शनिवार, 31 अगस्त 2013

History of Sculpture in India

An imperative part of Indian art culture is dominated by sculptures in India. Indian sculptures started from bronze and other stones. Sculpture of India has its roots from the planet’s oldest Indus Valley Civilization to globally celebrated modern Indian sculpture art. Hinduism, Jainism, Buddhism and Islam in later centuries, the sculptures of India went on a new path. Their impact added beauty to complex carvings, caves, Stupas and other sacred buildings. Amongst the most magnificent examples of Indian sculptures are Taj Mahal of Agra and Khajuraho of M.P. History of Indian sculpture is as vast as their variety.

History of Sculpture in India
Records of sculpture of India are as old as Indus Valley Civilization. The most excellent example of this sculpture is the 3rd millennium Great Baths of Mohenjo-Daro. At that time Terracotta and mud bricks were used for sculptures. The time changed and so the forms of Indian sculpture and architecture. When the new religious faith- Buddhism emerged, the brick constructions and terracotta works were gradually replaced.

It was during the reign of Maurya dynasty when characters and scenes were carved from Hinduism, Buddhism and Jainism to a lesser extent.

The appearance of these sculptures seems as if the figures are posing for a photograph. With all themes from the beginning, there are instances of Hindu art's most enduring image: superb young women, full-breasted, nude and frequently in some noticeably athletic pose. Such type of images can be seen in famed temples of Khajuraho, of about 11th century AD. Seldom are they only feminine attendants, but mostly they are legendary characters.

Indian Sculpture in Early Centuries
Hindu and Buddhist art fell into the same tradition. The splendid Buddhist carvings on the Great Sanchi Stupa give the impression of completely being Hindu. But Buddhist sculpture holds a nature of its own when the faith moves from India to the northwest part of planet.

Gandhara Sculpture
A school of Buddhist sculpture is now in northwest Pakistan. It existed since1st century AD. Its ancient name was Gandhara. This region of northwest Pakistan is open to overseas influences incoming along the recently opened Silk Road. The Roman and Greek practicality in art is one impact of this kind from the west. This realism in Gandhara sculpture is delicately pooled with the confined traditions of India to fabricate Buddhist images of a gracefully conventional type.

Southern Sculpture
Kingdoms in south like Chola, Pallavas, Cheras, Pandyas, Nayaks and Chalukyas gave more impetus and patronage to Indian temple sculpture. In Northern part of India, the scenario was the very same. Though, there was difference in the basic style. The North Indian temples have bee-hive shaped towers; the South Indian forms follow the expressions of Dravidian art and sculptures. The ancient Indian sculptures, consisted of religious buildings above all. Temples in ancient India were heart of culture, art and knowledge.

Sculpture by Muslims
Muslim sculptures pioneered India to a completely different form of sculpture and architecture. Thus, Medieval Indian Sculpture observed the creation of dome shaped buildings. Other architectural components that augmented the beauty of the religious places include chhatris, chaajas, jharokhas and the like.

Modern Indian sculptures entirely drifted away from the Muslim sculptures. A variety of Indian sculptures has survived in India. This variety consists of Bronze, wooden, sand, stone and marble Indian sculptures. History of Indian cultures has therefore went through numerous changes over the ages. While some of the sculptures have endured the test of time, others stay behind just in form of carcasses. The contemporary Indian sculptures pursue more international expressions but the sources are intensely rooted in the Indian history of sculpture and art. History of Indian sculpture is illustrious and broad and is still creating new vocabulary.


शुक्रवार, 30 अगस्त 2013

देश में निर्मित भारत का पहला विमान वाहक जहाज-आई एन एस विक्रांत

देश में बने सबसे पहले विमान वाहक जहाज (प्रोजेक्‍ट-71) का कोचीन शिपियार्ड लिमिटेड में जलावतरण किया गया। इसका नाम आईएनएस विक्रांत रखा गया। इसके साथ ही भारत विमान वाहक जहाज के डिजाइन और निर्माण करने वाले विश्‍व के प्रमुख देशों के क्‍लब में शामिल हो गया। इस जहाज का निर्माण 28 फरवरी 2009 को शुरू हुआ। चार वर्षों के अंदर विमान वाहक जहाज का जलावतरण एक सराहनीय उपलब्धि है। आईएनएस विक्रांत देश की सबसे अधिक प्रतिष्ठित और सबसे बड़ी युद्धपोत परियोजना बन गई है।

जहाजों का निर्माण करने वाले देश के प्रमुख यार्ड कोचीन शिपियार्ड लिमिटेड को भारतीय नौसेना के लिए देश के अंदर विमान वाहक जहाज बनाने की जिम्‍मेदारी सौंपी गई है। विमान वाहक जहाज का मूल डिजाइन भारतीय नौसेना डिजाइन निदेशालय ने तैयार किया। इस डिजाइन का और विस्‍तृत रूप बाद में कोचीन शिपियार्ड लिमिटेड ने तैयार किया।

निदेशालय ने युद्धपोतों के 17 से अधिक डिजाइन तैयार किये हैं, जिनके आधार पर देश के अंदर लगभग 90 जहाज बनाए गए हैं। लगभग 40 हजार टन के जहाज विक्रांत का डिजाइन तैयार करना इस निदेशालय की परिपक्‍व क्षमता का सबूत है। यह डिजाइनरों के लिए एक बहुत बड़ी उपलब्धि है, विशेष रूप से इसलिए कि यह दुनिया का इतने बड़े आकार का पहला विमान वाहक जहाज है, जिसमें गैस टर्बाइन प्रणोदन (प्रोपलशन) जैसे कुछ खास फीचर हैं।

परियोजना के चरण-1 की समाप्ति पर जलावतरण के अवसर पर बताया गया कि डिजाइन के अनुसार विमान वाहक जहाज की लंबाई 260 मीटर है और अधिकतम चौड़ाई 60 मीटर है। जहाज के उतरने वाली मुख्‍य पट्टी तैयार है। 80 प्रतिशत से अधिक ढांचा भी तैयार है, जिसमें लगभग 2300 कक्ष हैं। 75 प्रतिशत से अधिक ढांचा खड़ा कर लिया गया है। प्रमुख मशीनें लगा दी गईं हैं, जैसे 80 मेगावाट बिजली बनाने वाले एल एम 2500 के दो गैस टर्बाइन, लगभग 24 मेगावाट बिजली बनाने वाले डीजल आलटरनेटर और मुख्‍य गियर बॉक्‍स भी लगा दिये गये हैं। विक्रांत को नावों के पुल के जरिए एरनाकुलम चैनल में उतारा गया। इसके बाद दूसरे चरण की फिटिंग्‍ज लगाई जानी हैं।

विमान वाहक जहाज एक छोटा सा तैरता हुआ शहर है, जिसके उड़न क्षेत्र का आकार फुटबॉल के दो मैदानों के बराबर है। इसकी केबल तारों की लंबाई 2700 किलोमीटर है। अगर इस तार को लंबाई में खोलकर बिछाया जाए, तो यह तार कोच्चि से दिल्‍ली तक पहुंच जाएगी। जहाज में 1600 कर्मचारी काम करेंगे।

आईएनएस विक्रांत से रूस के मिग 29के विमान और नौसेना के एलसीए लड़ाकू विमान का संचालन किया जा सकेगा। हेलीकॉप्‍टरों में कामोव 31 और देश में निर्मित एएलएच हेलीकॉप्‍टर भी शामिल होंगे। यह जहाज आधुनिक सीडी बैंड अर्ली एयर वार्निंग रडार और अन्‍य उपकरणों की मदद से अपने आस-पास की काफी बड़ी वायु सीमा के बारे में जानकारी प्राप्‍त कर सकता है। जहाज की रक्षा के लिए सतह से आकाश तक मार करने वाली मिसाइलें तैनात होंगी। ये सभी अस्‍त्र प्रणालियां देश में विकसित युद्ध प्रबंधन प्रणाली के जरिए समन्वित होंगी।

जहाज के लिए इस्‍पात भारतीय इस्‍पात प्राधिकरण लिमिटेड के राऊरकेला, बोकारो और भिलाई संयंत्रों से प्राप्‍त किया गया है। मेन स्विच बोर्ड, स्‍टेयरिंग गियर आदि लार्सेन एंड टुब्रों के मुंबई और तालेगांव संयंत्रों में बनाए गए हैं। एयर कंडिशनिंग और रे‍फ्रिजरेशन प्रणालियां पुणे में किर्लोसकर संयंत्रों में विकसित की गईं हैं। पंपों की आपूर्ति बेस्‍ट और क्रॉमपोटन, चेन्‍नई से की गई है। भेल ने एकीकृत प्‍लेटफॉर्म प्रबंधन प्रणाली की आपूर्ति की है और विशाल गियर बॉक्‍स गुजरात में एलेकॉन में बना है। बिजली के केबल कोलकाता के निक्‍को उद्योग से प्राप्‍त किये गये हैं।

विमान वाहक जहाज के जलावतरण से आईएनएस विक्रांत का पहला चरण पूरा हुआ है, जिसके अंतर्गत स्‍कीजम्‍प सहित लगभग 75 प्रतिशत ढांचा तैयार हुआ है। अब विक्रांत का दूसरा चरण शुरू होगा, जिसके अंतर्गत विभिन्‍न अस्‍त्रों और सैंसरों, प्रणोदन प्रणाली और विमान परिसर के समन्‍वयन का काम रूस की कंपनी मैसर्ज एनडीबी की सहायता से होगा। इसके बाद जहाज के बहुत सारे परीक्षण होंगे और 2016-17 के आस-पास इसे भारतीय नौसेना को सौंपा जाएगा।

जहाज का डिजाइन इस प्रकार का बनाया गया है कि यह परमाणु, जैविक और रासायनिक हथियारों के हमलों की स्थिति में अप्रभावित रहेगा।

इस परियोजना का निर्माण कई प्रकार की चुनौ‍तियों से घिरा हुआ था। विशेष स्‍टील के निर्माण से लेकर विशाल उपकरणों के ढांचों को तैयार करना और जहाज में लगाना बहुत बड़ी चुनौती थी। इन चुनौतियों का कोचीन शिपियार्ड लिमिटेड के कुशल और दक्ष विशेषज्ञों ने मुकाबला किया। शिपियार्ड ने वेल्डिंग के लिए विशेष प्रणाली विकसित की। उत्‍पादन कार्यों में तेजी लाने के लिए यार्ड ने यथासंभव पहले से ही विभिन्‍न ब्‍लॉकों की एसेंबली और इनकी फिटिंग का काम पूरा करने की तकनीकें विकसित कीं।

कोचीन शिपियार्ड भारत का सबसे श्रेष्‍ठ शिपियार्ड है। अपनी स्‍थापना से लेकर अब तक शिपियार्ड 90 से अधिक जहाजों का निर्माण करके इनकी आपूर्ति कर चुका है। देश का बना सबसे बड़ा जहाज कोचीन शिपियार्ड ने बनाया है। पिछले एक दशक में इस कंपनी ने अन्‍य देशों के लिए भी जहाज बनाए हैं और चालीस से अधिक जहाजों का निर्यात किया है।

नौसेना डिजाइन निदेशालय के डिजाइन के अनुसार देश में ही बनाया गया विमान वाहक जहाज आईएनएस विक्रांत भारतीय नौसेना की सबसे अधिक प्रतिष्ठित युद्धपोत परियोजना है। भारतीय नौसेना अब औरों से खरीदने वाली नौसेना नहीं है, बल्कि स्‍वयं निर्माण करने वाली नौसेना बन गई है।

PIB


गुरुवार, 29 अगस्त 2013

Contemporary Indian Painting

From the commencement of the last decade of the past century, artists in India started augmenting the forms that they employed in their work. Contemporary Indian Painting and sculpture both are equally important. Paintings and sculptures today have turned into a source of fascination and are assisting individuals to grow in their skill and develop their talent and aptitude by offering a medium for expression and appreciation to them. The name of Subodh Gupta is amongst the most eminent painters and sculptures of India. To gain more info about the contemporary painting of India, scroll down.

Contemporary Indian Artists
Contemporary painters and artists express the synthesis of a mixture of movements and styles in their work. They presented a variety of visual expressions and forms of various schools. They are delightfully harmonized with the aestheticism of the art of painting. In the work of leading artists far-reaching and innovative directions are reflected. These artists and painters include Vivan Sundaram, Atul and Anju Dodiya, Narayanan Ramachandran, Jitish Kallat, Bhupat Dudi, Subodh Gupta, Jagannath Panda, Ranbir Kaleka, Devajyoti Ray, Shreya Chaturvedi, Bharti Kher and Thukral and Tagra, Vagaram Choudhary and T.V.Santosh.

Forms of Expressions and Impetus of Contemporary Paintings
The variety of currents influencing Indian society appeared to boost up in complex time. Scores of artists went for new and imbibing styles of expression. The significant development overlapped with the materialization of novel galleries that took interest to endorse a broader series of art forms, for instance, Nature Morte in Delhi and its collaborator gallery Bose Pacia Gallery (New York and Kolkata). To add, Talwar Gallery in New Delhi and New York stands for a to-do list of assorted and globally renowned artists from India. The exodus maintains that the one who is present is the artist and not the art. In the year 2006, April, in UK, The Noble Sage Art Gallery was opened to concentrate entirely in Indian, Sri Lankan and Pakistani up to date art. The Noble Sage visualized their gallery as an opening to stage the South Indian present-day art scene, rather than looking to the Mumbai, Delhi, Mewar and Baroda schools. They predominantly focused on the work that came up from the Madras School. Ironically, plenty of artists were fashioned at the same, the nonexistence of gallery or white cube hold for newer endeavors. The absence of such galleries produced artists who were associated to the Bangalore art scene and those who shaped a sagacity of art-activism or art-community in a positive sense such as Surekha's ‘Communing With Urban Heroins’ in 2008 and ‘Un-Claimed and Other Urban F(r)ictions’ in 2010.

Versatility of Contemporary Indian Paintings
Contemporary Indian paintings are influenced from various parts of the planet. A number of artists flew to the West; the remaining ones expressed themselves while amalgamating their past with their up to date in western culture. For instance, Shyamal Dutta Ray was apprehensive about Bengal and village life, new artists such as Shreya Chaturvedi believes art should articulate for itself. According to her, today’s art must be in touch with the common public, it should connect to them and encourage them through some grand message or idea behind it.

Increase in communication regarding Indian art, in English and vernacular Indian languages as well, made it suitable in which art was professed in the art schools. Critical approach became exact and lead to re-thinking contemporary art practice in India.


Contemporary Indian Painting is wonderfully varied since the break of 21st century. Abstract work of art in contemporary India is gaining popularity day by day and as a means of owning inexpensive modern art. The last decade has seen increase in popularity of Art magazines such as Art India from Mumbai, Art and Deal, New Delhi, (edited and published by Siddharth Tagore) and Art etc from Emami Chisel, (edited by Amit Mukhopadhyay). These art magazines complemented the catalogues created by the particular galleries.

बुधवार, 28 अगस्त 2013

मानसिक स्‍वास्‍थ्‍य देख रेख विधेयक 2013

आत्‍महत्‍या के प्रयास को अपराध के दायरे से बाहर रखने के इरादे से सरकार ने संसद में अति महत्‍वपूर्ण 'मानसिक स्‍वास्‍थ्‍य देखरेख -2013 पेश किया है। सरकार ने भारतीय दंड संहिता में आत्‍महत्‍या के प्रयास के अपराध को इसके दायरे से बाहर करने के लिये पहली बार इस तरह का साहसी कदम उठाया है।

करीब डेढ़ सदी पुरानी भारतीय दंड संहिता से आत्‍महत्‍या के प्रयास के अपराध से संबंधित धारा 309 को हटाने के लिये प्रयास लंबे समय से हो रहे हैं। इस बारे में विधि आयोग ने 1971 से 2008 के दौरान अपनी कई रिपोर्ट में सरकार से सिफारिश भी की। एक अवसर पर तो इस धारा को खत्‍म करने के लिये 1978 में राज्‍यसभा में एक विधेयक पारित भी कर दिया था, लेकिन इसी दौरान लोकसभा भंग हो जाने के कारण दूसरे सदन से इसे पारित नहीं कराया जा सका। अब ऐसा लगता है कि निकट भविष्‍य में यह प्रावधान कानून की किताब से हट जायेगा।

मानसिक स्‍वास्‍थ्‍य देखरेख विधेयक 2013 कई मायनों में बेहद महत्‍वपूर्ण है। एक और विधेयक में आत्‍महत्‍या के कृत्‍य को अपराध के दायरे से अलग करके इसे आत्‍महत्‍या का प्रयास करने वाले वयक्ति के मानसिक स्‍वास्‍थ्‍य से जोड़ा गया है और दूसरी ओर इसमें ऐसी अवस्‍था से जूझ रहे व्‍यक्ति के उपचार के उपायों का प्रावधन किया गया है। यह पहला अवसर है कि जब केन्‍द्र सरकार ने मानसिक स्‍वास्‍थ्‍य कानून में निजता के अधिकार से लेकर गरिमा से जीने के मानसिक रूप से रुग्‍ण व्‍यक्तियों के अधिकार को रेखांकित किया है।

इस विधेयक की धारा 124 के अनुसार भारतीय दंड संहिता की धारा 309 के प्रावधान से इतर यदि कोई व्‍यक्ति आत्‍महत्‍या का प्रयास करता है तो यही माना जायेगा कि वह संबंधित समय में मानसिक रुग्‍णता से ग्रस्‍त था और उसका यह कृत्‍य धारा 309 के तहत दंडनीय नहीं होगा। इस विधेयक में स्‍पष्‍ट किया गया है कि आत्‍महत्‍या का प्रयास करने वाले व्‍यक्ति का यह कृत्‍य और  उसके मानसिक स्‍वास्‍थ्‍य की स्थिति को अलग नहीं किया जा सकता है और दोनों को अलग अलग देखने की बजाये इन पर एक साथ ही गौर करना होगा।

देश में आत्‍महत्‍या और आत्‍महत्‍या के प्रयासों की बढ़ती घटनाओं के मद्देनजर उच्‍चतम न्‍यायालय के फैसलों और विधि आयोग की सिफारिशों के आलोक में स्‍वास्‍थ्‍य एवं परिवार कल्‍याण मंत्रालय के मानसिक स्‍वास्‍थ्‍य देखरेख विधेयक में आत्‍महत्‍या के प्रयास को अपराध के दायरे से बाहर रखने का प्रावधान निश्चित ही सराहनीय है।

आत्‍महत्‍या के प्रयास से संबंधित भारतीय दंड संहिता की धारा 309 को लेकर लंबे समय से चर्चा चल रही है। इसी कडी में मार्च 2011 में उच्‍चतम न्‍यायाल्‍य ने भी आत्‍महत्‍या के प्रयास को अपराध के दायरे से हटाने और इसके लिये भारतीय दंड संहिता में प्रदत्‍त सज़ा का प्रावधान खत्‍म करने का सुझाव दिया था।

न्‍यायमूर्ति मार्कण्‍डेय काटजू की अध्‍यक्षता वाली खंडपीठ ने कहा था कि हालांकि 1996 की एक व्‍यवस्‍था में संविधान पीठ ने धारा 309 का सांविधानिक रूप से वैध ठहराया है लेकिन अब उनकी राय है कि इस पुरातन प्रावधान को संसद को कानून की किताब से निकाल देना चाहिए। न्‍यायालय ने ससंद से इस प्रावधान को खत्‍म करने की भी सिफारिश की थी।

न्‍यायालय का मत था कि अवसाद की स्थिति में ही कोई व्‍यक्ति आत्‍महत्‍या का प्रयास करता है, इसलिए ऐसे व्‍यक्ति को सज़ा देने की बजाये उसकी मदद की जरूरत है।

इस संबंध में यह भी महत्‍वपूर्ण है कि विधि आयोग ने भी 17 अक्‍तूबर 2008 को सरकार को सौंपी अपनी 210वीं रिपोर्ट में भारतीय दंड संहिता की धारा 309 को कानून में बनाये रखने के लिये आयोग द्वारा 1997 में पेश रिपोर्ट से असहमति व्‍यक्‍त करते हुए इस पुराने प्रावधान को खत्‍म करने के लिये उचित कदम उठाने की सिफारिश की थी।

आयोग ने धारा 309 के बारे में अपनी रिपोर्ट में कहा था कि आत्‍महत्‍या के प्रयास को मानसिक बीमारी के रूप में देखते हुये इसक लिये सज़ा देने की बजाये इसके उपचार पर ध्‍यान केन्द्रित करना चाहिए।

विश्‍व संगठन, आत्‍महत्‍या की रोकथाम के लिये अंतरराष्‍ट्रीय संगठन, यूरोप और उत्‍तरी अमरीका के देशों में इसे अपराध के दायरे से बाहर रखने जैसे तथ्‍यों के मद्देनजर ही विधि आयोग ने आत्‍महत्‍या के प्रयास से संबंधित धारा 309 खत्‍म करने के लिये कदम उठाने की सिफारिश की थी। आयोग के मुताबिक पाकिस्‍तान, बांग्‍लादेश्‍, मलेशिया, सिंगापुर और भारत ही ऐसे चुनिंदा देश हैं जहां एक अवांछित कानूनी प्रावधान अभी भी है।

आत्‍महत्‍या का प्रयास करने के अपराध में भारतीय दंड संहिता की धारा 309 में एक साल तक की कैद और जुर्माने का प्रावधान है जबकि आत्‍महत्‍या के लिये प्रेरित करने या मजबूर करने का सवाल है तो भारतीय दंड संहिता की धारा 306 में इस अपराध के लिये दस साल तक की कैद और जुर्माने की सज़ा का प्रावधान है।

आत्‍महत्‍या की घटनाओं पर अगर नजर डालें तो पता चलता है कि 2012 में 1,10,417 व्‍यक्तियों ने आत्‍महत्‍या की थी जबकि 2011 में 1,35,445 ने आत्‍महत्‍या की थी। राष्‍ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्‍यूरो के आंकड़ों के मुताबिक देश में 2002 से ही हर साल आत्‍महत्‍या करने वालों की संख्‍या एक लाख से अधिक रही है। रोजाना औसतन 371 व्‍यक्ति आत्‍महत्‍या करते हैं। निश्चित ही आत्‍महत्‍या का प्रयास करने वालों की संख्‍या भी कुछ कम नहीं होगी।

स्‍वास्‍थ्‍य एवं परिवार कल्‍याण मंत्रालय द्वारा राज्‍यसभा में पेश इस विधेयक में मानसिक रूगणता से ग्रस्‍त व्‍यक्तियो के लिये मानसिक स्‍वास्‍थ्‍य देखरेख और सेवाएं प्रदान करने के साथ ही इस दौरान ऐसे व्‍यक्तियों को संरक्षण और उनके अधिकारों की रक्षा करने का प्रावधान किया गया है।

चूंकि इस विधेयक के माध्‍यम से भारतीय दंड संहिता की धारा 309 में भी संशोधन होगा तेा इसके लिये कानून मंत्रालय दंड कानून में अलग से संशोधन पेश करेगा। यह विधेयक पारित होने के और राष्‍ट्रपति की संस्‍तुति मिलने के बाद मानसिक स्‍वास्‍थ्‍य कानून, 1987 का स्‍थान लेगा। विधेयक में मानसिक रूग्‍णता से ग्रस्‍त व्‍यक्तियों के उपचार, उनकी देखरेख और उनका उपचार करने वाले केन्‍द्रों के बारे में भी व्‍यापक प्रावधान किये गये हैं।

विधेयक में मानसिक रूग्‍णता के क्षेत्र में कार्यरत संस्‍थाओं के नियमन और उन पर नियंत्रण के लिए केन्‍द्रीय मानसिक स्‍वास्‍थ्‍य प्राधिकरण और राज्‍य मानसिक स्‍वास्‍थ्‍य प्राधिकरण के साथ ही मानसिक स्‍वास्‍थ्‍य समीक्षा आयोग के गठन का प्रावधान है। यह विधेयक अशक्‍त व्‍यक्तियों के अधिकारों से संबंधित संयुक्‍त राष्‍ट्र कंवेनशन की संपुष्टि करता है। इस कंवेनशन पर एक अक्‍तूबर, 2007 को हस्‍ताक्षर किये गये थे और यह 3 मई, 2008 से लागू है।


उम्‍मीद की जानी चाहिए कि यह विधेयक जब कानून का रूप ले लेगा  तो देश में आत्‍महत्‍या का प्रयास करने वालों की मानसिक स्थिति के उपचार के लिये बेहतर प्रयास होंगे और यह ऐसे व्‍यक्तियों को इस तरह का कदम उठाने के प्रति हतोत्‍साहित करने में मददगार होगा।



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भारत में वृद्धजन और उनकी स्थिति

देश में बदलते सामाजिक-आर्थिक और आबादी संतुलन के साथ वृद्धजनों के रहन-सहन की दशाएं भी चुनौतीपूर्ण होती जा रही हैं। चिकित्सा विज्ञान की तरक्की के साथ देश के आम नागरिक के जीवनकाल में महत्वपूर्ण वृद्धि हुई है। एक तरफ यह खुशी की बात है लेकिन दूसरी दुख की भी बात है। जैसे-जैसे व्यक्ति का जीवनकाल बढ़ रहा है वैसे-वैसे वृद्धजनों की समस्याएं भी बढ़ती जा रही हैं। 2011 की जनगणना के आंकड़ों के विश्लेषण से पता चलता है कि भारत में वृद्धजनों की आबादी 10 करोड़ से अधिक हो चुकी है।

वृद्धजनों को परिवार के सहारे और देखभाल की जरूरत होती है लेकिन संयुक्त परिवार प्रथा के बजाय अकेले परिवारों के चलन और निरंतर प्रवास के कारण खासतौर से शहरी क्षेत्रों में वृद्ध जनों को अकलेपन का सामना करना पड़ता है। भावनात्मक, सामाजिक, वित्तीय, चिकित्सीय और कानूनी ढांचा नाजुक होता जा रहा है और इसलिए वृद्धजनों को उनके मानवाधिकारों से निरंतर वंचित रखा जाता है।

मानवाधिकार लोगों का हक है क्योंकि वे मनुष्य हैं। वृद्धजनों (महिला और पुरुष) को भी किसी अन्य व्यक्ति की तरह समान अधिकार हासिल हैं। बुढ़ापे की ओर कदम बढ़ाने पर व्यक्ति के मानव अधिकार कम नहीं हो जाते। हालांकि व्यवहार में किसी भी अंतर्राष्ट्रीय कानून में आज वृद्धजनों के मानव अधिकारों को कोई उल्लेख नहीं मिलता।

परिवार के सहारे और देखभाल के अभाव में वृद्धजनों में सुरक्षा की भावना विलुप्त हो रही है। यह स्थिति उनके जीवन को दिन प्रति दिन दर्दनाक और असुरक्षित बना रही है। देश में अत्यधिक औद्योगिकीकरण और वाणिज्यिक क्षेत्रों के कारण अधिकांश वृद्धजन खुद को अलग-थलग पाते हैं। जीवन के हर स्तर पर आयु संबंधी जरूरतों से उन्हें वंचित रखा जाता है। आबादी में उनका हिस्सा बढ़ने के बावजूद समाज उन पर उचित ध्यान नहीं दे रहा है।

वृद्धजनों के मानव अधिकार

  • जीने का अधिकार को कानून की सुरक्षा दी जाए
  • अमानवीय बर्ताव से सुरक्षा का अधिकार दिया जाए
  • स्वतंत्रता और व्यक्तिगत सुरक्षा का अधिकार
  • प्रत्येक वृद्ध को निष्पक्ष एवं सार्वजनिक सुनवाई के अधिकार का हक
  • नागरिक अधिकार एवं दायित्व -
  • घर, परिवार और निजी जीवन में आदर का अधिकार
  • विचार और चेतना की आजादी का अधिकार
  • भेदभाव से सुरक्षा का अधिकार
  • संपत्ति का अधिकार


वृद्धजनों को ये अधिकार दिलाने के लिए एजवेल फाउंडेशन ने एक सर्वेक्षण और शोध अध्ययन किया। इस सर्वेक्षण में वृद्धजनों के मानव अधिकारों के बारे में आम सोच की जानकारी जुटाई गई। वृद्धजनों के मानवाधिकार बहुत व्यापक शब्द है जो बुढ़ापे से जुड़े अनेक कारकों से निर्धारित होते हैं। वृद्धजनों में सुरक्षा के स्तर का आकलन करना भी इस सर्वेक्षण का मकसद था। इसके लिए समर्पित, अनुभवी और काबिल स्वयंसेवकों का चयन किया गया। इसके लिए स्वयंसेवकों को पर्याप्त दिशानिर्देश, निर्देश और प्रशिक्षण भी उपलब्ध कराया गया। सर्वेक्षण में सभी आयुवर्गों के 32,100 लोगों से बातचीत की गई। इंटरनेट, फोन और व्यक्तिगत माध्यम के जरिए जुलाई और अगस्त, 2013 में यह सर्वेक्षण किया गया।

कुल 32,100 लोगों में से 52 प्रतिशत अर्थात 16,748 महिलाएं थी जबकि शेष 47.8 प्रतिशत पुरुष थे। इनमें 20.6 प्रतिशत दिल्ली और एनसीआर के तथा 79.4 प्रतिशत शेष भारत के थे। सर्वेक्षण में शामिल 49.4 प्रतिशत शहरी क्षेत्रों के और 50.6 प्रतिशत ग्रामीण क्षेत्रों के थे। 46.2 प्रतिशत निजी क्षेत्र में काम कर रहे थे जबकि 44 प्रतिशत विद्यार्थी थे। 4.1 प्रतिशत का अपना काम था और 2.9 प्रतिशत कारोबारी गतिविधियों से जुड़े थे जबकि 2.7 प्रतिशत सरकारी नौकरी कर रहे थे। इस तरह सर्वेक्षण में विभिन्न वर्ग और विविध रोजगार एवं सामाजिक परिस्थिति के लिहाज से विविध प्रकार के लोगों से सपंर्क किया गया।

सर्वेक्षण से बड़ी दिलचस्प मगर आंखे खोलने वाली जानकारी सामने आई। 2,720 यानी 8.5 प्रतिशत लोग रोजाना अपने बड़े-बूढ़ों से बात नहीं करते। 23.2 प्रतिशत सिर्फ 1 वृद्धजन से रोजाना बात करते हैं जबकि 32.2 प्रतिशत रोज 2 वृद्धजनों से बात करते हैं। 15.4 प्रतिशत रोज 3 वृद्धजनों से बात करते हैं जबकि 20.7 प्रतिशत ने कहा कि वे रोज 3 वृद्धजनों से बात करते हैं। लेकिन जब उनसे पूछा गया कि किस तरह की बात करते हैं तो 82.8 प्रतिशत ने बताया कि वे व्यक्तिगत रूप से वृद्धजनों से मिलने जाते हैं। हर छठा व्यक्ति अर्थात 17 प्रतिशत लोग फोन से ही वृद्धजनों से बात करते हैं। सिर्फ 48 प्रतिशत ने कबूल किया कि वे वृद्धजनों से ईमेल से संपर्क में रहते हैं जबकि 32,100 में से सिर्फ 12 लोगों ने बताया कि वे अपने परिवार में वृद्धजनों को पत्र लिखते हैं।

44.9 प्रतिशत लोगों ने बताया कि वे विभिन्न मुद्दों पर अपने वृद्धजनों से अकसर सलाह लेते हैं। इनमें उन्होंने रिश्तों, पारिवारिक मामलों, स्वास्थ्य, करियर, कानूनी मामलों इत्यादि के बारे में सलाह लेने की बात स्वीकार की। करीब आधे लोगों ने कहा कि वे अकसर अपने बड़ों से सलाह लेते हैं। सिर्फ 3.2 प्रतिशत ने कहा कि अब तक उन्होंने अपने जीवन में वृद्धजनों की सलाह कभी नहीं ली।

सर्वेक्षण में वृद्धजनों के बारे में आम धारणा का पता चला। 84.9 प्रतिशत लोगों ने स्वीकार किया कि वृद्धजन सेवानिवृत्त होने के बाद भी सार्थक साबित होते हैं। लेकिन इनमें से 43.8 प्रतिशत इस धारणा से पूरी तरह असहमत थे। वे मानते हैं कि सेवानिवृत्त होने के बाद व्यक्ति कुछ काम का नहीं रहता।

दरअसल 85 प्रतिशत लोग मानते हैं कि वृद्धजन सेवानिवृत्त होने के बाद भी कमा सकते हैं। इससे पता चलता है कि लोग सेवानिवृत्ति को फिजूल मानते हैं और वह सिर्फ आयु तक ही सीमित नहीं है। करीब तीन चौथाई लोग मानते हैं कि वृद्धजनों को नशे के आदि‍ लोगों की श्रेणी में नहीं रखना चाहिए। हर चौथे व्यक्ति ने माना कि घर में वृद्धजनों का आदर गायब होता जा रहा है। आधे से अधिक लोग मानते हैं कि काम के दौरान वृद्धजनों के साथ भेदभाव किया जाता है। लेकिन कुछ लोग इसे सिर्फ आयु से नहीं जोड़ते। उनका मानना है कि इसके और भी कारण हो सकते हैं। अधिसंख्य लोग मानते हैं कि सरकार और समाज वृद्धजनों की मदद नहीं करते ताकि वे अपने जीवनयापन के लिए कुछ कमा सकें। करीब 60 प्रतिशत मानते हैं कि वृद्धजनों के साथ वित्तीय धोखाधड़ी होने की आशंका होती है।

आम लोगों की सोच है कि वृद्धजनों के लिए सामाजिक सुरक्षा योजनाएं पर्याप्त नहीं हैं। अधिकांश लोग यह भी मानते हैं कि वृद्धजनों के लिए पर्याप्त कानून नहीं हैं।

सर्वेक्षण का निष्कर्ष यह है कि वृद्धजनों को हमारे देश में समाज का सर्वाधिक आदरणीय सदस्य माना जाता है लेकिन जब व्यक्तिगत बर्ताव की बात आती है तो उनके साथ इसके विपरीत बर्ताव किया जाता है। युवा पीढ़ी बुढ़ापे से जुड़े मुद्दों के प्रति संवेदनशील नजर आती है लेकिन विभिन्न कारणों से अपने वृद्धजनों के साथ बात नहीं करते। समाज में वृद्धजनों की विशेष जरूरतों और अधिकारों के बारे में जागरूकता तो बहुत अधिक है लेकिन वे व्यवहारिक रूप से इस जागरूकता का इस्तेमाल वृद्धजनों की वास्तविक सहायता करने में खुद को असमर्थ पाते हैं। व्यक्ति का जीवन काल लंबा होने के कारण सेवानिवृत्ति के बाद आय के साधनों के अवसर उपलब्ध कराना बहुत आवश्यक है।

वृद्धजनों के मानवाधिकारों का देश में आदर किया जा रहा है लेकिन हालात बड़ी तेजी से बदल रहे हैं और वृद्धजनों के मानवाधिकारों के उल्लंघन की घटनाएं अब सामने आने लगी हैं। वृद्धजनों के साथ लोग अकसर बात करते हैं लेकिन पुरानी और युवा पीढ़ी के बीच फासला बढ़ता जा रहा है क्यांकि परिवार में उनका रिश्ता मजबूत नहीं है। वृद्धजन सेवानिवृत्ति के बाद भी कमा सकते हैं लेकिन उनके लिए काम के अवसर नहीं हैं। लोग उन्हें बहुत अनुभवी, ज्ञानवान और बुद्धिमान मानते हैं लेकिन उनके प्रदर्शन पर संदेह करते हैं। बूढ़ा तो एक दिन सबको होना है इसलिए वृद्धजनों को आदरणीय श्रेणी में वर्गीकृत किया जाना चाहिए। विभिन्न कारणों से अधिकांश वृद्धजन खुद को असुरक्षित महसूस करते हैं। संयुक्त परिवार प्रणाली का टूटना इसका मुख्य कारण है।

वृद्धजनों के साथ भेदभाव होना आम बात है लेकिन वे शायद ही कभी इसकी शिकायत करते हैं और इसे सामाजिक परिपाटी मानते हैं। इस भेदभाव से सुरक्षा के बारे में वे बहुत कम जागरूक होते हैं। भारत में सरकार को वृद्धजनों की सामाजिक सुरक्षा योजनाओं पर ध्यान देना चाहिए और साथ ही समाज को भी इसकी कुछ व्यवस्था करनी चाहिए ताकि वृद्धजन परेशानीमुक्त जीवन जी सकें। लोगों में वृद्धजनों के लिए कानूनी प्रावधानों की जानकारी बढ़ रही है लेकिन अब भी कुछ लोगों को कानूनी प्रणाली पर संदेह है। बुढ़ापे में स्वास्थ्य देखभाल सबसे अधिक जरूरी है इसलिए इस बारे में सरकार और अन्य संबंधित हितधारकों को तुरंत कदम उठाने चाहिए। देश में वृद्धजनों के मानव अधिकारों का आदर किया जा रहा है लेकिन स्थिति बहुत तेजी से बदल रही है और वृद्धजनों के मानवाधिकारों के उल्लंघन एवं उनके साथ दुर्व्यवहार की घटनाएं बढ़ रही हैं।

आवश्‍यकता इस बात की है कि‍परि‍वार में आरंभ से ही बुजर्गों के प्रति‍अपनेपन का भाव वि‍कसि‍त कि‍या जाए। बच्‍चों में इस भाव को जगाने के साथ-साथ स्‍वयं भी इस बात को याद रखें कि‍आप वृद्धावस्‍था में अपने साथ कैसा व्‍यवहार चाहते हैं, वही अपने घर-परि‍वार के व समाज के वृद्धों के साथ करें। बच्‍चों को भी यही संस्‍कार दें। वि‍श्‍व में भारत ही ऐसा देश है जहां आयु को आशीर्वाद व शुभकामनाओं के साथ जोड़ा गया है। जुग-जुग जि‍या, शतायु हो.......जैसे आर्शीवचन आज भी सुनने को मि‍लते हैं। ऐसे में वृद्धजनों की स्‍थि‍ति‍पर नई सोच भावनात्‍मक सोच वि‍कसि‍त करने की जरूरत है ताकि‍हमारे ये बुजुर्ग परि‍वार व समाज में खोया सम्‍मान पा सकें और अपनापन महसूस कर सकें ।


शनिवार, 24 अगस्त 2013

Company School Of Painting

India of 18th and 19th century witnessed a new genre of painting popularly known as ‘Company School’. It was named so because it primarily emerged under the benefaction of the British East India Company. The officials of the Company were fascinated by paintings that could capture the exotic and scenic aspect of the land. They wanted paintings that were above and beyond recording the multiplicity in the Indian way of life they have encountered. Indian artists of that time fulfilled the budding demand for paintings of landscapes, flora and fauna, images of native rulers, court scenes, historical monuments, festivals, ceremonies, trades and occupations, dance, music as well as portraits. It was the time when they were having dilapidated traditional patronage. As a matter of fact, Company School of Painting was the forerunner of the westernization of painting launched by art schools in India by the British towards the end of the 19th century. The account below presents more info about this school of painting. Scroll down to know more.

History of Company School of Painting
During the late 1700s several employees of East India Company moved to India for shaping new lives for themselves. En-route, they relished the treat of eyes by remarkable flora and fauna and spectacular ancient monuments. They wished to capture these images. They hired Indian painters to fulfill the purpose. These paintings influenced with European style and palette, are collectively known as Company paintings.

‘Company Paintings’ were produced in Madras Presidency for the first time. Then it rapidly dispersed to other parts of India like Delhi, Murshidabad, Lucknow, Agra, Calcutta, Patna, Benares, Punjab and centres in Western India. When photography was introduced in 1840, a new dimension was brought to painting. Now, works that could capture objective reality were emphasized.

Style of Company School of Painting
The Company School paintings exhibit a blend of naturalistic illustration and the persistent longing for the closeness and stylization of medieval Indian miniatures. This intermingling makes the Company school so exclusive; however the paintings neither had the accurateness of the photograph nor enjoyed the freedom of the miniatures. The artists of this School tailored their technique to accommodate to the British taste for academic realism. This needed the amalgamation of Western academic principles of art like a close representation of visual reality, volume and shading and perspective. The artists changed their medium as well and started to paint with watercolor (as an alternative of gouache) and also used pencil or sepia wash on European paper.

Among the eminent artists of the genre were Sewak Ram and members of the Ghulam Ali Khan family of Delhi. According to Mildred Archer, the celebrated British authority on Indian art considers Company painting to be the last innovative contribution of Indian artists prior to the modern inundation.


The Company School of painting was certainly not a decline or variation of the classical art. It was just a new-fangled norm in a special style. It aimed at retaining the sophistication, poetic vision and responsiveness innate in traditional Indian painting.

राष्ट्रीय मीडिया केंद्र - कुछ तथ्य

            राष्ट्रीय मीडिया केंद्र की परिकल्पना शुरू में पत्र सूचना कार्यालय (पीआईबी)सूचना और प्रसारण मंत्रालयभारत सरकार ने 1989 में की थी ताकि अत्याधुनिक सुविधाओं से युक्त मीडिया केंद्र के जरिए सरकार और मीडिया के बीच परस्पर संपर्क सुविधा का विस्तार किया जा सके। राष्ट्रीय मीडिया केंद्र की योजना वाशिंगटन और तोक्यो जैसी विश्व की कुछ राजधानियों के मॉडल के आधार पर तैयार की गई है। इस केंद्र में पीआईबी के कार्यालय होंगे और मीडिया के लिए विशेष सुविधाएं प्रदान की जाएंगी ताकि मीडिया और सरकार के बीच घनिष्ठ संबंध कायम किया जा सके।
o       सरकारी गतिविधियों के समाचार केंद्र के रूप मेंराष्ट्रीय मीडिया केंद्रराष्ट्रपति भवन,सरकारी कार्यालयोंविज्ञान भवन और संसद भवन के निकट शहर के मध्य में 7-,रायसीना रोड पर स्थित है। इसकी अवस्थिति को देखते हुए गणमान्य व्यक्तियों और मीडिया कार्मिकों के लिए घटनाओं की जानकारी देने और प्राप्त करने में यात्रा की दूरी कम होगी और उनका समय बचेगा।
o       राष्ट्रीय मीडिया केंद्र में 283 मीडियाकर्मियों के लिए एक प्रेस सम्मेलन कक्ष हैकरीब 60व्यक्तियों को जानकारी देने के लिए एक कक्षमीडिया के लिए 24 वर्क स्टेशनएक पुस्तकालयमीडिया लॉंन्ज और एक कैफे हैं। प्रेस सम्मेलन कक्ष और मीडिया लॉन्ज में वाई-फाई की सुविधा है।
o       इस परियोजना का उद्देश्य सरकार की नीतियों और कार्यक्रमों के बारे में जानकारी के सम्प्रेषण में और सुधार लाना है। इससे अंतर्राष्ट्रीय और भारतीय मीडिया की व्यावसायिक और संचार संबंधी जरूरतें भारत सरकार के सूचना सम्प्रेषण फ्रेमवर्क के भीतर पूरी की जा सकेंगी। इसमें उपलब्ध सुविधाओं में दृश्य एवं प्रिंट मीडिया संबंधी परंपरागत और अत्याधुनिक प्रौद्योगिकी शामिल है।

o       प्रमुख विशेषताएं:
o       विश्वस्तरीय मीडिया सेंटर
o       भूतल के अलावा 4 तल और 2 बेसमेंट
o       283 व्यक्तियों के बैठने की क्षमता वाला प्रेस कांफ्रेंस हाल।
o       मीडिया लॉंन्ज - मीडिया कार्मिकों के लिए कार्य क्षेत्र सुविधाएं
o       वीडियो कांफ्रेंसिंग सुविधाओं के साथ मीडिया लॉंन्च
o       पुस्तकालय
o       कैफेटेरिया
नए मीडिया केंद्र में आईटी और एवी ढांचा
·        उपलब्ध सुविधाएं
·        बहुतायत में ऑप्टिक फाइबर इंटरनेट सुविधाएं
·        अनुप्रयोग विकास और होस्टिंग के लिए मिनी डाटा सेंटर
·        लाइव वेबकास्ट सहित वेबकास्ट
·        भवन के बाहर टीवी चैनलों को वीडियो फीड
·        बहुतायत में और 500 नोड्स तक विस्तार क्षमता वाला नेटवर्क
·        वर्क एरिया/लॉन्ज में मीडियाकर्मियों के लिए आईटी सुविधाएं
·        इंटरनेट टेलीफोनी
·        एवी वीडियो वॉल
नए मीडिया केंद्र का निर्माण करने में नेशनल बिल्डिंग कन्स्ट्रक्शन कार्पोरेशन (एनबीसीसी) को तीन वर्ष लगे हैं। इसका आच्छादित क्षेत्रफल 13867 वर्ग मीटर है। प्लॉट का आकार 7787.46 वर्गमीटर (1.95एकड़) है।


pib

शुक्रवार, 23 अगस्त 2013

ऑटोमेशन के जरिए आयकर रिटर्न की त्‍वरित प्रोसेसिंग

वित्‍त मंत्रालय के तहत गठित आयकर विभाग केंद्र सरकार के लिए प्रत्‍यक्ष और अप्रत्‍यक्ष करों के संग्रहण और उनके प्रबंधन की जिम्‍मेदारी निभाता है। ज्‍यादा से ज्‍यादा कर संग्रहण और गुणवत्‍ता युक्‍त ग्राहक सेवा उपलब्‍ध कराने के लिए आयकर विभाग ने केंद्रीय ऑटोमेशन प्रोसेसिंग सेवा की शुरूआत की है। आयकर भरने वालों की तेजी से बढती संख्‍या तथा आयकर रिटर्न के वैधानिक प्रोसेसिंग मॉडल के कारण आयकर विभाग को आयकर मामलों को समय पर निपटाने में काफी मुश्किलें आ रही थीं इसलिए ऑटोमेशन सेवा की शुरूआत की गई।
वित्‍त अधिनियम-2008 के जरिए केंद्रीय प्रत्‍यक्ष कर बोर्ड को आयकर रिटर्न के मामलों के त्‍वरित निपटारे के लिए केंद्रीयकृत प्रोसेसिंग योजना शुरू करने का अधिकार दिया गया है। तकनीकी सलाहकार समूह के सुझावों के आधार पर बैंगलौर में केंद्रीय ऑटोमेशन प्रोसेसिंग केंद्र (सीपीसी) खोले जाने का फैसला लिया गया। इसके तहत आयकर मामलों के निपटारे के लिए आयकरदाताओं से व्‍यक्तिगत स्‍तर पर संपर्क किए बिना ऑनलाइन आयकर रिटर्न प्राप्‍त करने तथा रिफंड देने की प्रक्रिया शुरू करने की पहल की गई।

परिचालन
केंद्रीय मंत्रिमंडल ने फरवरी 2009 में 255 करोड़ रूपये की लागत से सीपीसी स्‍थापित करने को मंजूरी दी। इसके बाद इस काम को पूरा करने का अनुबंध सूचना प्रोद्योगिकी कंपनी इन्‍फोसिस लिमिटेड को 23 फरवरी 2009 को दिया गया।
जुलाई 2009 तक आयकर विभाग का यह केंद्र नये परिसर में शुरू कर दिया गया। जनवरी 2010 से इसने पूरी क्षमता के साथ काम शुरू कर दिया।

उद्देश्‍य
सीपीसी परियोजना के मुख्‍य उद्देश्‍यों में आयकर भुगतान और रिफंड के मामलों की प्रोसेसिंग के लिए आयकर विभाग की दक्षता बढ़ाने के साथ उसके लिए एक वृहत प्रणाली विकसित करनाएकीकृत प्रोसेसिंग केंद्र की व्‍यवस्‍था करना, आउटसोर्स मॉडल के आधार पर बैक ऑफिस ऑटोमेशन व्‍यवस्‍था हासिल करना, एकीकृत स्‍तर पर कर प्रबंधन से जुड़े कार्यों जैसे रसीद, स्‍केनिंग, डाटा एंट्री, प्रोसेसिंग, रिफंड देना तथा आयकर रिटर्न से जुडे सभी आंकडों और दस्‍तावेजों का रखरखाव, किफायती खर्चों पर गुणवत्‍ता युक्‍त सेवाएं उपलब्‍ध कराना तथा आयकर से जुडे सभी रिकार्डों को वैज्ञानिक पद्धति से संरक्षित रखने तथा संदर्भ के लिए आवश्‍यकता पडने पर उनकी उपलब्‍धता सुनिश्चित कराना है।

लाभ
सीपीसी परियोजना में आम लोगों के साथ-साथ आयकर विभाग के लिए भी काफी फायदे समाहित हैं। आम नागरिकों को अब आयकर रिटर्न जमा करने के लिए लम्‍बी लाइनें नहीं लगानी पडती। आयकर भरने से जुडे खर्चे भी कम हो गये हैं। आयकर रिटर्न की प्रोसेसिंग के लिए अंतर्राष्‍ट्रीय स्‍तर की सेवा उपलब्‍ध कराई गई है। इसके जरिए आयकर रिफंड के साथ ही आयकर से जुडी शिकायतों का निपटारा भी पूरी दक्षता के साथ किया जा रहा है।
दूसरी ओर परियोजना से आयकर विभाग भी लाभान्वित हो रहा है। विभाग को आम लोगों को त्‍वरित सेवाएं उपलब्‍ध कराने में मदद मिल रही है। केंद्रीयकृत निगरानी प्रक्रिया शुरू हो जाने से कर संग्रहण का बेहतर लेखा-जोखा करना संभव हो गया है। कामकाज के बोझ को कम करने में मदद मिल रही है। रिफंड का भुगतान तेजी से किया जा रहा है और कर संग्रहण से जुडी सभी जानकारी एक ही स्‍थान से उपलब्‍ध हो रही है।

चुनौतिया

सीपीसी के सामने क्रियान्‍वयन स्‍तर पर भी कई चुनौतियां रही हैं। वृहत परियोजना के लिए परिचालन सुगम बनाये रखना जोखिमों से भरा हुआ था। तकनीकी स्‍तर पर सही प्रौद्योगिकी का चयन एक बडी चुनौती थी इसलिए शुरूआती स्‍तर पर जोखिम को कम से कम रखने के लिए  'ओरेकल इंजन रूल' का इस्‍तेमाल करके एक लाख से ज्‍यादा आयकर रिटर्न की प्रोसेसिंग की गई। चूंकि इस समय तक आयकर से जुडे रिकॉर्डों का वैज्ञानिक तरीके से प्रबंधन और रखरखाव के लिए आउटसोर्सिंग की कोई व्‍यवस्‍था नहीं थी इसलिए रिकॉर्ड प्रबंधन के लिए दिल्‍ली और बंगलौर में प्रूफ ऑफ कन्‍सेप्‍ट के तहत यह व्‍यवस्‍था की गई। इसमें रिकॉर्ड प्रबंधन क्षेत्र की 2 प्रमुख कंपनियों ने भी हिस्‍सा लिया। यह पूरी प्रक्रिया 6 महीने तक चली। इस दौरान एकत्रित किए गए आंकडों का इस्‍तेमाल आरएफपी तैयार करने और सेवा स्‍तर पर किए जाने वाले अनुबंधों के लिए मानक निर्धारित करने के लिए किया गया।
आयकर विभाग की कम्‍प्‍यूटर एप्‍लीकेशन प्रणाली के साथ नई प्रणाली को जोड़ने का काम भी  काफी चुनौती भरा था। इसमें कई तरह के बदलाव किए गए। इसके लिए कई नई तकनीक विकसित की गई।

वित्‍तीय अंकणन के लिए नई पद्धति विकसित की गई। इसके लिए डबल एंट्री एकाउंटिंग सिस्‍टम का विकास किया गया। अभी तक किसी भी सरकारी विभाग में इसका इस्‍तेमाल नहीं हुआ था इसलिए यह अपने आप में एक नई पहल थी। इसके तहत विभिन्‍न तरह के आंकडों को जोड़ने की प्रक्रिया काफी सरल बना दी गई है। जो आयकर विभाग के लिए काफी मददगार साबित हो सकती है। नई तकनीक के जरिए आयकर रिटर्न दाखिल करने के लिए कंप्‍यूटर में सहजता से इस्‍तेमाल किए जाने वाले फार्म तैयार किए गए हैं। लोग ऑनलाइन आयकर भरने के लिए इस फार्म का इस्‍तेमाल कर सकते हैं।

सीपीसी के लिए कारोबारी मॉडल का चयन भी एक बडी चुनौती थी। इसके लिए विकल्‍पों की तलाश के वास्‍ते व्‍यापक स्‍तर पर बाजार अध्‍ययन कराया गया। आखिर में प्रोक्‍योरमेंट मॉडल और एमएसपी मॉडल में से किसी एक को चुनने का फैसला किया गया। पिछले अनुभवो को ध्‍यान में रखते हुए एमएसपी मॉडल का चुनाव किया गया।
स्रोत पर आयकर कटौती-टीडीएस में गडबडियों का ऑटोमेशन पद्धति के जरिए निपटारा एक मुश्किल भरा काम था। इसके लिए कई तरह के उपाय किए गए। करदाताओं को उनके आयकर के ब्‍यौरे भेजे गए और साथ ही टीडीएस प्रकोष्‍ठ को ज्‍यादा उन्‍नत और मजबूत बनाया गया ताकि गडबडियों का सही तरीके से निपटारा किया जा सके। इसके साथ ही विभिन्‍न संचार माध्‍यमों के जरिए व्‍यापक स्‍तर पर जनजागरूकता अभियान चलाया गया ताकि लोगों को उनकी आय पर लगने वाले करों की सही जानकारी उपलब्‍ध कराई जा सके।
कर जमा करने की व्‍यवस्‍था को बेहतर बनाने के लिए ई-फाइलिंग, ई-मेल और एसएमएस सेवाएं शुरू करने का फैसला लिया गया। आयकरदाताओं की ओर से मांगी जाने वाली जानकारियों के संबंध में उन्‍हें सही और त्‍वरित सूचनाएं उपलब्‍ध कराने के लिए एक कॉल सेंटर स्‍थापित करने की व्‍यवस्‍था की गई। इसमें 60 एजेंटों की नियुक्ति की गई। सीपीसी परियोजना में प्रबंधन स्‍तर पर किए गए बदलाव किसी भी सरकारी विभाग में अब तक का सबसे बड़ा बदलाव रहा।

सीपीसी प्रोसेस
सीपीसी के तहत आयकर मामलों के निपटारे के लिए 14 नई सेवाएं शुरू की गई। इन सेवाओं में डॉटा स्‍केनिंग, डॉटा एंट्री, टैक्‍स प्रोसेसिंग, टैक्‍स एकाउंटिंग, डॉटाओं का चयन और उनकी वैधता का पता लगाना शामिल है।

नई पहल का असर
सीपीसी परियोजना से आयकर रिटर्न प्रोसेसिंग पर लगने वाला समय काफी घट गया है। सामान्‍य तौर पर पहले जहां इस पर औसतन एक साल से ज्‍यादा समय लग जाता था वहीं यह काम 65 दिनों में पूरा हो जाता है। पिछले तीन सालों के दौरान सीपीसी से आयकर रिटर्न से जुड़े 4.15 करोड़ से ज्‍यादा मामलो की प्रोसेसिंग कर चुका है। मौजूदा वर्ष इसके 1.8 करोड़ से ज्‍यादा आयकर रिटर्न प्रोसेस करने की संभावना है। आयकर विभाग के कुल काम के बोझ का यह करीब 70 प्रतिशत है।

रिफंड निपटारा
सीपीसी ने पिछले चार वर्षों के दौरान 1.3 करोड़ से ज्‍यादा रिफंड के मामले निपटाये हैं। सभी मामलों का निपटारा बिना किसी भेदभाव के किया गया है। मौजूदा वर्ष रिफंड से जुडे मामलों का निपटारा जनवरी 2014 तक कर दिया जायेगा।

रिफंड में देरी के मामले घटे
वित्‍त वर्ष 2009-10 के दौरान आयकर विभाग को रिफंड में देरी के कारण जहां औसतन 17 प्रतिशत से अधिक का ब्‍याज देना पडा था वहीं सीपीसी के कारण यह अब घटकर 4.77 प्रतिशत के स्‍तर पर आ गया है। इसके कारण सरकारी खजाने को काफी बचत हुई है।

शिकायतों का जल्‍द निपटारा
सीपीसी के कारण आयकर से जुडी शिकायतों का निपटारा भी जल्‍दी होने लगा है। 11.65 लाख ऐसी शिकायतों में से 11.41 लाख का निपटारा 90 दिनों के भीतर कर दिया है जबकि पहले इसमें 180 दिन लगते थे। सीपीसी के कॉल सेंटर के जरिए रोजाना ग्राहकों के 4 हजार 300 फोन कॉल का जवाब दिया जाता है। यह सेवा फिलहाल कन्‍नड, अंग्रेजी और हिन्‍दी भाषा में उपलब्‍ध कराई जा रही है।

प्रभावी प्रबंधन

सीपीसी की ऑटोमेशन सेवा के कारण आयकर दाखिल करने के लिए कागज पर होने वाला खर्च खत्‍म हो गया है। सीपीसी का दस्‍तावेज प्रबंधन मॉडल को अंतर्राष्‍ट्रीय मानक आईएसओ 15489 का दर्जा दिया गया है।  भारत में यह पहला विभाग है जिसे यह दर्जा मिला है। सीपीसी में रिकॉर्ड प्रबंधन के लिए स्‍वदेशी स्‍तर पर विकसित वैज्ञानिक पद्धति का इस्‍तेमाल किया गया है। इससे कागज वाले दस्‍तावेजों के रखरखाव पर होने वाले खर्चे काफी घट गये हैं।

ई-फाइलिंग को प्रोत्साहन

सीपीसी में आयकर रिटर्न की त्‍वरित प्रोसेसिंग के कारण ऑन लाइन आयकर रिटर्न भरने वालों की संख्‍या में भारी इजाफा हुआ है। वित्‍त वर्ष 2010-11 के दौरान ऑनलाइन आयकर रिटर्न भरने वालों की संख्‍या 164.34 लाख रही। जबकि वित्‍त वर्ष 2006-07 के दौरान यह आंकडा 21.70 लाख था। वार्षिक स्‍तर पर ऑनलाइन आयकर रिटर्न भरने के मामलों में 25 प्रतिशत की दर से बढोतरी हो रही है। पिछले वर्ष के रूझान को देखते हुए मौजूदा साल यह आंकडा 2.5 करोड़ को पार कर जाने की संभावना है।

मानव संसाधन का इस्‍तेमाल
सीपीसी में नये एमएस की मॉडल के तहत प्रबंधन स्‍तर पर आयकर विभाग के 35 शीर्ष अधिकारियों की टीम काम कर रही है। सिर्फ इतने अधिकारी मिलकर पूरे विभाग के एक-तिहाई कामकाज को निपटा रहे हैं। इससे विभाग के अन्‍य कर्मचारियों और अधिकारियों को विभाग के लिए राजस्‍व अर्जित करने के अन्‍य कामों जैसे सर्वे, आयकर जांच, सूचना और खुफिया जानकारी इक्‍ट्ठा करने जैसे काम में लगाया जा सका है।

बेहतर ग्राहक सेवा
सीपीसी ने कॉल सेंटर, ई-मेल और एसएमएस सेवाओं के जरिए ग्राहकों के साथ संपर्क का जरिया मजबूत बनाया है।

बेहतर साख
व्‍यापक स्‍तर पर प्रौद्योगिकी का इस्‍तेमाल करके सीपीसी ने एक और जहां आयकर विभाग के कामकाज में क्रांतिकारी बदलाव लाये हैं वहीं दूसरी ओर यह एक बड़ा प्रशासनिक सुधार साबित हुआ है।

सीपीसी की कार्यप्रणाली की वजह से देशभर के 510 शहरों में स्थित आयकर विभाग के 745 कार्यालयों में काम करने वाले कर्मचारियों को बेहतर तरीके से इस्‍तेमाल करने में मदद मिली है साथ ही आयकरदाताओं को गुणवत्‍तायुक्‍त सेवाएं मिल रही हैं। इस व्‍यवस्‍था से सरकार के लिए आगे आयकर संग्रहण संतोषजनक  रहने की संभावना है।

‘पहुंचने पर वीज़ा’ योजना

पहुंचने पर वीज़ाकी सरकार की योजना विदेशी पर्यटकों में बहुत लोकप्रिय होती जा रही है। चालू वर्ष में जुलाई 2013 तक ऐसे 10,482 वीज़़ा जारी किये जा चुके हैं। यह संख्‍या वर्ष 2012 में इसी अवधि में जारी किये गये वीज़ा की संख्‍या से 37 प्र‍तिशत अधिक है। 2012 में 16 हजार से अधिक ऐसे वीज़ा जारी किये गये थे, जो इससे पिछले वर्ष के मुकाबले 26 प्रतिशत अधिक हैं।

पहुंचने पर पर्यटक वीज़ा योजना की मुख्‍य बातें इस प्रकार हैं:-

  • पहुंचने पर पर्यटक वीज़ा अधिकतम 30 दिन के लिए जारी किया जाता है और इसके जरिए केवल एक बार प्रवेश की सुविधा होती है।
  • पहुंचने पर पर्यटक वीज़ा जापान, सिंगापुर, फिनलैंड, लक्‍समबर्ग, न्‍यूजीलैंड, कंबोडिया, लाओस, वियतनाम, फिलीपीन्‍स, म्‍यामां और इंडोनेशिया से दिल्‍ली, मुंबई, चेन्‍नई और कोलकाता हवाई अड्डों पर पहुंचने वाले विदेशी नागरिकों के लिए है। 15 अगस्‍त 2013 से पहुंचने पर पर्यटक वीज़ा योजना को कोच्चि, तिरूवनंतपुरम, हैदराबाद और बंगलौर हवाई अड्डों के लिए भी शुरू कर दिया गया है।
  • पहुंचने पर पर्यटक वीज़ा की फीस बच्‍चों सहित प्रति यात्री 60 अमरीकी डॉलर या भारतीय रूपयों में इसके बराबर की राशि जितनी है।
  • पहुंचने पर पर्यटक वीज़ा किसी विदेशी को एक कैलेंडर वर्ष में अधिकतम दो बार मिल सकता है। इसके लिए दो यात्राओं में कम से कम दो महीने का अंतर होना जरूरी है।
  • पहुंचने पर पर्यटक वीज़ा को न तो बदला जा सकता है और न ही इसकी अवधि को बढ़ाया जाएगा।
  • उपरोक्‍त देशों के पर्यटक चिकित्‍सा उपचार, आकस्मिक व्यापार या अपने मित्रों/संबंधियों से मिलने आदि के लिए भी 30 दिन का पहुंचने पर पर्यटक वीज़ा ले सकते हैं।
  • पहुंचने पर पर्यटक वीज़ा की सुविधा राजनयिक/सरकारी पासपोर्ट धारकों के लिए नहीं है। पहुंचने पर पर्यटक वीज़ा उन विदेशियों को भी नहीं मिलेगा, जिनका भारत में स्‍थाई निवास है या कारोबार है। ऐसे लोग उपयुक्‍त सामान्‍य वीज़ा पर भारत आ सकते हैं।

शुरू में सरकार ने पहुंचने पर पर्यटक वीज़ा की योजना जनवरी 2010 में पांच देशों-जापान, फिनलैंड, लक्‍समबर्ग, न्‍यूजीलैंड और सिंगापुर के नागरिकों के लिए शुरू की थी, जो पर्यटन के उद्देश्‍य से भारत आना चाहते थे। बाद में इस योजना को जनवरी 2011 में छह और देशों-कंबोडिया, इंडोनेशिया, वितयतनाम, फिलीपीन्‍स, लाओस और म्‍यामां के लिए भी शुरू किया गया। पहुंचने पर पर्यटक वीज़ा योजना का मुख्‍य उद्देश्‍य भारत के लिए और ज्‍यादा विदेशी पर्यटकों को आकर्षित करने के लिए सुविधा प्रदान करना था।
इस योजना के अंतर्गत पहुंचने पर सामूहिक वीज़ा की व्‍यवस्‍था भी की गई है। एक अप्रैल 2013 से सामूहिक रूप से पहुंचने पर वीज़ा जारी करने की सुविधा देने के लिए वीज़ा नियमावली में संशोधन किया गया है। चार या इससे अधिक के समूह में विमान या समुद्री रास्‍ते से पहुंचने वाले विदेशी पर्यटकों को, जिनका प्रायोजन पर्यटन मंत्रालय से अनुमोदित भारतीय ट्रेवल एजेंसियों द्वारा किया गया हो और जिनके पास पहले से निर्धारित यात्रा कार्यक्रम हो, उन्‍हें सामूहिक पर्यटन परमिट दिया जा सकता है, जिसकी अवधि 60 दिन से अधिक नहीं होगी। इसके अंतर्गत कई स्‍थानों से प्रवेश की सुविधा होगी। इस सुविधा का लाभ उठाने के लिए पर्यटकों या ट्रेवल एजेंसियों को अनिवार्य रूप से अपना आवेदन ऑनलाइन भेजना होगा।
सामूहिक आगमन परमिट की व्‍यवस्‍था कम समय के नोटिस पर भारत यात्रा की योजना बनाने वाले विदेशी पर्यटकों को प्रोत्‍साहित करने के लिए की गई है। इस व्‍यवस्‍था से अपनी यात्रा की देर से योजना बनाने वाले उन पर्यटकों को भारत आने में सुविधा होगी, जो अब से पहले अन्‍य देशों के पर्यटन स्‍थलों के लिए जाते रहे हैं। 

इस योजना की लगातार समीक्षा की जाती है। पहुंचने पर पर्यटक वीज़ा की योजना में अन्‍य देशों को और भारत के अन्‍य हवाई अड्डों को शामिल करना एक निरंतर चलने वाली प्रक्रिया है, जो बाजार प्रवृत्तियों, सुरक्षा चिंताओं आदि जैसे विभिन्‍न पहलुओं पर निर्भर है।

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