शुक्रवार, 15 मार्च 2013

टेलीविजन - दूरदर्शन



दूरदर्शन भारत का सरकारी दूरदर्शन चैनल है। यह भारत सरकार द्वारा नामित पर्षद् प्रसार भारती के अंतर्गत चलाया जाता है। दूरदर्शन के प्रसारण की शुरूआत भारत में दिल्ली सितंबर, 1959 को हुई। प्रसार-कक्ष तथा प्रेषित्रो की आधारभूत सेवाओं के लिहाज़ से यह विश्व का दूसरा सबसे विशाल प्रसारक है। हाल ही मे इसने अंकीय पार्थिव प्रेषित्रो(डिजिटल स्थलचर संचारी) (Digital Terrestrial Transmitters) सेवा शुरु की। आकाशवाणी के भाग के रूप में टेलीविजन सेवा की नियमित शुरूआत दिल्ली (1965); मुम्बई (1972); कोलकाता (1975), चेन्नैई (1975) में हुई। दूरदर्शन की स्थापना 15 सितम्बर 1976 को हुई। उसके बाद रंगीन प्रसारण की शुरूआत नई दिल्ली में 1982 के एशियाई खेलों के दौरान हुई, जिसके साथ देश में प्रसारण क्षेत्र में बड़ी क्रांति आ गई। उसके बाद दूरदर्शन का तेजी से विकास हुआ और 1984 में देश में लगभग हर दिन एक ट्रांसमीटर लगाया गया।
दूरदर्शन में महत्वपूर्ण मोड़ इस प्रकार आए:
  • दूसरे चैनल की शुरूआत
  • दिल्ली (9 अगस्त  1984), मुम्बई (1 मई 1985), चेन्नई (19 नवम्बोर 1987), कोलकात्ता (1 जुलाई 1988)
  • मेट्रो चैनल शुरू करने के लिए एक दूसरे चैनल की नेटवर्किंग (26 जनवरी 1993)
  • अंतरराष्ट्रीय चैनल डीडी इंडिया की शुरूआत (14 मार्च 1995)
  • प्रसार भारती का गठन (भारतीय प्रसारण निगम) (23 नवम्ब र 1997)
  • खेल चैनल डीडी स्पोर्ट्स की शुरूआत (18 मार्च 1999)
  • संवर्धन/सांस्कृतिक चैनल की शुरूआत (26 जनवरी 2002)
  • 24 घण्टे के समाचार चैनल डीडी न्यू्ज की शुरूआत (3 नवम्ब92002)
  • निशुल्क डीटीएच सेवा डीडी डाइरेक्टी + की शुरूआत (16 दिसम्बर 2004)

दूरदर्शन ने देश में सामाजिक आर्थिक परिवर्तन, राष्ट्री य एकता को बढ़ाने और वैज्ञानिक सोच को गति प्रदान करने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। सार्वजनिक सेवा प्रसारक होने के नाते इसका उद्देश्य अपने कार्यक्रमों के माध्य्म से जनसंख्या नियंत्रण और परिवार कल्याण, पर्यावरण की सुरक्षा और पारिस्थितिकी संतुलन, महिलाओं, बच्चों  और विशेषाधिकार रहित वर्ग के समाज कल्याण उपायों को रेखांकित करना है। इसका उद्देश्य क्रीड़ा और खेलों तथा देश की कलात्मक और सांस्कृतिक विरासत को बढ़ावा देना भी है।

दूरदर्शन आज
दूरदर्शन के राष्ट्रीय नेटवर्क में 64 दूरदर्शन केन्द्र / निर्माण केन्द्रत, 24 क्षेत्रीय समाचार एकक, 126 दूरदर्शन रखरखाव केन्द्र, 202 उच्च शक्ति ट्रांसमीटर, 828 लो पावर ट्रांसमीटर, 351 अल्पशक्ति ट्रांसमीटर, 18 ट्रांसपोंडर, 30 चैनल तथा डीटीएच सेवा आती है। विभिन्न सवर्गों में 21708 अधिकारियों तथा कर्मचारियों के पद स्वीकृत हैं।

दूरदर्शन चैनल
  1. राष्ट्रीय चैनल (5): डीडी 1, डीडी न्यूसज़, डीडी भारती, डीडी स्पोनर्ट्स और डीडी उर्दू
  2. क्षेत्रीय भाषाओं के उपग्रह चैनल (11): डीडी उत्तर पूर्व, डीडी बंगाली, डीडी गुजराती, डीडी कन्न्ड़, डीडी कश्मीर, डीडी मलयालम, डीडी सहयाद्रि, डीडी उडिया, डीडी पंजाबी, डीडी पोधीगई और डीडी सप्‍‍तगिरी
  3. क्षेत्रीय राज्यं नेटवर्क (11): बिहार, झारखण्डर, छत्तीसगढ़, मध्यो प्रदेश, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, उत्तराखण्ड , हिमाचल प्रदेश, राजस्थान, मिजोरम और त्रिपुरा
  4. अंतरराष्ट्रीय चैनल (1): डीडी इंडिया

दूरदर्शन का त्रिस्तंरीय कार्यक्रम सेवा - राष्ट्रीय, क्षेत्रीय और स्थानीय है।
  • राष्ट्रीय सेवा में कार्यक्रम पूरे देश की रुचि के मुद्दों और घटनाओं पर केंद्रित होते हैं।
  • क्षेत्रीय सेवा में कार्यक्रम उस राज्यप के लोगों के हित की घटनाओं और मुद्दों पर केंद्रित होते हैं।
  • स्थानीय सेवा में उस विशेष ट्रांसमीटर की पहुंच में आने वाले लोगों की आवश्यपकताएं स्था।नीय भाषाओं और बोलियों में    विशेष कार्यक्रम से पूरी की जाती हैं।

इसके अतिरिक्त राष्ट्रीय और क्षेत्रीय सेवाओं के कार्यक्रम पूरे देश में दर्शकों के लिए उपग्रह पद्धति से उपलब्ध हैं।

कार्यक्रम के स्रोत: दूरदर्शन के विभिन्नर चैनलों के लिए कार्यक्रम इस प्रकार उपलब्ध हैं :

  1. आंतरिक निर्माण: दूरदर्शन के कर्मचारियों द्वारा दूरदर्शन के साधनों से तैयार कार्यक्रम, जिसमें दूरदर्शन द्वारा घटनाओं का सीधा प्रसारण होता है।
  2. तैयार कराए गए कार्यक्रम: योग्य लोगों द्वारा दूरदर्शन के कोष से तैयार कार्यक्रम
  3. प्रायोजित कार्यक्रम: निजी रूप से तैयार कार्यक्रम का दूरदर्शन द्वारा निशुल्क  वाणिज्यिक समय के बदले शुल्क भुगतान पर प्रसारण।
  4. रॉयल्टी कार्यक्रम: दूरदर्शन द्वारा बाहरी निर्माताओं से कार्यक्रम रॉयल्टी देकर एक या अनेक बार प्रसारित करना
  5. अधिग्रहीत कार्यक्रम: अधिकार शुल्क  देकर विदेशी कंपनियों से कार्यक्रम/घटना अधिग्रहीत करना
  6. शैक्षिक/विकास कार्यक्रम: सरकार की विभिन्नि एजेंसियों द्वारा निर्मित शैक्षिक/विकास कार्यक्रम

 कार्यक्रमों की शुरूआती निर्माण लागत निजी निर्माता का होता है। प्रसारण के बाद दूरदर्शन उत्पादन लागत का भुगतान करता है। कार्यक्रम दूरदर्शन द्वारा बेचा जाता है। इस योजना में प्रावधान है कि  टीआरपी मिलने पर स्वीकृ‍त उत्पादन लागत पर बोनस दिया जाए और कार्यक्रम के खराब प्रदर्शन पर उत्पादन लागत में कटौती।

डीडी- राष्ट्रीय चैनल

डीडी-I चैनल (राष्ट्रीय)
दूरदर्शन का डीडी-1 चैनल सामाजिक-आर्थिक परिवर्तन, राष्ट्रीय, एकता, वैज्ञानिक रुचि, ज्ञान का प्रसारण, शैक्षिक कार्यक्रम, सार्वजनिक जागरूकता, जनसंख्यान नियंत्रण के उपाय, परिवार कल्याण संदेश, पर्यावरण सुरक्षा और पारिस्थितिकी संतुलन, महिला कल्याअण उपाय, बच्चे  और कमजोर लोगों आदि के बारे में अपने कार्यक्रमों से महत्‍वपूर्ण योगदान दे रहा है। यह खेल और देश की कला और सांस्कृ तिक विरासत को भी बढ़ावा देता है।
सार्वजनिक सेवा प्रसार के अलावा मनोरंजन कार्यक्रमों, सामाजिक रूप से प्रासंगिक विभिन्न  विषयों पर धारावाहिकों का प्रसारण करता है। ये प्रायोजित/कमीशंड/स्ववित्त कमीशंड कार्यक्रम, फिल्म आदि के रूप में होते हैं।
राष्ट्रीय चैनल की सेवा स्थललीय माध्यकम के अलावा सेटेलाइट में सुबह 5.30 बजे 00.00 (आधी रात) और सेटेलाइट मोड में अगली सुबह 5.30 बजे से तक उपलब्ध है।
क्षेत्रीय भाषा उपग्रह सेवा: ग्यारह क्षेत्रीय भाषा उपग्रह सेवाएं इस प्रकार हैं:
  • डीडी मलयालम
  • डीडी सप्‍‍तगिरी (तेलुगु)
  • डीडी बंगाली
  • डीडी चंदन (कन्नीड़)
  • डीडी उडिया
  • डीडी सहयाद्रि (मराठी)
  • डीडी गुजराती
  • डीडी कश्मीतर (कश्मीरी)
  • डीडी पंजाबी,
  • डीडी उत्तर पूर्व
  • डीडी पोधीगई (तमिल)

क्षेत्रीय भाषा उपग्रह सेवाएं और क्षेत्रीय राज्यी नेटवर्क विकासात्म्क समाचार, धारावाहिक, वृत्त चित्र, समाचार और ताजा मामलों के कार्यक्रमों का प्रसारण लोगों की भाषा में संसूचित करने के लिए करते हैं। सामान्य् सूचना, सामाजिक और फिल्म‍ कार्यक्रम और अन्या बड़ी विधाओं के कार्यक्रम भी प्रसारित किए जाते हैं।

क्षेत्रीय राज्य  नेटवर्क: क्षेत्रीय राज्य् नेटवर्क हिंदी क्षेत्र उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखण्डर, छत्तीसगढ़, मध्यप प्रदेश, राजस्थान, हरियाणा और हिमाचल प्रदेश के लोगों की जरूरतें पूरी करता है। इस सेवा के कार्यक्रम विभिन्न  राज्यों् के राजधानी केंद्रों से तैयार और 3.00 और 8.00 बजे के बीच प्रसारित किए जाते हैं। इनका राज्यर के किसी भू ट्रांसमीटर रिले करते हैं।

डीडी न्यू्ज: डीडी न्यूज चैनल देश का एकमात्र 24 घंटे का स्थरलीय समाचार चैनल है, जिससे रोजाना हिंदी और अंग्रेजी में 16 घण्टे  से अधिक के समाचार बुलेटिनों का सीधा प्रसारण किया जाता है। हेडलाइंस, न्यूतज अपडेट, स्क्रोधलर पर ब्रेकिंग न्यू ज इस चैनल की विशेषताएं हैं। रोजाना संस्कृात और उर्दू में समाचार बु‍लेटिन भी प्रसारित किए जाते हैं। इसके अलावा विभिन्नय दूरदर्शन केंद्रों से जुड़ी क्षेत्रीय समाचार यूनिटें रोजाना क्षेत्रीय भाषाओं में विभिन्नो अवधि के समाचार बुलेटिन प्रसारित करती हैं। डीडी न्यू ज हेडलाइंस अब एसएमएस से हासिल किए जा सकते हैं।
डीडी न्यूज पूरे दिन स्टारक और वस्तु‍ओं के सूचकांक ऑटोमैटेड मोड से प्रसारित करता है जिसमें, एनएसई और बीएसई और एनसीडीईएक्से, एमसीएक्सक आदि अग्रणी वस्तु‍ बाजार की सूचनाएं होती हैं।

डीडी स्पोर्ट्स: यह देश का एकमात्र फ्री टु एयर स्पोकर्ट्स चैनल है। यह क्रिकेट, फुटबाल, हॉकी, टेनिस, कबड्डी, तीरंदाजी, एथलेटिक्स  और अन्यब देशी खेलों आदि का कवरेज करता है।
डीडी स्पोर्ट्स पर गैर ओलंपिक और परंपरागत खेलों के कवरेज के लिए एक नकद बाह्य प्रवाह प्रणाली की व्यटवस्थाम भी की गई है। यह चैनल विभिन्नी खेल फेडरेशनों और एसोसिएशनों द्वारा आयोजित खेल कार्यक्रमों को कवर करता है।

डीडी भारती: यह चैनल 26 जनवरी, 2002 को शुरू किया गया था। जोखिम, क्विज कांटेस्टई, ललित कला/पेंटिंग्सी, शिल्प  और डिजाइन, कार्टून, प्रतिभा खोज आदि के अलावा यह युवा लोगों के साथ एक घंटे के कार्यक्रम 'मेरी बात' का सीधा प्रसारण करता है।
स्वस्थय  जीवन शैली पर जोर देने वाले, इलाज की बजाय निवारण पर केंद्रित चिकित्सा  के आधुनिक और परंपरागत रूपों पर कार्यक्रमों का भी प्रसारण होता है। राष्ट्री य और अंतरराष्ट्री य ख्याेति के शीर्ष कलाकारों के शास्त्रीूय ऩृत्यि/संगीत कार्यक्रम इस चैनल पर दिखाए जाते हैं। इसके अलावा थिएटर, साहित्य्, संगीत, पेंटिंग्से, मूर्तिकला और वास्तुा शिल्पा पर कार्यक्रम भी दिखाए जाते हैं।
चैनल आईजीएनसीए, सीईसी, इग्नूस, पीएसबीटी, एनसीईआरटी और साहित्य  अकादमी जैसे संगठनों के सहयोग से भी कार्यक्रमों का प्रसारण करता है। चैनल आकाशवाणी संगीत सम्मे,लनों का व्याापक कवरेज करता है। क्षेत्रीय दूरदर्शन केंद्रों के कार्यक्रमों का सीधा रिकार्डेड प्रसारण होता है।

डीडी इंडिया: इस चैनल पर कार्यक्रम इस तरह किए जाते हैं कि विश्व  खासकर भारतीय लोगों को भारतीय सामाजिक, सांस्कृततिक, राजनीतिक और आर्थिक परिदृश्यस देखने का प्राथमिक उद्देश्यत पूरा हो सके। चैनल हिंदी, अंग्रेजी, उर्दू, संस्कृहत, गुजराती, मलयालम और तेलुगु में समाचार, सामयिक विषयों पर फीचर, अंतरराष्ट्री य महत्व  के मुद्दों पर चर्चाएं प्रसारित करता है। यह मनोरंजक कार्यक्रम, धारावाहिक, थिएटर, संगीत और नृत्य् के अलावा फिल्मोंग का प्रसारण भी करता है।
पंजाबी, उर्दू, तेलुगु, बंगाली, मराठी, कन्नरड़, मलयालम और गुजराती जैसी क्षेत्रीय भाषाओं के कार्यक्रम इस चैनल के आवश्यक संघटक हैं। स्वासधीनता दिवस, गणतंत्र दिवस समारोह, बजट प्रस्तुतीकरण और राष्ट्री य अंतरराष्ट्रीहय महत्वर की अन्यल घटनाओं का इस चैनल पर सीधा प्रसारण किया जाता है।

गुरुवार, 14 मार्च 2013

Myanmar: Imperatives to Economic Reforms


Since 2011, Myanmar has embarked upon a series of reforms, including political, economic, and administrative amendments. Progress has been made on the economic front with reforms initiated to address issues of corruption, currency exchange rates, and integrated foreign investment and taxation laws. However, the pace and extent of economic reforms in the country remains slow and leaves much to be desired. Ergo, what are the imperatives and opportunities that are critical to furthering the country’s economic reconstruction in 2013?
Imperatives
The Search for an Appropriate Economic Model: In June 2011, President Thein Sein highlighted four critical markers to the reforms process: a balanced and proportionate growth amongst all states and divisions; priority to food security and ameliorating the agricultural sector; all-inclusive development; and finally, the reliability of statistics and an overall improvement in how primary data is collected.
Naypidaw is yet to find an appropriate economic model that ensures the right mix of financial and political reforms, along with an independent legal structure to insulate employees, assets and supply chains of businesses.
Although macroeconomic policy reforms have been initiated in Myanmar, they have largely been pursued in isolation since the country lacks a consolidated framework for achieving its economic goals. This was not a major concern over the last two years. However, today, at a juncture where the country has successfully met its first set of policy reform objectives, the issue has become requisite. Given that Myanmar’s neighbours have largely undergone democratic transitions over the last few decades; in 2013, perhaps Naypidaw could draw upon its contemporaries’ experiences to devise its own indigenous model for growth and development.
Resolution for Peace and National Reconciliation of Ethnic Minorities: It is also critical for Naypidaw to reach permanent ceasefires in all its ethnic crises to ensure that development equilaterally integrates and empowers Myanmar’s society. This is crucial since a large proportion of its natural resources are situated in the peripheries, which is where most of the crises were engendered.
Attracting FDI: Myanmar’s high economic growth needs to be sustained by creating an environment conducive to attracting foreign direct investment (FDI) and expanding foreign trade. The country’s new investment law, implemented at the end of 2012, allows for large-scale liberalisation of the economy with huge incentives for international businesses to invest in Myanmar. So far, FDI remained concentrated on extractive industries such as oil, gas and mining, but in recent times, the government has tried to encourage investment in tourism, agriculture and, information and communications technology (ICT). These positive phenomena need to be maintained and diversified in 2013.
Opportunities
International Re-engagement: The global community, over the last two years, has welcomed Myanmar’s democratic transition vis-à-vis its re-engagement with the country. International institutions such as the ADB, the IFC and the World Bank believe that Myanmar’s reform process has now progressed to a stage where it can robustly engage with development partners to define its priorities and projects critical to maximising opportunities that have emerged from the country’s transformation. On 17 January 2013, the Asian Development Bank (ADB) for the first time in almost 30 years, sanctioned an USD512 million loan to the Myanmar government. On 5 February 2013, the International Finance Corporation (IFC) declared that the country would receive an interest-free loan of USD 165 million, besides the previously earmarked USD 80 million loan from the World Bank.
This confidence and commitment to support and aid the reform process seems to be largely reiterated in the country’s recent debt rescheduling agreements with the World Bank, the ADB and the Paris Club (an informal group of creditor governments from major industrialised countries; including France, Germany, Norway, the US and the UK).
Naypidaw is also set to implement the Myanmar Comprehensive Development Vision (MCDV) to lay a solid foundation for infrastructure and human resource development with assistance from countries such as Japan. These financial stimuli will help the country sustain its developmental reformation by focusing on building public finance and capacity-building, implementing standardisation, legislation and technical regulations; improving trade and investment in small and medium-sized enterprises, increasing public infrastructure such as access to financial services, roads, electricity; and bridging gaps in access to technical and secondary education.
Geographical Advantage: Myanmar must capitalise on its strategic location to its economic advantage. The recent loan impetuses allow for reviving previously stalled plans of developing special economic zones (SEZs) both within the country and along its borders with neighbouring countries, including countries of the ASEAN and India. This may enable, for example, shifting labour-intensive industries from the Thai side of the border to the Myanmarese side, as well as cross-border financial transactions. The consequent increase in employment opportunities, and the feeling of inclusiveness in the country’s war-torn peripheries is an added incentive.
Membership in Regional Organisations: Like other member states, Myanmar could also use its membership in the ASEAN to avail of the bloc’s economic framework in boosting its foreign trade and FDI. In this regard, the Initiative for Asean Integration (IAI) provided by the Asean Economic Community, aims to narrow the intra-regional development gap by stipulating that new members be provided assistance in accelerating their development for greater integration with the core members. This could serve as a useful guide to aid the reform process.
As it prepares to take up the ASEAN chair in 2014, Myanmar must avail of its economic prerogatives to ensure the continuity and sustainability of its democratic transition.

Nayantara Shaunik

Research Officer, SEARP, IPCS 
E-mail: nayantara@ipcs.org

to more article pls visit http://www.ipcs.org/article/india-the-world

भारतीय जीवन बीमा निगम


बीमा का संक्षिप्‍त इतिहास
जीवन बीमा अपने आधुनिक रूप के साथ 1818 के दशक में इंग्लैंड से भारत आई। भारत की पहली जीवन बीमा कम्पनी कलकत्ता में युरोपियन्स के द्वारा शुरू कि गई जिसका नाम था ओरिएन्टंल लाईफ इंश्‍योरेंस। उस समय सभी बीमा कम्पनीयों कि स्थापना युरोपिय समुदाय की जरूरत को पुरा करने वे लिये की गई थी और ये कम्पनीया भारतीय मूल के लोगों का बीमा नहीं करती थी, लेकिन कुछ समय बाद बाबू मुत्तीलाल सील जैसे महान व्यक्तियों कि कोशिशों से विदेशी जीवन बीमा कम्पनीयों ने भारतीयों का भी बीमा करण करना शुरू किया। परन्तु यह कम्पनीयां भारतीयों के साथ निम्न स्तर का व्यवहार रखती थी, जैसे भारी और अधिक प्रिमियम की मांग करना। भारत की पहली जीवन बीमा कम्पनी की नीव 1870 में मुंबई म्‍युचुअल लाइफ इंश्‍योरेंस सोसायटी के नाम से रखी गई, जिसने भारतीयों का बीमा भी समान दरों पर करना शुरू किया. पूरी तरह स्वदेशी इन कम्पनियों की शुरूआत देशभक्ति की भावना से हुयी. ये कम्पनियां समाज के विभिन्न वर्गों की सुरक्षा और बीमा करण का संदेश लेकर सामने आयी थीं. भारत बीमा कम्पनी भी राष्ट्रीयता से प्रभावित एक ऐसी ही कम्पनी थी.1905-1907 के स्वदेशी आंदोलन ने ऐसी और भी कई बीमा कम्पनीयों को बधवॉ दिया। मद्रास में दि युनाईटेड इंडिया, कोलकाता में नेशनल इण्डियन और नेशनल इंश्‍योरेंस के तहत 1906 में लाहौर में कोपरेटिव बीमा की स्थापना हुई. कोलकाता में महान कवि रवीन्द्र नाथ टैगोर के घर जोरासंख्या के एक छोटे से कमरे में हिदुस्तान कोपरेटिव  इंश्‍योरेंस कम्पनी का जन्म 1907 में हुआ. उन दिनों स्थापित होने वाली कुछ ऐसी ही कम्पनियों में थीं- द इण्डियन मर्कन्टाईल, जनरल इंश्‍योरेंस और स्वदेशी लाइफ। 1912 से पहले भारत में बीमा व्यापार के लिये कोई भी कानून नहीं बना था. 1912 में लाइफ इंश्‍योरेंस कम्पनी एक्ट और प्रोविडेन्ड फन्ड एक्ट पारित हुये, जिसके परिणामस्वरूप बीमा कम्पनियों के लिए अपने प्रीमियम रेट टेबल्स और पेरिओडिकल वैल्युएशन्स को मान्यता प्राप्त अधिकारी से प्रमाणित करवाना आवश्यक हो गया. मगर इस धारा ने विदेशी और भारतीय कम्पनियों के प्रति कई स्तर पर भेद- भाव भर दिया, जो भारतीय कम्पनियों के लिये हानिकारक था. २०वीं सदी के पहले दो दशकों में बीमा का व्यापार तेज़ी से बढ़ा. 44 कम्पनियों ने जहां 22,24 करोड़ रूपये का व्यापार किया, वहीं 1938 के आते- आते कम्पनियों की संख्या बढ़ कर 176 हो गई, जिनका कुल व्यापार 298 करोड़ रूपये था. बीमा कम्पनियों के तेज़ी से बढ़ते हुए उद्योग को देखकर आर्थिक रूप से कमजोर कुछ कम्पनियां भी सामने आईं, जिनकी योजनाएं बाद में बुरी तरह नाकाम हुईं.
द इंश्‍योरेंस एक्ट 1938 भारत का पहला ऐसा कायदा था, जिसने जीवन बीमा के साथ- साथ सभी बीमा कम्पनियों के उद्योग पर राज्य सरकार का कड़ा नियंत्रण लागू किया.काफी समय से जीवन बीमा उद्योग को राष्ट्रीय करण प्रदान करने की मांग चल रही थी, लेकिन इसने गति 1944 में पकड़ी जब 1938 में लेजिस्‍लेटिव असेम्बली के सामने लाइफ इंश्‍योरेंस एक्ट बिल को संशोधित करने का प्रस्ताव रखा गया. इसके बावजूद भारत में काफी समय के बाद जीवन बीमा कम्पनियों का राष्ट्रीय करण 18 जनवरी 1956 में हुआ. राष्ट्रीय करण के समय भारत में करीब  154 जीवन बीमा कम्पनियां, 16 विदेशी कम्पनियां और 75 प्रोविडेंड कम्पनियां कार्यरत थीं.
इन कम्पनियों का दो स्थितियों में राष्ट्रीय करण हुआ प्राथमिक अवस्था में इन कम्पनियों के प्रशासनिक आधिकार ले लिए गए, तत्पश्चात एक कॉम्प्रेहेन्सिव बिल के तहत इन कम्पनियों का स्वामित्व भी सरकार ने अपने कब्ज़े में ले लिया. भारतीय संविधान ने 19 जून 1956 को लाइफ इंश्‍योरेंस कार्पोरेशन एक्ट पास किया. 1 सितंबर 1956 में लाइफ इंश्‍योरेंस कार्पोरेशन ऑफ इण्डिया की स्थापना हुई, जिसका उद्देश था, जीवन बीमा को बड़े पैमाने पर फैलाना, खास तौर पर गाँव में, ताकि भारत के हर नागरिक को पर्याप्‍त आर्थिक सहायता उचित दरों पर उपलब्‍ध करवाई जा सके. एल. आई. सी के 5 ज़ोनल अधिकारी थे, 33 डिवीज़नल ऑफिसर और 212 शाखा अधिकारी थे, इसके अलावा कार्पोरेट ऑफिस भी बना. जीवन बीमा के कॉन्ट्रैक्ट लंबी अवधि के होते हैं और इस पॉलिसी के तहत हर तरह की सेवाएं दी जाती रही हैं, बाद के वर्षों में इस बात की ज़रूरत महसूस हुई कि इसकी कार्यप्रणाली का विस्तार किया जाये और हर ज़िला हेडक्वार्टर में शाखा ऑफिस भी बनाए जाएं. एल. आई. सी का पूरा घटन शुरू हुआ और बड़े पैमाने पर नए- नए शाखा ऑफिस खोले गये. पुर्नघटन के परिणाम स्वरूप तमाम सेवाएं इन शाखाओं में स्थानांतरित हो गईं और सभी शाखाएं लेखा- जोखा विभाग बन गईं, जिससे कार्पोरेशन की कार्यप्रणाली और प्रदर्शन में कई -कई गुना सुधार हुआ। ऐसा देखा गया कि 1957 में लालबाग में 200 करोड़ रूपये के बिज़नेस से कार्पोरेशन ने 1969-70  तक अपना बिज़नेस 1000 करोड़ रूपये तक पहुंचा दिया और अगले सिर्फ दस वर्षों में ही एल. आई. सी ने अपना बिज़नेस 2000 करोड़ रूपये तक पहुंचा दिया. जब 80 के दशक की शुरूआत में फिर से पुर्नघटन हुआ, तो नई पॉलिसियों की वजह से 1975-76 तक व्यापार 7000 करोड़ रूपये से ऊपर जा पहुंचा.
आज एल. आई. सी का कामकाज, पूरी तरह से कम्‍प्‍यूटरीकृत 2048 शाखा ऑफिस से100 डिव्हिजनल ऑफिस से, 7 ज़ोनल ऑफिसों से और एक कार्पोरेट ऑफिस से होता है। एल. आई. सी का वाइड एरिया नेटवर्क 100 डिवीज़नल ऑफिसों को और मेट्रो एरिया नेटवर्क सभी शाखा ऑफिसों को आपस में जोड़ता है. एल. आई. सी ने कुछ बैंकों और सर्विस प्रोवायडर्स से भी घटबंधन किया है, जिससे चुने हुये शहरों में ऑनलाईन प्रिमियम भुगतान की सुविधा दि जा सके। उपभोक्ता को अधिक से अधिक सुविधा देने के लिये एल. आई. सी ने ई. सी. एस. और ए. टी. एम. सेवाएं भी शुरू की गई। मुंबई, अहमदाबाद, बैंगलोर, चेन्नई, हैदराबाद, कोलकाता, पुणे, नई दिल्ली और दूसरे शहरों में भी ऑनलाइन सुविधाओं के छोटे दफ्तर और आई. वी. आर. एस. के अलावा पूछताछ केंद्र भी बनाए गए हैं. अपने पॉलिसी होल्डर को सुविधाजनक जानकारी प्राप्त होने की दृष्टि से एल. आई. सी ने सैटेलाइट सम्पर्क सेवा शुरू की है. ये सैटेलाइट ऑफिस छोटे होते हैं और कस्टमर यहाँ आसानी से पहुँच सकते हैं. इन सैटेलाइट ऑफिसों के डिजिटलीकृत रिकॉर्ड को कहीं भी देखा जा सकता है और इसकी मदद से भाविष्य में दूसरी सुविधाएं भी उपलब्ध हो सकेंगी.भारतीय बीमा के उदारवादी दृश्‍य के बीच भी जीवन बीमा के क्षेत्र में एल. आई. सी अपना प्रभुत्व बनाए हुए है. इसके साथ ही जीवन बीमा के विकास रेखा चित्र पर अपने पुराने आँकड़ों को सफलतापूर्वक लांघते हुए आगे बढ़ रही है.
एल. आई. सी. ने वर्तमान में एक करोड़ पॉलिसियां जारी की हैं. 15 ओक्टोबर 2005 में इसने 1,01,32,955 नई पॉलिसियां जारी करके एक नया कीर्तिमान बनाया है. पिछले साल के मुकाबले 16.67% की विकास दर हासिल की है. तब से लेकर अब तक एल. आई. सी. ने बहुत सारे कीर्तिमान बनाए हैं और जीवन बीमा व्यापार के अलग- अलग क्षेत्र में अनेक बार प्रदर्शन से नए- नए कीर्तिमान बनाए हैं.
जिस आशा और अपेक्षा से हमारे पूर्वजों ने इस देश में जीवन बीमा का घटन किया था, उसी उद्देश्‍य को लेकर आज भी एल. आई. सी. देश के अधिक से अधिक घरों में सुरक्षा की ज्योति को प्रज्‍जवलित रखना चाहती थी, इन्सान अपने और अपने परिवार की देखभाल करने में सक्षम हो सके.
एल. आई. सी. व्यापार क्षेत्र के कुछ कीर्तिमान :-
1818 : ओरिएंटल लाईफ बीमा कम्पनी, भारत की धरती पर कार्यरत होने वाली पहली कम्पनी।
1870 : मुंबई म्युचुअल लाईफ बीमा सोसायटी, भारत की पहली जीवन बीमा कम्पनी जिसने अपना व्यापार शुरू किया।
1912 : इण्डियन लाईफ बीमा कम्पनीज ऍक्ट , जीवन बीमा व्यापार को व्यस्थित किने वाला पहला कानून बना।
1928 : इण्डियन लाईफ बीमा कम्पनीज ऍक्ट, लागू किया ताके सरकार को सम्पूर्ण सूचना प्राप्त हो सके।
1938 : बीमा ऍक्ट, के द्वारा जनता के अधिकारों की सुरक्षा हेतु पहले से मौजुद कानुन का एकीकरण और संशोधन किया गया।
1956 : केंन्द्र सरकार और राष्ट्रीय करण ने 245 भारतीय और विदेशी बीमा और प्रोविडेन्ट सोसायटी को अपने आधिन किया। एल. आई. सी ने ऍक्ट ऑफ पार्लिमेंट की स्थापना की, जैसे 5 करोड़ की पूंजी निवेश करके भारतीय सरकार के साथ एल. आई. सी. ऍक्ट, 1956 कि स्थापना.
द जनरल बीमा बि.जनेस इन इण्डिया, ऑन दी अदर हॅण्ड कॅन ट्रेस इट्स रूट्स टू दि., दि फस्ट जनरल बीमा कम्पनी इस्टयाब्लिश इन द इयर 1850 इन कोलकाता बाय दि ब्रिटीश।
कोलकाता में ब्रिटीश सरकार द्वारा 1850 में स्थापित हुई पहली ट्रिटोन बीमा कम्पनी लिमिटेड।
एल.आई.सी. के उद्देश्य
  • जीवन बीमा को व्यापक प्रसार देना और ख़ास तौर से ग्रामीण इलाकों और सामाजिक-आर्थिक रूप से पिछड़े वर्गों तक उसे पहुंचाना, ताकि देश के तमाम बीमा करने योग्य लोगों तक पहुंचा जा सके और वाजिब लागत पर उन्हें मृत्यु से होने वाले वित्तीय नुकसान के प्रति सुरक्षा प्रदान की जा सके.
  • बीमा संलग्न बचत को आकर्षक बना कर जनता को बचत के लिए प्रेरित करना.
  • अपने पॉलिसी धारकों के प्रति अपने पहले दायित्व, कोष के निवेश को ध्यान में रखना, जिनके धन को वह धरोहर के रूप में अपने पास रखता है और इस निवेश प्रक्रिया में समूचे समाज के हित से अपनी नजर न हटने देना; पॉलिसी धारकों और समूचे समाज के हित को ध्यान में रखते हुए राष्ट्र की प्राथमिकताओं और आकर्षक लाभ देने की ज़िम्मेदारी के मद्देनजर कोष का निवेश कराना.
  • ज़्यादा से ज़्यादा किफ़ायत से इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए व्यापार करना कि धन पॉलिसी धारकों का है.
  • बीमित व्यक्तियों और समूहों के हितों के संरक्षक के रूप में काम करना.
  • बदलते सामाजिक-आर्थिक परिवेश के मद्देनजर पैदा होने वाली जीवन बीमा आवश्यकताओं को पूरा करना.
  • सौजन्यतापूर्वक कारगर सेवा प्रदान करके बीमित व्यक्तियों का ज़्यादा से ज़्यादा हित साधने के लिए निगम में काम करने वाले तमाम लोगों की कार्यक्षमता का अधिकतम इस्तेमाल करना.
  • निगम के तमाम एजेंटों और कर्मचारियों के मन में भागीदारी गर्व और संतुष्टि का भाव भरना, ताकि वह समर्पित भाव से अपने दायित्वों का पालन करें और निगम के लक्ष्य को पूरा करने के लिए समर्पित रहें.
निगम के सदस्य
  1. श्री डी. के मेहरोत्रा ( वर्तमान में प्रभारी, अध्यक्ष , भारतीय जीवन बीमा निगम.)
  2. श्री थॉमस मॅथ्यू टी ( प्रबंध निदेशक-एल.आई.सी.)
  3. श्री सुशोभन सरकार (प्रबंध निदेशक, एलआईसी)
  4. श्री राजीव तकरू ( सचिव, वित्तीय सेवा विभाग, वित्त मंत्रालय, भारत सरकार)
  5. श्री अरविंद मायाराम ( सचिव, आर्थिक कार्य विभाग, वित्त मंत्रालय, भारत सरकार)
  6. श्री ए.के. रॉय, ( अध्यक्ष सह प्रबंध निदेशक, जीआईसी.)
  7. श्री एम.वि. तन्क्सले , (अध्यक्ष एवं प्रबंध निदेशक, सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया)
  8. श्री अनूप प्रकाश गर्ग
  9. श्री संजय जैन
  10. श्री. अशोक सिंह
  11. श्री के.एस. संपत
  12. श्री अमरदीप सिंह चीमा

बुधवार, 13 मार्च 2013

The Securities and Exchange Board of India (SEBI)


The Securities and Exchange Board of India (SEBI) is the regulator for the securities market in India. It was established on 12 April 1992 through the SEBI Act, 1992.  it was officially established by The Government of India in the year of 1992 with SEBI Act 1992 being passed by the Indian Parliament. SEBI is having it's Headquarter at the business district of Bandra Kurla Complex in Mumbai, and has Northern, Eastern, Southern and Western Regional Offices in New Delhi, Kolkata, Chennai and Ahmedabad respectively. Controller of Capital Issues was the regulatory authority before SEBI came into existence; it derived authority from the Capital Issues (Control) Act, 1947.

Initially SEBI was a non statutory body without any statutory power. However in the year of 1995, the SEBI was given additional statutory power by the Government of India through an amendment to the Securities and Exchange Board of India Act 1992. In April, 1998 the SEBI was constituted as the regulator of capital markets in India under a resolution of the Government of India. The SEBI is managed by its members, which consists of following:
  • The chairman who is nominated by Union Government of India.
  • Two members, i.e. Officers from Union Finance Ministry.
  • One member from The Reserve Bank of India.
  • The remaining 5 members are nominated by Union Government of India, out of them at least 3 shall be whole-time members.


List of Chairmen:


Name

From

To
U.K.Sinha
18 February 2011
Till  now
C. B. Bhave
18 February 2008
18 February 2011
M. Damodaran
18 February 2005
18 February 2008
G. N. Bajpai
20 February 2002
18 February 2005
D. R. Mehta
21 February 1995
20 February 2002
S. S. Nadkarni
17 January 1994
31 January 1995
G.V.Ramakrishna
24 August 1990
17 January 1994
Dr. S. A. Dave
12 April 1988
23 August 1990


Functions and responsibilities:
  • SEBI has to be responsive to the needs of three groups, which constitute the market:
  • The issuers of securities
  • The investors
  • The market intermediaries.

SEBI has three functions rolled into one body: quasi-legislative, quasi-judicial and quasi-executive. It drafts regulations in its legislative capacity, it conducts investigation and enforcement action in its executive function and it passes rulings and orders in its judicial capacity. Though this makes it very powerful, there is an appeal process to create accountability. There is a Securities Appellate Tribunal which is a three-member tribunal and is presently headed by a former Chief Justice of a High court - Mr. Justice NK Sodhi. A second appeal lies directly to the Supreme Court.

Powers

For the discharge of its functions efficiently, SEBI has been invested with the necessary powers which are:
1.      to approve by−laws of stock exchanges.
2.      to require the stock exchange to amend their by−laws.
3.      inspect the books of accounts and call for periodical returns from recognized stock exchanges.
4.      inspect the books of accounts of a financial intermediaries.
5.      compel certain companies to list their shares in one or more stock exchanges.
6.      levy fees and other charges on the intermediaries for performing its functions.
7.      grant license to any person for the purpose of dealing in certain areas.
8.      delegate powers exercisable by it.
9.      prosecute and judge directly the violation of certain provisions of the companies Act.
10.  power to impose monetry penalties.

SEBI committee:

 1. Technical Advisory Committee
 2. Committee for review of structure of market infrastructure institutions
 3. Members of the Advisory Committee for the SEBI Investor Protection and Education Fund
 4. Takeover Regulations Advisory Committee
 5. Primary Market Advisory Committee (PMAC)
 6. Secondary Market Advisory Committee (SMAC)
 7. Mutual Fund Advisory Committee
 8. Corporate Bonds & Securitization Advisory Committee
 9. Takeover Panel
10. SEBI Committee on Disclosures and Accounting Standards (SCODA)
11. High Powered Advisory Committee on consent orders and compounding of offences
12. Derivatives Market Review Committee
13. Committee on Infrastructure Funds
14. Regulation over Financial Terms of Various Athourities.

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