S.No.
|
International
Organization
|
Headquarter
|
Year
of Establishment
|
1
|
Amnesty
International
|
London,
U.K.
|
1961
|
2
|
Arab
League
|
Cairo,
Egypt
|
1945
|
3
|
Asian
Development Bank
|
Manila,
Philippines
|
1966
|
4
|
Association
of South-East Asian Nations (ASEAN)
|
Jakarta,
Indonesia
|
1967
|
5
|
African
Union (AU)
|
Darban,
South Africa
|
2002
|
6
|
Asia
Pacific Economic Co-operation (APEC)
|
Singapore
|
1989
|
7
|
Asia-Europe
Meeting (ASEM)
|
Bangkok
(Thailand)
|
1996
|
8
|
Asian
Clearing Union (ACU)
|
Tehran
|
1975
|
9
|
Asia
Co-operation Dialogue
|
Thailand
|
2002
|
10
|
Asian–African
Legal Consultative Organization (AALCO)
|
New
Delhi, India
|
1956
|
11
|
Arab
Maghreb Union
|
Rabat -
Marocco
|
1989
|
12
|
Andean
Community of Nations
|
Lima,
Peru
|
1969
|
13
|
African
Civil Aviation Commission (AFCAC)
|
Addis
Ababa
|
1947
|
14
|
Agency
for Air Navigation Safety in Africa and Madagascar (ASECNA)
|
Dakar
|
1959
|
15
|
Arab
Civil Aviation Commission (ACAC)
|
Rabat
in Kingdom of Morocco
|
1996
|
16
|
Advisory
Centre on WTO Law (ACWL), Geneva
|
Geneva
|
2001
|
17
|
Tokyo
|
1961
|
|
18
|
ASEAN
Promotion Centre on Trade, Investment and Tourism (ASEAN-Japan Centre)
|
Tokyo
|
|
19
|
Asian
Football Confederation (AFC)
|
Kuala
Lumpur, Malaysia
|
1954
|
20
|
Agency
for International Trade Information and Cooperation (AITIC), Geneva
|
Geneva
|
1995
|
21
|
African, Caribbean and Pacific Group of States (ACP)
|
Brussels
|
1957
|
22
|
Amazon
Cooperation Treaty Organization (ACTO)
|
Brasilia
|
2002
(Permanent Secretariet Estb.)
|
23
|
Arbitration
and Conciliation Court within the (OSCE)
|
Geneva
|
1995
|
24
|
Airline
Telecommunications and Information Services (SITA)
|
Belgium
|
1949
|
25
|
Airports
Council International (ACI)
|
Prev.
Geneva,Switzerland now Montreal, Canada
|
1948
|
26
|
Aeronautical
Radio, Inc. – Industry Activities (ARINC)
|
Headquarters
in Annapolis, Maryland; EMEA Regional Headquarters in London, United Kingdom;
Asia Pacific Regional Headquarters in Singapore;
|
1929
|
27
|
African
Airlines Association (AFRAA)
|
Nairobi
|
1968
|
28
|
African
Civil Aviation Commission(AFCAC)
|
Dakar -
Senegal
|
1964
|
29
|
Africa
Institute of South Africa
|
Pretoria -
South Africa
|
1960
|
30
|
Bank
of the South
|
Caracas -
Venezuela
|
2007
|
31
|
Bay
of Bengal Initiative for Multi-Sectoral Technical and Economic Cooperation
|
Bangkok -
Thailand
|
1997
|
32
|
Black
Sea Economic Cooperation
|
Istanbul - Turkey
|
1992
|
33
|
Brazilian
Centre for International Relations (CEBRI)
|
Rio de Janeiro - Brazil
|
1998
|
34
|
Brunei
Darussalam Indonesia Malaysia the Philippines - East ASEAN Growth Area
|
Manila -
Philippines
|
1994
|
35
|
Bank
for International Settlements (BIS)
|
Basel
|
1930
|
36
|
Benelux Economic Union
|
Brussels
|
1958
|
37
|
Caribbean
Community (CARICOM) Secretariat
|
Georgetown -
Guyana
|
1973
|
38
|
Caribbean
Regional Negotiating Machinery (CRNM)
|
Kingston - Jamaica
|
1997
|
39
|
Center
for Policy Dialogue – Bangladesh
|
Dhaka -
Bangladesh
|
1993
|
IAS Charisma is a brainchild of Dr. Kumar Ashutosh, a Ph.D. in History, PGDM(Marketing) and Double M.A.(History and Philosophy), an IAS aspirant himself, he cleared IAS Mains twice and faced IAS interview before starting on this journey of guiding future IAS aspirants to help them in tackling with the problems that he had to face during IAS preparation. IAS Charisma is an endeavor to light a candle for IAS aspirants who sometimes get lost in commercialization of education.
शनिवार, 6 अप्रैल 2013
International Organisation - Part 1
खादी और ग्राम उदयोग आयोग द्वारा रोजगार सृजन
खादी और ग्राम उद्योग आयोग (केवीआईसी) महात्मा गांधी के विचारों का
प्रचार है। उद्योगों का विकास साधारण चरखे में प्रतिबिंबत किया गया है। महात्मा
गांधी की प्रेरणा के अधीन भारत की राजनीतिक स्वतंत्रता के राष्ट्रीय संघर्ष ने
ग्रामीण उद्योगों के संरक्षण, सुरक्षा और प्रोत्साहन के लिए सहगामी संघर्ष का रूप लिया। मिलों द्वारा
तैयार किए गए सस्ते उत्पादों की असमान प्रतिस्पर्द्धा ने ग्रामीण दस्तकारों और
शिल्पकारों के रोजगार और आजीविका के लिए खतरा पैदा कर दिया।
गांधी जी ने जीवन शैली और उपभोग में सादेपन को प्राथमिकता दी। भारतीय
विकास के लिए गांधीवादी रणनीति अतिरिक्त जनशक्ति के विशाल प्रयोग और उत्पादन
प्रक्रियाओं में उसकी सक्रिय भागीदारी से संबद्ध थी। गांधीवादी मुहावरे में कुटीर
और ग्राम उद्योग जीवन शैली के लिए समर्थन ढांचे का प्रतिनिधित्व करते हैं। गांधी
जी ने इस विचार का जोरदार समर्थन किया था कि ग्राम उद्योग और शिल्प ग्रामीण जीवन
का महत्वपूर्ण भाग हैं और आत्मनिर्भर ग्राम के अस्तित्व को सुनिश्चित करने के
लिए उसका जोरदार संरक्षण किया जाना चाहिए। वास्तव में, यह ब्रिटिश उद्योग के अतिक्रमण के
प्रति रक्षा कवच के रूप में प्रतिक्रियात्मक दृष्टिकोण था।
असली भारत गांवों में रहता है। भारत की ग्रामीण आबादी का एक बड़ा हिस्सा
इसकी अर्थव्यवस्था का एक प्रमुख स्रोत है और यह कुटीर उद्योग द्वारा समर्थित है, जिसने भारत की सांस्कृतिक धरोहर
को काफी हद तक संरक्षित रखने का काम किया है।
खादी और ग्राम उद्योग आयोग देश में रोजगार पैदा करने की प्रमुख
योजनाओं को कार्यान्वित कर रहा है। यह
क्षेत्र 11वीं पंचवर्षीय योजना अवधि के दौरान 16.07 लाख लोगों को रोजगार प्रदान कर
सका है।
प्रधानमंत्री की रोजगार गारंटी कार्यक्रम योजना (पीएमईजीपी) देश में
सूक्ष्म उद्यमों के जरिए रोजगार के अवसर पैदा करने का एक प्रमुख कारक रहा है। यह
ऋण-संबद्ध सब्सिडी कार्यक्रम है, जिसमें सामान्य वर्ग के लाभार्थी ग्रामीण क्षेत्रों में परियोजना लागत के
25 प्रतिशत और शहरी क्षेत्रों में 15 प्रतिशत की सब्सिडी मार्जिन राशि प्राप्त कर
सकते हैं। इसके अलावा विशेष वर्गों यथा अनुसूचित जाति, अनुसूचित
जनजाति, अन्य पिछड़े वर्ग, अल्पसंख्यक,
महिलाएं, भूतपूर्व सैनिक, शारीरिक रूप से विकलांग, पूर्वोत्तर क्षेत्र,
पर्वतीय और सीमावर्ती क्षेत्रों से संबंध रखने वाले लाभार्थियों के
लिए ग्रामीण क्षेत्रों में सब्सिडी की मार्जिन राशि 35 प्रतिशत और शहरी क्षेत्रों
में 25 प्रतिशत है। विनिर्माण क्षेत्र में परियोजना की सर्वाधिक राशि 25 लाख रूपये
और सेवा क्षेत्र में दस लाख रूपये है।
इस योजना की बेरोजगार लोगों में और प्रमुख कार्यान्वयन भागीदार यथा
बैंकों, विशेष
रूप से पूर्वोत्तर राज्यों और जम्मू कश्मीर राज्य में उत्साहवर्धक
प्रतिक्रिया रही है। वर्ष 2011-12 के दौरान पूर्वोत्तर क्षेत्र के लिए निर्धारित
मार्जिन राशि 80 करोड़ रूपये रखी गई थी लेकिन 31 मार्च 2012 तक वास्तविक वितरण एक
सौ एक करोड़ रूपये यानी लक्ष्य का 126 प्रतिशत के आंकड़े तक पहुंच गया है।
समूह विकास के लिए परम्परागत उद्योगों को पुनर्जीवित करने के लिए धन
उपलब्ध कराने की योजना ने भी परम्परागत उद्योगों को पुनर्जीवित करने और दस्तकारों
की मजदूरी बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। इस योजना के अधीन पूर्वोत्तर
क्षेत्र में दो खादी, 11 ग्राम
उद्योग और दो कॉयर समूहों को चालू किया गया है। इसके लिए उन्हें संवर्धित उपकरण,
सामान्य सुविधा केंद्र, कारोबार विकास सेवाएं,
प्रशिक्षण, क्षमता निर्माण और डिजाइन तथा
विपणन सुविधाएं प्रदान की गई हैं।
केवीआईसी की नई योजनाएं
केवीआईसी को केवीआई उत्पादों के निर्यात को बढ़ावा देने के लिए
वाणिज्य मंत्रालय द्वारा निर्यात
प्रोत्साहन परिषदका मानद दर्जा प्रदान किया गया है। यह
केवीआई क्षेत्र के लिए निर्यात के अवसर पैदा करने का एक बड़ा प्रयास सिद्ध होगा।
केवीआईसी ने डिजाइन और फैशन प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में व्यावसायिक
विशेषज्ञता का लाभ उठाने के लिए मुंबई स्थित निफ्ट के साथ संपर्क स्थापित किए हैं
और एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए गए हैं। निफ्ट, केवीआईसी की डिजाइन सैल गठित करने
में सहायता करेगा जिसे बाजार में बिक्री के वास्ते वस्त्र तैयार करने के लिए
खादी संस्थाओं द्वारा प्रयोग में लाया जाएगा।
निर्यात को बढ़ावा देने के लिए केवीआईसी भारतीय विदेश व्यापार संस्था
के साथ समझौता ज्ञापन के तौर-तरीकों पर काम कर रहा है, जो केवीआई संस्थाओं और इकाईयों
की निर्यात के क्षेत्र में क्षमता निर्माण में व्यावसायिक विशेषज्ञता लाएगा और
खादी एवं ग्राम उद्योग क्षेत्र के लिए निर्यात के बाजार भी तैयार करेगा।
केवीआईसी द्वारा इस क्षेत्र में उत्पादित खादी और ग्राम उद्योग की
वस्तुओं की बिक्री को बढ़ावा देने के लिए बंगलुरू, गुवाहाटी और नगालैंड में कई खादी प्लाजा बनाये जा
रहे हैं।
क्षेत्र/राज्य से बाहर प्रदर्शनी में भाग लेने के लिए पूर्वोत्तर
क्षेत्र, जम्मू
कश्मीर, अंडमान निकोबार बोर्ड की इकाईयों और खादी एवं ग्राम
उद्योग संस्थाओं के दस्तकारों और बुनकरों आदि की यात्रा, ठहरने
और भोजन के लिए अनुदान सहायता देने के विशेष पैकेज शुरू किए गए हैं। यह इन
क्षेत्रों की संस्थाओं और इकाईयों को प्रमुख प्रदर्शिनयों में सक्रिय रूप से भाग
लेने के लिए प्रोत्साहित करेंगे। इससे वे अपने उत्पादों की बिक्री बढ़ा सकेंगे
और उनमें व्यावहारिकता भी ला सकेंगे।
वर्ष 2012-13 के दौरान ब्रैंड प्रोत्साहन, उत्पाद विकास, विभागीय बिक्री केंद्रों की सुव्यवस्था, सरकारी
आपूर्तियों और निर्यात के क्षेत्रों पर विशेष ध्यान दिया जाएगा। यह व्यावसायिक
एजेंसियों जैसे आईआईएफटी, सीआईआई, निफ्ट
आदि के सहयोग से प्राप्त किया जाएगा। इसके अलावा देश और विदेश में प्रदर्शनियों,
क्रय-विक्रय मेलों, कार्यशालाओं, गोष्ठियों और प्रशिक्षण कार्यक्रम आदि का भी आयोजन किया जाएगा।
- अंतर्राष्ट्रीय प्रदर्शनियों और क्रय-विक्रय मेलों में भागीदारी के जरिए निर्यात बाजार को बढ़ावा देना। केवीआई उत्पादों के निर्यात को बढ़ावा देने के लिए केवीआई संस्थाओं और प्रधानमंत्री रोजगार गारंटी कार्यक्रमों के जरिए निर्यात बाजार को प्रोत्साहित करना।
- निर्यातोन्मुख केवीआई संस्थाओं और आरईजीपी/पीएमईजीपी इकाईयों के निर्यात संघों को बढ़ावा देना। यह निर्यात को बढ़ावा देने और निर्यात योग्य इकाईयों की सहायता में प्रमुख भूमिका निभा सकते हैं।
- एशियाई विकास बैंक की सहायता से बाजारों को बड़े पैमाने पर बढ़ावा दिया जा रहा है। इसमें केवीआईसी के साथ भागीदार के रूप में निजी क्षेत्र की संस्थाओं का चयन किया जाएगा, जो पूरे देश में बड़े पैमाने पर कारोबार करेंगे।
केवीआईसी के कार्य निष्पादन का विहंगम दृष्टिपात
ब्यौरा
|
2010-11
|
2011-12
|
उत्पादन (करोड़ रूपये में)
|
रूपये 19,871.86
|
21,852.00
|
बिक्री (करोड़
रूपये में)
|
रूपये 25,792.99
|
26,797.13
|
रोजगार
(लाखों में )
|
113.80
|
119.10
|
PIB
Pakistan’s Dangerous Quest for Tactical Nukes
Pakistan’s quest to acquire
tactical nuclear weapons (TNWs) has added a dangerous dimension to the already
precarious strategic equation in South Asia. The security discourse in the
subcontinent revolves around the perennial apprehension of a conventional or
sub-conventional conflict triggering a chain reaction, eventually paving the
way for a potential nuclear crisis haunting peace and stability in the region.
The Pakistan army’s
directorate of Inter-Services Public Relations (ISPR), announced the successful
testing of the 60-km nuclear-capable short-range missile Hatf IX (Nasr) on 11
February 2013 and declared, “…Nasr, can carry nuclear warheads of appropriate
yield, with high accuracy… and has been specially designed to defeat all known
anti-tactical missile defence systems.” The test, an implicit signal to the
region about Pakistan’s commitment to developing “full spectrum deterrence
including the use of TNWs”, was witnessed by the Chairman, Joint Chiefs of
Staff Committee, General Khalid Shameem Wynne, Director General Strategic Plans
Division, Lieutenant General Khalid Ahmed Kidwai (Retd), and Commander Army
Strategic Forces Command, Lieutenant General Tariq Nadeem Gilani.
While Pakistan believes that
the Nasr “adds deterrence value to Pakistan’s strategic weapons development
programme at shorter ranges,” it has, in fact, further lowered its nuclear
threshold through the likely use of TNWs. Pakistan has not formally declared a
nuclear doctrine, but it is well known that nuclear weapons are its first line
of defence. Its presumed “first-use” policy is aimed at negating India’s
conventional military superiority by projecting a low nuclear threshold. The
use of TNWs in the India-Pakistan case will alter the strategic scenario
completely as Pakistan would threaten India with the use of TNWs in the event
of New Delhi responding against Islamabad with a conventional strike in
reaction to a 26/11-style terrorist attack. According to the Pakistan army,
TNWs are designed to counter India’s Cold Start doctrine. Under this new
policy, Indian troop formations could well face an onslaught of Pakistani TNWs.
Tactical nuclear weapons,
often referred to as “battlefield”, “sub-strategic”, or “non-strategic” nuclear
weapons, usually have a plutonium core and are typically distinct from
strategic nuclear weapons. Therefore, they warrant a separate consideration in the
realm of nuclear security. The yield of such weapons is generally lower than
that of strategic nuclear weapons and may range from the relatively low 0.1
kiloton to a few kilotons. As Pakistan is already building its fourth nuclear
reactor at Khushab—a plutonium producing unit, the clamour in the Pakistan
armed forces for manufacturing tactical nuclear weapons has gone up.
Pakistan has been advocating
the concept of a Strategic Restraint Regime based upon the principle of nuclear
restraint and conventional force reductions and has termed it as a strategic
confidence-building measure. Often citing what it terms as “India’s
conventional military threat”, Pakistan forgets that given its offensive
strategic posture and continuing involvement in terror strikes in India, it is
New Delhi which is confronted with the problem of developing a strategy to
counter Pakistan’s “first-strike” and proxy war in light of its declared
“no-first-use” policy.
India has always viewed
nuclear weapons as a political instrument whose sole purpose is to deter the
use and threat of use of nuclear weapons against itself. India’s nuclear
doctrine clearly outlines the strategy of credible minimum deterrence and also
establishes that India will not be the first to initiate a nuclear strike.
However, India shall respond with punitive retaliation should deterrence fail.
To achieve this end, India’s nuclear doctrine calls for a sufficient,
survivable and operationally prepared nuclear force; a robust command and
control system; effective intelligence and early warning capabilities;
comprehensive planning and training for operations in line with strategy; and
requisite primary and alternate chains of command to employ nuclear weapons.
If Pakistan intends to
develop these lower-yield nuclear warheads that can be fired from short-range
tactical missiles, a future limited war scenario with India with grave
repercussions remains a possibility. Pakistan should cooperate with India by
taking requisite steps to stabilise nuclear deterrence and minimise existential
nuclear dangers. It should not indulge in further destabilising nuclear
deterrence in the name of “balancing the asymmetry with India in conventional
capabilities.” India, yet again, has acted as a responsible player by not going
down the TNW route fully acknowledging the perils involved. Pakistan needs to
introspect. Even one nuclear strike-- tactical or otherwise --whether in India
or against Indian forces, shall unquestionably invite massive punitive
retaliation that will finish Pakistan as a nation state.
The history of nuclear
deterrence tells us that TNWs lower the nuclear threshold and that makes them
inherently destabilising. Their command and control is complex as it involves
delegation of the authority to launch to commanders in the field if they are to
avoid being confronted with the “use them, or lose them” challenge. Pakistan
has opted to go down a dangerous path. It must stop its quest for TNWs as
weapons of war.
- See more at:
http://www.vifindia.org/article/2013/march/29/pakistan-s-dangerous-quest-for-tactical-nukes#sthash.YawtlH6t.dpuf
शुक्रवार, 5 अप्रैल 2013
ऑटिज्म (Autism)
ऑटिज़्म (Autism) को कई नामों से जाना जाता है जैसे स्वलीनता,
मानसिक रोग, स्वपरायणता। हर साल 2 अप्रैल को आटिज्म जागरूकता दिवस मनाया जाता है। ऑटिज्म मस्तिष्क के विकास
में बाधा डालने और विकास के दौरान होने वाला विकार है। ऑटिज्म से ग्रसित व्यक्ति
बाहरी दुनिया से अनजान अपनी ही दुनिया में खोया रहता है। क्या आप जानते हैं
व्यक्ति के विकास संबंधी समस्याओं में ऑटिज्म तीसरे स्थान पर है यानी व्यक्ति के
विकास में बाधा पहुंचाने वाले मुख्य कारणों में ऑटिज्म भी जिम्मेदार है।
ऑटिज़्म क्या है ?
जब व्यक्ति
के सामाजिक व्यवहार और संपर्क को प्रभावित करता है। इससे प्रभावित व्यक्ति, सीमित और दोहराव युक्त
व्यवहार करता है जैसे एक ही काम को बार-बार दोहराना। यह सब बच्चे के तीन साल होने
से पहले ही शुरू हो जाता है। इन लक्षणों के हल्के (कम प्रभावी) को ऑटिज्म
स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर (ASD) कहते है (जैसे एस्पर्जर सिंड्रोम)
तथा इसके गंभीर रूप को ऑटिज़्म (ऑटिस्टिक डिसऑर्डर) कहते हैं। ऑटिज़्म का एक
मज़बूत आनुवंशिक आधार होता है, हालांकि ऑटिज़्म की आनुवंशिकी
जटिल है और यह स्पष्ट नहीं है कि ASD का कारण बहुजीन संवाद (multigene
interactions) है या दुर्लभ उत्परिवर्तन (म्यूटेशन)। औसतन ASD
का पुरुष:महिला अनुपात 3:1 है। ऑटिज़्म से
ग्रसित बच्चे आम बच्चो के मुक़ाबले कम संलग्न सुरक्षा का प्रदर्शन करते हैं । ASD
से ग्रसित बडे बच्चे और व्यस्क चेहरों और भावनाओं को पहचानने के
परीक्षण में बहुत बुरा प्रदर्शन करते हैं। ASD से पीडित
लोगों के गुस्से और हिंसा के बारे में काफ़ी किस्से हैं लेकिन वैज्ञानिक अध्ययन
बहुत कम हैं। यह सीमित आँकडे बताते हैं कि ऑटिज़्म के शिकार मंद बुद्धि बच्चे ही
अक्सर आक्रामक या उग्र होते हैं।
समस्याएं
- ऑटिज्म के दौरान व्यक्ति को कई समस्याएं हो सकती हैं, यहां तक कि व्यक्ति मानसिक रूप से विकलांग हो सकता है।
- ऑटिज्म के रोगी को मिर्गी के दौरे भी पड़ सकते हैं।
- कई बार ऑटिज्म से ग्रसित व्यक्ति को बोलने और सुनने में समस्याएं आती हैं।
- ऑटिज्म जब गंभीर रूप से होता है तो इसे ऑटिस्टिक डिस्ऑर्डर के नाम से जाना जाता है लेकिन जब ऑटिज्म के लक्षण कम प्रभावी होते हैं तो इसे ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिस्ऑर्डर (ASD) के नाम से जाना जाता है। एएसडी के भीतर एस्पर्जर सिंड्रोम शामिल है।
ऑटिज़्म का प्रभाव
- ऑटिज्म पूरी दुनिया में फैला हुआ है। क्या आप जानते हैं वर्ष 2010 तक विश्व में तकरीबन 7 करोड़ लोग ऑटिज्म से प्रभावित हैं।
- इतना ही नहीं दुनियाभर में ऑटिज्म प्रभावित रोगियों की संख्या मधुमेह, कैंसर और एड्स के रोगियों की संख्या मिलाकर भी इससे अधिक है।
- ऑटिज्म प्रभावित रोगियों में डाउन सिंड्रोम की संख्या अपेक्षा से भी अधिक है।
- आप ऑटिज्म पीडि़तों की संख्या का इस बात से अंदाजा लगा सकते हैं कि दुनियाभर में प्रति दस हजार में से 20 व्यक्ति इस रोग से प्रभावित होते हैं।
- लेकिन कई शोधों में यह भी बात सामने आई है कि ऑटिज्म महिलाओं के मुकाबले पुरूषों में अधिक देखने को मिला है। यानी 100 में से 80 फीसदी पुरूष इस बीमारी से प्रभावित हैं।
ऑटिज्म के लक्षण
ऑटिज़्म परवेसिव डेवलॅपमेंटल डिसआर्डर (पी.डी.डी.) के
पाँच प्रकारों में से एक है। आटिज्म को केवल एक लक्षण के आधार पर पहचाना नहीं जा
सकता, बल्कि लक्षणों के पैटर्न के आधार पर ही
आटिज्म की पहचान की जा सकती है। सामाजिक कुशलता व संप्रेषण का अभाव, किसी कार्य को बार-बार दोहराने की प्रवृत्ति तथा सीमित रुझान इसके प्रमुख
लक्षण हैं। बच्चे की तीन वर्ष की उम्र में
ही आटिज्म के लक्षण दिखाई देते हैं, इससे पहले नहीं। गौर
करने वाली बात यह है कि ऑटिज्म से पीड़ित दो बच्चों के लक्षण समान नहीं होते हैं।
जहाँ कुछ बच्चों में यह बीमारी सामान्य रूप में होती है, तो
कुछ में इसका प्रभाव ज़्यादा देखने को मिलता है। ऑटिज़्म मस्तिष्क के कई भागों को
प्रभावित करता है, पर इसके कारणों को ढंग से नहीं समझा जाता।
आमतौर पर माता पिता अपने बच्चे के जीवन के पहले दो वर्षों में ही इसके लक्षणों को
भाँप लेते हैं। ऑटिज़्म को एक लक्षण के बजाय एक विशिष्ट लक्षणों के समूह द्वारा
बेहतर समझा जा सकता है। मुख्य लक्षणों में शामिल हैं-
सामाजिक
संपर्क में असमर्थता
ऑटिज्म से ग्रस्त व्यक्ति परस्पर संबंध स्थापित नहीं कर
पाते हैं तथा सामाजिक व्यवहार में असमर्थ होने के साथ ही दूसरे लोगों के मंतव्यों
को समझने में भी असमर्थ होते हैं। सामाजिक असमर्थतायें बचपन से शुरू हो कर व्यस्क
होने तक चलती हैं। ऑटिस्टिक बच्चे सामाजिक गतिविधियों के प्रति उदासीन होते हैं, वो लोगो की ओर ना देखते हैं, ना मुस्कुराते हैं और
ज़्यादातर अपना नाम पुकारे जाने पर भी सामान्य: कोई प्रतिक्रिया नहीं करते हैं।
ऑटिस्टिक शिशुओं का व्यवहार तो और चौंकाने वाला होता है, वो
आँख नहीं मिलाते हैं, और अपनी बात कहने के लिये वो अक्सर
दूसरे व्यक्ति का हाथ छूते और हिलाते हैं। तीन से पाँच साल के बच्चे आमतौर पर
सामाजिक समझ नहीं प्रदर्शित करते हैं, बुलाने पर एकदम से
प्रतिकिया नहीं देते, भावनाओं के प्रति असंवेदनशील, मूक व्यवहारी और दूसरों के साथ मुड़ जाते हैं। ऑटिज़्म से ग्रसित बच्चे आम
बच्चो के मुक़ाबले कम संलग्न सुरक्षा का प्रदर्शन करते हैं (जैसे आम बच्चे माता
पिता की मौजूदगी में सुरक्षित महसूस करते हैं)।
बातचीत
करने में असमर्थता
आटिज्म प्रभावित बच्चों की सबसे बड़ी समस्या भाषागत होती
है। ऐसे बच्चों में मस्तिष्क में आए स्नायु विकार के कारण संप्रेषण की डीकोडिंग न
हो पाने के कारण बोलने में दिक्कत का सामना करना पड़ता है। लगभग 50% बच्चों में भाषा का विकास नहीं हो पाता है। एक तिहाई से लेकर आधे ऑटिस्टिक
व्यक्तियों में अपने दैनिक जीवन की जरूरतों को पूरा करने के लायक़ भाषा बोध तथा
बोलने की क्षमता विकसित नहीं हो पाती। उनके भाव अक्सर उनके बोले शब्दों से मेल
नहीं खाते। आटिस्टिक बच्चों में अनुरोध करने या अनुभवों को बाँटने की संभावना कम
होती है, और उनमें बस दूसरों की बातें को दोहराने की संभावना
अधिक होती है।
सीमित
शौक़ और दोहराव युक्त व्यवहार
- वे एक ही क्रिया, व्यवहार को दोहराते हैं, जैसे- हाथ हिलाना, शरीर हिलाना और बिना मतलब की आवाज़ें करना आदि। जिसे स्टीरेओटाईपी कहते है यह एक निरर्थक प्रतिक्रिया है।
- प्रतिबंधित व्यवहार ध्यान, शौक़ या गतिविधि को सीमित रखने से संबधित है, जैसे एक ही टीवी कार्यक्रम को बार बार देखना।
- समानता का अर्थ परिवर्तन का प्रतिरोध है, उदाहरण के लिए, फर्नीचर के स्थानांतरण से इंकार।
- वे प्रकाश, ध्वनि, स्पर्श और दर्द जैसे संवेदनों के प्रति असामान्य प्रतिक्रिया दर्शाते हैं। उदाहरण के तौर पर वह प्रकाश में अपनी आंखों को बंद कर लेते हैं, कुछ विशेष ध्वनियां होने पर वह अपने कानों को बंद कर लेते हैं।
- आत्मघात (स्वयं को चोट पहुँचाना) से अभिप्राय है कि कोई भी ऐसी क्रिया जिससे व्यक्ति खुद को आहत कर सकता हो, जैसे- खुद को काट लेना। डोमिनिक एट अल के अनुसार लगभग ASD से प्रभावित 30% बच्चे स्वयं को चोट पहँचा सकते हैं।
- अनुष्ठानिक व्यवहार के प्रदर्शन में शामिल हैं दैनिक गतिविधियों को हर बार एक ही तरह से करना, जैसे- एक सा खाना, एक सी पोशाक आदि। यह समानता के साथ निकटता से जुड़ा है, और एक स्वतंत्र सत्यापन दोनो के संयोजन की सलाह देता है।
- बाध्यकारी व्यवहार का उद्देश्य नियमों का पालन करना होता है, जैसे कि वस्तुओं को एक निश्चित तरह की व्यवस्था में रखना।
खेलने
का उनका अपना असामान्य तरीका
ऑटिज्म से पीड़ित बच्चे अलग तरीके के खेल खेलते हैं, जैसे कई कारों को क्रमबद्ध करने का खेल। ये बच्चे खिलौने को आम बच्चों की
तुलना में अधिक घुमाते हैं। ऐसे बच्चे समूह में रहना पसंद नहीं करते, उनकी अपनी अलग ही दुनिया होती है। वह बिना किसी बात के रोने और चिल्लाने
लगते हैं। इस तरह के बच्चे अपने गुस्से, हताशा आदि का इजहार
बोल कर नहीं कर पाते। कार्यात्मक संभाषण के लिए संयुक्त ध्यान आवश्यक होता है,
और इस संयुक्त ध्यान में कमी, ASD शिशुओं को
अन्यों से अलग करता है।
बच्चों में ऑटिज्म की पहचान
- बच्चों में ऑटिज्म को बहुत आसानी से पहचाना जा सकता है। बच्चों में ऑटिज्म के कुछ लक्षण इस प्रकार हैं।
- कभी–कभी किसी भी बात का जवाब नहीं देते या फिर बात को सुनकर अनसुना कर देते हैं। कई बार आवाज लगाने पर भी जवाब नहीं देते।
- किसी दूसरे व्यक्ति की आंखों में आंखे डालकर बात करने से घबराते हैं।
- अकेले रहना अधिक पसंद करते हैं, ऐसे में बच्चों के साथ ग्रुप में खेलना भी इन्हें पसंद नहीं होता।
- बात करते हुए अपने हाथों का इस्तेमाल नहीं करते या फिर अंगुलियों से किसी तरह का कोई संकेत नहीं करते।
- बदलाव इन्हें पसंद नहीं होता। रोजाना एक जैसा काम करने में इन्हें मजा आता है।
- यदि कोई बात सामान्य तरीके से समझाते हैं तो इस पर अपनी कोई प्रतिक्रिया नहीं देते।
- बार-बार एक ही तरह के खेल खेलना इन्हें पसंद होता हैं।
- बहुत अधिक बेचैन होना, बहुत अधिक निष्क्रिय होना या फिर बहुत अधिक सक्रिय होना। कोई भी काम एक्सट्रीम लेवल पर करते हैं।
- ये बहुत अधिक व्यवहार कुशल नहीं होते और बचपन में ही ऐसे बच्चों में ये लक्षण उभरने लगते हैं। बच्चों में ऑटिज्म को पहचानने के लिए 3 साल की उम्र ही काफी है।
- इन बच्चों का विकास सामान्य बच्चों की तरह ना होकर बहुत धीमा होता है।
ऑटिज्म होने के कारण
- अभी तक शोधों में इस बात का पता नहीं चल पाया है कि ऑटिज्म होने का मुख्य कारण क्या है। यह कई कारणों से हो सकता है।
- जन्म संबंधी दोष होना।
- बच्चे के जन्म से पहले और बाद में जरूरी टीके ना लगवाना।
- गर्भावस्था के दौरान मां को कोई गंभीर बीमारी होना।
- दिमाग की गतिविधियों में असामान्यता होना।
- दिमाग के रसायनों में असामान्यता होना।
- बच्चे का समय से पहले जन्म या बच्चे का गर्भ में ठीक से विकास ना होना।
सदस्यता लें
संदेश (Atom)
कुल पेज दृश्य
लेबल
- Indian History (1)
- कार्य निष्पादन योजना (1)
- भारतीय रेल (1)
- साफ-सफाई (1)