मंगलवार, 21 मई 2013

शिवालिक बेड़े ने भारतीय नौसेना की ताकत बढ़ाई


नवीनतम युद्ध पोत आई एन एस सहयाद्री को भारतीय नौसेना में शामिल किया जा चूका है। यह युद्ध पोत देश के ही मजगांव डॉक लिमिटेड द्वारा निर्मित किया गया है। इस अवसर पर तिरंगा और नौसेना का चिन्‍ह लहराया गया, राष्‍ट्र गान की धुन बजाई गई और इन सबके बीच रक्षा मंत्री श्री ए.के. एंटनी ने औपचारिक रूप से 6 हजार टन भारी युद्ध पोत को देश को समर्पित किया। उन्‍होंने युद्ध पोत के नौसेनिकों से कहा कि वे हिन्‍द महासागर क्षेत्र में शांति और स्‍थायित्‍व स्‍थापित करें।

आई एन एस सहयाद्री शिवालिक वर्ग का अंतिम और तीसरा युद्ध पोत है। इसके साथ ही नौसेना की परियोजना 17 का समापन हो जाता है। सहयाद्री के पहले आई एन एस शिवालिक को वर्ष 2010 में और आई एन एस सतपुड़ा को वर्ष 2011 में देश को समर्पित किया गया था। तीनों युद्ध पोतों का नाम भारत की महत्‍वपूर्ण पर्वत श्रृंखलाओं के नाम पर रखा गया है। शिवालिक वर्ग के युद्ध पोत भारत के ऐसे पहले युद्ध पोत हैं जो इस तरह बनाए गए हैं कि उनकी टोह आसानी से नहीं लगाई जा सकती। ये युद्ध पोत देश के नौसेना के प्रमुख युद्ध पोत हैं। इन्‍हें 21वीं सदी की पहली तिमाही के दौरान बनाया गया है। ये तलवार वर्ग के युद्ध पोतों का उन्‍नत और श्रेष्‍ठ संस्‍करण हैं। इन युद्ध पोतों में जमीन पर मार करने की क्षमता शामिल है। इन्‍हें इस तरह बनाया गया है कि दुशमन आसानी से इनका पता नहीं लगा सकता। रडार प्रणाली और इंजन को इस तरह बनाया गया है कि जिससे शोर कम होता है और उनका पता लगाने में मुश्किल होती है।
शिवालिक वर्ग के युद्ध पोतों की लंबाई 143 मीटर और चौड़ाई 16.9 मीटर है। इनका भार 6 हजार टन है और इनमें गैस टर्बाइन तथा डीजल इंजन लगा है। इनमें 37 अधिकारियों सहित 257 नौसेना कर्मी सवार हो सकते हैं।

परियोजना17- परियोजना-17 की परिकल्‍पना भारतीय नौसेना ने की थी ताकि देश में ही ऐसे युद्ध पोत बनाए जाएं जिनकी टोह लगाना आसान न हो। वर्ष 1997 में भारत सरकार ने तीन युद्ध पोतों की मांग की थी और फरवरी 1998 में मुम्‍बई स्थित मझगांव डॉक लिमिटेड को इन्‍हें निर्मित करने का आदेश दिया था।

नौसेना डिजाइन महानिदेशालय (डीएनडी) ने परियोजना-17 वर्ग के युद्ध पोतों की शुरूआती डिजाइन तैयार की थी। बाद में मझगांव डॉक लिमिटड ने विस्‍तृत डिजाइनें तैयार कीं। खास तरह के इस्‍पात के बदलावों और रूस द्वारा मजबूत डी-40एस इस्‍पात को उपलब्‍ध कराने में विलम्‍ब होने के कारण युद्ध पोतों का निर्माण वर्ष 2000 में शुरू हो पाया। इस्‍पात आपूर्ति समस्‍याओं से निपटने के लिए, आवश्‍यक ए बी- ग्रेड इस्‍पात को रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) तथा भारतीय इस्‍पात प्राधिकरण (सेल) ने घरेलू स्‍तर पर ही विकसित किया। इस इस्‍पात से युद्ध पोतों की अगली पीढि़यों को विकसित करने में मदद मिलेगी।

रक्षा सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम मझगांव डॉक लिमिटेड में 122 मॉड्युलों में जहाजों को बनाना शुरू किया। जुलाई, 2001 में पहले युद्ध पोत की तली तैयार की। अप्रैल, 2003 में इसे शिवालिक नाम दिया गया और इसे तैयार किया गया। फरवरी, 2009 में समुद्र में युद्ध पोत का परीक्षण किया गया और अप्रैल, 2010 में उसे भारतीय नौसेना में शामिल कर लिया गया। दूसरे युद्ध पोत सतपुड़ा की तली अक्‍तूबर, 2002 में तैयार की गई और जहाज को 2004 में तैयार किया गया। अगस्‍त, 2011 में उसे नौसेना में शामिल किया गया। तीसरे युद्ध पोत सहयाद्री की तली 2003 में तैयार की गई और मई, 2005 में उसका निर्माण हुआ।

आई एन एस सहयाद्री- आई एन एस सहयाद्री जमीनी और हवाई रक्षा हथियारों से लैस है। इन हथियारों में लंबी दूरी वाली एंटी-शिप मिसाइल, एंटी एयरकराफ्ट मिसाइल और एंटी-मिसाइल रक्षा प्रणाली शामिल है, जो लंबी दूरी पर मौजूद दुश्‍मन को पहचानने और उससे युद्ध करने में सक्षम हैं। इस तरह युद्ध पोत को उल्‍लेखनीय लड़ाकू ताकत प्राप्‍त है। सहयाद्री को सहयोग देने के लिए दो बहुउद्देशीय हेलीकॉप्‍टर भी हैं जिनसे निगरानी और हमले की क्षमता बढ़ती है। युद्ध पोत में फ्रीगेट एम2ईएम 3-डी रडार, खोजी रडार, हमसा (हल-माउन्‍टेड सोनार अरे), फायर कंट्रोल रडार और बेल एलोरा इलैक्‍ट्रोनिक्‍स निगरानी उपकरण लगे हैं।

कम्‍प्‍यूटर आधारित ऐक्‍शन इन्‍फॉरमेशन ऑर्गानाइजेशन द्वारा लड़ाई के मैदान का पूरा इलैक्‍ट्रोनिक चित्र युद्ध केन्‍द्र को भेजा जा सकता है। इसमें सहयाद्री के संवेदी उपकरणों और रडारों की लक्ष्‍य सूचना भी शामिल है। यह सूचनाएं युद्ध पोत के हथियार प्रमुख एग्जिक्‍यूटिव ऑफीसर (एक्‍स ओ) तक पहुंचती है, जो प्रत्‍येक लक्ष्‍य को तबाह करने के लिए इलैक्‍ट्रोनिक रूप से हथियार का चुनाव करता है।

जहाज दो गैस टर्बाइन इंजनों से चलता है, जो उसे अधिकतम 30 नॉट (या 55 किलोमीटर प्रति घंटा से ऊपर) की गति प्रदान करते हैं। सामान्‍य गति के लिए दो डीजल इंजन मौजूद हैं। जहाज को बिजली प्रदान करने के लिए चार डीजल ऑल्‍टरनेटर लगे हैं, जो चार मेगावाट बिजली पैदा करते हैं। इतनी बिजली एक छोटे शहर को रौशन करने के लिए पर्याप्‍त होती है।

मझगांव डॉक - भावी योजनाएं शिवालिक वर्ग के युद्ध पोतों के सफल निर्माण के बाद मझगांव डॉक लिमिटड अब भविष्‍य की ओर पूरे आत्‍मविश्‍वास से देख रहा है। उसको रक्षा जहाज बनाने के इतने ऑर्डर मिल चुके हैं, जो विश्‍व की किसी भी जहाज निर्माण कंपनी के लिए डाह का कारण हो सकता है। मझगांव डॉक लिमिटेड के पास परियोजना 15ए - कोलकाता, कोच्चि और चेन्‍नई - के अंतर्गत तीन विध्वंसक जहाज बनाने का ऑर्डर है। ये जहाज आने वाले वर्षों में नौसेना के बेड़े में शामिल हो जाएंगे। परियोजना 15बी के अंतर्गत चार अन्‍य विध्‍वंसक जहाज बनाने का ऑर्डर भी कंपनी के पास है। इसके बाद परियोजना 17ए के अंतर्गत आसानी से टोह न लगने वाले चार युद्ध पोत बनाए जाएंगे। कंपनी छह स्‍कॉर्पीन पनडुब्‍बी भी बना रहा है। ये सभी 2015 और 2018 के बीच नौसेना में शामिल हो जाएंगे।

कंपनी युद्ध पोत बनाने में आत्‍मनिर्भर होने की दिशा में अग्रसर है और उसने देश को आगे ले जाने के लिए एक सार्थक रणनीति तैयार की है। आई एन एस सहयाद्री को देश को समर्पित करते समय निजी क्षेत्र की दो जहाज निर्माण कंपनियों पीपावेव डिफेंस एंड ऑफशोर इंजिनियरिंग कंपनी लिमिटेड तथा लार्सन एंड टुब्रो लिमिटेड के साथ दो समझौते किये गए हैं। इन समझौतों के तहत रक्षा मंत्रालय द्वारा जारी दिशानिर्देशों के अनुरूप युद्ध पोतों और पारम्‍परिक पनडुब्बियों का निर्माण किया जाएगा।

सरकार भारत के समुद्री हितों पर पूरा ध्‍यान दे रही है, जिसके लिए भारतीय नौसेना को युद्ध पोतों की आवश्‍यकता बढ़ रही है। इन परिस्थितियों के मद्देनजर रक्षा जहाज निर्माताओं ने अपने कार्यों को सुनिश्चित कर लिया है।

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