बुधवार, 7 अगस्त 2013

स्वास्थ्य अनुसंधान विभाग

भारत सरकार के स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के अंतर्गत वर्ष 2007 में स्वास्थ्य अनुसंधान विभाग यानि डीएचआर की स्थापना की गई थी जिसका मुख्य उद्देश्य भारत में मौलिक, व्यावहारिक और चिकित्सीय अनुसंधान के लिए मानव संसाधनों के संवर्धन, इंफ्रास्ट्रक्चर के विकास तथा लक्ष्य प्राप्त करने के लिए आवश्यक अन्य कदमों के माध्यम से मेडिकल शोध को बढ़ावा देना है। स्वास्थ्य अनुसंधान विभाग (जो डिपार्टमेंट ऑफ हेल्थ रिसर्च यानि डीएचआर के नाम से जाना जाता है) के अंतर्गत भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) के अलावा 9 नये कार्यों के निस्पादन की जिम्मेदारी सौंपी गई है। इन नवीन कार्यों में स्वास्थ्य अनुसंधान के लिए इंफ्रास्ट्रक्चर और मानव संसाधन को मजबूत बनाने; शोध गवर्नैंस; महामारियों/प्रकोपों का निवारण एवं प्रबंधन; तथा शोध परिणामों को जन सामान्य तक पहुंचाने के लिए विभिन्न एजेंसियों के बीच परस्पर समन्वयन स्थापित करने जैसे लक्ष्य प्रमुख हैं। आईसीएमआर के कार्यों मे नवीन ज्ञान का सृजन और कम लागत वाली प्रौद्योगिकी का विकास करना प्रमुख हैं, और यह इस नव निर्मित स्वास्थ्य अनुसंधान विभाग के आधार के रूप में कार्यरत है।
स्वास्थ्य अनुसंधान विभाग का उद्देश्य नैदानिकी, चिकित्सा विधियों के साथ-साथ वैक्सीनों के संबंध में नवीन शोधों को प्रोत्साहित करके आधुनिक स्वास्थ्य प्रौद्योगिकी को देश के आम आदमी तक पहुंचाना; स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के अन्य विभागों के साथ-साथ अन्य वैज्ञानिक विभागों के सहयोग में शोध परिणामों के परीक्षण/मूल्यांकन के उपरांत उनको उत्पादों में परिवर्तित करना तथा इन नवीन उत्पादों को स्वास्थ्य प्रणाली अनुसंधान के माध्यम से सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवा में सम्मिलित करना है।
स्वास्थ्य अनुसंधान विभाग के अंतर्गत अनुसंधान कार्य देश भर में स्थित आईसीएमआर के 32 शोध संस्थानों के नेटवर्क के माध्यम से एवं आईसीएमआर की एक्स्ट्राम्युरल रिसर्च एवं इस विभाग की नवीन योजनाओं द्वारा किए जा रहे हैं।

स्वास्थ्य अनुसंधान विभाग की नवीन योजनाएं
बारहवीं पंचवर्षीय योजना के अंतर्गत स्वास्थ्य अनुसंधान विभाग ने अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने हेतु निम्नलिखित योजनायें तैयार की हैं:
1.      शासकीय मेडिकल कॉलेजों में बहुविषयक अनुसंधान इकाइयों की स्थापना।
2.      राज्यों में मॉडेल ग्रामीण स्वास्थ्य अनुसंधान यूनिट्स की स्थापना।
3.      महामारियों और प्राकृतिक आपदाओं के प्रबंधन हेतु शोध प्रयोगशालाओं के नेटवर्क की स्थापना।
4.      स्वास्थ्य अनुसंधान हेतु मानव संसाधन विकास।
5.      शोध गवर्नैंस पर अंतर्क्षेत्रीय अभिसरण एवं प्रोत्साहन तथा दिशा निर्देश देने हेतु ग्रांट-इन-एड योजना।
6.      भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर)।
इंफ्रास्‍ट्रक्‍चर संबंधी विकास की स्थापना पर इस विभाग (डीएचआर) की तीन योजनाओं को भारत सरकार द्वारा मंजूरी प्राप्त हो गई है जो निम्न हैं:

शासकीय मेडिकल कॉलेजों में बहुविषयक अनुसंधान इकाइयों की स्थापना
विश्व भर में स्वास्थ्य अनुसंधान मुख्यतया मेडिकल कॉलेजों/संस्थनों में किए जाते हैं। भारत में रोगियों को रोग विशिष्ट सेवाएं प्रदान करने और शिक्षण दोनों के लिए मेडिकल कॉलेज रीढ़ की हड्डी के समान हैं। इस समय, उच्च गुणवत्ता के शोधकार्य देश के कुछ चुनिंदा संस्थानों और मेडिकल कॉलेजों तक ही सीमित हैं और वह भी केवल कुछ राज्यों में। इसलिए, देश में उच्च दर्जे के स्वास्थ्य अनुसंधान को बढ़ावा देने और उसे प्रोत्साहित करने के साथ-साथ मेडिकल कॉलेजों को उपयुक्त शोध सुविधाएं उपलब्ध कराने के लिए वित्तीय सहायता प्रदान करने की तत्काल आवश्यकता है। स्वास्थ्य अनुसंधान विभाग द्वारा राज्यों के शासकीय मेडिकल कॉलेजों/संस्थानों में 80 बहुविषयक अनुसंधान यूनिट्स (मल्टीडिसिप्लिनरी रिसर्च यूनिट्स, एमआरयू) स्थापित करने का प्रस्ताव है, जिनमें 35 एमआरयू वर्ष 2013-14 और शेष 45 यूनिट्स वर्ष 2014-15 के दौरान स्थापित की जाएंगी। इन यूनिट्स का मुख्य उद्देश्य स्वास्थ्य अनुसंधान में इंफ्रास्‍ट्रक्‍चर का सृजन करना एवं उसे सुदृढ़ बनाना है।

राज्यों में मॉडेल ग्रामीण स्वास्थ्य अनुसंधान यूनिट्स ( मॉडेल रूरल हेल्थ रिसर्च यूनिट्स ) की स्थापना
यह देखा गया है कि केंद्र और कुछ राज्य सरकारों द्वारा उपलब्ध कराई गई आधुनिकतम सुविधाओं तथा प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों (पीएचसी)/सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों (सीएचसी) एवं तृतीयक सुरक्षा अस्पतालों के बीच एक विशाल अंतराल है। चिकित्सकों और नीति निर्माताओं का मानना है कि देश के दूरदराज स्तर पर विशेषतया ग्रामीण क्षेत्रों में रोग निदान एवं चिकित्सा प्रबंध की आधुनिक विधियां प्रयोग में नहीं लाई जा सकतीं। इस अंतराल को दूर करने के लिए स्वास्थ्य अनुसंधान विभाग ने आगरा स्थित राष्ट्रीय जालमा कुष्ठ एवं अन्य माइकोबैक्टीरियल रोग संस्थान के अंतर्गत घाटमपुर में इस प्रकार की एक यूनिट की स्थापना से प्राप्त अनुभवों एवं अत्यंत उपयोगी परिणामों के आधार पर मॉडेल ग्रामीण स्वास्थ्य अनुसंधान यूनिट्स स्थापित करने का प्रस्ताव रखा गया है। घाटमपुर मॉडेल से प्रदर्शित किया गया है कि रोग निदान की नई विधियां एवं चिकित्सा के साथ-साथ आधुनिक जानपदिक रोगविज्ञान (इपीडेमिओलॉजिकल) विधियां ग्रामीण आंचल में प्रयोग की जा सकती हैं। ये इकाइयां नवीन प्रौद्योगिकियों के विकास से जुड़े शोधकर्ताओं और राज्यों अथवा केंद्र; स्वास्थ्य प्रणाली के संचालकों (केंद्र/राज्य की स्वास्थ्य सेवाओं) और समुदाय के लोगों के बीच एक कड़ी के रूप में कार्य करेंगी। इन इकाइयों का मुख्य उद्देश्य शोध परिणामों और नवीनतम प्रौद्योगिकियों को ग्रामीण स्तर तक पहुंचाना है, जिससे सामुदायिक स्तर पर विशेषतया ग्रामीण क्षेत्रों में जन साधारण को बेहतर स्वास्थ्य सुविधायें उपलब्ध कराई जा सकें। इस विभाग को देश के राज्यों में मॉडेल ग्रामीण स्वास्थ्य अनुसंधान यूनिट्स (मॉडेल रूरल हेल्थ रिसर्च यूनिट्स, एमआरएचआरयू) स्थापित करने की मंजूरी प्राप्त हो गई है। कुल 15 मॉडेल रूरल हेल्थ रिसर्च यूनिट्स स्थापित की जानी हैं जिनमें 7 यूनिट्स वर्ष 2013-14 के दौरान तथा शेष 8 यूनिट्स वर्ष 2014-15 के दौरान स्थापित की जायेंगी।

महामारियों और प्राकृतिक आपदाओं के प्रबंधन हेतु शोध प्रयोगशालाओं के नेटवर्क की स्थापना
भारत में विभिन्न संक्रामक रोगजनों के कारण प्रकोपों/महामारियों की घटनायें निरंतर होती हैं। इस समय देश में दो प्रमुख संस्थान इन स्थितियों का सामना करने एवं आवश्यक अनुसंधान कार्य करने से जुड़े हुए हैं, ये संस्थान हैं‌‌-- राष्ट्रीय रोग नियंत्रण केंद्र (नेशनल सेंटर फॉर डिसीज़ कंट्रोल, एनसीडीसी), नई दिल्ली तथा आईसीएमआर का पुणे स्थित राष्ट्रीय विषाणुविज्ञान संस्थान (नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी, एनआईवी)। परंतु प्रकोपों/महामारियों की स्थितियों में इन संस्थानों के नियमित कार्य अत्यंत प्रभावित होते हैं। इस कारण इन प्रकोपों से संबंधित रोगजन की पहचान, रोग के निदान, तथा अधूरे एवं अपर्याप्त आंकड़ों की उपलब्धता जैसी स्थितियां इंटरवेंशन कार्यों को बहुत ही प्रभावित करती हैं। इसलिए देश में विषाणुज रोगों से निपटने के लिए इंफ्रास्‍ट्रक्‍चर एवं क्षमता को मजबूत बनाने की तत्काल आवश्यकता है, जिससे विषाणुज रोग के प्रकोपों की समय पूर्व पहचान की जा सके, पूर्वानुमान के लिए साधन विकसित किए जा सकें, मौजूदा के साथ-साथ नवीन विषाणुज उपभेदों की निरंतर निगरानीरखी जा सके, जैवआतंकवाद के कारकों के रूप में प्रयोग की संभाव्यता वाले विषाणुओं का समुचित रख-रखाव किया जा सके। इस उद्देश्य से स्वास्थ्य अनुसंधान विभाग ने संक्रामक रोगों पर प्रयोगशालाओं पर एक तीन स्तरीय नेटवर्क स्थापित करने की योजना तैयार की है, जो एनआईवी, पुणे और एन सी डी सी, नई दिल्ली जैसे शीर्ष संस्थानों के पूर्ण मार्गदर्शन में कार्य करेगा।

उपर्युक्त तीनों योजनाओं को भारत सरकार से आवश्यक मंजूरी प्राप्त हो गई है और इनकी शुरुआत के उपयुक्त कदम उठाए जा रहे हैं।

स्वास्थ्य अनुसंधान विभाग (डीएचआर) द्वारा शासकीय मेडिकल कॉलेजों और क्षेत्रीय संस्थानों/प्रयोगशालाओं में प्रकोपों की प्रारम्भिक जांच/ अध्ययनों हेतु क्षमता निर्माण के उद्देश्य से प्रयोगशालायें स्थापित की जा रही हैं। इस प्रयोजना के शुरू होने से पूर्व आई सी एम आर के द्वारा एड हॉक प्रोजेक्ट के तौर पर अभी तक 14 राज्यों में कुल 15 प्रयोगशालायें स्थापित की जा चुकी हैं जिसने कार्य करना शुरू कर दिया है। ये प्रगोगशालायें विषाणुज संक्रमणों के लिए दैनिक नैदानिक सेवाएं प्रदान करने के साथ इन रोगों के फैलाव व नई विधियों पर शोध कर रही हैं।
स्वास्थ्य अनुसंधान विभाग द्वारा उपर्युक्त योजनाओं के अलावा निम्न योजनाओं का भी संचालन प्रस्तावित है जिनकी भारत सरकार से आवश्यक मंजूरी के पश्चात शुरुआत की जाएंगी:

स्वास्थ्य अनुसंधान हेतु मानव संसाधन विकास
इस विभाग द्वारा मेडिकल कॉलेजों और अन्य संस्थनों से सभी श्रेणियों के मेडिकल /बायोमेडिकल वैज्ञानिकों के लिए भारत में और भारत से बाहर प्रशिक्षण कार्यक्रम के आयोजन द्वारा देश के मानव संसाधन आधार को मजबूत बनाने की विभिन्न नीतियां अपनाई जायेंगी। इसके लिए भारतीय और विदेशी संस्थानों में लघुकालिक एवं दीर्घकालिक फेलोशिप्स प्रदान की जायेंगी। जिसके परिणामस्वरूप विशिष्ट क्षेत्रों में स्वास्थ्य अनुसंधान हेतु प्रशिक्षित एवं द्क्ष मानव संसाधन का एक कैडर विकसित किया जा सके।

शोध गवर्नैंस पर अंतर्क्षेत्रीय अभिसरण एवं प्रोत्साहन तथा दिशा निर्देश देने हेतु ग्रांट-इन-एड योजना
यह योजना स्वास्थ्य के क्षेत्र में उपयुक्त प्रौद्योगिकियों/ नवचारों के विकास को बढ़ावा देने हेतु विभिन्न विभगों के समन्वित प्रयासों के द्वारा विधियों एवं तकनीकी के त्वरित विकास हेतु लिए तैयार की गई है। जिससे शोध कार्य समाज के हित में उत्पादों/विधियों के विकास की दिशा में केंद्रित हों और जनता तक जल्दी पहुंच सके।

बीएसएल-4  सुविधास्वास्थ्य अनुसंधान विभाग की  एक महत्वपूर्ण उपलब्धि
आईसीएमआर के पुणे स्थित राष्ट्रीय विषाणुविज्ञान संस्थान (एनआईवी) द्वारा विषाणुओं सहित संक्रामक रोगों के शोध और प्रबंधन पर कार्य जारी हैं। इस संस्थान द्वारा मच्छरों, टिक्स और माइट्स जैसे रोगवाहकों (वेक्टर्स) द्वारा संचारित विषाणुओं पर उत्कृष्ट शोधकार्य किए जा रहे हैं। इस संस्थान ने हाल के वर्षों में यकृतशोथ, और तीव्र मस्तिष्कशोथ संलक्षण (एईएस) के लिए जिम्मेदार कई अन्य विषाणुओं पर शोध कार्यों के माध्यम से अपनी प्रतिष्ठा स्थापित की है। एनआईवी ने विभिन्न प्रकोपों और विभिन्न विषाणुज रोगों विशेषतया एच1 एन1 (H1N1) विश्वमारी के दौरान राज्य एवं केंद्र सरकार की एजेंसियों को तकनीकी और नैदानिक सहायता प्रदान की है। राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर स्वास्थ्य को प्रभावित करने वाले रोगों जैसे कि इंफ्लुएंज़ाA (एच1 एन1) के अलावा सार्स (SARS) और एवियन इंफ्लुएंज़ा पर अध्ययन में इस संस्थान की अग्रणी भूमिका रही है।
इस संस्थान में अत्यंत रोगजनक विषाणुओं के रख-रखाव के लिए वर्ष 2000-2004 के बीच हाई कंटेनमेंट प्रयोगशाला/सुविधा (BSL-3 और सहायक BSL-2 प्रयोगशालायें) विकसित की गई जिसे फरवरी 2005 में भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति सम्माननीय डॉ ए.पी.जे. अब्दुल कलाम ने राष्ट्र को समर्पित किया था। इस सुविधा के विस्तार में इसे BSL-4 प्रयोगशाला के रूप में विकसित करने की योजना तैयार की गई। विश्व स्वास्थ्य संगठन, जेनेवा और सीडीसी, अटलांटा के अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर स्वीकार्य दिशानिर्देशों के आधार पर वर्ष 2007 में इसे बायोसेफ्टी लेवेल-4 (BSL-4) के रूप में अपग्रेड करने की शुरुआत की गई। इस सुविधा के विकास के लिए आवश्यक वित्तीय एवं तकनीकी सहयोग आईसीएमआर के साथ-साथ विज्ञान तथा प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी) से भी प्राप्त हुआ और इस सुविधा का कार्य मार्च 2012 में पूर्ण कर लिया गया। जून, 2012 में एमसीसी, पुणे में आयोजित अंतिम समीक्षा बैठक में BSL-4 फैसिलिटी  पूर्णतया उपयुक्त पाई गई। दिनांक 28 दिसम्बर, 2012 को आयोजित एक भव्य समारोह में केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री माननीय श्री गुलाम नबी आज़ाद ने इस आधुनिकतम BSL-4 प्रयोगशाला को का उद्घाटन करते हुए इसे राष्ट्र को समर्पित किया। यह पूर्ण एशिया क्षेत्र में इस प्रकार की एक मात्र सुविधा है और इससे भारत विश्व के कुछ चुनिंदा विकसित देशों की श्रेणी में आ गया है, जो न केवल स्वास्थ्य अनुसंधान विभाग एवं स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय बल्कि सम्पूर्ण भारत देश के लिए गौरवपूर्ण एक विश्व स्तरीय उपलब्धि है। BSL-4 इंफ्रास्ट्रक्चर के माध्यम से न केवल भारत बल्कि इस क्षेत्र के अन्य देशों को पर्याप्त सहायता मिलेगी।

जनजातीय स्वास्थ्य अनुसंधान फोरम
देश के विभिन्न भागों में जनजातीय  लोगों स्वास्थ्य की मौजूदा स्थिति को ध्यान में रखते हुए आईसीएमआर ने इन लोगों में रोगभार को कम करने की दिशा में एक समग्र प्रयास अपनाया है। आईसीएमआर के कुल 32 संस्थानों में 16 संस्थान जनजातीय समुदायों की पोषणज स्थिति, उनमें व्याप्त रोगवाहकजन्य और जलजन्य रोगों की उपस्थिति, उनके द्वारा इलाज हेतु प्रयुक्त पारम्परिक औषधियों की प्रायोगिक वैधता पर शोध कार्य करने के साथ-साथ उनमें अतिरक्त्दाब, हीमोग्लोबिनविकृतियों, आदि जैसी स्वास्थ्य समस्याओं की पहचान करने से सम्बद्ध हैं। इन क्षेत्रों में शोध कार्य का उद्देश्य जनजातीय समुदाय के स्वास्थ्य को  बेहतर बनाने की दिशा में इंटरवेंशन कार्यक्रमों की प्रभावकारिता को बेहतर बनाना है।

जनजातीय स्वास्थ्य के क्षेत्र में अनुसंधानरत आई सी एम आर  के कुछ प्रमुख संस्थान
1.     क्षेत्रीय जनजातीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान केंद्र, जबलपुर
इस केंद्र द्वारा प्रदाय महत्वपूर्ण सेवाएं निम्न हैं:
·         मध्य भारत में हीमोग्लोबिनविकृतियों की जांच के अंतर्गत सिकिल सेल रोग की जांच;
·         छत्तीसगढ़ में प्रमस्तिष्क मलेरिया और गंभीर मलेरिया की व्यापकता पर अध्ययन;
·         मध्य भारत में पी.फाल्सीपैरमपरजीवी से उत्पन्न मलेरिया की गम्भीरता के लिए बायोमार्कर्स का मूल्यांकन;
·         मध्य प्रदेश के जनजातीय जिला बालाघाट में मलेरिया नियंत्रण के सघन उपायों का मूल्यांकन;
·         जनजातीय जिला डिण्डोरी में मलेरिया व्यापकता पर सघन इंटरवेंशन उपायों की प्रभावकारिता का निर्धारण;
·         मध्य प्रदेश में मलेरिया वेक्टर्स की सहोदर जातियों की मैपिंग;
·         मध्य भारत में मलेरिया की महामारी का अध्ययन;
·     मध्य प्रदेश की आदिम जनजातियों और जनजातियों की पोषणज स्थिति, मध्य प्रदेश, झारखण्ड, छत्तीसगढ़,
       उड़ीसा की आदिम जनजातियों में विषाणुज यकृतशोथ की व्यापकता का अध्ययन;
·         मध्य प्रदेश में फेफड़े के क्षय रोग,फाइलेरिया रोग,फ्लोरोसिस की व्यापकता का सर्वेक्षण;
·     डिण्डोरी जिले के बैगाचक क्षेत्र में मलेरिया के विषय में जागरूकता बढ़ाने हेतु सूचना, शिक्षा एवं संचार
        माध्यम से जनजातियों को जागरूक बनाना।

2.    क्षेत्रीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान केंद्र, पोर्टब्लेयर
·         असंचारी रोगों के खतरे वाले कारकों पर अध्ययन;
·         नीकोबार में स्कूल जाने  से पूर्व आयु के बच्चों की पोषणज स्थिति;
·         क्षयरोग- डॉट प्लस के अंतर्गत कल्चर, औषध सुग्राह्यता परीक्षण सेवाएं

3.    क्षेत्रीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान केंद्र, भुवनेश्वर
·         जनजातीय नवयुवतियों में अरक्तता के नियंत्रण के लिए बेहतर विधान का प्रयोग;
·     स्कूल जाने से पूर्व आयु के बच्चों में अल्पपोषण के विरुद्ध विटमिन ए, विटमिन
        ई अल्पता की गंभीरता  का अध्ययन;
·         उड़ीसा के जनजातीय जिलों में गम्भीर अतिसार की हेतुकी का अध्ययन।

4.    राष्ट्रीय पोषण संस्थान, हैदराबाद
·         राष्ट्रीय पोषण निगरानी ब्युरो (नेशनल न्युट्रीशन मॉनीटरिंग ब्युरो) द्वारा जनजातीय आबादी
          के आहार एवं उनके पोषण की स्थिति का अध्ययन्।

5.    राष्ट्रीय मलेरिया अनुसंधान संस्थान, नई दिल्ली
·         भारत में सगर्भता के दौरान मलेरिया के निवारण एवं इलाज हेतु प्रभावी एवं सुरक्षित इंटरवेंशन कार्य्।


6.    रोगवाहक नियंत्रण अनुसंधान केंद्र, पुडुचेरी
·   उड़ीसा के कोरापुट जिले में दसमंतपुर प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र (पीएचसी) में एसीटी की
      चिकित्सीय प्रभावकारिता का अध्ययन;
·         घरों के भीतर मलेरिया रोगवाहकों की सघनता का सर्वेक्षण;
·     डीडीटी, मैलाथियॉन, और डेल्टामेथ्रिन के प्रति एनॉफिलीज़क्युलिसीफेसीज़ और एनॉ.फ्लूवियाटिलिस
       मच्छरों की अनुक्रिया।

7.    क्षेत्रीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान केंद्र, जोधपुर
·         जनजातीय आबादी के पोषण एवं स्वास्थ्य की स्थिति पर अध्ययन;
·          पी. वाइवैक्स परजीवी से उत्पन्न मलेरिया के रोगियों और कंट्रोल आबादी के डफी रक्त वर्ग
           जीनों में पॉलीमॉर्फिज़म्स का अध्ययन।

8.    राजेंद्र स्मारक आयुर्विज्ञान अनुसंधान संस्थान, पटना
·         जनजातीय आबादी में असामान्य हीमोग्लोबिन का अध्ययन;
·          बिहार/झारखण्ड की जनजातीय आबादियों में अतिरक्तदाब और संबद्ध खतरे वाले कारकों की
            व्यापकता का अध्ययन;
·      जनजातीय आबादी द्वारा संक्रामक रोगों के इलाज हेतु प्रयुक्त पारम्परिक औषधियों की खोज
        एवं प्रायोगिक वैधता का निर्धारण;
·         रोगवाहक जन्य एवं जलजन्य रोगों की गम्भीरता के साथ पोषणज स्थिति की संबद्धता का अध्ययन।

9.    राष्ट्रीय प्रतिरक्षारुधिरविज्ञान संस्थान, मुम्बई
·         नवजात की जांच और सिकिल सेल विकार के प्राकृतिक इतिहास का अध्ययन;
·         थैलासीमिया और सिकिल सेल विकारों का प्रसवपूर्व निदान।

10.            भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद मुख्यालय, नई दिल्ली
·         असंचारी रोग प्रभाग: जनजातीय शोध गतिविधियों में अतिरक्तदाब, मधुमेह, कैंसर, मानसिक स्वास्थ्य,
           चिरकारी रोग और सम्बद्ध स्वास्थ्य प्रणाली अनुसंधान्।
·     जानपदिक एवं संचारी रोग प्रभाग: जनजातीय उपयोजना के अंतर्गत जनजातीय स्वास्थ्य अनुसंधान
        के लिए विभिन्न परियोजनाएं स्वीकृत्।

ट्रांसलेशनल अनुसंधान
स्वास्थ्य अनुसंधान विभाग के अंतर्गत जारी शोध कार्यों के परिणामस्वरूप प्राप्त महत्वपूर्ण लीड्स को जन सामान्य तक पहुंचाने की दिशा में प्रयास किए जा रहे हैं। अभी इसकी शुरुआत आईसीएमआर के इंट्राम्युरल कार्यक्रम के रूप में की गई है। आईसीएमआर के 27 संस्थानों में ट्रांसलेशनल रिसर्च सेल की शुरुआत की गई है, जिसका समन्वयक सेल आईसीएमआर मुख्यालय में स्थित है। महत्वपूर्ण शोध परिणामों से प्राप्त लीड्स से लगभग 100 महत्वपूर्ण प्रौद्योगिकियों की पहचान की गई। इनमें प्रथम और द्वितीय चरण में सर्वोच्च प्राथमिकता के आधार पर स्वास्थ्य सुरक्षा प्रणाली में सम्मिलित करने हेतु क्रमश: 52 और 23 प्रौद्योगिकियों/कार्यक्रमों का चयन किया गया। इन 75 लीड्स/कार्यक्रमों के अलावा स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के तीन विशेष कार्यक्रमों (मधुमेह मेलाइटस के लिए नैदानिकी, एच1 एन1 के रिएजेंट्स और स्वदेशी एच1 एन1 वैक्सीनों के उत्पादन को सरलीकृत करना) और रोगवाहक नियंत्रण एवं डेंगी, चिकनगुनया, लंगफ्लूक, क्षयरोग, आदि सहित विभिन्न संक्रामक रोगों के लिए नैदानिक विधियों के लिए नवीन साधनों का विकास मुख्य पहल है।
आईसीएमआर द्वारा संपन्न शोध से मिले परिणामों को उत्पादों में बदलने एवं बाज़ार तक पहुंचाने के लिए उद्योगों को हस्तांतरित किया जाना है जिससे देश की आम जनता सीधे लाभांवित हो सके। कुल 30 प्रौद्योगिकियां विकास की उन्नत अवस्था में हैं, जिनके परीक्षण और  मूल्यांकन का कार्य वर्ष 2013-2014 में पूर्ण हो जाएगा। इनमें मधुमेह, कैंसर, क्षयरोग, कुष्ठरोग, क्लैमाइडिया का निदान, रोगनियंत्रण विधियां, आदि प्रमुख हैं।


इस प्रकार स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के अंतर्गत स्वास्थ्य अनुसंधान विभाग (डिपार्टमेंट ऑफ हेल्थ रिसर्च) अपने रोग विशिष्ट संस्थानों के माध्यम से देश की विभिन्न स्वास्थ्य समस्याओं से संबंधित नैदानिक और चिकित्सीय सेवाएं उपलब्ध कराने की दिशा में अनुसंधानरत होने के साथ-साथ शोध परिणामों और उनसे निर्मित प्रौद्योगिकियों/उत्पादों को जन साधारण तक पहुंचाने के लिए कृत संकल्प है।

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