मंगलवार, 25 फ़रवरी 2014

व्यय निगरानी व्यवस्था

निर्वाचन आयोग राष्ट्रपति पद, उप-राष्ट्रपति पद, संसद तथा राज्य विधानसभाओं के चुनाव कराता है। संविधान के अनुच्छेद-324 के अनुसार निर्वाचन आयोग को चुनावों के अधीक्षण, निर्देशन तथा नियंत्रण की शक्तियां मिली हैं। यह सर्वज्ञात तथ्य है कि धन के बिना बहु-दलीय लोकतंत्र कार्य नहीं कर सकता लेकिन धन-बल में निम्नलिखित खास जोखिम हैं:
1.      असमान अवसर तथा स्वस्थ स्पर्धा की कमी।
2.      राजनीतिक अलगाव यानी कुछ निश्चित क्षेत्र नुकसान सहते हैं।
3.      चुनाव प्रचार की अधिकतम व्यय सीमा की और बढ़ते जाने का जोखिम।
4.      दाग दार शासन तथा विधि के शासन की प्रतिष्ठा में कमी।

आयोग विधानसभाओं/संसदीय निर्वाचन क्षेत्रों में आम चुनाव के समय धन-बल के प्रभाव पर अंकुश लगाने में गंभीरता से जुटा है। निर्वाचन आयोग ने चुनाव खर्च निगरानी के लिए एक मजबूत व्यवस्था की है जिसे 2010 में बिहार विधानसभा के लिए हुए आम चुनाव के दौरान लागू किया गया। निगरानी की यह व्यवस्था बाद में 2010 से 2013 तक पश्चिम बंगाल, असम, केरल, तमिलनाडु, पुडूचेरी, उत्तर प्रदेश, पंजाब, उत्तराखण्ड, मणिपुर, गोवा, आंध्र प्रदेश, झारखण्ड, गुजरात, हिमाचल प्रदेश, मेघालय, नगालैण्ड, त्रिपुरा, कर्नाटक, राजस्थान, राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ तथा मिजोरम में विधानसभा/उप-चुनावों में कारगर और व्यवस्थित तरीके से लागू की गई। इन उपायों के परिणाम स्वरूप विधानसभा चुनावों के दौरान विशाल मात्रा में नकदी को रोका/जब्त किया गया और यह राशि लगभग 215 करोड़ रूपये थी।
निर्वाचन व्यय निगरानी की प्रमुख विशेषताएं इस प्रकार हैं
·         चुनाव लड़ रहे प्रत्येक उम्मीदवार के लिए एक अगल बैंक खाता खोलना अनिवार्य है। उम्मीदवार इसी खाते से व्यय करे तथा सभी चेक/डिमांड ड्राफ्ट इसी से जारी करे।
·    प्रत्येक जिले में शिकायत-निगरानी प्रकोष्ठ सातों दिन 24 घंटे टोलफ्री नम्बर के साथ लोगों की शिकायतें प्राप्त करता है।
·    प्रत्येक निर्वाचन क्षेत्र में कार्यकारी मजिस्ट्रेटों के नेतृत्व में  अवैध नकद कारोबार या शराब वितरण या मतदाता को किसी तरह का रिश्वत/प्रलोभन पर नजर रखने के लिए उड़न दस्ते, त्वरित कार्रवाई वाले दल, निगरानी दल बनाये जाते हैं। ये दल चुनाव खर्च से संबंधित सभी शिकायतें सुनते हैं।
·   राज्य में सभी हवाई अड्डे, प्रमुख रेलवे स्टेशन, हवाला एजेंटों, वित्तीय दलालों, नकदी आवाजाही वाले कोरियरगिरवी रखने वालों तथा अन्य संदिग्ध एजेंसियों/नकदी लाने ले-जाने वाले व्यक्तियों पर आयकर विभाग कड़ी निगरानी रखता है और आयकर कानून के प्रावधानों के अनुसार आवश्यक कार्रवाई की जाती है।
·        चुनाव प्रक्रिया के दौरान किसी बैंक खाते से संदेहजनक नकदी निकासी की निगरानी।
·       चुनाव के दौरान राज्य के बाहर से आयकर विभाग, सीमा केन्द्रीय उत्पाद शुल्क विभाग तथा वित्त और लेखा सेवाओं के वरिष्ठ अधिकारी उम्मीदवारों के चुनाव खर्चों को देखने के लिए प्रत्येक जिले में व्यय पर्यवेक्षक के रूप में नियुक्त किये जाते हैं।
·        प्रत्येक निर्वाचन क्षेत्र में व्यय पर्यवेक्षकों को सहायता देने के लिए सहायक व्यय पर्यवेक्षक नियुक्त किये जाते हैं।
·        प्रत्येक उम्मीदवार के लिए प्रत्येक निर्वाचन क्षेत्र में एक छाया पर्यवेक्षण रजिस्टर रखा जाता है जिसमें चुनाव के दौरान दिखे प्रमुख व्यय दर्ज किये जाते हैं।
·       कैमरा पर्सन के साथ सरकारी अधिकारियों वाली समिति गठित की जाती है जो चुनाव अभियान से संबंधित प्रमुख व्यय की विडियोग्राफी करती है।
·       प्रत्येक निर्वाचन क्षेत्र में लेखादल बनाया जाता है, जो छाया पर्यवेक्षण रजिस्टर तथा सबूतों के फोल्डर रखता है।
·      चुनाव विज्ञापन तथा संदिग्ध पेड न्यूज के लिए केबल नेटवर्क, सोशल मीडिया सहित प्रिंट तथा इलेक्ट्रोनिक मीडिया की निगरानी के लिए मीडिया प्रमाणन तथा मीडिया व्यय निगरानी समिति गठित की जाती है।
·    नैतिक रूप से मतदान करने संबंधी अभियान तथा मतदाताओं में वोट के बदले किसी तरह का प्रलोभन स्वीकार  करने के बारे में जागरूकता फैलाई जाती है।

स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव सुनिश्चित करने के लिए चुनाव के दौरान धन-बल पर अंकुश के लिए निर्वाचन व्यय निगरानी व्यवस्था की गई है। इसमें निम्न रणनीतियां अपनाई जाती हैं

·         राज्य/भारत सरकार की इकाईयों के जरिए अंतरकर्मी संचार व्यवस्था की जाती है- अवैध नकद पर नजर रखने के लिए आयकर विभाग, मादक पदार्थों पर नजर रखने के लिए डीआरआई तथा एनसीबी, विदेशी मुद्रा पर दृष्टि रखने के लिए प्रवर्तन निदेशालय तथा रिश्वतखोरी, आतंक, चोरी, मादक द्रव्यों, अवैध शराब आदि तथा उम्मीदवार, उसके एजेंट या किसी राजनीतिक दल द्वारा धन-बल के दुरूपयोग को रोकने के लिए सम्बद्ध राज्य की पुलिस तथा आबकारी विभाग काम करता है।
·         हवाई अड्डों/हवाई पट्टियों/हेलीपैडों के जरिए नकदी आवाजाही पर कड़ी निगरानी रखी जाती है। आयोग की सलाह से नागर विमानन ब्यूरो द्वारा मानक संचालन प्रक्रिया विकसित की गई है और लागू की जाती हैं। चुनाव वाले राज्यों में नकदी/जेवर की आवाजाही मे उम्मीदवार उसके एजेंट या किसी राजनीतिक दल को शामिल होने से रोकने के लिए केन्द्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल को कड़ी निगरानी के लिए तैनात किया जाता है।
·         चुनाव वाले राज्यों में चुनाव समाप्त होने की तिथि तक उम्मीदवार, उसके एजेंट या किसी राजनीतिक दल की सहभागिता से अवैध तरीके से नकदी आवाजाही की रिपोर्ट पर नजर रखने के लिए नागर विमानन मंत्रालय को सभी हवाई अड्डों पर एयर इंटेलिजेंट्स यूनिट के संचालन का निर्देश दिया गया है। 
·         भारत सरकार की वित्तीय खुफिया इकाई से अनुरोध किया गया है कि वह बैंकों में संदिग्ध नकद कारोबार की सूचना वास्तविक समय पर उपलब्ध कराये तथा चुनाव वाले राज्यों में बैंक खातों से सीमा से अधिक नकदी की निकासी पर कड़ी नजर रखें।
·         बीएसएफ तथा एसएसबी से चुनाव वाले राज्यों से सटी  अनंतर्राष्ट्रीय सीमाओं पर सामग्री, नकदी आदि की अवैध आवाजाही पर नजर रखने का अनुरोध किया गया है।
·         सही चुनाव ब्यौरा दाखिल करने वाले उम्मीदवारों के मामलों की जांच जनप्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 की धारा-10 के तहत अयोग्यता के लिए की जाती हैं।


उपरोक्त कदम पिछले चार वर्षों में हुए आम चुनावों के दौरान धन बल के प्रभाव को कम करने में कारगर साबित हुए हैं। अन्दर तक पैठ बना चुकी इस गन्दगी को मिटाने के लिए अभी लंबी दूरी तय करनी है। चुनाव के दौरान धन बल के दुरूपयोग के बारे में आम जागरूकता पैदा करने के लिए भारत निर्वाचन आयोग के साथ बुद्धिजीवी वर्ग, मीडिया, सिविल सोसाइटी तथा संगठऩों को मिलकर काम करना चाहिए।

सोमवार, 24 फ़रवरी 2014

यूक्रेन का राजनीतिक संकट

यूक्रेन में पिछले कई महीनों से सरकार विरोधी प्रदर्शनों और हिंसक झड़पों के बाद प्रदर्शनकारियों ने राष्ट्रपति कार्यालय पर कब्जा कर लिया और संसद ने इसके साथ ही 25 मई को नए चुनावों का ऐलान कर लिया है। इधर दो सालों से जेल में बंद पूर्व प्रधानमंत्री यूलिया तेमाशेन्का रिहा होने के बाद अस्वस्थता के बावजूद राजनीतिक रूप से सक्रिय हो गई हैं। इस तेजी से बदलते घटनाक्रम ने यूक्रेन के राजनीतिक भविष्य पर प्रश्नचिह्न लगा दिया है। संसद के फैसले को सत्ताच्युत राष्ट्रपति विक्टर यानुकोविच ने मानने से इन्कार कर दिया है। यानुकोविच संभवत: इस वक्त देश के पूर्वी हिस्से में खारकोव शहर में छिपे हुए हैं और उन्होंने वहींसे संसद के निर्णय को गलत बताते हुए इसकी तुलना 1930 में नाजियों द्वारा किए गए व्यवहार से की है, जिसमें अवैध तरीकों से नाजी सेना ने जर्मनी आस्ट्रिया पर कब्जा कर लिया था। यूक्रेन के वर्तमान राजनीतिक संकट के पीछे नाजीवादी सोच भले हो, लेकिन इससे इन्कार नहींकिया जा सकता कि पूर्वी यूरोप के इस देश में पूंजीवादी ताकतों की साजिश ने अपना काम कर दिखााया है। 1991 में सोवियत संघ से टूटकर वर्तमान यूक्रेन का निर्माण हुआ, लेकिन रूस से इसकी निकटता बरकरार रही। देश के पूर्वी भाग के लोग अधिकतर रूसी भाषा बोलने वाले हैं, रूस के समर्थक हैं, जबकि पश्चिमी हिस्से के लोग यूक्रेनी भाषा बोलने वाले कैथोलिक इसाई हैं और यूरोपीय यूनियन के समर्थक हैं। निर्वतमान राष्ट्रपति विक्टर यानुकोविच रूस के समर्थक माने जाते रहे हैं, जबकि यूलिया तेमाशेन्का पर यूरोपीय यूनियन का प्रभाव है। यूक्रेन में विपक्ष बार-बार यह मांग करता रहा कि देश को यूरोपीय यूनियन के करीब ले जाया जाए और रूस से दूरियां बढ़ाई जाएं, इसके विपरीत यानुकोविच का कहना था कि रूस हमारा पड़ोसी है और मित्र है, उसे ऐसे ही नहींछोड़ा जा सकता। जब यानुकोविच ने यूरोपीय यूनियन के साथ मुक्त व्यापार को बढ़ावा देने वाले व्यापार आर्थिक समझौते पर दस्तखत नहींकिए और इसकी जगह रूस से 15 बिलियन डालर का ऋण सब्सिडी वाली गैस लेना मंजूर किया तो इस शांत देश में हिंसा भड़काने का एक अच्छा अवसर पूंजीवादी ताकतों को मिल गया। यूक्रेनी जनता में यह भय पैदा किया गया कि देश के आर्थिक हालात अच्छे नहींहैं और इस समझौते को करने से स्थितियां और बिगड़ेंगीं। गत वर्ष नवंबर से प्रारंभ हुआ विरोध धीरे-धीरे हिंसात्मक होता गया और सौ के करीब लोगों की जान इसमें चली गई। इस बीच अमरीका सहित पश्चिम यूरोप के कई देशों ने मामले में दखल देना प्रारंभ किया। तीन यूरोपीय विदेश मंत्री मध्यस्थता कराने यूक्रेन पहुंचे, ब्रिटेन ने यूक्रेन के राजदूत को तलब किया और अमरीका ने यूक्रेन के 20 वरिष्ठ अधिकारियों पर मानवाधिकार हनन का आरोप लगाते हुए उन पर वीजा प्रतिबंध की घोषणा की है। फिलहाल जो स्थिति है, उसमें किस तरह निष्पक्ष चुनाव संपन्न होते हैं, कहना कठिन है।


राजनीतिक विचारधाराओं के साथ-साथ देश के पूर्वी और पश्चिमी हिस्से में मतभेद जिस तेजी से बढ़ रहा है, उससे यह आशंका बलवती होती है कि यूक्रेन विभाजन की ओर बढ़ रहा है। इससे आगे भी राजनीतिक अस्थिरता उथल-पुथल का दौर जारी रह सकता है। अमरीका की सहानुभूति विक्टर यानुकोविच के विरोधियों के साथ है। रूस पर अपने पूर्व अंग पड़ोसी देश में राजनीतिक स्थिरता शांति कायम करने के साथ-साथ यूरोपीय यूनियन से सौहार्द्रपूर्ण संबंध बनाए रखने की दोहरी चुनौती है। रूस की किसी भी सीमा में अशांति रहे, यह उसके हित में कतई नहींहै। अगर यूक्रेन में नयी सरकार आती है तो इससे रूसी राष्ट्रपति व्लादीमीर पुतिन के यूरेशियन यूनियन निर्माण का स्वप्न बिखर सकता है। पूर्व सोवियत संघ के सदस्य देशों के साथ 2015 तक यूरेशियन यूनियन का गठन पुतिन की क्षेत्रीय रणनीति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा था। इस संघ में यूक्रेन नींव के पत्थर की तरह हो सकता था। यूरोपियन यूनियन के बरक्स यूरेशियन यूनियन खड़ा होता तो यूरोप के साथ-साथ वैश्विक राजनीतिक, आर्थिक समीकरण भी बदलते, लेकिन फिलहाल इन सारी संभावनाओं पर रोक लग गई है। यूक्रेन में राजनीति का ऊंट अब किस करवट बैठेगा, इसका इंतजार सब को है।

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