बुधवार, 26 फ़रवरी 2014

लंबित मुकदमे व न्यायाधीशों की सेवानिवृत्ति आयु

लोक सभा के विस्तारित शीतकालीन सत्र के दौरान आंध्र प्रदेश के विभाजन और अलग तेलंगाना राज्य बनाने को लेकर सदन में हुए गतिरोध के कारण भ्रष्टाचार से निपटने के लिए प्रस्तावित अनेक विधेयकों के साथ ही उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों की सेवानिवृत्ति की आयु सीमा बढ़ाकर उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों के बराबर करने का विधेयक भी पारित नहीं हो सका। उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की सेवानिवृत्ति की आयु 1963 में 60 साल से बढ़ाकर 62 साल की गयी थी।
कार्मिक एवं लोक शिकायत तथा विधि एवं न्याय विभाग से संबंधित संसद की स्थाई समिति ने 29 अप्रैल 2010 को संसद को सौंपी अपनी 39वीं रिपोर्ट में उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों की आयु 62 साल से बढ़ाकर 65 साल करने की सिफारिश की थी।
इस रिपोर्ट के बाद अगस्त 2010 में तत्कालीन विधि एवं न्याय मंत्री श्री वीरप्पा मोइली ने न्यायाधीशों की सेवानिवृत्ति की आयु सीमा बढ़ाने संबंधी 114वें संविधान संशोधन विधेयक लोक सभा में पेश किया था। इस संविधान संशोधन विधेयक पर 28 दिसंबर, 2011 को लोकसभा में चर्चा शुरू हुयी थी जो पूरी नहीं हो सकी थी।
विधि एवं न्याय मंत्री श्री कपिल सिब्बल चाहते थे कि 15वीं लोकसभा के विस्तारित शीतकालीन सत्र संसद के शेष कार्य दिवसों में कम से कम यह काम तो पूरा कर लिया जाए। लेकिन ऐसा हो नहीं सका।
अब चूंकि 15वीं लोक सभा के अंतिम सत्र के समापन के बाद सदन को अनिश्चित काल के लिए स्थगित कर दिया गया है, इसलिए लोकसभा भंग होने के साथ ही यह विधेयक विलोपित हो जाएगा। ऐसी स्थिति में 16वीं लोक सभा के गठन के बाद ही नए सिरे से इसे अमली जाना पहनाना संभव होगा।
देश के उच्च न्यायालयों में 40 लाख से अधिक मुकदमें लंबित होने के तथ्य के मद्देनजर जहां न्यायाधीशों की सेवानिवृत्ति की आयु 60 साल से बढ़ाकर 62 की गयी थी। तो उस समय उच्च न्यायालयों में लंबित मुकदमों की संख्या इतनी अधिक नहीं थी। लेकिन पिछले 50 साल में देश की बढ़ती आबादी और नए-नए कानून बनने के कारण विवादों में भी वृद्धि हुई है। इसकी वजह से लंबित मुकदमों की संख्या में भी तेजी से वृद्धि हुई है।
संविधान के कामकाज की समीक्षा के लिए पूर्व प्रधान न्यायाधीश एम एन वेंकटचलैया की अध्यक्षता में गठित आयोग ने भी मार्च 2002 में अपनी रिपोर्ट में उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों की आयु सीमा 65 साल से बढ़ाकर 68 साल और उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की आयु सीमा 62 साल से बढ़ाकर 65 साल करने की सिफारिश की थी।
न्यायालयों में लंबित मुकदमों की संख्या कम करने और इनके तेजी से निबटारा करने की कवायद के दौरान 2008 में तत्कालीन विधि एवं न्याय मंत्री श्री हंसराज भारद्वाज ने उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की सेवानिवृत्ति आयु 62 साल से बढ़ाकर 65 साल करने की दिशा में प्रयास किया था। लेकिन अपहिरार्य कारणों के उस समय यह मामला आगे नहीं बढ़ सका था।
इस समय उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों की सेवानिवृत्ति आयु 65 साल और उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों के मामले में यह 62 साल है।
न्यायाधीशों की सेवानिवृत्ति की आयु सीमा बढ़ाने का मसला कई बार उच्चतम न्यायालय पहुंचा। लेकिन हर बार न्यायालय ने इसे कार्यपालिका के विवेक पर छोड़ते हुए इस संबंध में दायर याचिकाओं पर विचार करने से इंकार किया।
इन याचिकाओं में दलील दी गई थी कि कनाडा, आयरलैंड, इस्राइल, न्यूजीलैंड और ब्रिटेन जैसे देशों में उच्च न्यायालय और उच्चतम न्यायलय के न्यायाधीशों की सेवानिवृत्ति की आयु 68 से 75 साल के बीच है जबकि अमेरिका में न्यायाधीश जीवनपर्यंत इस पद के पर आसीन रह सकते हैं तो फिर भारत में ही न्यायाधीशों की सेवानिवृत्ति की आयु 62 साल या 65 साल क्यों है।
इस समय उच्चतम न्यायालय में प्रधान न्यायाधीश सहित न्यायाधीशों के 31 और 24 उच्च न्यायालयों में न्यायाधीशों के 906 स्वीकृत पद हैं। उच्च न्यायालयों में अभी भी न्यायाधीशों के 250 से अधिक पद रिक्त हैं।
न्यायालयों में लंबित मुकदमों की बढ़ती संख्या से उत्पन्न स्थिति की गंभीरता को देखते हुए प्रधान न्यायाधीश पी सदाशिवम ने न्यायाधीशों की संख्या बढ़ाने के बारे में प्रधानमंत्री को पत्र भी लिखा था। प्रधान न्यायाधीश ने अप्रैल 2013 में मुख्यमंत्रियों और उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायाधीशों के संयुक्त सम्मेलन की ओर ध्यान आकर्षित किया था जिसमें न्यायाधीशों की संख्या में 25 फीसदी वृद्धि करने पर सिद्धांत रूप में वह सहमत हो गए थे।
इस संबंधों में विधि एवं न्याय मंत्री कपिल सिब्बल ने प्रधान न्यायाधीश को सूचित किया था कि उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायाधीशों को पत्र लिखकर उनसे राज्य सरकारों के साथ विचार परामर्श की प्रक्रिया तत्काल शुरू करने का आग्रह किया गया है।
इस मसले पर हाल के समय में उच्चतम न्यायालय ने दो बार जनहित याचिकाओं पर विचार से इंकार किया है। प्रधान न्यायाधीश ने पिछले महीने ही ऐसी एक याचिका पर विचार से इंकार करते हुए कहा था कि न्यायालय सरकार को इस तरह का निर्देश देने के लिए सरकार को बाध्य नहीं कर सकता है। सरकार को ही इस संबंध में कोई नीतिगत निर्णय करना होगा।
न्यायाधीशों की सेवानिवृत्ति की आयु सीमा बढ़ाने संबंधी संविधान विधेयक पर 28 दिसंबर, 2011  को लोकसभा में चर्चा हुई थी जो अभी तक पूरी नहीं हो सकी है। कानून मंत्रि कपिल सिब्बल चाहते हैं कि संसद के विशेष कार्य दिवसों में कम से कम यह काम तो पूरा ही कर लिया जाए।
संसद का विस्तारित सत्र शुरू होने से पहले विधि एवं न्याय मंत्री कपिल सिब्बल ने लोक सभा के महासचिव को इस विधेयक के बारे में पत्र भी लिखा था। कानून मंत्री का मानना था कि न्यायाधीशों की सेवानिवृत्ति की आयु बढ़ाने से न्यायपालिका को उनके अनुभवों का लाभ मिलेगा और न्यायाधीशों के सेवानिवृत्त होने की वजह से उच्च न्यायालयों में रिक्त पदों में भी कमी आएगी।
कानून मंत्री का यह भी विचार उत्तम था लेकिन संसद की कार्यवाही में निरंतर हो रहे व्यावधान के कारण यह विधेयक पारित नहीं हो सका।
न्यायाधीशों की आयु सीमा बढ़ाने के पक्ष में वैसे तो भारतीय जनता पार्टी भी है लेकिन उसका कहना है कि इसके बाद सेवानिवृत्त होने पर न्यायाधीशों की कोई नयी नियुक्ति नहीं मिलनी चाहिए। सेवानिवृत्ति के बाद न्यायाधीशों की विभिन्न न्यायाधिकरणों और आयोगों में नियुक्ति का मसला भी लंबे समय से विवाद का विषय रहा है।
भारतीय जनता पार्टी ने एक अवसर पर यहां तक कहा था कि  न्यायाधीश के सेवानिवृत्त होते ही उन्हें कुछ साल तक कोई नयी जिम्मेदारी नहीं सौंपी जानी चाहिए।

न्यायालयों में लंबे समय तक मुकदमें लंबित रहने से भले ही देश की जनता को परेशानी होती हो लेकिन राजनीतिक दलों में आम सहमति नहीं होने के कारण कई बार महत्वपूर्ण विषय, विशेषकर न्यायिक सुधार से जुड़े मसले, भी अधर में लटके रह जाते हैं।

मंगलवार, 25 फ़रवरी 2014

व्यय निगरानी व्यवस्था

निर्वाचन आयोग राष्ट्रपति पद, उप-राष्ट्रपति पद, संसद तथा राज्य विधानसभाओं के चुनाव कराता है। संविधान के अनुच्छेद-324 के अनुसार निर्वाचन आयोग को चुनावों के अधीक्षण, निर्देशन तथा नियंत्रण की शक्तियां मिली हैं। यह सर्वज्ञात तथ्य है कि धन के बिना बहु-दलीय लोकतंत्र कार्य नहीं कर सकता लेकिन धन-बल में निम्नलिखित खास जोखिम हैं:
1.      असमान अवसर तथा स्वस्थ स्पर्धा की कमी।
2.      राजनीतिक अलगाव यानी कुछ निश्चित क्षेत्र नुकसान सहते हैं।
3.      चुनाव प्रचार की अधिकतम व्यय सीमा की और बढ़ते जाने का जोखिम।
4.      दाग दार शासन तथा विधि के शासन की प्रतिष्ठा में कमी।

आयोग विधानसभाओं/संसदीय निर्वाचन क्षेत्रों में आम चुनाव के समय धन-बल के प्रभाव पर अंकुश लगाने में गंभीरता से जुटा है। निर्वाचन आयोग ने चुनाव खर्च निगरानी के लिए एक मजबूत व्यवस्था की है जिसे 2010 में बिहार विधानसभा के लिए हुए आम चुनाव के दौरान लागू किया गया। निगरानी की यह व्यवस्था बाद में 2010 से 2013 तक पश्चिम बंगाल, असम, केरल, तमिलनाडु, पुडूचेरी, उत्तर प्रदेश, पंजाब, उत्तराखण्ड, मणिपुर, गोवा, आंध्र प्रदेश, झारखण्ड, गुजरात, हिमाचल प्रदेश, मेघालय, नगालैण्ड, त्रिपुरा, कर्नाटक, राजस्थान, राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ तथा मिजोरम में विधानसभा/उप-चुनावों में कारगर और व्यवस्थित तरीके से लागू की गई। इन उपायों के परिणाम स्वरूप विधानसभा चुनावों के दौरान विशाल मात्रा में नकदी को रोका/जब्त किया गया और यह राशि लगभग 215 करोड़ रूपये थी।
निर्वाचन व्यय निगरानी की प्रमुख विशेषताएं इस प्रकार हैं
·         चुनाव लड़ रहे प्रत्येक उम्मीदवार के लिए एक अगल बैंक खाता खोलना अनिवार्य है। उम्मीदवार इसी खाते से व्यय करे तथा सभी चेक/डिमांड ड्राफ्ट इसी से जारी करे।
·    प्रत्येक जिले में शिकायत-निगरानी प्रकोष्ठ सातों दिन 24 घंटे टोलफ्री नम्बर के साथ लोगों की शिकायतें प्राप्त करता है।
·    प्रत्येक निर्वाचन क्षेत्र में कार्यकारी मजिस्ट्रेटों के नेतृत्व में  अवैध नकद कारोबार या शराब वितरण या मतदाता को किसी तरह का रिश्वत/प्रलोभन पर नजर रखने के लिए उड़न दस्ते, त्वरित कार्रवाई वाले दल, निगरानी दल बनाये जाते हैं। ये दल चुनाव खर्च से संबंधित सभी शिकायतें सुनते हैं।
·   राज्य में सभी हवाई अड्डे, प्रमुख रेलवे स्टेशन, हवाला एजेंटों, वित्तीय दलालों, नकदी आवाजाही वाले कोरियरगिरवी रखने वालों तथा अन्य संदिग्ध एजेंसियों/नकदी लाने ले-जाने वाले व्यक्तियों पर आयकर विभाग कड़ी निगरानी रखता है और आयकर कानून के प्रावधानों के अनुसार आवश्यक कार्रवाई की जाती है।
·        चुनाव प्रक्रिया के दौरान किसी बैंक खाते से संदेहजनक नकदी निकासी की निगरानी।
·       चुनाव के दौरान राज्य के बाहर से आयकर विभाग, सीमा केन्द्रीय उत्पाद शुल्क विभाग तथा वित्त और लेखा सेवाओं के वरिष्ठ अधिकारी उम्मीदवारों के चुनाव खर्चों को देखने के लिए प्रत्येक जिले में व्यय पर्यवेक्षक के रूप में नियुक्त किये जाते हैं।
·        प्रत्येक निर्वाचन क्षेत्र में व्यय पर्यवेक्षकों को सहायता देने के लिए सहायक व्यय पर्यवेक्षक नियुक्त किये जाते हैं।
·        प्रत्येक उम्मीदवार के लिए प्रत्येक निर्वाचन क्षेत्र में एक छाया पर्यवेक्षण रजिस्टर रखा जाता है जिसमें चुनाव के दौरान दिखे प्रमुख व्यय दर्ज किये जाते हैं।
·       कैमरा पर्सन के साथ सरकारी अधिकारियों वाली समिति गठित की जाती है जो चुनाव अभियान से संबंधित प्रमुख व्यय की विडियोग्राफी करती है।
·       प्रत्येक निर्वाचन क्षेत्र में लेखादल बनाया जाता है, जो छाया पर्यवेक्षण रजिस्टर तथा सबूतों के फोल्डर रखता है।
·      चुनाव विज्ञापन तथा संदिग्ध पेड न्यूज के लिए केबल नेटवर्क, सोशल मीडिया सहित प्रिंट तथा इलेक्ट्रोनिक मीडिया की निगरानी के लिए मीडिया प्रमाणन तथा मीडिया व्यय निगरानी समिति गठित की जाती है।
·    नैतिक रूप से मतदान करने संबंधी अभियान तथा मतदाताओं में वोट के बदले किसी तरह का प्रलोभन स्वीकार  करने के बारे में जागरूकता फैलाई जाती है।

स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव सुनिश्चित करने के लिए चुनाव के दौरान धन-बल पर अंकुश के लिए निर्वाचन व्यय निगरानी व्यवस्था की गई है। इसमें निम्न रणनीतियां अपनाई जाती हैं

·         राज्य/भारत सरकार की इकाईयों के जरिए अंतरकर्मी संचार व्यवस्था की जाती है- अवैध नकद पर नजर रखने के लिए आयकर विभाग, मादक पदार्थों पर नजर रखने के लिए डीआरआई तथा एनसीबी, विदेशी मुद्रा पर दृष्टि रखने के लिए प्रवर्तन निदेशालय तथा रिश्वतखोरी, आतंक, चोरी, मादक द्रव्यों, अवैध शराब आदि तथा उम्मीदवार, उसके एजेंट या किसी राजनीतिक दल द्वारा धन-बल के दुरूपयोग को रोकने के लिए सम्बद्ध राज्य की पुलिस तथा आबकारी विभाग काम करता है।
·         हवाई अड्डों/हवाई पट्टियों/हेलीपैडों के जरिए नकदी आवाजाही पर कड़ी निगरानी रखी जाती है। आयोग की सलाह से नागर विमानन ब्यूरो द्वारा मानक संचालन प्रक्रिया विकसित की गई है और लागू की जाती हैं। चुनाव वाले राज्यों में नकदी/जेवर की आवाजाही मे उम्मीदवार उसके एजेंट या किसी राजनीतिक दल को शामिल होने से रोकने के लिए केन्द्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल को कड़ी निगरानी के लिए तैनात किया जाता है।
·         चुनाव वाले राज्यों में चुनाव समाप्त होने की तिथि तक उम्मीदवार, उसके एजेंट या किसी राजनीतिक दल की सहभागिता से अवैध तरीके से नकदी आवाजाही की रिपोर्ट पर नजर रखने के लिए नागर विमानन मंत्रालय को सभी हवाई अड्डों पर एयर इंटेलिजेंट्स यूनिट के संचालन का निर्देश दिया गया है। 
·         भारत सरकार की वित्तीय खुफिया इकाई से अनुरोध किया गया है कि वह बैंकों में संदिग्ध नकद कारोबार की सूचना वास्तविक समय पर उपलब्ध कराये तथा चुनाव वाले राज्यों में बैंक खातों से सीमा से अधिक नकदी की निकासी पर कड़ी नजर रखें।
·         बीएसएफ तथा एसएसबी से चुनाव वाले राज्यों से सटी  अनंतर्राष्ट्रीय सीमाओं पर सामग्री, नकदी आदि की अवैध आवाजाही पर नजर रखने का अनुरोध किया गया है।
·         सही चुनाव ब्यौरा दाखिल करने वाले उम्मीदवारों के मामलों की जांच जनप्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 की धारा-10 के तहत अयोग्यता के लिए की जाती हैं।


उपरोक्त कदम पिछले चार वर्षों में हुए आम चुनावों के दौरान धन बल के प्रभाव को कम करने में कारगर साबित हुए हैं। अन्दर तक पैठ बना चुकी इस गन्दगी को मिटाने के लिए अभी लंबी दूरी तय करनी है। चुनाव के दौरान धन बल के दुरूपयोग के बारे में आम जागरूकता पैदा करने के लिए भारत निर्वाचन आयोग के साथ बुद्धिजीवी वर्ग, मीडिया, सिविल सोसाइटी तथा संगठऩों को मिलकर काम करना चाहिए।

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