मंगलवार, 17 जून 2014

इराक में ऐसे हालात के लिए कौन है जिम्मेदार

इराक में इन दिनों चल रहा हिंसक टकराव विश्व जगत के लिए चिंता का विषय बना हुआ है। अब तक अमेरिका कहता रहा हैकि वहां शांति और स्थायित्व कायम है परंतु मौजूदा हालात उसके दावे की हकीकत बयान कर रहे हैं। अब एक नए सुन्नी चरमपंथी संगठन इस्लामिक स्टेट ऑफ इराक एंड लेवांत (आईएसआईएल) ने इराक की सरकार और शिया समुदाय के खिलाफ हिंसक अभियान छेड़ दिया है। इस लड़ाईमें वहां का कुर्द समुदाय भी कूद गया है। अभी हाल ही में यह खबर आई थी कि इराक तीन हिस्सों में टूट सकता है। अब ऐसी खबरें रही हैंकि आईएसआईएल के दस्ते बगदाद की ओर बढ़ रहे हैं।

इस हमले ने इराक सरकार की सैन्य तैयारियों को उजागर कर दिया है। चरमपंथियों की ओर से जारी की गई इराकी सेना के सामूहिक नरसंहार की तस्वीर दिल दहलाने के लिए काफी है। इराक अमेरिका से मदद मांग रहा है परंतु अमेरिकी रणनीति देखकर लगता है कि वह इसमें पड़ना नहीं चाहता। विश्लेषक कह रहे हैं कि इराक में आधुनिक विश्व के इतिहास में शिया और सुन्नी के बीच हिंसक टकराव के हालात देखे जा रहे हैं। लिहाजा कहा जा रहा है कि इराक भीषण सांप्रदायिक गृहयुद्ध में घिरता जा रहा है। इस हालात के लिए सबसे ज्यादा जिम्मेदार अमेरिका की दोहरी नीतियां रही हैं।

कथित रासायनिक हथियारों के नाम पर उसने इराक पर हमला किया और सद्दाम हुसैन को फांसी दिलवाई। अमेरिका ने इसे अपनी और इराकियों की जीत के तौर पर पेश किया। उसने यह संदेश देने की कोशिश की कि इराक में तानाशाही शासन का अंत और एक आधुनिक लोकतांत्रिक व्यवस्था कायम हो गई है, लेकिन व्यवहार में ऐसा हुआ नहीं। खाड़ी देशों के जानकार मानते हैं कि अमेरिकी कार्रवाई से शियाओं में संदेश गया कि सुन्नियों के दमनकारी शासन का अंत हो गया है। उसके बाद बनी शियाओं की सरकार के कुछ फैसलों की वजह से सांप्रदायिक सौहार्द अंदर ही अंदर खराब हो गया। सुन्नी चरमपंथी संगठन आईएसआईएल के उभार की यही वजह रही। और बाकी कसर अमेरिका का असमय इराक छोड़ने के फैसले ने पूरी कर दी। देखा जाए तो इराक के आज के हालात के लिए अमेरिका ही सबसे ज्यादा जिम्मेदार है। इराक में लाखों डॉलर खर्च करके भी वह नाकाम रहा। अब खाड़ी देशों में अमेरिका की नीति को लेकर भी सवाल उठ रहे हैं। यही हाल सीरिया और लीबिया का है।

नाइजीरिया, अफगानिस्तान, पाकिस्तान, यमन, पूर्वी अफ्रीका सभी जगह हालात खराब हैं। ऐसे में लोग पूछने लगे हैं कि आखिर अमेरिका की यह कैसी नीति है जिससे किसी भी जगह स्थायित्व नहीं है। कहा जाता है अमेरिका तेल हड़पने के लिए इन देशों पर कार्रवाई करता है। ईरान पर अमेरिकी पाबंदी भी अब संदेह की नजर से देखी जाने लगी है। समय रहते इस टकराव को रोका नहीं गया तो इसके दो गंभीर परिणाम सामने आएंगे। पहला, विश्व में शिया-सुन्नी टकराव तेज होगा। दूसरा, इसका सीधा असर दुनिया की तेल आपूर्ति पर पड़ सकता है। भारत समेत पूरी दुनिया में तेल की कीमतों पर इसका असर अभी से देखा जाने लगा है। इसे रोकने के लिए विश्व समुदाय को आगे आना चाहिए।



इराक-अफगानिस्तान में शान्ति ज़रूरी

इराक एक राष्ट्र के रूप में टूट चुका है। ताज़ा वारदात दिल दहला देने वाली है। इस्लामिक स्टेट आफ इराक एंड  सीरिया ने दावा किया है कि उसने 1700 इराकी  सैनिकों को पकड़ लिया था और अब उन्हें फायरिंग स्क्वाड के सामने खड़े करके मार डाला गया है। दावा किया गया है कि जो तस्वीरें इन लोगों ने ट्विटर पर लगाई हैं , वे इन्हीं बदकिस्मत लोगों की हैं। इस्लामिक स्टेट आफ इराक एंड  सीरिया  कोई  राज्य नहीं है। यह इराक में मौजूद अल-कायदा संगठन का ही नाम है। भारी हथियारों से लैस यह संगठन इराक के कई बड़े शहरों पर क़ब्ज़ा कर चुका है। उत्तर इराक के सबसे बड़े शहर मोसुल पर इसका क़ब्ज़ा है। 1700 सैनिकों को मौत के घाट उतारने की जो तस्वीरें ट्विटर पर पोस्ट की गयी हाँ, वे पूर्व राष्टपति सद्दाम हुसैन के जन्मस्थान तिकरित की है। बताया जा रहा है कि दज़ला नदी के किनारे बने हुए सद्दाम के पुराने महल के प्रांगण में ही सैनिकों को इकठ्ठा किया गया था और वहीं से उनको उन जगहों पर ले जाया गया जहां उनको सामूहिक कब्रों में फेंक दिया गया। इस्लामिक स्टेट ऑफ इराक एंड सीरिया पुराने मेसोपोटामिया में  काम करने वाला एक ज़बरदस्त संगठन है। यह लेबनान, इजरायल, जार्डन और सीरिया पर भी अपना दावा ठोंकता है लेकिन फिलहाल तो इसका सारा फोकस उत्तरी इराक में है। इस्लामिक स्टेट आफ इराक एंड  सीरिया के जन्म को इराक में अमरीका की असंगत नीति का नतीजा बताया जा सकता है। इसकी स्थापना इराक युद्ध के शुरुआती दिनों में ही हो गयी थी 2004 में इस संगठन को इराक का अलकायदा माना  जाता था। यह ऐसे लड़ाकुओं का संगठन था जो स्पष्ट रूप से सद्दाम के भक्त नहीं थे लेकिन सद्दाम हुसैन के साथ हो रहे अमरीकी व्यवहार से नाराज़ थे। उस दौर के अन्य लड़ाकू संगठन, मुजाहिदीन शूरा काउन्सिल, जैश अल फातिहीन, जैश अल ताईफा , अल मंसूरा आदि ने मिलकर एक तंजीम  की स्थापना की थी। इराक युद्ध के दौरान भी इस  संगठन की मौजूदगी इराक के अल अंबार, निनावा, किरकुक, बाबिल, दियाला, और सलाह अद्दीन इलाकों में थी। इस्लामिक स्टेट ऑफ इराक एंड सीरिया शुरू में ऐसा कोई मज़बूत संगठन नहीं था लेकिन 2012 के बाद से यह उत्तरी इराक में अपनी हुकूमत चला रहा है। कुर्दों के इलाके में भी इराक के शिया प्रधानमंत्री का कोई ख़ास असर नहीं  है।  लगता  है कि एक अलग कुर्दिस्तान भी बन ही चुका है।  जिन सत्रह सौ सैनिकों को मारा गया है, वे इराकी सेना के शिया सैनिक ही थे , उनके साथ पकड़े गए जो सैनिक सुन्नी थे उनको सिविलियन कपड़े पहनाकर भगा दिया गया था। इस्लामिक स्टेट ऑफ इराक एंड  सीरिया के मौजूदा सुप्रीमो, अबू बकर बगदादी अब एक स्वतंत्र संगठन के मालिक हैं और वे अल कायदा या किसी और से केवल अपने फायदे के लिए संपर्क रखते हैं एक बार अलकायदा के मुखिया अयमान अल ज़वाहिरी ने आदेश दिया था कि इस्लामिक स्टेट ऑफ इराक एंड  सीरिया की सीरिया शाखा को भंग कर दिया जाए लेकिन बगदादी ने साफ़ मना कर दिया था।

बहरहाल आंतरिक संगठन की इनकी जो भी लड़ाई हो, इस्लामिक स्टेट ऑफ इराक एंड  सीरिया इराक में आज एक ऐसी सैनिक ताक़त है जिसके सामने इराक की सरकार की कुछ नहीं चल रही है। अमरीका के राष्ट्रपति बराक ओबामा अपने पूर्व राष्ट्रपति जार्ज बुश के फैलाये गए उस रायते से पिंड छुड़ाना चाहते हैं जो उन्होंने अफगानिस्तान और इराक में फैलाया था लेकिन लगता है कि उनका सपना बहुत ही मुश्किल दौर से गुजऱ रहा है इराक और अफगानिस्तान दोनों ही देशों में अलकायदा की विचारधारा वाले वहाबी मुसलमानों के संगठन भारी पड़ रहे हैं

अभी दो दिन पहले भारतीय अखबारों में भी खबर छपी थी कि तालिबान आकाओं ने हुक्म कर दिया  है कि अफगानिस्तान में काम कर रहे वे तालिबान आतंकी अब भारत की तरफ रुख करें और कश्मीर में वहां के मुकामी लोगों के साथ मिलकर हमले करें। भारत की सुरक्षा की चिंता करने वाले तबकों में इस खबर की जानकारी पहले से ही थी और उस पर काबू पाने की कोशिश भी चल रही है लेकिन जानकारी जब अखबारों में छप गयी तो शेयर बाज़ार पर भी असर दिखा। इराक के राष्ट्र पर आसन्न खतरे को देखते हुए सबको मालूम है कि पेट्रोलियम पदार्थों की सप्लाई और कीमतों पर उलटा असर पडऩे वाला है। ज़ाहिर है कि इराक में अस्थिरता का दौर शुरू होने वाला है। इराक से भारत भी भारी मात्रा में तेल आयात करता  है। ज़ाहिर है कि भारत इस घटनाक्रम से प्रभावित होने वाला है।

इराक और अफगानिस्तान में चल रही अस्थिरता का भारत पर सीधे तौर पर असर पड़ेगा यहाँ  करीब चार हफ्ते पहले नई सरकार आयी है। नरेंद्र मोदी देश के नए प्रधानमंत्री बने हैं उनसे देश की कमज़ोर अर्थव्यवस्था में सुधार की बहुत उम्मीदें हैं लेकिन अगर अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में तेल की कीमतें बढ़ गयीं तो उनके लिए  देश की आर्थिक सेहत को ठीक करना पाने के मिशन में बहुत अडचनें  आएंगीं।  देश में मौजूद पेट्रोलियम  संसाधनों में सबसे प्रमुख तत्व, गैस की कीमतों में सरकार पद संभालने के  साथ - साथ वृद्धि कर ही चुकी है। ज़ाहिर है कि विदेशी तेल के महँगा होने के बाद प्रधानमंत्री का मंहगाई पर काबू कर पाने का सपना बहुत ही मुश्किल दौर से गुजरने के लिए मजबूर हो जाएगा। खतरा यह भी है कि मौजूदा हालात के मद्देनजऱ महंगाई घटना तो दूर कहीं बढऩा शुरू हो जाए।


 इराक और अफगानिस्तान में चल रहे अलकायदा के प्रभाव वाले झगड़े का सीधा  नुकसान भारत की आतंरिक सुरक्षा की हालात पर पड़ सकता है। पाकिस्तान में मौजूद अलकायदा का सबसे बड़े खैरख्वाह हाफिज़़ मुहम्मद सईद और तालिबान की संस्थापक पाकिस्तानी फौज और आईएसआई भारत को तबाह करने के सपने हमेशा देखते रहते  हैं। अफनिस्तान में काम कर रहे कुछ तालिबानी आतंकियों  को कश्मीर में झोंकने की बातें चर्चा में हैं। अगर यह हो गया तो देश में आर्थिक सम्पन्नता का प्रयास कर रही मौजूदा सरकार का ध्यान सबसे पहले सुरक्षा की तरफ जाएगा। ज़ाहिर है कि उससे अर्थव्यवस्था पर फालतू का बोझ पड़ेगा और मंहगाई को ख़त्म करने और नौजवानों को रोजगार देने की नरेंद्र मोदी की योजना को झटका लगेगा। भारत समेत अंतर्राष्ट्रीय बिरादरी को कोशिश करनी चाहिए कि इराक और अफगानिस्तान की हालात जल्द से जल्दे स्थिर बनें।

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