रविवार, 28 फ़रवरी 2016

आर्थिक सर्वेक्षण की संक्षिप्त व्याख्या

बजट पूर्व आर्थिक सर्वेक्षण ने भारतीय अर्थव्यवस्था की उम्मीद भरी तस्वीर पेश की है। इसके मुताबिक अगले वर्ष (2016-17) तो सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की वृद्धि दर में कोई भारी उछाल नहीं आएगा, मगर उसके बाद के वर्षों में 8 प्रतिशत या उससे भी ज्यादा की विकास दर हासिल करना अब संभव नजर आने लगा है। वैसे कठिन अंतरराष्ट्रीय परिस्थितियों के बीच 2016-17 में अनुमानित 7-7.5 फीसदी विकास दर भी कम नहीं है। इस दर के साथ भी भारत दुनिया में सबसे तेजी से बढ़ रही अर्थव्यवस्था बना रहेगा।
उसके आगे के लिए संजोई गई उम्मीदों का आधार भारत के आर्थिक संकेतकों में आई स्थिरता है। इस सिलसिले में कहा गया है कि राजकोषीय घाटे को जीडीपी के 3.9 प्रतिशत तक सीमित रखना संभव हुआ है, चालू खाते का घाटा काबू में है और मुद्रास्फीति निम्न स्तर पर बनी हुई है। परोक्ष करों के संग्रह में खासी बढ़ोतरी हुई है, पूंजीगत खर्च में छह साल की सबसे अधिक बढ़ोतरी दर्ज हुई और सबसिडी में भारी गिरावट आई है। मगर इसका यह अर्थ नहीं समझा जाना चाहिए कि भारत तमाम आर्थिक चुनौतियों से उबर गया है।
सरकार ने माना है कि आर्थिक विकास को निरंतरता देने के लिए उसे कई ठोस कदम उठाने होंगे। इनमें एक टैक्स-जीडीपी अनुपात को बढ़ाना है। दूसरा शिक्षा एवं स्वास्थ्य पर खर्च बढ़ना है। भारत के जीडीपी में टैक्स का अनुपात 16.6 प्रतिशत है, जो उभरती अर्थव्यवस्था वाले देशों (21 फीसदी) और विकसित देशों (34 फीसदी) से काफी कम है। भारत की सिर्फ 5.4 प्रतिशत आबादी प्रत्यक्ष करों के दायरे में है। यानी अपेक्षित और वास्तविक कर उगाही के बीच लंबा फासला है। सर्वेक्षण के मुताबिक भारत अपने जीडीपी का 3.4 फीसदी हिस्सा ही स्वास्थ्य और शिक्षा पर खर्च करता है, जो विकसित एवं उभरते देशों की तुलना में बहुत कम है। शिक्षा, स्वास्थ्य और उपयुक्त कर ढांचा अर्थव्यवस्था की दीर्घकालिक बेहतरी के लिए बेहद अहम हैं। इनके लिए दूरगामी रणनीति बननी चाहिए।
क्या सोमवार को पेश होने वाले आम बजट में इस दिशा में कोई महत्वपूर्ण घोषणा होगी? उल्लेखनीय है कि आर्थिक सर्वेक्षण सरकार के आर्थिक नजरिए तथा आकलन का दस्तावेज होता है। इसे बजट का आधार माना जाता है। वैसे वित्त मंत्री के सामने एक बड़ी फौरी चुनौती सातवें वेतन आयोग की सिफारिशें लागू होने से आएगी। संभवत: इसी कारण आर्थिक सर्वेक्षण में राजकोषीय रणनीति की मध्यकालिक (मिड-टर्म) समीक्षा की जरूरत बताई गई है।
यानी मुमकिन है कि अभी राजकोषीय घाटे की जो सूरत दिख रही है, वह आगे चलकर कुछ बिगड़ जाए। इसके अलावा सरकारी बैंकों का डूबता कर्ज और कॉरपोरेट घरानों के मुनाफे में कमी भी चिंता के खास कारण हैं। फिर विश्व अर्थव्यवस्था में जारी उथल-पुथल के चलते पेश आ रही चुनौतियां हैं। इन मुश्किलों के बावजूद सरकार का आशावान बने रहना संतोष की बात है। अब देखना है कि वित्त मंत्री आम बजट के जरिए आर्थिक सर्वेक्षण में जताई गई उम्मीद को कैसे व्यवहार में उतारते हैं।

सामाजिक न्‍याय और सशक्तिकरण के लिए नई पहल

समाज कल्‍याण और अधिकारिता मंत्रालय ने अनुसूचित जातियों, अन्‍य पिछड़ा वर्ग, गैर अधिसूचित, खानाबदोश और अर्द्ध-खानाबदोश  जनजातियों, विकलांग व्‍यक्तियों, निस्‍सहाय व्‍यक्तियों और सफाई कर्मचारियों आदि के कल्‍याण के लिए अनेक पहलों की शुरूआत की है। इन पहलों में लक्षित समूहों को वित्‍तीय सहायता, भिखारियों का पुनर्वास और परिणामजन्‍य कौशल विकास कार्यक्रम शामिल हैं। वर्ष के दौरान शुरू किए गए कुछ कार्यक्रमों में निम्‍नलिखित कार्यक्रम शामिल हैं-
सुगम्‍य भारत अभियान
·         सुगम्‍य भारत अभियान का उद्देश्‍य विकलांगता से ग्रसित व्‍यक्तियों के लिए सार्वभौमिक पहुंच अर्जित करना तथा तीन मुख्‍य बातों- माहौल तैयार करना, सार्वजनिक परिवहन और सूचना और संचार प्रौद्योगिकियों पर ध्‍यान केंद्रित करते हुए उदार और अवरोध मुक्‍त माहौल का सृजन करना है।
·         यह अभियान अंतरराष्‍ट्रीय विकलांग दिवस के उपलक्ष्‍य में 3 दिसंबर 2015 को शुरू किया गया है।
·         इससे शुरुआत में 75 चुनिंदा शहरों में लागू किया जाएगा।
·         इसका उद्देश्‍य उपलब्‍ध सरकारी भवनों, हवाई अड्डों, रेलवे स्‍टेशनों, सार्वजनिक परिवहन, सार्वजनिक दस्‍तावेजों और वेबसाइटों के अनुपात में बढ़ोतरी करना है।

विकलांगता से ग्रस्‍त व्‍यक्तियों के लिए पहला अंतरराष्‍ट्रीय फिल्‍मोत्‍सव
·         पहली बार मंत्रालय ने राष्‍ट्रीय फिल्‍म विकास निगम की भागीदारी में विकलांग व्‍यक्तियों की भावनाओं को मान्‍यता देते हुए फिल्‍मोत्‍सव का आयोजन किया।
·         यह फिल्‍मोत्‍सव एक दिसंबर से 3 दिसंबर तक आयोजित किया गया।
·         इसमें ऐसा सिनेमा दिखाया जाएगा जो विकलांगों के लिए हमारे दुनिया के द्वार खोले और सिनमा भी दिखाया जाएगा जो विकलांग व्‍यक्तियों द्वारा तैयार किया गया है।

केंद्रीय सामाजिक न्‍याय और अधिकारिता मंत्री श्री थावरचंद गहलोत 3 दिसंबर 2015 को नई दिल्‍ली में विकलांगता से ग्रस्‍त व्‍यक्तियों के लिए पहले अंतरराष्‍ट्रीय फिल्‍मोत्‍सव के समापन समारोह के अवसर पर पुरस्‍कार प्रदान करते हुए। सूचना व प्रसारण राज्‍यमंत्री कर्नल राज्‍यवर्द्धन सिंह राठौर और फिल्‍म कलाकार विवेक ओबराय भी इस अवसर पर मौजूद हैं।
·         इससे विकलांग व्‍यक्तियों के सामने रोजाना आने वाली दिक्‍कतों को सामने लाने में मदद मिलेगी और सरकार और पूरी दुनिया में अनेक संगठन इन मुद्दों को दूर करने, हर संभव सहायता उपलब्‍ध कराकर विकलांगता ग्रस्‍त व्‍यक्तियों को पूरी क्षमता हासिल कराने में, उनकी जरूरतों के बारे में जागरूकता पैदा करने तथा समुदाय को उनके लिए अधिक समावेशी बनाने में समर्थ होंगे।
·         ऐसी दुनिया में जहां विकलांग व्‍यक्तियों को हाशिए पर धकेल दिया जाता हो यह आयोजन उनके कार्यों और अभिव्‍यक्ति पर प्रकाश डालेगा जो और उनका कौशल, विचारों की सच्‍चाई उनके जीवन का विशिष्‍ट परिप्रेक्ष्य चुनौतियां और अभिलाषाएं प्रशंसा की हकदार हैं।

उद्यमशीलता को बढ़ावा देने के लिए मंत्रालय द्वारा उठाए गये कदम
·         अनुसूचित जाति के उद्यमियों के लिए 22 दिसम्‍बर, 2014 को 200 करोड़ रुपये की उद्यम पूंजी निधि स्‍थापित की गई। यह योजना भारतीय औद्योगिक वित्त निगम लिमिटेड द्वारा लागू की जायेगी। यह निधि सेबी के साथ पंजीकृत है।
·         युवा अनुसूचित जाति उद्यमियों के लिए 200 करोड़ रुपये की ऋण संवर्द्धन गारंटी योजना को शुरू किया गया। यह योजना युवा उद्यमों के साथ अनुसूचित जाति के उद्यमों को रोजगार के अवसर उपलब्‍ध कराएगी।

मंत्रालय द्वारा डॉ. अम्‍बेडकर के विचारों को प्रतिपादित करने के लिए उठाये गये कदम
·         सामाजिक न्‍याय के लिए डॉ. अम्‍बेडकर अन्‍तर्राष्‍ट्रीय केन्‍द्र की आधारशिला 20 अप्रैल, 2015 को रखीं गई। इस केन्‍द्र के निर्माण पर 195 करोड़ रुपये की अनुमानित धनराशि का खर्च आयेगा।
·         डॉ. अम्‍बेडकर स्‍मारक का निर्माण किया जाएगा, जिसकी अनुमानित लागत 100 करोड़ रुपये की होगी। डॉ. अम्‍बेडकर के लेखों और भाषणों का ब्रिल संस्करण भी जारी किया जाएगा।

 विधेयक जो पेश किये जाने हैं

सभी राज्यों को उनकी टिप्पणी / सुझावों के लिए निराश्रित विधेयक 2015 का एक मसौदा विधेयक (संरक्षण और पुनर्वास) भेजा गया है।

अनुसूचित जाति, अन्य पिछड़ा वर्ग, आदि के लिए कौशल विकास प्रशिक्षण प्रदान करने की दिशा में मंत्रालय द्वारा उठाए गए कदम:

·         राष्ट्रीय अनुसूचित जाति वित्त विकास निगम ने वर्ष 2014-15 के दौरान 13,258 प्रशिक्षुओं को कौशल विकास प्रशिक्षण प्रदान किया।
·         राष्ट्रीय सफाई कर्मचारी वित्त विकास निगम ने 2014-15 के दौरान 8750 प्रशिक्षुओं को कौशल विकास प्रशिक्षण प्रदान किया।
·         राष्ट्रीय सफाई कर्मचारी वित्त विकास निगम द्वारा महिलाओं को आत्मरक्षा कौशल के साथ वाणिज्यिक मोटर ड्राइविंग की ट्रेनिंग भी दी जा रही है।
·         राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग वित्त विकास निगम ने वर्ष 2014-15 के दौरान 13,510 प्रशिक्षुओं को कौशल विकास प्रशिक्षण कौशल प्रदान किया।
·         विकलांग व्यक्तियों के कौशल प्रशिक्षण के लिए राष्ट्रीय कार्य योजना शुरू की गई है, जिसमें 2022 तक 25 लाख विकलांग व्यक्तियों को कौशल विकास प्रशिक्षण देकर प्रशिक्षित किया जाएगा।

मंत्रालय द्वारा शुरू की गई नई छात्रवृत्ति योजनाएं
·         ओबीसी के लिए नेशनल फैलोशिप का शुभारंभ किया जिसे विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के माध्यम से लागू किया जा रहा है।
·         आर्थिक रूप से पिछड़े वर्गों के लिए  डॉ अम्बेडकर पोस्ट मैट्रिक छात्रवृत्ति योजना का शुभारंभ।

अन्य पहलें

·         गैर- अधिसूचित, खानाबदोश और अर्द्ध खानाबदोश जनजाति समुदाय जो एससी/एसटी/ओबीसी समुदायों में शामिल नहीं हैं, की राज्यवार सूची तैयार करने तथा इन समुदायों के लिए कल्याणकारी उपायों का आंकलन करने के लिए राष्ट्रीय गैर अधिसूचित औऱ अर्द्ध खानाबदोश जनजाति आयोग (एनसीडीएनटी) का गठन किया गया है
·      विकलांगों के अनुकूल राष्ट्रीय न्यास की नई वेबसाईट http://thenationaltrust.gov.in/content/ का शुभारंभ किया किया गया है वेबसाईट के माध्यम से गैर सरकारी संगठन का पंजीकरण और भुगतान किया जा सकता है।
·         राष्ट्रीय न्यास द्वारा स्वलीनता, सेरेब्रल पाल्सी, मानसिक मंदता और बहु विकलांगता के कल्याण के लिए 10 नई/ संशोधित योजनाओं की शुरूआत की गयी है।
·         केंद्रीय समाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्री श्री थावर चंद गहलोत 24 नवंबर, 2015 को नई दिल्ली में राष्ट्रीय न्यास द्वारा स्वलीनता, सेरेब्रल पाल्सी, मानसिक मंदता और बहु विकलांगता के कल्याण के लिए 10 नई/ संशोधित योजनाओं की शुरूआत करने के अवसर पर प्रकाशन का विमोचन करते हुए हुए। साथ में समाजिक न्याय और अधिकारिता राज्य मंत्री श्री कृष्ण पाल और श्री विजय सांपला और गणमान्य व्यक्ति भी हैं।
·         नई सक्रिय वेबसाईट http://nbcfdc.gov.in/  और ई-टिकटिंग प्रणाली को राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग वित्त विकास निगम द्वारा शुरू किया गया।
·         राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग वित्त विकास निगम लक्षित समूह के लिए ई- विपणन मंच की शुरूआत की गयी है।
·         नशीली दवाओं के पीड़ितों और उनके परिवारों की मदद के लिए एक ड्रग डी एडिक्शन हेल्पलाईन नंबर 1XXX-XX-0031 की शुरूआत की गयी है।
·         राष्ट्रीय सफाई कर्मचारी वित्त विकास निगम ने सक्षम समुदाय शौचालय परियोजनाओं और कचरा संग्रहण वाहनों के वित्तपोषण के लिए स्वच्छता उद्यमी योजना की शुरूआत की है।

·         बधिरों के लिए देश के प्रत्येक पांच क्षेत्रों में कॉलेज की स्थापना योजना को जनवरी, 2015 में शुरू किया गया है। योजना का उद्देश्य श्रव्य वाधित छात्रों को उच्च शिक्षा में शिक्षा के समान अवसर प्राप्त कराना है और उच्च शिक्षा के माध्यम से रोजगार के अवसरों में वृद्धि होगी तथा जीवन की गुणवत्ता में सुधार होगा।

गुरुवार, 17 सितंबर 2015

ग्रामीण पर्यटन

भारत देश ग्रामीण प्रधान अर्थव्यवस्था वाला देश है. भारत में 74 प्रतिशत जनसंख्या लगभग 7 लाख गांवों में बसती है तथा भारतीय गाँवों में ग्रामीण पर्यटन की अपार संभावनाएं हैं . पर्यटन का वह रूप जो कि ग्रामीण जीवन की कला ,संस्कृति तथा परम्पराओं से सबंधित हो एवं वह आर्थिक व् सामाजिक लाभ के साथ-साथ पर्यटक और स्थानीय लोगों के मध्य पर्यटन को बढ़ावा देने के पारस्परिक अनुभवों को संवाद के रूप में स्थापित करें इसी को हम ग्रामीण पर्यटन के नाम से जानते हैं . ग्रामीण पर्यटन के विभिन्न आधार हैं जैसे- वह स्थान ग्रामीण क्षेत्र में स्थित हो. वहां ग्रामीण कार्यपद्धति जैसे छोटे लघु उधोग , खुला वातावरण , प्राकृतिक सानिध्य , धरोहर , परम्पराएँ , सामाजिक गतिविधियाँ इत्यादि हों. वह क्षेत्र विभिन्न प्रकार की मिश्रित संस्कृति , ग्रामीण परिवेश , इतिहास व् अर्थव्यवस्था को प्रकट करता हो. 

शार्पले और शार्पले के अनुसार यह ग्रामीण पर्यटन 18 वीं शताब्दी के बाद यूरोप में एक जाने -पहचाने क्रिया-कलाप के रूप में उभर कर सामने आया. थामस कुक ने 1863 में स्विट्ज़रलैंड के ग्रामीण क्षेत्रों में इस प्रकार का पहला पर्यटन अभियान आरम्भ किया तत्पश्चात इस उधोग में अत्यधिक वृद्धि हुई. 20 वीं शताब्दी से ग्रामीण पर्यटन समस्त देशों में बढ़ता चला गया.

भारत में हमें ग्रामीण पर्यटन के कुछ प्रमाण प्राचीन काल में दिखाई देते हैं. जब भगवान राम 14 वर्षों तक विविध स्थानों पर घूमते रहे , इसी प्रकार पांडवों ने भी अज्ञातवास के काल में विभिन्न स्थानों का भ्रमण किया. महावीर तथा गोतम बुद्ध ने भी विभिन्न गांवों में भ्रमण किया. अतः हम प्राचीन काल मे भी ग्रामीण पर्यटन को इस रूप में भी देख सकते हैं .

भारत में ग्रामीण पर्यटन की केरल , हिमाचल प्रदेश, आँध्रप्रदेश, उत्तराखंड , गुजरात, राजस्थान तथा मध्यप्रदेश जैसे राज्यों में अपार संभावनाएं दिखाई देती हैं. आज हर राज्य में पर्यटन का अपना स्वतंत्र मंत्रालय है, उसके बहुत से विभाग हैं, निगम हैं, बोर्ड हैं और बाहर निजी क्षेत्र में भी अनगिनत संस्थान और इस उद्यम से जुड़े लाखों लोग हैं। दिलचस्प बात यह है कि इन बड़े शहरों और ऐतिहासिक-धार्मिक-प्राकृतिक महत्व के स्थलों से जुड़ा यह उद्यम अब लगातार उनके आस-पास के ग्रामीण इलाकों और वहां के ग्रामीण जीवन को अपनी लालसा में लपेटता जा रहा है। उन ग्रामीणों का खान-पान,पहनावा, उनके तीज-त्यौहार और लोकानुरंजन के उत्सव अपने मूल स्वरूप से हटकर उनके आमोद-प्रमोद का हिस्सा होकर एक तरह के पर्यटक बाजार में तब्दील होते जा रहे हैं। शायद यह उसी का परिणाम है कि आज हर बड़े शहर में ऐसे अनोखे गांव और चौखी-अनोखी ढाणियां विकसित हो गई हैं, जो उन्हें शहर में ही गंवई खुलेपन और अपनाने  का आभास देने लगी हैं और ये सैलानियों के आकर्षण का बहुत बड़ा केन्द्र भी बनती जा रही हैं। सुदूर ग्रामीण इलाकों में बने किले, हवेलियां और रावले, जो देखरेख के अभाव में खंडहर होते जा रहे थे, वे अच्छी-खासी हेरिटेज होटल्स और रेस्तराओं में तब्दील होकर कमाई का नायाब जरिया बन गये हैं।

पर्यटन मंत्रालय की क्षमता निर्माण योजना के तहत क्षमता निर्माण गतिविधियों के लिए 2006 से वित्‍तीय सहायता भी दी जा रही है। पंडुरंगा ग्रामीण पर्यटन का हिस्‍सा हैं। उन्‍होंने कहा कि महाराष्‍ट्र में ग्रामीण पर्यटन की 2004 में बारामती जिले में एक प्रायोगिक परियोजना के रूप में शुरूआत हुई थी। यहां 65 एकड़ के क्षेत्र में बागबानी होती है। उन्‍होंने कहा कि जब शहर से लोग घूमने आते हैं तो रेशम प्रसंस्‍करण इकाइयों, दूध की डेयरी और फलों के बाग भी देखते हैं। ग्रामीण पर्यटन को प्रोत्‍साहित करने का एक उद्देश्‍य यह भी था कि गांव के लोगों का शहरों में पलायन रोका जा सके। 2004 से महाराष्‍ट्र में ग्रामीण और कृषि पर्यटन के 200 से अधिक केंद्र विकसित हुए हैं और एक लाख से ज्‍यादा पर्यटक यहां घूमने आए हैं। इसके अतिरिक्‍त किसान, गांव के बेरोज़गार युवक भी ग्रामीण पर्यटन की गतिविधियों से जुड़ गए हैं।

राजस्थान एक अन्य राज्य है जहां ग्रामीण पर्यटन पिछले कुछ समय में तेजी से विकसित हुआ है। राजस्थान न केवल अपने ऐतिहासिक स्मारकों और धर्मस्थलों के लिए प्रसिद्ध है बल्कि अपने शिल्प, नृत्य और संगीत जैसी ललित कलाओं की समृद्धि संस्कृति के लिए भी मशहूर है। मुरारका फाउंडेशन के विजयदीप सिंह के अनुसार उन्होंने न केवल भारतीय पर्यटकों बल्कि अमरीका, फ्रांस, इंग्लैंड और यहां तक कि स्विट्जरलैंड के पर्यटकों के लिए अनेक पैकेज तैयार किए हैं। उन्होंने बताया कि कई पर्यटक स्थानीय जीवन, खानपान और संस्कृति का सीधे तौर पर आनंद लेने के लिए गांव वालों के साथ उनके घर पर ही रुकना चाहते हैं। इस तरह के पैकेज के अंतर्गत पर्यटकों से एक दिन के लिए 1200 रुपए लिए जाते हैं, जिसमें से 850 रुपए किसानों के परिवारों को दे दिए जाते हैं। पर्यटकों के लिए यह कोई महंगा शौक नहीं है और किसान को भी इससे अतिरिक्त आमदनी हो जाती है।

पंजाब में कृषि पर्यटन लोकप्रिय हो चुका है। कोई भी व्यक्ति पीली सरसों के खेतों में घूम फिर सकता है, ट्रैक्टर पर घूम सकता है, मवेशियों को चराने के लिए ले जा सकता है या उन्हें खाना खिला सकता है, हरे भरे खेतों में मक्के की रोटी और साग के साथ छांछ का लुत्फ उठा सकता है, लोकनृत्य भांगड़ा का मजा लेने के साथ स्थानीय शिल्प फुलकारी बनते हुए देखने के अलावा ग्रामीण समुदाय और पंचायत से मिल सकता है। पर्यटक कुश्ती,गिल्ली-डंडा, पतंगबाजी जैसे स्थानीय खेलों में भाग ले सकते हैं या उन्हें देख सकते हैं। बच्चे घास पर उछलकूद करने के साथ-साथ ट्यूबल में नहा सकते हैं। अनेक अन्य राज्य भी ग्रामीण पर्यटन को प्रोत्साहित कर रहे हैं।

ग्रामीण पर्यटन को प्रोत्साहन प्रदान करने के लिए हिमाचल में पर्यटकों को वहां कि संस्कृति से रूबरू करने के लिए प्रदेश सरकार द्वारा होम स्टेनाम की योजना प्रारंभ कि गई है इसी प्रकार हरियाणा में ग्रामीण पर्यटन को प्रोत्साहन देने के लिए फॉर्म हाउस टूरिस्म को विकसित करने कि पहल की गई है. म्हारा गांवोंनामक योजना के द्वारा पर्यटकों को हरियाणा की संस्कृति से जोड़ने की बेहतरीन कोशिश कि जा रही है . सूरजकुंड  में प्रत्येक वर्ष लगने वाला मेला विदेशी पर्यटकों को ग्रामीण परिवेश कि ओर आकर्षित कर रहा है . उत्तराखंड के अल्मोड़ा में ग्रामीण पर्यटन में प्रोत्साहन  के लिए खुबसूरत गावों को ग्राम क्लस्टर योजना से जोड़ने कि बात कि जा रही है .
ग्रामीण पर्यटन की अपार संभावनाओं को देखते हुए संयुक्त राष्ट्र भी इस प्रयोग को सफल बनाने के लिए आगे आया है . संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम ने ग्रामीण पर्यटन के लिए चुने गए स्थानों की विभिन्न विशेषताओं के लिए एक सॉफ्टवेयर तैयार किया है जो विभिन्न देशों के पर्यटक संचालकों को उपलब्ध कराया गया है .

ग्रामीण पर्यटन के द्वारा अब गांवों में धन आने लागा है तथा गावों के भूले बिसरे स्मारकों कि भी खोज-खबर अब ली जाने लगी है . जो स्मारक तथा धर्मस्थल अब तक उपेक्षित थे अब उनकी भी साज- संभाल की जा रही है . ग्रामीण पर्यटन के द्वारा स्थानीय कलाओं को भी नए अवसर प्राप्त हो रहे हैं . अनेक ग्रामीण परिवार जहाँ उच्च स्तर की शिल्प कलाएं गुरु शिष्य परम्पराओं के अंतर्गत चली आ रही हैं जिनका अबतक उचित मूल्यांकन नहीं हो पाता था ग्रामीण पर्यटन के द्वारा इन कलाओं को भी महत्व प्राप्त हो रहा है .

2014 विभिन्न राज्यों में घरेलु पर्यटकों की संख्या प्रतिशत में

क्रम संख्या
राज्य
पर्यटकों कि संख्या प्रतिशत में
1
तमिलनाडु
25.6
2
उत्तरप्रदेश
14.3
3
कर्नाटक
9.2
4
महाराष्ट्र
7.3
5
आंध्रप्रदेश
7.3
6
तेलंगाना
5.6
7
मध्यप्रदेश
5.0
8
पश्चिमी बंगाल
3.8
9
झारखण्ड
2.6
10
राजस्थान
2.6

2014 विभिन्न राज्यों में घरेलु पर्यटकों की संख्या प्रतिशत में

1
तमिलनाडु
20.6
2
महाराष्ट्र
19.4
3
उत्तरप्रदेश
12.9
4
दिल्ली
10.3
5
राजस्थान
6.8
6
पश्चिमी बंगाल
6.1
7
केरल
4.1
8
बिहार
3.7
9
कर्नाटक
2.5
10
हरियाणा
2.4


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