गुरुवार, 30 मई 2013

ग्रामीण भंडार योजना

यह सर्वविदित है कि छोटे किसानों की आर्थिक सामर्थ्‍य इतनी नहीं होती कि वे बाजार में अनुकूल भाव मिलने तक अपनी उपज को अपने पास रख सकें। देश में इस बात की आवश्‍यकता महसूस की जाती रही है कि कृषक समुदाय को भंडारण की वैज्ञानिक सुविधाएं प्रदान की जाएं ताकि उपज की हानि और क्षति रोकी जा सके और साथ ही किसानों की ऋण संबंधी जरूरतें पूरी की जा सकें। इससे किसानों को ऐसे समय मजबूरी में अपनी उपज बेचने से रोका जा सकता है जब बाजार में उसके दाम कम हों। ग्रामीण गोदामों का नेटवर्क बनाने से छोटे किसानों की भंडारण क्षमता बढ़ाई जा सकती है। इससे वे अपनी उपज उस समय बेच सकेंगे जब उन्‍हें बाजार में लाभकारी मूल्‍य मिल रहा हो और किसी प्रकार के दबाव में बिक्री करने से उन्‍हें बचाया जा सकेगा। इसी बात को ध्‍यान में रख कर  2001-02 में ग्रामीण गोदामों के निर्माण/जीर्णोद्धार के लिए ग्रामीण भंडार योजना नाम का पूंजी निवेश सब्सिडी कार्यक्रम शुरू किया गया था।

इस कार्यक्रम के मुख्‍य उद्देश्‍यों में कृषि उपज और संसाधित कृषि उत्‍पादों के भंडारण की किसानों की जरूरतें पूरी करने के लिए ग्रामीण क्षेत्रों में अनुषंगी सुविधाओं के साथ वैज्ञानिक भंडारण क्षमता का निर्माण; कृषि उपज के बाजार मूल्‍य में सुधार के लिए ग्रेडिंग, मानकीकरण और गुणवत्‍ता नियंत्रण को बढ़ावा देना; वायदा वित्‍त व्‍यवस्‍था और बाजार ऋण सुविधा प्रदान करते हुए फसल कटाई के तत्‍काल बाद संकट और दबावों के कारण फसल बेचने की किसानों की मजबूरी समाप्‍त करना; कृषि जिन्‍सों के संदर्भ में राष्‍ट्रीय गोदाम प्रणाली प्राप्तियों की शुरूआत करते हुए देश में कृषि विपणन ढांचा मजबूत करना शामिल है। इसके जरिए निजी और सहकारी क्षेत्र को देश में भंडारण ढांचे के निर्माण में निवेश के लिए प्रेरित करते हुए कृषि क्षेत्र में लागत कम करने में मदद की जा सकती है।

ग्रामीण गोदाम के निर्माण की परियोजना देशभर में व्‍यक्तियों, किसानों, कृषक/उत्‍पादक समूहों,प्रतिष्‍ठानों, गैर सरकारी संगठनों, स्‍वयं सहायता समूहों, कम्‍पनियों, निगमों, सहकारी संगठनों,परिसंघों और कृषि उपज विपणन समिति द्वारा शुरू की जा सकती है।

स्‍थान :

इस कार्यक्रम के अंतर्गत उद्यमी को इस बात की आजादी है कि वह अपने वाणिज्यिक निर्णय के अनुसार किसी भी स्‍थान पर गोदाम का निर्माण कर सकता है। परंतु गोदाम का स्‍थान नगर निगम क्षेत्र की सीमाओं से बाहर होना चाहिए। खाद्य प्रसंस्‍करण उद्योग मंत्रालय द्वारा प्रोन्‍नत फूड पार्कों में बनाए जाने वाले ग्रामीण गोदाम भी इस कार्यक्रम के अंतर्गत सहायता प्राप्‍त करने के पात्र हैं।

आकार :

गोदाम की क्षमता का निर्णय उद्यमी द्वारा किया जाएगा। लेकिन इस कार्यक्रम के अंतर्गत सब्सिडी प्राप्‍त करने के लिए गोदाम की क्षमता 100 टन से कम और 30 हजार टन से अधिक नहीं होनी चाहिए। 50 टन क्षमता तक के ग्रामीण गोदाम भी इस कार्यक्रम के अंतर्गत विशेष मामले के रूप में सब्सिडी के पात्र हो सकते हैं, जो व्‍यवहार्यता विश्लेषण पर निर्भर करेंगे। पर्वतीय क्षेत्रों में 25 टन क्षमता के आकार वाले ग्रामीण गोदाम भी सब्सिडी के हकदार होंगे।

वैज्ञानिक भंडारण के लिए शर्तें :

कार्यक्रम के अंतर्गत निर्मित गोदाम इंजीनियरी अपेक्षाओं के अनुरूप ढांचागत दृष्टि से मजबूत होने चाहिए और कार्यात्‍मक दृष्‍टि से कृषि उपज के भंडारण के उपयुक्‍त होने चाहिए। उद्यमी को गोदाम के प्रचालन के लिए लाइसेंस प्राप्‍त करना पड़ सकता है, बशर्ते राज्‍य गोदाम अधिनियम या किसी अन्‍य सम्‍बद्ध कानून के अंतर्गत राज्‍य सरकार द्वारा ऐसी अपेक्षा की गई हो। 1000 टन क्षमता या उससे अधिक के ग्रामीण गोदाम केंद्रीय भंडारण निगम (सीडब्‍ल्‍यूसी) से प्रत्‍यायित होने चाहिए।

 ऋण से सम्‍बद्ध सहायता :

इस कार्यक्रम के अंतर्गत सब्सिडी संस्‍थागत ऋण से सम्‍बद्ध होती है और केवल ऐसी परियोजनाओं के लिए दी जाती है जो वाणिज्यिक बैंकों, क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों, राज्‍य सहकारी बैंकों,राज्‍य सहकारी कृषि एवं ग्रामीण विकास बैंकों, कृषि विकास वित्‍त निगमों, शहरी सहकारी बैंकों आदि से वित्‍त पोषित की गई हों।

कार्यक्रम के अंतर्गत सब्सिडी गोदाम के प्रचालन के लिए कार्यात्‍मक दृष्टि से अनुषंगी सुविधाओं जैसे चाहर दिवारी, भीतरी सड़क, प्‍लेटफार्म, आतरिक जल निकासी प्रणाली के निर्माण, धर्मकांटा लगाने, ग्रेडिंग, पैकेजिंग, गुणवत्‍ता प्रमाणन, वेयरहाउसिंग सुविधाओं सहित गोदाम के निर्माण की पूंजी लागत पर दी जाती है।

वायदा ऋण सुविधा

इन गोदामों में अपनी उपज रखने वाले किसानों को उपज गिरवी रख कर वायदा ऋण प्राप्‍त करने का पात्र समझा जाएगा। वायदा ऋणों के नियम एवं शर्तों, ब्‍याज दर, गिरवी रखने की अवधि,राशि आदि का निर्धारण रिजर्व बैंक/नाबार्ड द्वारा जारी दिशा निर्देशों और वित्‍तीय संस्‍थानों द्वारा अपनाई जाने वाली सामान्‍य बैंकिंग पद्धतियों के अनुसार किया जाएगा।

सब्सिडी

सब्सिडी की दरें इस प्रकार होंगी :-

क) अजा/अजजा उद्यमियों और इन समुदायों से सम्‍बद्ध सहकारी संगठनों तथा पूर्वोत्‍तर राज्‍यों,पर्वतीय क्षेत्रों में स्थित परियोजनाओं के मामले में परियोजना की पूंजी लागत का एक तिहाई (33.33 प्रतिशत) सब्सिडी के रूप में दिया जाएगा, जिसकी अधिकतम सीमा 3 करोड़ रुपये होगी।

ख) किसानों की सभी श्रेणियों, कृषि स्‍नातकों और सहकारी संगठनों से सम्‍बद्ध परियोजना की पूंजी लागत का 25 प्रतिशत सब्सिडी दी जाएगी जिसकी अधिकतम सीमा 2.25 करोड़ रुपये होगी।

ग) अन्‍य सभी श्रेणियों के व्‍यक्तियों, कंपनियों और निगमों आदि को परियोजना की पूंजी लागत का 15 प्रतिशत सब्सिडी दी जाएगी जिसकी अधिकतम सीमा1.35 करोड़ रुपये होगी।

घ) एनसीडीसी की सहायता से किए जा रहे सहकारी संगठनों के गोदामों के जीर्णोद्धार की परियोजना लागत का 25 प्रतिशत सब्सिडी दी जाएगी।

ड.) कार्यक्रम के अंतर्गत सब्सिडी के प्रयोजन के लिए परियोजना की पूंजी लागत की गणना निम्‍नांकित अनुसार की जाएगी :-

क)   1000 टन क्षमता तक के गोदामों के लिए वित्‍त प्रदाता बैंक द्वारा मूल्‍यांकित परियोजना लागत या वास्‍तविक लागत या रुपये 3500 प्रति टन भंडारण क्षमता की दर से आने वाली लागत, इनमें जो भी कम हो;

ख)  1000 टन से अधिक क्ष्‍ामता वाले गोदामों के लिए  :- बैंक द्वारा मूल्‍यांकित परियोजना लागत या वास्‍तविक लागत या रुपये 1500 प्रति टन की दर से आने वाली लागत, इनमें जो भी कम हो।

वाणिज्यिक/सहकारी बैंकों और क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों द्वारा वित्‍त पोषित परियोजनाओं के मामले में सब्सिडी नाबार्ड के जरिए जारी की जाएगी। यह राशि वित्‍तप्रदाता बैंक के सब्सिडी रिजर्व निधि खाते में रखी जाएगी और कर से मुक्‍त होगी।

PTI

बुधवार, 29 मई 2013

भारतीय समाज में बढ़ता अपराधीकरण

मौजूदा परिवेश में मानव-समाज अनेक जटिल समस्याओं से गुजर रहा है.. जिनमें सबसे प्रमुख समस्या है अपराध... हालांकि अपराध जैसी समस्याएं कोई नई बात नहीं है, इसकी आशंका तब से है जब से मानव समाज की रचना हुई है.. इन्हीं समस्याओं से निपटने के लिए मानव ने अपने लिए नैतिक आदर्श और सामाजिक नियम बनाया, जिसका पालन करना प्रत्येक मनुष्य का 'धर्म' बताया गया है.. किंतु तब अपराध की घटनाएं यदा-कदा सुनी जाती थी और अपराध की प्रवृति भी आज से इतर थी.. लेकिन आज भौतिकवाद की इस दुनियां में ऐसा प्रतीत हो रहा है मानों अपराध का ही सामाजीकरण हो रहा है, लोगों में इंसानियत मर चुकी है, संस्कार नष्ट हो गये हैं, नैतिकता दम तोड़ गयी है और ईमानदारी व वफादारी समाप्त हो गयी है.. बुद्धिजीवी और सामाजिक सरोकार रखने वाले लोगों का दायरा सिमट गया है और वे एकदम हाशिये पर जा चुके हैं.. कुटिल, अपराधी और क्रूर लोगों को आदर एवं सम्मान मिल रहा है.

अब सवाल उठता है कि इस विकसित सभ्य समाज में अपराध जैसी जटिल समस्या के पीछे क्या कारण है.. क्या यदि अपराधियों को फांसी हो जाए, पुलिस बल की संख्या पर्याप्त हो जाए और प्रशासन सख्त हो जाए, तो क्या अपराध बंद हो जाएगा? नहीं.. लोग अपराध करने के लिए नए-नए तरीके निकाल लेंगें... क्योंकि इनके पीछे मुख्य कारण है उनकी दूषित मानसिकता.. दूषित मानसिकता का कारण है समाज में नैतिक और आध्यात्मिक मूल्यों का पतन और इन मूल्यों के अभाव के पीछे कारण है जीवन से धर्म का निकल जाना..

आपको मालूम है कि धर्म एक प्रकार का आचार संहिता है, जिसके आधार पर मानव अपने अंदर उच्च आदर्शों को स्थापित करता है.. किंतु आज हमारे समाज का मुख्य लक्ष्य है पैसा कमाना.. क्योंकि ये भौतिक सुख-सुविधा देने में समर्थ है.. बच्चों के माता-पिता और उनके शिक्षक का ध्यान केवल इस बात पर है कि वे अपने परीक्षा में अच्छा नंबर लाएं, अच्छी नौकरी पाएं और ज्यादा से ज्यादा पैसा कमाएं.. क्योंकि वर्तमान समाज उन्हें ही आदर और सम्मान देता है... जबकि यह सर्वविदित है कि आज के बच्चे ही कल के भविष्य हैं.. इनके ही संस्कार और आदर्शों की बुनियाद पर देश की दिशा और दशा तय होती है.. इसके बावजूद भी आज बच्चों को न तो विद्यालय में ही नैतिकता का पाठ पढ़ाया जाता है और न ही घरों में, जिससे कि वे एक अच्छे नागरिक बन सकें.. आज के बच्चों का आदर्श स्वामी विवेकानंद और महात्मा गांधी नहीं बल्कि बहुत पैसा कमाने वाला व्यक्ति होता है, चाहे पैसे किसी तरीके से कमाता हो.. इन बातों पर न केवल माता-पिता को बल्कि सरकार को भी ध्यान देने की जरुरत है...

वर्तमान में हम पश्चिमी सभ्यता का अंधानुकरण करते हुए अपने राष्ट्र का गौरव और महिमा भूल रहे हैं.. जबकि हमारे देश के अच्छे चरित्र में अनेक गुण समाहित हैं.. यहां पराई स्त्री को उसके आयु के आधार पर उसे बहन, बेटी या मां के रुप में देखना धर्म माना गया है.. किंतु आज वैज्ञानिक युग में विज्ञान के आधार पर महिला केवल महिला है, वह संभोग के लिए बनी है, वह चाहे दो वर्ष की नन्हीं सी बालिका ही क्यों न हो... और आए दिन हमें इस तरह की दुर्घटनाओं का सामना भी करना पड़ता है, जो कि न केवल अपराध है बल्कि मानवीय बर्बरता है.. हमें अपने समाज को इस दंश से बचाने के लिए अपने अंदर उच्च आदर्शों को समाहित करना होगा.. इन उच्च आदर्शों में अनेक आदर्श समाहित हैं, जिनमें से एक है संभोग की सीमाएं.. यदि ये सीमाएं बनी रहें तो समाज स्वयं ही इस प्रकार की दुर्घटनाओं से बच जाएगा.. पुलिस या प्रशासन के भय से इसे नहीं रोका जा सकता.. अत: समाज में उच्च आदर्शों की स्थापना आवश्यक है..

हैरानी कि तो बात ये है कि जिस देश में हर पराई स्त्री में मां, बहन, बेटी का स्वरुप देखे जाने की प्रथा है उस देश की आज सबसे ज्वलंत समस्या है बलात्कार रूपी दुष्कर्म.. क्या इसी भारत की कल्पना भगत सिंह और गांधी ने की थी.. क्या इसी भारत के लिए महज 19 साल की अवस्था में खुदीराम बोस फांसी पर चढ़े? नहीं.. अतः हमें अपने समाज को स्वस्थ और सभ्य बनाने के लिए नई पीढ़ी को अच्छे संस्कार और उच्च आदर्शों से समाहित करना होगा.. अपराध को रोकने के लिए कठोरता एवं दंड आवश्यक तो है, परंतु उनके साथ-साथ दूषित मन को परिष्कृत करना भी आवश्यक है..

भारतीय प्रतिस्‍पर्धा आयोग

मुक्त एवं निष्पक्ष प्रतिस्पर्धा किसी भी सक्षम बाजार अर्थव्यवस्था  के स्तंभों में से एक है। वैश्विक अर्थव्यवस्था में प्रतिस्पर्धा एक संचालक शक्ति बन गई है। मई 19, 2009 से भारत में  व्यापार करने के प्रतिमान बदल गए। इस दिन भारत के प्रतिस्पंर्धा आयोग द्वारा प्रतिस्पर्धा अधिनियम लागू किया गया। करीब चार वर्षों के संक्षिप्ति अस्तित्वं के दौरान सीसीआई ने उल्लेखनीय कार्य किए हैं। अस्तित्व अवधि कम होने के बावजूद प्रतिस्पर्धा कानून अत्यंत महत्‍वपूर्ण है क्योंए कि यह आर्थिक विकास और आर्थिक कल्याण के बढ़ते स्तरों के लिए एक ब्लॉक का निर्माण करता है।

भारत में प्रतिस्पर्धा कानून का क्रमि‍क विकास

भारत विकासशील देशों में प्रथम है, जिसने 1969 में एकाधिकार एवं प्रतिबंधित व्यापार पद्धतियां (एमआरटीपी) अधिनियम के रूप में प्रतिस्पर्धा कानून बनाया। एमआरटीपी अधिनियम आर्थिक शक्ति के संकेंद्रण को रोकने,प्रतिबंधात्मेक या अनुचित व्या पार पद्धतियों पर रोक लगाने और एकाधिकारों पर नियंत्रण करने के लिए तैयार किया गया था। इसके बाद वर्ष 1991 भारत के आर्थिक विकास में मील का पत्थक सिद्ध हुआ। नए भारत को नए नियमों की आवश्य1कता थी। अत: नए प्रतिस्पकर्धा कानून की आवश्यतकता पड़ी। तदनुरूप 2002 में प्रतिस्प र्धा अधिनियम पारित किया गया और 2007 में संशोधित किया गया। भारतीय प्रतिस्पर्धा  आयोग (सीसीआई) की स्थापना एक स्वायत्त निकाय के रूप में 1 मार्च, 2009 को की गई, जिसमें एक अध्यक्ष और छह सदस्य शामिल हैं। उच्चततम न्याकयाल में अपील के लंबित रहते मई, 2009 में एक अपील निकाय के रूप में प्रतिस्पंर्धा अपील न्यायाधिकरण भी स्थापित किया गया। तत्पश्चात एमआरटीपी अधिनियम निरस्त् कर दिया गया। उस अधिनियम के अंतर्गत स्थासपित एमआरटीपी आयोग को समाप्त् कर दिया गया और बकाया मामले सीसीआई को हस्तांतरित कर दिए गए। विलय और अधिग्रहण संबंधी धाराएं 5 और 6 जून, 2011 में अधिसूचित की गईं।

पिछले 4 वर्षों के दौरान गतिविधियां

मई, 2009 में प्रतिस्पर्धा विरोधी समझौतों और प्रभुत्व के दुरुपयोग से संबंधित धाराएं 3 और 4 के प्रावधानों की अधिसूचना जारी होने के बाद से सीसीआई के विचारार्थ 350 से अधिक मामले सामने आए जिनमें से 260 से अधिक मामलों में अंतिम आदेश पारित किए जा चुके हैं। प्रवर्तन के रूपों में प्रतिस्पर्धा विरोधी व्यापक मुद्दे शामिल हैं, जैसे उत्पादक संघ, बोली बढ़ोतरी, प्रभुत्व् का दुरुपयोग, बाजार पर्यन्त मुद्दे आदि।
प्रतिस्प‍र्धा अधिनियम की धाराओं 5 और 6 के अंतर्गत 120 से अधिक नोटिस प्राप्त  किए गए हैं और उनके निपटान की दर 95 प्रतिशत से अधिक रही है। सभी नोटिसों का निपटारा स्वनिर्धारित 30 दिन की समय-सीमा के भीतर किया गया जबकि कानून में नोटिसों के निपटान के लिए 210 दिन तक की अवधि की अनुमति है।

सीसीआई के विभिन्न  आदेशों के अंतर्गत कवर किए जाने वाले प्रमुख क्षेत्र

इस अधिनियम के अंतर्गत किए जाने वाले विविध क्षेत्रों में बुनियादी ढांचा, वित्त, मनोरंजन, आईटी, दूर संचार,नागर विमानन, ऊर्जा, बीमा, यात्रा, ऑटमोबील मैन्युफैक्च्रिंग, भू संपत्ति और फार्मास्युोटिकल्स, आदि शामिल हैं।

देश के आर्थिक विकास के लिए निर्माण उद्योग में सीमेंट एक महत्वपूर्ण निवेश है। सीसीआई ने 11 सीमेंट विनिर्माताओं और उनके व्यादपार संगठन पर करीब 6700 करोड़ रुपये का जुर्माना लगाया क्योंकि वे एक उत्पादक संघ की तरह व्यावहार कर रहे थे।

सीमेंट विनिर्माताओं और उनके व्यापार संगठन ने बाद में कोम्पैट में अपील करने का फैसला किया। कोम्पैट ने मामले की सुनवाई जारी रहते सीमेंट कंपनियों को सीसीआई द्वारा लगाए गए जुर्माने की 10 प्रतिशत राशि जमा कराने का आदेश दिया। देश में प्रतिस्पर्धा कानून के प्रवर्तन की प्रक्रिया में यह एक महत्वपूर्ण घटना है।

इससे पहले, उपभोक्ताओं पर व्यापक प्रभाव डालने वाले एक अन्य मामले में आयोग ने भू संपत्ति व्यापार की एक बड़ी कम्पनी डीएलएफ पर करीब 630 करोड़ रुपये का जुर्माना लगाया था। यह पाया गया था कि डीएलएफ ने अपने प्रभुत्व का दुरुपयोग करते हुए अपार्टमेंट मालिकों पर मनमानी और अनुचित शर्तें लागू की थीं। बाद में सीसीआई ने एक आदेश जारी करते हुए कंपनियों द्वारा निवेशकों के साथ हस्ताक्षरित समझौते की कार्य शर्तों में संशोधन किया था ताकि विक्रेता और क्रेता के बीच उचित एवं पारदर्शी कार्य शर्तें सुनिश्चित की जा सकें। यह आदेश भू संपत्ति क्षेत्र में उपभोक्ताओं के हितों की द्रष्टि से परिवर्तन का अग्रदूत सिद्ध हुआ।

 स्वत: संज्ञान कार्य

सीसीआई प्राप्त सूचनाओं के आधार पर मामलों की सुनवाई और जांच के साथ साथ स्व्त: संज्ञान लेते हुए भी कार्रवाई करता है। आयोग जहां कहीं सरसरी तौर पर प्रतिस्पर्धा अधिनियम का उल्लं घन महसूस करता है, वहां स्वयं संज्ञान लेते हुए कारवाई करता है।
2011 में इंडियन ऑयल कारपोरेशन को सिलेंडरों की आपूर्ति के लिए एलपीजी सिलेंडर विनिर्माताओं द्वारा बोलियों में कथित धांधली का स्वत: संज्ञान लि‍या। आयोग ने बोली में धांधली करने वाली पार्टियों पर 187 करोड़ रुपये से अधिक जुर्माना लगाया।
सीसीआई द्वारा पेट्रोलियम क्षेत्र, कृषि क्षेत्र आदि में भी स्वंत: संज्ञान लेते हुए कई और ऐसे नोटिस भेजे गए हैं।

व्यापार संगठनों की भूमिका

आयोग के प्रवर्तन संबंधी कार्य क्षेत्र में व्यापार संगठनों की भूमिका पर आधारित मामले भी अत्यंत महत्वयपूर्ण हैं। प्रतिस्पर्धा विरोधी समझौतों के मामलों को निपटाने में सीसीआई के अनुभव से पता चलता है कि व्या‍पार संगठन भी,अनजाने में या जान बूझ कर भूल चूक के ऐसे कार्यों में शामिल होते हैं, जो विभिन्न आर्थिक कानूनों के दायरे में आते हैं।

प्रतिस्प‍र्धा कानून व्या‍पार संघों की गतिविधियों को प्रतियोगियों के बीच किसी अन्य प्रकार के सहयोग की तरह समझता है। प्रतिस्परर्धात्म‍क कानून की दृष्टि में व्यापार संघों के प्रस्तावों, निर्णयों या अनुशंसाओं को उसके सदस्यों के साथ समझौतों के रूप में देखा जाता है, और सदस्यों पर बाध्यंकारी न होने की स्थिति में भी कानून भंग हो सकता है।

व्या‍पार संघ के कार्यों के बारे में सीसीआई द्वारा पहली जांच फिल्म निर्माताओं के बारे में की गई थी। सीसीआई ने 27 फिल्म  निर्माताओं पर, सांठगांठ के आरोपों की जांच करते हुए एक एक लाख रुपये का जुर्माना लगाया। उन पर आरोप था कि वे संगठन के जरिए मल्टीप्लेक्स मालिकों का शोषण कर रहे हैं।

फार्मास्युटिकल क्षेत्र/फिल्मम निर्माण आदि में संगठनों से संबंधित अनेक मामलों में सीसीआई ने संगठनों के खिलाफ आदेश पारित किए हैं और उनसे कहा है कि वे प्रतिस्पर्धा विरोधी गतिविधियों पर रोक लगाएं और उनसे बाज आएं

सरकारी खरीद और प्रतिस्पर्धा कानून

सीसीआई के लिए महत्वपूर्ण मुद्दों में सरकारी खरीद के आयाम भी महत्वपूर्ण रहे हैं। सरकारी खरीद एक विवादित मुद्दा रहा है, और अनेक घटकों की वजह से प्रतिस्प‍र्धा कानून के दायरे में आता है। प्रतिस्पर्धा अधिनियम सार्वजनिक और निजी उद्यम के बीच कोई भेद नहीं करता। वास्तव में बड़े पैमाने पर खरीद करने वाले सरकारी उद्यम प्रतिस्पर्धा मूल्यांकन के अधीन आते हैं।

हाल के महीनों में, आयोग ने अनेक मामलों का निपटारा किया है। इनमें सरकारी ठेकों में व्याहपार संघवाद के मामले शामिल हैं। प्रतिस्पर्धा पद्धतियों के उल्लंघन और प्रभुत्व के दुरुपयोग को हतोत्साहित करने के लिए जुर्माने लगाए गए। जांच के बाद आयोग ने जहां कहीं यह पाया कि सरकार की कुछ विशेष नीतियों में संशोधन की स्थिति में प्रतिस्पनर्धा बढ़ सकती है, वहां आयोग ने सरकार को ऐसी नीतियों में बदलाव के सुझाव दिए।

ऐसे 21 से अधिक मामलों में आदेश पारित किए गए जहां एसओई या सरकारी विभाग एक पार्टी थे। इनमें से कुछ मामलों में तेल कंपनियां, रेलवे आदि शामिल थे।

सीसीआई सरकारी खरीद एजेंसियों के साथ मुद्दों को उठाता है और उसने 50 से अधिक मंत्रालयों/विभागों के नोडल अधिकारियों के साथ अनेक बार बातचीत की है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि सरकारी खरीद में अपनाई जाने वाली पद्धतियां प्रतिस्पर्धा अधिनियम  की भावना के अक्षरश: अनुपालन के अनुरूप हों।

चार वर्ष की अवधि किसी नए कानून की कार्य क्षमता के मूल्यांकन के लिए बहुत कम होती है। फिर भी,पिछले चार वर्षों की गतिविधियों को देखने से पता चलता है कि भारत का प्रतिस्पर्धा आयोग बाजार में प्रतिस्पर्धा विरोधी पद्धतियों को रोकने वाले सजग संगठन के रूप में महत्वसपूर्ण बदलाव लाने के लिए तैयार है। प्रतिस्पर्धा अधिनियम और प्रतिस्पर्धा का विकास भारत में धीरे धीरे लेकिन निश्चित रूप से अपनी सही मंजिल की ओर अग्रसर है।

PTI

रविवार, 26 मई 2013

खादी और ग्राम उदयोग आयोग द्वारा रोजगार सृजन


खादी और ग्राम उद्योग आयोग (केवीआईसी) महात्‍मा गांधी के विचारों का प्रचार है। उद्योगों का विकास साधारण चरखे में प्रतिबिंबत किया गया है। महात्‍मा गांधी की प्रेरणा के अधीन भारत की राजनीतिक स्‍वतंत्रता के राष्‍ट्रीय संघर्ष ने ग्रामीण उद्योगों के संरक्षण, सुरक्षा और प्रोत्‍साहन के लिए सहगामी संघर्ष का रूप लिया। मिलों द्वारा तैयार किए गए सस्‍ते उत्‍पादों की असमान प्रतिस्‍पर्द्धा ने ग्रामीण दस्‍तकारों और शिल्‍पकारों के रोजगार और आजीविका के लिए खतरा पैदा कर दिया।

गांधी जी ने जीवन शैली और उपभोग में सादेपन को प्राथमिकता दी। भारतीय विकास के लिए गांधीवादी रणनीति अतिरिक्‍त जनशक्ति के विशाल प्रयोग और उत्‍पादन प्रक्रियाओं में उसकी सक्रिय भागीदारी से संबद्ध थी। गांधीवादी मुहावरे में कुटीर और ग्राम उद्योग जीवन शैली के लिए समर्थन ढांचे का प्रतिनिधित्‍व करते हैं। गांधी जी ने इस विचार का जोरदार समर्थन किया था कि ग्राम उद्योग और शिल्‍प ग्रामीण जीवन का महत्‍वपूर्ण भाग हैं और आत्‍मनिर्भर ग्राम के अस्तित्‍व को सुनिश्चित करने के लिए उसका जोरदार संरक्षण किया जाना चाहिए। वास्‍तव में, यह ब्रिटिश उद्योग के अतिक्रमण के प्रति रक्षा कवच के रूप में प्रतिक्रियात्‍मक दृष्टिकोण था।

असली भारत गांवों में रहता है। भारत की ग्रामीण आबादी का एक बड़ा हिस्‍सा इसकी अर्थव्‍यवस्‍था का एक प्रमुख स्रोत है और यह कुटीर उद्योग द्वारा समर्थित है, जिसने भारत की सांस्‍कृतिक धरोहर को काफी हद तक संरक्षित रखने का काम किया है।

खादी और ग्राम उद्योग आयोग देश में रोजगार पैदा करने की प्रमुख योजनाओं            को  कार्यान्वित कर रहा है। यह क्षेत्र 11वीं पंचवर्षीय योजना अवधि के दौरान 16.07 लाख लोगों को रोजगार प्रदान कर सका है।

प्रधानमंत्री की रोजगार गारंटी कार्यक्रम योजना (पीएमईजीपी) देश में सूक्ष्‍म उद्यमों के जरिए रोजगार के अवसर पैदा करने का एक प्रमुख कारक रहा है। यह ऋण-संबद्ध सब्सिडी कार्यक्रम है, जिसमें सामान्‍य वर्ग के लाभार्थी ग्रामीण क्षेत्रों में परियोजना लागत के 25 प्रतिशत और शहरी क्षेत्रों में 15 प्रतिशत की सब्सिडी मार्जिन राशि प्राप्‍त कर सकते हैं। इसके अलावा विशेष वर्गों यथा अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, अन्‍य पिछड़े वर्ग, अल्‍पसंख्‍यक, महिलाएं, भूतपूर्व सैनिक, शारीरिक रूप से विकलांग, पूर्वोत्‍तर क्षेत्र, पर्वतीय और सीमावर्ती क्षेत्रों से संबंध रखने वाले लाभार्थियों के लिए ग्रामीण क्षेत्रों में सब्सिडी की मार्जिन राशि 35 प्रतिशत और शहरी क्षेत्रों में 25 प्रतिशत है। विनिर्माण क्षेत्र में परियोजना की सर्वाधिक राशि 25 लाख रूपये और सेवा क्षेत्र में दस लाख रूपये है।

इस योजना की बेरोजगार लोगों में और प्रमुख कार्यान्‍वयन भागीदार यथा बैंकों, विशेष रूप से पूर्वोत्‍तर राज्‍यों और जम्‍मू कश्‍मीर राज्‍य में उत्‍साहवर्धक प्रतिक्रिया रही है। वर्ष 2011-12 के दौरान पूर्वोत्‍तर क्षेत्र के लिए निर्धारित मार्जिन राशि 80 करोड़ रूपये रखी गई थी लेकिन 31 मार्च 2012 तक वास्‍तविक वितरण एक सौ एक करोड़ रूपये यानी लक्ष्‍य का 126 प्रतिशत के आंकड़े तक पहुंच गया है।

समूह विकास के लिए परम्‍परागत उद्योगों को पुनर्जीवित करने के लिए धन उपलब्‍ध कराने की योजना ने भी परम्‍परागत उद्योगों को पुनर्जीवित करने और दस्‍तकारों की मजदूरी बढ़ाने में महत्‍वपूर्ण भूमिका निभाई है। इस योजना के अधीन पूर्वोत्‍तर क्षेत्र में दो खादी, 11 ग्राम उद्योग और दो कॉयर समूहों को चालू किया गया है। इसके लिए उन्‍हें संवर्धित उपकरण, सामान्‍य सुविधा केंद्र, कारोबार विकास सेवाएं, प्रशिक्षण, क्षमता निर्माण और डिजाइन तथा विपणन सुविधाएं प्रदान की गई हैं।

केवीआईसी की नई योजनाएं

केवीआईसी को केवीआई उत्‍पादों के निर्यात को बढ़ावा देने के लिए वाणिज्‍य मंत्रालय द्वारा निर्यात प्रोत्‍साहन परिषदका मानद दर्जा प्रदान किया गया है। यह केवीआई क्षेत्र के लिए निर्यात के अवसर पैदा करने का एक बड़ा प्रयास सिद्ध होगा।

केवीआईसी ने डिजाइन और फैशन प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में व्‍यावसायिक विशेषज्ञता का लाभ उठाने के लिए मुंबई स्थित निफ्ट के साथ संपर्क स्‍थापित किए हैं और एक समझौता ज्ञापन पर हस्‍ताक्षर किए गए हैं। निफ्ट, केवीआईसी की डिजाइन सैल गठित करने में सहायता करेगा जिसे बाजार में बिक्री के वास्‍ते वस्‍त्र तैयार करने के लिए खादी संस्‍थाओं द्वारा प्रयोग में लाया जाएगा।

निर्यात को बढ़ावा देने के लिए केवीआईसी भारतीय विदेश व्‍यापार संस्‍था के साथ समझौता ज्ञापन के तौर-तरीकों पर काम कर रहा है, जो केवीआई संस्‍थाओं और इकाईयों की निर्यात के क्षेत्र में क्षमता निर्माण में व्‍यावसायिक विशेषज्ञता लाएगा और खादी एवं ग्राम उद्योग क्षेत्र के लिए निर्यात के बाजार भी तैयार करेगा।

केवीआईसी द्वारा इस क्षेत्र में उत्‍पादित खादी और ग्राम उद्योग की वस्‍तुओं की बिक्री को बढ़ावा देने के लिए बंगलुरू, गुवाहाटी और नगालैंड में कई खादी प्‍लाजा बनाये जा रहे हैं।

क्षेत्र/राज्‍य से बाहर प्रदर्शनी में भाग लेने के लिए पूर्वोत्‍तर क्षेत्र, जम्‍मू कश्‍मीर, अंडमान निकोबार बोर्ड की इकाईयों और खादी एवं ग्राम उद्योग संस्‍थाओं के दस्‍तकारों और बुनकरों आदि की यात्रा, ठहरने और भोजन के लिए अनुदान सहायता देने के विशेष पैकेज शुरू किए गए हैं। यह इन क्षेत्रों की संस्‍थाओं और इकाईयों को प्रमुख प्रदर्शिनयों में सक्रिय रूप से भाग लेने के लिए प्रोत्‍साहित करेंगे। इससे वे अपने उत्‍पादों की बिक्री बढ़ा सकेंगे और उनमें व्‍यावहारिकता भी ला सकेंगे।

प्रारंभ

वर्ष 2012-13 के दौरान ब्रैंड प्रोत्‍साहन, उत्‍पाद विकास, विभागीय बिक्री केंद्रों की सुव्‍यवस्‍था, सरकारी आपूर्तियों और निर्यात के क्षेत्रों पर विशेष ध्‍यान दिया जाएगा। यह व्‍यावसायिक एजेंसियों जैसे आईआईएफटी, सीआईआई, निफ्ट आदि के सहयोग से प्राप्‍त किया जाएगा। इसके अलावा देश और विदेश में प्रदर्शनियों, क्रय-विक्रय मेलों, कार्यशालाओं, गोष्ठियों और प्रशिक्षण कार्यक्रम आदि का भी आयोजन किया जाएगा।

·         अंतर्राष्‍ट्रीय प्रदर्शनियों और क्रय-विक्रय मेलों में भागीदारी के जरिए निर्यात बाजार को बढ़ावा देना। केवीआई उत्‍पादों के निर्यात को बढ़ावा देने के लिए केवीआई संस्‍थाओं और प्रधानमंत्री रोजगार गारंटी कार्यक्रमों के जरिए निर्यात बाजार को प्रोत्‍साहित करना।

·         निर्यातोन्‍मुख केवीआई संस्‍थाओं और आरईजीपी/पीएमईजीपी इकाईयों के निर्यात संघों को बढ़ावा देना।
·         यह निर्यात को बढ़ावा देने और निर्यात योग्‍य इकाईयों की सहायता में प्रमुख भूमिका निभा सकते हैं।

·         एशियाई विकास बैंक की सहायता से बाजारों को बड़े पैमाने पर बढ़ावा दिया जा रहा है। इसमें केवीआईसी के साथ भागीदार के रूप में निजी क्षेत्र की संस्‍थाओं का चयन किया जाएगा, जो पूरे देश में बड़े पैमाने पर कारोबार करेंगे।

केवीआईसी के कार्य निष्‍पादन का विहंगम दृष्टिपात

ब्‍यौरा
2010-11
2011-12
उत्‍पादन (करोड़ रूपये में)
रूपये  19,871.86
21,852.00
बिक्री (करोड़ रूपये में)
रूपये  25,792.99
26,797.13
रोजगार
(लाखों में )
113.80
119.10

शनिवार, 25 मई 2013

आम बजट की शब्दावली


सरकार हर साल के लिए जो बजट बनाती है, वह हमारे मंथली बजट से किसी भी तरह अलग नहीं होता। लेकिन फाइनैंस मिनिस्टर बजट भाषण में जिन शब्दों का इस्तेमाल करते हैं और जिन मदों के बारे में बताते हैं, वे काफी भारी-भरकम होते हैं।हमने कुछ अहम कॉन्सेप्ट और जटिल शब्दों को सरल बनाने की कोशिश की है

सकल घरेलू उत्पाद 

देश की अर्थव्यवस्था के सभी उत्पादक सेक्टरों के उत्पादन का मूल्य

राजकोषीय घाटा

आय और खर्च के अंतर को पाटने के लिए हर साल सरकार की ओर से लिया जाने वाला अतिरिक्त कर्ज। देखा जाए तो राजकोषीय घाटा घरेलू कर्ज पर बढऩे वाला अतिरिक्त बोझ ही है।

सब्सिडी

आर्थिक असमानता दूर करने के लिए सरकार की ओर से आम लोगों को दिया जाने  वाला आर्थिक लाभ। यह नकद भी हो सकता है। कंपनियों को सब्सिडी टैक्स छूट के तौर पर दी जाती है ताकि औद्योगिक गतिविधियां बढ़ें और रोजगार पैदा हो।

पूंजीगत और राजस्व खर्च 

सब्सिडी और कर्ज पर ब्याज का भुगतान जैसे परिसंपत्ति का निर्माण न करने वाले खर्च राजस्व खर्च कहलाते हैं। जबकि राजमार्गों और डैम के निर्माण या राज्यों को केंद्र की ओर से दिया जाने वाला कर्ज पूंजीगत खर्च कहलाता है।

आयोजना और गैर आयोजना व्यय 

आयोजना खर्च में एक वार्षिक फंड शामिल होता है, जो योजना आयोग की ओर से पांच साल के दौरान विकास योजना पर होने वाले खर्च को देखते हुए आवंटित किया जाता है। जबकि गैर आयोजना व्यय में रक्षा, सब्सिडी, ब्याज भुगतान, पेंशन और योजनागत परियोजनाओं को किए जाने वाले सारे खर्च शामिल होते हैं।

कर राजस्व

सरकार अपने खर्च चलाने के लिए लोगों और कंपनियों पर सीधे टैक्स लगाती है। वह लोगों की ओर से इस्तेमाल वस्तुओं और सेवाओं पर भी टैक्स लगाती है। यह सरकार की आय का प्राथमिक और प्रमुख स्रोंत है।

गैर कर राजस्व 

प्रत्यक्ष (डायरेक्ट टैक्स) और अप्रत्यक्ष कर (इनडायरेक्ट टैक्स) के अलावा सरकार के राजस्व का  स्रों। इसमें सरकार को हासिल होने वाला ब्याज, स्पेक्ट्रम नीलामी से हासिल पैसा और सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों में सरकारी हिस्सेदारी से हासिल रकम शामिल है।

कर्ज अदायगी

जिस तरह कोई उपभोक्ता अपने कर्ज को मूलधन और ब्याज के तौर पर एक निश्चित अंतराल में चुकाता है उसी तरह सरकार भी अपने बाहरी कर्ज को कई तरह की एजेंसियों और आतंरिक कर्ज लेकर जुटाती है। अमूमन बांड बेच कर जुटाए गए पैसे का इसमें इस्तेमाल होता है।

सरकारी राजस्व और व्यय (गवर्नमेंट रेवेन्यू और स्पेंडिंग)

सरकारी बजट में कुल मिलाकर कमाई और खर्च का हिसाब-किताब होता है। इनको दो हिस्सों - रेवेन्यू (राजस्व) और कैपिटल (पूंजी) में बांटा जाता है। खर्च को भी दो हिस्सों प्लान (योजना) और नॉन-प्लान (गैरयोजना) में बांटा जाता है।

रेवेन्यूग्रॉस टैक्स रेवेन्यू (सकल राजस्व):

सरकार को टैक्स से होने वाली कमाई से राज्यों को फाइनैंस कमिशन के बताए हिसाब से उनका हिस्सा देना होता है। बाकी रकम केंद्र सरकार के पास रह जाती है।

नॉन टैक्स रेवेन्यू (गैर कर आय):

इस मद में जो अहम आमदनी आती है, वह है सरकार की तरफ से दिए गए लोन पर मिलने वाला ब्याज और पब्लिक सेक्टर यूनिट में हिस्सेदारी पर उनसे मिलने वाला डिविडेंड और लाभ। सरकार को अलग-अलग सेवाओं से भी आमदनी होती है, जिनमें उसकी तरफ से मुहैया कराई जाने वाली पब्लिक सर्विसेज भी शामिल हैं। इसमें से सिर्फ रेलवे अलग डिपार्टमेंट है लेकिन इसकी समूची आमदनी और खर्च कंसॉलिडेटेड फंड ऑफ इंडिया में जमा होता है और निकलता है।

कैपिटल रिसीट्स (पूंजी प्राप्तियां):

इनमें लोन और अडवांसेज की रिकवरी (प्राप्ति) शामिल है।

मिसलेनियस कैपिटल रिसीट्सः

इसमें मुख्य रूप से पीएसयू डिसइन्वेस्टमेंट से मिलने वाली आय शामिल होती है।

सकल बजट समर्थनः पंचवर्षीय योजना को पांच सालाना

योजना में बांटा गया है। प्लान फंडिंग को सरकारी सपोर्ट (बजट से) और सरकारी कंपनियों के इंटरनल और एक्सट्रा बजटरी रिसोर्सेज में बांटा गया है। प्लान के सरकारी सपोर्ट, जिसमें राज्यों का प्लान शामिल होता है, को ग्रॉस बजटरी सपोर्ट कहा जाता है।

एक्सपेंडिचर (व्यय):

सरकारी खर्च के बारे में जानने से पहले हमारे लिए प्लान और नॉन प्लान स्पेंडिंग और सेंट्रल प्लान के बारे में जानना जरूरी होगा।

प्लान एक्सपेंडिचर (योजना व्यय):

यह मुख्य रूप से सालाना योजना को मिलने वाला बजट समर्थन होता है। इसमें मुख्य रूप से विकास (हेल्थ, एजुकेशन, इंफ्रा और सोशल) पर होने वाला खर्च शामिल होता है। सभी बजट मदों की तरह ही इसको भी राजस्व और पूंजी घटक में बांटा जाता है।

पब्लिक डेट (लोक ऋण):

सरकार जो कर्ज लेती है, उसका बोझ आखिरकार देश की जनता को उठाना पड़ता है इसलिए इसे पब्लिक डेट कहा जाता है। इसे दो मदों में बांटा जाता है इंटरनल डेट (देश में जुटाया गया कर्ज) और एक्सटर्नल डेट (गैरभारतीय स्रोतों से जुटाया गया कर्ज)।

नॉन प्लान एक्सपेंडिचर (गैर-योजना):

इसमें उपभोग वाले व्यय, खासतौर पर रेवेन्यू एक्सपेंडिचर आते हैं। इसमें इंटरेस्ट भुगतान, सब्सिडी, सैलरी, डिफेंस और पेंशन शामिल होता है। इसका कैपिटल घटक बहुत छोटा होता है,जिसका बड़ा हिस्सा रक्षा को जाता है। आमदनी और खर्च के बीच का अंतर जब सरकारी व्यय प्राप्तियों से ज्यादा हो जाता है तो उस कमी को पूरा करने के लिए सरकार को कर्ज लेना पड़ता है। इस घाटे का देश की इकनॉमी पर गहरा असर पड़ता है क्योंकि इसमें कमी करने की कोशिश में पब्लिक डेट बढ़ता है और ज्यादा इंटरेस्ट पेमेंट पर रेवेन्यू में सेंध लगती है।

कुल पेज दृश्य