प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व वाली राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन
सरकार ने शहरी भारत को रहन-सहन, परिवहन और अन्य
अत्याधुनिक सुविधाओं से लैस करने के इरादे से तीन महत्वाकांक्षी
योजनाओं- स्मार्ट सिटीज, अटल मिशन फॉर
रिजुवनेशन एंड अर्बन ट्रांसफॉर्मेशन (अमृत)और सभी को आवास योजना - का हाल ही में
शुभारम्भ किया है। इन परियोजनाओं से देशवासियों की उम्मीदों को नयी उड़ानें मिलती
नजर आ रहीहै और सपनों को संजीवनी।
शहरी जीवन की गुणवत्ता में सुधार लाने, स्वच्छ पर्यावरण उपलब्ध कराने, परिवहन व्यवस्था को सुधारने, शहरों की छवि खराब करती झुग्गीझोपड़ियों को हटाने तथा उनमें
रहने वाले लोगों को वैकल्पिक सुविधा मुहैया कराने के लिए शहरी संसाधनों, स्रोतों और बुनियादी संरचनाओं कासक्षम ढंग से
विकास करना स्मार्ट सिटी परियोजना का प्रमुख मकसद है। इन परियोजनाओं के तहत 2022 तक सभी को आवास उपलबध करानेका लक्ष्य भी है।
वर्ष 2011 की जनगणना के
अनुसार, भारत की वर्तमान जनसंख्या
का लगभग 31 फीसदी आबादी शहरों में
बसती है और इनका सकल घरेलू उत्पाद में 63 फीसदी का योगदान हैं। ऐसी उम्मीद है कि वर्ष 2030 तक भारत की आबादी का 40 फीसदी हिस्सा शहरों में रहेगा और सकल घरेलूउत्पाद में इसका
योगदान 75 प्रतिशत का होगा । इसके
लिए भौतिक, संस्थागत, सामाजिक और आर्थिक बुनियादी ढांचे के व्यापक
विकास कीआवश्यकता है। ये सभी जीवन की गुणवत्ता में सुधार लाने एवं लोगों और निवेश
को आकर्षित करने, विकास एवं प्रगति
के एक बेहतर चक्र कीस्थापना करने में महत्वपूर्ण हैं। स्मार्ट सिटी का विकास इसी
दिशा में एक कदम है।
इस मिशन में 100 शहरों को शामिल
किया जाएगा और इसकी अवधि पांच साल (2015-16 से 2019-20) की होगी। उसके
बाद शहरी विकासमंत्रालय द्वारा मूल्यांकन किए जाने एवं प्राप्त अनुभवों को शामिल
किये जाने के साथ मिशन को जारी रखा जा सकता है। एक सौ स्मार्ट शहरों कीकुल संख्या
एक समान मापदंड के आधार पर राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के बीच वितरित किया
गया है। इस वितरण फार्मूला का इस्तेमालकायाकल्प और शहरी परिवर्तन के लिए अमृत के
तहत धनराशि के आवंटन के लिए भी किया गया है।
शहरी विकास मंत्रालय ने यह तय कर दिया है कि देश के किस राज्य से कितने शहर
स्मार्ट सिटीज प्रोजेक्ट के लिए चुने जाएंगे। जिसमें से सबसेज्यादा 13 स्मार्ट सिटीज उत्तर प्रदेश में होंगी।
तमिलनाडु के 12 और महाराष्ट्र
के 10 शहरों को स्मार्ट सिटीज
के तौर पर विकसित किया जाएगा।मध्य प्रदेश के सात और गुजरात और कर्नाटक के छह-छह
शहर स्मार्ट सिटी बनेंगे। कुल मिलाकर देश भर में 100 स्मार्ट सिटीज विकसित करनेकी योजना है, लेकिन प्राथमिकता किसे मिलेगी, ये इंटर-सिटी कंपिटिशन में शहरों के स्मार्ट
सिटी प्लान पर निर्भर करेगा। इस साल के आखिर तक20 शहरों को स्मार्ट सिटीज के लिए चुना जाएगा, जबकि बाकी 80 शहरों के चयन का काम 2017-18 तक पूरा कर लिया जाएगा।
रैंकिंग में सबसे ऊपर आए 20 स्मार्ट सिटीज
के बाद बाकी 80 शहरों को खुद के
प्लान में सुधार का मौका दिया जाएगा। 100 स्मार्ट सिटीज केअलावा देश भर से अब तक 476 शहरों की पहचान अमृत योजना के लिए की गई है। ये सारे शहर
कम से कम एक लाख की आबादी वाले होंगे। इनशहरों को बुनियादी सुविधाएं विकसित करने
के लिए केंद्र सरकार की तरफ से मदद मिलेगी।
स्मार्ट सिटी के वितरण की समीक्षा मिशन के कार्यान्वयन के दो साल बाद की
जाएगी। चुनौती में राज्यों / शहरी स्थानीय निकायों के प्रदर्शन केआकलन के आधार पर
राज्यों के बीच शेष संभावित स्मार्ट शहरों में से कुछ का पुनःआवंटन शहरी विकास
मंत्रालय द्वारा किया जा सकेगा।
स्मार्ट सिटी मिशन एक केन्द्र प्रायोजित योजना के रूप में संचालित किया जाएगा और केंद्र सरकार
द्वारा मिशन को पांच साल में 48,000 करोड़रुपये,
करीब प्रति वर्ष प्रति शहर 100 करोड़ रुपये औसत वित्तीय सहायता देने का
प्रस्ताव है।
इसमें कोई संदेह नहीं है कि व्यापक विकास भौतिक, संस्थागत, सामाजिक और
आर्थिक बुनियादी ढांचे को एकीकृत करके ही होता है। सरकार कीकई क्षेत्रीय योजनाएँ
इस लक्ष्य की पूर्ति के लिए शामिल होती हैं, भले ही उनके रास्ते अलग हैं। शहरी योजनाओं के स्वरूप में
बदलाव करके उन्हेंअत्याधुनिक सुविधाओं से लैस शहर में तब्दील करने में अमृत और
स्मार्ट सिटी मिशन एक-दूसरे के पूरक साबित होने वाले हैँ।
हर कोई चाहता है कि वे स्मार्ट सिटी
के निवासी कहलाएं, लेकिन सबसे बड़ा
सवाल यह है कि एक शहर आखिर स्मार्ट कब कहलाता है? इससवाल का जवाब कुछ शब्दों में बांधा नहीं जा सकता, क्योंकि सरकार से लेकर इन योजनाओं पर काम करने
वाली बहुराष्ट्रीय कम्पनियां और आमलोग सबका जवाब अलग-अलग होगा। हर शहर की अपनी
संस्कृति और अपना चरित्र होता है। हर शहर की अपनी कुछ विशेषताएं होती हैं।
कई शहर बसावट में ही काफी जटिल और दुर्गम होते हैं और कुछ शहर काफी सहज होते
हैं। स्मार्ट सिटी शब्द सुनते ही सबसे पहले जो तस्वीरउभरती है वह कुछ ऐसी होती है—एक शहर जहां की जलवायु शुद्ध हो, लोग खुली हवा में सांस ले सकें। बिजली-पानी की
सप्लाई 24 घंटे सुचारू हो,दिनभर लोगों को ट्रैफिक में न जूझना पड़े,
सार्वजनिक यातायात उपलब्ध हो जो विश्व स्तरीय
हो, बुनियादी सुविधाएं व्यापक
हों। सड़कें, इमारतें,शापिंग माल, सिनेप्लैक्स सब कुछ योजनाबद्ध तरीके से बने हों। अनाधिकृत
कालोनियों की सड़ांध मारती गलियां न हों। झुग्गी-बस्तियां न हों। कुछऐसा शहर दिखे
जहां लोगों के रहन-सहन में समानता दिखे।
भारत जैसे शहरों जिनकी सही मैपिंग तक उपलब्ध नहीं, जिनमें अवैध कब्जों की भरमार हो, शहरों का बेतरतीब निर्माण हो चुका हो, ऐसे शहरों कोस्मार्ट बनाना किसी बड़ी चुनौती से
कम नहीं। भविष्य के शहर में बिजली के ग्रिड से लेकर सीवर पाइप, सड़कें, कारें और इमारतें हर चीज़ एक एकनेटवर्क से जुड़ी होगी।
इमारत अपने आप बिजली बंद करेगी, स्वचालित कारें
खुद अपने लिए पार्किंग ढूंढेंगी और यहां तक कि कूड़ादान भी स्मार्टहोगा, लेकिन सवाल यह है कि हम इस स्मार्ट भविष्य में
कैसे पहुंच सकते हैं? शहर में हर इमारत,
बिजली के खंभे और पाइप पर लगे सेंसरों परकौन
निगरानी रखेगा और कौन उन्हें नियंत्रित करेगा।
इसमें कोई संदेह नहीं है कि शहरों को स्मार्ट बनने की ज़रूरत है। एक अनुमान के
मुताबिक साल 2050 तक दुनिया की 75 प्रतिशत आबादी शहरोंमें निवास करेगी, जिससे यातायात व्यवस्था, आपातकालीन सेवाओं और अन्य व्यवस्थाओं पर ज़बर्दस्त दबाव
होगा। सच्चाई यह है कि दुनियाभरमें इस समय जो स्मार्ट शहर बन रहे हैं वे बहुत छोटे
हैं। इन शहरों के बारे में काफी चर्चा हो रही है लेकिन उनके पास ऐसी कोई तकनीक
नहीं हैजिससे वास्तव में लोगों की जिंदगी में बदलाव आ रहा है। हालांकि अगले पांच
सालों में चीजें स्मार्ट हो जाएंगी, तब उन शहर का डेटा इंफ्रास्ट्रक्चरट्रेनों और सड़कों की तरह अहम हो जाएगा।
ऐसा नहीं कि भारत स्मार्ट सिटी की ओर अग्रसर होने वाला पहला देश है, इससे पहले से कई देशों में स्मार्ट सिटी
परियोजनाएं बेहतरीन तरीके सेक्रियान्वित की जा चुकी हैं। भारत में भी यदि इसे
संजीदगी से अमल किया जाए तो इसे मोदी सरकार की बेहतरीन पहल कही जा सकती है,
बशर्तेसरकार सामंजस्य बिठाने के लिए गांवों को
भी स्मार्ट बनाने का प्रयास करे।
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