बुधवार, 7 अगस्त 2013

वैज्ञानिकों -किसानों -नीति निर्धारकों के बीच समन्‍वय के 25 वर्ष

एम. एस. स्‍वामीनाथन अनुसंधान फाउंडेशन (एमएसएसआरएफ) एक गैर-लाभकारी अनुसंधान संगठन है, जिसकी स्‍थापना 1988 में की गई थी। फाउंडेशन इस वर्ष अपने 25 वर्ष पूरे कर रहा है।
एमएसएसआरएफ की शुरूआत एक छोटे से संगठन के रूप में हुई। चेन्‍नई, ओडिशा में कोरापुट, केरल में कालपेट्टा, तमिलनाडु में कावेरीपूमपट्टीनम और पुडुचेरी में अनुसंधान और प्रशिक्षण सुविधाओं के कारण आज इसने राष्‍ट्रीय और अंतर्राष्‍ट्रीय स्‍तर पर अपनी पहचान बना ली है। तटवर्ती अनुसंधान कार्यक्रम के लिए जल्‍दी ही चिदम्‍बरम में एक प्रयोगशाला और प्रशिक्षण केन्‍द्र शुरू होने वाला है। कोरापुट और कालपेट्टा में सुविकसित क्षेत्रीय केन्‍द्रों के अलावा, कृषि संबंधी गंभीर परेशानियों का सामना कर रहे विदर्भ क्षेत्र में तीसरा प्रमुख अनुसंधान और प्रशिक्षण केन्‍द्र स्‍थापित किया जा रहा है।
वैज्ञानिक खोजों को जमीनी प्रयोग में बदलने के लिए प्रक्रिया अनुसंधान केन्‍द्र के रूप में एमएसएसआरएफ की शुरूआत की गई थी। इसमें दो तरह से अनुसंधान किया जाता है: खेती में लगे परिवारों के साथ सहभागी अनुसंधान और दूसरी तरफ  जमीन से जुड़े अनुभवों और सार्वजनिक नीति के बीच परस्‍पर मिलकर काम करने के लिए नीतिगत अनुसंधान। एमएसएसआरएफ पर्यावरण प्रोद्योगिकी और जानकारी के साथ प्रकृति के अनुरूप, ग़रीबों, महिलाओं और खेती और गैर-कृषि आजीविका के लिए निरंतर कार्य कर रहा है।
यह निम्‍नलिखित छह प्रमुख क्षेत्रों में अनुसंधान और विकास कार्य करता है:
तटीय प्रणालियां अनुसंधान - इसमें मैनग्रोव वनों को बहाल करने, मछली पालन से जुड़े समुदाय के लिए वैकल्पिक आजीविका की व्‍यवस्‍था आदि शामिल है।
जैव विविधता - इसमें लुप्तप्राय और औषधीय वनस्‍पतियों के बारे में विस्‍तार से रिपोर्ट तैयार करना, जैव विविधता रजिस्‍टर बनाने के लिए गांव में रहने वाले समुदायों को आवश्‍यक प्रशिक्षण प्रदान करना, जैव विविधता से जुड़ी विलुप्‍त प्राय प्रजातियों की रक्षा करना और अनुवांशिक संसाधनों की रक्षा के जरिए जीन और बीजों का संरक्षण।     जैव टेक्‍नोलॉजी - इसमें नमक तैयार करना और सूखे को झेल सकने वाली ट्रांसजेनिक चावल की किस्‍में, विभिन्‍न जैव ईंधन/ फसलों / पौधों, शैवाल विविधता में तेलों की मात्रा की उपलब्‍धता का परीक्षण।
पर्यावरण टेक्‍नोलॉजी - इसमें जैव -ग्रामों की स्‍थापना शामिल है। जैव-ग्राम प्रतिमान में प्राकृतिक संसाधनों का धारणीय प्रबंधन और कृषि और गैर-कृषि आजीविकाओं का धारणीय विकास शामिल है। खाद्यसुरक्षा - एमएसएसआरएफ पोषण संबंधी कृषि को बढ़ावा देने के तरीके विकसित करने के काम में लगा हुआ है। यह मुख्‍य रूप से लघु कृषि उत्‍पादन में सुधार पर अपना ध्‍यान लगा रहा है, जो देश की आबादी के एक बड़े हिस्‍से की आजीविका सुरक्षा प्रणाली की रीढ़ है। कृषि में पोषण को बनाए रखने के लिए एक कार्यक्रम कोरापुट, कोल्‍ली पहाडि़यों, वायंद और विदर्भ शुरू किया गया है, जहां कुपोषण की समस्‍या काफी विकट है। इस कार्यक्रम को फार्मिंग सिस्‍टम फॉर न्‍यूट्री‍शन (एफएसएम) नाम दिया गया है। खाद्य सुरक्षा पर एमएसएसआरएफ कार्यक्रम के दो प्रमुख तत्‍व हैं : समुदाय के आधार पर बीच बचाव और अनुसंधान। इसमें से पहले ने कई तरह से बीच बचाव करके समाज के सामाजिक और आर्थिक रूप से वंचित वर्गों के लिए खाद्य सुरक्षा को बढ़ावा देने पर अपना ध्‍यान केन्द्रित किया है। दूसरे ने अनुसंधान रिपोर्टों को तैयार करने पर अपना ध्‍यान लगाया है, जो देश की खाद्य सुरक्षा से जुड़े मुद्दों के लिए बृहद दृष्टिकोण प्रदान करती है।
सूचना, शिक्षा और संचार - इसमें धारणीय विकास से जुड़े मुद्दों का समाधान करने के लिए विभिन्‍न सूचना संचार प्रौद्येगिकी उपकरणों का इस्‍तेमाल शामिल है, ताकि संसाधनों से वंचित, निरक्षर और अकुशल ग्रामीण महिलाओं और पुरूषों को सशक्‍त बनाया जा सके।

एमएसएसआरएफ का ग़रीबी उन्‍मूलन के प्रति दृष्टिकोण कार्य कुशलता और ज्ञान तथा सामुदायिक संगठनों को बढ़ावा देने की दिशा में एक महत्‍वपूर्ण कदम है। ग्रामीण और आदिवासी परिवारों को इससे जो भी मदद मिली है, वह जैव प्रोद्योगिकी जैसे विज्ञान के अग्रणी क्षेत्रों से प्राप्‍त जानकारी, जमीनी स्‍तर के प्रबंध ढांचे जैसे जैव -ग्राम परिषद और स्‍व-सहायता समूह के कारण संभव हुई है।

(पसूका)

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