शुक्रवार, 28 सितंबर 2012

धारा 370 और भारत पाकिस्तान विवाद

                  धारा 370 और भारत  पाकिस्तान  विवाद 


ब्रिटिश शासन के समय जम्मू-कश्मीर एक देशी रियासत थी भारत तथा पाकिस्तान जब 1947 मे स्वतन्त्र राट्र के रुप मे अस्तित्व मे आये तो जम्मू कश्मीर एक रियासत के रुप मे रहना चाहता था, लेकिन जब 26 अक्टूबर 1947 को आजाद कश्मीर की सेनाओ ने पाक की  सहायता से कश्मीर पर आक्रमण कर दिया तो वहा के राजा हरिसिँह ने भारत से मदद माँगी भारत सरकार ने मदद देते हुये एक सन्धि की जिसके अनुसार उसे भारतीय भू भाग का अंग मान लिया गया उन शर्तो के अनुसार संविधान मे धारा 370 के अन्तर्गत यह व्यवस्था की गयी और जम्मू कश्मीर को धारा 238 के तहत केंद्र राज्य संबंधों की सभी शर्तों से अलग कर दिया गया था तो इस धारा की पहली पक्ति में लिखा था कि यह एक अस्थायी प्रावधान है और इसके तहत भारत की संसद सीमित मामलों में ही कश्मीर में भारत में संवैधानिक नियम और प्रावधान लागू करवा सकेगी । उस समय राष्ट्रपति ने जम्मू कश्मीर के महाराज हरि सिंह द्वारा पांच मार्च 1948 को भारत में विलय के किए गए समझौते को ध्यान में रखते हुए और कश्मीर की विशेष परिस्थिति को देखते हुए प्रावधान किया था कि रक्षा, विदेश नीति वित्त और संचार के अलावा दूसरे और अन्य कानूनों का तब तक पालन नहीं करवा सकेगी जब तक राज्य की विधानसभा उसे मंजूरी नहीं दे दे। इस तरह के विशेषाधिकार हिमाचल प्रदेश, अरुणाचल प्रदेश और नागालैंड को भी दिए गए थे लेकिन कश्मीर का मामला इसलिए अलग है 1974 में तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी और कश्मीर के सबसे ताकतवर नेता शेख अब्दुल्ला के बीच हुई बातचीत में इस धारा को जारी रखने के बारे में आम सहमति हुई थी।
 संबिधान मे धारा 370 कि व्यवस्थाकि गयी जिनमे निम्न प्रावधान किये गये
 1. जम्मू कश्मीर के नागरिक अन्य राज्य मे रहते हुये वहा की नागरिकता ग्रहण कर सकते है जबकि अन्य राज्य के नागरिक वहा कि नही।
2.
जम्मू-कश्मीर के नागरिक अन्य राज्य के सरकारी सेवाओ मे जा सकते है जबकि अन्य राज्य के नागरिक जम्मू कश्मीर राज्य की सरकारी सेवाओ मे नही जा सकते।
3.
जम्मू-कश्मीर राज्य का न्यूनतम योग्यता रखने वाला नागरिक भारत मे किसी भी निर्वाचन क्षेत्र से लोकसभाका चुनाव लड़ सकता है जबकि दूसरे राज्य का नागरिक जम्मू कश्मीर से चुनाव नही लड़ सकता।
4.
जम्मू कश्मीर का अपना भी एक कानून है जिसके संशोधन का अधिकार राज्य विधान सभा को ही है।
5.
जम्मू कश्मीर राज्य की सीमाओ तथा उसके नाम मे परिर्वन राज्य विधान परिषद कि संस्तुति के बिना संसद नही कर सकती।
6.
भारतीय संविधान के भाग-4 मे जिन नीति निदेशक तत्वो कि व्यवस्था कि गयी है वह जम्मू कश्मीर राज्य के लिये लागू नही होते।
7.
केन्द्र सरकार धारा 360 के अनुसार राज्य मे आपातकाल नही लगा सकती।
8.
अनुच्छेद 352 के अन्तर्गत आपातकाल की घोसणा संसद राज्य सरकार की सहमति से ही कर सकती है।
9.
संघ को जम्मू कश्मीर के संविधान को निलम्बित करने का अधिकार नही है।
10.
संविधान द्वारा अवशिष्ट शक्तियाँ जम्मू कश्मीर की सरकार और वहा के विधान मंडल को दी गयी है।
11.
राज्य से अनुच्छेद 370 को संघ तभी समाप्त कर सकती हैँ, जब राज्य विधान सभा अपने दो तिहाई बहुमत से इसके पक्षमे प्रस्ताव पारित कर
देगी।
विवाद 
भारत की स्वतन्त्रता के समय हिन्दू राजा हरि सिंह यहाँ के शासक थे  शेख अब्दुल्ला  के नेतृत्व में मुस्लिम कॉन्फ़्रेंस (बाद में नेश्नल कॉन्फ्रेंस) उस समय कश्मीर की मुख्य राजनैतिक पार्टी थी कश्मीरी पंडित, शेख़ अब्दुल्ला और राज्य के ज़्यादातर मुसल्मान कश्मीर का भारत में ही विलय चाहते थे। पर पाकिस्तान को ये बर्दाश्त ही नहीं था कि कोई मुस्लिम-बहुमत प्रान्त भारत में रहे (इससे उसके दो-राष्ट्र सिद्धान्त को ठेस लगती थी) सो 1947-48 में पाकिस्तान ने कबाइली और अपनी छद्म सेना से कश्मीर में आक्रमण करवाया और क़ाफ़ी हिस्सा हथिया लिया उस समय प्रधानमन्त्री जवाहर लाल नेहरु  ने मोहमद अली जिन्ना  से विवाद जनमत-संग्रह से सुलझाने की पेशक़श की, जिसे जिन्ना ने उस समय ठुकरा दिया क्योंकि उनको अपनी सैनिक कार्रवाई पर पूरा भरोसा था महाराजा ने शेख़ अब्दुल्ला की सहमति से भारत में कुछ शर्तों के तहत विलय कर दिया जब भारतीय सेना ने राज्य का काफ़ी हिस्सा बचा लिया और ये विवाद संयुक्त राष्ट्र में ले जाया गया तो संयुक्तराष्ट्र महासभा दो संकल्प पारित किये : 
  1. पाकिस्तान शीघ्र ही अपनी सेना क़ाबिज़ क्षेत्र से खाली करे  
  2. शान्ति होने के बाद दोनो देश कश्मीर के भविष्य का निर्धारण वहाँ की जनता की चाहत के हिसाब से करेंगे (बाद में कहा गया जनमत संग्रह से)
भारतीय पक्ष 

§  जम्मू और कश्मीर की लोकतान्त्रिक और निर्वाचित संविधान-सभा ने 1957 में एकमत से महाराजा के विलय के काग़ज़ात को हामी दे दी और राज्य का ऐसा संविधान स्वीकार किया जिसमें कश्मीर के भारत में स्थायी विलय को मान्यता दी गयी थी
§  कई चुनावों में कश्मीरी जनता ने वोट डालकर भारत का साथ दिया है भारतीय फ़ौज की नये सिपाहियों के भर्ती अभियान में हज़ारों कश्मीरी नवयुवक आते हैं
§  भारत पाकिस्तान के दो-राष्ट्र सिद्धान्त को नहीं मानता भारत स्वयं धर्मनिर्पेक्ष है
§  कश्मीर का भारत में विलय ब्रिटिश "भारतीय स्वातन्त्र्य अधिनियम" के तहत क़ानूनी तौर पर सही था
§  पाकिस्तान अपनी भूमि पर अतंकवादी शिविर चला रहा है (ख़ास तौर पर 1989 से) और कश्मीरी युवकों को भारत के ख़िलाफ़ भड़का रहा है ज़्यादातर आतंकवादी स्वयं पाकिस्तानी नागरिक (या तालिबानी अफ़ग़ान) ही हैं ये और कुछ कश्मीरी मिलकर इस्लाम के नाम पर भारत के ख़िलाफ़ जिहाद छेड़ रखे हैं। लगभग सभी कश्मीरी पंडितों को आतंकवादियों ने वादी के बाहर निकाल दिया है, और वो शरणार्थी शिविरों में रह रहे हैं
§  राज्य को संविधान के अनुच्छेद 370 के तहत स्वायत्ता प्राप्त है कोई ग़ैर-कश्मीरी यहाँ ज़मीन नहीं ख़रीद सकता




पाकिस्तानी पक्ष

दो-राष्ट्र सिद्धांत के तहत कश्मीर मुस्लिम बहुल होने के नाते पाकिस्तान में जाना चाहिये था विकल्प होने पर हर कश्मीरी पाकिस्तान ही चुनेगा, क्योकि वह भारत से नफरत करता है

§ भारत ने संयुक्त राज्य की नाफ़रमानी की है और डरता है कि अगर जनमत-संग्रह हुआ तो कश्मीरी जनता पाकिस्तान को ही चुनेगी
§  कानूनी तौर पर कश्मीर के महाराजा द्वारा भारत में विलय ग़लत था क्योंकि महाराजा ने ये विलय परेशानी की स्थिति में किया था
§      पाकिस्तान की मुख्य नदियाँ कश्मीर से आती हैं, जिनको भारत कभी भी रोक सकता है
     

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