बड़े जनांदोलन के नहीं बनने देने और ऐसी कोशिशों को लगातार खत्म करने में ही इन गैरसरकारी संगठनों के बनने और फैलने का रहस्य छुपा है। आर्थिक विकास की खगोलीय अवधारणा के पैरोकारों ने जनवादी जनांदोलनों के विकल्प के तौर पर ही गैर सरकारी संगठनों के सामाजिक सेवा क्षेत्र को जन्म दिया है। अन्यथा निगमीकृत विकास की विषमताओं के खिलाफ आवाज उठाने के लिए बडे निगमों द्वारा गैर सरकारी संगठनों को दान दिए जाने का कोई तर्क हो ही नहीं सकता है। क्योंकि यह गैर सरकारी संगठन ही हैं जो सड़क पर जिंदगी बसर करने लोगों के बेघर होने के कारण के सवाल को बेघरों के लिए टेंट और चादर जुटाने के सवाल में बदल देते हैं, यही तथाकथित सामाजिक सेवा क्षेत्र भूख के मौलिक सवाल को राय प्रायोजित रसोई चलाने में बदलता है और असंगठित क्षेत्र में न्यूनतम मजदूरी के बुनियादी कानूनी अधिकार का सवाल भी इन्हीं गैर सरकारी संगठनों की बदौलत सरकार द्वारा दिया जाने वाले बीमे या लाक्षणिक पेंशन में बदलकर जनांदोलनों की धार को कुंद करता है। बदनीयती के साथ पैदा और बड़े हुए इस गैर सरकारी संगठनों के कारोबार का वर्तमान सत्ता हथियाने की स्थिति में पहुंचना स्वाभाविक ही था परन्तु उससे भी खतरनाक है इस गैर सरकारी संगठनों के कारोबार को चलाने वाली स्वयंभू सिविल सोसायटी की मंशा है जो राजनीतिक भ्रष्टाचार पर तो मुखर है परन्तु सामाजिक सेवा क्षेत्र और कार्पोरेट की अनियमितताओं और भ्रष्टाचार पर बचकर निकल जाना चाहता है और एकदम खामोश भी है। परन्तु बिल्कुल हाशिए पर चली गई पारदर्शिता और सामाजिक राजनीतिक परिवर्तन की सकारात्मक और नेकनीयत मंशा को बचाए रखना है तो इसके लिए गैरसरकारी संगठनों और कार्पोरेट के बीच के अर्न्तसंबंध को समझते हुए उस पर अंकुश लगाने की पहल करनी ही होगी।

मंगलवार, 11 फ़रवरी 2014

भ्रष्टाचार नहीं, महंगाई बनेगी मुद्दा

हाल में हुए विधानसभा चुनाव में आम आदमी महंगाई की ही शिकायत कर रहा था। टीवी पर लोग आलू, प्याज, घी और दाल की कीमतें बताते नजर आते थे। हालांकि चुनावी पंडित हमेशा का चुनाव राग ही गा रहे थे, लेकिन कांग्रेस की हार में भ्रष्टाचार से ज्यादा महंगाई का हाथ रहा। हाल में महंगाई कुछ कम हुई हैं, लेकिन सभी दलों के लिए यह चेतावनी है कि आम आदमी महंगाई के दंश को भूलने वाला नहीं है और यह आगामी आम चुनाव में नजर आएगा।

अर्थशास्त्रियों को भी यह समझ में नहीं आ रहा है कि जब दुनियाभर में कीमतें स्थिर हैं तो भारत में उपभोक्ता वस्तुओं के दाम पिछले पांच सालों से 10 फीसदी प्रतिवर्ष की दर से क्यों बढ़ रहे हैं। यहां तक कि गरीब, उभरती अर्थव्यवस्थाओं में भी कीमतें भारत की तुलना में आधी दर से बढ़ रही हैं। मुद्रास्फीति एक जटिल अवधारणा है और इसके पीछे कई कारण होते हैं, लेकिन विशेषज्ञों को यह स्पष्ट हो गया है कि भारत में इसकी वजह वे ही खराब नीतियां हैं, जिनकी वजह से हमारी आर्थिक वृद्धि दर नीचे आई है। इन नीतियों ने उत्पादन बढ़ाए बिना भारी सरकारी खर्च को प्रोत्साहन दिया है। मतलब बाजार में चीजें कम हैं और पैसा बहुत उपलब्ध है। महंगाई की यही वजह है।

यूपीए-2 की इस सरकार ने ग्रामीणों की जेब में विशाल फंड रख दिए हैं। इस तरह पिछले पांच वर्ष में गांवों में मजदूरी 15 फीसदी प्रतिवर्ष की अप्रत्याशित दर से बढ़ी है। किसानों के लिए हर साल 'दिवाली धमाका' होता है। अनाज के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य, उर्वरक और बिजली के लिए भारी सब्सिडी, कई राज्यों में पानी-बिजली लगभग मुफ्त। इसके अलावा कर्ज माफी!

किसी फलती-फूलती अर्थव्यवस्था में मजदूरी का बढऩा अच्छी बात होती है, जब वे बढ़ती हुई मांग प्रदर्शित करती हों। कुछ हद तक भारत के लिए यह सही है, जहां 2011 तक आर्थिक वृद्धि और समृद्धि का 'स्वर्ण युग' रहा। इस बढ़ती हुई आय ने लोगों की खान-पान की आदतों को भी बदल दिया। अब वे अनाज कम और प्रोटीन, फल तथा सब्जियां ज्यादा खाने लगे। किंतु ग्रामीण मजदूरी में बढ़ोतरी 'मनरेगा' में फर्जी कामों का भी नतीजा है। ऐसे काम जिनसे कोई उत्पादकता नहीं बढ़ती। यदि यही पैसा कारखानों, सड़कों और बिजली संयंत्रों में लगाया गया होता तो नतीजा उत्पादकता के साथ नौकरियों में बढ़ोतरी के रूप में नजर आता। इसी तरह डीजल, उर्वरकों, बिजली और पानी पर सब्सिडी देने की बजाय यही पैसा उत्पादक चीजें निर्मित करने में लगाया जाता तो महंगाई पर लगाम लगती। लोगों को टिकाऊ रोजगार मिलता और उनका जीवनस्तर ऊंचा उठता।

महंगाई का समाधान है आर्थिक वृद्धि को लौटाना। सरकार को गलती का अहसास हो गया है, लेकिन बहुत देर हो चुकी है। अब यह हताशा में उन परियोजनाओं को हरी झंड़ी दिखाने की कोशिश कर रही है, जो बरसों से लाल और हरी फीताशाही में अटकी पड़ी है। किंतु निवेश को नौकरियों व आर्थिक वृद्धि में बदलने में वक्त लगेगा। मगर इस सरकार ने सैकड़ों परियोजनाएं रोककर क्यों रखीं? जवाब यह है कि पर्यावरण की रक्षा करने के लिए! अब   हर  सरकार  को  पर्यावरण  की रक्षा करनी होती है, लेकिन इसके लिए कोई सरकार 780 बड़ी परियोजनाएं नहीं रोकती और वह भी कई-कई बरस। जब से पर्यावरण मंत्री को हटाया गया है, अखबार उनके घर में पाई गईं दर्जनों फाइलों की धक्कादायक खबरों से पटे पड़े हैं। इन फाइलों को पर्यावरण मंत्रालय की मंजूरी मिल चुकी थी।

इन पर सिर्फ पर्यावरण मंत्री के दस्तखत होने थे। कई मामलों में तो ये फाइलें महीनों से दस्तखत का इंतजार कर रही थीं। यह स्तब्ध करने वाला तथ्य है कि कोई एक व्यक्ति पूरे राष्ट्र को कितना नुकसान पहुंचा सकता है, इसलिए अचरज नहीं कि भारत को बिनेस करने के लिहाज से निकृष्टतम देशों में शामिल किया जाता है। सौभाग्य से खाद्य पदार्थों में महंगाई पर तेजी से काबू पाने के कुछ तरीके हैं। एक तरीका तो यही है कि भारतीय खाद्य निगम के गोदामों में सड़ते अनाज में से कुछ लाख टन बाजार में जारी कर दिया जाए। इससे भारतीय खाद्य निगम पर से अनाज के भंडारण का बोझ तो कम होगा ही अनाज की कीमतें भी नीचे आएंगी।

दूसरा काम सरकार कृषि उत्पाद बाजार समितियों (एपीएमसी) को खत्म करने का कर सकती है, जो छोटे किसानों को संरक्षण देने की बजाय मंडियों में  थोक बाजार के कार्टेल की तरह काम करती हैं। कई अन्य खराब आर्थिक नीतियों की तरह एपीएमसी भी पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के समाजवादी दिनों का असर है।

थोक बाजार को मुक्त करने से व्यापारी और किसान आजादी से बिक्री और खरीदी कर सकेंगे, जिससे बाजार में स्पद्र्धा पैदा होगी। इससे किसानों को फायदा होने के साथ उपभोक्ता को भी सस्ता अनाज मिलेगा, क्योंकि सुपर मार्केट बिचौलियों को दरकिनार कर इसका फायदा ग्राहकों तक पहुंचाएंगे। अर्थशास्त्री बरसों से एपीएमसी को खत्म करने गुहार लगा रहे हैं। अब राहुल गांधी को इस तथ्य का पता चला है और उन्होंने इसमें खुद रुचि ली है। संभव है कांग्रेस शासित राज्यों में एपीएमसी खत्म हो जाए। हालांकि प्रभावशाली स्थानीय नेता एपीएमसी को नियंत्रित करते हैं। अब समय ही बताएगा कि राहुल गांधी इन ताकतवर निहित स्वार्थी तत्वों पर अंकुश लगा पाते हैं अथवा नहीं।

आम आदमी पार्टी को भी दिल्ली के पास आजादपुर मंडी में एपीएमसी को खत्म करने की पहली कार्रवाई करनी थी। यह फलों व सब्जियों की कीमतों पर लगाम लगाकर ग्राहकों को तत्काल राहत दे सकती थी, लेकिन इसने उलटा ही किया। इसने सुपर बाजारों में विदेशी निवेश को खत्म करने की कार्रवाई की, जिससे आम आदमी सस्ती चीजें मिलने की संभावनाओं से वंचित हो गया। उसे यह अहसास नहीं है कि दुनियाभर में आम आदमी ही सुपर बाजारों में खरीदी करता है, क्योंकि वहां उसे कम कीमत पर चीजें मिल जाती हैं। इसके अलावा 'आप' के समर्थक किसी गंदी सी किराना दुकान में काम करने की बजाय सुपर बाजारों में काम करना पसंद करेंगे।

हमारी तीन प्रमुख पार्टियों में से लगता है कि केवल कांग्रेस को यह समझ में आया है कि एपीएमसी सुधार और सुपर बाजारों में विदेशी निवेश से महंगाई को काबू में किया जा सकता है। भाजपा ने आम आदमी के खिलाफ और व्यापारी के पक्ष में भूमिका ली है।

यह तो खुदरा व्यापार में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की भी विरोधी है। बड़ी अजीब बात है कि 'आपका नेतृत्व अवसरों की तलाश कर रहे इसके महत्वाकांक्षी युवा समर्थकों की दृष्टि से नहीं सोच रहा है। यह तो पुराने वामपंथ के गरीबी वाले विचारों में फंसा हुआ है। वे विचार जिन्होंने भारत को अंडरअचीवर बनाए रखा। यह देखते हुए कि आगामी चुनाव में महंगाई का मुद्दा बड़ी भूमिका निभाएगा, क्या कांग्रेस अपनी अनुकूल स्थिति को वोटों में तब्दील कर पाएगी? अब यह तो वक्त ही बताएगा।




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